मोदी की पाकिस्तान नीति : एक समीक्षा –
क्या दाल पीने वाला हिन्दू जवाबी कार्यवाही कर पायेगा ?
कब – कब इतिहास में दाल पीने वाले हिन्दू ने जवाबी कार्यवाही किया था ?
“दाल पीने वाला हिन्दू” – यह
मेरी गढ़ी हुई शब्दावली नहीं है I यह शब्द है जुल्फिकार अली भुट्टो के जो कि बाद
में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, किन्तु जब उन्होंने इस शब्दावली का प्रयोग
किया तब वे विदेश सम्बंधित मामलो को देखते थे I जितनी आसानी से एक नेता युद्ध के
बारे में सोच लेता है उतनी आसानी से एक फ़ौज का जनरल नहीं सोच पाता है क्योकि उसे
अपनी औकात और मजबूरिया पता होती है तथा लड़ाई के मैदान में उसे आगे चल कर यथार्थ के
धरातल पर खड़ा होना पड़ता है I फील्ड मार्शल अयूब खान भारत से युद्ध छेड़ने में 1965
में कतरा रहे थे I जब भुट्टो ने उन पर दबाव बनाते हुए परामर्श दिया कि छम्ब और
कच्छ में भारत पर आक्रमण कर दिया जाए तो अयूब खान ने कहा कि छ्म्ब और कच्छ के बदले यदि भारतीय फौजे लाहौर और
सियालकोट की ओर बढ़ चली तो उनको रोकने की पर्याप्त तैयारी पाकिस्तान के पास नहीं है
I इस पर भुट्टो का उत्तर था कि “दाल पीने वाला हिन्दू जवाबी कार्यवाही नहीं करेगा
I” भुट्टो ने और आगे कहा कि “हिन्दू राज करने की कला को भूल गया है I पृथ्वीराज
चौहान के राज से लगातार पिटते-पिटाते उसमे यह साहस नहीं बचा है कि वह जवाबी
कार्यवाही की बात सोचे I” भुट्टो ने आगे
जोड़ा कि
“मोहम्मद की उम्माद से आँखे मिलाना,
हिमाकत नहीं तो कहो यार क्या है I”
भुट्टो ने अयूब को समझाया कि कयामत
के दिन जब हर पैगम्बर अपनी अपनी उम्मत को लेकर कयामत का फैसला सुनने पहुचेंगे तो
मुसलमानों के पहुचने पर वे लाइन में नहीं लगेंगे तथा फरिश्ते उनको नहीं रोकेंगे
तथा वे सीधे अपनी पैगम्बर के पीछे-पीछे बहिश्त (स्वर्ग) के दरवाजे खोलकर प्रवेश कर
जायेंगे तथा अल्लाह भी पर्दा हटा कर उन दीवानो और मस्तानो के इस कारनामे को देखेगा
–
यह सोच फ़रिश्ते न रोकेंगे
दीवानों से झगड़ा कौन करे
अल्लाह न परदे में होगा
मस्तानो से पर्दा कौन करे I
भुट्टो के द्वारा जोश भरे जाने पर
अयूब खान ने लड़ाई छेड़ दिया I जब भारत के प्रधान मंत्री लालबहादुर शास्त्री ने कच्छ
की समस्या पर भारतीय संसद को बताया कि कच्छ में दलदल है तथा इस कारण सफलता पूर्वक
प्रतिरोध करने में कुछ गतिरोध आ रहा है तो बलराज मधोक ने कहा कि “कच्छ में दलदल है
तो क्या हुआ, लाहौर और सियालकोट में तो जी.टी. रोड जा रही है I यह किस संविधान में
लिखा है कि युद्ध के समय और स्थान का चयन शत्रु करे ?” वार रूम में सैन्य अधिकारियो
की बैठक में जब यह सवाल उठा तो कुछ लोगो का मत था कि पाकिस्तान के घुस आने के बाद
जब उसकी सप्लाई लाइन लम्बी हो जाएगी तो उसको तोड़ कर उसे पराजित करना आसान होगा
किन्तु जब लेफ्टिनेंट जनरल हरबक्श सिंह ने गर्जना की कि “वाहे गुरु की कसम आप खाली
लाहौर और सियालकोट की ओर बढ़ने का हमे आदेश
दे दे तो हरिसिंह नालवा अगर अफगानिस्तान के जमरूद में अपना दरबार लगा सकते है तो
क्या हम रावलपिंडी और इस्लामाबाद तक भी नहीं पहुच पाएंगे ?” अधिकांश अफसरों ने इस
विचार का समर्थन किया तथा तत्समय
प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री के अनुमोदन के बाद भारतीय फौजों की
शौर्यगाथा पूरे संसार को विदित है I
किन्तु इस तरह की घटनाओ को अपवाद समझा जाना
चाहिए I ऐसा ही एक अपवाद इंदिरागाँधी भी है, जिन्होंने 1971 में न केवल भारत का
भूगोल बदल दिया बल्कि भारत का इतिहास भी बदल दिया I जहाँ पर लड़ाई हो वही पर
आत्मरक्षा में लड़कर बलिदान देना भगवान बुद्ध के बाद के भारत की परम्परा रही है I
क्षत्रिय जब तक ठाकुर और राजपूत नहीं हो गए थे – तब तक वे किसी वशिष्ठ के निर्देशन
में महाराज रघु की तरह कभी दिग्विजय करते थे तो कभी अश्वमेध यज्ञ करते थे, कभी
राजसूय यज्ञ होता था तो कभी विश्वजित यज्ञ I किन्तु जब से बौद्ध युग आया तब से वीर
युवराज धम्म प्रचार में लग गए तथा जिस चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस को परास्त कर
उसकी बेटी कार्नेलिया को अपनी महारानी बनाया था तथा चाणक्य के निर्देशन में
लबजेहाद की पुरानी भारतीय परम्परा को पुनरुज्जीवित किया था उसी चन्द्रगुप्त मौर्य
के वंशज धम्म और संघ के अहिंसा के प्रभाव में इस स्थिति में पहुच गए कि जब मिनेंडर
का आक्रमण भारत पर हुआ तो वह भारत में
वैसे घुसता चला गया जैसे मक्खन में चाकू घुसता है I परिणामस्वरूप पतंजलि के निर्देशन में पुष्यमित्र शुंग ने भारत
की धरा से बौद्ध धर्म का उन्मूलन कर पुन: सनातन धर्म की स्थपाना की तथा मनुस्मृति
का नया संस्करण तैयार किया गया जो पहले से अधिक कठोर था तथा जिसमे इस आशय के
SAFEGUARD निहित थे कि सनातन व्यवस्था को आसानी से न पलटा जा सके I पुन: अश्वमेध
यज्ञ और दिग्विजय की परम्परा चालू की गयी I किन्तु जैसे हाथ एक बार टूट जाने पर
जुट भले जाए किन्तु पुरानी बात नहीं आ पाती है वैसे ही कुछ 100 वर्षो के बाद वर्ण
व्यवस्था धीरे-धीरे जाति व्यवस्था में बदल गयी तथा वर्णाश्रम व्यवस्था की पुरानी
गरिमा वापस न आ सकी I धीरे –धीरे सत्ता राजपूतो को हाथ में पहुच गयी जो क्षत्रियो
की तरह वशिष्ठ न पाल कर ठाकुर बनकर चंदवरदाई पालने लगे I ब्राह्मण अपने आश्रम में
क्षत्रियो को प्रशिक्षित करता था कि अग्नि शेष, ऋण शेष तथा शत्रु शेष नहीं छोड़ना
चाहिए अर्थात् आग बुझाते समय जैसे एक छोटी सी चिनगारी भी नहीं छोडनी चाहिए ताकि
कहीं वह बढ़कर फिर न जलाने लगे, जैसे ऋण अदा करते समय छोटी सी भी राशि का अवशेष
नहीं होना चाहिए ताकि कहीं ब्याज बढ़कर वह विकराल रूप न ले ले, इसीप्रकार शत्रु अगर
हार रहा हो तो उसका समूल उन्मूलन करना चाहिए ताकि वह पुन: इस लायक न बन सके कि वह
भविष्य में खतरा बने I किन्तु ठाकुरों ने वशिष्ठ न पाल कर चंदबरदाई पालना चालू
किया तो कुलगुरु की जगह दरबारी लोगो ने सिखाया कि भागते हुए शत्रु का पीछा नहीं
करना चाहिए I बौद्ध धर्म के प्रभाव में आकर तमाम मानवाधिकार के सिद्धान्तो का
समावेश युद्धनीति में किया गया जैसे
“अरिकुल, अबला, वृद्ध, बालको को न सताये I” किसप्रकार अपमानित होने पर साठ हजार
राजकुमारों को जीवित जला देने के बाद भी कपिलमुनि पूजनीय बने रहे तथा सांख्य जीवन
दर्शन के प्रणेता बनकर षडदर्शन के प्रवर्तक के रूप में सुस्थापित हुए, किस प्रकार
पेट के बच्चो की हत्या के बावजूद भी (गर्भन के अर्भक दलन परशु मोर अति घोर) परशुराम जी की पूजा स्वयं रघुनाथ ने
विष्णु के अवतार के रूप में की, किस प्रकार मुचकुंद मुनि ने कालयवन की सेना को जला
कर राख कर दिया, किसप्रकार स्वयं रघुनाथ ने महिला ताड़का का वध किया, किसप्रकार
प्रभु श्रीराम ने शूर्पणखा के नाक-कान काटने के आदेश दिए – यह सारे प्रसंग केवल
संस्मरण बनकर धार्मिक पोथियो की शोभा हो गए तथा कोई यह उपदेश देने वाला नहीं रहा
कि बजरंगबली की तरह गर्जना करो जिस से “गर्भ स्रवहिं सुनि निशिचर घरनी” अर्थात
शत्रु पक्ष की पत्नियों का गर्जना सुनकर गर्भपात हो जाए I अब ठाकुर बन चुके
राजपूतो को दरबारी बन चुके ब्राहमण जिन्हें “बाभन बछिया” कहना अधिक उपयुक्त होगा, मानवाधिकार सिखाने
लगे कि भागते शत्रु का पीछा नहीं करना चाहिए I पृथ्वीराज चौहान, दिग्विजयी रघु या
उनके वंशज राम या अर्जुन से बहादुरी के मामले में कहीं कमजोर नहीं था – शब्दभेदी
बाण मारने की क्षमता उसमे थी किन्तु कोई चाणक्य या पतंजलि नहीं था जो कि भागते हुए
गोरी का पीछा करने का उसे आदेश देता तथा उसे दुबारा संभलने का मौका न मिलता I
चंदवरदाई की जगह कोई वशिष्ठ होता तो पृथ्वीराज को अपनी बेटी बेला के पति के परिवार
से रंगबाजी की लड़ाई को न करने देता तथा यह स्थिति न पैदा होती कि अपनी ही बेटी
बेला पिता पृथ्वीराज के अहंकार प्रदर्शन में विधवा हो जाए बल्कि आल्हा-उदल
तथा उनके स्वामी चंदेलो की पूरी ताकत
पृथ्वीराज चौहान के मुकाबले जब गोरी युद्ध कर रहा था उस समय पृथ्वीराज चौहान की ओर
से डटी होती I इसीप्रकार यदि चंदवरदाई की जगह कोई वशिष्ठ बैठा होता तो वह
पृथ्वीराज को निर्देशित करता कि सीमा पर गोरी दहाड़ रहा है तथा यह समय अपने समकक्ष
राजा जयचंद की बेटी जोकि अवस्था में भी पृथ्वीराज की बेटी के समान है – उसके अपहरण
का नहीं है I यदि चंदवरदाई नारियल लेकर
जयचंद के दरबार में हाजिर हुआ होता तथा पृथ्वीराज चौहान के बेटे गोविन्द के लिए
संयोगिता का हाथ मांग बैठता तो जयचंद गदगद हो गया होता कि उसकी बेटी पृथ्वीराज की
बहू बनने जा रही है किन्तु ऐसा न हो सका क्योकि पृथ्वीराज राज के पास कोई वशिष्ठ
नहीं था I लोग कहते है कि राजपूतो में एकता नहीं थी किन्तु इतिहासकार यदि समीक्षा
करे कि सारे राजपूत तो दूर रहे, केवल पृथ्वीराज चौहान के सगे रक्त- सम्बन्धी मात्र
साथ होते तो भी पृथ्वीराज दिग्विजय किये होते I कब तक हम विभीषण को गाली देते
फिरेंगे ? जब बड़ा भाई रावण हो जायेगा तो क्या छोटे भाई का यही दायित्व है कि वह
उसके साथ कुंभकर्ण बना रहे और विभीषण न हो ? यदि ऐसा दायित्व हो भी तो भी अधिकांश
छोटे भाई इसका निर्वाह न कर पाएंगे I
बौद्ध युग के अविर्भाव के बाद जो स्थिति आयी उसका
वर्णन महर्षि दयानंद के शिष्य एक आर्यसमाजी ने इन शब्दों में किया है –
“ पराये मुल्क में जा राज्य करने
की कहे तो क्या,
हुकूमत आर्यों की मिट गयी
खुद मुल्क भारत से”
जहाँ तक मेरी स्मृति साथ दे रही
है पृथ्वीराज चौहान के बाद केवल चार घटनाएं ऐसी है जिसमे कब और कहाँ लड़ाई लड़ी जाए
इसका फैसला भारत के नायक ने लिया है –
1. समर्थ गुरु रामदास की प्रेरणा से शिवाजी ने
“हिन्दू पदपादशाही” की स्थापना का लक्ष्य रखा तथा उनके उत्तराधिकारियो के घोड़े अटक
से कटक तक दौड़ने लगे I लड़ाई को मात्र महाराष्ट्र तक सीमित न कर एक बड़े दायरे में
ले गए I पानीपत में अहमद शाह अब्दाली का मराठो का युद्ध हुआ, हर प्रान्त में मराठो
का वर्चस्व बढ़ा I
2. सिक्खों की परम्परा में हरीसिंह नालवा ने
अफगानिस्तान से काफी इलाके जीत कर जमरूद में दरबार किया तथा सुरक्षात्मक लड़ाई की
जगह आक्रामक लड़ाई लड़ी I
3. लालबहादुर शास्त्री ने 1965 में भारत पाक युद्ध
को लाहौर तथा सियालकोट में घुस कर दाल पीने वाला हिन्दू होने के बावजूद जवाबी
कार्यवाही की I
4. इंदिरागांधी ने 1971 में लड़ाई को पश्चिमी
पाकिस्तान की सीमा तक न रखकर पूर्वी पाकिस्तान में सेना को प्रवेश का अधिकार दिया
तथा नौसेना को कराची में भी आक्रमण की छूट दी I
इसके विपरीत तमाम ऐसे मौके आये जहाँ यह
शत्रु के उपर छोड़ा गया कि वह कब लडे और कहां लड़े I इसीलिए पाक प्रेरित आतंकवाद न
तो ठंडा हो रहा है और न ही इन तौर तरीको से ठंडा होगा I कारगिल की लड़ाई में शहीद
हुए सेना के जवानो को सादर प्रणाम करते हुए यह विनम्र टिप्पड़ी करना चाहूँगा कि
कारगिल की लड़ाई को हमारे भारत रत्न ने सिर्फ कारगिल तक सीमित रखा तथा भुट्टो की इस
भविष्यवाणी को प्रमाणित कर दिया कि “दाल पीने वाला हिन्दू जवाबी कार्यवाही नहीं
करेगा I” कल्पना कीजिए कि आपके घर में विपक्षी पार्टी घुस आये तथा आपके घर वालो को मारने, पीटने और
अपमानित करने लगे तथा आप उसे अपने घर के नौजवानों का बलिदान करके किसी तरह अपने घर
के बाहर निकल दे और उसके बाद विजय दिवस मनाने लगे तो कारगिल का विजय दिवस सामने आ
जायेगा I असली विजय दिवस तब होता जब अन्तर्राष्ट्रीय रेखा को लाँघ कर पाकिस्तान के
इलाके को हम कम से कम उतने दिन कब्जे में रखते जितने दिन कारगिल में पाकिस्तानी
सेना टिकी थी I पृथ्वीराज चौहान ने कारगिल के विजय दिवस जैसे 17 विजय दिवस मनाये
थे और 18वीं बार क्या हुआ – यह सब को विदित है I चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य से
केवल एक बार विजय दिवस मनवाया और कई पीढियों तक किसी यवन शासक में यह हिम्मत नहीं
पड़ी कि वह मगध की ओर ताक दे I जार्डन की ओर से जब एक छोटे से देश इजराइल पर
उग्रवादी हमले कर रहे थे तो इजराइल के प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस देश की ओर से
उग्रवादी घुसेंगे, जिस दिशा से गोली चलेगी हम उस दिशा में स्थित अरब देश को हमलावर
मानेंगे तथा इस सिद्धान्त पर इजराइल ने जार्डन पर हमला कर दिया तथा बिना किसी
सर्जिकल स्ट्राइक के जार्डन ने सहमति व्यक्त की कि वह उग्रवादियों का सफाया करेगा
तथा सर्जिकल स्ट्राइक की जगह खुले आक्रमण के बूते जार्डन मजबूर होकर तबतक
उग्रवादियों का सफाया जारी रखा जब तक सारे फिलिस्तीनी जार्डन को छोड़ नहीं दिए I
जार्डन के खिलाफ केवल एक विजय दिवस मनाने के बाद दुबारा जार्डन की हिम्मत किसी
फिलिस्तीनी उग्रवादी को टिकाने की नहीं हुई I चार्ल्स मार्टिन की नेतृत्व में अरब
देशो के खिलाफ फ़्रांस ने केवल एक बार विजय दिवस मनाया और सैकड़ो साल बाद अब जाकर
फ़्रांस में आतंकवादी कार्यवाहिया चालू हो पायी है I रूस ने टर्की के खिलाफ केवल एक
विजय दिवस मनाया और पीढियों तक किसी खलीफा ने रूस की ओर नहीं ताका I ईराक ने जब
मंगोलिया पर हमला किया तो वहां के शासक तिमूचिन ने तब तक हमलावरो का पीछा किया जब
तक की ईराक की राजधानी में खलीफा के गढ़ में प्रवेश नहीं कर गया I तिमूचिन को चंगेज खां की उपाधि दी गयी तथा
दुबारा आज तक मंगोलिया पर अरब की दिशा से किसी भी देश ने हमला करने की नहीं सोची
जब कि वह एक छोटा सा देश है I जब विजय दिवस मनाया जाता है तो सन्नाटा छा जाता है
और अगले दिन से फिर हमले चालू नहीं होते है I
गुरूजी गोलवरकर के समय में
संघ की शाखाओं में तथा विद्यालयों में एक कोरस गाया जाता था कि
“सत्रह बार क्षमा कर दे
अब दिल्ली में चौहान नहीं”
किन्तु कारगिल के विजय दिवस के
बाद अटल जी ने प्रमाणित कर दिया कि अब कोई गुरूजी गोलवरकर जैसा वशिष्ठ नहीं रहा
तथा वे संघ प्रमुख को मात्र चंदवरदाई बना चुके है और यह उक्ति चरितार्थ हो रही है
कि
“सत्रह बार क्षमा कर दे
है दिल्ली में चौहान वही”
मोदी युग में परमतपस्वी संतो के
संत अशोक सिंघल जी यह आशीर्वाद दे चुके है कि वे पृथ्वीराज चौहान के बाद पहले
हिन्दू शासक है I वशिष्ठ रूपी सरसंघचालक का अस्तित्व कितना बौना हो चुका है इसे
सभी लोगो ने बिहार के चुनाव में देख लिया है I सरसंघचालक को खुले आम अपशब्द कहने
वाले सांसदों के खिलाफ निलंबन की कार्यवाही नहीं हुई बल्कि जेटली के खिलाफ बयान
देने पर अपनी इमानदारी के लिए विख्यात भाजपा सांसद को निलंबित कर दिया गया I बिना
निमंत्रण के कंक की तरह नवाज सरीफ के फंक्शन में न केवल मोदी उपस्थित हुए बल्कि
उनकी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी हरी साड़ी, हरे ब्लाउज, हरे कार्डिगन में किसी
अलग मौके पर पाकिस्तान में सुशोभित हुई –
उसी के बाद गोधरा के हीरो की पुरानी GOODWILL को सुनकर डरे सहमें पाकिस्तान में पुन: यह मनोबल आ गया कि उसके
द्वारा प्रायोजित आतंकवाद सेना के विरुद्ध व्यापक पैमाने पर चालू हुआ I इसका जवाब
सर्जिकल स्ट्राइक की तरह किस तरह कश्मीर तक लड़ाई की सीमित न रखकर अन्तर्राष्ट्रीय
बॉर्डर को लाँघ कर जार्डन के विरुद्ध इजराइल जैसी कार्यवाही होनी चाहिये थी , किस
प्रकारं अरुण जेटली जैसे चंदरबरदायियो से घिर कर स्वय को तथा देश को खतरे में डाल
रहे है तथा इसका समाधान क्या है – इसका विवरण अगले अंक में...