Wednesday, 28 September 2016

मतदाताओ के नाम खुला ख़त – (भाग-3)

मतदाताओ के नाम खुला ख़त – (भाग-3)
कैसे मतदाता मालिक से उपेक्षित नौकर बन चुका है ?
       आज कोई पार्टी अपने कार्यकर्ताओ तक की क्यों घनघोर उपेक्षा करती है ?
     मनुवादी पार्टी ही क्यों ?
अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम पर पर मै विस्तृत लेख पूर्व में लिख चुका हूँ तथा उसको पढने का कष्ट करे तथा देखे कि यह कितना भेदभावकारी तथा अत्याचारपूर्ण है I
THE SCHEDULED CASTES AND THE SCHEDULED TRIBES
(PREVENTION OF ATROCITIES) AMENDMENT ACT, 2015
No. 1  of 2016 [31st December 2015]
An Act to amend the Scheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989.
 का सन्दर्भ ले I भारत के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वोट डालने से पहले इस कानून को एक बार जरुर पढ़ ले तथा उसके बाद यह निर्णय ले कि उसे किस पार्टी को वोट देना है I इस मुद्दे को लेकर मराठो ने महाराष्ट्र में सरकार को हिला देने वाला आन्दोलन छेड़ रखा है  तथा इसका व्यापक दुरूपयोग पूरे भारत को दहलाने के लिए पर्याप्त है I मै तो यह निवेदन करता हूँ कि विवेकशील अनुसूचित जाति के लोग भी इसे एक बार पढ़े तथा अपनी टिप्पड़ी दे कि क्या यह 21वीं शताब्दी के मानवीय मूल्यों के अनुरूप है I मै विश्व के समस्त मानवाधिकार संगठनों से अपील करता हूँ कि वे इस अधिनियम को पढ़े तथा अपने विचार दे कि इस से सवर्णों तथा पिछडो के मानवाधिकारो का हनन होता है अथवा नहीं I जिसे मेरे लेखो में लिखी हुई बाते गलत लगे वह उन्हें गलत कहने के पहले इस अधिनियम को पढ़ ले I इसे आपके फोन में अगर इंटरनेट की सुविधा है तो उसे खोल कर तुरंत पढ़ सकते है I यदि आप इंटरनेट चलाना नहीं जानते है तो परिवार या मोहल्ले के किसी नवयुवक को बुला कर उसके मोबाइल में इसे देख ले I यदि आपको यह सुविधा कोई न उपलब्ध कराये तो मात्र 33 रुपये में कोई भी भी साइबर कैफे आपको इसका प्रिंटआउट निकालकर आपके हाथ में दे देगा I जनहित में स्वयं भी पढ़े तथा अपने शुभचिंतको को भी पढाये जिस से वे “हर-हर मोदी घर-घर मोदी” का नारा भूलकर देशहित में, राष्ट्रहित में तथा समाज हित में “मोदी मुक्त उत्तरप्रदेश” तथा “भाजपा मुक्त उत्तरप्रदेश” के अभियान में जुट जाए जिसकी अंतिम परिणति 2019 में भारत से उनके समापन में होगी I  जिस प्रकार गाँधी और नेहरु के अतितुष्टीकरण ने पाकिस्तान को जन्म दिया उसी प्रकार मोदी द्वारा किया जा रहा अनुसूचित जातियों का अतितुष्टीकरण सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देगा I मै यह मानता हूँ कि अनुसूचित जातियों पर जातिगत अत्याचार करने वाले को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए किन्तु क्या इस व्यवस्था को इस सीमा तक खीचा जाना चाहिए कि सवर्ण और पिछड़ी जातियों की महिलाओं की इज्जत के प्रति संवेदनशीलता को नजरअंदाज कर दिया जाए  I आज कल्पना कीजिए  कि किसी सवर्ण या पिछड़ी महिला से सामूहिक बलात्कार हो जाए तो यदि उसकी FIR कोई दरोगा या  दीवान न लिखे तो उसपर कोई भी आपराधिक मुकदमा नहीं बनेगा I अधिक से अधिक वह महिला किसी वरिष्ठ अधिकारी से शिकायत कर सकती है जहाँ से उस पर जाँच का आदेश होगा तथा व्यवहारिक धरातल पर काफी हद तक संभव है कि वह घूम टहल कर उसी थाने पर पहुच जाए I यदि महिला प्रभावशाली हुई अथवा कोई अधिकारी अतिसंवेदनशील हुआ तो वह अधिक से अधिक मुकदमा कायम करने का  आदेश दे सकता है जिसमे प्रायः थाने में “मुकदमा लिखाने में देरी के कारण” वाले स्तम्भ में  यह लिख दिया जाएगा कि देरी का कारण वादिनी का देरी से शिकायत करना है जिसका सहज लाभ न्यायालय में अभियुक्त को मिलेगा I प्रायः यह देखा जाता है कि सवर्ण या पिछड़ी जाति की महिला इतनी भी भाग्याशालिनी नहीं होती है तथा उसे न्यायालय में धारा 156(3) के अंर्तगत मुकदमा लिखाने के लिए अपने खर्चे पर परिवाद दाखिल करना पड़ता है I मा. न्यायालय भी  प्रायः सम्बंधित थाने से ही इस सम्बन्ध में आख्या मांगता  है तथा कोई थाना अपनी गलती स्वीकार नहीं करना चाहेगा और यह आख्या अपनी बचत में देगा कि वादिनी दूषित चरित्र की है तथा फर्जी आरोप लगा रही है I इस प्रक्रिया में कई महीने लग जायेंगे तथा वादिनी और उसका परिवार थक चुका होगा तथा टूटने के कगार पर होगा तथा एक ओर उसे अभियुक्तों की ओर से प्रलोभन तथा दूसरी ओर धमकिया मिल रही होंगी I इस के बाद यदि मा. न्यायाधीश संवेदनशील हुए तो मुकदमा लिखने का निर्देश देंगे अन्यथा प्रकरण यही समाप्त हो जायेगा I मानवाधिकार आयोग चाहे तो इस स्वत: संज्ञान पर एक आख्या मांग ले कि विभिन्न जनपदों में न्यायालय का आदेश होने तथा मुकदमा कायम होने में कितने दिन का अंतर है I मुकदमा कायम होने के बाद भी यदि किसी सवर्ण या पिछड़ी महिला से सामूहिक बलात्कार (GANG RAPE) हुआ है तो विवेचना राजपत्रित अधिकारी न कर के एक सामान्य उपनिरीक्षक करेगा जो कि सामान्यतया इस मामले को लम्बे समय तक लंबित रखेगा क्योकि उसको यह साहस प्रायः नहीं हो पायेगा कि निरीक्षक या थानाध्यक्ष जो उसके बॉस है तथा जिन्होंने मुकदमा नहीं लिखा है तथा उसके बाद पुन: वरिष्ठ अधिकारियो तथा  मा. न्यायालय को यह आख्या दे रखी है कि सारे आरोप झूठे है I इसके आलावा कानून ने अथवा शासन ने अथवा विभाग ने कोई समय सीमा निर्धारित नहीं कर रखी है कि सम्बंधित उपनिरीक्षक कितने दिन में यह निर्णय दे कि वह महिला वास्तव में बलात्कार की शिकार है अथवा पुलिस की प्रचलित शब्दावली में “यह आशनाई का मामला है तथा आरोप बढ़ा चड़ा कर लगाए गए है I” सामन्यतया कहीं कोर्ट यह न पूछ बैठे कि यदि प्रकरण सही था तो प्रारंभ में मुकदमा क्यों नहीं लिखा गया तथा कोई STRICTURE न पास कर के इसके डर से थानाध्यक्ष तथा क्षेत्राधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि पुरे प्रकरण को फर्जी घोषित करते हुए आरोप पत्र (CHARGE-SHEET) की जगह अंतिम आख्या (FINAL REPORT) प्रेषित कर दी जाए I अंतिम आख्या (FINAL REPORT) की स्थिति  में काफी समय तक रिपोर्ट मा. न्यायालय में लंबित रहेगी क्योकि न्यायालय में कार्यभार बहुत है तथा मा.न्यायाधीशों की संख्या इतनी कम है कि मा.C.J.I. तक संवेदनशीलता की पराकाष्ठा पर जाते हुए अपनी नम आँखों को रुमाल से पोछ चुके है और वह  भी  सार्वजानिक समारोह में I यदि मा. न्यायालय ने पुलिस की अंतिम आख्या से असहमति व्यक्त करते हुए अभियुक्तों को SUMMON भी कर लिया तो मा. न्यायालय में कोई समय सीमा तय नहीं है तथा दुरूह न्यायिक प्रक्रिया तथा न्यायधीशों की सीमित संख्या के चलते निर्णय आने में 10 -20 साल लग जायेंगे I इसे आप अतिरंजित न समझे I दिल्ली का निर्भया केस  राष्ट्रीय स्तर पर तथा लखनऊ का आशियाना  केस  प्रदेश स्तर पर एक चर्चित केस  था   तथा इसके बावजूद न्याय पाने में कितना लम्बा समय लगा तथा पुलिस का व्यवहार कितना उपेक्षापूर्ण था इसे सारे जमाने ने देखा है I ऐसी स्थिति में एक सामान्य स्तर की सामान्य वर्ग की अथवा पिछड़े वर्ग की महिला को न्याय मिल पायेगा अथवा नहीं और यदि मिल भी पाया तो कितना लम्बा समय लगेगा – इसकी परिकल्पना सहज की जा सकती है इसके विपरीत नए अधिनयम की धारा 4 (1) (L) के (W) (2) का संज्ञान ले जिसमे न केवल WORDS और ACTS बल्कि GESTURES को भी अपराध की श्रेणी में समाहित किया गया है I GESTURES में आँख मार देना, घूर कर देखना , मस्त होकर मुस्करा देना या अंगड़ाई लेना या आह भरना भी शामिल है I इस में “चक्षुमैथुन” (VISUAL SEX) की परिकल्पना की गयी है जिस के अंतर्गत यदि कोई अनुसूचित जाति की महिला यदि यह आरोप लगा दे कि कोई चौथी मंजिल पर खड़ा हुआ व्यक्ति उसे घूर कर देख रहा था तो बिना किसी साक्ष्य के, बिना किसी मेडिकल के, बिना किसी छेड़छाड़ या शरीर के स्पर्श के यह कृत्य गंभीर अपराध मान लिया जायेगा तथा दो महीने में  विवेचना पूरी कर ली  जाएगी जिसमे PRESUMPTION CLAUSE के चलते आरोप लगाने वाले का दायित्व साक्ष्य प्रस्तुत करने का नहीं है बल्कि आरोपित व्यक्ति का दायित्व अपने को निर्दोष सिद्ध करने का है जब कि ऐसी स्थिति अपने देश में प्रचलित ROMAN JURISPRUDENCE के मान्य सिद्धांतो  के सर्वथा प्रतिकूल है I इतना ही नहीं दो महीने में ही विवेचना पूर्ण कर ली  जाएगी तथा अगले दो महीने में विचारण (TRIAL) को पूरा कर निर्णय सुना दिया जाएगा I मोदी जी का क्या गजब का न्याय है कि यदि किसी सवर्ण या पिछड़ी महिला के साथ सामूहिक बलात्कार (GANG RAPE) हो जाए तो इसे उतना संवेदनशील नहीं माना जायेगा जितना कि चौथी मंजिल पर खड़े होकर सड़क से गुजरती हुई किसी अनुसूचित जाति की महिला को घूरकर देख लेने का , आँख मार देने का , मुस्करा देने का या आह भरने का I सामूहिक बलात्कार (GANG RAPE) यदि सवर्ण या पिछड़ी महिला के साथ हुआ है पुलिस स्वतंत्र है कि  जितने दिन में चाहे चार्ज सीट लगावे अथवा फाइनल रिपोर्ट प्रेषित कर दे I इसके आलावा कोर्ट में दस बीस साल तो आराम से लगेंगे I इस बीच लड़की तथा उसके परिवार के लोगो और साक्षियों को डराने और धमकाने की प्रक्रिया भी चालू रहेगी जैसा कि आशाराम बापू केश तथा   अन्य मामलो में सुनने में आता रहा है I मनुवादी पार्टी  अनुसूचित जाति के लोगो पर अत्याचार की कतई समर्थक नहीं है किन्तु इस स्थिति को भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि सवर्ण तथा पिछड़ी महिला से हुए सामूहिक बलात्कार को उतना भी संवेदनशील न माना जाए जितना किसी अनुसूचित जाति की महिला को चौथी मंजिल से घूरने के फलस्वरूप हुए चक्षु-मैथुन को I क्या यह बलात्कार में आरक्षण नहीं है ? कोई विवेकशील अनुसूचित जाति का व्यक्ति भी इस बात से सहमत होगा कि सभी जाति की महिलाओ के सम्मान को समान भाव से देखा जाए तथा जातिगत आधार पर महिलाओ के सम्मान का आकलन न किया जाए –
    “अत्याचार नहीं करते
     अपनी ऐसी परिपाटी है I
       पर अत्याचार नहीं सहते
         कहती यह हल्दीघाटी है II”
   जवाहरलाल नेहरु के जमाने से लेकर इंदिरागांधी के जमाने तक जो CIVIL RIGHTS ACT था वह सम्पूर्ण देश की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता था तथा अनुसूचित जातियों के उपर जातिगत कारणों से जो अत्याचार होते थे उनपर कार्यवाही होती थी तथा जो अत्याचार बिना जातिगत दुर्भावना की होती है उसमे यह अधिनियम लागू नहीं होता था I मान लीजिये यदि कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति विभागाध्यक्ष हो तथा वह अपने किसी कर्मचारी को एक थप्पड़ मार देता है तथा वह चपरासी या क्लर्क आवेश में जवाबी थप्पड़ मार देता है तो भले ही उसे जानकारी हो कि सम्बंधित विभागाध्यक्ष अनुसूचित जाति का है किन्तु इसे जातिगत उत्पीडन का मामला कहना न्यायोचित नहीं है I अपने से छोटे कद के व्यक्ति के संघर्ष में तो जातिगत उत्पीडन की बू आ सकती है किन्तु यदि अपने से किसी बड़े कद के व्यक्तित्व से कोई संघर्ष होता है तो इसे जातिगत अत्याचार का मामला बनाना अन्यायपूर्ण है I

    यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस भी अब अतिवादी हो गयी है जो कि पहले एक संतुलित दृष्टीकोण अपनाती थी I आज मोदी जी के हर अन्याय पूर्ण कानून में सोनिया जी की पूर्ण सहमति है तथा वे अपने पूर्वजो के संतुलित दृष्टिकोण से हटकर सवर्णों और पिछडो पर अत्याचार पूर्ण कानून बनाने में बराबर की अपराधिनी तथा सहभागिनी सिद्ध हो रही है I        इस अधिनियम के धारा 4 (1 ) (2) को पढना आवश्यक है जिसके अनुसार यदि कोई थानाध्यक्ष मुकदमा लिखने में विलम्ब करता है अथवा धारा 4 (2 )  (E) के अनुसार 60 दिन में आरोप पत्र नहीं प्रेषित करता है तो धारा 4 (8) के अनुसार वह थानाध्यक्ष या पुलिसउपाधीक्षक स्वय अपराधी माना जायेगा तथा उसको दी जाने वाली सजा किसी हालत में छह महीने से कम नही  होगी तथा संभव है कि एक साल की हो जाए I  इसी तरह इस अधिनियम की धारा 14 (1) के अनुसार राज्य सरकार ECLUSIVE SPECIAL COURT का गठन करेगी तथा यह सुनिश्चित करेगी कि 2 महीने के अन्दर मुकदमे का निस्तारण हो जाए इसी प्रकार धारा 8 के  अंतर्गत संसोधित धारा 3 के अनुसार दिन प्रतिदिन सुनवाई करेगी I यह स्थिति ARTICLE 14 का उल्लंघन है क्रमशः  

Sunday, 25 September 2016

राष्ट्रीय अध्यक्ष मनुवादी पार्टी

राष्ट्रीय अध्यक्ष मनुवादी पार्टी श्री सुव्रत त्रिपाठी जी 

Friday, 23 September 2016

मतदाताओ के नाम खुला ख़त – (भाग-2)

मतदाताओ के नाम खुला ख़त – (भाग-2)
कैसे मतदाता मालिक से उपेक्षित नौकर बन चुका है ?
       आज कोई पार्टी अपने कार्यकर्ताओ तक की क्यों घनघोर उपेक्षा करती है ?
     मनुवादी पार्टी ही क्यों ?
   भाजपा के अत्याचारों का यही समापन नहीं होता है I बैकलॉग का कानून जिसे मा.उच्चतम न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित कर दिया था उसे अटल जी ने संविधान को बदल कर पुन: लागू किया I मायावती के जमाने में जो बैकलॉग की भर्तिया हुई तथा अधिकांश विभागों में किसी सवर्ण के बच्चे को फार्म तक भरने का अवसर नहीं मिला उसका दोष हम मायावती के सिर नहीं मढ़ सकते बल्कि उस पाप के भागी अटल जी है I यह कानून अटल जी का ही बनाया हुआ था I पुन: लम्बी मुकदमेबाजी के बाद जब वह कानून असंवैधानिक घोषित हो गया तो मोदी जी छप्पन इंच का सीना ठोक कर अटल जी के अन्यायपूर्ण काले कानूनों को पुन: संविधान बदल कर लागू करने के लिए कृतसंकल्प है I और किसी के अच्छे दिन आये हो या न आये हो किन्तु “हर हर मोदी घर घर मोदी” का नारा देकर मोदी को वोट देने वाले सवर्णों के अच्छे दिन इस माने में आ गए कि अब उनका कोई बेटा या बेटी अधिकांश सरकारी नौकरियों में फार्म भरने के लिए उनसे पैसा नहीं मांगेगा तथा परीक्षा देने के लिए रेलवे के रिजर्वेशन या टिकट का पैसा नहीं मांगेगा I बैकलॉग कैसे पैदा हुआ इस पर विस्तृत विवरण पहले के लेखो में दिया जा चुका है I संक्षेप में कांग्रेसी राज्य में कागज में अनुसूचित जातियों को आरक्षण मिल गया था किन्तु व्यावहारिक धरातल पर उनके प्रार्थना पत्रों को नष्ट कर दिया जाता था तथा भर्ती करने वाले अधिकारी यह प्रमाण पत्र दे देते थे कि कोई सुयोग्य अनुसूचित जाति का अभ्यर्थी नहीं मिला जिसके फलस्वरूप यह पद सामान्य जाति के अभ्यर्थियो से भर लिए गए I जब इस विषय में कोई प्रतिवेदन संसंद में उठता था तो अनुसूचित जाति के सांसदों समेत लगभग समस्त सांसद ध्वनिमत से यह प्रस्ताव पारित कर देते थे I मायावती ने अपने समाज के लोगो के सामने यह मुद्दा उठाया कि एक बार तर्क के लिए यह माना जा सकता है कि डॉक्टर तथा इंजिनियर में योग्य अभ्यर्थी नहीं मिले किन्तु क्या कोई यह मानने को तैयार होगा कि चपरासी जिसकी योग्यता उस समय अंगूठा छाप थी उसके लिए भी कोई योग्य अनुसूचित जाति का अभ्यर्थी नहीं है I अनुसूचित जाति के लोगो को धीरे-धीरे यह समझ में आ गया कि जगजीवन राम और महावीर प्रसाद की कृपा से भले ही कुछ अनुसूचित जाति के लोग चपरासी या क्लर्क की नौकरी पा गए हो तथा भले ही कुछ उच्चाधिकारी अच्छी पोस्टो पर बैठ गए हो किन्तु यथार्थ में कांग्रेसी हरिजन अनुसूचित जाति के लोगो के दुश्मन है I चुकि अनुसूचित जाति के लोग उस समय कम पढ़े-लिखे थे अत: मायावती को यह समझाने में काफी समय लग गया कि किस प्रकार जगवीवनराम तथा महावीर प्रसाद अनुसूचित जाति के दुश्मन है I किन्तु एक बार जब अनुसूचित जातियों के समझ में यह खेल आ गया तो जो लोग गाँधी जी के भक्त बन कर अपने को हरिजन कहने में गर्व का अनुभव कर रहे थे वह लोग हरिजन को गाली समझने लगे तथा हरिजन को असंसदीय शब्द घोषित करवाने की मांग उठीं और गाँधी भले ही शेष भारत वर्ष के राष्ट्रपिता रहे हो किन्तु अनुसूचित जाति के लोगो ने गाँधी को उसकी औलाद मान लिया जिसकी औलाद मायावती गाँधी को समझती थी और कहती थी I गाँधी को मायावती ने किसकी औलाद घोषित किया था यह लिखने में लेखनी काँप रही है क्योकि भले ही मै गाँधी का भक्त नहीं हूँ किन्तु फिर भी मायावती से मै इस सीमा तक सहमत हूँ कि वे छिपे हुए मनुवादी थे तथा मनुवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते असहमति के बावजूद मुझे उनसे सहानुभूति  है I
        तनाव के इसी दौर से मनुवादी पार्टी गुजर रही है I अटल बिहारी बाजपेई, मोदी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, अमित शाह के लिए मनुवादी पार्टी उस तरह की गाली गलौज की भाषा का इस्तेमाल तो नहीं कर सकता जैसा मायावती ने गाँधी के प्रति किया था किन्तु मनुवादी पार्टी इन लोगो को सवर्ण समाज का भीष्म पितामह तथा द्रोणाचार्य मानती है I भीष्म पितामह तथा द्रोणाचार्य द्रौपदी का कैबरे डांस नहीं देखना चाहते थे किन्तु जब द्रौपदी का भरी राजसभा में चीरहरण हुआ तो उसे रोकना तो दूर वे उठ कर कमरे के बाहर तक नहीं जा पाए I हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि बिना भीष्म पितामह को शरशैया पर लिटा दिए तथा बिना द्रोणाचार्य को रास्ते से हटाये हुए कोई कितना भी पराक्रमी क्यों न हो वह दुर्योधन और दु:शासन तक पहुच ही नहीं सकता I इसी रहस्यमय मंत्र का साक्षात्कार डॉअम्बेडकर साहब नहीं कर पाए थे जिस के कारण अनुसूचित जाति के सर्वोत्कृष्ट व्यक्तित्व होते हुए भी अनुसूचित जातियों के समक्ष यह दृश्य नहीं प्रस्तुत कर पाए कि
         “पितु समेत ले ले निज नामा I
         करन लगे सब दंड प्रनामा II”
की मुद्रा में तिलक, तराजू, कलम और तलवार के दिग्गज प्रतिनिधि
    “मै सेवक समेत सुत नारी”
का उद्घोष करते हुए तन मन धन के साथ उनके चरणों में लेट जाए I दलित की बेटी को दौलत की बेटी बना चुकने के बाद रो रो कर पार्टी छोड़ते समय लोग  इस आशय का उद्घोष करते है और यह लोकोक्ति भूल जाते है कि
         “अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत”
     अगर स्वामी  प्रसाद मौर्या जी से कोई पूछे कि आखिर दलित की बेटी को दौलत की बेटी किसने बनाया तो महत्वपूर्ण शिल्पकारो में कही न कही उनका नाम अवश्य आएगा I केवल एक बार जनता ने मायावती को पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बनाया था और वह भी तब जब सतीश मिश्र जी उद्घोष कर रहे थे कि
    “पंडित शंख बजायेगा I
   हाथी बढ़ता जाएगा II”
 तथा शेष तमाम विप्रवन्धु जिनके स्वागत के लिए भाजपा पलक पांवड़े बिछाए हुए है तथा भविष्य में आगमन की व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रही है वे लोग सस्वर जाप कर रहे थे कि –
    “हाथी नहीं गणेश है I
    ब्रह्मा विष्णु महेश है II”

 केवल एक बार को छोड़ कर जितनी बार मायावती मुख्यमंत्री बनी है वह संघ परिवार तथा भाजपा परिवार के आशीर्वाद और सहयोग से I जिन मतदाताओ ने भाजपा को वोट दिया था उनकी भावनाओं को ठुकराकर भाजपा ने युधिष्ठिर की भांति राज्यश्री को मायावती के हाथो सौप कर अपने लिए वनवास सुनिश्चित कर लिया I काल चक्र के साथ मोदी के उदय के बाद जन समान्य में आशा का संचार हुआ तथा मोदी जननायक बन कर उभरे I द्रौपदी को तो जुए में युधिष्ठिर केवल एक बार हारे थे I दूसरी बार जब जुआ हुआ तो युधिष्ठिर ने केवल राज्यश्री को जुए में दाव पर लगाया तथा अपने भाइयो और द्रौपदी को जुए में दुबारा दाव पर नहीं लगाया I मोदी जी तो सवर्णों और पिछडो पर अत्याचार की पराकाष्ठा कर दिए I प्रोन्नति में आरक्षण का उल्लेख पहले किया जा चुका है I अपने से बीस साल जूनियर लोगो के अधीन काम करने के लिए सवर्णों तथा पिछडो को मजबूर करने का संकल्प मोदी जी ले चुके है तथा छप्पन इंच के सीने वाले ने यह निर्णय ले लिए है कि जब तक वे जिन्दा है कोई भी कोई उन्हें अपने संकल्प से डिगा नहीं सकता चाहे वे स्वयं सरसंघचालक ही क्यों न हो I हम किसी भी व्यक्तित्व के शरीर की हत्या में विश्वास नहीं रखते किन्तु चुनाव के मैदान में हमें “मोदी मुक्त भारत” तथा “भाजपा मुक्त भारत” का दृढ़ संकल्प लेना होगा यदि हमे अपनी प्रतिष्ठा, गरिमा, मर्यादा तथा जीविका की द्रौपदी का चीर हरण रोकना है I जैसे भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के जीते जी द्रौपदी के मान-सम्मान की रक्षा का कोई उपाय शेष नहीं था उसी प्रकार मोदी तथा भाजपा को यूपी के विधानसभा चुनाव में लगभग दिल्ली वाली स्थिति में पहुचाने के अलावा सवर्णों तथा पिछडो के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है I याद रखिये अगर मोदी तथा भाजपा का सम्पूर्ण राजनैतिक विनाश दिल्ली तथा  बिहार की भांति सुनिश्चित नहीं किया गया तो बैकलॉग तथा प्रमोशन में रिजर्वेशन का कानून उसी तरह एक झटके में पारित हो जाएगा जिस तरह से अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम में व्यापक संशोधन कर के इस अधिनियम को उस युग के कानून  से हजार गुना कड़ा कर दिया गया है जो मायावती के समय में लागू था क्रमशः 

Thursday, 22 September 2016

मतदाताओ के नाम खुला ख़त – कैसे मतदाता मालिक से उपेक्षित नौकर बन चुका है ?

मतदाताओ के नाम खुला ख़त – (भाग 1)
    कैसे मतदाता मालिक से उपेक्षित नौकर बन चुका है ?
       आज कोई पार्टी अपने कार्यकर्ताओ तक की क्यों घनघोर उपेक्षा करती है ?
     मनुवादी पार्टी ही क्यों ?
  आज इस बिंदु पर लगभग सर्वसम्मति है कि हर पार्टी अपने मतदाताओ को तो छोडिये, समर्पित कार्यकर्ताओ तक की घनघोर उपेक्षा कर रही है I इसका कारण यह है कि मतदाता मात्र एक वोट बैंक बन कर रह गया है अथवा वह निहायत सस्ते रेट पर अपने वोट को बेच रहा है I मतदाता ने चुनाव को इतना खर्चीला बना दिया है कि किसी साफ़-सुथरे आदमी की बात छोडिये, हल्के-फुल्के गंदगी वाले व्यक्तित्व तक के लिए इसको झेलना मुश्किल हो गया है I पहले धरने का युग था I लोहिया जी ने धरना युग को घेराव युग में बदल दिया I इसको अहिंसक विचारधारा वाले लोग यह कह कर आलोचना का विषय बनाते थे कि “वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति” अर्थात जैसे यज्ञो में दी गयी बलि को हिंसा की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता वैसे ही आंदोलनों में की गयी हिंसा को हिंसा की श्रेणी में लोहिया जी नहीं गिनते थे I लोहिया जी कहते थे कि “भीड़ को अनियंत्रित होने का अधिकार हैI” लोहिया जी ललकारते थे कि “जिन्दा कौमें पांच साल तक इन्तजार नहीं करती I” लोहिया जी ऐसी सरकार ने साझेदार बन कर रहने के पक्षधर नहीं थे जोकि अनियंत्रित भीड़ पर भी गोली चलाने की हिमाकत कर बैठे I तोड़-फोड़ या सरकारी संपत्ति का फूंका जाना विरोध प्रदर्शन का एक सशक्त माध्यम समझा जाने लगा I यह एक अराजक कार्यवाही नहीं थी बल्कि लोहिया जी के जीवन दर्शन का दार्शनिक आयाम थी I इसी का उप-प्रमेय हल्ला बोल हुआ जिसको काफी नजदीक से सभी ने देखा है I
     इसी बीच राजनितिक मंच पर वी.पी.सिंह का उदय हुआ , जिन्होंने घनघोर भ्रष्टाचारियो को साथ रखते हुए भी भ्रष्टाचार विरोधी जुमले छोड़ कर राजनीति में मण्डल कमीशन को लागू कर राजनीति को विशुद्ध जातिवादी मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया तथा लोहिया की 85%  बनाम 15% की लड़ाई का समापन कर दिया, तथा हर जाति लगभग जातिगत समीकरणों को ध्यान में रख कर वोट देने लगी I इसको बसपा ने और हवा दिया तथा स्थिति यहाँ तक पहुच गयी कि
         “तिलक, तराजू,  कलम तलवार I
           इनको मारो जूते चार II”
    का नारा चाहे काशीराम- मायावती ने दिया हो या न दिया हो किन्तु यह नारा बसपा के साथ समाज की निगाह में जुड़ा हुआ है किन्तु ब्राह्मण तक रामवीर उपाध्याय तथा उनके जैसे अन्य सजातीय प्रत्याशियो के क्षेत्र में इस उद्घोष  के साथ बसपा को वोट देने लगा कि -
           पाथर रख लो छाती परI
           बटन दबाओ हाथी पर II”
माहौल यहाँ तक बिगड़ा कि आज कांग्रेस तक जो जातीय सम्मेलनों से तथा खास तौर से सवर्णों के जातीय सम्मेलनों से कड़ा परहेज करती थी उसे भी ब्राह्मण चेतना परिषद” का अविष्कार करना पड़ा तथा ब्राह्मण सम्मेलनों में बढ़ चढ़ कर भाग लेने के निर्देश अपने सामंतो को देना पड़ा I आज स्थिति यह हो गयी है कि अनुसूचित जातियों की एक उपजाति जाटव को छोड़कर अधिकांश जातिया वोट डालने में अपनी जाति का ध्यान रखने लगी है तथा काफी संख्या में वे पार्टी को भूल चुकी है I उदहारण स्वरूप यदि बसपा किसी ब्राह्मण या क्षत्रिय को टिकट दे दे तथा उस सामान्य सीट पर समस्त पार्टिया किसी जाटव को टिकट दे दे तो 95% जाटव उस सीट पर बसपा के ब्राह्मण या क्षत्रिय प्रत्याशी को वोट दे देंगे तथा अन्य पार्टियों के सजातीय जाटव प्रत्याशी को वोट नहीं देंगे I किन्तु जब सपा ने अपने प्रचंड बहुमत के सुनहरे काल में अशोक बाजपेई को टिकट दिया तथा कल्याण सिंह की पार्टी ने विश्राम सिंह यादव के बेटे को टिकट दे दिया तो कल्याण सिंह की पार्टी को अधिकांश यादवो ने वोट दिया तथा सपा को नकार दिया I इसी प्रकार जब मारकंडे चंद के बेटे को चिल्लूपार से सपा ने टिकट दिया तथा कांग्रेस ने श्यामलाल यादव को सामने ला दिया तो यादव मतदाताओं ने सपा को नकार दिया तथा कांग्रेस को वोट दिया I यह हादसा अभी तक कभी हाथी को नहीं झेलना पड़ा I  हाथी का मतदाता अपनी जाति के साथ नहीं है बल्कि विचारधारा के साथ है I  दलित मतदाता आज दलितों के साथ नहीं है बल्कि दलित-हित के साथ है I स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे लोग चाहे मायावती को दलित की बेटी कहे या दौलत की बेटी, दलित समाज को यह अच्छी तरह पता है कि मायावती दलित समाज की इकलौती बेटी है जो जीरो सीट पाने के बावजूद भी इतना वजन बनाए रखने में सक्षम है कि बलिया के चर्तित बसपा विधायक पर शासन की जितनी कृपा बरसी उतनी सपा के किसी यादव विधायक तक पर नहीं बरसी I दलित समाज देख रहा है कि ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश को नकारने वाले, तथा राम और कृष्ण को पूजनीय न मानने वाले और
“मै हिन्दू पैदा तो हुआ किन्तु हिन्दू मरूँगा नहीं”
 का उद्घोष करने वाले बाबा साहब अम्बेडकर के आगे शरणागत होने के लिए  किस प्रकार नेहरु गाँधी परिवार तथा संघ परिवार आपस में घनघोर प्रतिस्पर्धा कर रहे है I दलित समाज देख रहा है कि सनातनी टीकाधारियों के वोट लेकर किस तरह प्रमोशन में आरक्षण करने के लिए, बैकलॉग सम्बन्धी कानूनों को लागू करने के लिए, मायावती के युग के अनुसूचित जाति अधिनियम को हजार गुना कड़ा कर चुकने के बाद भी और क्या कर डाले इस के लिए बीजेपी जिस तरह कृतसंकल्प है, वह मायावती के ही प्रताप का परिणाम है I इसीलिए वह जातिगत आधार पर वोट न देकर मायावती के चरणों में
     “पितु समेत ले ले निज नामा I
       करन  लगे सब दंड प्रनामा II”
की मुद्रा में तन मन धन से समर्पित सवर्ण तथा पिछड़े प्रत्याशी को प्राथमिकता दे रहा है I हम चाहते है कि  अन्य वर्गों के मतदाता भी इसी तरह सिद्धान्तो  के आधार पर तथा अपने समाज के दूरगामी हितो को ध्यान में रख कर वोट दे तथा अपने सजातीय प्रत्याशियों को मोह में न पड़कर आरक्षण पर सुप्रीमकोर्ट का निर्णय लागू करने की बात उठाने वालो को वोट दे , अनुसूचित जाति अधिनियम  के मोदी द्वारा लादे गए कठोर प्रतिबंधो की समाप्ति के लिए आवाज उठाने वालो को वोट दे चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के क्यों न हो I

       आज की तारीख में अधिकांश सवर्ण और पिछड़े वर्ग के लोग जाति के आधार पर वोट दे रहे है – इसीलिए वे उपेक्षित है I मोदी जी प्रमोशन में आरक्षण लागू करने के लिए संविधान का संशोधन करने जा रहे है I अटल जी ने सुप्रीमकोर्ट के निर्णयों को न मानकर संविधान में संशोधन करवा दिया जिसके फलस्वरूप कुछ लोग अपने से बीस-पच्चीस वर्ष वरिष्ठ तमाम लोगो लांघते हुए प्रमोशन पा गए जिसे मा.उच्चतम न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित किया था I रामजन्म भूमि के मुद्दे पर भाजपा समेत समस्त दलों का कहना है कि न्यायालय का जो फैसला होगा  उसे माना जायेगा किन्तु आरक्षण के मुद्दे पर कई बार मा.उच्चतम न्यायालय तक ने अपने फैसले दे दिए – फिर भी कोई उसे मानने को तैयार नहीं है I मा. उच्चतम न्यायालय का निर्णय था कि जब दो लोग एक साथ भर्ती हुए तथा सामान वेतन पाते हुए एक ही कार्यालय में , एक ही परिवेश में  काम कर रहे है , समान परिवेश में निवास कर रहे है तथा समान परिवेश में उनके बच्चे पढ़ रहे है तो प्रोन्नति में आरक्षण दिया जाना सर्वथा अन्याय है I एक तरह से देखा जाए तो अप्रत्यक्ष रूप से सवर्णों तथा पिछडो की नागरिकता अटल जी ने छीन ली तथा उन्हें दोयम दर्जे का (द्वितीय श्रेणी का) नागरिक बना दिया I किसी भी देश में एक नागरिक की पहचान क्या है ? यही तो है कि जब उसके संवैधानिक अधिकारों का हनन हो तो वे न्यायालय से राहत पा सके I किन्तु यदि लम्बी मुकदमे बाजी के बाद मा. उच्चतम न्यायालय का निर्णय प्राप्त करने के बावजूद भी जो न्याय न पा सके तथा प्रधानमंत्री अपने संख्या बल की शक्ति से विपक्ष को विश्वास में लेकर संभवत: सर्वसम्मति से उस निर्णय को निरस्त करते हुए संविधान को बदल दे तो इस से प्रभावित पक्ष अर्थात् सवर्ण और पिछड़े किस बात के भारतीय नागरिक रह गए I अगर मा. उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद भी अटल और सोनिया मिलकर हमसे न्यायपूर्ण अधिकारों को छीन ले तो हम तो अपने ही देश में गुलाम हो गए तथा मनुवादी पार्टी बना कर उसके झंडे तले हम अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे है तथा लोहिया जी की 85% बनाम 15%  की लड़ाई को मनुवादी पार्टी ने 80% बनाम 20% की लड़ाई में बदल दिया I लोहिया जी का कहना था कि अनुसूचित जाति, पिछड़े तथा अल्पसंख्यक मिलाकर इस देश में लगभग 85% हो जाते है तथा 15% सवर्ण उनके अधिकारों को छीन रहे है I मनुवादी पार्टी का कहना है कि अटल जी ने जो अत्याचार किये थे तथा 80% सवर्णो पिछडो तथा अल्पसंख्यको को मा. उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीन कर 20% लोगो को अपने से 20 साल वरिष्ठ लोगो के सर पर बैठा दिया था और पुन: मा. उच्चतम न्यायालय द्वारा अटल जी के संविधान संशोधन को निरस्त करने के बाद मोदी जी इस बात के लिए कृतसंकल्प है तथा नीतिगत निर्णय ले चुके है कि अटल जी के द्वारा उठाये गए अत्याचारपूर्ण कदमो को पुन: आगे बढायेंगे तथा पुन: दस साल तक 80% जनसँख्या को 20% जनसंख्या के हित में पारित किये गए अटल तथा मोदी के कानूनों को निरस्त कराने के लिए न्यायालय में संघर्ष करना पड़ेगा तथा इस बीच जो लोग अधिशासी अभियंता हो गए है उन्हें सहायक अभियंता हो जाना होगा तथा जो लोग प्रधानाध्यापक या हेड क्लर्क बन गए है उन्हें सहायक अध्यापक या सहायक क्लर्क बनना पड़ेगा तथा भविष्य में अपने से 20 साल जूनियर लोगो के अधीन काम करना पड़ेगा तो संविधान की रक्षा के लिए न्याय की रक्षा के लिए तथा मा. उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित निर्णयों के अनुपालन को सुनिश्चित कराने के लिए 80% अबादी के मानवाधिकारो की रक्षा के लिए मनुवादी पार्टी ने संघर्ष छेड़ने का निर्णय लिया है I जैसे तमाम अंग्रेज भी आज़ादी की लड़ाई में गाँधी जी साथ दे रहे थे क्योकि उन्हें अंग्रेजो के अत्याचारपूर्ण कदम पसंद नहीं थे उसी प्रकार तमाम अनुसूचित जाति के लोग भी इस संघर्ष में कन्धा से कन्धा मिलकर संघर्ष कर रहे है क्योकि उन्हें यह पसंद नहीं है कि उन्हें लाभ दिलाने के नाम पर 80% सवर्णों, पिछडो  तथा अल्पसंख्यको के मानवाधिकारो का हनन अटल तथा मोदी जैसे लोग करे तथा समाज में कटुता का संचार करे I जिस किसी व्यक्ति का अटल तथा मोदी जैसे लोगो से पूर्ण मोह भंग हो चुका हो, जो लोग इन लोगो को अपना तथा बच्चो के भविष्य का विनाश करने वाला मानते हो केवल वे ही लोग मनुवादी पार्टी की सदस्यता के लिए आमंत्रित है I जिनको लगे कि सामाजिक समरसता की आड़ में वर्ग संघर्ष तथा गृहयुद्ध की नीव अटल और मोदी जैसे लोग डाल  रहे है  हमे केवल – उनका वोट चाहिए चाहे चुनाव का परिणाम जो भी हो I अन्य अत्याचारपूर्ण कदम जो उठाये गए है उनका उल्लेख अगले लेख  में किया जायेगा...क्रमशः 

Friday, 16 September 2016

Sunday, 4 September 2016

अय्याशी में आरक्षण –

अय्याशी में आरक्षण –  
मोदी जी बलात्कार में आरक्षण दे चुके है जिसका लाभ आरोपित मंत्री को मिलेगा ही मिलेगा I आशुतोष जी तो मात्र व्यभिचार में आरक्षण मांग कर रहे है फिर “हंगामा है क्यों बरपा ?”
       अभी इसी वर्ष मात्र कुछ महीनो पहले पारित अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों को पढ़े तथा उसके निहितार्थ को समझे तो आपको पता लग जायेगा कि किस प्रकार मोदी जी ने संवेदनशून्यता की सभी सीमाओ को तोड़ कर के जो आरक्षण भर्ती तथा प्रोन्नति में था उसकी सीमाओ का विस्तार करके बलात्कार तक को उसके दायरे में ला दिया है I नए अधिनियम के अनुसार यदि कोई दलित महिला यह आरोप लगा दे कि कोई व्यक्ति घूर कर अपनी दृष्टि उसके काम्य अंगो पर गड़ाये हुए था तथा एक भी शब्द बोलने और एक भी हरकत करने का झूठा आरोप भी न लगाए तो भी मात्र चक्षु-मैथुन का कथित आरोप किसी सवर्ण, पिछड़ी अथवा अल्पसंख्यक महिला के साथ किये हुए सामूहिक बलात्कार (GANG-RAPE) से अधिक संवेदनशील माना जायेगा I यदि किसी सवर्ण, पिछड़ी अथवा अल्पसंख्यक महिला का यौन-शोषण किया जाता है अथवा उसके साथ बलात्कार किंवा सामूहिक बलात्कार घटित हो जाता है तो इसका विचारण (TRIAL) सामान्य न्यायालय में किया जायेगा तथा सालो-साल तक अभियुक्त को यह अवसर मिलेगा कि वह पीड़ित महिला को डरावे, धमकाएं अथवा आवश्यकता समझने पर उसके गवाहों की हत्या करा दे I जिन लोगो ने गौर से आशाराम बापू के केस  को देखा है (मै इस बारीकी में नहीं पड़ रहा कि वे दोषी है अथवा निर्दोष क्योकि यह प्रकरण SUB-JUDICE है) वे अच्छी तरह जानते है कि यौन-शोषण अथवा बलात्कार की पीडिता अथवा उसके साक्षियों को किन संकटो  से होकर गुजरना पड़ता है I इसके विपरीत यदि किसी ने किसी अनुसूचित जाति की महिला की ओर आँख उठाकर देखने की भी हिमाकत कर ली अथवा ऐसा करने का झूठा अथवा सच्चा आरोप लगा दिया गया तो इसका ट्रायल स्पेशल कोर्ट करेगी तथा दिन-प्रतिदिन सुनवाई करके दो महीने में फैसला सुना देगी I उल्लेखनीय है कि इस सम्पूर्ण घटना क्रम में किसी चिकित्सकीय साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है क्योकि किसी प्रकार की छेड़छाड़ अथवा नाम-मात्र के  शारीरिक सम्पर्क का तो आरोप ही लगाने की आवश्यकता नहीं है मात्र आँखों से किये हुए स्पर्श को – चक्षु-मैथुन को अपराध के लिए पर्याप्त माना गया है I मै प्राचीन शास्त्रों के गम्या तथा अगम्या अवधारणा की (जिसमे यह वर्णन किया गया है कि किस वर्ण का पुरुष किस-किस वर्ण की महिला से शारारिक सम्बन्ध स्थापित कर सकता है ) आलोचना करने वालो से यह प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि क्या यह गम्या और अगम्या अवधारणा का आधुनिक मोदी संस्करण तो नहीं है ? आज संदीप कुमार को बलात्कार में आरक्षण मिला हुआ है I उन पर जो मुकदमा चलेगा वह दसियों-बीसियों साल तक लटकेगा क्योकि यह पीड़ित महिला सामान्य वर्ग, पिछड़े वर्ग अथवा अल्पसंख्यक वर्ग की हुई तो उसके शील-भंग को मोदी साहब इतना संवेदनशील मसला नहीं मानते कि दो महीने में निस्तारण कर दिया जाए I दसियों साल तक न्याय पाने के लिए उसे न्यायालय चक्कर काटने पड़ेगे तथा उसके बाप-भाई को सीने पर गोली खाने के लिए दसियों साल तक मानसिक रूप से अपने को तैयार रखना होगा I यदि वह पीड़ित महिला दलित महिला हुई तो भी वह दो महीने में त्वरित न्याय पाने की इस सुविधा से वंचित रह जायेगी क्योकि आरोपी दलित है तथा मोदी साहब ने दलितों को बलात्कार में आरक्षण प्रदान कर दिया है कि उनको दो माह में सजा पाने का दंड नहीं मिल सकता चाहे वे सामूहिक बलात्कार और हत्या ही न कर डाले क्योकि दलित कन्या के साथ यदि दलित बलात्कार करता है तो यह अत्याचार निवारण अधिनियम के दायरे में नहीं आता I  यह बलात्कार में आरक्षण नहीं तो और क्या है कि एक दलित को बलात्कार करने के बाद दसियों-बीसियों साल तक गवाहों को तोड़ने का तथा उनका सफाया कर देने का अवसर मिले तथा एक सवर्ण ,पिछड़े  या अल्पसंख्यक को किसी दलित युवती की ओर मात्र आँख उठाकर घूरकर देख लेने पर अथवा इस आशय का झूठा या सच्चा आरोप लग जाने पर मात्र दो महीने के अंदर न्यायालय की सारी प्रक्रिया का स्पेशल कोर्ट द्वारा पूरा करा लिया जाए तथा दंडात्मक निर्णय सुना दिया जाए I महिलाओं के बारे में महाराज रघु के राज्य में बड़े कड़े निर्देश  थे –
    यस्मिन् महीं शासति वाणिनीनां
    निद्रां विहारार्धपथे गतानां
     वातोपि नास्रंस्यदंशुकानि
     कोलाम्बयेदाहरणाय  हस्तं
(जिस राजा रघु के शासन काल में वेश्याओं के मार्ग में गहरी नींद में सो जाने पर भी हवा में यह हिम्मत नहीं होती थी कि उनके कपड़ो को उडा  दे फिर उन कपड़ो से छेड़छाड़ करने उनको  हटाने तथा पकड़ने की हिम्मत भला किस पुरुष में पड़ती )  
     कहीं भी रघु के राज्य में भी आँखों से देख लेने को अपराध की संज्ञा में नहीं रखा गया है I मै दलित महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने का समर्थन करता हूँ किन्तु सवर्ण, पिछड़ी तथा अल्पसंख्यक महिलाओं को सामूहिक बलात्कार का शिकार होने पर भी दो महीने में न्याय न पाने की कड़ी निंदा करता हूँ तथा इसे बलात्कार में आरक्षण के तुल्य समझता हूँ I मोदी जी, आप आरक्षण के तहत नौकरिया ले गए – प्रोन्नति में आरक्षण के तहत प्रोन्नति ले गए – प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण का महौल बना कर बची-खुची रोजी रोटी भी छीनने की तैयारी में हो – कम से कम महिलाओं की इज्जत और आबरू को बक्श दो I कलियुग के गम्या और अगम्या सिद्धान्त का निरूपण करने का कलंक अपने सिर पर मत लो I सवर्णों, पिछडो और अल्पसंख्यको की महिलाओं के शील-भंग को उसी संवेदनशीलता से देखो तथा उसी प्रकार दो माह में निस्तारित कराओ जैसे दलितों की महिलाओं के मान-सामान के प्रति संवेदनशील हो I यदि कोई दलित भी बलात्कार करता है तो दो महीने में निस्तारण हो तथा उसे बलात्कार में आरक्षण का लाभ न मिले I
        मोदी साहब के स्तर से संदीप कुमार को यह सुविधा मिल गयी कि दो माह के अन्दर उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों का निस्तारण नहीं होगा I यदि संदीप कुमार सवर्ण होते, पिछड़े होते या अल्पसंख्यक होते तो दो माह के अन्दर उनके मामले में निर्णय हो जाता, यदि महिला दलित होती I   आज उन्हें बलात्कार में आरक्षण का इतना लाभ मिलेगा कि सम्बंधित महिला को निर्धारित  समय सीमा   में न्याय नहीं मिलेगा I
     अब देखना है कि आखिर आशुतोष ने क्या कह दिया –
     हंगामा है क्यों बरपा
    थोड़ी सी जो पी ली है I
      डाका तो  नहीं डाला
        चोरी तो नहीं की है II
       बलात्कार का आरोप लगने पर यदि संदीप कुमार को विशेष सुविधा मिल रही है कि दो माह में पीड़ित महिला को न्याय नहीं मिलेगा तो मात्र व्यभिचार का आरोप लगने की स्थिति में यदि आशुतोष आरोपी संदीप कुमार के लिए मात्र समानता का अधिकार मांग बैठे तो क्या ऐसी मांग उठाने वाले वे पहले व्यक्ति थे ? हरिवंशराय बच्चन ने लिखा है कि –
   क्या किया मैंने नहीं जो
    कर चुका संसार अब तक
    वृद्ध जग को क्यों अखरती
     यह क्षणिक मेरी जवानी
     यदि छिपाना जानता तो
     जग मुझे साधू समझता
      शत्रु मेरा बन गया है
    छल रहित व्यवहार मेरा
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उदगार मेरा
सृष्टि के प्रारंभ में मैंने
उषा के गाल चूमे
स्वय कल्याण सिंह ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी के बारे में क्या-क्या कहा था – इसको भाजपा भूल गयी जब वह अटल जी प्रति आशुतोष के उद्गारो के लिए उन पर आरोप लगा रही है I जहाँ तक मनुवादी पार्टी का सवाल है हम ऐसे समस्त आरोप-प्रत्यारोप लगाने वालो को एक गन्दा आदमी मानते है लेकिन भाजपा के दोहरे मान-दण्डो से हम सहमत नहीं है I अन्य महापुरुषों पर भी कुत्सित आरोप लगाए गए है किसी साध्वी को किसी पापी पत्रिका ने सेक्सी सन्यासिन लिखा  है तथा भाजपा यह भूल जाती  है कि जब तारकेश्वरी सिन्हा की बहस संसद में एक महान भारतीय महिला से होती थी तो संघ परिवार की पत्रिका ऑर्गेनाइजर में छपता था “TARKESHVARI AND TURKESHAVARI AT DAGGERS DRAWN IN PARLIAMENT.”

अभी हाल ही में जब राहुल के बारे में स्वामी रामदेव ने कहा था कि “वे दलितों के यहाँ भोजन करने नहीं बल्कि हनीमून मनाने जाते है” तो किसी भाजपाई के मुख से एक शब्द भी नहीं निकला था किन्तु अटल जी के मामले में आशुतोष का बयान आते ही सब चीखने चिल्लाने लगे I मनुवादी पार्टी के लोग हर बदजुबानी का विरोध करते है चाहे वह आशुतोष के द्वारा की गयी हो या ऑर्गेनाइजर के संपादक द्वारा – चाहे वह कल्याण सिंह के विरुद्ध की गयी हो  अथवा कल्याण सिंह द्वारा की गयी हो – चाहे वह स्वामी रामदेव द्वारा की गयी हो अथवा किसी साध्वी के विरुद्ध किसी प्रतिष्ठित पत्रिका द्वारा की गयी हो ...