Thursday, 22 September 2016

मतदाताओ के नाम खुला ख़त – कैसे मतदाता मालिक से उपेक्षित नौकर बन चुका है ?

मतदाताओ के नाम खुला ख़त – (भाग 1)
    कैसे मतदाता मालिक से उपेक्षित नौकर बन चुका है ?
       आज कोई पार्टी अपने कार्यकर्ताओ तक की क्यों घनघोर उपेक्षा करती है ?
     मनुवादी पार्टी ही क्यों ?
  आज इस बिंदु पर लगभग सर्वसम्मति है कि हर पार्टी अपने मतदाताओ को तो छोडिये, समर्पित कार्यकर्ताओ तक की घनघोर उपेक्षा कर रही है I इसका कारण यह है कि मतदाता मात्र एक वोट बैंक बन कर रह गया है अथवा वह निहायत सस्ते रेट पर अपने वोट को बेच रहा है I मतदाता ने चुनाव को इतना खर्चीला बना दिया है कि किसी साफ़-सुथरे आदमी की बात छोडिये, हल्के-फुल्के गंदगी वाले व्यक्तित्व तक के लिए इसको झेलना मुश्किल हो गया है I पहले धरने का युग था I लोहिया जी ने धरना युग को घेराव युग में बदल दिया I इसको अहिंसक विचारधारा वाले लोग यह कह कर आलोचना का विषय बनाते थे कि “वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति” अर्थात जैसे यज्ञो में दी गयी बलि को हिंसा की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता वैसे ही आंदोलनों में की गयी हिंसा को हिंसा की श्रेणी में लोहिया जी नहीं गिनते थे I लोहिया जी कहते थे कि “भीड़ को अनियंत्रित होने का अधिकार हैI” लोहिया जी ललकारते थे कि “जिन्दा कौमें पांच साल तक इन्तजार नहीं करती I” लोहिया जी ऐसी सरकार ने साझेदार बन कर रहने के पक्षधर नहीं थे जोकि अनियंत्रित भीड़ पर भी गोली चलाने की हिमाकत कर बैठे I तोड़-फोड़ या सरकारी संपत्ति का फूंका जाना विरोध प्रदर्शन का एक सशक्त माध्यम समझा जाने लगा I यह एक अराजक कार्यवाही नहीं थी बल्कि लोहिया जी के जीवन दर्शन का दार्शनिक आयाम थी I इसी का उप-प्रमेय हल्ला बोल हुआ जिसको काफी नजदीक से सभी ने देखा है I
     इसी बीच राजनितिक मंच पर वी.पी.सिंह का उदय हुआ , जिन्होंने घनघोर भ्रष्टाचारियो को साथ रखते हुए भी भ्रष्टाचार विरोधी जुमले छोड़ कर राजनीति में मण्डल कमीशन को लागू कर राजनीति को विशुद्ध जातिवादी मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया तथा लोहिया की 85%  बनाम 15% की लड़ाई का समापन कर दिया, तथा हर जाति लगभग जातिगत समीकरणों को ध्यान में रख कर वोट देने लगी I इसको बसपा ने और हवा दिया तथा स्थिति यहाँ तक पहुच गयी कि
         “तिलक, तराजू,  कलम तलवार I
           इनको मारो जूते चार II”
    का नारा चाहे काशीराम- मायावती ने दिया हो या न दिया हो किन्तु यह नारा बसपा के साथ समाज की निगाह में जुड़ा हुआ है किन्तु ब्राह्मण तक रामवीर उपाध्याय तथा उनके जैसे अन्य सजातीय प्रत्याशियो के क्षेत्र में इस उद्घोष  के साथ बसपा को वोट देने लगा कि -
           पाथर रख लो छाती परI
           बटन दबाओ हाथी पर II”
माहौल यहाँ तक बिगड़ा कि आज कांग्रेस तक जो जातीय सम्मेलनों से तथा खास तौर से सवर्णों के जातीय सम्मेलनों से कड़ा परहेज करती थी उसे भी ब्राह्मण चेतना परिषद” का अविष्कार करना पड़ा तथा ब्राह्मण सम्मेलनों में बढ़ चढ़ कर भाग लेने के निर्देश अपने सामंतो को देना पड़ा I आज स्थिति यह हो गयी है कि अनुसूचित जातियों की एक उपजाति जाटव को छोड़कर अधिकांश जातिया वोट डालने में अपनी जाति का ध्यान रखने लगी है तथा काफी संख्या में वे पार्टी को भूल चुकी है I उदहारण स्वरूप यदि बसपा किसी ब्राह्मण या क्षत्रिय को टिकट दे दे तथा उस सामान्य सीट पर समस्त पार्टिया किसी जाटव को टिकट दे दे तो 95% जाटव उस सीट पर बसपा के ब्राह्मण या क्षत्रिय प्रत्याशी को वोट दे देंगे तथा अन्य पार्टियों के सजातीय जाटव प्रत्याशी को वोट नहीं देंगे I किन्तु जब सपा ने अपने प्रचंड बहुमत के सुनहरे काल में अशोक बाजपेई को टिकट दिया तथा कल्याण सिंह की पार्टी ने विश्राम सिंह यादव के बेटे को टिकट दे दिया तो कल्याण सिंह की पार्टी को अधिकांश यादवो ने वोट दिया तथा सपा को नकार दिया I इसी प्रकार जब मारकंडे चंद के बेटे को चिल्लूपार से सपा ने टिकट दिया तथा कांग्रेस ने श्यामलाल यादव को सामने ला दिया तो यादव मतदाताओं ने सपा को नकार दिया तथा कांग्रेस को वोट दिया I यह हादसा अभी तक कभी हाथी को नहीं झेलना पड़ा I  हाथी का मतदाता अपनी जाति के साथ नहीं है बल्कि विचारधारा के साथ है I  दलित मतदाता आज दलितों के साथ नहीं है बल्कि दलित-हित के साथ है I स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे लोग चाहे मायावती को दलित की बेटी कहे या दौलत की बेटी, दलित समाज को यह अच्छी तरह पता है कि मायावती दलित समाज की इकलौती बेटी है जो जीरो सीट पाने के बावजूद भी इतना वजन बनाए रखने में सक्षम है कि बलिया के चर्तित बसपा विधायक पर शासन की जितनी कृपा बरसी उतनी सपा के किसी यादव विधायक तक पर नहीं बरसी I दलित समाज देख रहा है कि ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश को नकारने वाले, तथा राम और कृष्ण को पूजनीय न मानने वाले और
“मै हिन्दू पैदा तो हुआ किन्तु हिन्दू मरूँगा नहीं”
 का उद्घोष करने वाले बाबा साहब अम्बेडकर के आगे शरणागत होने के लिए  किस प्रकार नेहरु गाँधी परिवार तथा संघ परिवार आपस में घनघोर प्रतिस्पर्धा कर रहे है I दलित समाज देख रहा है कि सनातनी टीकाधारियों के वोट लेकर किस तरह प्रमोशन में आरक्षण करने के लिए, बैकलॉग सम्बन्धी कानूनों को लागू करने के लिए, मायावती के युग के अनुसूचित जाति अधिनियम को हजार गुना कड़ा कर चुकने के बाद भी और क्या कर डाले इस के लिए बीजेपी जिस तरह कृतसंकल्प है, वह मायावती के ही प्रताप का परिणाम है I इसीलिए वह जातिगत आधार पर वोट न देकर मायावती के चरणों में
     “पितु समेत ले ले निज नामा I
       करन  लगे सब दंड प्रनामा II”
की मुद्रा में तन मन धन से समर्पित सवर्ण तथा पिछड़े प्रत्याशी को प्राथमिकता दे रहा है I हम चाहते है कि  अन्य वर्गों के मतदाता भी इसी तरह सिद्धान्तो  के आधार पर तथा अपने समाज के दूरगामी हितो को ध्यान में रख कर वोट दे तथा अपने सजातीय प्रत्याशियों को मोह में न पड़कर आरक्षण पर सुप्रीमकोर्ट का निर्णय लागू करने की बात उठाने वालो को वोट दे , अनुसूचित जाति अधिनियम  के मोदी द्वारा लादे गए कठोर प्रतिबंधो की समाप्ति के लिए आवाज उठाने वालो को वोट दे चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के क्यों न हो I

       आज की तारीख में अधिकांश सवर्ण और पिछड़े वर्ग के लोग जाति के आधार पर वोट दे रहे है – इसीलिए वे उपेक्षित है I मोदी जी प्रमोशन में आरक्षण लागू करने के लिए संविधान का संशोधन करने जा रहे है I अटल जी ने सुप्रीमकोर्ट के निर्णयों को न मानकर संविधान में संशोधन करवा दिया जिसके फलस्वरूप कुछ लोग अपने से बीस-पच्चीस वर्ष वरिष्ठ तमाम लोगो लांघते हुए प्रमोशन पा गए जिसे मा.उच्चतम न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित किया था I रामजन्म भूमि के मुद्दे पर भाजपा समेत समस्त दलों का कहना है कि न्यायालय का जो फैसला होगा  उसे माना जायेगा किन्तु आरक्षण के मुद्दे पर कई बार मा.उच्चतम न्यायालय तक ने अपने फैसले दे दिए – फिर भी कोई उसे मानने को तैयार नहीं है I मा. उच्चतम न्यायालय का निर्णय था कि जब दो लोग एक साथ भर्ती हुए तथा सामान वेतन पाते हुए एक ही कार्यालय में , एक ही परिवेश में  काम कर रहे है , समान परिवेश में निवास कर रहे है तथा समान परिवेश में उनके बच्चे पढ़ रहे है तो प्रोन्नति में आरक्षण दिया जाना सर्वथा अन्याय है I एक तरह से देखा जाए तो अप्रत्यक्ष रूप से सवर्णों तथा पिछडो की नागरिकता अटल जी ने छीन ली तथा उन्हें दोयम दर्जे का (द्वितीय श्रेणी का) नागरिक बना दिया I किसी भी देश में एक नागरिक की पहचान क्या है ? यही तो है कि जब उसके संवैधानिक अधिकारों का हनन हो तो वे न्यायालय से राहत पा सके I किन्तु यदि लम्बी मुकदमे बाजी के बाद मा. उच्चतम न्यायालय का निर्णय प्राप्त करने के बावजूद भी जो न्याय न पा सके तथा प्रधानमंत्री अपने संख्या बल की शक्ति से विपक्ष को विश्वास में लेकर संभवत: सर्वसम्मति से उस निर्णय को निरस्त करते हुए संविधान को बदल दे तो इस से प्रभावित पक्ष अर्थात् सवर्ण और पिछड़े किस बात के भारतीय नागरिक रह गए I अगर मा. उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद भी अटल और सोनिया मिलकर हमसे न्यायपूर्ण अधिकारों को छीन ले तो हम तो अपने ही देश में गुलाम हो गए तथा मनुवादी पार्टी बना कर उसके झंडे तले हम अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहे है तथा लोहिया जी की 85% बनाम 15%  की लड़ाई को मनुवादी पार्टी ने 80% बनाम 20% की लड़ाई में बदल दिया I लोहिया जी का कहना था कि अनुसूचित जाति, पिछड़े तथा अल्पसंख्यक मिलाकर इस देश में लगभग 85% हो जाते है तथा 15% सवर्ण उनके अधिकारों को छीन रहे है I मनुवादी पार्टी का कहना है कि अटल जी ने जो अत्याचार किये थे तथा 80% सवर्णो पिछडो तथा अल्पसंख्यको को मा. उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीन कर 20% लोगो को अपने से 20 साल वरिष्ठ लोगो के सर पर बैठा दिया था और पुन: मा. उच्चतम न्यायालय द्वारा अटल जी के संविधान संशोधन को निरस्त करने के बाद मोदी जी इस बात के लिए कृतसंकल्प है तथा नीतिगत निर्णय ले चुके है कि अटल जी के द्वारा उठाये गए अत्याचारपूर्ण कदमो को पुन: आगे बढायेंगे तथा पुन: दस साल तक 80% जनसँख्या को 20% जनसंख्या के हित में पारित किये गए अटल तथा मोदी के कानूनों को निरस्त कराने के लिए न्यायालय में संघर्ष करना पड़ेगा तथा इस बीच जो लोग अधिशासी अभियंता हो गए है उन्हें सहायक अभियंता हो जाना होगा तथा जो लोग प्रधानाध्यापक या हेड क्लर्क बन गए है उन्हें सहायक अध्यापक या सहायक क्लर्क बनना पड़ेगा तथा भविष्य में अपने से 20 साल जूनियर लोगो के अधीन काम करना पड़ेगा तो संविधान की रक्षा के लिए न्याय की रक्षा के लिए तथा मा. उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित निर्णयों के अनुपालन को सुनिश्चित कराने के लिए 80% अबादी के मानवाधिकारो की रक्षा के लिए मनुवादी पार्टी ने संघर्ष छेड़ने का निर्णय लिया है I जैसे तमाम अंग्रेज भी आज़ादी की लड़ाई में गाँधी जी साथ दे रहे थे क्योकि उन्हें अंग्रेजो के अत्याचारपूर्ण कदम पसंद नहीं थे उसी प्रकार तमाम अनुसूचित जाति के लोग भी इस संघर्ष में कन्धा से कन्धा मिलकर संघर्ष कर रहे है क्योकि उन्हें यह पसंद नहीं है कि उन्हें लाभ दिलाने के नाम पर 80% सवर्णों, पिछडो  तथा अल्पसंख्यको के मानवाधिकारो का हनन अटल तथा मोदी जैसे लोग करे तथा समाज में कटुता का संचार करे I जिस किसी व्यक्ति का अटल तथा मोदी जैसे लोगो से पूर्ण मोह भंग हो चुका हो, जो लोग इन लोगो को अपना तथा बच्चो के भविष्य का विनाश करने वाला मानते हो केवल वे ही लोग मनुवादी पार्टी की सदस्यता के लिए आमंत्रित है I जिनको लगे कि सामाजिक समरसता की आड़ में वर्ग संघर्ष तथा गृहयुद्ध की नीव अटल और मोदी जैसे लोग डाल  रहे है  हमे केवल – उनका वोट चाहिए चाहे चुनाव का परिणाम जो भी हो I अन्य अत्याचारपूर्ण कदम जो उठाये गए है उनका उल्लेख अगले लेख  में किया जायेगा...क्रमशः 

No comments:

Post a Comment