अय्याशी में आरक्षण –
मोदी जी बलात्कार में आरक्षण दे चुके है जिसका
लाभ आरोपित मंत्री को मिलेगा ही मिलेगा I आशुतोष जी तो मात्र व्यभिचार में आरक्षण
मांग कर रहे है फिर “हंगामा है क्यों बरपा ?”
अभी
इसी वर्ष मात्र कुछ महीनो पहले पारित अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों
को पढ़े तथा उसके निहितार्थ को समझे तो आपको पता लग जायेगा कि किस प्रकार मोदी जी
ने संवेदनशून्यता की सभी सीमाओ को तोड़ कर के जो आरक्षण भर्ती तथा प्रोन्नति में था
उसकी सीमाओ का विस्तार करके बलात्कार तक को उसके दायरे में ला दिया है I नए
अधिनियम के अनुसार यदि कोई दलित महिला यह आरोप लगा दे कि कोई व्यक्ति घूर कर अपनी
दृष्टि उसके काम्य अंगो पर गड़ाये हुए था तथा एक भी शब्द बोलने और एक भी हरकत करने
का झूठा आरोप भी न लगाए तो भी मात्र चक्षु-मैथुन का कथित आरोप किसी सवर्ण, पिछड़ी
अथवा अल्पसंख्यक महिला के साथ किये हुए सामूहिक बलात्कार (GANG-RAPE) से अधिक
संवेदनशील माना जायेगा I यदि किसी सवर्ण, पिछड़ी अथवा अल्पसंख्यक महिला का यौन-शोषण
किया जाता है अथवा उसके साथ बलात्कार किंवा सामूहिक बलात्कार घटित हो जाता है तो
इसका विचारण (TRIAL) सामान्य न्यायालय में किया जायेगा तथा सालो-साल तक अभियुक्त
को यह अवसर मिलेगा कि वह पीड़ित महिला को डरावे, धमकाएं अथवा आवश्यकता समझने पर
उसके गवाहों की हत्या करा दे I जिन लोगो ने गौर से आशाराम बापू के केस को देखा है (मै इस बारीकी में नहीं पड़ रहा कि वे
दोषी है अथवा निर्दोष क्योकि यह प्रकरण SUB-JUDICE है) वे अच्छी तरह जानते है कि
यौन-शोषण अथवा बलात्कार की पीडिता अथवा उसके साक्षियों को किन संकटो से होकर गुजरना पड़ता है I इसके विपरीत यदि किसी
ने किसी अनुसूचित जाति की महिला की ओर आँख उठाकर देखने की भी हिमाकत कर ली अथवा ऐसा
करने का झूठा अथवा सच्चा आरोप लगा दिया गया तो इसका ट्रायल स्पेशल कोर्ट करेगी तथा
दिन-प्रतिदिन सुनवाई करके दो महीने में फैसला सुना देगी I उल्लेखनीय है कि इस
सम्पूर्ण घटना क्रम में किसी चिकित्सकीय साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है क्योकि किसी
प्रकार की छेड़छाड़ अथवा नाम-मात्र के शारीरिक
सम्पर्क का तो आरोप ही लगाने की आवश्यकता नहीं है मात्र आँखों से किये हुए स्पर्श
को – चक्षु-मैथुन को अपराध के लिए पर्याप्त माना गया है I मै प्राचीन शास्त्रों के
गम्या तथा अगम्या अवधारणा की (जिसमे यह वर्णन किया गया है कि किस वर्ण का पुरुष
किस-किस वर्ण की महिला से शारारिक सम्बन्ध स्थापित कर सकता है ) आलोचना करने वालो
से यह प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि क्या यह गम्या और अगम्या अवधारणा का आधुनिक मोदी
संस्करण तो नहीं है ? आज संदीप कुमार को बलात्कार में आरक्षण मिला हुआ है I उन पर
जो मुकदमा चलेगा वह दसियों-बीसियों साल तक लटकेगा क्योकि यह पीड़ित महिला सामान्य वर्ग,
पिछड़े वर्ग अथवा अल्पसंख्यक वर्ग की हुई तो उसके शील-भंग को मोदी साहब इतना
संवेदनशील मसला नहीं मानते कि दो महीने में निस्तारण कर दिया जाए I दसियों साल तक
न्याय पाने के लिए उसे न्यायालय चक्कर काटने पड़ेगे तथा उसके बाप-भाई को सीने पर
गोली खाने के लिए दसियों साल तक मानसिक रूप से अपने को तैयार रखना होगा I यदि वह
पीड़ित महिला दलित महिला हुई तो भी वह दो महीने में त्वरित न्याय पाने की इस सुविधा
से वंचित रह जायेगी क्योकि आरोपी दलित है तथा मोदी साहब ने दलितों को बलात्कार में
आरक्षण प्रदान कर दिया है कि उनको दो माह में सजा पाने का दंड नहीं मिल सकता चाहे वे
सामूहिक बलात्कार और हत्या ही न कर डाले क्योकि दलित कन्या के साथ यदि दलित
बलात्कार करता है तो यह अत्याचार निवारण अधिनियम के दायरे में नहीं आता I यह बलात्कार में आरक्षण नहीं तो और क्या है कि
एक दलित को बलात्कार करने के बाद दसियों-बीसियों साल तक गवाहों को तोड़ने का तथा
उनका सफाया कर देने का अवसर मिले तथा एक सवर्ण ,पिछड़े या अल्पसंख्यक को किसी दलित युवती की ओर मात्र
आँख उठाकर घूरकर देख लेने पर अथवा इस आशय का झूठा या सच्चा आरोप लग जाने पर मात्र
दो महीने के अंदर न्यायालय की सारी प्रक्रिया का स्पेशल कोर्ट द्वारा पूरा करा
लिया जाए तथा दंडात्मक निर्णय सुना दिया जाए I महिलाओं के बारे में महाराज रघु के
राज्य में बड़े कड़े निर्देश थे –
यस्मिन् महीं शासति वाणिनीनां
निद्रां विहारार्धपथे गतानां
वातोपि नास्रंस्यदंशुकानि
कोलाम्बयेदाहरणाय
हस्तं
(जिस राजा रघु के शासन काल में वेश्याओं के
मार्ग में गहरी नींद में सो जाने पर भी हवा में यह हिम्मत नहीं होती थी कि उनके
कपड़ो को उडा दे फिर उन कपड़ो से छेड़छाड़
करने उनको हटाने तथा पकड़ने की हिम्मत भला
किस पुरुष में पड़ती )
कहीं भी रघु के राज्य में भी आँखों से देख लेने को अपराध की संज्ञा में
नहीं रखा गया है I मै दलित महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने का समर्थन करता हूँ किन्तु
सवर्ण, पिछड़ी तथा अल्पसंख्यक महिलाओं को सामूहिक बलात्कार का शिकार होने पर भी दो
महीने में न्याय न पाने की कड़ी निंदा करता हूँ तथा इसे बलात्कार में आरक्षण के तुल्य
समझता हूँ I मोदी जी, आप आरक्षण के तहत नौकरिया ले गए – प्रोन्नति में आरक्षण के
तहत प्रोन्नति ले गए – प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण का महौल बना कर बची-खुची रोजी
रोटी भी छीनने की तैयारी में हो – कम से कम महिलाओं की इज्जत और आबरू को बक्श दो I
कलियुग के गम्या और अगम्या सिद्धान्त का निरूपण करने का कलंक अपने सिर पर मत लो I
सवर्णों, पिछडो और अल्पसंख्यको की महिलाओं के शील-भंग को उसी संवेदनशीलता से देखो
तथा उसी प्रकार दो माह में निस्तारित कराओ जैसे दलितों की महिलाओं के मान-सामान के
प्रति संवेदनशील हो I यदि कोई दलित भी बलात्कार करता है तो दो महीने में निस्तारण
हो तथा उसे बलात्कार में आरक्षण का लाभ न मिले I
मोदी साहब के स्तर से संदीप कुमार को यह सुविधा मिल गयी कि दो माह के अन्दर
उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों का निस्तारण नहीं होगा I यदि संदीप कुमार सवर्ण होते,
पिछड़े होते या अल्पसंख्यक होते तो दो माह के अन्दर उनके मामले में निर्णय हो जाता,
यदि महिला दलित होती I आज उन्हें बलात्कार में आरक्षण का इतना लाभ
मिलेगा कि सम्बंधित महिला को निर्धारित समय सीमा में
न्याय नहीं मिलेगा I
अब
देखना है कि आखिर आशुतोष ने क्या कह दिया –
हंगामा है क्यों बरपा
थोड़ी
सी जो पी ली है I
डाका
तो नहीं डाला
चोरी तो नहीं की है II
बलात्कार का आरोप लगने पर यदि संदीप कुमार को विशेष सुविधा मिल रही है कि
दो माह में पीड़ित महिला को न्याय नहीं मिलेगा तो मात्र व्यभिचार का आरोप लगने की
स्थिति में यदि आशुतोष आरोपी संदीप कुमार के लिए मात्र समानता का अधिकार मांग बैठे
तो क्या ऐसी मांग उठाने वाले वे पहले व्यक्ति थे ? हरिवंशराय बच्चन ने लिखा है कि –
क्या
किया मैंने नहीं जो
कर
चुका संसार अब तक
वृद्ध
जग को क्यों अखरती
यह
क्षणिक मेरी जवानी
यदि
छिपाना जानता तो
जग
मुझे साधू समझता
शत्रु मेरा बन गया है
छल
रहित व्यवहार मेरा
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उदगार मेरा
सृष्टि के प्रारंभ में मैंने
उषा के गाल चूमे
स्वय कल्याण सिंह ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी के
बारे में क्या-क्या कहा था – इसको भाजपा भूल गयी जब वह अटल जी प्रति आशुतोष के
उद्गारो के लिए उन पर आरोप लगा रही है I जहाँ तक मनुवादी पार्टी का सवाल है हम ऐसे
समस्त आरोप-प्रत्यारोप लगाने वालो को एक गन्दा आदमी मानते है लेकिन भाजपा के दोहरे
मान-दण्डो से हम सहमत नहीं है I अन्य महापुरुषों पर भी कुत्सित आरोप लगाए गए है
किसी साध्वी को किसी पापी पत्रिका ने सेक्सी सन्यासिन लिखा है तथा भाजपा यह भूल जाती है कि जब तारकेश्वरी सिन्हा की बहस संसद में एक
महान भारतीय महिला से होती थी तो संघ परिवार की पत्रिका ऑर्गेनाइजर में छपता था “TARKESHVARI
AND TURKESHAVARI AT DAGGERS DRAWN IN PARLIAMENT.”
अभी हाल ही में जब राहुल के बारे में स्वामी
रामदेव ने कहा था कि “वे दलितों के यहाँ भोजन करने नहीं बल्कि हनीमून मनाने जाते
है” तो किसी भाजपाई के मुख से एक शब्द भी नहीं निकला था किन्तु अटल जी के मामले
में आशुतोष का बयान आते ही सब चीखने चिल्लाने लगे I मनुवादी पार्टी के लोग हर
बदजुबानी का विरोध करते है चाहे वह आशुतोष के द्वारा की गयी हो या ऑर्गेनाइजर के
संपादक द्वारा – चाहे वह कल्याण सिंह के विरुद्ध की गयी हो अथवा कल्याण सिंह द्वारा की गयी हो – चाहे वह
स्वामी रामदेव द्वारा की गयी हो अथवा किसी साध्वी के विरुद्ध किसी प्रतिष्ठित
पत्रिका द्वारा की गयी हो ...
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