Tuesday, 25 October 2016

परमपूजनीय गुरु जी गोलवरकर भी समान नागरिक संहिता के विरुद्ध थे I डॉ भीमराव अम्बेडकर भी समान नागरिक संहिता थोपने वाली सरकार को बेसुध और उन्मादी मानते थे I डॉ राजेंद्र प्रसाद अनंत श्री विभूषित श्री करपात्री जी महराज भी कॉमन सिविल कोड के विरुद्ध थे I वामपंथी तथा वामपंथी विचारधारा वाले जवाहरलाल नेहरु ही समान नागरिक संहिता के समर्थक थे I


परमपूजनीय गुरु जी गोलवरकर भी समान नागरिक संहिता के विरुद्ध थे I
     डॉ भीमराव अम्बेडकर भी समान नागरिक संहिता थोपने वाली सरकार को बेसुध और उन्मादी मानते थे I
डॉ राजेंद्र प्रसाद अनंत श्री विभूषित श्री करपात्री  जी महराज भी कॉमन सिविल कोड के विरुद्ध थे I
वामपंथी तथा वामपंथी विचारधारा वाले जवाहरलाल नेहरु ही समान नागरिक संहिता के समर्थक थे I
      गुरुजी गोलवरकर का एक साक्षात्कार ऑर्गनाइजर के 23अगस्त,1972  के अंक में प्रकाशित हुआ था इसके कुछ अंश उद्धृत किये जा रहे है -  
1.  सदभाव  और समानता दो अलग अलग बातें हैI सदभाव के लिए समानता अनिवार्य नहीं है I भारत में हमेशा से विविधताए रही है I इसके बावजूद हमारा देश प्राचीन समय से मजबूत और सुसंगठित बना रहा है I एकता के लिए हमे सदभाव की दरकार है, न कि समानता की ... कुदरत को जरुरत से ज्यादा समानता पसंद नहीं I मै सोचता हूँ कि विविधता और एकता साथ साथ बनी रह सकती है और वे बनी भी हुई है I
2.   अपनी पहचान या अस्तित्व बनाए रखने के की चाहत रखने वाले किसी समुदाय, जाति या वर्ग से मेरा कोई मतभेद नहीं है, जब तक कि अलग अलग अस्तित्व बनाए रखने के की यह इच्छा उन्हें राष्ट्रवाद से दूर नहीं करती हो I कुछ लोग समान नागरिक संहिता पर जोर दे रहे है, क्योकि वे सोचते है कि मुस्लिमो को चार चार शादिया करने की अनुमति होने से मुस्लिम आबादी गैरआनुपातिक रूप से बढ़ रही है I  मुझे यकीनी तौर पर महसूस होता है कि समस्या पर गौर करने का यह नकारात्मक तरीका है ... समानता के हामियो और तुष्टीकरण के पक्षकारो में कोई बुनियादी अंतर नहीं है I जब तक मुसलमान देश और इसकी संस्कृति से प्यार करते है, तब तक उन्हें अपने तरीके से जीवन जीने का अधिकार है I
3.    अगर आपकी आपत्ति मानवीय पहलुओ के मददेनजर मुस्लिम रीति रिवाज को लेकर है, तो यह उचित है I इन मामलो में सुधारवादी रुख का स्वागत किया जाना चाहिए I लेकिन यह ठीक नहीं होगा कि कानूनो के जरिये मशीनी अंदाज में समानता लाने का प्रयास किया जाये I मुस्लिमो के लिए खुद से ही पुराने पड़ गए अपने कायदों और रीति रिवाजो में सुधार लाना  कहीं बेहतर होगा I मुझे ख़ुशी होगी अगर वे स्वय इस नतीजे पर पहुचे कि बहु विवाह उनके लिए ठीक नहीं है I लेकिन मै अपना यह विचार उन पर थोपना नहीं चाहूँगा I
4.   मेरा पुख्ता विश्वास है कि एक समानता राष्ट्रों के पतन की संकेतक है I मैं जीवन जीने  के तौर तरीको में विविधता को सहेजने के पक्ष में हूँ I इसी के साथ हमे जतन करना होगा कि विविधताये राष्ट्र की एकता को मजबूत करने वाली हो I
5.   हमारे बहुत से लोगो को मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर में बढ़त से भय है , इस कारण से वे सामान नागरिक संहिता को विचार को आगे बड़ा रहे है I यह चीजो को देखने की नकारात्मक सोच है I
            इसी प्रकार डॉ भीमराव अम्बेडकर के उद्गार इस सम्बन्ध में स्वत: स्पष्ट है I  डॉ भीमराव अम्बेडकर जो मसौदा समिति (DRAFTING COMMITTEE) के अध्यक्ष (CHAIRMAIN) थे, ने सदन में स्पष्ट घोषणा की थी कि
1.   ‘कोई भी सरकार प्रावधानों का इस तरीके से इस्तेमाल नहीं कर सकती है कि मुसलमानों को विद्रोह करने पर विवश होना पड़े I अगर कोई सरकार (समान नागरिक संहिता थोपती है) करती है, तो मेरी नजर में ऐसी सरकार बेसुध और उन्मादी होगी I’
2.   अनुच्छेद 35 (जैसा कि संविधान के मसौदा में इसका नाम था) में मात्र इतना भर प्रस्तावित है कि ‘ राज्य देश के नागरिको के लिए नागरिक संहिता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करेगा I प्रस्ताव यह नहीं कहता कि संहिता तैयार हो चुकने के पश्चात राज्य इसे सभी नागरिको पर मात्र इसलिए लागू कर देगा कि वे नागरिक है I’                       

इसीप्रकार डॉ राजेंद्र प्रसाद भी HINDU PERSONAL LAW में  छेड़-छाड़ किये जाने के सख्त विरुद्ध थे I जब HINDU PERSONAL LAW में   छेड़-छाड़ को कोई औचित्यपूर्ण नहीं मानेगा तो वह MUSLIM PERSONAL LAW में छेड़-छाड़ का समर्थन किस मुह से कर सकता है I
    यही स्थिति अनंत श्री विभूषित स्वामी करपाती जी महराज की थी I स्वामी जी मान्यता थी कि वेद अपौरुषेय है, अर्थात उनकी रचना किसी मनुष्य ने नही की है, बल्कि वे ईश्वरीय वचन हैं I “ऋषयः मन्त्र द्रष्ट्रार:” अर्थात् ऋषि गण वैदिक मंत्रो के लेखक नहीं है बल्कि उनके द्रष्टा है अर्थात् उनका साक्षात्कार करने वाले I हिन्दू-विवाह एक सौदा नहीं है, बल्कि एक संस्कार है तथा यह जन्म-जन्मांतर तक चलता है I जैसे कोई पिता पुत्र अपने में झगडा कर के यह नहीं कह सकते कि आज से हम पिता-पुत्र नहीं रहे, उसीप्रकार पति-पत्नी में संघर्ष चाहे कितना ही उग्र रूप ले ले किन्तु वे लड़-झगड़ कर यह घोषणा नहीं कर सकते कि वे अब पति-पत्नी नहीं रहेंगे I मर जाने के बाद भी पति का पत्नी से तथा पत्नी का पति से पिण्ड नहीं छूटेगा I कहावत है कि जिस घर में डोली जाती है, उसी घर से अर्थी निकलती है I अर्थी निकलने के बाद भी पति-पत्नी के पाप और पूण्य का औसत निकाला जायेगा तथा जिस प्रकार सरकारी नौकरियों में यह व्यवस्था है कि पति-पत्नी की एक ही स्टेशन पर पोस्टिंग की जाती है वैसे ही ईश्वरीय व्यवस्था है कि पाप-पूण्य का औसत निकालने के बाद यदि पति पेड़ हुआ तो पत्नी लता बन कर उत्पन्न होगी, यदि पति कुत्ता बना तो पत्नी कुतिया हो जाएगी और यदि पत्नी बकरी बनी तो पति बकरा बन जायेगा I यह क्रम तब तक चलता रहेगा जब तक कि  मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती है I इसीप्रकार हिन्दुओ में सगोत्र विवाह वर्जित है I जो लोग COMMON CIVIL CODE की बात करते है वे अघोषित रूप से ईशाईयत के कानूनों को सभी धर्मो पर लागू करना चाहते है तथा भले ही कोई पूजा करे या नमाज पढ़े कितु सामजिक जीवन में उसे ईसाई बना देने का यह गुप्त अजेंडा है I आखिर कोई बताये  कि COMMON CIVIL CODE में सगोत्र विवाह के अनुमति होगी अथवा नहीं I अधिकांश धर्म चचेरे, मौसेरे, ममेरे तथा फुफेरे भाइयो से विवाह की अनुमति देते है जबकि कोई सनातन धर्मी इन संबंधो की चर्चा तक को पाप मानता है I क्या कानून ऐसी अनुमति देकर सनातन धर्मं का उन्मूलन कर देगा अथवा सगोत्र विवाह पर रोक लगाकर अन्य धर्मो की परंपरागत परम्परा को बाधित करते हुए उन्हें अपने आप को दोयम दर्जे का नागरिक मानने को मजबूर कर देगा I
  अनेक लोग जो समान नागरिक संहिता को भारतीय जनता पार्टी का अविष्कार समझते है उन्हें यह जानकर हैरानी होगी कि समान नागरिक संहिता का पहला उल्लेख 1928 में जवाहरलाल नेहरु के पिता पंडित मोतीलाल नेहरु जी (जो ततसमय कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे) की रिपोर्ट में मिलता है I इस रिपोर्ट में मोतीलाल नेहरु ने अंग्रेजी सरकार को सुझाव देते हुए लिखा था कि स्वतंत्र भारत में शादी से सम्बंधित समस्त मामलो को एक कानून के अंतर्गत लाने की आवश्यकता है I

    जहाँ तक मनुवादी पार्टी का प्रश्न है हम स्वामी करपात्री जी महराज के विचारों से सहमत है तथा PERSONAL LAW में किसी प्रकार का संशोधन मनुवादी पार्टी को स्वीकार्य नहीं है I जवाहरलाल नेहरु तथा डॉ भीमराव अम्बेडकर के मार्गदर्शन में जो संशोधन HINDU PERSONAL LAW में किये गए है उनको मनुवादी पार्टी सत्ता में आते ही निरस्त कर देगी I जिसे भविष्य में तलाक की परिकल्पना भी करनी हो वह कोई ऐसा धर्म स्वीकार कर ले जिसमे तलाक की गुंजाइश हो अथवा वह सात फेरे न लेकर SPECIAL MARRIAGE ACT के अंर्तगत विवाह करे I सात फेरे लेकर तलाक की बात को सोचना भी उन अग्निदेवता की अवमानना है जिनको साक्षी मानकर सात फेरे लिए गए थे I यही समाधान मौलाना इरफ़ान ने तीन तलाक पसंद न करने वालो को दिया है क्रमशः ....     

Wednesday, 19 October 2016

मनुवादी पार्टी का कोई विकल्प नहीं है क्योकि – (भाग-2)

मनुवादी पार्टी का कोई विकल्प नहीं है क्योकि –
(भाग-2)
4.मनुवादी पार्टी एक मात्र आरक्षण विरोधी पार्टी है जोकि कई सीटो  पर प्रत्याशी घोषित कर चुकी है तथा  लगभग सभी 403 सीटो पर चुनाव लड़ने का लक्ष्य रखे हुए है I इसमें अनुसूचित जाति के, पिछड़े वर्ग के तथा अल्पसंख्यक उम्मीदवार भी है I मनुवादी पार्टी की घोषणा है कि जितने सतीश मिश्रा किसी मायावती को मिलेंगे उतने कमलेश पासी या कमलेश पुजारी हम ढूंढ  लेंगे I जितने जनेश्वर मिश्र तथा अमर सिंह जैसे लोग किसी लोहिया या उनके अनुयायियो को मिलेंगे उतने पिछड़े वर्ग से लोग हमे मिल जायेंगे I 403 सीटो को लड़ने का लक्ष्य लेकर मात्र मनुवादी पार्टी चल रही है जोकि जवाहरलाल नेहरु से लेकर मोदी तक के अत्याचारों पर परिचर्चा हर घर में तथा हर चाय की दूकान पर करवा रही है I
1.                     मा. सर्वोच्च न्यायालय के 27 अप्रैल, 2012के फैसले को निष्प्रभावी करने हेतु केंद्र सरकार द्वारा 117 वें संविधान संशोधन बिल को पारित कराने की कोशिश का मनुवादी पार्टी प्रबल विरोध कर रही है I स्मरणीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण तथा परिणामी ज्येष्ठता लागू करने का आदेश 2007 में किया था जिसके परिणामस्वरूप सामान्य व अन्य पिछड़ी जाति के अधिकारियो / कर्मचारियों  की पदोन्नति बुरी तरह प्रभावित हुई तथा उनसे बीस-पच्चीस साल कनिष्ठ कार्मिक उनके सुपर बॉस  बन गए I इसका मतलब परोक्ष रूप से उच्च पदों पर अनुसूचित जाति/ जनजाति के सेवको का शत-प्रतिशत आरक्षण होता है I इस प्रतिगामी आदेश के विरोध में लम्बी सुनवाई के बाद 4 जनवरी, 2011 को मा. उच्च  न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया – The effect of such reservation in promotion with accelerated seniority was never considered by the State keeping in mind the efficiency of administration, which is bound to be compromised where reservation quota exceeds and results into reverse discrimination. ….Rule 8-A thus introduced by the Third Amendment Rules, 2007 is ultra vires and unconstitutional.  
         मा. न्यायाधीशों द्वारा दिए गए फैसले में साफ़ कहा गया कि यह संशोधन संविधान सम्मत नहीं है अत : इन नियमो के तहत 8-क, 2007  लागू कर सरकारी विभागों व निगमो में जारी की गयी समस्त ज्येष्ठता सूचिया पूरी तरह से निरस्त कर दी गयी है I तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने मा. उच्चतम न्यायालय का निर्णय लागू करने बजाय एक वर्ग विशेष के पक्ष में मा. सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर कर मा. उच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त करने की मांग की I मा.सर्वोच्च न्यायालय ने 27 अप्रैल, 2012 को सुनाये गए ऐतिहासिक निर्णय में लिखा – “In the ultimate analysis, we conclude and hold that Section3(7) of the 1994 Act and Rule 8-A of the 2007 Rules are ultra vires as they run counter to the dictum in M.Nagaraj (Supra)

     इस प्रकार मा. सर्वोच्च न्यायालय ने पदोन्नति में आरक्षण  का प्रावधान करने वाले 1994 के अधिनियम के सेक्शन (7) और परिणामी ज्येष्ठता प्रदान करने के 2007 के नियमो के 8-क को अवैधानिक घोषित कर दिया I उल्लेखनीय है कि इंद्रा साहनी (सुप्रा) में पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था अवैध करार दिए जाने के बाद 77व संविधान संशोधन किया गया और परिणामी ज्येष्ठता प्रदान करने हेतु 85वा संविधान संशोधन किया गया I कर्मचारियों, अधिकारियो व शिक्षको की उपेक्षा कर 17 दिसम्बर,2012 को राज्य सभा में 117वा संविधान संशोधन बिल पारित किया गया I उत्तर प्रदेश के लाखो कर्मचारियों ने इसका प्रबल विरोध किया जिसके चलते 117वा संविधान संशोधन बिल लोक सभा में पारित नहीं हो पाया I लोक सभा की अवधि समाप्त होने के साथ 117 वा संविधान संशोधन बिल लैप्स हो गया I केंद्र सरकार ने दुबारा इस बिल को पारित कराने हेतु 30 सदस्यीय पार्लियामेंटरी पैनल का चुनाव किया I पैनल की रिपोर्ट 11 अगस्त, 2016 को लोक सभा व राज्य सभा में प्रस्तुत कर दी गयी है I रिपोर्ट में 117 वा संविधान संशोधन बिल संसद से शीघ अति शीघ्र लागू कराने की जोरदार अनुशंसा की गयी है I चूकी यह रिपोर्ट संसद में रखी  जा चूकि है अत: इस बात की पूरी सम्भावना है कि संसद के शीतकालीन सत्र में 117वा संविधान संशोधन बिल लागू कराने की पूरी तैयारी है जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है I पार्लियामेंटरी पैनल की रिपोर्ट संलग्न है -

Monday, 10 October 2016

मनुवादी पार्टी का कोई विकल्प नहीं है क्योकि –

मनुवादी पार्टी का कोई विकल्प नहीं है क्योकि –
     यह एक मात्र पार्टी है जो प्रधानमत्री मोदी के निम्नलिखित अत्याचारपूर्ण निर्णयों के विरुद्ध सुनियोजित, प्रभावी तथा देश व्यापी लड़ाई लड़ रही है –
1.                The SC and ST ACT (PREVENTION OF ATROCITIES) AMENDMENT ACT, 2015 No 1 of 2016 (31st December ) को प्रमाण के लिए पढ़े I किसी सवर्ण या पिछड़ी महिला के साथ  सामूहिक बलात्कार (GANG RAPE) हो जाए  तो अनिश्चित काल तक मुकदमा चलेगा तथा विवेचना होगी I  लगभग 10- 20  साल तक प्रकरण चलेगा – गवाह मारे जायेंगे, परिवार वाले धमकाए जायेंगे I अनुसूचित जाति की महिला GESTURES (हावभाव) (घूरकर देखना, मुस्करा देना, आँख मार देना ) के आधार पर गंभीर मुकदमा लिखा देगी जिसमे 2 माह में विवेचना तथा 2 माह में कोर्ट की कार्यवाही पूरी हो जाएगी जिसमे किसी मेडिकल साक्ष्य तक की आवश्यकता नहीं होगी तथा तुरंत गिरफ़्तारी होगी I क्या सवर्ण तथा पिछड़ी महिला की इज्जत इज्जत नहीं है ?
2.                 77th Amendment Act 1995 जो माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा निरस्त कर दिया था, उसे पुन: पारित करने की घोषणा की जा रही है जिसके तहत सवर्ण तथा पिछड़े सरकारी कर्मचारियों को अपने से 20 वर्ष जूनियर अनुसूचित कर्मचारियों के अधीन काम करना पड़ेगा I रामजन्मभूमि मामले में सभी न्यायालय के फैसले को मानने की बात कहते है किन्तु  Amendment 117 पर सभी एक मत है कि सवर्णों तथा पिछडो की प्रतिष्ठा, गरिमा, मर्यादा और जीविका की द्रोपदी का चीरहरण कर मा. उच्चतम न्यायालय का निर्णय बदल दिया जाए I

3.                बैकलॉग तथा प्राइवेट सेक्टर में रिजर्वेशन की औपचारिकताये पूरी कर ली गयी है – मण्डल कमिशन की तरह कभी भी अचानक लागू कर सकता है I 

प्राचीन काल में धर्म सम्मत अपराध नियंत्रण--

 प्राचीन काल में धर्म सम्मत अपराध नियंत्रण--
प्राचीन काल में अपराधो पर प्रभावी नियंत्रण कैसे स्थापित किया जाता था इसकी व्याख्या करने के पहले यह देखना आवश्यक है कि अपराध नियंत्रण का मानक कितना ऊँचा था I महाराज रघु के अपराध नियंत्रण का मानक सुने   –
      यस्मिन महीम शासति वाणिनीनाम
      निद्राम विहारार्धपथे गतानाम
      वातोपि  नास्रंसयदंशुकानि
       को लम्बयेदाहरणाय हस्तम
अर्थात  -  जिस राजा रघु के पृथ्वी पर शासन करते समय अपने प्रेमियों के साथ मिलकर नाच-गान करने वाली नर्तकियो के मार्ग पर नींद में धुत होकर गिर जाने पर भी वायु में इतना साहस नहीं होता था कि उनके वस्त्रो को उड़ाकर उनको जनसाधारण के लिए दर्शनीय बना दे, ऐसी स्थिति में कौन यह दुस्साहस कर सकता था कि उनको अपनी ओर खीच लेने के लिए हाथ बढ़ाये I
     आज जब कोई महिला यौन शोषण की रिपोर्ट लिखाने जाती है तो नियम की विरुद्ध जाकर अनावश्यक रूप से प्रश्नोत्तर चालू हो जाते है –
1.                        महिला अच्छे आचरण की नहीं है और उसका पूर्व चरित्र दूषित रहा है I
2.                        परिस्थितियां संदिग्ध है तथा उसने स्वयं ही अपने कृत्य से अपने को संकट में डाला I
3.                        उसको अस्त-व्यस्त स्थिति में देखकर बच्चे ही थे, उनका मन फिसल गया I
4.                        पुलिस हर नुक्कड़ पर चौबीसों घंटे मौजूद नहीं रह सकती है I
      इन सारे कुतर्को को नकारते हुये राजा के लिए जो मानक निर्धारित किये गए थे तथा जिनको भारतीय संस्कृति के रोल माडल महाराज रघु ने यथार्थ के धरातल पर उतार कर दिखाया था उसके पीछे राजा का आभामंडल था जिसको बोलचाल की भाषा में इकबाल कहते है I इसी बात को अन्य राजा ने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ रेखांकित किया था कि
     “न स्वैरी स्वैरिणी कुतः”
अर्थात् जब मेरे राज्य में कोई आवारा पुरुष ही नहीं है तो आवारा महिला कैसे हो सकती है I
   कहीं राजा ने यह घोषणा नहीं की कि कितना बढ़िया उसने 100 नम्बर का डायल बनाया है कि तत्काल गाड़ी पहुचे बल्कि यह आत्मविश्वासपूर्वक कहा कि उसके राज्य में कोई पुरुष शीलभंग नहीं करेगा I इसके पीछे राजा का इकबाल ही काम करता है I पुलिस की व्यवस्था कभी भी फुल प्रूफ बनायीं ही नही जा सकती है I हरिसिंह नालवा के समय में महाराज रणजीत सिंह के राज्य में कोई अफगान और पठान यह कल्पना भी नहीं कर सकता था कि उसके राज्य में घुसकर उग्रवाद करे-
   “सौ बार सिजदा करते थे अफगान औ पठान I
ताक देता था नलवा जो कहीं तेवर भी बदल के II”
 सर्जिकल स्ट्राइक करने की और प्रभावी ढंग से बॉर्डर सील करने की जरुरत उन महापुरुषों को पड़ती है जो बिना निमंत्रण के नवाजशरीफ के दावतो में कंक बनकर जाते है, जिनकी विदेश मंत्री हरी साड़ी और हरे कार्डिगन में पाकिस्तान की धरती पर तिरंगे के उपेक्षित होने पर मौन साध लेती है तथा जिनके तेजस्वी मंत्री वी.के.सिंह भीमसेन की तरह तिलमिला कर रह जाते है जब द्रौपदी के चीरहरण की तरह पाकिस्तानी दूतावास में आतंकवाद के समर्थको के साथ उनको भोजन ग्रहण करना पड़ता है I एक छोटे से देश इजराइल के खिलाडी जब म्यूनिख में मार डाले गए तो खिलाडियों के साथ भविष्य में कोई अभूतपूर्व सुरक्षा व्यवस्था करने की जगह हजारो की संख्या में दोषी और निर्दोषी फिलिस्तीनियो पर उसी शैली की कार्यवाही की गयी जो सौगुना अधिक थी I
      इसी प्रकार पुलिस व्यवस्था को चाक-चौबंद और सुदृढ़ करना शांति व्यवस्था कायम रखने का तरीका नहीं है I तरीका है कि पुलिस का ऐसा दबदबा रखना कि पत्ता खडकने न पाए I
     जब यही व्यवस्था शिथिल होती है तो आज की भांति वह दृश्य उपस्थित होता है जिसका वर्णन शूद्रक ने “मृच्छकटिक” में किया है –
    “इह राजमार्गे गणिका चटाश्चेटा: राजवल्ल्भाश्च  पुरुषा: संचरन्ति ”....
अर्थात् – शाम हो गयी है जल्दी-जल्दी घर भाग चलो I अब सड़क पर वेश्याये, उचक्के, दलाल तथा पुलिस वाले घूमने लगेंगे जो तुम्हारा सब कुछ छीन लेंगे I