प्राचीन काल में धर्म सम्मत अपराध नियंत्रण--
प्राचीन काल में अपराधो पर प्रभावी नियंत्रण
कैसे स्थापित किया जाता था इसकी व्याख्या करने के पहले यह देखना आवश्यक है कि
अपराध नियंत्रण का मानक कितना ऊँचा था I महाराज रघु के अपराध नियंत्रण का मानक
सुने –
यस्मिन
महीम शासति वाणिनीनाम
निद्राम विहारार्धपथे गतानाम
वातोपि
नास्रंसयदंशुकानि
को लम्बयेदाहरणाय हस्तम
अर्थात - जिस राजा रघु के पृथ्वी पर शासन करते समय अपने
प्रेमियों के साथ मिलकर नाच-गान करने वाली नर्तकियो के मार्ग पर नींद में धुत होकर
गिर जाने पर भी वायु में इतना साहस नहीं होता था कि उनके वस्त्रो को उड़ाकर उनको
जनसाधारण के लिए दर्शनीय बना दे, ऐसी स्थिति में कौन यह दुस्साहस कर सकता था कि उनको
अपनी ओर खीच लेने के लिए हाथ बढ़ाये I
आज
जब कोई महिला यौन शोषण की रिपोर्ट लिखाने जाती है तो नियम की विरुद्ध जाकर
अनावश्यक रूप से प्रश्नोत्तर चालू हो जाते है –
1.
महिला अच्छे आचरण की नहीं है और उसका पूर्व
चरित्र दूषित रहा है I
2.
परिस्थितियां संदिग्ध है तथा उसने स्वयं ही अपने
कृत्य से अपने को संकट में डाला I
3.
उसको अस्त-व्यस्त स्थिति में देखकर बच्चे ही थे,
उनका मन फिसल गया I
4.
पुलिस हर नुक्कड़ पर चौबीसों घंटे मौजूद नहीं रह
सकती है I
इन सारे कुतर्को को नकारते हुये राजा के
लिए जो मानक निर्धारित किये गए थे तथा जिनको भारतीय संस्कृति के रोल माडल महाराज
रघु ने यथार्थ के धरातल पर उतार कर दिखाया था उसके पीछे राजा का आभामंडल था जिसको
बोलचाल की भाषा में इकबाल कहते है I इसी बात को अन्य राजा ने पूर्ण आत्मविश्वास के
साथ रेखांकित किया था कि
“न स्वैरी स्वैरिणी कुतः”
अर्थात् जब मेरे राज्य में
कोई आवारा पुरुष ही नहीं है तो आवारा महिला कैसे हो सकती है I
कहीं राजा ने यह घोषणा नहीं की कि कितना बढ़िया
उसने 100 नम्बर का डायल बनाया है कि तत्काल गाड़ी पहुचे बल्कि यह आत्मविश्वासपूर्वक
कहा कि उसके राज्य में कोई पुरुष शीलभंग नहीं करेगा I इसके पीछे राजा का इकबाल ही
काम करता है I पुलिस की व्यवस्था कभी भी फुल प्रूफ बनायीं ही नही जा सकती है I हरिसिंह
नालवा के समय में महाराज रणजीत सिंह के राज्य में कोई अफगान और पठान यह कल्पना भी
नहीं कर सकता था कि उसके राज्य में घुसकर उग्रवाद करे-
“सौ बार सिजदा करते थे अफगान औ पठान I
ताक देता था नलवा जो कहीं
तेवर भी बदल के II”
सर्जिकल स्ट्राइक करने की और प्रभावी ढंग से
बॉर्डर सील करने की जरुरत उन महापुरुषों को पड़ती है जो बिना निमंत्रण के नवाजशरीफ
के दावतो में कंक बनकर जाते है, जिनकी विदेश मंत्री हरी साड़ी और हरे कार्डिगन में
पाकिस्तान की धरती पर तिरंगे के उपेक्षित होने पर मौन साध लेती है तथा जिनके तेजस्वी
मंत्री वी.के.सिंह भीमसेन की तरह तिलमिला कर रह जाते है जब द्रौपदी के चीरहरण की
तरह पाकिस्तानी दूतावास में आतंकवाद के समर्थको के साथ उनको भोजन ग्रहण करना पड़ता
है I एक छोटे से देश इजराइल के खिलाडी जब म्यूनिख में मार डाले गए तो खिलाडियों के
साथ भविष्य में कोई अभूतपूर्व सुरक्षा व्यवस्था करने की जगह हजारो की संख्या में
दोषी और निर्दोषी फिलिस्तीनियो पर उसी शैली की कार्यवाही की गयी जो सौगुना अधिक थी
I
इसी प्रकार पुलिस व्यवस्था को चाक-चौबंद और
सुदृढ़ करना शांति व्यवस्था कायम रखने का तरीका नहीं है I तरीका है कि पुलिस का ऐसा
दबदबा रखना कि पत्ता खडकने न पाए I
जब यही व्यवस्था शिथिल होती है तो आज की
भांति वह दृश्य उपस्थित होता है जिसका वर्णन शूद्रक ने “मृच्छकटिक” में किया है –
“इह राजमार्गे गणिका चटाश्चेटा:
राजवल्ल्भाश्च पुरुषा: संचरन्ति ”....
अर्थात् – शाम हो गयी है
जल्दी-जल्दी घर भाग चलो I अब सड़क पर वेश्याये, उचक्के, दलाल तथा पुलिस वाले घूमने
लगेंगे जो तुम्हारा सब कुछ छीन लेंगे I
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