मनुवादी पार्टी का कोई
विकल्प नहीं है क्योकि –
(भाग-2)
4.मनुवादी पार्टी एक मात्र आरक्षण
विरोधी पार्टी है जोकि कई सीटो पर
प्रत्याशी घोषित कर चुकी है तथा लगभग सभी
403 सीटो पर चुनाव लड़ने का लक्ष्य रखे हुए है I इसमें अनुसूचित जाति के, पिछड़े
वर्ग के तथा अल्पसंख्यक उम्मीदवार भी है I मनुवादी पार्टी की घोषणा है कि जितने
सतीश मिश्रा किसी मायावती को मिलेंगे उतने कमलेश पासी या कमलेश पुजारी हम ढूंढ लेंगे I जितने जनेश्वर मिश्र तथा अमर सिंह जैसे
लोग किसी लोहिया या उनके अनुयायियो को मिलेंगे उतने पिछड़े वर्ग से लोग हमे मिल
जायेंगे I 403 सीटो को लड़ने का लक्ष्य लेकर मात्र मनुवादी पार्टी चल रही है जोकि जवाहरलाल
नेहरु से लेकर मोदी तक के अत्याचारों पर परिचर्चा हर घर में तथा हर चाय की दूकान
पर करवा रही है I
1.
मा. सर्वोच्च न्यायालय के 27 अप्रैल, 2012के फैसले को निष्प्रभावी करने हेतु
केंद्र सरकार द्वारा 117 वें संविधान संशोधन बिल को पारित कराने की कोशिश का
मनुवादी पार्टी प्रबल विरोध कर रही है I स्मरणीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने
पदोन्नति में आरक्षण तथा परिणामी ज्येष्ठता लागू करने का आदेश 2007 में किया था
जिसके परिणामस्वरूप सामान्य व अन्य पिछड़ी जाति के अधिकारियो / कर्मचारियों की पदोन्नति बुरी तरह प्रभावित हुई तथा उनसे
बीस-पच्चीस साल कनिष्ठ कार्मिक उनके सुपर बॉस बन गए I इसका मतलब परोक्ष रूप से उच्च पदों पर
अनुसूचित जाति/ जनजाति के सेवको का शत-प्रतिशत आरक्षण होता है I इस प्रतिगामी आदेश
के विरोध में लम्बी सुनवाई के बाद 4 जनवरी, 2011 को मा. उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया – The effect of such reservation in
promotion with accelerated seniority was never considered by the State keeping
in mind the efficiency of administration, which is bound to be compromised
where reservation quota exceeds and results into reverse discrimination. ….Rule
8-A thus introduced by the Third Amendment Rules, 2007 is ultra vires and
unconstitutional.
मा. न्यायाधीशों द्वारा दिए गए फैसले में साफ़
कहा गया कि यह संशोधन संविधान सम्मत नहीं है अत : इन नियमो के तहत 8-क, 2007 लागू कर सरकारी विभागों व निगमो में जारी की
गयी समस्त ज्येष्ठता सूचिया पूरी तरह से निरस्त कर दी गयी है I तत्कालीन उत्तर
प्रदेश सरकार ने मा. उच्चतम न्यायालय का निर्णय लागू करने बजाय एक वर्ग विशेष के
पक्ष में मा. सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर कर मा. उच्च
न्यायालय के फैसले को निरस्त करने की मांग की I मा.सर्वोच्च न्यायालय ने 27 अप्रैल,
2012 को सुनाये गए ऐतिहासिक निर्णय में लिखा – “In the ultimate analysis, we conclude and hold
that Section3(7) of the 1994 Act and Rule 8-A of the 2007 Rules are ultra vires
as they run counter to the dictum in M.Nagaraj (Supra)”
इस प्रकार मा. सर्वोच्च न्यायालय ने पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने वाले 1994 के अधिनियम के
सेक्शन (7) और परिणामी ज्येष्ठता प्रदान करने के 2007 के नियमो के 8-क को अवैधानिक
घोषित कर दिया I उल्लेखनीय है कि इंद्रा साहनी (सुप्रा) में पदोन्नति में आरक्षण
की व्यवस्था अवैध करार दिए जाने के बाद 77व संविधान संशोधन किया गया और परिणामी
ज्येष्ठता प्रदान करने हेतु 85वा संविधान संशोधन किया गया I कर्मचारियों, अधिकारियो
व शिक्षको की उपेक्षा कर 17 दिसम्बर,2012 को राज्य सभा में 117वा संविधान संशोधन
बिल पारित किया गया I उत्तर प्रदेश के लाखो कर्मचारियों ने इसका प्रबल विरोध किया
जिसके चलते 117वा संविधान संशोधन बिल लोक सभा में पारित नहीं हो पाया I लोक सभा की
अवधि समाप्त होने के साथ 117 वा संविधान संशोधन बिल लैप्स हो गया I केंद्र सरकार
ने दुबारा इस बिल को पारित कराने हेतु 30 सदस्यीय पार्लियामेंटरी पैनल का चुनाव
किया I पैनल की रिपोर्ट 11 अगस्त, 2016 को लोक सभा व राज्य सभा में प्रस्तुत कर दी
गयी है I रिपोर्ट में 117 वा संविधान संशोधन बिल संसद से शीघ अति शीघ्र लागू कराने
की जोरदार अनुशंसा की गयी है I चूकी यह रिपोर्ट संसद में रखी जा चूकि है अत: इस बात की पूरी सम्भावना है कि
संसद के शीतकालीन सत्र में 117वा संविधान संशोधन बिल लागू कराने की पूरी तैयारी है
जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है I पार्लियामेंटरी पैनल की रिपोर्ट संलग्न है -

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