परमपूजनीय गुरु जी गोलवरकर भी समान नागरिक संहिता के विरुद्ध थे I
डॉ भीमराव अम्बेडकर भी समान
नागरिक संहिता थोपने वाली सरकार को बेसुध और उन्मादी मानते थे I
डॉ राजेंद्र प्रसाद अनंत श्री विभूषित श्री करपात्री जी महराज भी कॉमन सिविल कोड के विरुद्ध थे I
वामपंथी तथा वामपंथी विचारधारा वाले जवाहरलाल नेहरु ही समान नागरिक संहिता के
समर्थक थे I
गुरुजी गोलवरकर का एक साक्षात्कार ऑर्गनाइजर के
23अगस्त,1972 के अंक में प्रकाशित हुआ था इसके
कुछ अंश उद्धृत किये जा रहे है -
1.
सदभाव और
समानता दो अलग अलग बातें हैI सदभाव के लिए समानता अनिवार्य नहीं है I भारत में
हमेशा से विविधताए रही है I इसके बावजूद हमारा देश प्राचीन समय से मजबूत और
सुसंगठित बना रहा है I एकता के लिए हमे सदभाव की दरकार है, न कि समानता की ... कुदरत
को जरुरत से ज्यादा समानता पसंद नहीं I मै सोचता हूँ कि विविधता और एकता साथ साथ
बनी रह सकती है और वे बनी भी हुई है I
2.
अपनी पहचान या अस्तित्व बनाए रखने के
की चाहत रखने वाले किसी समुदाय, जाति या वर्ग से मेरा कोई मतभेद नहीं है, जब तक कि
अलग अलग अस्तित्व बनाए रखने के की यह इच्छा उन्हें राष्ट्रवाद से दूर नहीं करती हो
I कुछ लोग समान नागरिक संहिता पर जोर दे रहे है, क्योकि वे सोचते है कि मुस्लिमो
को चार चार शादिया करने की अनुमति होने से मुस्लिम आबादी गैरआनुपातिक रूप से बढ़
रही है I मुझे यकीनी तौर पर महसूस होता है
कि समस्या पर गौर करने का यह नकारात्मक तरीका है ... समानता के हामियो और
तुष्टीकरण के पक्षकारो में कोई बुनियादी अंतर नहीं है I जब तक मुसलमान देश और इसकी
संस्कृति से प्यार करते है, तब तक उन्हें अपने तरीके से जीवन जीने का अधिकार है I
3.
अगर आपकी आपत्ति मानवीय पहलुओ के मददेनजर
मुस्लिम रीति रिवाज को लेकर है, तो यह उचित है I इन मामलो में सुधारवादी रुख का
स्वागत किया जाना चाहिए I लेकिन यह ठीक नहीं होगा कि कानूनो के जरिये मशीनी अंदाज
में समानता लाने का प्रयास किया जाये I मुस्लिमो के लिए खुद से ही पुराने पड़ गए
अपने कायदों और रीति रिवाजो में सुधार लाना कहीं बेहतर होगा I मुझे ख़ुशी होगी अगर वे स्वय
इस नतीजे पर पहुचे कि बहु विवाह उनके लिए ठीक नहीं है I लेकिन मै अपना यह विचार उन
पर थोपना नहीं चाहूँगा I
4.
मेरा पुख्ता विश्वास है कि एक समानता राष्ट्रों
के पतन की संकेतक है I मैं जीवन जीने के
तौर तरीको में विविधता को सहेजने के पक्ष में हूँ I इसी के साथ हमे जतन करना होगा
कि विविधताये राष्ट्र की एकता को मजबूत करने वाली हो I
5.
हमारे बहुत से लोगो को मुस्लिम आबादी
की वृद्धि दर में बढ़त से भय है , इस कारण से वे सामान नागरिक संहिता को विचार को
आगे बड़ा रहे है I यह चीजो को देखने की नकारात्मक सोच है I
इसी प्रकार डॉ भीमराव अम्बेडकर के उद्गार इस सम्बन्ध में स्वत: स्पष्ट है I
डॉ भीमराव अम्बेडकर जो मसौदा समिति (DRAFTING
COMMITTEE) के अध्यक्ष (CHAIRMAIN) थे, ने सदन में स्पष्ट घोषणा की थी कि
1.
‘कोई भी सरकार प्रावधानों का इस तरीके
से इस्तेमाल नहीं कर सकती है कि मुसलमानों को विद्रोह करने पर विवश होना पड़े I अगर
कोई सरकार (समान नागरिक संहिता थोपती है) करती है, तो मेरी नजर में ऐसी सरकार बेसुध
और उन्मादी होगी I’
2.
अनुच्छेद 35 (जैसा कि संविधान के
मसौदा में इसका नाम था) में मात्र इतना भर प्रस्तावित है कि ‘ राज्य देश के
नागरिको के लिए नागरिक संहिता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करेगा I प्रस्ताव यह
नहीं कहता कि संहिता तैयार हो चुकने के पश्चात राज्य इसे सभी नागरिको पर मात्र
इसलिए लागू कर देगा कि वे नागरिक है I’
इसीप्रकार डॉ राजेंद्र प्रसाद
भी HINDU PERSONAL LAW में छेड़-छाड़ किये
जाने के सख्त विरुद्ध थे I जब HINDU PERSONAL LAW में छेड़-छाड़
को कोई औचित्यपूर्ण नहीं मानेगा तो वह MUSLIM PERSONAL LAW में छेड़-छाड़ का समर्थन
किस मुह से कर सकता है I
यही स्थिति अनंत श्री विभूषित स्वामी करपाती
जी महराज की थी I स्वामी जी मान्यता थी कि वेद अपौरुषेय है, अर्थात उनकी रचना किसी
मनुष्य ने नही की है, बल्कि वे ईश्वरीय वचन हैं I “ऋषयः मन्त्र द्रष्ट्रार:”
अर्थात् ऋषि गण वैदिक मंत्रो के लेखक नहीं है बल्कि उनके द्रष्टा है अर्थात् उनका
साक्षात्कार करने वाले I हिन्दू-विवाह एक सौदा नहीं है, बल्कि एक संस्कार है तथा
यह जन्म-जन्मांतर तक चलता है I जैसे कोई पिता पुत्र अपने में झगडा कर के यह नहीं
कह सकते कि आज से हम पिता-पुत्र नहीं रहे, उसीप्रकार पति-पत्नी में संघर्ष चाहे
कितना ही उग्र रूप ले ले किन्तु वे लड़-झगड़ कर यह घोषणा नहीं कर सकते कि वे अब
पति-पत्नी नहीं रहेंगे I मर जाने के बाद भी पति का पत्नी से तथा पत्नी का पति से पिण्ड
नहीं छूटेगा I कहावत है कि जिस घर में डोली जाती है, उसी घर से अर्थी निकलती है I
अर्थी निकलने के बाद भी पति-पत्नी के पाप और पूण्य का औसत निकाला जायेगा तथा जिस
प्रकार सरकारी नौकरियों में यह व्यवस्था है कि पति-पत्नी की एक ही स्टेशन पर
पोस्टिंग की जाती है वैसे ही ईश्वरीय व्यवस्था है कि पाप-पूण्य का औसत निकालने के
बाद यदि पति पेड़ हुआ तो पत्नी लता बन कर उत्पन्न होगी, यदि पति कुत्ता बना तो
पत्नी कुतिया हो जाएगी और यदि पत्नी बकरी बनी तो पति बकरा बन जायेगा I यह क्रम तब
तक चलता रहेगा जब तक कि मोक्ष की प्राप्ति
नहीं हो जाती है I इसीप्रकार हिन्दुओ में सगोत्र विवाह वर्जित है I जो लोग COMMON
CIVIL CODE की बात करते है वे अघोषित रूप से ईशाईयत के कानूनों को सभी धर्मो पर
लागू करना चाहते है तथा भले ही कोई पूजा करे या नमाज पढ़े कितु सामजिक जीवन में उसे
ईसाई बना देने का यह गुप्त अजेंडा है I आखिर कोई बताये कि COMMON CIVIL CODE में सगोत्र विवाह के
अनुमति होगी अथवा नहीं I अधिकांश धर्म चचेरे, मौसेरे, ममेरे तथा फुफेरे भाइयो से
विवाह की अनुमति देते है जबकि कोई सनातन धर्मी इन संबंधो की चर्चा तक को पाप मानता
है I क्या कानून ऐसी अनुमति देकर सनातन धर्मं का उन्मूलन कर देगा अथवा सगोत्र
विवाह पर रोक लगाकर अन्य धर्मो की परंपरागत परम्परा को बाधित करते हुए उन्हें अपने
आप को दोयम दर्जे का नागरिक मानने को मजबूर कर देगा I
अनेक लोग जो समान नागरिक संहिता को भारतीय जनता
पार्टी का अविष्कार समझते है उन्हें यह जानकर हैरानी होगी कि समान नागरिक संहिता
का पहला उल्लेख 1928 में जवाहरलाल नेहरु के पिता पंडित मोतीलाल नेहरु जी (जो ततसमय
कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे) की रिपोर्ट में मिलता है I इस
रिपोर्ट में मोतीलाल नेहरु ने अंग्रेजी सरकार को सुझाव देते हुए लिखा था कि
स्वतंत्र भारत में शादी से सम्बंधित समस्त मामलो को एक कानून के अंतर्गत लाने की
आवश्यकता है I
जहाँ तक मनुवादी पार्टी का प्रश्न है हम
स्वामी करपात्री जी महराज के विचारों से सहमत है तथा PERSONAL LAW में किसी प्रकार
का संशोधन मनुवादी पार्टी को स्वीकार्य नहीं है I जवाहरलाल नेहरु तथा डॉ भीमराव
अम्बेडकर के मार्गदर्शन में जो संशोधन HINDU PERSONAL LAW में किये गए है उनको मनुवादी
पार्टी सत्ता में आते ही निरस्त कर देगी I जिसे भविष्य में तलाक की परिकल्पना भी
करनी हो वह कोई ऐसा धर्म स्वीकार कर ले जिसमे तलाक की गुंजाइश हो अथवा वह सात फेरे
न लेकर SPECIAL MARRIAGE ACT के अंर्तगत विवाह करे I सात फेरे लेकर तलाक की बात को
सोचना भी उन अग्निदेवता की अवमानना है जिनको साक्षी मानकर सात फेरे लिए गए थे I
यही समाधान मौलाना इरफ़ान ने तीन तलाक पसंद न करने वालो को दिया है क्रमशः ....

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