Friday, 28 April 2017

परशुराम की प्रतीक्षा जमदग्नि का आह्वान (परशुराम जयंती पर लेख)

परशुराम की प्रतीक्षा जमदग्नि का आह्वान
जगह जगह परशुराम जयंती मनाई गई कितने महापुरुष अध्यक्षता किए,कितनो नें अपने लंबे चौड़े भाषणों से खून को गर्म कर दिया तथा कितनों ने फरसे कोई हाथ से तो कोई जबान से घुमाकर चलाकर दिखाया किंतु ना जाने क्यों कई जगहों से निमंत्रित होने के बावजूद मन में यह आत्म बल नहीं आ पाया कि कहीं भी सम्मिलित हो लिया जाए। कई बार मन बड़ा मचला लेकिन जैसे कोई अचेतन शक्ति लगाम पीछे खींच रही हो और आत्म चिंतन में बैठा रह गया कि परशुराम की साधना कैसे हो?
रामप्रसाद बिस्मिल की यह पंक्तियां याद आई-
अब ना अगले बलबले हैं,
अब ना वो जोशे-जुनून।
एक मिट जाने की हसरत,
अब दिले बिस्मिल में है।
राम प्रसाद बिस्मिल कहते हैं कि- अब वह जोश और जुनून नहीं रहा लेकिन फिर भी मिट जाने की एक हसरत बिस्मिल के दिल में अब भी मौजूद है।
कई महत्वपूर्ण साथियों को Facebook पर दुख व्यक्त करते देखा जोकि उत्साह को क्षीण करने वाला था। यह साथी वे लोग थे जिनको मैंने सालों से अनवरत संघर्ष करते देखा है। यही स्थिति बिस्मिल की उस समय हुई थी जब उन्होंने कोर्ट से सजा सुनाए जाने के बाद उदास साथियों को ललकारा था तथा रोने से मना किया था और उनकी ललकार के बाद भारत माता के जयकारे के साथ सारे क्रांतिकारी फांसी के फंदे को यों चूम लिए थे जैसे कोई वरमाला पहन रहे हों-
मुर्ग-दिल मत रो यहां,
आंसू बहाना है मना।
अंदलीबों को कफस में,
चहचहाना है मना।
और उन्होंने साथियों को ढांढस बंधाया-
शहीदों की चिताओं पर,
जुड़ेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मिटने वालों का,
यही नामोनिशां होगा।
यही संदेश मैं हताश,निराश और उदास साथियों को देना चाहता हूं कि वह अपने समाज के भी किसी भी प्रकार के सहयोग की अपेक्षा न करें और कर्तव्य पथ पर चल पड़े-
जननी तू भी निज हाथ न दे,
कोई भी मेरा साथ न दे।
अरि को न कभी सोने दूंगा
जब तक कर है-है भाला।
अरि को विष बीज न बोने दूंगा
(हल्दी घाटी)
मैं अपने साथियों से कहना चाहता हूं कि वह चाहे जिस किसी भी शैली से तथा जिस किसी भी नेतृत्व में संघर्ष कर रहे हों मन को मायूस न करें कि कोई उनका साथ नहीं दे रहा है। मेरा तो शरीर भी साथ नहीं दे रहा है- Walker लेकर चल रहा हूं। पैर तक नहीं साथ दे रहे हैं कि खड़ा होकर भाषण दिया जा सके- धरना प्रदर्शन किया जा सके अथवा सड़क पर संघर्ष किया जा सके। ऐसे अवसर पर महात्मा चाणक्य के उद्गार याद आते हैं कि
" हे प्रभु चाहे मेरे अंग-अंग को नष्ट कर देना किंतु मेरे मस्तिष्क को सुरक्षित रखना- उसके बूते मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लूंगा"
तानसेन का एक प्रेरक प्रसंग याद आया जिसके अनुसार तानसेन के हाथ इतने छोटे थे कि वे ढोलक या मृदंग के दोनों ओर फैलाने पर भी नहीं पहुंच सकते थे फिर भी तानसेन को संगीत की वादन कला की साधना करनी थी। लिहाजा तानसेन ने तबले का आविष्कार किया जिसमें दोनों हाथों को सामने रखकर वातावरण को संगीतमय बनाया जा सके तथा धीरे-धीरे तबला ही ऐसा फैशन में आ गया कि ढोल और मृदंग काफी पीछे छूट गए। आवश्यकता आविष्कार की जननी है अपनी जवानी के दिनों की एक फिल्म अभिनेत्री साधना की याद आई जिसके माथे पर कहा जाता है कि कुछ ऐसे दाग थे जोकि देखने में भद्दे लगते थे तथा उसके फिल्मी कैरियर में बाधक पड़ रहे थे। साधना ने अपने बालों को अपने माथे की ओर मोड़ दिया तथा सर के बालों को माथे की ओर मोड़ देना एक फैशन बन गया। मेरे दोस्तों अपनी कमजोरियों को, विवशताओं को ध्यान में रखते हुए एक ऐसी रणनीति बनाओ जिसके तहत शर्तों को तुम Dictate कर रहे हों। ब्रह्मा के मुंह से निकले हो उस गरिमा को बरकरार रखो।
लिहाजा अपनी विवशताओं को ध्यान में रखकर मैंने एक ऐसी रणनीति का आविष्कार किया जिसके तहत जो लोग अपने को मेरी तरह से कमजोर और लड़ने में अक्षम समझ रहे हों वे तक बिना किसी संघर्ष के, बिना आर्थिक शक्ति के, बिना शारीरिक शक्ति के, बिना सड़क पर उतरे, बिना किसी के जिंदाबाद या मुर्दाबाद के नारे लगाए, बिना किसी को ज्ञापन सौंपे तथा बिना किसी याचना के मात्र 10 वर्षों में समाज में निर्णायक भूमिका अपनाने में सक्षम हो सकें। जिनके हाथ में फरसा चलाने की शक्ति हो, उन्हें मेरा सादर प्रणाम है- बिना दिग्भ्रमित हुए चिंतन कर के संघर्ष पथ पर वह कैसे कदम बढ़ाएं यह मैं उनके विवेक पर छोड़ रहा हूं तथा छोटों को आशीर्वाद एवं अपने से बड़ों को प्रणाम पूर्वक शुभकामना दे रहा हूं।
जो मेरे जैसे असहाय लोग हों तथा अपने को चुका हुआ एवं अप्रासंगिक समझ रहे हों, जो अपने को दगी हुई कारतूस और मरी हुई भेड़ समझ बैठे हों, जिन्हें समाज से सहयोग न मिल पाने का गम हो वह मेरे साथ परशुराम के आगमन की प्रतीक्षा करें। इसके लिए मैं उन्हें जमदग्नि बनने का आह्वान कर रहा हूं। जमदग्नि परशुराम के पिता हैं। लंबे लंबे भाषण देने से परशुराम नहीं आ जाएंगे। अजीत त्रिपाठी पंकज की एक पोस्ट को देखा जिसके बाद मन इतना विचलित हुआ कि कई बार घर से निकलने की कोशिश की किंतु किसी परशुराम जयंती के कार्यक्रम में शामिल होने को कदम आगे नहीं बढ़ पाए। बार-बार कदम बढ़ाया लेकिन कदम ठिठक गए। मन में कुछ प्रश्न उमड़ने घुमड़ने लगे-

1 क्या भारतीय संविधान का हनन करते हुए असीमित आरक्षण तथा प्रमोशन में बैकलॉग का समर्थन करने वाले ब्राह्मण जिस सभा में फरसा लहरा रहे हों तथा बड़बोले भाषण देकर ब्राह्मणों में जोश भर रहे हो- क्या वह परशुराम का मंच है अथवा सहस्त्रबाहु का?

2 डॉ अंबेडकर तक ने संविधान में स्पष्ट रूप से लिखा था कि 1950+10=1960 में आरक्षण जीरो परसेंट(0%) हो जाना चाहिए। किंतु जवाहरलाल नेहरु से लेकर आज तक कोई ऐसा प्रधानमंत्री नहीं मिला जिसने हर 10 साल बाद संविधान में संशोधन कर के आरक्षण को अगले 10 वर्षों के लिए न बढ़ाया हो। उल्लेखनीय है कि यह सारी सरकारें उन लोगों के वोट के बूते बनी थी जो परशुराम का जयकारा बोलते हैं। वर्तमान सरकार के मुखिया मोदीजी की घोषणा है कि यदि पुनः डॉ अंबेडकर धरती पर पैदा हो जाएं तथा आरक्षण को समाप्त करने की मांग उठाएं, तो भी उनके(मोदीजी के) जीतेजी आरक्षण समाप्त नहीं होगा।
"हमारी ही जूती हमारा ही सिर " वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। क्या स्वतः अपने हाथों से दरवाजे पर बंधी गाय को खोलकर सहस्त्रबाहु के हवाले करने वाले लोग परशुराम का नाम लेने का अधिकार रखते हैं?
आरक्षण विरोध रूपी गाय को छीनकर कोई सहस्त्रबाहु किसी जमदग्नि का गला काटकर ले जाए- ये तो समझ मे आ सकता है किंतु जिस आरक्षण विरोध रूपी गाय की रक्षा के लिए विश्वनाथ प्रताप सिंह के कार्यकाल में हमारे तमाम भाइयों ने आत्मदाह किया-उस अधिकार को छीनने वाले लोग ललकार कर के हमारे अधिकारों को चुनौती दें- क्या यह उचित है तथा क्या ऐसे लोगों के साथ मंच को साझा करके परशुराम जयंती मनाई जा सकती है?

3 अटल बिहारी वाजपेयी जी ने प्रमोशन में रिज़र्वेशन तथा बैकलॉग के लिए संविधान को बदल दिया तथा माननीय उच्चतम न्यायालय ने इसे संविधान के विरुद्ध मानकर निरस्त कर दिया। पुनः इन कदमों को उठाने की तैयारी चल रही है। क्या संविधान के विपरीत जाकर भी हमारे बच्चों के हितों को क्षति पहुंचाने वाले लोगों के साथ मंच को साझा करके परशुराम जयंती मनाई जा सकती है?

4 अनुसूचित जातियों के ऊपर अत्याचार होने की दशा में कड़ी से कड़ी कार्यवाही का भी स्वागत किया जा सकता है किंतु अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम 2016 के पारित होने तथा राष्ट्रपति से स्वीकृति प्राप्त करके लागू हो जाने के बाद यदि कोई किसी अनुसूचित जाति की महिला के साथ Gestures भी प्रदर्शित करता है जैसे मुस्कुरा देना, आंख मारना, घूरकर अथवा टकटकी लगाकर देखना तो भी यह उस विशेष श्रेणी का अपराध माना गया है जिसमें 2 महीने में विवेचना का समाप्त होना अनिवार्य है तथा 2 महीने में ट्रायल समाप्त होकर दंड का निर्धारण हो जाना है तथा इसके लिए Special Court बनाई जा रही है। इसके विपरीत यदि परशुराम के वंश में उत्पन्न कन्या के साथ अथवा किसी विवाहिता बहू के साथ यदि सामूहिक बलात्कार भी हो जाए तो अनिश्चितकाल तक उसकी विवेचना होगी तथा कम से कम दस-बीस साल तक उसका मुकदमा भी चल सकता है तथा इस बीच गवाहों को तोड़ने, धमकाने या प्रलोभन देने जैसी घटनाएं हो सकती हैं। अनुसूचित जाति की महिला के साथ गलत काम होने पर किसी किस्म की नरमी नहीं होनी चाहिए किंतु क्या सवर्ण या पिछड़ी महिला के साथ सामूहिक बलात्कार के प्रति भी इतना असंवेदनशील होना चाहिए कि अनिश्चितकाल तक मुकदमा चलता रहे तथा Special Court का गठन ना हो?
इस तरह का विभेदकारी कानून सर्वसम्मति से बना तथा क्या इस तरह के विभेदकारी कानून के पारित होने के लिए हाथ उठाने वालों को तथा उनको मत देने वालों को जिस सभा में सम्मानित किया जा रहा हो तथा उनको मालाएं पहनाई जा रही हो, क्या उस सभा में ऐसे महापुरुषों के साथ मंच को साझा करके परशुराम जयंती मनाई जा सकती है?
मैं इन प्रश्नों का अपनी ओर से कोई उत्तर नहीं दे रहा हूं- इसका उत्तर परशुराम के वंशजों पर छोड़ रहा हूं। मैं इतना कह सकता हूं कि
"फिर दिशाएं मौन हैं उत्तर नहीं है"
चलते-चलते सर्वदलीय परशुराम जयंती के आयोजकों से एक विनम्र प्रार्थना जिससे वे मेरे शामिल न हो सकने के अपराध को क्षमा कर सकें-
अब ना आऊंगा तुम्हारे द्वार मैं,
फिर तिरस्कृत याचना का स्वर लिए।
फिर न पूजूँगा किसी विश्वास को, सांस जिसकी टूट जाए राह पर।
जाओ, उड़ जाओ, नहाओ गंध में,
रंग तुमने पंख में सब भर लिये।
क्या मिलेगा, तुम्ही बतलाओ मेरी,
उम्र भर की रिक्तता को थाहकर।
लोहिया साहित्य में वशिष्ठ को दी गयी गालियों के बावजूद साईकल का टायर पोंछने वालों तथा हाथी की सेवा में रत ब्रह्मऋषियों तथा स्वयं डॉ अम्बेडकर के पुनर्जन्म लेकर आरक्षण समाप्ति की मांग की दशा में जीवित रहते हुए आरक्षण समाप्त न करने का संकल्प लेने वाले मनीषी के भक्तों को परशुराम जयंती उनकी अपनी-अपनी शैली में मुबारक हो।
स्वाभिमान की गाय की रक्षा में अपना गला कटाने को तैयार जमदग्नि के चरण चिन्हों पर हम चल सकें- प्रभु इतनी शक्ति दे।
मुझे लगता है अभी परशुराम की प्रतीक्षा करनी होगी।

Thursday, 27 April 2017

नक्सल समस्या का स्थाई समाधान क्या है?

नक्सल समस्या का स्थाई समाधान क्या है?
क्या नक्सल समस्या केवल Law&Order Problem है?
क्या नक्सल समस्या केवल पुचकारने तथा सुविधा देने से या विकास से दूर हो जाएगी?
नक्सल समस्या का समाधान ढूंढने से पहले यह जानना आवश्यक है कि यह समस्या कब कब पैदा हुई तथा कौन लोग इससे कैसे निपटे?
बार-बार इससे निपटने के बावजूद यह फिर फिर बेकाबू क्यों हो जाती है?
नक्सल समस्या क्यों पैदा होती है तथा इसका स्थाई समाधान क्या है?
अब हम देखते हैं कि नक्सल समस्या आखिर है क्या?
चाहे आर्थिक वितरण की असमानता से अथवा सामाजिक न्याय न मिलने से अथवा नस्ल, धर्म,भाषा,वंश तथा जाति आदि किसी भी आधार पर किसी एक वर्ग का दूसरे वर्ग पर अत्याचार अथवा जवाबी अत्याचार सीमाएं लांघने लगता है तो नक्सलवाद प्रारंभ होता है तथा उस का मुकाबला करने के लिए Counter-Measures भी अस्तित्व में आते हैं। नक्सलवाद समस्या को कौन परिस्थितियां आमंत्रित करती हैं? इसका चित्रण रामधारी सिंह दिनकर ने इन शब्दों में किया है-
श्वानों को मिलता दूध वस्त्र,
भूखे बालक अकुलाते हैं।
मां की हड्डी से चिपक ठिठुर,
जाड़ों की रात बिताते हैं।
युवती के लज्जा वसन बेच,
जब ब्याज चुकाए जाते हैं।
मालिक जब तेल फुलेलों पर,
पानी सा द्रव्य बहाते हैं।
पापी महलों का अहंकार,
तब देता मुझको आमंत्रण।
क्रांति की जन्म लग्न क्या है-
इसका उल्लेख राष्ट्रकवि दिनकर ने इन शब्दों में किया है-
"जिस दिन रह जाता क्रोध मौन,
वह समझो मेरी जन्म लगन।"
राष्ट्रकवि दिनकर ने राष्ट्र के देशभक्त, मोदीभक्त एवं योगीभक्त ठेकेदारों को सूचित किया है कि वह समय के रथ के घर्घर नाद को सुनें( तब भारत की आबादी मात्र 33 करोड़ थी)-
33 कोटि जनता के सिर पर ताज धरो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
और जब जनता आती है- तो उस जनता से मतलब नहीं है जो कभी चाय बेचते बेचते अब 10 लाख के सूट बूट में है, जो कभी दलित की बेटी रहकर आज दौलत की बेटी बन चुकी है, जो कभी चाय बेचते बेचते धर्म का ठेकेदार हो गया है तथा उसके बाद जन-कल्याण और विकास के दावे कर रहा है लाल बत्ती छोड़कर कौशांबी के आंगन में। राष्ट्र कवि दिनकर इस जनता में उनको समाहित करते हैं जो आज भी भैंस की सींग पकड़कर उसके ऊपर चढ़ जाते हैं तथा जरूरत पड़ने पर सूखा चारा चुराकर पैसा नहीं इकट्ठा करते बल्कि किसी खेत से ही हरा चारा एक दिन भर को चुरा लेते हैं,
जिनके लिए साइकिल पर चढ़कर दूध बेचना एक कल्पनालोक की चीज नहीं है बल्कि आज भी एक कड़वी हकीकत है तथा एक भैंस न खरीद पाने पर जो दरवाजे-दरवाजे दूध दुहते हैं।
जिस तरह डा लोहिया ने लिखा है कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती तथा भीड़ को अनियंत्रित होने का अधिकार है, उसी प्रकार राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं कि-
"पातकी न होता है प्रबुद्ध दलितों का खड्ग,
पातकी बताना उसे दर्शन की भ्रांति है।"
और आखिर में उन्होंने इसClass Struggle (वर्ग संघर्ष) की समस्या का समाधान प्रस्तुत किया है-
युद्ध रोकना है तो उखाड़ विषदंत फेंको,
वृक व्याघ्र भीति से मही को मुक्त कर दो।
अथवा अजा के छागलों को भी बनाओ व्याघ्र,
दांतों में कराल कालकूट विष भर दो।
वट की विशालता के नीचे जो अनेक वृक्ष,
ठिठुर रहे हैं उन्हें फैलने का वर दो।
रस सोखता है जो मही का भीमकाय वृक्ष,
उसकी शिराएं तोड़ो,डालियां कतर दो।
इसी को Marx ने Annihilation of Class Enemies (वर्ग शत्रुओं का विनाश) तथा Dictatorship of Proletariat (सर्वहारा की तानाशाही) कहा है।
डॉ लोहिया ने लिखा है कि-
"हिंदुस्तान में Marx सिर के बल खड़ा था तथा मैंने वर्ग संघर्ष को जाति संघर्ष में बदल कर Marx को पैर के बल खड़ा कर दिया।"
इसी वर्ग संघर्ष और जातिगत संघर्ष का फल है नक्सली समस्या। इसके सही समाधान के लिए वर्ग संघर्ष तथा जातिगत संघर्ष के कारक तत्वों को समाप्त करना पड़ेगा। जंगलों में जिन हिस्सों में नक्सली समस्या नहीं पैदा हुई अथवा पैदा होने पर दूर कर दी गई वहां पर बड़े-बड़े Corporate Houses को जमीने दे दी गई तथा वहां पर उन्होंने अपना आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर लिया। जो कारखाने खुले उनमें स्थानीय लोगों को मामूली रोजगार मिला तथा अधिकांश लोग बाहर के नियुक्त किए गए। Technical पोस्टों पर तो छोड़िए चपरासी की पोस्टों पर और झाड़ू लगाने वालों की पोस्टों पर भी बाहर से लाकर पैसे या सिफारिश के बूते पर लोग भर्ती कर लिए गए तथा स्थानीय लोगों की दुर्दशा और बढ़ गई।
जो ठेकेदार, व्यापारी तथा अधिकारी इन क्षेत्रों में घुसे उनके सौजन्य से भूसंपदा तथा खनिज संपदा का अंधाधुंध दोहन हुआ तथा भोली भाली वन-कन्याओं का जबरदस्त यौन-शोषण हुआ जिनका दुरुपयोग कर गर्भवती बना कर उन्हें उपेक्षा ग्रस्त हालत में छोड़ दिया गया तथा तीन तलाक के नाम पर हंगामा मचाने वाले जनहित के ठेकेदारों ने इन परित्यक्ता महिलाओं के लिए कोई सुनियोजित तथा दीर्घकालिक संघर्ष नहीं किया। विरोध करने पर कभी बाहरी तो कभी स्थानीय अपराधियों द्वारा इन स्थानीय नौजवानों को कत्ल करा दिया गया तथा जनता अत्याचार से त्राहि-त्राहि करने लगी। आज भी जितनी योजनाएं जनकल्याण के लिए चलाई जाती हैं उनका 15 प्रतिशत पैसा भी आम जनता तक नहीं पहुंच पाता है तथा जनकल्याण के नाम पर किसी भी प्रदेश में गरीब बच्चों के लिए पंजीरी दी जाती है तथा कोई भी सरकार आए सिस्टम उसे अमीरों की झोली में डाल देता है। पिछड़े इलाकों में तथा वनवासी इलाकों में स्थिति और भी विकट है। वहां पर कोई भी विकास कार्यक्रम सही ढंग से लागू नहीं हो सका तथा जनता के पैसों की बंदरबांट हो गई।
अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर शासन चाहता क्या है?
उसी के अनुरूप समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है। क्या शासन वास्तव में एक ऐसी व्यवस्था लागू करना चाहता है जहां सब को न्याय मिल सके तो उसे एक श्वेत-पत्र प्रकाशित करना पड़ेगा कि पिछले दस-बीस साल में कितना बजट स्वीकृत किया गया तथा क्या उसका सदुपयोग हुआ अथवा दुरुपयोग हुआ और जिन लोगों ने उसका दुरुपयोग किया उनके ऊपर कौन सी निर्णायक कार्यवाही की गई।
इस देश में प्राचीन भारत में दो प्रकार से इन समस्याओं का समाधान किया गया है
1 एक जंगल में महाराज परीक्षित ने शमीक मुनि को विराजमान देखा तथा उनसे रास्ता पूछा। महर्षि ध्यान में थे तथा महाराजा के प्रणाम करने के बावजूद उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया तथा ना तो आशीर्वाद दिया और ना ही स्वागत सत्कार किया। राजा को क्रोध आया तथा उन्होंने शमीक मुनि के गले में अपने धनुष से उठा कर एक मरा हुआ सांप लटका दिया। जब महर्षि शमीक का बेटा श्रृंगी आया तथा शिष्यों ने पूरी बात बताई तो उसने घोषणा किया कि 1 सप्ताह के अंदर महाराज जीवित नहीं बचेंगे तथा तक्षक नाग उनको डस लेगा।
Marx ने लिखा है कि जब पूंजीवादी शक्तियां अपने अहंकार और स्वार्थ में टकराती हैं तब साम्यवाद का आंदोलन जड़ पकड़ता है। ब्राह्मण-क्षत्रिय संघर्ष में जब नागवंश का आह्वान किया गया तो इस संयुक्त मोर्चे के ऑपरेशन में महाराज परीक्षित का समापन हो गया। यह उस युग की नक्सली समस्या का पहला चरण था। पुनः महाराज परीक्षित को अपनी गलती का एहसास हुआ तथा उन्होंने बालरूप शुकदेव से श्रीमद्भागवत सुना तथा शमीक मुनि ने भी बालक श्रृंगी को डांटा कि क्षत्रिय राजा कैसा भी हो उसके विरुद्ध नहीं सोचना चाहिए क्योंकि क्रोध में भी उसने प्रणाम किया था तथा समुचित उत्तर ना पाने पर आवेश में यह कदम उठाया था। जिस दिन राजशाही का समापन हो जाएगा उस समय धरतीपुत्र उतना भी सम्मान नहीं देंगे जितना कि एक बुरा राजा भी देता ।
जब ब्राह्मणों में यह भावना जोर पकड़ी तथा श्रीमद्भागवत यज्ञ के माध्यम से पुनः ब्राह्मण-क्षत्रिय एकता की नींव पड़ी तो जन्मेजय ने नाग यज्ञ किया तथा कड़ाही में जलते हुए तेल में एक-एक कर संपूर्ण नागवंश जला दिया गया तथा तक्षक भागकर इंद्रासन से लिपट गया और इंद्र की मध्यस्ता में युद्धविराम(Cease fire) हुआ।
प्रायःयह देखा गया है कि जब जब ब्राह्मण-ब्राह्मण, क्षत्रिय-क्षत्रिय तथा ब्राह्मण-क्षत्रिय आपस में टकराते हैं तो वहां पर जनक्रांति की आग को हवा मिल जाती है तथा वह तेजी से बढ़ने लगती है। जब कोई रघुनाथ किसी शंबूक के ऊपर बाण उठा लेता है तथा शबरी के जूठे बेर खाने और केवट को गले लगाने को पृष्ठभूमि में डालकर गोद्विजहितकारी बन जाता है तथा जब शंबूक तपस्या नहीं करने पाता है तो ब्राह्मण यह घोषणा करता है कि अब दैहिक,दैविक और भौतिक ताप समाप्त हो गया है। इसी प्रकार जब कोई द्रोणाचार्य किसी एकलव्य का अंगूठा गुरु-दक्षिणा में ले लेता है तो अर्जुन बिना और कड़ी मेहनत किए ही गुरु-कृपा से विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन जाता है तथा उस युग की नक्सली समस्या का समाधान हो जाता है। किंतु पुनः जब दुर्योधन और युधिष्ठिर टकराते हैं तथा महाभारत होता है और द्वारिका का यदुवंश जब अहंकार में महर्षि दुर्वासा को अपमानित करता है तथा उनके क्रुद्ध होकर शाप देने से और यदुवंश के आपसी संघर्ष से जब प्रजा का मनोबल बढ़ जाता है तो एक बहेलिए के तीर से कृष्ण के प्राण पखेरु उड़ जाते हैं तथा जब द्वारिका से कृष्ण के अंतः पुर को लेकर अर्जुन दिल्ली की ओर चलते हैं तो रास्ते में भैंस चराने वालों के मुकाबले वह टिक नहीं पाते हैं और गांडीव हाथ में रहते हुए भी कृष्ण के वंश की समस्त नारियां उन से छीन ली जाती हैं तथा वे डिप्रेशन में दिल्ली लौटते हैं। संतोष करने के लिए कहावत बनती है-
व्यक्ति बलि नहीं होत है समय होत बलवान।
भीलन लूटी गोपिका वै अर्जुन वै बाण।।
उत्तर प्रदेश में राजनैतिक जगत में जब तक कांग्रेस में वीर बहादुर सिंह तथा विश्वनाथ प्रताप सिंह का आपसी विरोध और इन दोनों ही हस्तियों का श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी से अंतर्विरोध मुखर नहीं हुआ था तब तक कहीं भी नक्सली समस्या सुनाई नहीं देती थी। किंतु पूंजीवाद के अंतर्विरोध के चलते साम्यवाद आगे बढ़ता है- ठीक इसी प्रकार मैं खुद जातिवाद की बात नहीं कर रहा हूं किंतु भारत में क्योंकि लोहिया ने गर्वपूर्वक कहा था कि वह Marx के वर्ग संघर्ष को वर्ण संघर्ष में बदल चुके हैं अतः लोहिया द्वारा चालू की गई इस 80 परसेंट बनाम 20 परसेंट की जातिगत लड़ाई में जब ब्राह्मण और क्षत्रिय टकराए तो इसका परिणाम वाराणसी तथा मिर्जापुर के इलाके में नक्सली समस्या के रूप में दिखाई दिया तथा कहीं पर वह एटा मैनपुरी बेल्ट में दस्यु समस्या के रूप में आया तो बुंदेलखंड तथा कानपुर और आगरा बेल्ट में भी हालात सामान्य नहीं रह सके। पुनः राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद तथा मिर्जापुर में जन्मेजय के नाग यज्ञ की कल्पना करके लोग सिहर गए तथा पूरे यूपी की नक्सल समस्या समाप्त हो गई। योगी जी के कार्यकाल में किसी नक्सली समस्या की कल्पना ही नहीं की जा सकती क्योंकि कोई भी शांति व्यवस्था की समस्या तभी पैदा होती है जब उसे सत्ता में घुसपैठ बनाने का अवसर मिलता है। आखिर उत्तर प्रदेश में इतनी पार्टियां बनी किंतु कायदे से साइकिल तथा हाथी ही क्यों चल पाई?
अगर सपा से जुड़े लोगों को नारायण दत्त तिवारी का तथा बसपा से जुड़े लोगों को वीर बहादुर सिंह का अघोषित आशीर्वाद ना मिला होता तो तमाम अन्य दलों की तरह यह दोनों दल भी सिंचाई, निराई, गुड़ाई तथा खाद और पानी के अभाव में सूख गए होते। Maoने लिखा है कि गोरिल्ला वह मछली है जो जनता रूपी समुद्र में रहती है तथा स्थानीय जनता के सहयोग के बिना वह एक दिन टिक नहीं सकता। और अगर आज कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाए तथा वहां पर किसी K.P.S. GILL या General V. K. SINGH जैसे किसी व्यक्तित्व को गवर्नर बना दिया जाए तो 24 घंटे के अंदर ऐसा माहौल आ जाएगा कि एक भी पत्थर फेंकने वाला सड़क पर नहीं दिखाई देगा तथा बिना एक डंडा मारे उसके हाथों में लकवा लग जाएगा। राजनाथ सिंह की क्षमता को मैं चुनौती नहीं दे रहा उत्तर प्रदेश में नकल अध्यादेश को लागू करके तथा नक्सली समस्या का स्थाई समाधान प्रस्तुत करके उन्होंने दिखा दिया है कि नक्सलवाद से कैसे लड़ा जाता है। किन कारणों से उनके हाथ बंधे हैं इसे वही बता सकते हैं।
2नक्सली समस्या का दूसरा समाधान प्राचीन काल में महर्षि विश्वामित्र ने प्रस्तुत किया जब महर्षि विश्वामित्र अपने शिष्य राम और लक्ष्मण को दिव्यास्त्रों से लैस करके उस रणनीति की घोषणा करते हैं जिसमें यज्ञ में बाधा डालने वाले तत्वों पर गोद्विजहितकारी राम स्वयं खड़े होते हैं तथा उनके द्वारा कुछ बाधक तत्वो का वध किए जाते ही मारीचि जैसे लोग इतनी दूर भाग जाते हैं कि उनकी कभी दोबारा आहट भी नहीं सुनाई देती है। जिसका वर्णन राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने किया है-
ऋषियों को मिलती सिद्धि तभी, पहले पर जब स्वयं राम खड़े होते है।
दिव्यास्त्रों से लैस करना तो दूर सामान्य अस्त्र भी जब CRPF को नहीं दिए जाएंगे तथा उनके पास ना तो पर्याप्त Bulletproof Jacket होंगे और ना ही Bulletproof Helmet तथा मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त मात्रा में स्थानीय पुलिस भी नहीं होगी और स्थानीय थानों में सिपाहियों तक की Vacancy पूरी नहीं होगी और यह कोई बताने को तैयार नहीं होगा कि किस मजबूरी या स्वार्थ के चलते नक्सल प्रभावित क्षेत्र के थाने जनशक्ति से वंचित रखे गए हैं तथा जहां पर नगरीय सुविधाएं हैं वहां स्वीकृत नियतन से अधिक पुलिस कर्मचारी मलाई चाट रहे हैं तब तक नक्सल समस्या का समाधान नहीं होगा। मैं छत्तीसगढ़ सरकार तथा केंद्रीय सरकार से यह अनुरोध करता हूं कि जनहित में जनता को यह ज्ञान करावे कि किन परिस्थितियों में
1 जितने थाने नक्सल क्षेत्रों में हैं उनमें से अधिकांश में जिस सिपाही या दरोगा की पोस्टिंग होती है वह वह तीन-तिकड़म से, जुगाड़ से अथवा पैसे से यह सुनिश्चित कर लेता है कि वह नक्सल बेल्ट में ना रहे तथा मलाईदार बेल्टों में मलाई चाटे। अगर संख्या बल में कमी है तो उसे भरा क्यों नहीं जा रहा है?
भारत एक अखंड राष्ट्र है तथा किसी भी प्रांत का आदमी किसी दूसरे प्रांत में सरकारी नौकरी कर सकता है और जब हर बार यह जांच होती है कि उत्तर प्रदेश में पैसा लेकर भर्ती हो रही है चाहे यह आरोप सही हो या गलत तो यह कैसे मान लिया जाए कि जनशक्ति के अभाव में अधिकांश थाने छत्तीसगढ़ में जनशक्ति से शून्य है? आज तक तथा अन्य चैनलो ने आंकड़ों के साथ प्रस्तुत किया है कि अधिकांश स्थानों में निर्धारित संख्या से काफी कम मात्रा में कर्मचारी मौजूद हैं तथा जब किसी की पोस्टिंग नक्सल बेल्ट में होती है तो अधिकांश लोग चिकित्सा अवकाश ले लेते हैं तथा जब तक उनका जुगाड़ नहीं बैठता है वापस नहीं लौटते हैं। आज भूतपूर्व फौजी जब तमाम बैंकों में तथा अन्य प्राइवेट संस्थाओं में सुरक्षा गार्ड की नौकरी ढूंढ रहे हैं तो अधिक तनख्वाह पर उनको छत्तीसगढ़ पुलिस में नियुक्त क्यों नहीं किया जा सकता है?
इसमें पुनः वही क्षुद्र स्वार्थ बाधक होते हैं जिसके तहत विद्याचरण शुक्ला तथा तमाम नेताओं की हत्या होती है और तमाम CRP के लोग समय-समय पर मारे जाते हैं किंतु स्थानीय पुलिस का कोटा नहीं भरा जाता है।
2 सड़क निर्माण के लिए नियत स्थान पर CRP की ड्यूटी लगाई जा रही है तथा वह पर्याप्त मात्रा में अंदर घुस कर छापा नहीं मार पा रही है। यह क्यों आवश्यक समझा जा रहा है कि स्थानीय ठेकेदार ही धीरे-धीरे सड़क बनाएं तथा जो सड़कें साल भर में बन सकती हैं उनको बनाने में कई साल का समय क्यों लग रहा है? स्थानीय नागरिकों के माध्यम से अभिसूचना प्राप्त करने का तथा कार्यवाही का जो तंत्र विकसित किया गया था उसकी घनघोर उपेक्षा करने से लगभग सारे मुखबिर मार दिए गए हैं तथा उनकी हत्या में कोई ठोस विवेचनात्मक कार्यवाही नहीं की गई है और ना ही कोई ठोस जवाबी कार्यवाही हुई है।
अंत में मेरा यह व्यक्तिगत सुझाव है कि केवल बल प्रयोग से समस्या का समाधान नहीं होगा। वनवासियों को यह आभास दिलाना होगा कि वह एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं तथा सत्ता के मठाधीशों के बंधुआ मजदूर नहीं। आज जंगली इलाकों में क्या हो रहा है? तेंदूपत्ते के ठेके दे दिए जा रहे हैं तथा कोई ठेकेदार बाहर से जाकर उन जंगलों में घुसकर समस्त तेंदूपत्ता को स्थानीय निवासियों द्वारा कम मजदूरी देकर बिनवा लेता है तथा जंगल विभाग के अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों तथा राजनैतिक आकाओं के पेट भर कर स्वयं अधिकांश लाभ को उदरस्थ कर लेता है तथा बाद में खुद राजनीतिज्ञ बन जाता है। वन उपज तथा शहद आदि जितने संसाधन हैं उनको स्थानीय वन निवासियों के उपभोग के लिए खुला छोड़ दिया जाए तथा वह पूर्ण उपयोग करें और उससे वह अपना विकास स्वयं कर लेंगे।
वन उपज का लाभ जब तक ठेकेदार और उन के माध्यम से वन अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी तथा नेता करेंगे और जब तक उनको स्वाभिमान से जीने का हक नहीं मिलेगा तब तक नक्सल आंदोलन को कुचला जा सकता है लेकिन समाप्त नहीं किया जा सकता है। इसका समाधान महर्षि व्यास ने श्रीमद्भागवत में दिया है-
यावत हि भ्रियते उदरं।
तावत स्वत्वं हि देहिनाम।।
योऽधिकम भि वांछेत।
स्तेनो दंडमर्हति।।
अर्थात जितनी संपत्ति से व्यक्ति का पेट भरे उतने पर ही उसका अधिकार है। इससे अधिक की जो इच्छा रखे वह चोर है तथा दंड का भागी है। जब मध्य प्रदेश के लोकायुक्त के छापे पड़ते हैं तो करोड़ों और अरबों की संपत्ति क्लर्कों और इंस्पेक्टरों के यहां से बरामद होती है तथा यह स्त्रोत बंद नहीं हो पा रहे हैं। माफियाओं द्वारा तथा कॉरपोरेट घरानों द्वारा वन संपदा का दोहन हो रहा है इनको जो दंडित कर सकेगा वही नक्सल समस्या पर रोक लगा सकेगा। यही प्राचीन भारत का भारतीय साम्यवाद है जो मार्क्स के साम्यवाद से कहीं तगड़ा है। इसी साम्यवाद की साधना में मनुवादी पार्टी लगी हुई है तथा वह पश्चिमी साम्यवाद की जगह भारतीय साम्यवाद को लागू करना चाहती है। समस्त देशभक्त संगठनों से अनुरोध है कि वह सरकार पर दबाव बनाएं कि जो जंगल उजड़ चुके हैं उन पर सामाजिक वानिकी के अंतर्गत वन लगाए जाएं तथा उनमें स्थानीय मजदूरों को नियुक्त किया जाए तथा ठेकेदार बाहर के मजदूर लाकर फर्जी कार्यवाही ना कर सके। मनरेगा एक्ट की पैटर्न पर कोई एक्ट बना दिया जाए तथा इस संपत्ति का उपभोग वनवासी करें तथा वनवासियों में इस खाली जमीन के वितरण की कोई व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। वन उपज का वितरण कैसे होगा इस पर कोई व्यवस्था बनाई जाए जिससे उन पर वनवासियों का अधिकार सुनिश्चित किया जा सके। केवल शस्त्रों के बल पर स्वाभिमान को लंबे समय तक रौंदा नहीं जा सकता है। रामचरितमानस में निषाद राज ने भरत की संपूर्ण सेना को ललकारते हुए कहा है-
" सन्मुख लोह भरत सन लेहू।
जिअत न सुरसरि उतरन देहू।।
अर्थात आमने सामने मैं भरत से युद्ध करूंगा तथा जीते जी भरत की सेना गंगा नदी को पार नहीं कर पाएगी।"
जब अयोध्या की सुगठित भरत की सेना से निषादराज नहीं घबराया तो राजनाथ सिंह की सेना से नक्सली कैसे घबरा जाएंगे?
इसका उत्तर कभी विश्वामित्र के नेतृत्व में किए गए शस्त्र संचालन से तो कभी व्यास द्वारा निर्धारित जन कल्याण कार्यक्रमों से देना होगा। निषाद राज को गले लगाना होगा तथा यह व्यवस्था देनी होगी कि वह अपने जंगलों की उपज का उपभोग कर सके तथा बाहरी ठेकेदार, पूंजीपति और नेता उसकी संपत्तियों के मालिक ना बन जाए और उसको बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश ना कर सके यह भारतीय साम्यवाद है जिसे गांधी जी ने Trusteeship के सिद्धांत के रूप में प्रतिपादित किया है तथा जिसकी व्याख्या दीनदयाल उपाध्याय ने" एकात्म मानववाद" के रूप में की है। वेदव्यास का गरीबों का धन हड़पने वालों को चोर समझने का दर्शन, गांधी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत तथा दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद- इन तीनों को जोड़ दिया जाए तो नक्सलवादी समस्या स्वतः लगभग समाप्त प्राय हो जाएगी तथा उसका जो थोड़ा बहुत अवशेष बचेगा उसको शस्त्रों के बल पर सद्भावना लेकिन कठोरता के साथ कुचल देना होगा।
छत्तीसगढ़ में मारे गए अमर शहीदों को सादर नमन करते हुए मैं केंद्रीय सरकार से यह अनुरोध करता हूँ कि नक्सलियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही करके उनका उन्मूलन सुनिश्चित किया जय तथा साथ ही कॉर्पोरेट घरानों , ठेकेदारों, माफियाओं, नेताओं द्वारा वन सम्पदा के दोहन को रोका जाय तथा उन क्षेत्रों का विकास इस प्रकार किया जाए कि वे बाहरी पूंजीपतियों के गुलाम न बन जाए ताकि बार बार यह समस्या न उठे। पूरे भारत को बिहार में नीतीश कुमार के बारे में यह पढ़कर कष्ट हुआ कि वह शहीदों को न तो स्वयं सलाम करने गए और न ही अपना कोई मंत्री भेजा तथा जब शहीदों को सलामी दी जा रही थी तो वे किसी सरकारी या प्राइवेट कार्य में व्यस्त भी नही थे बल्कि सलामी स्थल के पास ही में स्थित एक सिनेमा हाल में पिक्चर का आनंद ले रहे थे। केंद्र सरकार को नीतीश सरकार को यह चेतावनी निर्गत करनी चाहिए कि यदि TV चैनलों पर प्रसारित यह समाचार गलत है तो इसका खंडन करे और उन्हें चेतावनी दें तथा यदि यह समाचार सही है तो राष्ट्र से तथा शहीदों के परिवार से बिना शर्त क्षमा याचना करनी चाहिए तथा इसकी पुनरावृत्ति न होने देने की कसम खानी चाहिए। इस प्रकार के कृत्यों से राष्ट्र की आत्मा छलनी हो जाती है।
समन्वित विकास के कदम अपरिहार्य हैं किन्तु उसकी प्रतीक्षा नहीं की जा सकती तथा शहीदों की तथा उनके परिवारों की आत्मा को शांति पहुंचाने के लिए उसी शैली में जवाब देना आवश्यक होगा जैसा कि राजनाथ सिंह ने कभी वाराणसी मिर्जापुर बेल्ट में दिया था। भारत की जनता राजनाथ सिंह से अपेक्षा करती है कि वह भावी प्रधानमंत्री बनने के चक्कर में आडवाणी की तरह नरमपंथी बनने का नाटक न करें बल्कि लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह की छवि को प्रदर्शित करने के लिए नक़ल को प्रभावी ढंग से रोकने वाले तथा उत्तर प्रदेश से नक्सल समस्या को समूल नष्ट कर देने वाले पुराने राजनाथ की भूमिका में वापस आएं अन्यथा देश की जनता उन्हें आडवाणी की तरह भुला देगी तथा वह सरदार पटेल की तरह युग पुरुष नहीं बन पाएंगे। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह गृह मंत्री को उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री वाले तेवरों में देश को वापस लौटा दे।
रुग्ण होना चाहता कोई नहीं,
रोग लेकिन आ गया जब पास ही हो।
तिक्त औषधि के सिवा उपचार क्या,
वह शमित होगा नहीं मिष्ठान्न से।।
(दिनकर)
जय हिन्द

Tuesday, 25 April 2017

कहां चले जाएं गुंडे माफिया? गुंडे माफिया योगी जी के IAS/IPS रूपी मुकुट में समा गए।

#कहां_चले_जाएं_गुंडे_माफिया?
गुंडे माफिया योगी जी के IAS/IPS रूपी मुकुट में समा गए।
मैंने अपने लेखों में जो भविष्यवाणियां की थी वे
अक्षरशः सही सत्य हो रही है #भाग_5 को कृपया पढ़ें
उपरोक्त लेख में मैंने स्पष्ट लिखा था कि IAS IPS ऑफिसर यह सिद्ध कर लेंगे कि सारी अराजकता RSS के,भाजपा के तथा आनुषंगिक संगठन के लोग फैला रहे हैं। आगरा और सहारनपुर में हुआ उसकी भविष्यवाणी मैंने 2 अप्रैल को ही कर दी थी। आगे आगरा और सहारनपुर जैसी दर्जनों घटनाएं दोहराई जाएंगी- इस का माहौल तैयार करने के लिए IAS-IPSने कमर कस ली है। IAS/IPS जिस किसी की सरकार रहती है उसके मुख्यमंत्री को अथवा प्रधानमंत्री को यह समझाते हैं कि आप तो महान है किंतु आप गंदे लोगों की संगति में पड़े हुए हैं। #इन्हीं_अफसरों_ने_बार_बार_अटल_जी_को_समझाया कि वे सांप्रदायिकता के कुसंग में पड़े हुए हैं तथा उनके जैसे विराट व्यक्तित्व को यह शोभा नहीं देता कि RSS तथा विश्व हिंदू परिषद के लोग उनसे लिपटे रहे। सुनते-सुनते अटलजी इतने विचलित हो गए कि तीन बार प्रधानमंत्री बनने के बावजूद भी एक बार भी उन्होंने राम लला के आगे मत्था तक नहीं टेका और प्रसाद तक नहीं लिया- राम का मंदिर बनवाना तो दूर की कौड़ी ठहरी।
#इन्हीं_IAS_IPS_अफसरों_ने_आडवाणी_जी_को_इतना_बरगला_दिया कि वह अटल जी के पद चिन्हों पर चल कर उनकी भौंड़ी नकल करने लगे कि जिन्ना की मजार पर जाकर ये चादर तक चढ़ा आए ताकि अपने Secular Credentials को प्रदर्शित कर सकें। इतना ही नहीं बोलते बोलते आडवाणी साहब यह भी बोल गए कि जिन्ना गांधीजी से कहीं बेहतर थे। अगर जिन्ना इतने ही महान थे तो आडवाणी साहब को सिंध छोड़कर भारत आने की क्या आवश्यकता थी तथा यदि वह मूर्खता में आ गए तो अब से फिर वापस क्यों नहीं चले जाते?
यही IAS,IPS तथा IFS मोदी जी को इस उपहासास्पद स्थिति में लाकर खड़ा कर दिए हैं कि #महबूबा_मुफ्ती_जी_जब_उस_मोड़_की_याद_दिला_रही_हैं_जहां_अटल_जी_ने_कश्मीर_समस्या_को_छोड़ा_था। मोदी जी पुनः अटल जी के पदचिन्हों पर चलते हुए जवानों के जो हाथ खोल दिए थे उनको फिर से बांध रहे हैं तथा सोशल मीडिया पर यह पंक्तियां वायरल हो रही हैं-
गद्दारों से पत्थर खाएं
हम हैं इतने मजबूर नहीं
हम भारत मां के सैनिक हैं
केवल बंधुआ मजदूर नहीं
धारा 96 से लेकर धारा 106 तक IPC में यह स्पष्ट लिखा गया है कि कोई साधारण से साधारण नागरिक तक बिना किसी विशेषाधिकार के किन-किन परिस्थितियों में बल प्रयोग कर सकता है तथा किन परिस्थितियों में किसी के प्राण भी ले सकता है। पुलिस को सेना को अगर कोई भी Extraअधिकार ना दिया जाए तथा जो अधिकार सामान्य नागरिक को प्राप्त हैं उतना भी उपभोग करने दिया जाए तो कहीं भी संयम यह अपेक्षा नहीं करता है कि #Force_का_जवान_देशद्रोह_करने_वालों_के_थप्पड़_खाए_और_कोई_जवाबी_कार्यवाही_ना_करे। कानून एक सामान्य नागरिक तक को यह अधिकार देता है कि वह बल प्रयोग कर सकता है। किंतु इस माहौल में भी जवानों से गांधी का सत्याग्रह करने की शिक्षा दी जा रही है।राष्ट्रकवि दिनकर लिख चुके हैं कि-
"गांधी की रक्षा करने को गांधी से भागो"
अर्थात यदि गांधीवाद को जिंदा रखना है तो गांधीवाद को तत्काल छोड़ दो। ठाकुर गोपाल शरण सिंह नेपाली ने भी 1962 युद्ध के बाद जवाहरलाल नेहरु को लिखा था-
"ऐ साथी दिल्ली जाना तो,
कहना अपनी सरकार से।
चरखा चलता है हाथों से,
शासन चलता तलवार से।"
लाल बहादुर शास्त्री जब ताशकंद में वार्ता करने गए थे तो पाञ्चजन्य ने ललकारा था-
"तुम्हे शपथ है घायल मां की औ घायल अखनूर की।"
तथा यह समझाया था कि-
"शांति नहीं आया करती है,
नारों से मनुहारो से।
साक्षी है इतिहास,
उसे लाना पड़ता तलवारों से।"
उस परंपरा में पैदा हुए तथा पाले पोसे गए मोदी और राजनाथ सिंह को अब समय की भाषा सुहाने लगी तथा #यदि_इसी_तरह_कांग्रेसी_शासन_में_यदि_जवान_पिटे_होते तो ना जाने किन किन विशेषणों से संघ परिवार द्वारा प्रधानमंत्री तथा गृह मंत्री को नवाजा जा रहा होता। यह कलियुग जो सत्ता के मुकुट रूपी IAS IPS में बैठा है उसने मोदी जी को इस बात के लिए सहमत कर लिया कि किसी भी अधिकारी की या कर्मचारी की भ्रष्टाचार की जांच चालू करने से पहले उसके विभागीय अधिकारियों की सहमति ले ली जाए तथा इस तरह के कानून का प्रारूप तैयार हो रहा है। इस कानून की व्यवस्था केवल सीनियर IAS IPS अफसरों के लिए पहले आईएस ने कराई थी तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया था। अब यह सुविधा समस्त सरकारी कर्मचारियों को मिलने जा रही है कि बिना उनके विभागीय अधिकारियों के सहमति के कोई जांच ना कर सके। CBI को जांच के बाद मुकदमा चलाने के लिए बाद में Prosecution Sanction लेना अनिवार्य था तथा बिना नियुक्ति प्राधिकारी के किसी सरकारी नौकर पर मुकदमा नहीं चल सकता। अब यह छूट देने की तैयारी हो रही है कि बिना अनुमति के जांच भी CBI प्रारंभ नहीं कर सकती। पिंजरे में बंद तोते के पर और बुरी तरह कतर दिए गए हैं इसका विस्तृत विवरण साक्ष्य समेत पिछले एक लेख में आ चुका है। और यह भी उस मोदी के हाथों हुआ जिसे राष्ट्र भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक प्रबल योद्धा मानता था और आज भी मानता है।
#इसीIAS_IPS_कैडर_ने_केजरीवाल_को_इतना_दिग्भ्रमित_कर_दिया_कि CBI के आरोपों से लदे हुए IAS अफसर ही उसे अपने सबसे बड़े शुभचिंतक नजर आने लगे तथा अन्ना हजारे का चेला भ्रष्टाचार के आरोपों से लदे हुए अभियुक्तों की पैरवी सरेआम करता नजर आया। परिणाम सबके सामने है। जिस केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव में 70 में 67 सीटें जीतीं थी तथा लोकसभा में 7में 7 सीटें जीतने वाले मोदी के पंजों को उनकी भरी जवानी में मरोड़ दिया था वह #केजरीवाल_एक_अनाथ_बालक_की_तरह_EVM_की_धांधली_का_रोना_रो_रहा_है। इसी IAS-IPSने अखिलेश यादव को समझा दिया था कि सारी बुराइयों की जड़ उनके यादव लोग हैं तथा गोरखपुर में एक यादव वकील के पुट्ठे पर इतना प्रहार हुआ कि लाल-लाल सूजा हुआ उसका फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया तथा कुछ समय बाद भले ही पुलिस अधिकारी सस्पेंड कर दिए गए हो किंतु उन्हें शीघ्र बहाल कर महत्वपूर्ण पद दे दिए गए क्योंकि अखिलेश की समझ में आ गया था कि यादवों की वजह से उनकी छवि धूमिल हो रही है। आज भी कांग्रेस,बसपा तथा भाजपा के तमाम नेता अवैध रूप से जमीन कब्जा किए हुए हैं तथा कई सफेदपोश दलाल तक सैकड़ों एकड़ जमीनें विभिन्न शहरों में कब्जा किए हैं किंतु अखिलेश की छवि को उज्जवल बनाने में जुटा प्रशासन रामपाल यादव विधायक को इस तरह प्रताड़ित किया कि यादव तक सपा को छोड़कर भाजपा में भागने में अपना कल्याण समझे। किसी को विश्वास ना हो तो सोशल मीडिया पर वायरल हुई रामपाल यादव की उस फोटो को खोज कर अखिलेश यादव को दिखा दें तथा उस पर आई हुई सैकड़ो यादवों की टिप्पणियों को पढ़वा दे जो कि दलगत भेद को दरकिनार करके इस बात पर रो रहे थे कि किस प्रकार एक यादव विधायक उकड़ू बैठा हुआ एक दरोगा के चरणों में हाथ जोड़कर कातर स्वर से अपने प्राणों की भिक्षा मांग रहा है। रामपाल यादव का मानमर्दन तो हो गया किंतु #अखिलेश_भी_इसी_लायक_बचे_कि_बुआ_के_साथ_मिलकर_बबुआ_बनकर_ईवीएम_का_रोना_रोएं। आज वही कलियुग संघ परिवार के, मोदी जी के तथा योगी जी के मुकुट में IAS-IPS रूपी कलियुग बनकर घुस गया है तथा उनको बरगला रहा है कि सारी समस्या की जड़ गौ रक्षक हैं, भाजपा के कार्यकर्ता हैं जो सहारनपुर में उपद्रव मचाते हैं तथा आगरा में विश्व हिंदू परिषद से जुड़े लोग हैं जो पुलिस से दुर्व्यवहार करते हैं। आगरा तथा सहारनपुर में जो कुछ भी हुआ उस की भविष्यवाणी मैंने 2 अप्रैल को ही कर दी थी कि IAS-IPS मुख्यमंत्री जी, मोदी जी तथा संघ परिवार को बरगलाकर मानेगा कि सारी समस्या की जड़ उसके कार्यकर्ता हैं तथा वह उनको सुधारें। किसी को यह याद नहीं रहेगा कि #जब_Feel_Good_तथा_India_Shining_के_नारे_पर जनता ने ठुकरा दिया था तथा भाजपा को लंबा वनवास देकर अंधकार के कुएं में डाल दिया था तब इन्हीं कार्यकर्ताओं के कंधे पर चढ़कर आज भाजपा इस लायक बनी है कि कोई IAS या IPS अधिकारी उनके कान फूंके। आज संघ परिवार भी मान रहा है, मोदी जी भी मान रहे हैं कि राजस्थान में या अन्य प्रांतों में जो गौरक्षा के नाम पर बवाल हो रहा है वह अराजक तत्व तथा गुंडे कर रहे हैं जबकि इस बात का कोई ध्यान नहीं दे रहा है कि ठीक है उन्होंने गलत कदम उठाया है और उन पर कार्यवाही होनी चाहिए किंतु आज भी #भाजपा_शासित_राज्यों_में_गायों_की_तस्करी_कैसे_हो_रही_है?
गाय कोई अफीम की पुड़िया नहीं है वह जब ट्रक में जाती है तो दूर से दिखाई देती है। केवल सैय्यदराजा चौराहे पर चंदौली जिले में खड़े होकर एक दिन अपने किसी प्रिय शिष्य से योगी जी दिखवा लें कि नजारा क्या है? सत्य सामने आ जाएगा। किस तरह सड़क पर कटने के लिए लगातार हर शहर में गायों को ढोया जा रहा है तथा हर जिले के कारखास उनसे माहवारी वसूल रहे हैं तथा इस आरोप में किसी भाजपा शासित राज्य में नौकरशाही किसी थानाध्यक्ष तथा क्षेत्राधिकारी को निलंबित नहीं कर रही है और ना ही विभागीय कार्यवाही कर रही है। जिन बिंदुओं पर कार्यकर्ताओं के कोमल मन को दिग्भ्रमित करके उनमें आशा का संचार किया गया कि भाजपा के आने पर गौ हत्या रुकेगी- वह इस दृश्य को देखने के बाद अगर पागल होकर कानून को हाथ में ले लेते हैं तो यह उतना ही निंदनीय है जितना नाथूराम गोडसे का गांधी जी को गोली मार देना तथा इसके लिए दंड भी मिलना चाहिए। किंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी साध्वी तथा साक्षी को जब कोई गोडसे याद आता है तो उनकी आंखे नम हो जाती हैं तथा किसी मोदी को उनका क्लास लेना पड़ता है- क्योंकि गोडसे गाया करता था-
"नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे"
चाहे उसका RSS से कोई नाता रहा हो या ना रहा हो। जैसे गोडसे का RSS से कोई नाता नहीं था किंतु वह RSS की विचारधारा और साहित्य से अनुप्राणित था, उसी प्रकार गौ रक्षक जो कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं वे अपराध कर रहे हैं किंतु वे गोडसे हैं वह अंगुलीमाल नहीं है। गोडसे को सजा मिली और कोई भी व्यक्ति उसके कृत्य को समर्थन नहीं देता किंतु आज भी ऐसे लोग हैं जिनके मन में उस का मंदिर बनवाने की श्रद्धा जगती है तथा यदि मंदिर बन जाए तो साक्षी जैसे कितने सांसद उस में मत्था टेकने भी पहुंच जाएंगे।
आज यह कहा जा रहा है कि सहारनपुर की घटना में सांसद ने कानून को अपने हाथ में ले लिया। किंतु क्या गहराई से कोई इस बात की भी समीक्षा करेगा कि जब पहले से मालूम था कि Permission नहीं है तथा वहां पर लोग इकट्ठे होंगे तो प्रशासन ने इसको तत्काल Review क्यों नहीं किया?
यदि अंतिम निर्णय यही था कि जलूस नहीं निकलेगा तो वहां पर धारा 144 लगाकर पर्याप्त Force क्यों नहीं भेजी गई तथा उसे यह निर्देश क्यों नहीं दिए गए कि किसी भी हालत में 4 से अधिक आदमी उस स्थल पर एकत्रित ना होने पाए तथा ज्यों ही पांचवा आदमी आ जाए धारा 188 IPC तथा 151 सीआरपीसी के अंतर्गत तुरंत कार्यवाही क्यों नही की जा सकी?
इस रूप में इतनी व्यापक तैयारी है- इसकी क्या अभिसूचना विभाग ने या स्थानीय LIU ने कोई आख्या दी और यदि दी तो उसपर क्या कार्यवाही हुई?
इसके अलावा निम्नलिखित बिंदुओं पर क्या आख्या मंगा कर उसकी समीक्षा नहीं की जानी चाहिए। इस पर सेवारत तथा सेवानिवृत्त अधिकारी या विभिन्न राजनेताओं से टिप्पणी आमंत्रित है
#1_जब SSP सहारनपुर के बंगले में तोड़फोड़ की गई तो उस समय यदि DM और SP घटनास्थल पर थे तो CO City और City Magistrate कहां थे?
यदि अपरिहार्य परिस्थितियों में CO City और City Magistrate को भीSSP और DM के साथ रहना पड़ा हो तो सारी force और सारे मजिस्ट्रेटों को एक जगह Close करने से पहले कम से कम Additional SP, ADM अथवा कोई CO Office या Extra Magistrate टाइप के अधिकारी को कम से कम सहारनपुर जैसे संवेदनशील जिले में अलर्ट कर देना चाहिए था की कोई दुर्घटना हो तो वहां अटेंड कर सके। जिस समय SSP बंगले में तांडव चल रहा था उस समय कौन मजिस्ट्रेट, कौन राजपत्रित पुलिस अधिकारी वहां पहुंचा तथा कितने बजे पहुंचा?
#2_SSP के बंगले पर सुरक्षा गार्ड होती है तथा एक संतरी हरदम राइफल लिए हुए संतरी ड्यूटी पर तैनात रहता है। अगर SSP बंगले के अंदर नहीं है तो उनके रिश्तेदारों तथा उनके परिवार के व्यक्तिगत पारिवारिक मित्रों के अलावा किसी अन्य आदमी को बंगले के अंदर घुसने की अनुमति कैसे मिली? क्या भीड़ धक्कामुक्की करके बलपूर्वक घुसी तथा ऐसी स्थिति में संतरी ने अपने मोबाइल से Police Line के RI तथा Inspector कोतवाली और CO City और CO Line को क्यों नहीं बताया तथा उन्हें अधिकतम फोर्स लेकर आने को क्यों नहीं कहा गया?
#3_अगर संतरी को धक्के देकर तथा उसके आदेश का उल्लंघन कर भीड़ घुसी होती तो संतरी का तुरंत Actionमें ना आना तथा सर्व संबंधित को तत्काल आपातकालिक संदेश ना देना क्या अपने कर्तव्य की उपेक्षा नहीं है?
क्या Guard Commander तथा guard के अन्य सदस्य मौके पर थे भी या नहीं और यदि थे तो क्या कर रहे थे? उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था की Checking की गई तो दर्जनों कर्मचारी Duty से अनुपस्थित मिले तथा किसी की भी रपट गैरहाजरी Checking के पहले GD में नहीं लिखी गयी है।किसी अधिकारी से इस बात पर जवाब तलब नहीं हुआ कि पिछले एक महीने में अधिकारियों की Checking में कितने बार सुरक्षा कर्मी Duty से गायब पाये गए तथा उन्हें क्या दंड दिया गया?
आज पूरे उत्तर प्रदेश में किसी भी Guard की अथवा PAC Post की Checking करा ली जाए तो बड़ी संख्या में लोगों की GD में उपस्थिति होगी तथा मौके पर वे उपस्थित नहीं होंगे। लंबा पैसा दे कर कर्मचारी अपने को GD में मौजूद तथा मौके से गैरहाजिर रखते हैं। ऐसे ही अवांछनीय लोग राहजनी, हत्या और बलात्कार में लिप्त होने के बावजूद भी प्रायः गिरफ्तार नहीं हो पाते क्योंकि यदि उनकी मौके पर गिरफ्तारी नहीं हुई तो बाद में उनके पास यह सुरक्षा कवच होता है कि जब हत्या, बलात्कार या डकैती की गई तो मैं PAC या पुलिस लाइन में या किसी पोस्ट पर ड्यूटी पर तैनात था। जब आतंकवाद के इस युग में मुख्यमंत्री के सामने सुरक्षा का संकट हो तथा उनकी Duty से भी GD में मौजूद रहकर यथार्थ में काफी संख्या में कर्मचारी गैर हाजिर रह सकते हैं तथा कोई राजपत्रित अधिकारी इस के उपलक्ष्य में निलंबित नहीं होता है तो कहां से यह सुनिश्चित होगा कि जिन कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है वह अपने ड्यूटी पर उपस्थित रहें?
#4_चाहे_प्रतापगढ़_का CO हत्याकांड हो या मथुरा का अपर पुलिस अधीक्षक हत्याकांड अथवा फुटकर सिपाहियों के हत्या कांड- प्रायः देखा गया है कि जब किसी कर्मचारी, अधिकारी पर हमला होता है तो शेष कर्मचारी या तो भाग खड़े होते हैं अथवा मौके पर मूकदर्शक बनकर खड़े होते हैं। क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं तय होनी चाहिए?
सांसद के ऊपर जो आरोप लगाए जा रहे हैं वह यदि सही है तो पुलिस अधीक्षक के बंगले पर गोपनीय कार्यालय के नाम पर जो दर्जनों कर्मचारी संबद्ध रहते हैं वह क्या कर रहे थे? CRPCके द्वारा जितनी शक्तियां किसीDM या SDM के पास है उतनी किसी भी निरीक्षक या थानाध्यक्ष या समकक्ष के पास हैं, यदि कोई मजिस्ट्रेट मौके पर उपलब्ध नहीं है। क्या मौके पर उपस्थित मजिस्ट्रेट अथवा उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी ने बंगले पर आई हुई भीड़ को विसर्जित होने का आदेश दिया? ना मानने पर लाठीचार्ज तथा आवश्यकतानुसार गोली चार्ज भी कराने की क्षमता किसी निरीक्षक या थानाध्यक्ष में होती है। मजिस्ट्रेट के परमिशन की आवश्यकता तभी होती है जब वह मौजूद हो। मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति में उपनिरीक्षक ही DM है- यह कानूनी स्थिति है।
#5_क्या_सहारनपुर_जैसे जिले में Force की कमी है? सांप्रदायिक दंगों के संभावना के चलते सहारनपुर बेल्ट में परमानेंट रुप से स्थानीय पुलिस के अलावा PAC भारी संख्या में मौजूद रहती है। क्याPACबुलाई गई? क्या सूचना पर तत्काल ना पहुंचने के आरोप में किसी मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी को निलंबित किया गया?
#6_अगर सूचना नहीं दी गई तो Steno, Reader,Guard Commander तथा अन्य स्टाफ को सूचना ना देने के लिए निलंबित किया गया?
#7_क्या R.I.और C.O. Line को निलंबित किया गया कि वह मौके पर क्यों नहीं पहुंचे और पहुंचे तो प्रभावी कार्यवाही क्यों नहीं की?
#8_SSP के परिवार के पास तक या घर के अंदर तक अराजकतत्व कैसे पहुंच गए? क्या इसके लिए कायरता(Cowardice) के आरोप में मौके पर उपस्थित समस्त पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों पर वैधानिक तथा विभागीय कार्यवाही नहीं करनी चाहिए?
#9_हम अपने घर को चुस्त-दुरुस्त ना रखें तथा बाहर वालों को गाली दें और राजनीतिक हस्तक्षेप की बात करें- यह उचित नहीं है। Julius Caesar ने Shakespeare की इसी नाम की पुस्तक में कहा है कि-
"Fault, dear Brutus, lies not in our stars, but ourselves
अर्थात हे प्यारे बूट्स गलती हमारी तकदीर कि नहीं है बल्कि हमारी है"
जिन लोगों ने विभिन्न मौकों पर कायरता दिखाई है उनके खिलाफ उनके उच्चाधिकारियों ने कार्यवाही क्यों नहीं की?
#10_कहीं पर DM शांति व्यवस्था के नाम पर रोक लगा कर फिर छूट दे देते हैं तथा कहीं पर अकड़ जाते हैं। अभी TV और अखबार में सब लोगों ने पढ़ा था कि गोरखपुर में पुलिस छापे के विरोध में कोई मीटिंग नहीं होगी तथा जलूस नहीं निकलेगा किंतु बाद में पुलिस पर्याप्त संख्या में मौजूद रहकर उसको समझा-बुझाकर शांतिपूर्वक संपन्न कराई। क्या सहारनपुर में DM किसी अन्य स्थान पर कोई मीटिंग या यात्रा के लिए सांसद से वार्ता नहीं कर सकते थे अथवा यदि परिस्थितियां अनुमति देती तो अपने निर्णय का Review नहीं कर सकते थे? मैं यह नहीं कह रहा कि विरोध प्रदर्शन के सामने अथवा सत्ता पक्ष के अहंकार के सामने झुक जाना चाहिए लेकिन पहले अकड़ना और बाद में दबक जाना एक निहायत अपरिपक्वता का द्योतक है। या तो प्रशासन को जहां गुंजाइश हो लचीला होकर मामले को सुलझा लेना चाहिए अन्यथा जहां अकड़ना आवश्यक हो तथा अपरिहार्य हो वहां सर्व संबंधित को पूर्व सूचना देकर कानून का गंभीरता से पालन कराना चाहिए।
#11क्या वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सहारनपुर के यहां कोई सिपाही दरोगा या कलर्क नहीं था जो सीसीटीवी कैमरे के तोड़ देने के बावजूद छिपकर किसी गुप्त स्थान से उनकी फोटो खींच लेता? बलात्कार और डकैती की पीड़ित महिलाएं तक मोबाइल फोन की क्लिपिंग आज के युग में पेश कर रही हैं तथा यदि उपद्रवियों के चेहरों को चिन्हित करने के लिए कोई फोटो तक नहीं खींच पाया और यदि खींच पाया तो उन चेहरों को अंदाजने की कोशिश की जाए जोकि SSP के घर के अंदर के उस portion की तरफ घुसे थे जिस तरफ उनका परिवार रहता था। यह चेहरे किसके हैं? अपने 40 वर्ष के पुलिस सेवा के अनुभव के आधार पर यह मेरा अनुमान है कि यह चेहरे या तो किसी विपक्षी दल के लोगों के होंगे जो कि आंदोलन को बदनाम करने के लिए भीड़ में घुस गए होंगे अथवा एक ही सीट पर टिकट के कई दावेदार होते हैं तथा जिसको टिकट नहीं मिलता है उसके चेले किसी सांसद या विधायक को झटका देने की कोशिश में लगे रहते हैं तथा यह चेहरे या तो किसी विपक्षी दल के लोगों के अथवा सत्ता पक्ष के किसी विपक्षी गुट के हो सकते हैं। पुलिस से व्यक्तिगत रुप से नाराज कुछ असामाजिक तत्व भी ऐसी हरकत कर सकते हैं। जब सड़ी हुई लाश की विवेचना करने में GRP सक्षम होती है तथा वह निष्कर्ष निकाल लेती है कि संदूक में भरकर यह अज्ञात लाश कहां लादी गई, किसकी है तथा किसने मारा और क्यों मारा तो जिला पुलिस में कम से कम इतना दम होना चाहिए कि मुखबिरों से तथा अपने सामाजिक सूत्रों से भीड़ में तमाम लोगों के गोपनीय मित्रों से यह जान सकें कि वह कौन तत्व थे जोकि वास्तव में SSP के बंगले के अंदर के कमरों की ओर घुसने का प्रयास किए थे तथा पुलिस को प्रतिष्ठा का सवाल बना कर उनके ऊपर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। उस दिन मौके पर जो लोग कार्यवाही सुनिश्चित नहीं कर पाए उनकी कायरता पर मुझे दुख है तथा ऐसे कर्मचारियों तथा अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए। जो लोग अंदर के कमरों के ओर घुसने का प्रयास न किए हो उनके विरुद्ध तोड़फोड़ की तथा हिंसा की IPC की सामान्य धाराओं के अंतर्गत कार्यवाही होनी चाहिए। मेरा अंतर्मन अभी भी यह मानने को तैयार नहीं हो रहा है कि कोई सांसद अपने अनुयायियों को किसी SSP के परिवार पर हमला करने के लिए उकसाएगा। फिर भी दुनिया में कुछ असंभव भी नहीं है तथा जब मौके पर दुर्भाग्यवश कोई कार्यवाही नहीं हो पाई तो बिना किसी Delay के Mens Rea के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए नीर-क्षीर विवेक के साथ उत्तरदायित्व का निर्धारण करते हुए कार्यवाही सुनिश्चित की जानी चाहिए।
यहां मैं पुराने युग की दो घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन कर रहा हूं कि किस प्रकार निर्दोष लोग भयंकर अपराधों में फस जाते हैं।
#1_बदायूं_में_जब_अखिलेश का शासन था तो दो एक-जाति-विशेष की महिलाओं के साथ बलात्कार करके उनकी हत्या कर दी गई तथा उनकी लाश को सड़क के किनारे पेड़ में टांग दिया गया। लगभग सारे अधिकारी यादव थे तथा यादव मुलजिमों पर न केवल आरोप लग रहा था बल्कि मीडिया ट्रायल से घबराकर सरकार ने इतनी सख्ती की कि तथाकथित सारे यादव अपराधी जेल में ठूस दिए गए। चर्चा के दौरान मुझे तब भी यह लगा था कि घटनाक्रम कुछ और हुआ होगा। यादव सरकार में लगभग सारे अधिकारी यादव है तथा जिले के अधिकांश नेता यादव हैं तो उस समय कोई यादव अपराधी एक बार बलात्कार कर सकता है, आवश्यकता पड़ने पर हत्या भी कर सकता है किंतु यह मेरी समझ से बाहर था कि किन परिस्थितियों में कोई यादव अपराधी उस लाश को घसीट कर सड़क तक लाएगा तथा कपड़ों को अस्त-व्यस्त करके उसे उल्टा पेड़ पर लटकाएगा?
यह कहानी मेरे गले के नीचे नहीं उतर रही थी तथा कई जगह मुखरता से मैंने यह बात रखी भी थी। इस मामले में जब CBI जांच हुई तो तथ्य कुछ और ही निकले तथा दिल्ली में सपा की सरकार ना होने के बावजूद भी सारे यादवगण निर्दोष पाए गए।
#2_एक_बार_जब_मुलायम_सिंह_मुख्यमंत्री थे तो नई उम्र के बच्चों के साथSodomy करके उनकी हत्या कर दी जाती थी तथा VVIP इलाके में किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के कार्यालय में अथवा निवास में उनकी लाश फेंक दी जाती थी। इसमें तरह तरह के लोगों पर शंकाएं व्यक्त की गई तथा एक दिन गहन छानबीन के बाद एक प्रतिष्ठित नेता का नाम दबी जुबान से कुछ अखबारों में निकला तथा उसके अगले दिन से आज तक कोई ऐसी घटना घटित नहीं हुई। मैं उस राजनेता की भूमिका पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा किंतु एकाएक घटनाएं बंद हो गई तथा प्रमाणित रूप से विवेचना का परिणाम भी समाचार पत्रों में सामने नहीं आया।
इसी प्रकार की किसी भूमिका की संभावना सहारनपुर तथा आगरा केस में भी हो सकती है। सत्य वही नहीं होता है जो आंखों से दिखाई देता है तथा कानों से सुनाई देता है। इससे हटकर भी काफी चीजें सत्य होती हैं। एक बार भवभूति 12 वर्ष तक तपस्या करके अपने घर लौटे तो घर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था तथा उनके धक्का देने पर खुल गया और वह सीधे अपने शयनकक्ष में पहुंच गए जहां दिया जल रहा था तथा उन्होंने देखा कि उनकी प्रौढ़ पत्नी के साथ एक नौजवान एक ही बिस्तर पर आधी रात को सोया हुआ है। भवभूति का खून खौल उठा तथा उन्होंने उस नौजवान को मारने के लिए कमरे में टंगी हुई तलवार उठा ली तथा जब तक वह तलवार चलाते तब तक संयोग से उनके पत्नी की नींद खुल गई तथा उन्होंने जोर से उस युवक से कहा-
#जागो_बेटा_तुम्हारे_पिता_आ_गए"
भवभूति बहुत लज्जित हुए तथा उन्होंने तलवार फिर खूंटी में टांग दी। इसके उपरांत उन्होंने कविता लिखी-
सहसा विदधीत न क्रियाम्।
अविवेक: परमापदाम् पदम्।।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं।
गुण लुब्धा: स्वयमेव सम्पदः।।
अर्थात अकस्मात् कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए क्योंकि अविवेक सारी विपत्तियों की जड़ है। विमर्श करके कार्य करने वालों के गुणों पर लुब्ध होकर सारी संपत्तियां उनका वरण कर लेती हैं।
#इस_समय_सहारनपुर_के_SSP_स्वयं_में_पुलिस_विभाग_के_एक_माने_हुए_हस्ताक्षर_हैं। #पूरा_पुलिस_विभाग_उन_पर_गर्व_करता_है तथा संयोग से #डीजीपी_भी_अपने_पूरे_जीवनकाल_में_अपनी_न्यायप्रियता_सत्यनिष्ठा_कर्मठता_तथा_सिद्धांतों_के_प्रति_समर्पण के लिए ना केवल विख्यात रहे हैं बल्कि उनका समर्पण इस सीमा तक रहा है कि यह भी कहा जा सकता है कि#वह_न्याय_करने_के_लिए_कुख्यात_होने_की_सीमा_तक_जा_सकते_हैं। अतः इन दोनों व्यक्तियों से अनुरोध है कि वह इस संवेदनशील मामले में बिना कोई देरी किए पूर्ण तत्परता से दूध का दूध तथा पानी का पानी कर दें तथा किसी प्रकार के आवेश या पूर्वाग्रह या कानाफूसी करने वालों के चक्कर में न पड़ कर गहराई तक जाकर सत्य का पता लगाएं और विमर्श करके आगरा तथा कानपुर दोनों ही मामलों में न्याय सुनिश्चित करें। वह यह भी देख लें कि पुलिस का मनोबल ना गिरे किंतु जितनी जिसकी गलती हो गलतफहमी में उससे अधिक दंड भी उसको ना मिले। संघपरिवार तथा भाजपा परिवार का भी यह कर्तव्य है कि वह कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी को रोके किंतु यदि कार्यकर्ताओं पर पीत पत्रकारिता में अथवा मीडिया ट्रायल में अथवा सत्तादल के कार्यकर्ताओं में संघर्ष का वातावरण पैदा करने वाली कार्य खास रुपी मंथराओं के जाल में ना फसे तथा यदि कोई कार्यकर्ता निर्दोष हो तो वह सजा न पाए तथा यदि दोषी हो तो जितना दोषी हो उतना ही सजा पाए तथा ककड़ी का चोर कटार से ना मारा जाए। गौरक्षकों की गुंडागर्दी की बात मोदी जी और मोहन भागवत जी भी कर चुके हैं किंतु इतनी ही कडी बात उन्हें उन लोगों के बारे में भी करनी होगी जिनके क्षेत्र से होकर गौ माता की गाड़ियां कटने के लिए गुजर रही हैं तथा जिनके कार खास सिपाही कुछ हजार रुपए प्रति ट्रक लेकर उसे पार करा रहे हैं।

Monday, 24 April 2017

इस लेख में मैं लिख रहा हूं कि किस प्रकार गठबंधन से विपक्ष की राह आसान नहीं होगी बल्कि और कठिन हो जाएगी

#यूपी_में_महागठबंधन_से_भाजपा_को_लाभ_होगा
इस तथ्य पर विस्तृत#अगर_अखिलेश_और_राहुल_अलग_अलग_लड़े_होते_तो_भाजपा_को_इतनी_बड़ी_विजय_न_मिलती। गठबंधन के कारण नेताओं ने तो समझौता कर लिया किंतु कार्यकर्ताओं में Patch up नहीं हो पाया। जहां पर कांग्रेस का प्रत्याशी खड़ा था वहां यादवों का अधिकांश वोट भाजपा में चला गया क्योंकि सपा के सभी गुटों में तथा सभी संभावित प्रत्याशियों में इस बात पर सहमति थी कि अगर कांग्रेस जीत गई तो भविष्य में कभी सपा को इस सीट पर लड़ने का मौका नहीं मिलेगा। इसके अलावा यादवों की सवर्णों तथा विशेष रुप से ब्राह्मणों से तथा व्यापारियों से Chemistry नहीं बैठती है। इसी प्रकार जहां सपा का प्रत्याशी खड़ा था वहां कांग्रेस के सवर्णों ने भाजपा को वोट दे दिया तथा कांग्रेस में जो थोड़े बहुत दलित बचे थे उनमें से कुछ बसपा तथा कुछ भाजपा में चले गए किंतु अधिकांश वोटों का फायदा सपा को नहीं मिला। यादवों को सवर्णों तथा दलितों का वोट ट्रांसफर नहीं हो सकता। आप कह सकते हैं कि राम मंदिर आंदोलन के उग्र वातावरण में-
लेख मैं पूर्व में लिख चुका हूं कि किस प्रकार गठबंधन से विपक्ष की राह आसान नहीं होगी बल्कि और कठिन हो जाएगी। किसका वोट किसको ट्रांसफर हो सकता है- इसकी CHEMISTRY मैं विस्तार से बता चुका हूं। उसकी प्रतिध्वनि अब समाचार पत्रों में भी सुनाई पड़ रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में
मिले मुलायम कांशीराम
हवा में उड़ गए, जय श्री राम।
जब यह दृश्य हो चुका है तो फिर मैं किस आधार पर कह रहा हूं कि मायावती और अखिलेश के मिलने पर उनका वोट आपस में ट्रांसफर नहीं होगा?
इसका उत्तर है कि तब से दो नई परिस्थितियों आईं हैं
#1आजादी_के_बाद_से_सवर्णों_का_देहात_से_पलायन_चालू_हुआ तथा वह बड़े शहरों,कस्बों तथा कहीं जगह नहीं पाए तो सड़क पर छोटे-छोटे कस्बों में बसने लगे। सबसे पहले देहात छोड़कर वैश्य वर्ग के लोग भगे। इसके बाद #मजदूरी_बढ़_जाने_तथा_धारा_229B_के_दुष्प्रभाव_से अराजक तत्वों ने देहात के शरीफ लोगों की जमीनों पर फर्जी दावे प्रस्तुत करके उनको बलपूर्वक कब्जा करना चालू कर दिया। इसके सबसे आसान TARGET वैश्य तथा कायस्थ वर्ग के लोग बने क्योंकि यह लोग सबसे कम बाहुबली थे। इसके बाद ब्राह्मणों में यह शौक जगा कि मेरा बेटा देहात में न पढ़कर शहर में पढ़े तथा मंडल कमीशन लागू होने के बाद यह शौक और बढ़ता गया क्योंकि बिना अच्छी पढ़ाई के तथा विशेष रूप से बिना अंग्रेजी के ज्ञान के कोई गुंजाइश नहीं है- यह धारणा ब्राह्मणों को देहात से उठा करURBAN तथा SEMI-URBAN क्षेत्रों में धकेलने लगी। इसी बीच टेंडर, कोटा, परमिट, सप्लाई तथा अन्य बाहुबल पर आधारित व्यापारिक जगत का उदय हुआ जिससे क्षत्रिय समाज के लोग तथा देहात में बचे हुए बाहुबली प्रकृति के ब्राह्मण भी शहर की ओर भागने लगे। #जब_काशीराम_तथा_मुलायम_मिले_थे_तब इस प्रक्रिया की शुरुआत थी तथा धीरे-धीरे यादव और कुर्मी तथा लोध ब्राह्मणों और क्षत्रियों का स्थान देहात में ले रहे थे। सवर्णों ने जो जमीन बेची उस का अधिकांश भाग यादव, कुर्मी तथा लोध खरीदे। जिन सवर्णों ने अपनी जमीन नहीं भी बेची वह भी मजदूरी के बढ़ जाने तथा खेती के अलाभकर हो जाने के कारण बड़ी संख्या में अपनी जमीन पिछड़ों को बटाई पर दे डाले। #अनुसूचित_जाति_अत्याचार_निवारण_अधिनियम_के_डर_से सवर्णों ने अपनी जमीन प्रायः ना तो दलितों को बेची और ना ही उनको बटाई पर दिया। भविष्य में कोई विवाद होने पर यादव की लाठी का मुकाबला तो कोई सवर्ण कर सकता था तथा कमजोर पड़ने पर किसी दूसरे बाहुबली सवर्ण को रिश्तेदारी या मित्रता जोड़कर अथवा पैसा देकर किराए पर बुला सकता था किंतु दलित अधिनियम की उसके पास कोई काट नहीं थी।
इलाहाबाद में दलित महिला का अपमान इस सीमा तक हुआ कि जिला स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों तथा तमाम छोटे कर्मचारियों का निलंबन करना पड़ा तथा जिन ठाकुरो को फिल्मों में अत्याचार करते दिखाया जाता था इस बार वे अत्याचार करने वाले लोग ठाकुर नहीं थे बल्कि पिछड़े वर्ग के थे जो कि सिंह की उपाधि लगाकर मांस और खून ढूंढ रहे थे तथा उनके सबसे आसान टारगेट दलित वर्ग के लोग थे। इसी बीच लखनऊ तथा तमाम महत्वपूर्ण जगहों पर काशीराम तथा मायावती के सीधे संपर्क में रहने वाले दलितों तक को पिछड़ों ने स्थानीय चुनाव में नामांकन नहीं करने दिया। एक उलझन भरी चिंतन में दलित समाज फस गया तथा उसे लगा कि वह गलत जगह फस गया।
#2_इसी_बीच_मायावती_ने काशीराम का आशीर्वाद प्राप्त कर तथा अवसर की प्रतीक्षा कर रहे लालजी टंडन को राखी बांधकर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की ठानी तथा इसके बाद #State_Guest_House_कांड_में_क्या_हुआ- यह किसी से छिपा नहीं है।
मायावती ने दोस्ती सपा से भी की और भाजपा से भी की तथा दोनों से दोस्ती तोड़ी किंतु भाजपा से दोस्ती तोड़ने के बाद उन्हें कोई आक्रमण नहीं झेलना पड़ा तथा सपा से दोस्ती तोड़ने के बाद State Guest House कांड की त्रासदी झेलनी पड़ी। जब कृष्ण दुर्योधन से शांति वार्ता करने चले तो द्रोपदी ने कृष्ण से कहा-
तेरी कृष्णा के केशों को
दुःशासन दुष्ट ने केशव
भरी महफिल में खींचा है
इसे तुम भूल मत जाना
लगातार यही संदेश मायावती अपने दलित समाज को देती रही हैं। इसके अलावा हर गांव में लगभग पिछड़ा वर्ग क्षत्रियों का स्थान ले चुका है तथा क्षत्रियों के जमाने में शरणागत हो जाने पर तो शरण भी मिल जाती थी किंतु अब हिंदी सिनेमा में ठाकुरों के जिस काल्पनिक अत्याचार का चित्रण राजशाही को दिखाने के लिए किया गया है उसका अभिनय अपनी प्रभुता प्रदर्शित करने के लिए दबंग पिछड़े वर्ग के बाहुबली करने लगे हैं। इसी का फल है कि #जितने_मुकदमे_पिछड़ों_के_विरुद्ध_हरिजन_एक्ट_के_कायम_हैं_उतने_मुकदमे_सवर्णों_के_विरुद्ध_नहीं_है
लिहाजा अपने अपमान को भूलकर मायावती समझौता भले ही कर लें लेकिन गांव गांव में जो संघर्ष चालू हो चुका है उसका समापन अब ना तो अखिलेश के हाथ में है और ना ही मायावती के। जिस दिन मायावती और अखिलेश में समझौता हुआ उस दिन यह दोनों पार्टियां उत्तर प्रदेश से गायब हो जाएंगी जैसे कि कांग्रेस गायब हो गई है। #यदि_कांग्रेस_ने_बारी_बारी_से_सपा_और_बसपा_से_समझौता_न_किया_होता_तो_आज_वह_उत्तर_प्रदेश_की_राजनीति_से गायब न होती। समझौता होने की स्थिति में जो सीटें कांग्रेस ने पहले मायावती के लिए तथा बाद में अखिलेश के लिए छोड़ दी उनके अधिकांश कार्यकर्ता निराश होकर भाजपा में चले गए। जो सीट अखिलेश के लिए छूटेगी वहां पर बसपा का कार्यकर्ता क्या केवल हाथी की सेवा करेगा तथा मलाई अखिलेश का नेता खाएगा?
इसी प्रकार जो सीट मायावती के चेलों के लिए छूटेगी वहां पर क्या अखिलेश का कार्यकर्ता क्या केवल गाय भैंस का चारा पानी करेगा और दूध पीने तथा मलाई खाने की जिम्मेदारी मायावती और उनके गुर्गों को दे देगा?
व्यापक संख्या में सपा तथा बसपा दोनों के आधे नेता और कार्यकर्ता #स्वामी_प्रसाद_मौर्या_बृजेश_पाठक_रीता_बहुगुणा_जोशी_जैसे_महापुरुषों_के_दिखाए_रास्ते_पर_चल_पड़ेंगे तथा आज नहीं तो कल शायद कभी टिकट मिल ही जाए इस उम्मीद में भाजपा में दरी बिछाना चालू कर देंगे तथा RSS में अब हाफ पैंट की जगह फुल पैंट आ गया है अतः सुबह-शाम परेड करने में भी ज्यादा शर्म नहीं आएगी। इससे भाजपा की ताकत में बेतहाशा वृद्धि होगी तथा जो 5 सीटें सपा को तथा 2 सीटें कांग्रेस को मिली थी वह भी भाजपा को चली जाएंगी।
#आखिर_इसका_इलाज_क्या_है?
जैसे बंगाल के ताजे उपचुनाव में मुसलमान ने फैसला कर लिया कि वह केवल एक सेकुलर पार्टी को जिंदा रख सकता है तथा शेष को भाजपा को रोकने के लिए दफन करना पड़ेगा।
सपा, बसपा और कांग्रेस में से किसी एक के साथ यदि मुसलमान चला जाए तो शेष दो का समापन अपने आप हो जाएगा तथा यह दोनों की दोनों समाप्तप्राय पार्टियां भाजपा में एक साथ ACCOMODATE नहीं हो पाएंगे तथा कोई ना कोई एक पार्टी बचेगी जिसमें समाप्त होने वाली दो पार्टियों में से कोई एक समाहित हो जाएगी। भाजपा में #चाहे_शिवपाल_यादव_चले_जाएं_चाहे_अपर्णा_यादव_किंतु_यादव_वोटर_भाजपा_में_नहीं_जाएगा क्योंकि उसका मुख्य मुकाबला गैर यादव OBC से है तथा दोनों को एक ही कोटे में नौकरी पानी है। यदि यादवों को महत्वपूर्ण पदों पर समायोजित किया गया तो बड़ी कठिनाई से भाजपा में लाया हुआ अति पिछड़ा वर्ग भाजपा को छोड़कर और कोई राह पकड़ेगा। इसी प्रकार #यदि_जाटव_समाज_को_भाजपा_ने_महत्व_देने_की_कोशिश_की_तो_गैर_जाटव_समाज_उसे_छोड़_देगा
राजनाथ सिंह फार्मूले ने उत्तर प्रदेश में जो पिछड़े और अति पिछड़े में तथा जाटव और गैर जाटव में खाई पैदा की, वह दिन प्रतिदिन चौड़ी होती चली जा रही है। मान लीजिए कि अगर मुसलमान ने कांग्रेस का विकल्प चुना तो निराश होकर जाटव समाज को कांग्रेस में आने के लिए बाध्य हो जाना पड़ेगा क्योंकि सीटों की संख्या चुनाव लड़ने के लिए सीमित है तथा यही हाल सरकारी नौकरियों का है और गैर जाटव इतना टिकट भाजपा में पाने लगे हैं कि वहां जाटवों का समायोजन सफलतापूर्वक संभव नहीं है। इसी प्रकार अति पिछड़ों के चलते यादवों को राम नरेश यादव बनने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं बचेगा जिस दिन मुसलमान उनका साथ छोड़ देगा। क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में लोध, मौर्या, कुर्मी आदि पहले से भाजपा में समायोजित हैं कि यादवों के लिए अब वहां कोई सम्मानजनक गुंजाइश नहीं है। कोई पूछ सकता है कि जब मैं यह कहता हूं कि सवर्ण वोट सपा में ट्रांसफर नहीं हो सकता तो फिर यादव कांग्रेस में समायोजित कैसे होगा?
उत्तर है कि ब्राह्मण और क्षत्रिय तब तक किसी यादव के नेतृत्व में काम नहीं करना चाहते जब तक कि उनके पास कांग्रेस और भाजपा की वैकल्पिक दुकानें मौजूद हो। किंतु उन पर उत्पीड़नात्मक कार्रवाई भी कोई यादव नहीं कर पाएगा विशेष रुप से उस समय जबकि कांग्रेस या भाजपा की सरकार हो। #यदि_यादव_को_भाजपा_ले_लेगी_तो_अति_पिछड़ा_वर्ग_उस_दशा_में_कांग्रेस_की_शरण_में_आ_जाएगा
चुनाव में सीट दर सीट जहां पर ब्राह्मण प्रत्याशी होगा वहां ब्राह्मण तथा जहां क्षत्रिय प्रत्याशी होगा वहां क्षत्रिय भी कांग्रेस में आ जाएगा क्योंकि इन दोनों समाजों में भाजपा और कांग्रेस दोनों की स्वीकार्यता है तथा कांग्रेस को वोट इसलिए नहीं मिल रहे हैं क्योंकि उसके पास दलितों और मुसलमानों का तथा अन्य पिछड़े का वोट नहीं है और वह सत्ता की दौड़ के बाहर है। इसी प्रकार यदि मुसलमान हाथी में चला गया तो मायावती सत्ता के बेहद करीब पहुंच जाएंगी तथा यदि #उन्होंने_ब्राह्मणों_की_जबान_सतीश_मिश्रा_की_तरह_बंद_नहीं_कर_दी तथा उन्हें टीवी पर बकवास करने की तथा अखबारों में लेख लिखने और बयान देने की तथा मंच पर दहाड़ने की छूट दे दी तथा उनके प्रति उनका उतना भी विनम्र भाव रहा जितना कि जगजीवन राम और महावीर प्रसाद के प्रति नेहरू परिवार का था तो एक अच्छी खासी संख्या में ब्राह्मण पुनः हाथी में लौट आएगा। देवताओं के गुरु यदि बृहस्पति होते हैं तो दैत्यों के शुक्राचार्य तथा दोनों में कोई आपसी विवाद नहीं होता। इस युग में भी इलाहाबाद में करवरिया परिवार के एक सदस्य बसपा में सांसद रहे हैं तो दूसरे सदस्य भाजपा के विधायक रहे हैं। बसपा के इस पतन के काल में भी तथा पर्याप्त सम्मान ना मिलने पर भी आखिर हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय तिवारी, रामवीर उपाध्याय तथा श्याम सुंदर शर्मा जैसे लोगों के क्षेत्र में सीने पर पत्थर रखकर ही सही आखिर ब्राह्मण ने हाथी की ऐसी बटन दबाई कि #कोई_EVM_मशीन_उसका_वोट_गड़बड़_ना_कर_सकी। पुनः यदि अखिलेश का साथ मुसलमान देता है तो उस हालत में सवर्णों में से क्षत्रिय समाज को अच्छी संख्या में अखिलेश खींच सकते हैं बशर्ते वह किसी रामगोपाल यादव को औकात में ला दें तथा वह हर समर्थक को उजाड़ने के चक्कर में ना पड़ जाए। #रामगोपाल_यादव_जैसे_महापुरुष_अखिलेश_के_THINK_TANK_हैं जो बारी-बारी से बेनी वर्मा, आजम खान, राजा भैया, अमनमणि त्रिपाठी तथा अमरसिंह जैसों को पार्टी से बाहर निकालने का आजीवन प्रयास करते रहे।
दलितों में पासी वर्ग भी अच्छी संख्या में उचित माहौल पाने पर तथा सम्मानजनक स्थान पाने पर अखिलेश के साथ आ सकता है क्योंकि क्षत्रियों तथा पासीयों को यादवों की लाठी देखकर डर नहीं लगता तथा वह आवश्यकता पड़ने पर उन से निपट लेने में अपने को सक्षम मानते हैं। ब्राह्मण जब यादवों से खतरा महसूस करता है तो कभी वह अति पिछड़ों और अति दलितों की बांह पकड़कर राजनाथ सिंह फार्मूले की चर्चा में मशगूल हो जाता है तो कभी दुर्वासा ऋषि की तरह अखिलेश जैसों को उनकी औकात बताने के लिए हाथी तक की बटन दबा देता है।
एक प्रश्न उठता है कि#आखिर_बिहार_में_महा_गठबंधन_के_वोट_आपस_में_ट्रांसफर_क्यों_हो_गए?
उत्तर है कि कांग्रेस के सवर्णों को मालूम था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बनना है तथा लालू की हैसियत इतनी ही रहेगी कि बड़ा दल होने के बावजूद जब चाहेंगे नीतीश उनके बेटे के खिलाफ जांच चालू कर देंगे। इसलिए लालू से उसको परहेज नहीं रहा ।पुनः लालू यादव थे तथा नीतीश कुमार कुर्मी तथा यह दोनों उसी प्रकार की लगभग समान जातियां थी जैसे ब्राह्मण और क्षत्रिय। तमाम मतभेदों के बावजूद जैसे ब्राह्मण तथा क्षत्रिय परस्पर दंड प्रणाम का समीकरण बनाए रखते हैं तथा जब आवश्यकता अनुभव करते हैं तो कभी एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं तथा कभी एक दूसरे से ताल ठोकते हैं वही हालात यादवों और कुर्मियों के बीच है। किंतु जैसे महागठबंधन बनने पर कम्युनिस्टों तथा ममता के वोट एक दूसरे को ट्रांसफर नहीं हो सकते और ना ही कांग्रेस अपना वोट ट्रांसफर करा सकती है उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बनने पर कांग्रेस,सपा तथा बसपा आपस में एक दूसरे को वोट ट्रांसफर नहीं करा पाएंगे तथा #भाजपा_के_अच्छे_दिन_आ_जाएंगे