#कहां_चले_जाएं_गुंडे_माफिया?
गुंडे माफिया योगी जी के IAS/IPS रूपी मुकुट में समा गए।
मैंने अपने लेखों में जो भविष्यवाणियां की थी वे
अक्षरशः सही सत्य हो रही है #भाग_5 को कृपया पढ़ें
उपरोक्त लेख में मैंने स्पष्ट लिखा था कि IAS IPS ऑफिसर यह सिद्ध कर लेंगे कि सारी अराजकता RSS के,भाजपा के तथा आनुषंगिक संगठन के लोग फैला रहे हैं। आगरा और सहारनपुर में हुआ उसकी भविष्यवाणी मैंने 2 अप्रैल को ही कर दी थी। आगे आगरा और सहारनपुर जैसी दर्जनों घटनाएं दोहराई जाएंगी- इस का माहौल तैयार करने के लिए IAS-IPSने कमर कस ली है। IAS/IPS जिस किसी की सरकार रहती है उसके मुख्यमंत्री को अथवा प्रधानमंत्री को यह समझाते हैं कि आप तो महान है किंतु आप गंदे लोगों की संगति में पड़े हुए हैं। #इन्हीं_अफसरों_ने_बार_बार_अटल_जी_को_समझाया कि वे सांप्रदायिकता के कुसंग में पड़े हुए हैं तथा उनके जैसे विराट व्यक्तित्व को यह शोभा नहीं देता कि RSS तथा विश्व हिंदू परिषद के लोग उनसे लिपटे रहे। सुनते-सुनते अटलजी इतने विचलित हो गए कि तीन बार प्रधानमंत्री बनने के बावजूद भी एक बार भी उन्होंने राम लला के आगे मत्था तक नहीं टेका और प्रसाद तक नहीं लिया- राम का मंदिर बनवाना तो दूर की कौड़ी ठहरी।
#इन्हीं_IAS_IPS_अफसरों_ने_आडवाणी_जी_को_इतना_बरगला_दिया कि वह अटल जी के पद चिन्हों पर चल कर उनकी भौंड़ी नकल करने लगे कि जिन्ना की मजार पर जाकर ये चादर तक चढ़ा आए ताकि अपने Secular Credentials को प्रदर्शित कर सकें। इतना ही नहीं बोलते बोलते आडवाणी साहब यह भी बोल गए कि जिन्ना गांधीजी से कहीं बेहतर थे। अगर जिन्ना इतने ही महान थे तो आडवाणी साहब को सिंध छोड़कर भारत आने की क्या आवश्यकता थी तथा यदि वह मूर्खता में आ गए तो अब से फिर वापस क्यों नहीं चले जाते?
यही IAS,IPS तथा IFS मोदी जी को इस उपहासास्पद स्थिति में लाकर खड़ा कर दिए हैं कि #महबूबा_मुफ्ती_जी_जब_उस_मोड़_की_याद_दिला_रही_हैं_जहां_अटल_जी_ने_कश्मीर_समस्या_को_छोड़ा_था। मोदी जी पुनः अटल जी के पदचिन्हों पर चलते हुए जवानों के जो हाथ खोल दिए थे उनको फिर से बांध रहे हैं तथा सोशल मीडिया पर यह पंक्तियां वायरल हो रही हैं-
गुंडे माफिया योगी जी के IAS/IPS रूपी मुकुट में समा गए।
मैंने अपने लेखों में जो भविष्यवाणियां की थी वे
अक्षरशः सही सत्य हो रही है #भाग_5 को कृपया पढ़ें
उपरोक्त लेख में मैंने स्पष्ट लिखा था कि IAS IPS ऑफिसर यह सिद्ध कर लेंगे कि सारी अराजकता RSS के,भाजपा के तथा आनुषंगिक संगठन के लोग फैला रहे हैं। आगरा और सहारनपुर में हुआ उसकी भविष्यवाणी मैंने 2 अप्रैल को ही कर दी थी। आगे आगरा और सहारनपुर जैसी दर्जनों घटनाएं दोहराई जाएंगी- इस का माहौल तैयार करने के लिए IAS-IPSने कमर कस ली है। IAS/IPS जिस किसी की सरकार रहती है उसके मुख्यमंत्री को अथवा प्रधानमंत्री को यह समझाते हैं कि आप तो महान है किंतु आप गंदे लोगों की संगति में पड़े हुए हैं। #इन्हीं_अफसरों_ने_बार_बार_अटल_जी_को_समझाया कि वे सांप्रदायिकता के कुसंग में पड़े हुए हैं तथा उनके जैसे विराट व्यक्तित्व को यह शोभा नहीं देता कि RSS तथा विश्व हिंदू परिषद के लोग उनसे लिपटे रहे। सुनते-सुनते अटलजी इतने विचलित हो गए कि तीन बार प्रधानमंत्री बनने के बावजूद भी एक बार भी उन्होंने राम लला के आगे मत्था तक नहीं टेका और प्रसाद तक नहीं लिया- राम का मंदिर बनवाना तो दूर की कौड़ी ठहरी।
#इन्हीं_IAS_IPS_अफसरों_ने_आडवाणी_जी_को_इतना_बरगला_दिया कि वह अटल जी के पद चिन्हों पर चल कर उनकी भौंड़ी नकल करने लगे कि जिन्ना की मजार पर जाकर ये चादर तक चढ़ा आए ताकि अपने Secular Credentials को प्रदर्शित कर सकें। इतना ही नहीं बोलते बोलते आडवाणी साहब यह भी बोल गए कि जिन्ना गांधीजी से कहीं बेहतर थे। अगर जिन्ना इतने ही महान थे तो आडवाणी साहब को सिंध छोड़कर भारत आने की क्या आवश्यकता थी तथा यदि वह मूर्खता में आ गए तो अब से फिर वापस क्यों नहीं चले जाते?
यही IAS,IPS तथा IFS मोदी जी को इस उपहासास्पद स्थिति में लाकर खड़ा कर दिए हैं कि #महबूबा_मुफ्ती_जी_जब_उस_मोड़_की_याद_दिला_रही_हैं_जहां_अटल_जी_ने_कश्मीर_समस्या_को_छोड़ा_था। मोदी जी पुनः अटल जी के पदचिन्हों पर चलते हुए जवानों के जो हाथ खोल दिए थे उनको फिर से बांध रहे हैं तथा सोशल मीडिया पर यह पंक्तियां वायरल हो रही हैं-
गद्दारों से पत्थर खाएं
हम हैं इतने मजबूर नहीं
हम भारत मां के सैनिक हैं
केवल बंधुआ मजदूर नहीं
हम हैं इतने मजबूर नहीं
हम भारत मां के सैनिक हैं
केवल बंधुआ मजदूर नहीं
धारा 96 से लेकर धारा 106 तक IPC में यह स्पष्ट लिखा गया है कि कोई साधारण से साधारण नागरिक तक बिना किसी विशेषाधिकार के किन-किन परिस्थितियों में बल प्रयोग कर सकता है तथा किन परिस्थितियों में किसी के प्राण भी ले सकता है। पुलिस को सेना को अगर कोई भी Extraअधिकार ना दिया जाए तथा जो अधिकार सामान्य नागरिक को प्राप्त हैं उतना भी उपभोग करने दिया जाए तो कहीं भी संयम यह अपेक्षा नहीं करता है कि #Force_का_जवान_देशद्रोह_करने_वालों_के_थप्पड़_खाए_और_कोई_जवाबी_कार्यवाही_ना_करे। कानून एक सामान्य नागरिक तक को यह अधिकार देता है कि वह बल प्रयोग कर सकता है। किंतु इस माहौल में भी जवानों से गांधी का सत्याग्रह करने की शिक्षा दी जा रही है।राष्ट्रकवि दिनकर लिख चुके हैं कि-
"गांधी की रक्षा करने को गांधी से भागो"
अर्थात यदि गांधीवाद को जिंदा रखना है तो गांधीवाद को तत्काल छोड़ दो। ठाकुर गोपाल शरण सिंह नेपाली ने भी 1962 युद्ध के बाद जवाहरलाल नेहरु को लिखा था-
"गांधी की रक्षा करने को गांधी से भागो"
अर्थात यदि गांधीवाद को जिंदा रखना है तो गांधीवाद को तत्काल छोड़ दो। ठाकुर गोपाल शरण सिंह नेपाली ने भी 1962 युद्ध के बाद जवाहरलाल नेहरु को लिखा था-
"ऐ साथी दिल्ली जाना तो,
कहना अपनी सरकार से।
चरखा चलता है हाथों से,
शासन चलता तलवार से।"
कहना अपनी सरकार से।
चरखा चलता है हाथों से,
शासन चलता तलवार से।"
लाल बहादुर शास्त्री जब ताशकंद में वार्ता करने गए थे तो पाञ्चजन्य ने ललकारा था-
"तुम्हे शपथ है घायल मां की औ घायल अखनूर की।"
तथा यह समझाया था कि-
"शांति नहीं आया करती है,
नारों से मनुहारो से।
साक्षी है इतिहास,
उसे लाना पड़ता तलवारों से।"
नारों से मनुहारो से।
साक्षी है इतिहास,
उसे लाना पड़ता तलवारों से।"
उस परंपरा में पैदा हुए तथा पाले पोसे गए मोदी और राजनाथ सिंह को अब समय की भाषा सुहाने लगी तथा #यदि_इसी_तरह_कांग्रेसी_शासन_में_यदि_जवान_पिटे_होते तो ना जाने किन किन विशेषणों से संघ परिवार द्वारा प्रधानमंत्री तथा गृह मंत्री को नवाजा जा रहा होता। यह कलियुग जो सत्ता के मुकुट रूपी IAS IPS में बैठा है उसने मोदी जी को इस बात के लिए सहमत कर लिया कि किसी भी अधिकारी की या कर्मचारी की भ्रष्टाचार की जांच चालू करने से पहले उसके विभागीय अधिकारियों की सहमति ले ली जाए तथा इस तरह के कानून का प्रारूप तैयार हो रहा है। इस कानून की व्यवस्था केवल सीनियर IAS IPS अफसरों के लिए पहले आईएस ने कराई थी तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया था। अब यह सुविधा समस्त सरकारी कर्मचारियों को मिलने जा रही है कि बिना उनके विभागीय अधिकारियों के सहमति के कोई जांच ना कर सके। CBI को जांच के बाद मुकदमा चलाने के लिए बाद में Prosecution Sanction लेना अनिवार्य था तथा बिना नियुक्ति प्राधिकारी के किसी सरकारी नौकर पर मुकदमा नहीं चल सकता। अब यह छूट देने की तैयारी हो रही है कि बिना अनुमति के जांच भी CBI प्रारंभ नहीं कर सकती। पिंजरे में बंद तोते के पर और बुरी तरह कतर दिए गए हैं इसका विस्तृत विवरण साक्ष्य समेत पिछले एक लेख में आ चुका है। और यह भी उस मोदी के हाथों हुआ जिसे राष्ट्र भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक प्रबल योद्धा मानता था और आज भी मानता है।
#इसीIAS_IPS_कैडर_ने_केजरीवाल_को_इतना_दिग्भ्रमित_कर_दिया_कि CBI के आरोपों से लदे हुए IAS अफसर ही उसे अपने सबसे बड़े शुभचिंतक नजर आने लगे तथा अन्ना हजारे का चेला भ्रष्टाचार के आरोपों से लदे हुए अभियुक्तों की पैरवी सरेआम करता नजर आया। परिणाम सबके सामने है। जिस केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव में 70 में 67 सीटें जीतीं थी तथा लोकसभा में 7में 7 सीटें जीतने वाले मोदी के पंजों को उनकी भरी जवानी में मरोड़ दिया था वह #केजरीवाल_एक_अनाथ_बालक_की_तरह_EVM_की_धांधली_का_रोना_रो_रहा_है। इसी IAS-IPSने अखिलेश यादव को समझा दिया था कि सारी बुराइयों की जड़ उनके यादव लोग हैं तथा गोरखपुर में एक यादव वकील के पुट्ठे पर इतना प्रहार हुआ कि लाल-लाल सूजा हुआ उसका फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया तथा कुछ समय बाद भले ही पुलिस अधिकारी सस्पेंड कर दिए गए हो किंतु उन्हें शीघ्र बहाल कर महत्वपूर्ण पद दे दिए गए क्योंकि अखिलेश की समझ में आ गया था कि यादवों की वजह से उनकी छवि धूमिल हो रही है। आज भी कांग्रेस,बसपा तथा भाजपा के तमाम नेता अवैध रूप से जमीन कब्जा किए हुए हैं तथा कई सफेदपोश दलाल तक सैकड़ों एकड़ जमीनें विभिन्न शहरों में कब्जा किए हैं किंतु अखिलेश की छवि को उज्जवल बनाने में जुटा प्रशासन रामपाल यादव विधायक को इस तरह प्रताड़ित किया कि यादव तक सपा को छोड़कर भाजपा में भागने में अपना कल्याण समझे। किसी को विश्वास ना हो तो सोशल मीडिया पर वायरल हुई रामपाल यादव की उस फोटो को खोज कर अखिलेश यादव को दिखा दें तथा उस पर आई हुई सैकड़ो यादवों की टिप्पणियों को पढ़वा दे जो कि दलगत भेद को दरकिनार करके इस बात पर रो रहे थे कि किस प्रकार एक यादव विधायक उकड़ू बैठा हुआ एक दरोगा के चरणों में हाथ जोड़कर कातर स्वर से अपने प्राणों की भिक्षा मांग रहा है। रामपाल यादव का मानमर्दन तो हो गया किंतु #अखिलेश_भी_इसी_लायक_बचे_कि_बुआ_के_साथ_मिलकर_बबुआ_बनकर_ईवीएम_का_रोना_रोएं। आज वही कलियुग संघ परिवार के, मोदी जी के तथा योगी जी के मुकुट में IAS-IPS रूपी कलियुग बनकर घुस गया है तथा उनको बरगला रहा है कि सारी समस्या की जड़ गौ रक्षक हैं, भाजपा के कार्यकर्ता हैं जो सहारनपुर में उपद्रव मचाते हैं तथा आगरा में विश्व हिंदू परिषद से जुड़े लोग हैं जो पुलिस से दुर्व्यवहार करते हैं। आगरा तथा सहारनपुर में जो कुछ भी हुआ उस की भविष्यवाणी मैंने 2 अप्रैल को ही कर दी थी कि IAS-IPS मुख्यमंत्री जी, मोदी जी तथा संघ परिवार को बरगलाकर मानेगा कि सारी समस्या की जड़ उसके कार्यकर्ता हैं तथा वह उनको सुधारें। किसी को यह याद नहीं रहेगा कि #जब_Feel_Good_तथा_India_Shining_के_नारे_पर जनता ने ठुकरा दिया था तथा भाजपा को लंबा वनवास देकर अंधकार के कुएं में डाल दिया था तब इन्हीं कार्यकर्ताओं के कंधे पर चढ़कर आज भाजपा इस लायक बनी है कि कोई IAS या IPS अधिकारी उनके कान फूंके। आज संघ परिवार भी मान रहा है, मोदी जी भी मान रहे हैं कि राजस्थान में या अन्य प्रांतों में जो गौरक्षा के नाम पर बवाल हो रहा है वह अराजक तत्व तथा गुंडे कर रहे हैं जबकि इस बात का कोई ध्यान नहीं दे रहा है कि ठीक है उन्होंने गलत कदम उठाया है और उन पर कार्यवाही होनी चाहिए किंतु आज भी #भाजपा_शासित_राज्यों_में_गायों_की_तस्करी_कैसे_हो_रही_है?
गाय कोई अफीम की पुड़िया नहीं है वह जब ट्रक में जाती है तो दूर से दिखाई देती है। केवल सैय्यदराजा चौराहे पर चंदौली जिले में खड़े होकर एक दिन अपने किसी प्रिय शिष्य से योगी जी दिखवा लें कि नजारा क्या है? सत्य सामने आ जाएगा। किस तरह सड़क पर कटने के लिए लगातार हर शहर में गायों को ढोया जा रहा है तथा हर जिले के कारखास उनसे माहवारी वसूल रहे हैं तथा इस आरोप में किसी भाजपा शासित राज्य में नौकरशाही किसी थानाध्यक्ष तथा क्षेत्राधिकारी को निलंबित नहीं कर रही है और ना ही विभागीय कार्यवाही कर रही है। जिन बिंदुओं पर कार्यकर्ताओं के कोमल मन को दिग्भ्रमित करके उनमें आशा का संचार किया गया कि भाजपा के आने पर गौ हत्या रुकेगी- वह इस दृश्य को देखने के बाद अगर पागल होकर कानून को हाथ में ले लेते हैं तो यह उतना ही निंदनीय है जितना नाथूराम गोडसे का गांधी जी को गोली मार देना तथा इसके लिए दंड भी मिलना चाहिए। किंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी साध्वी तथा साक्षी को जब कोई गोडसे याद आता है तो उनकी आंखे नम हो जाती हैं तथा किसी मोदी को उनका क्लास लेना पड़ता है- क्योंकि गोडसे गाया करता था-
#इसीIAS_IPS_कैडर_ने_केजरीवाल_को_इतना_दिग्भ्रमित_कर_दिया_कि CBI के आरोपों से लदे हुए IAS अफसर ही उसे अपने सबसे बड़े शुभचिंतक नजर आने लगे तथा अन्ना हजारे का चेला भ्रष्टाचार के आरोपों से लदे हुए अभियुक्तों की पैरवी सरेआम करता नजर आया। परिणाम सबके सामने है। जिस केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव में 70 में 67 सीटें जीतीं थी तथा लोकसभा में 7में 7 सीटें जीतने वाले मोदी के पंजों को उनकी भरी जवानी में मरोड़ दिया था वह #केजरीवाल_एक_अनाथ_बालक_की_तरह_EVM_की_धांधली_का_रोना_रो_रहा_है। इसी IAS-IPSने अखिलेश यादव को समझा दिया था कि सारी बुराइयों की जड़ उनके यादव लोग हैं तथा गोरखपुर में एक यादव वकील के पुट्ठे पर इतना प्रहार हुआ कि लाल-लाल सूजा हुआ उसका फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया तथा कुछ समय बाद भले ही पुलिस अधिकारी सस्पेंड कर दिए गए हो किंतु उन्हें शीघ्र बहाल कर महत्वपूर्ण पद दे दिए गए क्योंकि अखिलेश की समझ में आ गया था कि यादवों की वजह से उनकी छवि धूमिल हो रही है। आज भी कांग्रेस,बसपा तथा भाजपा के तमाम नेता अवैध रूप से जमीन कब्जा किए हुए हैं तथा कई सफेदपोश दलाल तक सैकड़ों एकड़ जमीनें विभिन्न शहरों में कब्जा किए हैं किंतु अखिलेश की छवि को उज्जवल बनाने में जुटा प्रशासन रामपाल यादव विधायक को इस तरह प्रताड़ित किया कि यादव तक सपा को छोड़कर भाजपा में भागने में अपना कल्याण समझे। किसी को विश्वास ना हो तो सोशल मीडिया पर वायरल हुई रामपाल यादव की उस फोटो को खोज कर अखिलेश यादव को दिखा दें तथा उस पर आई हुई सैकड़ो यादवों की टिप्पणियों को पढ़वा दे जो कि दलगत भेद को दरकिनार करके इस बात पर रो रहे थे कि किस प्रकार एक यादव विधायक उकड़ू बैठा हुआ एक दरोगा के चरणों में हाथ जोड़कर कातर स्वर से अपने प्राणों की भिक्षा मांग रहा है। रामपाल यादव का मानमर्दन तो हो गया किंतु #अखिलेश_भी_इसी_लायक_बचे_कि_बुआ_के_साथ_मिलकर_बबुआ_बनकर_ईवीएम_का_रोना_रोएं। आज वही कलियुग संघ परिवार के, मोदी जी के तथा योगी जी के मुकुट में IAS-IPS रूपी कलियुग बनकर घुस गया है तथा उनको बरगला रहा है कि सारी समस्या की जड़ गौ रक्षक हैं, भाजपा के कार्यकर्ता हैं जो सहारनपुर में उपद्रव मचाते हैं तथा आगरा में विश्व हिंदू परिषद से जुड़े लोग हैं जो पुलिस से दुर्व्यवहार करते हैं। आगरा तथा सहारनपुर में जो कुछ भी हुआ उस की भविष्यवाणी मैंने 2 अप्रैल को ही कर दी थी कि IAS-IPS मुख्यमंत्री जी, मोदी जी तथा संघ परिवार को बरगलाकर मानेगा कि सारी समस्या की जड़ उसके कार्यकर्ता हैं तथा वह उनको सुधारें। किसी को यह याद नहीं रहेगा कि #जब_Feel_Good_तथा_India_Shining_के_नारे_पर जनता ने ठुकरा दिया था तथा भाजपा को लंबा वनवास देकर अंधकार के कुएं में डाल दिया था तब इन्हीं कार्यकर्ताओं के कंधे पर चढ़कर आज भाजपा इस लायक बनी है कि कोई IAS या IPS अधिकारी उनके कान फूंके। आज संघ परिवार भी मान रहा है, मोदी जी भी मान रहे हैं कि राजस्थान में या अन्य प्रांतों में जो गौरक्षा के नाम पर बवाल हो रहा है वह अराजक तत्व तथा गुंडे कर रहे हैं जबकि इस बात का कोई ध्यान नहीं दे रहा है कि ठीक है उन्होंने गलत कदम उठाया है और उन पर कार्यवाही होनी चाहिए किंतु आज भी #भाजपा_शासित_राज्यों_में_गायों_की_तस्करी_कैसे_हो_रही_है?
गाय कोई अफीम की पुड़िया नहीं है वह जब ट्रक में जाती है तो दूर से दिखाई देती है। केवल सैय्यदराजा चौराहे पर चंदौली जिले में खड़े होकर एक दिन अपने किसी प्रिय शिष्य से योगी जी दिखवा लें कि नजारा क्या है? सत्य सामने आ जाएगा। किस तरह सड़क पर कटने के लिए लगातार हर शहर में गायों को ढोया जा रहा है तथा हर जिले के कारखास उनसे माहवारी वसूल रहे हैं तथा इस आरोप में किसी भाजपा शासित राज्य में नौकरशाही किसी थानाध्यक्ष तथा क्षेत्राधिकारी को निलंबित नहीं कर रही है और ना ही विभागीय कार्यवाही कर रही है। जिन बिंदुओं पर कार्यकर्ताओं के कोमल मन को दिग्भ्रमित करके उनमें आशा का संचार किया गया कि भाजपा के आने पर गौ हत्या रुकेगी- वह इस दृश्य को देखने के बाद अगर पागल होकर कानून को हाथ में ले लेते हैं तो यह उतना ही निंदनीय है जितना नाथूराम गोडसे का गांधी जी को गोली मार देना तथा इसके लिए दंड भी मिलना चाहिए। किंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी साध्वी तथा साक्षी को जब कोई गोडसे याद आता है तो उनकी आंखे नम हो जाती हैं तथा किसी मोदी को उनका क्लास लेना पड़ता है- क्योंकि गोडसे गाया करता था-
"नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे"
चाहे उसका RSS से कोई नाता रहा हो या ना रहा हो। जैसे गोडसे का RSS से कोई नाता नहीं था किंतु वह RSS की विचारधारा और साहित्य से अनुप्राणित था, उसी प्रकार गौ रक्षक जो कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं वे अपराध कर रहे हैं किंतु वे गोडसे हैं वह अंगुलीमाल नहीं है। गोडसे को सजा मिली और कोई भी व्यक्ति उसके कृत्य को समर्थन नहीं देता किंतु आज भी ऐसे लोग हैं जिनके मन में उस का मंदिर बनवाने की श्रद्धा जगती है तथा यदि मंदिर बन जाए तो साक्षी जैसे कितने सांसद उस में मत्था टेकने भी पहुंच जाएंगे।
आज यह कहा जा रहा है कि सहारनपुर की घटना में सांसद ने कानून को अपने हाथ में ले लिया। किंतु क्या गहराई से कोई इस बात की भी समीक्षा करेगा कि जब पहले से मालूम था कि Permission नहीं है तथा वहां पर लोग इकट्ठे होंगे तो प्रशासन ने इसको तत्काल Review क्यों नहीं किया?
यदि अंतिम निर्णय यही था कि जलूस नहीं निकलेगा तो वहां पर धारा 144 लगाकर पर्याप्त Force क्यों नहीं भेजी गई तथा उसे यह निर्देश क्यों नहीं दिए गए कि किसी भी हालत में 4 से अधिक आदमी उस स्थल पर एकत्रित ना होने पाए तथा ज्यों ही पांचवा आदमी आ जाए धारा 188 IPC तथा 151 सीआरपीसी के अंतर्गत तुरंत कार्यवाही क्यों नही की जा सकी?
इस रूप में इतनी व्यापक तैयारी है- इसकी क्या अभिसूचना विभाग ने या स्थानीय LIU ने कोई आख्या दी और यदि दी तो उसपर क्या कार्यवाही हुई?
इसके अलावा निम्नलिखित बिंदुओं पर क्या आख्या मंगा कर उसकी समीक्षा नहीं की जानी चाहिए। इस पर सेवारत तथा सेवानिवृत्त अधिकारी या विभिन्न राजनेताओं से टिप्पणी आमंत्रित है
आज यह कहा जा रहा है कि सहारनपुर की घटना में सांसद ने कानून को अपने हाथ में ले लिया। किंतु क्या गहराई से कोई इस बात की भी समीक्षा करेगा कि जब पहले से मालूम था कि Permission नहीं है तथा वहां पर लोग इकट्ठे होंगे तो प्रशासन ने इसको तत्काल Review क्यों नहीं किया?
यदि अंतिम निर्णय यही था कि जलूस नहीं निकलेगा तो वहां पर धारा 144 लगाकर पर्याप्त Force क्यों नहीं भेजी गई तथा उसे यह निर्देश क्यों नहीं दिए गए कि किसी भी हालत में 4 से अधिक आदमी उस स्थल पर एकत्रित ना होने पाए तथा ज्यों ही पांचवा आदमी आ जाए धारा 188 IPC तथा 151 सीआरपीसी के अंतर्गत तुरंत कार्यवाही क्यों नही की जा सकी?
इस रूप में इतनी व्यापक तैयारी है- इसकी क्या अभिसूचना विभाग ने या स्थानीय LIU ने कोई आख्या दी और यदि दी तो उसपर क्या कार्यवाही हुई?
इसके अलावा निम्नलिखित बिंदुओं पर क्या आख्या मंगा कर उसकी समीक्षा नहीं की जानी चाहिए। इस पर सेवारत तथा सेवानिवृत्त अधिकारी या विभिन्न राजनेताओं से टिप्पणी आमंत्रित है
#1_जब SSP सहारनपुर के बंगले में तोड़फोड़ की गई तो उस समय यदि DM और SP घटनास्थल पर थे तो CO City और City Magistrate कहां थे?
यदि अपरिहार्य परिस्थितियों में CO City और City Magistrate को भीSSP और DM के साथ रहना पड़ा हो तो सारी force और सारे मजिस्ट्रेटों को एक जगह Close करने से पहले कम से कम Additional SP, ADM अथवा कोई CO Office या Extra Magistrate टाइप के अधिकारी को कम से कम सहारनपुर जैसे संवेदनशील जिले में अलर्ट कर देना चाहिए था की कोई दुर्घटना हो तो वहां अटेंड कर सके। जिस समय SSP बंगले में तांडव चल रहा था उस समय कौन मजिस्ट्रेट, कौन राजपत्रित पुलिस अधिकारी वहां पहुंचा तथा कितने बजे पहुंचा?
यदि अपरिहार्य परिस्थितियों में CO City और City Magistrate को भीSSP और DM के साथ रहना पड़ा हो तो सारी force और सारे मजिस्ट्रेटों को एक जगह Close करने से पहले कम से कम Additional SP, ADM अथवा कोई CO Office या Extra Magistrate टाइप के अधिकारी को कम से कम सहारनपुर जैसे संवेदनशील जिले में अलर्ट कर देना चाहिए था की कोई दुर्घटना हो तो वहां अटेंड कर सके। जिस समय SSP बंगले में तांडव चल रहा था उस समय कौन मजिस्ट्रेट, कौन राजपत्रित पुलिस अधिकारी वहां पहुंचा तथा कितने बजे पहुंचा?
#2_SSP के बंगले पर सुरक्षा गार्ड होती है तथा एक संतरी हरदम राइफल लिए हुए संतरी ड्यूटी पर तैनात रहता है। अगर SSP बंगले के अंदर नहीं है तो उनके रिश्तेदारों तथा उनके परिवार के व्यक्तिगत पारिवारिक मित्रों के अलावा किसी अन्य आदमी को बंगले के अंदर घुसने की अनुमति कैसे मिली? क्या भीड़ धक्कामुक्की करके बलपूर्वक घुसी तथा ऐसी स्थिति में संतरी ने अपने मोबाइल से Police Line के RI तथा Inspector कोतवाली और CO City और CO Line को क्यों नहीं बताया तथा उन्हें अधिकतम फोर्स लेकर आने को क्यों नहीं कहा गया?
#3_अगर संतरी को धक्के देकर तथा उसके आदेश का उल्लंघन कर भीड़ घुसी होती तो संतरी का तुरंत Actionमें ना आना तथा सर्व संबंधित को तत्काल आपातकालिक संदेश ना देना क्या अपने कर्तव्य की उपेक्षा नहीं है?
क्या Guard Commander तथा guard के अन्य सदस्य मौके पर थे भी या नहीं और यदि थे तो क्या कर रहे थे? उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था की Checking की गई तो दर्जनों कर्मचारी Duty से अनुपस्थित मिले तथा किसी की भी रपट गैरहाजरी Checking के पहले GD में नहीं लिखी गयी है।किसी अधिकारी से इस बात पर जवाब तलब नहीं हुआ कि पिछले एक महीने में अधिकारियों की Checking में कितने बार सुरक्षा कर्मी Duty से गायब पाये गए तथा उन्हें क्या दंड दिया गया?
आज पूरे उत्तर प्रदेश में किसी भी Guard की अथवा PAC Post की Checking करा ली जाए तो बड़ी संख्या में लोगों की GD में उपस्थिति होगी तथा मौके पर वे उपस्थित नहीं होंगे। लंबा पैसा दे कर कर्मचारी अपने को GD में मौजूद तथा मौके से गैरहाजिर रखते हैं। ऐसे ही अवांछनीय लोग राहजनी, हत्या और बलात्कार में लिप्त होने के बावजूद भी प्रायः गिरफ्तार नहीं हो पाते क्योंकि यदि उनकी मौके पर गिरफ्तारी नहीं हुई तो बाद में उनके पास यह सुरक्षा कवच होता है कि जब हत्या, बलात्कार या डकैती की गई तो मैं PAC या पुलिस लाइन में या किसी पोस्ट पर ड्यूटी पर तैनात था। जब आतंकवाद के इस युग में मुख्यमंत्री के सामने सुरक्षा का संकट हो तथा उनकी Duty से भी GD में मौजूद रहकर यथार्थ में काफी संख्या में कर्मचारी गैर हाजिर रह सकते हैं तथा कोई राजपत्रित अधिकारी इस के उपलक्ष्य में निलंबित नहीं होता है तो कहां से यह सुनिश्चित होगा कि जिन कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है वह अपने ड्यूटी पर उपस्थित रहें?
क्या Guard Commander तथा guard के अन्य सदस्य मौके पर थे भी या नहीं और यदि थे तो क्या कर रहे थे? उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था की Checking की गई तो दर्जनों कर्मचारी Duty से अनुपस्थित मिले तथा किसी की भी रपट गैरहाजरी Checking के पहले GD में नहीं लिखी गयी है।किसी अधिकारी से इस बात पर जवाब तलब नहीं हुआ कि पिछले एक महीने में अधिकारियों की Checking में कितने बार सुरक्षा कर्मी Duty से गायब पाये गए तथा उन्हें क्या दंड दिया गया?
आज पूरे उत्तर प्रदेश में किसी भी Guard की अथवा PAC Post की Checking करा ली जाए तो बड़ी संख्या में लोगों की GD में उपस्थिति होगी तथा मौके पर वे उपस्थित नहीं होंगे। लंबा पैसा दे कर कर्मचारी अपने को GD में मौजूद तथा मौके से गैरहाजिर रखते हैं। ऐसे ही अवांछनीय लोग राहजनी, हत्या और बलात्कार में लिप्त होने के बावजूद भी प्रायः गिरफ्तार नहीं हो पाते क्योंकि यदि उनकी मौके पर गिरफ्तारी नहीं हुई तो बाद में उनके पास यह सुरक्षा कवच होता है कि जब हत्या, बलात्कार या डकैती की गई तो मैं PAC या पुलिस लाइन में या किसी पोस्ट पर ड्यूटी पर तैनात था। जब आतंकवाद के इस युग में मुख्यमंत्री के सामने सुरक्षा का संकट हो तथा उनकी Duty से भी GD में मौजूद रहकर यथार्थ में काफी संख्या में कर्मचारी गैर हाजिर रह सकते हैं तथा कोई राजपत्रित अधिकारी इस के उपलक्ष्य में निलंबित नहीं होता है तो कहां से यह सुनिश्चित होगा कि जिन कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है वह अपने ड्यूटी पर उपस्थित रहें?
#4_चाहे_प्रतापगढ़_का CO हत्याकांड हो या मथुरा का अपर पुलिस अधीक्षक हत्याकांड अथवा फुटकर सिपाहियों के हत्या कांड- प्रायः देखा गया है कि जब किसी कर्मचारी, अधिकारी पर हमला होता है तो शेष कर्मचारी या तो भाग खड़े होते हैं अथवा मौके पर मूकदर्शक बनकर खड़े होते हैं। क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं तय होनी चाहिए?
सांसद के ऊपर जो आरोप लगाए जा रहे हैं वह यदि सही है तो पुलिस अधीक्षक के बंगले पर गोपनीय कार्यालय के नाम पर जो दर्जनों कर्मचारी संबद्ध रहते हैं वह क्या कर रहे थे? CRPCके द्वारा जितनी शक्तियां किसीDM या SDM के पास है उतनी किसी भी निरीक्षक या थानाध्यक्ष या समकक्ष के पास हैं, यदि कोई मजिस्ट्रेट मौके पर उपलब्ध नहीं है। क्या मौके पर उपस्थित मजिस्ट्रेट अथवा उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी ने बंगले पर आई हुई भीड़ को विसर्जित होने का आदेश दिया? ना मानने पर लाठीचार्ज तथा आवश्यकतानुसार गोली चार्ज भी कराने की क्षमता किसी निरीक्षक या थानाध्यक्ष में होती है। मजिस्ट्रेट के परमिशन की आवश्यकता तभी होती है जब वह मौजूद हो। मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति में उपनिरीक्षक ही DM है- यह कानूनी स्थिति है।
सांसद के ऊपर जो आरोप लगाए जा रहे हैं वह यदि सही है तो पुलिस अधीक्षक के बंगले पर गोपनीय कार्यालय के नाम पर जो दर्जनों कर्मचारी संबद्ध रहते हैं वह क्या कर रहे थे? CRPCके द्वारा जितनी शक्तियां किसीDM या SDM के पास है उतनी किसी भी निरीक्षक या थानाध्यक्ष या समकक्ष के पास हैं, यदि कोई मजिस्ट्रेट मौके पर उपलब्ध नहीं है। क्या मौके पर उपस्थित मजिस्ट्रेट अथवा उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी ने बंगले पर आई हुई भीड़ को विसर्जित होने का आदेश दिया? ना मानने पर लाठीचार्ज तथा आवश्यकतानुसार गोली चार्ज भी कराने की क्षमता किसी निरीक्षक या थानाध्यक्ष में होती है। मजिस्ट्रेट के परमिशन की आवश्यकता तभी होती है जब वह मौजूद हो। मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति में उपनिरीक्षक ही DM है- यह कानूनी स्थिति है।
#5_क्या_सहारनपुर_जैसे जिले में Force की कमी है? सांप्रदायिक दंगों के संभावना के चलते सहारनपुर बेल्ट में परमानेंट रुप से स्थानीय पुलिस के अलावा PAC भारी संख्या में मौजूद रहती है। क्याPACबुलाई गई? क्या सूचना पर तत्काल ना पहुंचने के आरोप में किसी मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी को निलंबित किया गया?
#6_अगर सूचना नहीं दी गई तो Steno, Reader,Guard Commander तथा अन्य स्टाफ को सूचना ना देने के लिए निलंबित किया गया?
#7_क्या R.I.और C.O. Line को निलंबित किया गया कि वह मौके पर क्यों नहीं पहुंचे और पहुंचे तो प्रभावी कार्यवाही क्यों नहीं की?
#8_SSP के परिवार के पास तक या घर के अंदर तक अराजकतत्व कैसे पहुंच गए? क्या इसके लिए कायरता(Cowardice) के आरोप में मौके पर उपस्थित समस्त पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों पर वैधानिक तथा विभागीय कार्यवाही नहीं करनी चाहिए?
#9_हम अपने घर को चुस्त-दुरुस्त ना रखें तथा बाहर वालों को गाली दें और राजनीतिक हस्तक्षेप की बात करें- यह उचित नहीं है। Julius Caesar ने Shakespeare की इसी नाम की पुस्तक में कहा है कि-
"Fault, dear Brutus, lies not in our stars, but ourselves
अर्थात हे प्यारे बूट्स गलती हमारी तकदीर कि नहीं है बल्कि हमारी है"
जिन लोगों ने विभिन्न मौकों पर कायरता दिखाई है उनके खिलाफ उनके उच्चाधिकारियों ने कार्यवाही क्यों नहीं की?
"Fault, dear Brutus, lies not in our stars, but ourselves
अर्थात हे प्यारे बूट्स गलती हमारी तकदीर कि नहीं है बल्कि हमारी है"
जिन लोगों ने विभिन्न मौकों पर कायरता दिखाई है उनके खिलाफ उनके उच्चाधिकारियों ने कार्यवाही क्यों नहीं की?
#10_कहीं पर DM शांति व्यवस्था के नाम पर रोक लगा कर फिर छूट दे देते हैं तथा कहीं पर अकड़ जाते हैं। अभी TV और अखबार में सब लोगों ने पढ़ा था कि गोरखपुर में पुलिस छापे के विरोध में कोई मीटिंग नहीं होगी तथा जलूस नहीं निकलेगा किंतु बाद में पुलिस पर्याप्त संख्या में मौजूद रहकर उसको समझा-बुझाकर शांतिपूर्वक संपन्न कराई। क्या सहारनपुर में DM किसी अन्य स्थान पर कोई मीटिंग या यात्रा के लिए सांसद से वार्ता नहीं कर सकते थे अथवा यदि परिस्थितियां अनुमति देती तो अपने निर्णय का Review नहीं कर सकते थे? मैं यह नहीं कह रहा कि विरोध प्रदर्शन के सामने अथवा सत्ता पक्ष के अहंकार के सामने झुक जाना चाहिए लेकिन पहले अकड़ना और बाद में दबक जाना एक निहायत अपरिपक्वता का द्योतक है। या तो प्रशासन को जहां गुंजाइश हो लचीला होकर मामले को सुलझा लेना चाहिए अन्यथा जहां अकड़ना आवश्यक हो तथा अपरिहार्य हो वहां सर्व संबंधित को पूर्व सूचना देकर कानून का गंभीरता से पालन कराना चाहिए।
#11क्या वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सहारनपुर के यहां कोई सिपाही दरोगा या कलर्क नहीं था जो सीसीटीवी कैमरे के तोड़ देने के बावजूद छिपकर किसी गुप्त स्थान से उनकी फोटो खींच लेता? बलात्कार और डकैती की पीड़ित महिलाएं तक मोबाइल फोन की क्लिपिंग आज के युग में पेश कर रही हैं तथा यदि उपद्रवियों के चेहरों को चिन्हित करने के लिए कोई फोटो तक नहीं खींच पाया और यदि खींच पाया तो उन चेहरों को अंदाजने की कोशिश की जाए जोकि SSP के घर के अंदर के उस portion की तरफ घुसे थे जिस तरफ उनका परिवार रहता था। यह चेहरे किसके हैं? अपने 40 वर्ष के पुलिस सेवा के अनुभव के आधार पर यह मेरा अनुमान है कि यह चेहरे या तो किसी विपक्षी दल के लोगों के होंगे जो कि आंदोलन को बदनाम करने के लिए भीड़ में घुस गए होंगे अथवा एक ही सीट पर टिकट के कई दावेदार होते हैं तथा जिसको टिकट नहीं मिलता है उसके चेले किसी सांसद या विधायक को झटका देने की कोशिश में लगे रहते हैं तथा यह चेहरे या तो किसी विपक्षी दल के लोगों के अथवा सत्ता पक्ष के किसी विपक्षी गुट के हो सकते हैं। पुलिस से व्यक्तिगत रुप से नाराज कुछ असामाजिक तत्व भी ऐसी हरकत कर सकते हैं। जब सड़ी हुई लाश की विवेचना करने में GRP सक्षम होती है तथा वह निष्कर्ष निकाल लेती है कि संदूक में भरकर यह अज्ञात लाश कहां लादी गई, किसकी है तथा किसने मारा और क्यों मारा तो जिला पुलिस में कम से कम इतना दम होना चाहिए कि मुखबिरों से तथा अपने सामाजिक सूत्रों से भीड़ में तमाम लोगों के गोपनीय मित्रों से यह जान सकें कि वह कौन तत्व थे जोकि वास्तव में SSP के बंगले के अंदर के कमरों की ओर घुसने का प्रयास किए थे तथा पुलिस को प्रतिष्ठा का सवाल बना कर उनके ऊपर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। उस दिन मौके पर जो लोग कार्यवाही सुनिश्चित नहीं कर पाए उनकी कायरता पर मुझे दुख है तथा ऐसे कर्मचारियों तथा अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए। जो लोग अंदर के कमरों के ओर घुसने का प्रयास न किए हो उनके विरुद्ध तोड़फोड़ की तथा हिंसा की IPC की सामान्य धाराओं के अंतर्गत कार्यवाही होनी चाहिए। मेरा अंतर्मन अभी भी यह मानने को तैयार नहीं हो रहा है कि कोई सांसद अपने अनुयायियों को किसी SSP के परिवार पर हमला करने के लिए उकसाएगा। फिर भी दुनिया में कुछ असंभव भी नहीं है तथा जब मौके पर दुर्भाग्यवश कोई कार्यवाही नहीं हो पाई तो बिना किसी Delay के Mens Rea के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए नीर-क्षीर विवेक के साथ उत्तरदायित्व का निर्धारण करते हुए कार्यवाही सुनिश्चित की जानी चाहिए।
यहां मैं पुराने युग की दो घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन कर रहा हूं कि किस प्रकार निर्दोष लोग भयंकर अपराधों में फस जाते हैं।
यहां मैं पुराने युग की दो घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन कर रहा हूं कि किस प्रकार निर्दोष लोग भयंकर अपराधों में फस जाते हैं।
#1_बदायूं_में_जब_अखिलेश का शासन था तो दो एक-जाति-विशेष की महिलाओं के साथ बलात्कार करके उनकी हत्या कर दी गई तथा उनकी लाश को सड़क के किनारे पेड़ में टांग दिया गया। लगभग सारे अधिकारी यादव थे तथा यादव मुलजिमों पर न केवल आरोप लग रहा था बल्कि मीडिया ट्रायल से घबराकर सरकार ने इतनी सख्ती की कि तथाकथित सारे यादव अपराधी जेल में ठूस दिए गए। चर्चा के दौरान मुझे तब भी यह लगा था कि घटनाक्रम कुछ और हुआ होगा। यादव सरकार में लगभग सारे अधिकारी यादव है तथा जिले के अधिकांश नेता यादव हैं तो उस समय कोई यादव अपराधी एक बार बलात्कार कर सकता है, आवश्यकता पड़ने पर हत्या भी कर सकता है किंतु यह मेरी समझ से बाहर था कि किन परिस्थितियों में कोई यादव अपराधी उस लाश को घसीट कर सड़क तक लाएगा तथा कपड़ों को अस्त-व्यस्त करके उसे उल्टा पेड़ पर लटकाएगा?
यह कहानी मेरे गले के नीचे नहीं उतर रही थी तथा कई जगह मुखरता से मैंने यह बात रखी भी थी। इस मामले में जब CBI जांच हुई तो तथ्य कुछ और ही निकले तथा दिल्ली में सपा की सरकार ना होने के बावजूद भी सारे यादवगण निर्दोष पाए गए।
#2_एक_बार_जब_मुलायम_सिंह_मुख्यमंत्री थे तो नई उम्र के बच्चों के साथSodomy करके उनकी हत्या कर दी जाती थी तथा VVIP इलाके में किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के कार्यालय में अथवा निवास में उनकी लाश फेंक दी जाती थी। इसमें तरह तरह के लोगों पर शंकाएं व्यक्त की गई तथा एक दिन गहन छानबीन के बाद एक प्रतिष्ठित नेता का नाम दबी जुबान से कुछ अखबारों में निकला तथा उसके अगले दिन से आज तक कोई ऐसी घटना घटित नहीं हुई। मैं उस राजनेता की भूमिका पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा किंतु एकाएक घटनाएं बंद हो गई तथा प्रमाणित रूप से विवेचना का परिणाम भी समाचार पत्रों में सामने नहीं आया।
इसी प्रकार की किसी भूमिका की संभावना सहारनपुर तथा आगरा केस में भी हो सकती है। सत्य वही नहीं होता है जो आंखों से दिखाई देता है तथा कानों से सुनाई देता है। इससे हटकर भी काफी चीजें सत्य होती हैं। एक बार भवभूति 12 वर्ष तक तपस्या करके अपने घर लौटे तो घर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था तथा उनके धक्का देने पर खुल गया और वह सीधे अपने शयनकक्ष में पहुंच गए जहां दिया जल रहा था तथा उन्होंने देखा कि उनकी प्रौढ़ पत्नी के साथ एक नौजवान एक ही बिस्तर पर आधी रात को सोया हुआ है। भवभूति का खून खौल उठा तथा उन्होंने उस नौजवान को मारने के लिए कमरे में टंगी हुई तलवार उठा ली तथा जब तक वह तलवार चलाते तब तक संयोग से उनके पत्नी की नींद खुल गई तथा उन्होंने जोर से उस युवक से कहा-
" #जागो_बेटा_तुम्हारे_पिता_आ_गए"
भवभूति बहुत लज्जित हुए तथा उन्होंने तलवार फिर खूंटी में टांग दी। इसके उपरांत उन्होंने कविता लिखी-
सहसा विदधीत न क्रियाम्।
अविवेक: परमापदाम् पदम्।।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं।
गुण लुब्धा: स्वयमेव सम्पदः।।
यह कहानी मेरे गले के नीचे नहीं उतर रही थी तथा कई जगह मुखरता से मैंने यह बात रखी भी थी। इस मामले में जब CBI जांच हुई तो तथ्य कुछ और ही निकले तथा दिल्ली में सपा की सरकार ना होने के बावजूद भी सारे यादवगण निर्दोष पाए गए।
#2_एक_बार_जब_मुलायम_सिंह_मुख्यमंत्री थे तो नई उम्र के बच्चों के साथSodomy करके उनकी हत्या कर दी जाती थी तथा VVIP इलाके में किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के कार्यालय में अथवा निवास में उनकी लाश फेंक दी जाती थी। इसमें तरह तरह के लोगों पर शंकाएं व्यक्त की गई तथा एक दिन गहन छानबीन के बाद एक प्रतिष्ठित नेता का नाम दबी जुबान से कुछ अखबारों में निकला तथा उसके अगले दिन से आज तक कोई ऐसी घटना घटित नहीं हुई। मैं उस राजनेता की भूमिका पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा किंतु एकाएक घटनाएं बंद हो गई तथा प्रमाणित रूप से विवेचना का परिणाम भी समाचार पत्रों में सामने नहीं आया।
इसी प्रकार की किसी भूमिका की संभावना सहारनपुर तथा आगरा केस में भी हो सकती है। सत्य वही नहीं होता है जो आंखों से दिखाई देता है तथा कानों से सुनाई देता है। इससे हटकर भी काफी चीजें सत्य होती हैं। एक बार भवभूति 12 वर्ष तक तपस्या करके अपने घर लौटे तो घर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था तथा उनके धक्का देने पर खुल गया और वह सीधे अपने शयनकक्ष में पहुंच गए जहां दिया जल रहा था तथा उन्होंने देखा कि उनकी प्रौढ़ पत्नी के साथ एक नौजवान एक ही बिस्तर पर आधी रात को सोया हुआ है। भवभूति का खून खौल उठा तथा उन्होंने उस नौजवान को मारने के लिए कमरे में टंगी हुई तलवार उठा ली तथा जब तक वह तलवार चलाते तब तक संयोग से उनके पत्नी की नींद खुल गई तथा उन्होंने जोर से उस युवक से कहा-
" #जागो_बेटा_तुम्हारे_पिता_आ_गए"
भवभूति बहुत लज्जित हुए तथा उन्होंने तलवार फिर खूंटी में टांग दी। इसके उपरांत उन्होंने कविता लिखी-
सहसा विदधीत न क्रियाम्।
अविवेक: परमापदाम् पदम्।।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं।
गुण लुब्धा: स्वयमेव सम्पदः।।
अर्थात अकस्मात् कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए क्योंकि अविवेक सारी विपत्तियों की जड़ है। विमर्श करके कार्य करने वालों के गुणों पर लुब्ध होकर सारी संपत्तियां उनका वरण कर लेती हैं।
#इस_समय_सहारनपुर_के_SSP_स्वयं_में_पुलिस_विभाग_के_एक_माने_हुए_हस्ताक्षर_हैं। #पूरा_पुलिस_विभाग_उन_पर_गर्व_करता_है तथा संयोग से #डीजीपी_भी_अपने_पूरे_जीवनकाल_में_अपनी_न्यायप्रियता_सत्यनिष्ठा_कर्मठता_तथा_सिद्धांतों_के_प्रति_समर्पण के लिए ना केवल विख्यात रहे हैं बल्कि उनका समर्पण इस सीमा तक रहा है कि यह भी कहा जा सकता है कि#वह_न्याय_करने_के_लिए_कुख्यात_होने_की_सीमा_तक_जा_सकते_हैं। अतः इन दोनों व्यक्तियों से अनुरोध है कि वह इस संवेदनशील मामले में बिना कोई देरी किए पूर्ण तत्परता से दूध का दूध तथा पानी का पानी कर दें तथा किसी प्रकार के आवेश या पूर्वाग्रह या कानाफूसी करने वालों के चक्कर में न पड़ कर गहराई तक जाकर सत्य का पता लगाएं और विमर्श करके आगरा तथा कानपुर दोनों ही मामलों में न्याय सुनिश्चित करें। वह यह भी देख लें कि पुलिस का मनोबल ना गिरे किंतु जितनी जिसकी गलती हो गलतफहमी में उससे अधिक दंड भी उसको ना मिले। संघपरिवार तथा भाजपा परिवार का भी यह कर्तव्य है कि वह कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी को रोके किंतु यदि कार्यकर्ताओं पर पीत पत्रकारिता में अथवा मीडिया ट्रायल में अथवा सत्तादल के कार्यकर्ताओं में संघर्ष का वातावरण पैदा करने वाली कार्य खास रुपी मंथराओं के जाल में ना फसे तथा यदि कोई कार्यकर्ता निर्दोष हो तो वह सजा न पाए तथा यदि दोषी हो तो जितना दोषी हो उतना ही सजा पाए तथा ककड़ी का चोर कटार से ना मारा जाए। गौरक्षकों की गुंडागर्दी की बात मोदी जी और मोहन भागवत जी भी कर चुके हैं किंतु इतनी ही कडी बात उन्हें उन लोगों के बारे में भी करनी होगी जिनके क्षेत्र से होकर गौ माता की गाड़ियां कटने के लिए गुजर रही हैं तथा जिनके कार खास सिपाही कुछ हजार रुपए प्रति ट्रक लेकर उसे पार करा रहे हैं।
#इस_समय_सहारनपुर_के_SSP_स्वयं_में_पुलिस_विभाग_के_एक_माने_हुए_हस्ताक्षर_हैं। #पूरा_पुलिस_विभाग_उन_पर_गर्व_करता_है तथा संयोग से #डीजीपी_भी_अपने_पूरे_जीवनकाल_में_अपनी_न्यायप्रियता_सत्यनिष्ठा_कर्मठता_तथा_सिद्धांतों_के_प्रति_समर्पण के लिए ना केवल विख्यात रहे हैं बल्कि उनका समर्पण इस सीमा तक रहा है कि यह भी कहा जा सकता है कि#वह_न्याय_करने_के_लिए_कुख्यात_होने_की_सीमा_तक_जा_सकते_हैं। अतः इन दोनों व्यक्तियों से अनुरोध है कि वह इस संवेदनशील मामले में बिना कोई देरी किए पूर्ण तत्परता से दूध का दूध तथा पानी का पानी कर दें तथा किसी प्रकार के आवेश या पूर्वाग्रह या कानाफूसी करने वालों के चक्कर में न पड़ कर गहराई तक जाकर सत्य का पता लगाएं और विमर्श करके आगरा तथा कानपुर दोनों ही मामलों में न्याय सुनिश्चित करें। वह यह भी देख लें कि पुलिस का मनोबल ना गिरे किंतु जितनी जिसकी गलती हो गलतफहमी में उससे अधिक दंड भी उसको ना मिले। संघपरिवार तथा भाजपा परिवार का भी यह कर्तव्य है कि वह कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी को रोके किंतु यदि कार्यकर्ताओं पर पीत पत्रकारिता में अथवा मीडिया ट्रायल में अथवा सत्तादल के कार्यकर्ताओं में संघर्ष का वातावरण पैदा करने वाली कार्य खास रुपी मंथराओं के जाल में ना फसे तथा यदि कोई कार्यकर्ता निर्दोष हो तो वह सजा न पाए तथा यदि दोषी हो तो जितना दोषी हो उतना ही सजा पाए तथा ककड़ी का चोर कटार से ना मारा जाए। गौरक्षकों की गुंडागर्दी की बात मोदी जी और मोहन भागवत जी भी कर चुके हैं किंतु इतनी ही कडी बात उन्हें उन लोगों के बारे में भी करनी होगी जिनके क्षेत्र से होकर गौ माता की गाड़ियां कटने के लिए गुजर रही हैं तथा जिनके कार खास सिपाही कुछ हजार रुपए प्रति ट्रक लेकर उसे पार करा रहे हैं।
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