नक्सल समस्या का स्थाई समाधान क्या है?
क्या नक्सल समस्या केवल Law&Order Problem है?
क्या नक्सल समस्या केवल पुचकारने तथा सुविधा देने से या विकास से दूर हो जाएगी?
नक्सल समस्या का समाधान ढूंढने से पहले यह जानना आवश्यक है कि यह समस्या कब कब पैदा हुई तथा कौन लोग इससे कैसे निपटे?
बार-बार इससे निपटने के बावजूद यह फिर फिर बेकाबू क्यों हो जाती है?
नक्सल समस्या क्यों पैदा होती है तथा इसका स्थाई समाधान क्या है?
अब हम देखते हैं कि नक्सल समस्या आखिर है क्या?
चाहे आर्थिक वितरण की असमानता से अथवा सामाजिक न्याय न मिलने से अथवा नस्ल, धर्म,भाषा,वंश तथा जाति आदि किसी भी आधार पर किसी एक वर्ग का दूसरे वर्ग पर अत्याचार अथवा जवाबी अत्याचार सीमाएं लांघने लगता है तो नक्सलवाद प्रारंभ होता है तथा उस का मुकाबला करने के लिए Counter-Measures भी अस्तित्व में आते हैं। नक्सलवाद समस्या को कौन परिस्थितियां आमंत्रित करती हैं? इसका चित्रण रामधारी सिंह दिनकर ने इन शब्दों में किया है-
क्या नक्सल समस्या केवल Law&Order Problem है?
क्या नक्सल समस्या केवल पुचकारने तथा सुविधा देने से या विकास से दूर हो जाएगी?
नक्सल समस्या का समाधान ढूंढने से पहले यह जानना आवश्यक है कि यह समस्या कब कब पैदा हुई तथा कौन लोग इससे कैसे निपटे?
बार-बार इससे निपटने के बावजूद यह फिर फिर बेकाबू क्यों हो जाती है?
नक्सल समस्या क्यों पैदा होती है तथा इसका स्थाई समाधान क्या है?
अब हम देखते हैं कि नक्सल समस्या आखिर है क्या?
चाहे आर्थिक वितरण की असमानता से अथवा सामाजिक न्याय न मिलने से अथवा नस्ल, धर्म,भाषा,वंश तथा जाति आदि किसी भी आधार पर किसी एक वर्ग का दूसरे वर्ग पर अत्याचार अथवा जवाबी अत्याचार सीमाएं लांघने लगता है तो नक्सलवाद प्रारंभ होता है तथा उस का मुकाबला करने के लिए Counter-Measures भी अस्तित्व में आते हैं। नक्सलवाद समस्या को कौन परिस्थितियां आमंत्रित करती हैं? इसका चित्रण रामधारी सिंह दिनकर ने इन शब्दों में किया है-
श्वानों को मिलता दूध वस्त्र,
भूखे बालक अकुलाते हैं।
मां की हड्डी से चिपक ठिठुर,
जाड़ों की रात बिताते हैं।
युवती के लज्जा वसन बेच,
जब ब्याज चुकाए जाते हैं।
मालिक जब तेल फुलेलों पर,
पानी सा द्रव्य बहाते हैं।
पापी महलों का अहंकार,
तब देता मुझको आमंत्रण।
भूखे बालक अकुलाते हैं।
मां की हड्डी से चिपक ठिठुर,
जाड़ों की रात बिताते हैं।
युवती के लज्जा वसन बेच,
जब ब्याज चुकाए जाते हैं।
मालिक जब तेल फुलेलों पर,
पानी सा द्रव्य बहाते हैं।
पापी महलों का अहंकार,
तब देता मुझको आमंत्रण।
क्रांति की जन्म लग्न क्या है-
इसका उल्लेख राष्ट्रकवि दिनकर ने इन शब्दों में किया है-
इसका उल्लेख राष्ट्रकवि दिनकर ने इन शब्दों में किया है-
"जिस दिन रह जाता क्रोध मौन,
वह समझो मेरी जन्म लगन।"
वह समझो मेरी जन्म लगन।"
राष्ट्रकवि दिनकर ने राष्ट्र के देशभक्त, मोदीभक्त एवं योगीभक्त ठेकेदारों को सूचित किया है कि वह समय के रथ के घर्घर नाद को सुनें( तब भारत की आबादी मात्र 33 करोड़ थी)-
33 कोटि जनता के सिर पर ताज धरो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
और जब जनता आती है- तो उस जनता से मतलब नहीं है जो कभी चाय बेचते बेचते अब 10 लाख के सूट बूट में है, जो कभी दलित की बेटी रहकर आज दौलत की बेटी बन चुकी है, जो कभी चाय बेचते बेचते धर्म का ठेकेदार हो गया है तथा उसके बाद जन-कल्याण और विकास के दावे कर रहा है लाल बत्ती छोड़कर कौशांबी के आंगन में। राष्ट्र कवि दिनकर इस जनता में उनको समाहित करते हैं जो आज भी भैंस की सींग पकड़कर उसके ऊपर चढ़ जाते हैं तथा जरूरत पड़ने पर सूखा चारा चुराकर पैसा नहीं इकट्ठा करते बल्कि किसी खेत से ही हरा चारा एक दिन भर को चुरा लेते हैं,
जिनके लिए साइकिल पर चढ़कर दूध बेचना एक कल्पनालोक की चीज नहीं है बल्कि आज भी एक कड़वी हकीकत है तथा एक भैंस न खरीद पाने पर जो दरवाजे-दरवाजे दूध दुहते हैं।
जिस तरह डा लोहिया ने लिखा है कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती तथा भीड़ को अनियंत्रित होने का अधिकार है, उसी प्रकार राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं कि-
जिनके लिए साइकिल पर चढ़कर दूध बेचना एक कल्पनालोक की चीज नहीं है बल्कि आज भी एक कड़वी हकीकत है तथा एक भैंस न खरीद पाने पर जो दरवाजे-दरवाजे दूध दुहते हैं।
जिस तरह डा लोहिया ने लिखा है कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती तथा भीड़ को अनियंत्रित होने का अधिकार है, उसी प्रकार राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं कि-
"पातकी न होता है प्रबुद्ध दलितों का खड्ग,
पातकी बताना उसे दर्शन की भ्रांति है।"
और आखिर में उन्होंने इसClass Struggle (वर्ग संघर्ष) की समस्या का समाधान प्रस्तुत किया है-
पातकी बताना उसे दर्शन की भ्रांति है।"
और आखिर में उन्होंने इसClass Struggle (वर्ग संघर्ष) की समस्या का समाधान प्रस्तुत किया है-
युद्ध रोकना है तो उखाड़ विषदंत फेंको,
वृक व्याघ्र भीति से मही को मुक्त कर दो।
अथवा अजा के छागलों को भी बनाओ व्याघ्र,
दांतों में कराल कालकूट विष भर दो।
वट की विशालता के नीचे जो अनेक वृक्ष,
ठिठुर रहे हैं उन्हें फैलने का वर दो।
रस सोखता है जो मही का भीमकाय वृक्ष,
उसकी शिराएं तोड़ो,डालियां कतर दो।
इसी को Marx ने Annihilation of Class Enemies (वर्ग शत्रुओं का विनाश) तथा Dictatorship of Proletariat (सर्वहारा की तानाशाही) कहा है।
डॉ लोहिया ने लिखा है कि-
"हिंदुस्तान में Marx सिर के बल खड़ा था तथा मैंने वर्ग संघर्ष को जाति संघर्ष में बदल कर Marx को पैर के बल खड़ा कर दिया।"
वृक व्याघ्र भीति से मही को मुक्त कर दो।
अथवा अजा के छागलों को भी बनाओ व्याघ्र,
दांतों में कराल कालकूट विष भर दो।
वट की विशालता के नीचे जो अनेक वृक्ष,
ठिठुर रहे हैं उन्हें फैलने का वर दो।
रस सोखता है जो मही का भीमकाय वृक्ष,
उसकी शिराएं तोड़ो,डालियां कतर दो।
इसी को Marx ने Annihilation of Class Enemies (वर्ग शत्रुओं का विनाश) तथा Dictatorship of Proletariat (सर्वहारा की तानाशाही) कहा है।
डॉ लोहिया ने लिखा है कि-
"हिंदुस्तान में Marx सिर के बल खड़ा था तथा मैंने वर्ग संघर्ष को जाति संघर्ष में बदल कर Marx को पैर के बल खड़ा कर दिया।"
इसी वर्ग संघर्ष और जातिगत संघर्ष का फल है नक्सली समस्या। इसके सही समाधान के लिए वर्ग संघर्ष तथा जातिगत संघर्ष के कारक तत्वों को समाप्त करना पड़ेगा। जंगलों में जिन हिस्सों में नक्सली समस्या नहीं पैदा हुई अथवा पैदा होने पर दूर कर दी गई वहां पर बड़े-बड़े Corporate Houses को जमीने दे दी गई तथा वहां पर उन्होंने अपना आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर लिया। जो कारखाने खुले उनमें स्थानीय लोगों को मामूली रोजगार मिला तथा अधिकांश लोग बाहर के नियुक्त किए गए। Technical पोस्टों पर तो छोड़िए चपरासी की पोस्टों पर और झाड़ू लगाने वालों की पोस्टों पर भी बाहर से लाकर पैसे या सिफारिश के बूते पर लोग भर्ती कर लिए गए तथा स्थानीय लोगों की दुर्दशा और बढ़ गई।
जो ठेकेदार, व्यापारी तथा अधिकारी इन क्षेत्रों में घुसे उनके सौजन्य से भूसंपदा तथा खनिज संपदा का अंधाधुंध दोहन हुआ तथा भोली भाली वन-कन्याओं का जबरदस्त यौन-शोषण हुआ जिनका दुरुपयोग कर गर्भवती बना कर उन्हें उपेक्षा ग्रस्त हालत में छोड़ दिया गया तथा तीन तलाक के नाम पर हंगामा मचाने वाले जनहित के ठेकेदारों ने इन परित्यक्ता महिलाओं के लिए कोई सुनियोजित तथा दीर्घकालिक संघर्ष नहीं किया। विरोध करने पर कभी बाहरी तो कभी स्थानीय अपराधियों द्वारा इन स्थानीय नौजवानों को कत्ल करा दिया गया तथा जनता अत्याचार से त्राहि-त्राहि करने लगी। आज भी जितनी योजनाएं जनकल्याण के लिए चलाई जाती हैं उनका 15 प्रतिशत पैसा भी आम जनता तक नहीं पहुंच पाता है तथा जनकल्याण के नाम पर किसी भी प्रदेश में गरीब बच्चों के लिए पंजीरी दी जाती है तथा कोई भी सरकार आए सिस्टम उसे अमीरों की झोली में डाल देता है। पिछड़े इलाकों में तथा वनवासी इलाकों में स्थिति और भी विकट है। वहां पर कोई भी विकास कार्यक्रम सही ढंग से लागू नहीं हो सका तथा जनता के पैसों की बंदरबांट हो गई।
जो ठेकेदार, व्यापारी तथा अधिकारी इन क्षेत्रों में घुसे उनके सौजन्य से भूसंपदा तथा खनिज संपदा का अंधाधुंध दोहन हुआ तथा भोली भाली वन-कन्याओं का जबरदस्त यौन-शोषण हुआ जिनका दुरुपयोग कर गर्भवती बना कर उन्हें उपेक्षा ग्रस्त हालत में छोड़ दिया गया तथा तीन तलाक के नाम पर हंगामा मचाने वाले जनहित के ठेकेदारों ने इन परित्यक्ता महिलाओं के लिए कोई सुनियोजित तथा दीर्घकालिक संघर्ष नहीं किया। विरोध करने पर कभी बाहरी तो कभी स्थानीय अपराधियों द्वारा इन स्थानीय नौजवानों को कत्ल करा दिया गया तथा जनता अत्याचार से त्राहि-त्राहि करने लगी। आज भी जितनी योजनाएं जनकल्याण के लिए चलाई जाती हैं उनका 15 प्रतिशत पैसा भी आम जनता तक नहीं पहुंच पाता है तथा जनकल्याण के नाम पर किसी भी प्रदेश में गरीब बच्चों के लिए पंजीरी दी जाती है तथा कोई भी सरकार आए सिस्टम उसे अमीरों की झोली में डाल देता है। पिछड़े इलाकों में तथा वनवासी इलाकों में स्थिति और भी विकट है। वहां पर कोई भी विकास कार्यक्रम सही ढंग से लागू नहीं हो सका तथा जनता के पैसों की बंदरबांट हो गई।
अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर शासन चाहता क्या है?
उसी के अनुरूप समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है। क्या शासन वास्तव में एक ऐसी व्यवस्था लागू करना चाहता है जहां सब को न्याय मिल सके तो उसे एक श्वेत-पत्र प्रकाशित करना पड़ेगा कि पिछले दस-बीस साल में कितना बजट स्वीकृत किया गया तथा क्या उसका सदुपयोग हुआ अथवा दुरुपयोग हुआ और जिन लोगों ने उसका दुरुपयोग किया उनके ऊपर कौन सी निर्णायक कार्यवाही की गई।
उसी के अनुरूप समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है। क्या शासन वास्तव में एक ऐसी व्यवस्था लागू करना चाहता है जहां सब को न्याय मिल सके तो उसे एक श्वेत-पत्र प्रकाशित करना पड़ेगा कि पिछले दस-बीस साल में कितना बजट स्वीकृत किया गया तथा क्या उसका सदुपयोग हुआ अथवा दुरुपयोग हुआ और जिन लोगों ने उसका दुरुपयोग किया उनके ऊपर कौन सी निर्णायक कार्यवाही की गई।
इस देश में प्राचीन भारत में दो प्रकार से इन समस्याओं का समाधान किया गया है
1 एक जंगल में महाराज परीक्षित ने शमीक मुनि को विराजमान देखा तथा उनसे रास्ता पूछा। महर्षि ध्यान में थे तथा महाराजा के प्रणाम करने के बावजूद उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया तथा ना तो आशीर्वाद दिया और ना ही स्वागत सत्कार किया। राजा को क्रोध आया तथा उन्होंने शमीक मुनि के गले में अपने धनुष से उठा कर एक मरा हुआ सांप लटका दिया। जब महर्षि शमीक का बेटा श्रृंगी आया तथा शिष्यों ने पूरी बात बताई तो उसने घोषणा किया कि 1 सप्ताह के अंदर महाराज जीवित नहीं बचेंगे तथा तक्षक नाग उनको डस लेगा।
Marx ने लिखा है कि जब पूंजीवादी शक्तियां अपने अहंकार और स्वार्थ में टकराती हैं तब साम्यवाद का आंदोलन जड़ पकड़ता है। ब्राह्मण-क्षत्रिय संघर्ष में जब नागवंश का आह्वान किया गया तो इस संयुक्त मोर्चे के ऑपरेशन में महाराज परीक्षित का समापन हो गया। यह उस युग की नक्सली समस्या का पहला चरण था। पुनः महाराज परीक्षित को अपनी गलती का एहसास हुआ तथा उन्होंने बालरूप शुकदेव से श्रीमद्भागवत सुना तथा शमीक मुनि ने भी बालक श्रृंगी को डांटा कि क्षत्रिय राजा कैसा भी हो उसके विरुद्ध नहीं सोचना चाहिए क्योंकि क्रोध में भी उसने प्रणाम किया था तथा समुचित उत्तर ना पाने पर आवेश में यह कदम उठाया था। जिस दिन राजशाही का समापन हो जाएगा उस समय धरतीपुत्र उतना भी सम्मान नहीं देंगे जितना कि एक बुरा राजा भी देता ।
जब ब्राह्मणों में यह भावना जोर पकड़ी तथा श्रीमद्भागवत यज्ञ के माध्यम से पुनः ब्राह्मण-क्षत्रिय एकता की नींव पड़ी तो जन्मेजय ने नाग यज्ञ किया तथा कड़ाही में जलते हुए तेल में एक-एक कर संपूर्ण नागवंश जला दिया गया तथा तक्षक भागकर इंद्रासन से लिपट गया और इंद्र की मध्यस्ता में युद्धविराम(Cease fire) हुआ।
प्रायःयह देखा गया है कि जब जब ब्राह्मण-ब्राह्मण, क्षत्रिय-क्षत्रिय तथा ब्राह्मण-क्षत्रिय आपस में टकराते हैं तो वहां पर जनक्रांति की आग को हवा मिल जाती है तथा वह तेजी से बढ़ने लगती है। जब कोई रघुनाथ किसी शंबूक के ऊपर बाण उठा लेता है तथा शबरी के जूठे बेर खाने और केवट को गले लगाने को पृष्ठभूमि में डालकर गोद्विजहितकारी बन जाता है तथा जब शंबूक तपस्या नहीं करने पाता है तो ब्राह्मण यह घोषणा करता है कि अब दैहिक,दैविक और भौतिक ताप समाप्त हो गया है। इसी प्रकार जब कोई द्रोणाचार्य किसी एकलव्य का अंगूठा गुरु-दक्षिणा में ले लेता है तो अर्जुन बिना और कड़ी मेहनत किए ही गुरु-कृपा से विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन जाता है तथा उस युग की नक्सली समस्या का समाधान हो जाता है। किंतु पुनः जब दुर्योधन और युधिष्ठिर टकराते हैं तथा महाभारत होता है और द्वारिका का यदुवंश जब अहंकार में महर्षि दुर्वासा को अपमानित करता है तथा उनके क्रुद्ध होकर शाप देने से और यदुवंश के आपसी संघर्ष से जब प्रजा का मनोबल बढ़ जाता है तो एक बहेलिए के तीर से कृष्ण के प्राण पखेरु उड़ जाते हैं तथा जब द्वारिका से कृष्ण के अंतः पुर को लेकर अर्जुन दिल्ली की ओर चलते हैं तो रास्ते में भैंस चराने वालों के मुकाबले वह टिक नहीं पाते हैं और गांडीव हाथ में रहते हुए भी कृष्ण के वंश की समस्त नारियां उन से छीन ली जाती हैं तथा वे डिप्रेशन में दिल्ली लौटते हैं। संतोष करने के लिए कहावत बनती है-
व्यक्ति बलि नहीं होत है समय होत बलवान।
भीलन लूटी गोपिका वै अर्जुन वै बाण।।
उत्तर प्रदेश में राजनैतिक जगत में जब तक कांग्रेस में वीर बहादुर सिंह तथा विश्वनाथ प्रताप सिंह का आपसी विरोध और इन दोनों ही हस्तियों का श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी से अंतर्विरोध मुखर नहीं हुआ था तब तक कहीं भी नक्सली समस्या सुनाई नहीं देती थी। किंतु पूंजीवाद के अंतर्विरोध के चलते साम्यवाद आगे बढ़ता है- ठीक इसी प्रकार मैं खुद जातिवाद की बात नहीं कर रहा हूं किंतु भारत में क्योंकि लोहिया ने गर्वपूर्वक कहा था कि वह Marx के वर्ग संघर्ष को वर्ण संघर्ष में बदल चुके हैं अतः लोहिया द्वारा चालू की गई इस 80 परसेंट बनाम 20 परसेंट की जातिगत लड़ाई में जब ब्राह्मण और क्षत्रिय टकराए तो इसका परिणाम वाराणसी तथा मिर्जापुर के इलाके में नक्सली समस्या के रूप में दिखाई दिया तथा कहीं पर वह एटा मैनपुरी बेल्ट में दस्यु समस्या के रूप में आया तो बुंदेलखंड तथा कानपुर और आगरा बेल्ट में भी हालात सामान्य नहीं रह सके। पुनः राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद तथा मिर्जापुर में जन्मेजय के नाग यज्ञ की कल्पना करके लोग सिहर गए तथा पूरे यूपी की नक्सल समस्या समाप्त हो गई। योगी जी के कार्यकाल में किसी नक्सली समस्या की कल्पना ही नहीं की जा सकती क्योंकि कोई भी शांति व्यवस्था की समस्या तभी पैदा होती है जब उसे सत्ता में घुसपैठ बनाने का अवसर मिलता है। आखिर उत्तर प्रदेश में इतनी पार्टियां बनी किंतु कायदे से साइकिल तथा हाथी ही क्यों चल पाई?
अगर सपा से जुड़े लोगों को नारायण दत्त तिवारी का तथा बसपा से जुड़े लोगों को वीर बहादुर सिंह का अघोषित आशीर्वाद ना मिला होता तो तमाम अन्य दलों की तरह यह दोनों दल भी सिंचाई, निराई, गुड़ाई तथा खाद और पानी के अभाव में सूख गए होते। Maoने लिखा है कि गोरिल्ला वह मछली है जो जनता रूपी समुद्र में रहती है तथा स्थानीय जनता के सहयोग के बिना वह एक दिन टिक नहीं सकता। और अगर आज कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाए तथा वहां पर किसी K.P.S. GILL या General V. K. SINGH जैसे किसी व्यक्तित्व को गवर्नर बना दिया जाए तो 24 घंटे के अंदर ऐसा माहौल आ जाएगा कि एक भी पत्थर फेंकने वाला सड़क पर नहीं दिखाई देगा तथा बिना एक डंडा मारे उसके हाथों में लकवा लग जाएगा। राजनाथ सिंह की क्षमता को मैं चुनौती नहीं दे रहा उत्तर प्रदेश में नकल अध्यादेश को लागू करके तथा नक्सली समस्या का स्थाई समाधान प्रस्तुत करके उन्होंने दिखा दिया है कि नक्सलवाद से कैसे लड़ा जाता है। किन कारणों से उनके हाथ बंधे हैं इसे वही बता सकते हैं।
Marx ने लिखा है कि जब पूंजीवादी शक्तियां अपने अहंकार और स्वार्थ में टकराती हैं तब साम्यवाद का आंदोलन जड़ पकड़ता है। ब्राह्मण-क्षत्रिय संघर्ष में जब नागवंश का आह्वान किया गया तो इस संयुक्त मोर्चे के ऑपरेशन में महाराज परीक्षित का समापन हो गया। यह उस युग की नक्सली समस्या का पहला चरण था। पुनः महाराज परीक्षित को अपनी गलती का एहसास हुआ तथा उन्होंने बालरूप शुकदेव से श्रीमद्भागवत सुना तथा शमीक मुनि ने भी बालक श्रृंगी को डांटा कि क्षत्रिय राजा कैसा भी हो उसके विरुद्ध नहीं सोचना चाहिए क्योंकि क्रोध में भी उसने प्रणाम किया था तथा समुचित उत्तर ना पाने पर आवेश में यह कदम उठाया था। जिस दिन राजशाही का समापन हो जाएगा उस समय धरतीपुत्र उतना भी सम्मान नहीं देंगे जितना कि एक बुरा राजा भी देता ।
जब ब्राह्मणों में यह भावना जोर पकड़ी तथा श्रीमद्भागवत यज्ञ के माध्यम से पुनः ब्राह्मण-क्षत्रिय एकता की नींव पड़ी तो जन्मेजय ने नाग यज्ञ किया तथा कड़ाही में जलते हुए तेल में एक-एक कर संपूर्ण नागवंश जला दिया गया तथा तक्षक भागकर इंद्रासन से लिपट गया और इंद्र की मध्यस्ता में युद्धविराम(Cease fire) हुआ।
प्रायःयह देखा गया है कि जब जब ब्राह्मण-ब्राह्मण, क्षत्रिय-क्षत्रिय तथा ब्राह्मण-क्षत्रिय आपस में टकराते हैं तो वहां पर जनक्रांति की आग को हवा मिल जाती है तथा वह तेजी से बढ़ने लगती है। जब कोई रघुनाथ किसी शंबूक के ऊपर बाण उठा लेता है तथा शबरी के जूठे बेर खाने और केवट को गले लगाने को पृष्ठभूमि में डालकर गोद्विजहितकारी बन जाता है तथा जब शंबूक तपस्या नहीं करने पाता है तो ब्राह्मण यह घोषणा करता है कि अब दैहिक,दैविक और भौतिक ताप समाप्त हो गया है। इसी प्रकार जब कोई द्रोणाचार्य किसी एकलव्य का अंगूठा गुरु-दक्षिणा में ले लेता है तो अर्जुन बिना और कड़ी मेहनत किए ही गुरु-कृपा से विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन जाता है तथा उस युग की नक्सली समस्या का समाधान हो जाता है। किंतु पुनः जब दुर्योधन और युधिष्ठिर टकराते हैं तथा महाभारत होता है और द्वारिका का यदुवंश जब अहंकार में महर्षि दुर्वासा को अपमानित करता है तथा उनके क्रुद्ध होकर शाप देने से और यदुवंश के आपसी संघर्ष से जब प्रजा का मनोबल बढ़ जाता है तो एक बहेलिए के तीर से कृष्ण के प्राण पखेरु उड़ जाते हैं तथा जब द्वारिका से कृष्ण के अंतः पुर को लेकर अर्जुन दिल्ली की ओर चलते हैं तो रास्ते में भैंस चराने वालों के मुकाबले वह टिक नहीं पाते हैं और गांडीव हाथ में रहते हुए भी कृष्ण के वंश की समस्त नारियां उन से छीन ली जाती हैं तथा वे डिप्रेशन में दिल्ली लौटते हैं। संतोष करने के लिए कहावत बनती है-
व्यक्ति बलि नहीं होत है समय होत बलवान।
भीलन लूटी गोपिका वै अर्जुन वै बाण।।
उत्तर प्रदेश में राजनैतिक जगत में जब तक कांग्रेस में वीर बहादुर सिंह तथा विश्वनाथ प्रताप सिंह का आपसी विरोध और इन दोनों ही हस्तियों का श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी से अंतर्विरोध मुखर नहीं हुआ था तब तक कहीं भी नक्सली समस्या सुनाई नहीं देती थी। किंतु पूंजीवाद के अंतर्विरोध के चलते साम्यवाद आगे बढ़ता है- ठीक इसी प्रकार मैं खुद जातिवाद की बात नहीं कर रहा हूं किंतु भारत में क्योंकि लोहिया ने गर्वपूर्वक कहा था कि वह Marx के वर्ग संघर्ष को वर्ण संघर्ष में बदल चुके हैं अतः लोहिया द्वारा चालू की गई इस 80 परसेंट बनाम 20 परसेंट की जातिगत लड़ाई में जब ब्राह्मण और क्षत्रिय टकराए तो इसका परिणाम वाराणसी तथा मिर्जापुर के इलाके में नक्सली समस्या के रूप में दिखाई दिया तथा कहीं पर वह एटा मैनपुरी बेल्ट में दस्यु समस्या के रूप में आया तो बुंदेलखंड तथा कानपुर और आगरा बेल्ट में भी हालात सामान्य नहीं रह सके। पुनः राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद तथा मिर्जापुर में जन्मेजय के नाग यज्ञ की कल्पना करके लोग सिहर गए तथा पूरे यूपी की नक्सल समस्या समाप्त हो गई। योगी जी के कार्यकाल में किसी नक्सली समस्या की कल्पना ही नहीं की जा सकती क्योंकि कोई भी शांति व्यवस्था की समस्या तभी पैदा होती है जब उसे सत्ता में घुसपैठ बनाने का अवसर मिलता है। आखिर उत्तर प्रदेश में इतनी पार्टियां बनी किंतु कायदे से साइकिल तथा हाथी ही क्यों चल पाई?
अगर सपा से जुड़े लोगों को नारायण दत्त तिवारी का तथा बसपा से जुड़े लोगों को वीर बहादुर सिंह का अघोषित आशीर्वाद ना मिला होता तो तमाम अन्य दलों की तरह यह दोनों दल भी सिंचाई, निराई, गुड़ाई तथा खाद और पानी के अभाव में सूख गए होते। Maoने लिखा है कि गोरिल्ला वह मछली है जो जनता रूपी समुद्र में रहती है तथा स्थानीय जनता के सहयोग के बिना वह एक दिन टिक नहीं सकता। और अगर आज कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाए तथा वहां पर किसी K.P.S. GILL या General V. K. SINGH जैसे किसी व्यक्तित्व को गवर्नर बना दिया जाए तो 24 घंटे के अंदर ऐसा माहौल आ जाएगा कि एक भी पत्थर फेंकने वाला सड़क पर नहीं दिखाई देगा तथा बिना एक डंडा मारे उसके हाथों में लकवा लग जाएगा। राजनाथ सिंह की क्षमता को मैं चुनौती नहीं दे रहा उत्तर प्रदेश में नकल अध्यादेश को लागू करके तथा नक्सली समस्या का स्थाई समाधान प्रस्तुत करके उन्होंने दिखा दिया है कि नक्सलवाद से कैसे लड़ा जाता है। किन कारणों से उनके हाथ बंधे हैं इसे वही बता सकते हैं।
2नक्सली समस्या का दूसरा समाधान प्राचीन काल में महर्षि विश्वामित्र ने प्रस्तुत किया जब महर्षि विश्वामित्र अपने शिष्य राम और लक्ष्मण को दिव्यास्त्रों से लैस करके उस रणनीति की घोषणा करते हैं जिसमें यज्ञ में बाधा डालने वाले तत्वों पर गोद्विजहितकारी राम स्वयं खड़े होते हैं तथा उनके द्वारा कुछ बाधक तत्वो का वध किए जाते ही मारीचि जैसे लोग इतनी दूर भाग जाते हैं कि उनकी कभी दोबारा आहट भी नहीं सुनाई देती है। जिसका वर्णन राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने किया है-
ऋषियों को मिलती सिद्धि तभी, पहले पर जब स्वयं राम खड़े होते है।
दिव्यास्त्रों से लैस करना तो दूर सामान्य अस्त्र भी जब CRPF को नहीं दिए जाएंगे तथा उनके पास ना तो पर्याप्त Bulletproof Jacket होंगे और ना ही Bulletproof Helmet तथा मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त मात्रा में स्थानीय पुलिस भी नहीं होगी और स्थानीय थानों में सिपाहियों तक की Vacancy पूरी नहीं होगी और यह कोई बताने को तैयार नहीं होगा कि किस मजबूरी या स्वार्थ के चलते नक्सल प्रभावित क्षेत्र के थाने जनशक्ति से वंचित रखे गए हैं तथा जहां पर नगरीय सुविधाएं हैं वहां स्वीकृत नियतन से अधिक पुलिस कर्मचारी मलाई चाट रहे हैं तब तक नक्सल समस्या का समाधान नहीं होगा। मैं छत्तीसगढ़ सरकार तथा केंद्रीय सरकार से यह अनुरोध करता हूं कि जनहित में जनता को यह ज्ञान करावे कि किन परिस्थितियों में
ऋषियों को मिलती सिद्धि तभी, पहले पर जब स्वयं राम खड़े होते है।
दिव्यास्त्रों से लैस करना तो दूर सामान्य अस्त्र भी जब CRPF को नहीं दिए जाएंगे तथा उनके पास ना तो पर्याप्त Bulletproof Jacket होंगे और ना ही Bulletproof Helmet तथा मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त मात्रा में स्थानीय पुलिस भी नहीं होगी और स्थानीय थानों में सिपाहियों तक की Vacancy पूरी नहीं होगी और यह कोई बताने को तैयार नहीं होगा कि किस मजबूरी या स्वार्थ के चलते नक्सल प्रभावित क्षेत्र के थाने जनशक्ति से वंचित रखे गए हैं तथा जहां पर नगरीय सुविधाएं हैं वहां स्वीकृत नियतन से अधिक पुलिस कर्मचारी मलाई चाट रहे हैं तब तक नक्सल समस्या का समाधान नहीं होगा। मैं छत्तीसगढ़ सरकार तथा केंद्रीय सरकार से यह अनुरोध करता हूं कि जनहित में जनता को यह ज्ञान करावे कि किन परिस्थितियों में
1 जितने थाने नक्सल क्षेत्रों में हैं उनमें से अधिकांश में जिस सिपाही या दरोगा की पोस्टिंग होती है वह वह तीन-तिकड़म से, जुगाड़ से अथवा पैसे से यह सुनिश्चित कर लेता है कि वह नक्सल बेल्ट में ना रहे तथा मलाईदार बेल्टों में मलाई चाटे। अगर संख्या बल में कमी है तो उसे भरा क्यों नहीं जा रहा है?
भारत एक अखंड राष्ट्र है तथा किसी भी प्रांत का आदमी किसी दूसरे प्रांत में सरकारी नौकरी कर सकता है और जब हर बार यह जांच होती है कि उत्तर प्रदेश में पैसा लेकर भर्ती हो रही है चाहे यह आरोप सही हो या गलत तो यह कैसे मान लिया जाए कि जनशक्ति के अभाव में अधिकांश थाने छत्तीसगढ़ में जनशक्ति से शून्य है? आज तक तथा अन्य चैनलो ने आंकड़ों के साथ प्रस्तुत किया है कि अधिकांश स्थानों में निर्धारित संख्या से काफी कम मात्रा में कर्मचारी मौजूद हैं तथा जब किसी की पोस्टिंग नक्सल बेल्ट में होती है तो अधिकांश लोग चिकित्सा अवकाश ले लेते हैं तथा जब तक उनका जुगाड़ नहीं बैठता है वापस नहीं लौटते हैं। आज भूतपूर्व फौजी जब तमाम बैंकों में तथा अन्य प्राइवेट संस्थाओं में सुरक्षा गार्ड की नौकरी ढूंढ रहे हैं तो अधिक तनख्वाह पर उनको छत्तीसगढ़ पुलिस में नियुक्त क्यों नहीं किया जा सकता है?
इसमें पुनः वही क्षुद्र स्वार्थ बाधक होते हैं जिसके तहत विद्याचरण शुक्ला तथा तमाम नेताओं की हत्या होती है और तमाम CRP के लोग समय-समय पर मारे जाते हैं किंतु स्थानीय पुलिस का कोटा नहीं भरा जाता है।
भारत एक अखंड राष्ट्र है तथा किसी भी प्रांत का आदमी किसी दूसरे प्रांत में सरकारी नौकरी कर सकता है और जब हर बार यह जांच होती है कि उत्तर प्रदेश में पैसा लेकर भर्ती हो रही है चाहे यह आरोप सही हो या गलत तो यह कैसे मान लिया जाए कि जनशक्ति के अभाव में अधिकांश थाने छत्तीसगढ़ में जनशक्ति से शून्य है? आज तक तथा अन्य चैनलो ने आंकड़ों के साथ प्रस्तुत किया है कि अधिकांश स्थानों में निर्धारित संख्या से काफी कम मात्रा में कर्मचारी मौजूद हैं तथा जब किसी की पोस्टिंग नक्सल बेल्ट में होती है तो अधिकांश लोग चिकित्सा अवकाश ले लेते हैं तथा जब तक उनका जुगाड़ नहीं बैठता है वापस नहीं लौटते हैं। आज भूतपूर्व फौजी जब तमाम बैंकों में तथा अन्य प्राइवेट संस्थाओं में सुरक्षा गार्ड की नौकरी ढूंढ रहे हैं तो अधिक तनख्वाह पर उनको छत्तीसगढ़ पुलिस में नियुक्त क्यों नहीं किया जा सकता है?
इसमें पुनः वही क्षुद्र स्वार्थ बाधक होते हैं जिसके तहत विद्याचरण शुक्ला तथा तमाम नेताओं की हत्या होती है और तमाम CRP के लोग समय-समय पर मारे जाते हैं किंतु स्थानीय पुलिस का कोटा नहीं भरा जाता है।
2 सड़क निर्माण के लिए नियत स्थान पर CRP की ड्यूटी लगाई जा रही है तथा वह पर्याप्त मात्रा में अंदर घुस कर छापा नहीं मार पा रही है। यह क्यों आवश्यक समझा जा रहा है कि स्थानीय ठेकेदार ही धीरे-धीरे सड़क बनाएं तथा जो सड़कें साल भर में बन सकती हैं उनको बनाने में कई साल का समय क्यों लग रहा है? स्थानीय नागरिकों के माध्यम से अभिसूचना प्राप्त करने का तथा कार्यवाही का जो तंत्र विकसित किया गया था उसकी घनघोर उपेक्षा करने से लगभग सारे मुखबिर मार दिए गए हैं तथा उनकी हत्या में कोई ठोस विवेचनात्मक कार्यवाही नहीं की गई है और ना ही कोई ठोस जवाबी कार्यवाही हुई है।
अंत में मेरा यह व्यक्तिगत सुझाव है कि केवल बल प्रयोग से समस्या का समाधान नहीं होगा। वनवासियों को यह आभास दिलाना होगा कि वह एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं तथा सत्ता के मठाधीशों के बंधुआ मजदूर नहीं। आज जंगली इलाकों में क्या हो रहा है? तेंदूपत्ते के ठेके दे दिए जा रहे हैं तथा कोई ठेकेदार बाहर से जाकर उन जंगलों में घुसकर समस्त तेंदूपत्ता को स्थानीय निवासियों द्वारा कम मजदूरी देकर बिनवा लेता है तथा जंगल विभाग के अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों तथा राजनैतिक आकाओं के पेट भर कर स्वयं अधिकांश लाभ को उदरस्थ कर लेता है तथा बाद में खुद राजनीतिज्ञ बन जाता है। वन उपज तथा शहद आदि जितने संसाधन हैं उनको स्थानीय वन निवासियों के उपभोग के लिए खुला छोड़ दिया जाए तथा वह पूर्ण उपयोग करें और उससे वह अपना विकास स्वयं कर लेंगे।
वन उपज का लाभ जब तक ठेकेदार और उन के माध्यम से वन अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी तथा नेता करेंगे और जब तक उनको स्वाभिमान से जीने का हक नहीं मिलेगा तब तक नक्सल आंदोलन को कुचला जा सकता है लेकिन समाप्त नहीं किया जा सकता है। इसका समाधान महर्षि व्यास ने श्रीमद्भागवत में दिया है-
यावत हि भ्रियते उदरं।
तावत स्वत्वं हि देहिनाम।।
योऽधिकम भि वांछेत।
स्तेनो दंडमर्हति।।
अर्थात जितनी संपत्ति से व्यक्ति का पेट भरे उतने पर ही उसका अधिकार है। इससे अधिक की जो इच्छा रखे वह चोर है तथा दंड का भागी है। जब मध्य प्रदेश के लोकायुक्त के छापे पड़ते हैं तो करोड़ों और अरबों की संपत्ति क्लर्कों और इंस्पेक्टरों के यहां से बरामद होती है तथा यह स्त्रोत बंद नहीं हो पा रहे हैं। माफियाओं द्वारा तथा कॉरपोरेट घरानों द्वारा वन संपदा का दोहन हो रहा है इनको जो दंडित कर सकेगा वही नक्सल समस्या पर रोक लगा सकेगा। यही प्राचीन भारत का भारतीय साम्यवाद है जो मार्क्स के साम्यवाद से कहीं तगड़ा है। इसी साम्यवाद की साधना में मनुवादी पार्टी लगी हुई है तथा वह पश्चिमी साम्यवाद की जगह भारतीय साम्यवाद को लागू करना चाहती है। समस्त देशभक्त संगठनों से अनुरोध है कि वह सरकार पर दबाव बनाएं कि जो जंगल उजड़ चुके हैं उन पर सामाजिक वानिकी के अंतर्गत वन लगाए जाएं तथा उनमें स्थानीय मजदूरों को नियुक्त किया जाए तथा ठेकेदार बाहर के मजदूर लाकर फर्जी कार्यवाही ना कर सके। मनरेगा एक्ट की पैटर्न पर कोई एक्ट बना दिया जाए तथा इस संपत्ति का उपभोग वनवासी करें तथा वनवासियों में इस खाली जमीन के वितरण की कोई व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। वन उपज का वितरण कैसे होगा इस पर कोई व्यवस्था बनाई जाए जिससे उन पर वनवासियों का अधिकार सुनिश्चित किया जा सके। केवल शस्त्रों के बल पर स्वाभिमान को लंबे समय तक रौंदा नहीं जा सकता है। रामचरितमानस में निषाद राज ने भरत की संपूर्ण सेना को ललकारते हुए कहा है-
" सन्मुख लोह भरत सन लेहू।
जिअत न सुरसरि उतरन देहू।।
अर्थात आमने सामने मैं भरत से युद्ध करूंगा तथा जीते जी भरत की सेना गंगा नदी को पार नहीं कर पाएगी।"
जब अयोध्या की सुगठित भरत की सेना से निषादराज नहीं घबराया तो राजनाथ सिंह की सेना से नक्सली कैसे घबरा जाएंगे?
इसका उत्तर कभी विश्वामित्र के नेतृत्व में किए गए शस्त्र संचालन से तो कभी व्यास द्वारा निर्धारित जन कल्याण कार्यक्रमों से देना होगा। निषाद राज को गले लगाना होगा तथा यह व्यवस्था देनी होगी कि वह अपने जंगलों की उपज का उपभोग कर सके तथा बाहरी ठेकेदार, पूंजीपति और नेता उसकी संपत्तियों के मालिक ना बन जाए और उसको बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश ना कर सके यह भारतीय साम्यवाद है जिसे गांधी जी ने Trusteeship के सिद्धांत के रूप में प्रतिपादित किया है तथा जिसकी व्याख्या दीनदयाल उपाध्याय ने" एकात्म मानववाद" के रूप में की है। वेदव्यास का गरीबों का धन हड़पने वालों को चोर समझने का दर्शन, गांधी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत तथा दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद- इन तीनों को जोड़ दिया जाए तो नक्सलवादी समस्या स्वतः लगभग समाप्त प्राय हो जाएगी तथा उसका जो थोड़ा बहुत अवशेष बचेगा उसको शस्त्रों के बल पर सद्भावना लेकिन कठोरता के साथ कुचल देना होगा।
छत्तीसगढ़ में मारे गए अमर शहीदों को सादर नमन करते हुए मैं केंद्रीय सरकार से यह अनुरोध करता हूँ कि नक्सलियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही करके उनका उन्मूलन सुनिश्चित किया जय तथा साथ ही कॉर्पोरेट घरानों , ठेकेदारों, माफियाओं, नेताओं द्वारा वन सम्पदा के दोहन को रोका जाय तथा उन क्षेत्रों का विकास इस प्रकार किया जाए कि वे बाहरी पूंजीपतियों के गुलाम न बन जाए ताकि बार बार यह समस्या न उठे। पूरे भारत को बिहार में नीतीश कुमार के बारे में यह पढ़कर कष्ट हुआ कि वह शहीदों को न तो स्वयं सलाम करने गए और न ही अपना कोई मंत्री भेजा तथा जब शहीदों को सलामी दी जा रही थी तो वे किसी सरकारी या प्राइवेट कार्य में व्यस्त भी नही थे बल्कि सलामी स्थल के पास ही में स्थित एक सिनेमा हाल में पिक्चर का आनंद ले रहे थे। केंद्र सरकार को नीतीश सरकार को यह चेतावनी निर्गत करनी चाहिए कि यदि TV चैनलों पर प्रसारित यह समाचार गलत है तो इसका खंडन करे और उन्हें चेतावनी दें तथा यदि यह समाचार सही है तो राष्ट्र से तथा शहीदों के परिवार से बिना शर्त क्षमा याचना करनी चाहिए तथा इसकी पुनरावृत्ति न होने देने की कसम खानी चाहिए। इस प्रकार के कृत्यों से राष्ट्र की आत्मा छलनी हो जाती है।
समन्वित विकास के कदम अपरिहार्य हैं किन्तु उसकी प्रतीक्षा नहीं की जा सकती तथा शहीदों की तथा उनके परिवारों की आत्मा को शांति पहुंचाने के लिए उसी शैली में जवाब देना आवश्यक होगा जैसा कि राजनाथ सिंह ने कभी वाराणसी मिर्जापुर बेल्ट में दिया था। भारत की जनता राजनाथ सिंह से अपेक्षा करती है कि वह भावी प्रधानमंत्री बनने के चक्कर में आडवाणी की तरह नरमपंथी बनने का नाटक न करें बल्कि लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह की छवि को प्रदर्शित करने के लिए नक़ल को प्रभावी ढंग से रोकने वाले तथा उत्तर प्रदेश से नक्सल समस्या को समूल नष्ट कर देने वाले पुराने राजनाथ की भूमिका में वापस आएं अन्यथा देश की जनता उन्हें आडवाणी की तरह भुला देगी तथा वह सरदार पटेल की तरह युग पुरुष नहीं बन पाएंगे। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह गृह मंत्री को उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री वाले तेवरों में देश को वापस लौटा दे।
रुग्ण होना चाहता कोई नहीं,
रोग लेकिन आ गया जब पास ही हो।
तिक्त औषधि के सिवा उपचार क्या,
वह शमित होगा नहीं मिष्ठान्न से।।
(दिनकर)
जय हिन्द
अंत में मेरा यह व्यक्तिगत सुझाव है कि केवल बल प्रयोग से समस्या का समाधान नहीं होगा। वनवासियों को यह आभास दिलाना होगा कि वह एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं तथा सत्ता के मठाधीशों के बंधुआ मजदूर नहीं। आज जंगली इलाकों में क्या हो रहा है? तेंदूपत्ते के ठेके दे दिए जा रहे हैं तथा कोई ठेकेदार बाहर से जाकर उन जंगलों में घुसकर समस्त तेंदूपत्ता को स्थानीय निवासियों द्वारा कम मजदूरी देकर बिनवा लेता है तथा जंगल विभाग के अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों तथा राजनैतिक आकाओं के पेट भर कर स्वयं अधिकांश लाभ को उदरस्थ कर लेता है तथा बाद में खुद राजनीतिज्ञ बन जाता है। वन उपज तथा शहद आदि जितने संसाधन हैं उनको स्थानीय वन निवासियों के उपभोग के लिए खुला छोड़ दिया जाए तथा वह पूर्ण उपयोग करें और उससे वह अपना विकास स्वयं कर लेंगे।
वन उपज का लाभ जब तक ठेकेदार और उन के माध्यम से वन अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी तथा नेता करेंगे और जब तक उनको स्वाभिमान से जीने का हक नहीं मिलेगा तब तक नक्सल आंदोलन को कुचला जा सकता है लेकिन समाप्त नहीं किया जा सकता है। इसका समाधान महर्षि व्यास ने श्रीमद्भागवत में दिया है-
यावत हि भ्रियते उदरं।
तावत स्वत्वं हि देहिनाम।।
योऽधिकम भि वांछेत।
स्तेनो दंडमर्हति।।
अर्थात जितनी संपत्ति से व्यक्ति का पेट भरे उतने पर ही उसका अधिकार है। इससे अधिक की जो इच्छा रखे वह चोर है तथा दंड का भागी है। जब मध्य प्रदेश के लोकायुक्त के छापे पड़ते हैं तो करोड़ों और अरबों की संपत्ति क्लर्कों और इंस्पेक्टरों के यहां से बरामद होती है तथा यह स्त्रोत बंद नहीं हो पा रहे हैं। माफियाओं द्वारा तथा कॉरपोरेट घरानों द्वारा वन संपदा का दोहन हो रहा है इनको जो दंडित कर सकेगा वही नक्सल समस्या पर रोक लगा सकेगा। यही प्राचीन भारत का भारतीय साम्यवाद है जो मार्क्स के साम्यवाद से कहीं तगड़ा है। इसी साम्यवाद की साधना में मनुवादी पार्टी लगी हुई है तथा वह पश्चिमी साम्यवाद की जगह भारतीय साम्यवाद को लागू करना चाहती है। समस्त देशभक्त संगठनों से अनुरोध है कि वह सरकार पर दबाव बनाएं कि जो जंगल उजड़ चुके हैं उन पर सामाजिक वानिकी के अंतर्गत वन लगाए जाएं तथा उनमें स्थानीय मजदूरों को नियुक्त किया जाए तथा ठेकेदार बाहर के मजदूर लाकर फर्जी कार्यवाही ना कर सके। मनरेगा एक्ट की पैटर्न पर कोई एक्ट बना दिया जाए तथा इस संपत्ति का उपभोग वनवासी करें तथा वनवासियों में इस खाली जमीन के वितरण की कोई व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। वन उपज का वितरण कैसे होगा इस पर कोई व्यवस्था बनाई जाए जिससे उन पर वनवासियों का अधिकार सुनिश्चित किया जा सके। केवल शस्त्रों के बल पर स्वाभिमान को लंबे समय तक रौंदा नहीं जा सकता है। रामचरितमानस में निषाद राज ने भरत की संपूर्ण सेना को ललकारते हुए कहा है-
" सन्मुख लोह भरत सन लेहू।
जिअत न सुरसरि उतरन देहू।।
अर्थात आमने सामने मैं भरत से युद्ध करूंगा तथा जीते जी भरत की सेना गंगा नदी को पार नहीं कर पाएगी।"
जब अयोध्या की सुगठित भरत की सेना से निषादराज नहीं घबराया तो राजनाथ सिंह की सेना से नक्सली कैसे घबरा जाएंगे?
इसका उत्तर कभी विश्वामित्र के नेतृत्व में किए गए शस्त्र संचालन से तो कभी व्यास द्वारा निर्धारित जन कल्याण कार्यक्रमों से देना होगा। निषाद राज को गले लगाना होगा तथा यह व्यवस्था देनी होगी कि वह अपने जंगलों की उपज का उपभोग कर सके तथा बाहरी ठेकेदार, पूंजीपति और नेता उसकी संपत्तियों के मालिक ना बन जाए और उसको बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश ना कर सके यह भारतीय साम्यवाद है जिसे गांधी जी ने Trusteeship के सिद्धांत के रूप में प्रतिपादित किया है तथा जिसकी व्याख्या दीनदयाल उपाध्याय ने" एकात्म मानववाद" के रूप में की है। वेदव्यास का गरीबों का धन हड़पने वालों को चोर समझने का दर्शन, गांधी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत तथा दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद- इन तीनों को जोड़ दिया जाए तो नक्सलवादी समस्या स्वतः लगभग समाप्त प्राय हो जाएगी तथा उसका जो थोड़ा बहुत अवशेष बचेगा उसको शस्त्रों के बल पर सद्भावना लेकिन कठोरता के साथ कुचल देना होगा।
छत्तीसगढ़ में मारे गए अमर शहीदों को सादर नमन करते हुए मैं केंद्रीय सरकार से यह अनुरोध करता हूँ कि नक्सलियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही करके उनका उन्मूलन सुनिश्चित किया जय तथा साथ ही कॉर्पोरेट घरानों , ठेकेदारों, माफियाओं, नेताओं द्वारा वन सम्पदा के दोहन को रोका जाय तथा उन क्षेत्रों का विकास इस प्रकार किया जाए कि वे बाहरी पूंजीपतियों के गुलाम न बन जाए ताकि बार बार यह समस्या न उठे। पूरे भारत को बिहार में नीतीश कुमार के बारे में यह पढ़कर कष्ट हुआ कि वह शहीदों को न तो स्वयं सलाम करने गए और न ही अपना कोई मंत्री भेजा तथा जब शहीदों को सलामी दी जा रही थी तो वे किसी सरकारी या प्राइवेट कार्य में व्यस्त भी नही थे बल्कि सलामी स्थल के पास ही में स्थित एक सिनेमा हाल में पिक्चर का आनंद ले रहे थे। केंद्र सरकार को नीतीश सरकार को यह चेतावनी निर्गत करनी चाहिए कि यदि TV चैनलों पर प्रसारित यह समाचार गलत है तो इसका खंडन करे और उन्हें चेतावनी दें तथा यदि यह समाचार सही है तो राष्ट्र से तथा शहीदों के परिवार से बिना शर्त क्षमा याचना करनी चाहिए तथा इसकी पुनरावृत्ति न होने देने की कसम खानी चाहिए। इस प्रकार के कृत्यों से राष्ट्र की आत्मा छलनी हो जाती है।
समन्वित विकास के कदम अपरिहार्य हैं किन्तु उसकी प्रतीक्षा नहीं की जा सकती तथा शहीदों की तथा उनके परिवारों की आत्मा को शांति पहुंचाने के लिए उसी शैली में जवाब देना आवश्यक होगा जैसा कि राजनाथ सिंह ने कभी वाराणसी मिर्जापुर बेल्ट में दिया था। भारत की जनता राजनाथ सिंह से अपेक्षा करती है कि वह भावी प्रधानमंत्री बनने के चक्कर में आडवाणी की तरह नरमपंथी बनने का नाटक न करें बल्कि लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह की छवि को प्रदर्शित करने के लिए नक़ल को प्रभावी ढंग से रोकने वाले तथा उत्तर प्रदेश से नक्सल समस्या को समूल नष्ट कर देने वाले पुराने राजनाथ की भूमिका में वापस आएं अन्यथा देश की जनता उन्हें आडवाणी की तरह भुला देगी तथा वह सरदार पटेल की तरह युग पुरुष नहीं बन पाएंगे। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह गृह मंत्री को उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री वाले तेवरों में देश को वापस लौटा दे।
रुग्ण होना चाहता कोई नहीं,
रोग लेकिन आ गया जब पास ही हो।
तिक्त औषधि के सिवा उपचार क्या,
वह शमित होगा नहीं मिष्ठान्न से।।
(दिनकर)
जय हिन्द
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