#यूपी_में_महागठबंधन_से_भाजपा_को_लाभ_होगा
इस तथ्य पर विस्तृत#अगर_अखिलेश_और_राहुल_अलग_अलग_लड़े_होते_तो_भाजपा_को_इतनी_बड़ी_विजय_न_मिलती। गठबंधन के कारण नेताओं ने तो समझौता कर लिया किंतु कार्यकर्ताओं में Patch up नहीं हो पाया। जहां पर कांग्रेस का प्रत्याशी खड़ा था वहां यादवों का अधिकांश वोट भाजपा में चला गया क्योंकि सपा के सभी गुटों में तथा सभी संभावित प्रत्याशियों में इस बात पर सहमति थी कि अगर कांग्रेस जीत गई तो भविष्य में कभी सपा को इस सीट पर लड़ने का मौका नहीं मिलेगा। इसके अलावा यादवों की सवर्णों तथा विशेष रुप से ब्राह्मणों से तथा व्यापारियों से Chemistry नहीं बैठती है। इसी प्रकार जहां सपा का प्रत्याशी खड़ा था वहां कांग्रेस के सवर्णों ने भाजपा को वोट दे दिया तथा कांग्रेस में जो थोड़े बहुत दलित बचे थे उनमें से कुछ बसपा तथा कुछ भाजपा में चले गए किंतु अधिकांश वोटों का फायदा सपा को नहीं मिला। यादवों को सवर्णों तथा दलितों का वोट ट्रांसफर नहीं हो सकता। आप कह सकते हैं कि राम मंदिर आंदोलन के उग्र वातावरण में-
लेख मैं पूर्व में लिख चुका हूं कि किस प्रकार गठबंधन से विपक्ष की राह आसान नहीं होगी बल्कि और कठिन हो जाएगी। किसका वोट किसको ट्रांसफर हो सकता है- इसकी CHEMISTRY मैं विस्तार से बता चुका हूं। उसकी प्रतिध्वनि अब समाचार पत्रों में भी सुनाई पड़ रही है। पिछले विधानसभा चुनाव मेंइस तथ्य पर विस्तृत#अगर_अखिलेश_और_राहुल_अलग_अलग_लड़े_होते_तो_भाजपा_को_इतनी_बड़ी_विजय_न_मिलती। गठबंधन के कारण नेताओं ने तो समझौता कर लिया किंतु कार्यकर्ताओं में Patch up नहीं हो पाया। जहां पर कांग्रेस का प्रत्याशी खड़ा था वहां यादवों का अधिकांश वोट भाजपा में चला गया क्योंकि सपा के सभी गुटों में तथा सभी संभावित प्रत्याशियों में इस बात पर सहमति थी कि अगर कांग्रेस जीत गई तो भविष्य में कभी सपा को इस सीट पर लड़ने का मौका नहीं मिलेगा। इसके अलावा यादवों की सवर्णों तथा विशेष रुप से ब्राह्मणों से तथा व्यापारियों से Chemistry नहीं बैठती है। इसी प्रकार जहां सपा का प्रत्याशी खड़ा था वहां कांग्रेस के सवर्णों ने भाजपा को वोट दे दिया तथा कांग्रेस में जो थोड़े बहुत दलित बचे थे उनमें से कुछ बसपा तथा कुछ भाजपा में चले गए किंतु अधिकांश वोटों का फायदा सपा को नहीं मिला। यादवों को सवर्णों तथा दलितों का वोट ट्रांसफर नहीं हो सकता। आप कह सकते हैं कि राम मंदिर आंदोलन के उग्र वातावरण में-
मिले मुलायम कांशीराम
हवा में उड़ गए, जय श्री राम।
हवा में उड़ गए, जय श्री राम।
जब यह दृश्य हो चुका है तो फिर मैं किस आधार पर कह रहा हूं कि मायावती और अखिलेश के मिलने पर उनका वोट आपस में ट्रांसफर नहीं होगा?
इसका उत्तर है कि तब से दो नई परिस्थितियों आईं हैं
इसका उत्तर है कि तब से दो नई परिस्थितियों आईं हैं
#1आजादी_के_बाद_से_सवर्णों_का_देहात_से_पलायन_चालू_हुआ तथा वह बड़े शहरों,कस्बों तथा कहीं जगह नहीं पाए तो सड़क पर छोटे-छोटे कस्बों में बसने लगे। सबसे पहले देहात छोड़कर वैश्य वर्ग के लोग भगे। इसके बाद #मजदूरी_बढ़_जाने_तथा_धारा_229B_के_दुष्प्रभाव_से अराजक तत्वों ने देहात के शरीफ लोगों की जमीनों पर फर्जी दावे प्रस्तुत करके उनको बलपूर्वक कब्जा करना चालू कर दिया। इसके सबसे आसान TARGET वैश्य तथा कायस्थ वर्ग के लोग बने क्योंकि यह लोग सबसे कम बाहुबली थे। इसके बाद ब्राह्मणों में यह शौक जगा कि मेरा बेटा देहात में न पढ़कर शहर में पढ़े तथा मंडल कमीशन लागू होने के बाद यह शौक और बढ़ता गया क्योंकि बिना अच्छी पढ़ाई के तथा विशेष रूप से बिना अंग्रेजी के ज्ञान के कोई गुंजाइश नहीं है- यह धारणा ब्राह्मणों को देहात से उठा करURBAN तथा SEMI-URBAN क्षेत्रों में धकेलने लगी। इसी बीच टेंडर, कोटा, परमिट, सप्लाई तथा अन्य बाहुबल पर आधारित व्यापारिक जगत का उदय हुआ जिससे क्षत्रिय समाज के लोग तथा देहात में बचे हुए बाहुबली प्रकृति के ब्राह्मण भी शहर की ओर भागने लगे। #जब_काशीराम_तथा_मुलायम_मिले_थे_तब इस प्रक्रिया की शुरुआत थी तथा धीरे-धीरे यादव और कुर्मी तथा लोध ब्राह्मणों और क्षत्रियों का स्थान देहात में ले रहे थे। सवर्णों ने जो जमीन बेची उस का अधिकांश भाग यादव, कुर्मी तथा लोध खरीदे। जिन सवर्णों ने अपनी जमीन नहीं भी बेची वह भी मजदूरी के बढ़ जाने तथा खेती के अलाभकर हो जाने के कारण बड़ी संख्या में अपनी जमीन पिछड़ों को बटाई पर दे डाले। #अनुसूचित_जाति_अत्याचार_निवारण_अधिनियम_के_डर_से सवर्णों ने अपनी जमीन प्रायः ना तो दलितों को बेची और ना ही उनको बटाई पर दिया। भविष्य में कोई विवाद होने पर यादव की लाठी का मुकाबला तो कोई सवर्ण कर सकता था तथा कमजोर पड़ने पर किसी दूसरे बाहुबली सवर्ण को रिश्तेदारी या मित्रता जोड़कर अथवा पैसा देकर किराए पर बुला सकता था किंतु दलित अधिनियम की उसके पास कोई काट नहीं थी।
इलाहाबाद में दलित महिला का अपमान इस सीमा तक हुआ कि जिला स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों तथा तमाम छोटे कर्मचारियों का निलंबन करना पड़ा तथा जिन ठाकुरो को फिल्मों में अत्याचार करते दिखाया जाता था इस बार वे अत्याचार करने वाले लोग ठाकुर नहीं थे बल्कि पिछड़े वर्ग के थे जो कि सिंह की उपाधि लगाकर मांस और खून ढूंढ रहे थे तथा उनके सबसे आसान टारगेट दलित वर्ग के लोग थे। इसी बीच लखनऊ तथा तमाम महत्वपूर्ण जगहों पर काशीराम तथा मायावती के सीधे संपर्क में रहने वाले दलितों तक को पिछड़ों ने स्थानीय चुनाव में नामांकन नहीं करने दिया। एक उलझन भरी चिंतन में दलित समाज फस गया तथा उसे लगा कि वह गलत जगह फस गया।
इलाहाबाद में दलित महिला का अपमान इस सीमा तक हुआ कि जिला स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों तथा तमाम छोटे कर्मचारियों का निलंबन करना पड़ा तथा जिन ठाकुरो को फिल्मों में अत्याचार करते दिखाया जाता था इस बार वे अत्याचार करने वाले लोग ठाकुर नहीं थे बल्कि पिछड़े वर्ग के थे जो कि सिंह की उपाधि लगाकर मांस और खून ढूंढ रहे थे तथा उनके सबसे आसान टारगेट दलित वर्ग के लोग थे। इसी बीच लखनऊ तथा तमाम महत्वपूर्ण जगहों पर काशीराम तथा मायावती के सीधे संपर्क में रहने वाले दलितों तक को पिछड़ों ने स्थानीय चुनाव में नामांकन नहीं करने दिया। एक उलझन भरी चिंतन में दलित समाज फस गया तथा उसे लगा कि वह गलत जगह फस गया।
#2_इसी_बीच_मायावती_ने काशीराम का आशीर्वाद प्राप्त कर तथा अवसर की प्रतीक्षा कर रहे लालजी टंडन को राखी बांधकर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की ठानी तथा इसके बाद #State_Guest_House_कांड_में_क्या_हुआ- यह किसी से छिपा नहीं है।
मायावती ने दोस्ती सपा से भी की और भाजपा से भी की तथा दोनों से दोस्ती तोड़ी किंतु भाजपा से दोस्ती तोड़ने के बाद उन्हें कोई आक्रमण नहीं झेलना पड़ा तथा सपा से दोस्ती तोड़ने के बाद State Guest House कांड की त्रासदी झेलनी पड़ी। जब कृष्ण दुर्योधन से शांति वार्ता करने चले तो द्रोपदी ने कृष्ण से कहा-
मायावती ने दोस्ती सपा से भी की और भाजपा से भी की तथा दोनों से दोस्ती तोड़ी किंतु भाजपा से दोस्ती तोड़ने के बाद उन्हें कोई आक्रमण नहीं झेलना पड़ा तथा सपा से दोस्ती तोड़ने के बाद State Guest House कांड की त्रासदी झेलनी पड़ी। जब कृष्ण दुर्योधन से शांति वार्ता करने चले तो द्रोपदी ने कृष्ण से कहा-
तेरी कृष्णा के केशों को
दुःशासन दुष्ट ने केशव
भरी महफिल में खींचा है
इसे तुम भूल मत जाना
दुःशासन दुष्ट ने केशव
भरी महफिल में खींचा है
इसे तुम भूल मत जाना
लगातार यही संदेश मायावती अपने दलित समाज को देती रही हैं। इसके अलावा हर गांव में लगभग पिछड़ा वर्ग क्षत्रियों का स्थान ले चुका है तथा क्षत्रियों के जमाने में शरणागत हो जाने पर तो शरण भी मिल जाती थी किंतु अब हिंदी सिनेमा में ठाकुरों के जिस काल्पनिक अत्याचार का चित्रण राजशाही को दिखाने के लिए किया गया है उसका अभिनय अपनी प्रभुता प्रदर्शित करने के लिए दबंग पिछड़े वर्ग के बाहुबली करने लगे हैं। इसी का फल है कि #जितने_मुकदमे_पिछड़ों_के_विरुद्ध_हरिजन_एक्ट_के_कायम_हैं_उतने_मुकदमे_सवर्णों_के_विरुद्ध_नहीं_है।
लिहाजा अपने अपमान को भूलकर मायावती समझौता भले ही कर लें लेकिन गांव गांव में जो संघर्ष चालू हो चुका है उसका समापन अब ना तो अखिलेश के हाथ में है और ना ही मायावती के। जिस दिन मायावती और अखिलेश में समझौता हुआ उस दिन यह दोनों पार्टियां उत्तर प्रदेश से गायब हो जाएंगी जैसे कि कांग्रेस गायब हो गई है। #यदि_कांग्रेस_ने_बारी_बारी_से_सपा_और_बसपा_से_समझौता_न_किया_होता_तो_आज_वह_उत्तर_प्रदेश_की_राजनीति_से गायब न होती। समझौता होने की स्थिति में जो सीटें कांग्रेस ने पहले मायावती के लिए तथा बाद में अखिलेश के लिए छोड़ दी उनके अधिकांश कार्यकर्ता निराश होकर भाजपा में चले गए। जो सीट अखिलेश के लिए छूटेगी वहां पर बसपा का कार्यकर्ता क्या केवल हाथी की सेवा करेगा तथा मलाई अखिलेश का नेता खाएगा?
इसी प्रकार जो सीट मायावती के चेलों के लिए छूटेगी वहां पर क्या अखिलेश का कार्यकर्ता क्या केवल गाय भैंस का चारा पानी करेगा और दूध पीने तथा मलाई खाने की जिम्मेदारी मायावती और उनके गुर्गों को दे देगा?
व्यापक संख्या में सपा तथा बसपा दोनों के आधे नेता और कार्यकर्ता #स्वामी_प्रसाद_मौर्या_बृजेश_पाठक_रीता_बहुगुणा_जोशी_जैसे_महापुरुषों_के_दिखाए_रास्ते_पर_चल_पड़ेंगे तथा आज नहीं तो कल शायद कभी टिकट मिल ही जाए इस उम्मीद में भाजपा में दरी बिछाना चालू कर देंगे तथा RSS में अब हाफ पैंट की जगह फुल पैंट आ गया है अतः सुबह-शाम परेड करने में भी ज्यादा शर्म नहीं आएगी। इससे भाजपा की ताकत में बेतहाशा वृद्धि होगी तथा जो 5 सीटें सपा को तथा 2 सीटें कांग्रेस को मिली थी वह भी भाजपा को चली जाएंगी।
लिहाजा अपने अपमान को भूलकर मायावती समझौता भले ही कर लें लेकिन गांव गांव में जो संघर्ष चालू हो चुका है उसका समापन अब ना तो अखिलेश के हाथ में है और ना ही मायावती के। जिस दिन मायावती और अखिलेश में समझौता हुआ उस दिन यह दोनों पार्टियां उत्तर प्रदेश से गायब हो जाएंगी जैसे कि कांग्रेस गायब हो गई है। #यदि_कांग्रेस_ने_बारी_बारी_से_सपा_और_बसपा_से_समझौता_न_किया_होता_तो_आज_वह_उत्तर_प्रदेश_की_राजनीति_से गायब न होती। समझौता होने की स्थिति में जो सीटें कांग्रेस ने पहले मायावती के लिए तथा बाद में अखिलेश के लिए छोड़ दी उनके अधिकांश कार्यकर्ता निराश होकर भाजपा में चले गए। जो सीट अखिलेश के लिए छूटेगी वहां पर बसपा का कार्यकर्ता क्या केवल हाथी की सेवा करेगा तथा मलाई अखिलेश का नेता खाएगा?
इसी प्रकार जो सीट मायावती के चेलों के लिए छूटेगी वहां पर क्या अखिलेश का कार्यकर्ता क्या केवल गाय भैंस का चारा पानी करेगा और दूध पीने तथा मलाई खाने की जिम्मेदारी मायावती और उनके गुर्गों को दे देगा?
व्यापक संख्या में सपा तथा बसपा दोनों के आधे नेता और कार्यकर्ता #स्वामी_प्रसाद_मौर्या_बृजेश_पाठक_रीता_बहुगुणा_जोशी_जैसे_महापुरुषों_के_दिखाए_रास्ते_पर_चल_पड़ेंगे तथा आज नहीं तो कल शायद कभी टिकट मिल ही जाए इस उम्मीद में भाजपा में दरी बिछाना चालू कर देंगे तथा RSS में अब हाफ पैंट की जगह फुल पैंट आ गया है अतः सुबह-शाम परेड करने में भी ज्यादा शर्म नहीं आएगी। इससे भाजपा की ताकत में बेतहाशा वृद्धि होगी तथा जो 5 सीटें सपा को तथा 2 सीटें कांग्रेस को मिली थी वह भी भाजपा को चली जाएंगी।
#आखिर_इसका_इलाज_क्या_है?
जैसे बंगाल के ताजे उपचुनाव में मुसलमान ने फैसला कर लिया कि वह केवल एक सेकुलर पार्टी को जिंदा रख सकता है तथा शेष को भाजपा को रोकने के लिए दफन करना पड़ेगा।
सपा, बसपा और कांग्रेस में से किसी एक के साथ यदि मुसलमान चला जाए तो शेष दो का समापन अपने आप हो जाएगा तथा यह दोनों की दोनों समाप्तप्राय पार्टियां भाजपा में एक साथ ACCOMODATE नहीं हो पाएंगे तथा कोई ना कोई एक पार्टी बचेगी जिसमें समाप्त होने वाली दो पार्टियों में से कोई एक समाहित हो जाएगी। भाजपा में #चाहे_शिवपाल_यादव_चले_जाएं_चाहे_अपर्णा_यादव_किंतु_यादव_वोटर_भाजपा_में_नहीं_जाएगा क्योंकि उसका मुख्य मुकाबला गैर यादव OBC से है तथा दोनों को एक ही कोटे में नौकरी पानी है। यदि यादवों को महत्वपूर्ण पदों पर समायोजित किया गया तो बड़ी कठिनाई से भाजपा में लाया हुआ अति पिछड़ा वर्ग भाजपा को छोड़कर और कोई राह पकड़ेगा। इसी प्रकार #यदि_जाटव_समाज_को_भाजपा_ने_महत्व_देने_की_कोशिश_की_तो_गैर_जाटव_समाज_उसे_छोड़_देगा।
राजनाथ सिंह फार्मूले ने उत्तर प्रदेश में जो पिछड़े और अति पिछड़े में तथा जाटव और गैर जाटव में खाई पैदा की, वह दिन प्रतिदिन चौड़ी होती चली जा रही है। मान लीजिए कि अगर मुसलमान ने कांग्रेस का विकल्प चुना तो निराश होकर जाटव समाज को कांग्रेस में आने के लिए बाध्य हो जाना पड़ेगा क्योंकि सीटों की संख्या चुनाव लड़ने के लिए सीमित है तथा यही हाल सरकारी नौकरियों का है और गैर जाटव इतना टिकट भाजपा में पाने लगे हैं कि वहां जाटवों का समायोजन सफलतापूर्वक संभव नहीं है। इसी प्रकार अति पिछड़ों के चलते यादवों को राम नरेश यादव बनने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं बचेगा जिस दिन मुसलमान उनका साथ छोड़ देगा। क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में लोध, मौर्या, कुर्मी आदि पहले से भाजपा में समायोजित हैं कि यादवों के लिए अब वहां कोई सम्मानजनक गुंजाइश नहीं है। कोई पूछ सकता है कि जब मैं यह कहता हूं कि सवर्ण वोट सपा में ट्रांसफर नहीं हो सकता तो फिर यादव कांग्रेस में समायोजित कैसे होगा?
उत्तर है कि ब्राह्मण और क्षत्रिय तब तक किसी यादव के नेतृत्व में काम नहीं करना चाहते जब तक कि उनके पास कांग्रेस और भाजपा की वैकल्पिक दुकानें मौजूद हो। किंतु उन पर उत्पीड़नात्मक कार्रवाई भी कोई यादव नहीं कर पाएगा विशेष रुप से उस समय जबकि कांग्रेस या भाजपा की सरकार हो। #यदि_यादव_को_भाजपा_ले_लेगी_तो_अति_पिछड़ा_वर्ग_उस_दशा_में_कांग्रेस_की_शरण_में_आ_जाएगा।
चुनाव में सीट दर सीट जहां पर ब्राह्मण प्रत्याशी होगा वहां ब्राह्मण तथा जहां क्षत्रिय प्रत्याशी होगा वहां क्षत्रिय भी कांग्रेस में आ जाएगा क्योंकि इन दोनों समाजों में भाजपा और कांग्रेस दोनों की स्वीकार्यता है तथा कांग्रेस को वोट इसलिए नहीं मिल रहे हैं क्योंकि उसके पास दलितों और मुसलमानों का तथा अन्य पिछड़े का वोट नहीं है और वह सत्ता की दौड़ के बाहर है। इसी प्रकार यदि मुसलमान हाथी में चला गया तो मायावती सत्ता के बेहद करीब पहुंच जाएंगी तथा यदि #उन्होंने_ब्राह्मणों_की_जबान_सतीश_मिश्रा_की_तरह_बंद_नहीं_कर_दी तथा उन्हें टीवी पर बकवास करने की तथा अखबारों में लेख लिखने और बयान देने की तथा मंच पर दहाड़ने की छूट दे दी तथा उनके प्रति उनका उतना भी विनम्र भाव रहा जितना कि जगजीवन राम और महावीर प्रसाद के प्रति नेहरू परिवार का था तो एक अच्छी खासी संख्या में ब्राह्मण पुनः हाथी में लौट आएगा। देवताओं के गुरु यदि बृहस्पति होते हैं तो दैत्यों के शुक्राचार्य तथा दोनों में कोई आपसी विवाद नहीं होता। इस युग में भी इलाहाबाद में करवरिया परिवार के एक सदस्य बसपा में सांसद रहे हैं तो दूसरे सदस्य भाजपा के विधायक रहे हैं। बसपा के इस पतन के काल में भी तथा पर्याप्त सम्मान ना मिलने पर भी आखिर हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय तिवारी, रामवीर उपाध्याय तथा श्याम सुंदर शर्मा जैसे लोगों के क्षेत्र में सीने पर पत्थर रखकर ही सही आखिर ब्राह्मण ने हाथी की ऐसी बटन दबाई कि #कोई_EVM_मशीन_उसका_वोट_गड़बड़_ना_कर_सकी। पुनः यदि अखिलेश का साथ मुसलमान देता है तो उस हालत में सवर्णों में से क्षत्रिय समाज को अच्छी संख्या में अखिलेश खींच सकते हैं बशर्ते वह किसी रामगोपाल यादव को औकात में ला दें तथा वह हर समर्थक को उजाड़ने के चक्कर में ना पड़ जाए। #रामगोपाल_यादव_जैसे_महापुरुष_अखिलेश_के_THINK_TANK_हैं जो बारी-बारी से बेनी वर्मा, आजम खान, राजा भैया, अमनमणि त्रिपाठी तथा अमरसिंह जैसों को पार्टी से बाहर निकालने का आजीवन प्रयास करते रहे।
दलितों में पासी वर्ग भी अच्छी संख्या में उचित माहौल पाने पर तथा सम्मानजनक स्थान पाने पर अखिलेश के साथ आ सकता है क्योंकि क्षत्रियों तथा पासीयों को यादवों की लाठी देखकर डर नहीं लगता तथा वह आवश्यकता पड़ने पर उन से निपट लेने में अपने को सक्षम मानते हैं। ब्राह्मण जब यादवों से खतरा महसूस करता है तो कभी वह अति पिछड़ों और अति दलितों की बांह पकड़कर राजनाथ सिंह फार्मूले की चर्चा में मशगूल हो जाता है तो कभी दुर्वासा ऋषि की तरह अखिलेश जैसों को उनकी औकात बताने के लिए हाथी तक की बटन दबा देता है।
जैसे बंगाल के ताजे उपचुनाव में मुसलमान ने फैसला कर लिया कि वह केवल एक सेकुलर पार्टी को जिंदा रख सकता है तथा शेष को भाजपा को रोकने के लिए दफन करना पड़ेगा।
सपा, बसपा और कांग्रेस में से किसी एक के साथ यदि मुसलमान चला जाए तो शेष दो का समापन अपने आप हो जाएगा तथा यह दोनों की दोनों समाप्तप्राय पार्टियां भाजपा में एक साथ ACCOMODATE नहीं हो पाएंगे तथा कोई ना कोई एक पार्टी बचेगी जिसमें समाप्त होने वाली दो पार्टियों में से कोई एक समाहित हो जाएगी। भाजपा में #चाहे_शिवपाल_यादव_चले_जाएं_चाहे_अपर्णा_यादव_किंतु_यादव_वोटर_भाजपा_में_नहीं_जाएगा क्योंकि उसका मुख्य मुकाबला गैर यादव OBC से है तथा दोनों को एक ही कोटे में नौकरी पानी है। यदि यादवों को महत्वपूर्ण पदों पर समायोजित किया गया तो बड़ी कठिनाई से भाजपा में लाया हुआ अति पिछड़ा वर्ग भाजपा को छोड़कर और कोई राह पकड़ेगा। इसी प्रकार #यदि_जाटव_समाज_को_भाजपा_ने_महत्व_देने_की_कोशिश_की_तो_गैर_जाटव_समाज_उसे_छोड़_देगा।
राजनाथ सिंह फार्मूले ने उत्तर प्रदेश में जो पिछड़े और अति पिछड़े में तथा जाटव और गैर जाटव में खाई पैदा की, वह दिन प्रतिदिन चौड़ी होती चली जा रही है। मान लीजिए कि अगर मुसलमान ने कांग्रेस का विकल्प चुना तो निराश होकर जाटव समाज को कांग्रेस में आने के लिए बाध्य हो जाना पड़ेगा क्योंकि सीटों की संख्या चुनाव लड़ने के लिए सीमित है तथा यही हाल सरकारी नौकरियों का है और गैर जाटव इतना टिकट भाजपा में पाने लगे हैं कि वहां जाटवों का समायोजन सफलतापूर्वक संभव नहीं है। इसी प्रकार अति पिछड़ों के चलते यादवों को राम नरेश यादव बनने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं बचेगा जिस दिन मुसलमान उनका साथ छोड़ देगा। क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में लोध, मौर्या, कुर्मी आदि पहले से भाजपा में समायोजित हैं कि यादवों के लिए अब वहां कोई सम्मानजनक गुंजाइश नहीं है। कोई पूछ सकता है कि जब मैं यह कहता हूं कि सवर्ण वोट सपा में ट्रांसफर नहीं हो सकता तो फिर यादव कांग्रेस में समायोजित कैसे होगा?
उत्तर है कि ब्राह्मण और क्षत्रिय तब तक किसी यादव के नेतृत्व में काम नहीं करना चाहते जब तक कि उनके पास कांग्रेस और भाजपा की वैकल्पिक दुकानें मौजूद हो। किंतु उन पर उत्पीड़नात्मक कार्रवाई भी कोई यादव नहीं कर पाएगा विशेष रुप से उस समय जबकि कांग्रेस या भाजपा की सरकार हो। #यदि_यादव_को_भाजपा_ले_लेगी_तो_अति_पिछड़ा_वर्ग_उस_दशा_में_कांग्रेस_की_शरण_में_आ_जाएगा।
चुनाव में सीट दर सीट जहां पर ब्राह्मण प्रत्याशी होगा वहां ब्राह्मण तथा जहां क्षत्रिय प्रत्याशी होगा वहां क्षत्रिय भी कांग्रेस में आ जाएगा क्योंकि इन दोनों समाजों में भाजपा और कांग्रेस दोनों की स्वीकार्यता है तथा कांग्रेस को वोट इसलिए नहीं मिल रहे हैं क्योंकि उसके पास दलितों और मुसलमानों का तथा अन्य पिछड़े का वोट नहीं है और वह सत्ता की दौड़ के बाहर है। इसी प्रकार यदि मुसलमान हाथी में चला गया तो मायावती सत्ता के बेहद करीब पहुंच जाएंगी तथा यदि #उन्होंने_ब्राह्मणों_की_जबान_सतीश_मिश्रा_की_तरह_बंद_नहीं_कर_दी तथा उन्हें टीवी पर बकवास करने की तथा अखबारों में लेख लिखने और बयान देने की तथा मंच पर दहाड़ने की छूट दे दी तथा उनके प्रति उनका उतना भी विनम्र भाव रहा जितना कि जगजीवन राम और महावीर प्रसाद के प्रति नेहरू परिवार का था तो एक अच्छी खासी संख्या में ब्राह्मण पुनः हाथी में लौट आएगा। देवताओं के गुरु यदि बृहस्पति होते हैं तो दैत्यों के शुक्राचार्य तथा दोनों में कोई आपसी विवाद नहीं होता। इस युग में भी इलाहाबाद में करवरिया परिवार के एक सदस्य बसपा में सांसद रहे हैं तो दूसरे सदस्य भाजपा के विधायक रहे हैं। बसपा के इस पतन के काल में भी तथा पर्याप्त सम्मान ना मिलने पर भी आखिर हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय तिवारी, रामवीर उपाध्याय तथा श्याम सुंदर शर्मा जैसे लोगों के क्षेत्र में सीने पर पत्थर रखकर ही सही आखिर ब्राह्मण ने हाथी की ऐसी बटन दबाई कि #कोई_EVM_मशीन_उसका_वोट_गड़बड़_ना_कर_सकी। पुनः यदि अखिलेश का साथ मुसलमान देता है तो उस हालत में सवर्णों में से क्षत्रिय समाज को अच्छी संख्या में अखिलेश खींच सकते हैं बशर्ते वह किसी रामगोपाल यादव को औकात में ला दें तथा वह हर समर्थक को उजाड़ने के चक्कर में ना पड़ जाए। #रामगोपाल_यादव_जैसे_महापुरुष_अखिलेश_के_THINK_TANK_हैं जो बारी-बारी से बेनी वर्मा, आजम खान, राजा भैया, अमनमणि त्रिपाठी तथा अमरसिंह जैसों को पार्टी से बाहर निकालने का आजीवन प्रयास करते रहे।
दलितों में पासी वर्ग भी अच्छी संख्या में उचित माहौल पाने पर तथा सम्मानजनक स्थान पाने पर अखिलेश के साथ आ सकता है क्योंकि क्षत्रियों तथा पासीयों को यादवों की लाठी देखकर डर नहीं लगता तथा वह आवश्यकता पड़ने पर उन से निपट लेने में अपने को सक्षम मानते हैं। ब्राह्मण जब यादवों से खतरा महसूस करता है तो कभी वह अति पिछड़ों और अति दलितों की बांह पकड़कर राजनाथ सिंह फार्मूले की चर्चा में मशगूल हो जाता है तो कभी दुर्वासा ऋषि की तरह अखिलेश जैसों को उनकी औकात बताने के लिए हाथी तक की बटन दबा देता है।
एक प्रश्न उठता है कि#आखिर_बिहार_में_महा_गठबंधन_के_वोट_आपस_में_ट्रांसफर_क्यों_हो_गए?
उत्तर है कि कांग्रेस के सवर्णों को मालूम था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बनना है तथा लालू की हैसियत इतनी ही रहेगी कि बड़ा दल होने के बावजूद जब चाहेंगे नीतीश उनके बेटे के खिलाफ जांच चालू कर देंगे। इसलिए लालू से उसको परहेज नहीं रहा ।पुनः लालू यादव थे तथा नीतीश कुमार कुर्मी तथा यह दोनों उसी प्रकार की लगभग समान जातियां थी जैसे ब्राह्मण और क्षत्रिय। तमाम मतभेदों के बावजूद जैसे ब्राह्मण तथा क्षत्रिय परस्पर दंड प्रणाम का समीकरण बनाए रखते हैं तथा जब आवश्यकता अनुभव करते हैं तो कभी एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं तथा कभी एक दूसरे से ताल ठोकते हैं वही हालात यादवों और कुर्मियों के बीच है। किंतु जैसे महागठबंधन बनने पर कम्युनिस्टों तथा ममता के वोट एक दूसरे को ट्रांसफर नहीं हो सकते और ना ही कांग्रेस अपना वोट ट्रांसफर करा सकती है उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बनने पर कांग्रेस,सपा तथा बसपा आपस में एक दूसरे को वोट ट्रांसफर नहीं करा पाएंगे तथा #भाजपा_के_अच्छे_दिन_आ_जाएंगे।
उत्तर है कि कांग्रेस के सवर्णों को मालूम था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बनना है तथा लालू की हैसियत इतनी ही रहेगी कि बड़ा दल होने के बावजूद जब चाहेंगे नीतीश उनके बेटे के खिलाफ जांच चालू कर देंगे। इसलिए लालू से उसको परहेज नहीं रहा ।पुनः लालू यादव थे तथा नीतीश कुमार कुर्मी तथा यह दोनों उसी प्रकार की लगभग समान जातियां थी जैसे ब्राह्मण और क्षत्रिय। तमाम मतभेदों के बावजूद जैसे ब्राह्मण तथा क्षत्रिय परस्पर दंड प्रणाम का समीकरण बनाए रखते हैं तथा जब आवश्यकता अनुभव करते हैं तो कभी एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं तथा कभी एक दूसरे से ताल ठोकते हैं वही हालात यादवों और कुर्मियों के बीच है। किंतु जैसे महागठबंधन बनने पर कम्युनिस्टों तथा ममता के वोट एक दूसरे को ट्रांसफर नहीं हो सकते और ना ही कांग्रेस अपना वोट ट्रांसफर करा सकती है उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बनने पर कांग्रेस,सपा तथा बसपा आपस में एक दूसरे को वोट ट्रांसफर नहीं करा पाएंगे तथा #भाजपा_के_अच्छे_दिन_आ_जाएंगे।

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