आरक्षण का समापन
कैसे ?
अध्याय – 4
हमें यह नहीं भूलना
चाहिए कि विचारधारा के संघर्ष तथा जातिगत संघर्ष की बार बार चर्चा होती है किन्तु
हकीकत है कि जातिगत संघर्ष आदमी का अपनी जाति से होता है | इसी प्रकार अंतिम
संघर्ष अपनी विचारधारा से है | अडवाणी सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा कर भाजपा को
रंगमंच में लाये तो पहले चरण में समन्वय के नाम पर तथा सर्वस्वीकार्यता की आड़ में
पूर्ण बहुमत न होने से अटल जी गद्दीनशीन हो गए | दुबारा अडवाणी जी जब दूल्हा बनने
को तैयार हुए, तो मोदी जी ने लत्ती मार दी | इतना पीछे पड़े कि पिंजड़े के तोते ने
ऐसी चोट मारी कि राष्ट्रपति का पद भी ठिठक कर दूर जा गिरा तथा कोर्ट में चार्जशीट
बोनस में | अगर सजा हो गयी तो रामलला को भी लगेगा कि जिन्ना का जयकारा करने का
दण्ड मिला | मुलायम को मायावती या मोदी झटका नहीं दे पाए – अपने ही बेटे ने बुढ़ापे में उन्हें अपनी औकात बता दी | चचा
शिवपाल का कद भतीजे ने नापा, किसी गैर ने नहीं | संजय के न रहने के बाद इंदिरा को
चुनौती बहू मेनका से मिली तथा सास ने ही मेनका को घर से निकाला | सोनिया को उनके
ही द्वारा नामित नरसिंहराव ने किनारे कर दिया तथा सीताराम केसरी को भगाने का काम
सोनिया के चेलों ने किया, किसी भाजपाई ने नहीं | काशीराम को सद्गति तथा अघोषित
वनवास देने का सच्चा या झूठा आरोप मायावती पर ही लगा | जातिगत आधार पर देखें तो
हरिशंकर तिवारी को राजेश तिवारी ने हराया तथा इसका बदला राजेश तिवारी से हरिशंकर
के बेटे ने लिया | कुशल तिवारी को शरद त्रिपाठी से हार मिली | रमाकांत यादव और
मुलायम आपस में भिड़े तो शेर की तरह दहाड़ते हुए ब्रजभूषण सिंह का माथा दुसरे सिंह
पंडित सिंह ने ही सहलाया | मैंने कभी गाय के पीछे भैंस को या भैंसा के पीछे सांड
को भागते नहीं देखा | खेत, मकान, दूकान का बटवारा अपने पट्टीदार से होगा | दहेज़,
तलाक, दहेज़हत्या का मुकदमा अपने रिश्तेदार से लड़ना है | प्रधान, बी.डी.सी., जिला
पंचायत सदस्य, ब्लाक प्रमुख, अध्यक्ष जिला पंचायत का चुनाव अपने समाज के लोगो से
होना है |
आरक्षण होना चाहिए या नहीं होना चाहिए - इस पर
एकता की आवश्यकता थी इसीलिए इस मुद्दे पर उस युग में दलितों या पिछड़ों में एकता
बनी किन्तु जैसे ही दलितों को आरक्षण मिल गया, डा. अम्बेडकर साहब केवल श्रद्धा के
पात्र रह गए | दलित ने पैर छुए डा. अम्बेडकर या मरणोपरांत उनके चित्र के किन्तु
जगजीवनराम जैसे के माध्यम से कांग्रेस का वोटबैंक बन गया | यही हाल पिछड़ों का है |
जब तक मण्डल कमीशन विवादास्पद था, सारे पिछड़े एक थे | लेकिन जैसे ही मण्डल कमीशन
लागू हो गया, पिछड़ों की एकता हवा हो गयी | यादव मुख्यमंत्री बनते ही कुर्मी, लोध, गूजर,
जाट आदि जातियों के जितने कद्दावर नेता थे, यादवों से उनका 36 का आंकड़ा हो गया |
रामविलास पासवान, उदितराज आदि आदि दलित महापुरुष पहले से माया के बागी थे |
दीनानाथभास्कर, रामसमुझपासी, जुगल किशोर, इन्द्रजीत सरोज कहाँ रह गए ? यदि जाटव (
गौतम ) को नौकरी मिलेगी तो किसी पासी, खटिक, धोबी की घटेगी |
यदि किसी यादव को
नौकरी मिलती है, तो जाटव का नाम काटकर उसका नाम नहीं जोड़ा जा सकता – उसके लिए किसी
कुर्मी, लोहार, बढई, लोध, गूजर, जाट का नाम काटना पड़ेगा – इतना ही नहीं यदि सैफई,
इटावा, कन्नौज, मैनपुरी, एटा, फीरोजाबाद के यादव थोक के भाव में नौकरी पाएंगे तो
अन्य जिलों में यादवों की स्थिति दीन
सुदामा की हो जाएगी | इसी प्रकार
यदि मायावती के राज्य में जाटव चमकेंगें, तो किसी यादव के सितारे गर्दिश में नहीं
होंगे बल्कि पासी, बाल्मीकि, धोबी आदि को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा | इतना ही
नहीं, यदि मेरठ मण्डल तथा हरयाणा, पंजाब के जाटव ( गौतम ) चमकेंगें तो यू. पी. के
गौतम प्रभाहीन हो जायेंगें |
जिन जातियों का वोट
बैंक बन चूका था, उनमे तो दरारे पड रहीं है |
फिर ऐसे परिवेश में सवर्णों का वोट बैंक हवा हवाई कल्पना है – चाहे यह थोक
सवर्ण वोट बैंक हो या फुटकर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या कायस्थ या भूमिहार वोट
बैंक |
इसीलिए सवर्ण एकता,
पिछड़ी एकता या दलित एकता विचारधारा के आधार पर संभव ही नहीं है | यदि यह संभव नहीं
है, तो मनुवादी पार्टी इस वोट बैंक का निर्माण कैसे करेगी ? इसका उत्तर अगले
अध्याय में .............
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