उपकरण नहीं हैं कोई,
अनुराग नहीं ऐसा है |
जो कभी नहीं स्वीकारे,
कोई कब तुम जैसा है || 12 ||
तुम पर न्यौछावर होता,
वसुधा का सारा वैभव |
न्यौछावर हो सकता है,
मुग्धा परियों का शैशव || 13 ||
कल्पने,प्राप्ति – पथ स्वामिनि,
बस सहज तुम्हारी इच्छा |
कुछ भी न जगत में जिसकी,
तुम करती कभी प्रतीक्षा || 14 ||
यति स्वयं तुम्हारी गति है,
रति स्वयं तुम्हारी चेरी |
सोचने और पाने में,
लगती न एक क्षण देरी || 15 ||
मेरी आशा को केवल,
तुम ही स्वर दे पाती हो |
वातायन स्वागत करता,
जिस द्वारे तुम आती हो || 16 ||
है बिना तुम्हारे रीता,
यह भरा – भरा सा दिन है |
तुम पास नहीं यदि मेरे,
तो लगता प्रात मलिन है || 17 ||
क्रमशः ....
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