कल्पना बताओ तुमने,
यह काम - कला कब
सीखी |
जिसके आगे लगती है,
वसुधा की सब निधि
फीकी || 24 ||
मेरे आंगन में आओ,
मेरी बाँहों में
लिपटो |
तुम मेरी हो, मेरी
हो,
मेरी बाँहों में
सिमटो || 25 ||
सिमटो, बिखरो, फैलो
तुम,
प्रज्ञा के वातायन
में |
जैसे सुधियां बसती
है,
प्रेयसि के अरुण नयन
में || 26 ||
कवि तुम क्या सोच
रहे हो,
कल्पना तुम्हारे
द्वारे |
आएगी बढ़कर आगे,
अनुरागी हाथ पसारे
|| 27 ||
तुमको ही आगे बढ़कर,
अगवानी करना होना |
अंतस के मृदु भावों
को,
कवि – वाणी करना
होना || 28 ||
कल्पना अल्पना
दोनों,
जीवन की दो बाहें
हैं |
जीवन की दो साधें
है,
जीवन की दो राहें
हैं || 29 ||
क्रमशः ......
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