Sunday, 8 October 2017

पावस में बादल प्यासा |


कल्पना बताओ तुमने,
यह काम - कला कब सीखी |
जिसके आगे लगती है,
वसुधा की सब निधि फीकी || 24 ||

मेरे आंगन में आओ,
मेरी बाँहों में लिपटो |
तुम मेरी हो, मेरी हो,
मेरी बाँहों में सिमटो || 25 ||
सिमटो, बिखरो, फैलो तुम,
प्रज्ञा के वातायन में  |
जैसे सुधियां बसती है,
प्रेयसि के अरुण नयन में || 26 ||

कवि तुम क्या सोच रहे हो,
कल्पना तुम्हारे द्वारे |
आएगी बढ़कर आगे,
अनुरागी हाथ पसारे || 27 ||

तुमको ही आगे बढ़कर,
अगवानी करना होना |
अंतस के मृदु भावों को,
कवि – वाणी करना होना || 28 ||

कल्पना अल्पना दोनों,
जीवन की दो बाहें हैं |
जीवन की दो साधें है,
जीवन की दो राहें हैं || 29 ||
क्रमशः ......


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