सविधानेतर सत्ता से
तात्पर्य है
“बिना किसी
उत्तरदायित्व के अधिकारों का उपभोग “| बिना पद ग्रहण किये अधिकारों का उपभोग |
इसके दृष्टान्त हैं –
1 – प्राचीन काल में
ब्राह्मणों द्वारा राजसत्ता पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण –
देखने में ब्राह्मण राजसत्ता से दूर वन
में कुटी में निवास करता था किन्तु राजा आश्रम में प्रवेश से पूर्व अपना मुकुट तथा
अपने जूते उतार देता था तथा ॠषि के सामने साष्टांग दण्डवत प्रणाम ( पेट के बल जमीन
पर ऐसा लेट जाना कि शरीर आठ जगह जमीन को स्पर्श करे | ( मुग़ल दरबार के फर्शी सलाम से भी कठिन था | एक ही
स्वर था – ‘मैं सेवक समेत सुत नारी’|
‘मैं तुम्हारा अनुचर मुनिराया ||’
2 – चाणक्य और
चन्द्रगुप्त मौर्य
3 – गाँधी और
कांग्रेस पार्टी | पूर्ण बहुमत से सुभाष चन्द्र बोस के जीतने पर भी जब गांधी ने यह
कह दिया कि “ पट्टामि सीता मैय्या की हार मेरी हार है”| तो सुभाष चन्द्र बोस को
कांग्रेस की अध्यक्षता से त्यागपत्र देना पड़ा |
4 – R.S.S. तथा
जनसंघ / भाजपा /
5 – यहूदी लाबी तथा
अमरीका आदि |
R.S.S. तथा गाँधी
किसी एक दल की EXTRA – Constitutional Authority बन पाए
| मनुवादी पार्टी हर दल की संविधानेतर सत्ता बनना चाहती है | चाहे कोई सत्ताधारी
बने, हमारा चरणसेवक रहे |
रास्ता क्या है ?
स्थानान्तरणीय वोट ( Transferable vote bank ) प्रजातंत्र
का Atom Bomb है | सुनामी चुनाव में कभी कभी आती है | उत्तर प्रदेश में जबसे मैंने
होश संभाला, इतनी बड़ी सुनामी देखी है, जिससे किसी पार्टी के अज्ञात चेहरे ( Unknown
Faces ) भी जीत कर आ गए -
1 – जब देश आजाद हुआ
2 – जब इंदिरा जी ने
बांग्लादेश विजय किया
3 – जब आपात काल के बाद
जनता पार्टी सत्ता में आई
4 – जब इंदिरा जी की
हत्या हुई
5 – जब मोदी
प्रधानमंत्री तथा
6 – जब योगी
मुख्यमंत्री बने |
निन्मलिखित अवसरों
पर हवा बही जिसे सुनामी तो छोडिये, आंधी या तूफान कहना भी शायद गलत होगा |
1 – जब आपातकाल के
बाद जनता पार्टी के असफल प्रदर्शन के बाद इंदिरा जी सत्ता में आई |
2 – जब बोफोर्स के
मुद्दे पर वी.पी. सिंह ने जनता को विश्वास में लिया |
3 – जब बाबरी मस्जिद
/ विवादित ढांचा गिरा |
4 – जब मायावती तथा
5 – अखिलेश यादव की
पूर्ण बहुमत की सरकार आई |
सुनामी के 6 मौकों
पर Transferable Vote
bank जब तक बहुत व्यापक स्तर पर न होता, तब तक
कोई खासा प्रभाव न होता तथा परिणाम भी लगभग निरर्थक होता लेकिन व्यापक बहुमत पाने
वाला प्रत्याशी अंतिम क्षण तक प्रायः संशय में रहता है कि जीतेगा या हारेगा | वह
तनाव में रहता है | जिसकी जीत सुनिश्चित होती है तथा सुनामी के बाद सर्वथा
सुनिश्चित होती है, तथा जिसे कोई भी संशय नहीं होता उसके सामने जीत सुनिश्चित होने
के बावजूद भी एक अजीब लाग – डॉट ( competition ) होता है जैसे – अपनी सीट पर मोदी ज्यादा वोट से
जीते या General v.k.singh या योगी आदित्यनाथ | सुनामी के बावजूद भी लक्ष्मीकांत
बाजपेयी जैसे महापुरुष विधायिकी हार जाते हैं तथा 2 दर्जन विधायक marginal votes
से जीतते है | सांसद के चुनाव में भी बस्ती तथा गाजीपुर जैसी सीटों में Transferable Vote bank हल्का सा भी होता तो कहर बरपा कर दिए होता तथा
भाजपा के पूर्ण बहुमत को रोकने में सफल होता |
इसी को अमेरिकी
साहित्य में Pressure Group के नाम से राजनीतिज्ञ जानते है | Pressure Group जितना
प्रभावी होता है, उतना बड़ा से बड़ा दल नहीं हो सकता | यह अलग बात है कि अधिकांश दल
भी Pressure Group की तरह काम कर रहे हैं तथा अपनी औकात से कुछ बढ़कर ही सत्ता में
भागीदारी पाकर संतुष्ट हो जाते हैं | उन्हें संविधानेतर सत्ता के स्वाद का ज्ञान
ही नहीं है | मनुवाद इसके मर्म को अच्छी तरह समझते हैं, जिसके माहात्म्य का ज्ञान
न होने से बाकी दल सत्ता में भागीदारी की ललक रखते हैं |
संविधानेतर सत्ता
चलाने वाले कभी धरना प्रदर्शन नहीं करते | उनका आदेश चलता है | शक्ति अर्जित करने
के लिए तपस्या पूरी नहीं होती है, तब तक उसके शरीर पर दीमक लग जाए उसे परवाह नहीं
| तपस्या पूरी होने पर सुकन्या के हाथों च्यवनप्रकाश खाकर ठीक हो जायेगा | पूरी की
पूरी राजकीय सेना का मलमूत्र अवरुद्ध करने की शक्ति आ जाएगी | जब ॠषि की झाडी साफ़
नहीं हुई तथा ॠषिपुत्र को सांप ने काट लिया, तो कोई ॠषि शाम्बूक से लड़ने झगड़ने तथा
उससे बेगार कराने नहीं गया | कोई गाली गलौज नहीं | कोई बहस नहीं | केवल एक लाइन की
घोषणा – राम का राज्य धर्मराज्य नहीं रहा | पिता के रहते पुत्र की मृत्यु हो जाए –
ऐसा धर्मराज्य में कैसे हो सकता है ? वर्णाश्रम व्यवस्था खतरे में - ब्राह्मण की मर्यादा खतरे में | ( जैसे
समाजवादी पार्टी / कांग्रेस के राज्य में हर क्षण इस्लाम खतरे में रहता है | )
राम, जो केवट को गले लगाते थे, जो शबरी के जूठे बेर खाते थे, जो एक धोबी तक के
तुष्टीकरण के लिए माँ सीता को वाल्मीकि आश्रम भेज दिए थे – उन्हें भी
गोद्विजहितकारी तथा मर्यादापुरुषोत्तम बने रहने के लिए उस समय लागू संविधान के
प्रावधानों के अनुरूप शम्बूक समस्या का निस्तारण करना पड़ा | सत्ता को विचलित करने
का नशा बड़ा विलक्षण होता है | प्रजातंत्र में यह केवल transferable vote bank कर सकता है | यह कैसे बनाया जाए ?
विचारधारा इसका मूल
है | मगर इसके आधार पर transferable
vote bank नहीं बन सकता | यहीं अम्बेडकर साहब fail हो गए
तथा मायावती ने बाजी मार ली | अम्बेडकर साहब खुद दलितों का वोट गांधी के मुकाबले
प. मदन मोहन मालवीय या अनन्तश्री करपात्री जी महाराज या परम पूजनीय गोलवलकर जी को
नहीं दिला सकते थे | किन्तु मायावती जी स्टेट गेस्ट हाउस काण्ड के मुल्जिमो को भी vote transfer कर सकती हैं | [ transferable vote bank क्यों अम्बेडकर नहीं बना पाए तथा क्यों मायावती
बना लें गई ? उत्तर है ] अगले अध्याय में ..........
बहुत ही शानदार और सारगर्भित लेख है बुद्धि को चहुँओर से खोल दिया है पढ़ के मज़ा आया ।
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