Thursday, 28 September 2017

पावस में बादल प्यासा


जब दो प्यासे आते हैं,
लेकर दो मधु – घट प्यासे |
तो केवल भरते हैं वे,
अर्पण से या कविता से || 6 ||

मैंने तुमको देखा था,
कल पतझर की बाहों में |
तुम आज आ गयी कैसे,
इन बासन्ती चाहों में || 7 ||

नभ – पथ की चिर संगिनि तुम,
प्रतिबन्ध न तुमने माना |
तुम तो अलक्ष्य छविशीला,
पहचाना जिसने जाना || 8 ||

स्वीकार न तुमको बंधन,
स्वीकार न तुमको छाया |
आवरण न तुमने डाला,
उन्मुक्त तुम्हारी माया || 9 ||

कोई भी शक्ति नहीं है,
अवरुद्ध तुम्हें कर पाए |
दिन में भी तुमको दिखते,
निशि के सपने मनभाये || 10 ||

आमोद तुम्हारा स्वर है,
उल्लास तुम्हारी भाषा |
तुम जहाँ कहीं रहती हो,
रहता न एक भी प्यासा || 11 ||


क्रमशः .........

No comments:

Post a Comment