Tuesday, 12 September 2017

सोच रहा मैं कैसे तुमको मन का चित्र उतार भेज दूँ |



वाणी का श्रृंगार छिन गया
और दृष्टि का प्यार छिन गया |
भावो के कल्पना जगत का
वह स्वप्निल उपहार छिन गया ||

प्राण – पपीहा अब भी प्यासा
मिलनाशा की रटन लगाये |
पिया –पिया की टेर सुनाये
नित्य वसंती विरह मनाये ||

हँसते हुए फूल भाते हैं
सब बढ़ उनको दुलराते हैं |
मन की गहन वेदना को पर
कितने लोग समझ पाते हैं ||

तुमने लिखा मिलन गीतों का
मैं तुमको मनुहार भेज दूँ |
सोच रहा मैं कैसे तुमको
मन का चित्र उतार भेज दूँ ||


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