1- हरयाणा सरकार ने अपने कर्तव्यों एवं संवैधानिक दायित्वों का नाममात्र निर्वहण नहीं किया | अतः इसे तत्काल बर्खास्त न करके प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री राजधर्म का पालन नहीं कर रहें हैं |
2- जैसे उत्तरा सो गयी तथा अभिमन्यु चक्रव्यूह का अंतिम द्वार भेदना न सीख पाया,वैसे आडवाणी जीने गोधरा प्रकरण के बाद अटल जी को सुला दिया तथा वे मोदी को राजधर्म में दीक्षित न कर पायें |
3- कई वर्षों से राम-रहीम के बारे में कांग्रेस की तथा लोकदल की सरकारें क्या वारंट का तामीला कर पाई ? भाजपा की आलोचना करने का उन्हें कोई नैतिक अधिकार नहीं हैं |
4- 1984 में सिखों का कत्लेआम न रोकपाने वालों के मुह से कानून – व्यवस्था की चर्चा शोभा नहीं देती है |
5- जिस पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष के पिता के संतवचन हैं कि नौजवान तो बहक ही जाते हैं, तथा लडको से तो गलतियाँ होती ही रहती है, उस पार्टी प्रवक्ता को बलात्कार की परिचर्चा में भाग लेना शोभा नहीं देता |
6- जिस पार्टी ने अपने शासन काल में हाईकोर्ट में हल्लाबोल किया तथा माननीय हाईकोर्ट की प्रतिष्ठा तथा सुरक्षा संकटग्रस्त हुई, उसके मुह से कानून के शासन की बात सुनकर मुह का स्वाद बिगड़ जाता है
7- जिस पार्टी के शासन में गायत्री प्रजापति पर कार्यवाही माननीय सुप्रीम कोर्ट के हस्तछेप के बाद हो पाई, उस पार्टी के प्रवक्ता को नारी सम्मान की चर्चा नहीं करनी चाहिए |
8- जिस पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक का मानना हो कि बच्चे तो बच्चे, बुड्ढे भी बहक जाते हैं तथा गायत्री प्रजापति जैसे निर्दोष बुड्ढों का जेल में उत्पीडन हो रहा है, उसे नारी सम्मान की चर्चा से परहेज करना चाहिए |
9- क्या जामा-मस्जिद से संबधित वारंटों का तामीला पिछले वर्षों में हुआ तथा क्या आज भी हो पा रहा है ? क्या कानून का शासन केवल राम-रहीम, रामपाल, तथा आशाराम के लिए है ? “गरीब की जोरू” सबकी भाभी ?
10- कश्मीर में पेलेट गन तक का इस्तेमाल पर मानवाधिकारों की बात करने वालों की जवान क्यों बंद है ? एक बलात्कार के न केवल अरोपी, बल्कि दोष सिद्ध अभियुक्त के समर्थन में सड़क पर उतरना शर्म नाक है तथा दोषियों को कड़ा से कड़ा दंड मिलना चाहिए | उन्हें जेल भेज दो या संपत्ति जब्त कर लो – मुझे कोई ऐतराज नहीं है | किन्तु यही मानक कश्मीर में सेना या सी.आर.पी.ऍफ़.पुलिस पर पत्थर चलाने वाले या तथा आतंकवादियों हमलावरों को भगाने में सहायता करने वालों पर नहीं अपनाने चाहिए ? यह सवाल मैं मानवाधिकार का ठेका लेने वाला छद्म धर्मनिरपेक्ष तत्वों से करना चाहता हूँ | इसी तरह मैं भाजपा तथा मोदी भक्तों से पूछना चाहता हूँ कि यदि कश्मीर में बोनेट पर बांधकर पत्थरबाज को घुमाया जा सकता है तो बाबा को v.i.p. treatment क्यों घुमाने को ( minor aberration ) (क्षुद्र विचलन) मानलिया जाये तो बाबा के साथ सैकड़ों गाडियों का काफिला क्यों ? क्यों नहीं उन्हें पुलिस वैन में ले जाया जा सका ? जेल में उन्हें v.i.p. सुविधाएँ क्यों दी गयी ? बाबा को क्यों Z+ security दी गयी ? यही सवाल हुर्रियात के आतंकवाद समर्थकों को भी सुरक्षा प्रदान करने वालों के सामने खड़ा होगा ? कब वह समय आयेगा जब भारत में बिना जाति धर्म के तथा भक्तों की परवाह किये बिना उन्हें मात्र अपराधी माना जायेगा |
11- बार-बार ढोंगी बाबाओं की बात कह दी जाती है प्रश्न है असली बाबाओं के क्या हाल हैं ? स्वामी रामदेव जी के हाल देखीये | राहुल गांधी के दलितों के घर जाकर खाना खाने पर रामदेव जी के पावन उद्गार थे कि राहुल वहां हनीमून मनाने जाते थे | कोई भी विवेकशील व्यक्ति राहुल के किसी गरीब दलित के घर पर भोजन पर जाने के दृश्य की कल्पना करे | - राहुल का कितना भी पतन का काल हो, सुरक्षा व्यवस्था तथा साथ में चलने वालों की संख्या मिलकर एक हजार से ऊपर तो न्यूनतम होती ही होती है | एक हजार आदमियों के सामने क्या खुल्लमखुल्ला हनीमून मनाना संभव है ? कुत्ते-कुतिया भले ही हनीमून मना लेते हों किन्तु शहर के “की क्लब” [ जहाँ चाभियों की अदलाबदली के साथ पत्नी सम्परिवर्तन wife-swapping हो जाता है तथा वर्जित प्यार के नशीलेपन का – एहसास कर पापी आत्माएं एक ‘kick’ (उछाल) का अनुभव करती है को छोड़ दें तो एक गरीब लडकी या महिला चाहे कितनी भी चरित्रहीन क्यूँ न हो, अपने पति या परिवार के सामने हनीमून नहीं मना सकती | गरीब औरत भी ‘नाइट क्लब’ में नहीं जाती है, गोआ या कोअलम के बीचों में अर्द्धनग्न मुद्रा में या ( 80% नग्न मुद्रा में ) सूर्यस्नान (sunbath) नहीं लेती हैं – अपने ताप से सड़कों पर मजदूरी करते समय वक्सा या खेतों में काम करते वक्त सूर्यदेवता पसीने से नहला देते हैं | यदि वह कभी किन्ही कमजोर क्षणों में चरित्रभ्रष्ट भी होती है तो कम से कम अरहर के खेत या गन्ने के खेत में भीडभाड से दूर एक गोपनीय माहौल की उसे तलाश होती है – यही लताकुंजों का माहात्म्य है | पूरे विश्व में योग का डंका बजाकर भारत का नाम ऊंचा करने के बावजूद भी – भारतीय संस्कृति का स्वयंभू पुरोधा (brand ambassder) की प्रतिष्ठा के बावजूद भी क्या चिंतन के धरातल पर रामदेव बाबा को किसी राम – रहीम से अलग पाते है | मायावती तक इस बयान पर इतना विचलित हुई की उन्होंने उनके DNA पर रिसर्च कर डाला तथा यह सार्वजानिक घोषणा कर डाली कि वे किस जाति में उत्पन्न हुए हैं | मैं मायावती से सहमत नहीं हूँ – हर जाति में अच्छे बुरे लोग हो सकते हैं किन्तु ऐसी घृणित सोच रखना क्या किसी बाबा को शोभा देता है ? यही मानसिकता किन्हीं कमजोर क्षणों में बलात्कार को जन्म देती है तुलसीदास ने लिखा है – ‘सियाराम मय सब जग जानी’ | इसी तरह किसी दलित के घर भोजन ग्रहण करने में यदि हनीमून दिखनें लगे तो इस मनोरोग की चिकित्सा करनी चाहिए | इसी मनोरोग की चिकित्सा के लिए मनुवादी पार्टी मनुस्मृति में बताई गयी वर्णाश्रम व्यवस्था की स्थापना करने का घोषित लक्ष्य लेकर चल रही है हमारे देश में प्राचीन संस्कृति मठों की नहीं रही है | आर्यों में या सनातनी मान्यता में मठ-व्यवस्था नहीं थी | वहां आश्रम थे, पर्ण – कुटी थी | हट्टे-कट्टे मुस्तंडे साधू नहीं थे | वशिष्ठ के साथ अरुन्धती थी | देवताओं की भी पत्नियाँ थी | भगवान शिव तो अर्धनारीश्वर थे ही | बिना पत्नी के कोई यज्ञ नहीं कर सकता | भगवान राम तक को सीता की स्वर्ण प्रतिमा बनानी पड़ी | ५० वर्ष तो गृहास्थ आश्रम था | सिर मुंडाकर सन्यासी नहीं बनते थे लोग | ५० से ७५ वर्ष तक भी वानप्रस्थ में पति-पत्नी साथ रहते हुए संन्यास की तैयारी करते थे तथा ६५ वर्ष के बाद संन्यास लेने की छूट थी | इसके अपवाद मात्र कुछ गिने-चुने नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे | जवान लोगो के सन्यासी बनने की तथा मठों में रहने की परंपरा जैनियों तथा तथा बौद्धों ने प्रारंभ की – जहाँ ब्रह्मचर्य को लादा गया | सनातन धर्म में ब्रह्मचर्य जीवन में एक सजह प्रवाह के रूप में था, जिसे दाम्पत्य जीवन में कामुकता से मुक्त होकर संतानोत्पति के उद्देश्य से शारीरिक संबंध स्थापित कर साकार किया जाता था | महात्मा गांधी भी पति पत्नी के बीच गर्भनिरोधकों का प्रयोग कर बनाये गए यौन संबंध को घृणित तथा त्याज्य समझते थे | इस मठ संस्कृति को समन्वय के रूप में साकार करने के लिए आदि शंकराचार्य जी ने सनातन संस्कृति का अंग बनाया | ईसाइयों में भी यह मठ व्यवस्था (monastory) है, जिसको father तथा Num संचालित करते हैं मुसलमानों में भी फ़क़ीर तथा पेश-इमाम परिवार वाले हैं तथा मठ – संस्कृति नहीं है | आधुनिक युग में संघ-परिवार में यह मठ-संस्कृति पुष्पित-पल्लवित हो रही है, जहाँ पूर्णकालिक कार्यकर्ता, जो संघकार्य को करने में समर्पित हो, को तैयार करने की होड़ में साधुओं सध्वियों की भांति संघ को जीवन समर्पित कर तथा पारिवारिक जीवन से विभुख होकर पूर्णकालिक होने को प्रोत्साहित किया जा रहा है | सनातन वैदिक संस्कृति में तीन ॠण माने गए है 1-गुरु ॠण 2-पितृॠण तथा 3-देवॠण | बिना संतानोत्पत्ति के तथा उनके समुचित पालनपोषण की व्यवस्था किये संन्यास लेना सामान्यतया हमारी परंपरा नहीं हैं पितृॠण से मुक्ति कैसे होगी ? ‘पुं’ नामक नरक से रक्षा कैसे होगी ? पितरों का पिण्डोदक कैसे होगा पिण्डोदक न मिलने पर पितरों का पतन कैसे रुकेगा –
“पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदक क्रियाः |”
जो संत नैष्ठिक ब्रह्मचारी हो, उन्हें मेरा प्रणाम | मेरा अनुरोध है कि बिना समुचित परीक्षण के मठों में मात्र शिष्यों की संख्या बढ़ाने के लिए युवाओं को दीक्षा न दी जाए तथा उन्हें वर्णाश्रम व्यवस्था के कर्तव्यों का पालन करने का निर्देश सुस्थापित गुरुजन दें | “मैं कुंवारा हूँ, लेकिन ब्रह्मचारी नहीं’ जैसे उद्गार व्यक्त करने वालों को पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनाकर स्वस्थ परम्परा नहीं है |”
12- सरकारी मशीनरी लाचार थी | मैं मानने को तैयार नहीं | याद कीजिये एक निहायती कमजोर प्रधानमंत्री माने जाते थे मनमोहन सिंह,जिनकी कमजोरी के बारे में भाजपाइयों ने तमाम दन्तकथाएँ गढ़ रखी थी | एक दूसरे बाबा रामदेव ने उनके कार्यकाल में लाखों की भीड़ इकट्ठा की | किन्तु तत्समय प्रधानमंत्री के संकेतमात्र पर जब पुलिस ने तेवर दिखाए तो बाबा रामदेव सलवार सूट में भागते नजर आये – कहीं दूर-दूर तक नहीं दिखे | ‘राजा लालास्य कारणम् |’ राजा काल का कारण होता है | राजा ईश्वर का रूप होता है | माननीय उच्च न्यायालय ने सत्य ही लिखा हैं कि पूरा प्रकरण संदिग्ध हैं|
यह लापरवाही मात्र नहीं है – आपराधिक लापरवाही (CRIMINAL NEGLIGENCE) है | कड़े शब्दों के साथ धारा 144 लागू क्यों नहीं हुई ? अखिलेश यादव के कार्यकाल में जब विश्व हिन्दू परिषद् ने जमावड़ा इकट्ठा करना चाहा था तो क्यों नहीं कर पाई ? क्यों मुलायम सिंह के समय में भीड़ इकट्ठा हो गयी तथा अयोध्या में गोली चलानी पड़ी ? मुलायम ने प्रभावी ढंग से रास्ते में नहीं रोका | वे चाहते थे कि भीड़ अयोध्या पहुंचे तथा मुसलमान आतंकित हो और गोली चलवाकर उन पर एहसान लादा जा सके | वरना लगभग 5-6 दिनों से सड़क पर पैदल, सवारी से साफ सफ टी.वी. पर दृश्य आ रहे थे कि भीड़ जा रही है तथा रास्ते में पुलिस वाले उन्हें रोक नहीं रहे हैं बल्कि “जय श्री राम”के नारे भीड़ के साथ लगा रहे है | पूरी दुनिया ने ये दृश्य दूरदर्शन पर देखे | पर्यवेक्षण की शिथिलता में एक भी पुलिस अधिकारी निलंबित नहीं हुआ तथा रास्ते के थानाध्यक्ष निलम्बित तो दूर लाइन हाजिर तक नहीं हुए | जब लालू ने रोकना चाहा तो आडवाणी का हुजूम काम नहीं आया | मुलायम के समय में परिन्दे पर तो मार ही ले गए | यदि भीड़ अयोध्या में इकट्ठा न होती, तो गोली क्यों चलती तथा मुसलमान मुलायम का दीर्घकाल तक मुरीद कैसे बना रहता ? अखिलेश के समय में परिंदे सचमुच पर नहीं मार पाए क्योंकि राजा की मंशा साफ थी | मायावती के समय में क्यों नहीं शांतिव्यवस्था बिगड़ पाती थी क्योंकि मायावती नितीश कुमार की तरह फर्जी चन्दन नहीं थी कि विष व्यापने लगे तो नागदेवता से दूर भागकर गोधरा के हीरो की गोद में बैठना पड़े | मायावती गुण्डों को शरणागत रखने के बाद भी उनकी छाती पर चढ़ी रहती थी – दबाए रखती थी तथा ‘चढ़ गुण्डों की छाती पर’ ‘के नारे को साकार करती थी | अन्य कमियों के कारण 0 सीट पर भले चली गयी किन्तु मायावती के रूप में मैंने एकमात्र मुख्यमंत्री अब तक देखा, जिसके समय में IAS अधिकारी अपने को ‘नौकर’समझते थे तथा दबक कर रहते थे | बाकी सभी मुख्यमंत्रियों के सर पर चढ़कर मैंने IAS को नाचते देखा है | क्यों नहीं कोई बाबा या शाही इमाम शांतिव्यवस्था के मुद्दे पर मायावती के शासन को मखौल में बदल पाया – इसका विश्लेषण किये बिना हरयाणा के घटनाक्रम का सच्चा मूल्यांकन नहीं हो सकता | जो कुछ हरयाणा में हुआ – वह आपराधिक लापरवाही (criminal negligence) का मामला है, जिसके लिए इन्सपेक्टर से लेकर डी.जी.पी. तथा प्रमुख सचिव गृह से लेकर मुख्यमंत्री को समेटते हुए एक अपराधिक मुकदमा पंजीकृत किया जाना चाहिए तथा साक्ष्य को संकलित करके तथा समुचित मूल्यांकन करके आवश्यकतानुसार गिरफ्तारी की जानी चाहिए | तभी ऐसी घटनाएं रुक सकती है | मैं इस तर्क को मानने को तैयार नहीं हूँ कि डी.जी.पी. या कोई अन्य अधिकारी लाचार होता है | तथा सत्ता के सामने झुकना पड़ता है | यदि ऐसा होता तो हर मुख्यमंत्री IAS तथा IPS को ताश के पत्तों की तरह क्यों फेंटता ? जब कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद गिरानी थी तो अपनी मानसिकता के अधिकारी लाये तथा जब मुलायम सिंह को बचानी थी तो अपने चेहरे लाए | एक पद पर बैठने की कई-कई लोग उर्हता पूरी करते हैं | संवेदनशील पदों पर वही IAS/IPS पहुँच पाते हैं जो अपने राजनीतिक आका के साथ गिरोह के एक सदस्य के रूप में काम करने की हामी भरते हैं तथा बाकी वनवास झेलते हैं | जब नेता आपराधिक कार्य करे या कराएँ, तो ऐसे अधिकारी सहानभूति के पात्र नहीं हैं कि वे विवश थे | ‘मीठा मीठा गप्प गप्प, कडवा कडवा थू थू’ नहीं चलेगा | जब ईमानदारी का हवाला देकर न्यायपालिका के निर्णयों पर कोई उनसे दोषी IAS/IPS से सहानुभूति प्रदर्शित करता है,तो उसका व्यक्तित्व मुझे बाबा राम रहीम के भक्तों से कम विद्रूप नहीं लगता | भीड़ को इकठ्ठा होने देना तथा उसके बाद गोली चलवाना – मुझे जनरलडायर की याद दिलाता है | मायावती तथा अखिलेश ने पिछले दस सालों में कभी भीड़ इकट्ठी नहीं होने दी | यही काम मुलायम भी चाहते तो कर सकते थे | यही बात कल्याण सिंह पर भी लागू होती है | हरयाणा सरकार की नीयत साफ होती तो बाबा राम रहीम सलवार – सूट पहनकर भागते नजर आते | केंद्र सरकार की नीयत साफ़ होती तो हरयाणा सरकार को अपनी नीयत साफ़ रखनी पड़ती वरना बर्बास्तगी की तलवार उनके सर पर लटक रही होती | मैं बाबा रामदेव पर चलाये गए दमन – चक्र की प्रशंसा नहीं कर रहा हूँ | वह बलात्कारी नहीं थे, भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रजातांत्रिक संघर्ष कर रहे थे | किन्तु जिन मनमोहन सिंह को भाजपा कमजोर प्रधानमत्री करती थी, उनके तेवर बदल देने से शेर की तरह दहाड़ने वाले बाबा रामदेव रामदेव सलवार सूट पहनकर भागते नजर आये | ऐसे में राम रहीम के भक्तों ने तांडव किया, उसके पीछे सत्ता की मौन सहमति स्पष्टतया परिलक्षित होती है |
जयप्रकाश नारायण का नाम लेने पर इलाहाबाद में हुजूम उमड़ता था | किन्तु जब जयप्रकाश नायारण गिरफ्तार हुए, तो पत्ता नहीं खडका | यह हनक होती है सत्ता की |
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