Thursday, 7 September 2017

गोरखपुर की मेडिकल कालेज त्रासदी / बाढ़ त्रासदी / रेल दुर्घटना / बढ़ते अपराधों के पीड़ितों के नाम खुला ख़त –


धैर्य धारण करें ! आपको स्वर्ग मिलेगा अन्यथा वर्तमान जन्म में जिस कुल में जन्म हुआ था, उससे उत्तम कुल में जन्म मिलेगा बशर्ते योगी जी / मोदी जी राष्ट्र साधना / प्रभुसाधना के लिए महान यज्ञ में लगें हैं उससे चीख पुकार करके उनका ध्यान न भटकायें | स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है –
“शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽपिजयते|”
अर्थात यदि कोई योग्यभ्रष्ट होता है तो वह पवित्र तथा श्रीमंत घरों में जन्म पाता है | यदि कोई व्यक्ति गरीब है, पतनोन्मुख है तो यह आर्थिक व्यवस्था में पूंजीपतियों द्वारा उसके साथ किया हुआ छल नहीं हैं, जैसा कि साम्यवादियों तथा समाजवादियों की सोच है यह पतन की स्थिति उसके पूर्व जन्म के पापों और पुण्यों की बैलेंसशीट का परिणाम है | आखिर जो रेल से चलता है, वह छोटी दूरी के लिए लग्जरी कार तथा बड़ी दूरी के लिए हेलीकाप्टर या हवाईजहाज का प्रयोग क्यों नहीं करेगा ? फ्रांस के राजा ने कितनी अच्छी राय दी थी कि यदि अनाज की कमी है, भूख की समस्या है तो लोग बन (bun) खाकर-पावरोटी-मक्खन खाकर कुछ दिन गुजारा क्यों नहीं कर सकता | जवाहर लाल  नेहरू ने भी कहा था कि अनाज की कमी की समस्या से निपटने के लिए लोग केला खाने की आदत डालें | इससे बढ़िया परामर्श क्या हो सकता है – आपात स्थिति में केले में काफी तत्व होते हैं – मूर्ख जनता न समझे तो राष्ट्र का नायक क्या करेगा | इसी क्रम में संजय गांधी ने कभी इस धरती पर लोगों से पेड़ बोने की (लगाने की नहीं) सार्वजानिक अपील थी | किंतु लोग इतने कृतघ्न निकले कि पेड़ बोने की जगह उन्होंने पूरे उत्तर भारत में 1977 में संजय गाँधी को 0 सीट पर ला दिया | पारिवारिक विचार विमर्श में मैंने अपने पिताश्री से प्रश्न किया (तब मैं विद्यार्थी था) कि वही आपातकाल पूरे भारतवर्ष में लागू था | दक्षिण भारत की ८०%-९०% सीटों पर संजय की पार्टी जीती पर वे अपनी सीट तक उत्तर भारत में हार गए | इसका रहस्य क्या है ? पिता जी का उत्तर था कि तुमको गीता पढाना बेकार रहा – रामचरितमानस को भी तुम नहीं समझ सके | क्या पढ़ा गीता में –
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ||
(जब-जब धर्म की ग्लानि होती है तथा अधर्म का उत्थान होता है तब-तब भगवन अवतरित होते हैं |)
बाबा तुलसीदास ने ‘नानापुराण निगमागम सम्मत’  वचन कहा है –
‘जब-जब होहिं धरम कै हानी |
बाढहिं असुर महा अभिमानी |
तब तब राम मनुज तन धरहीं |’
आखिर राम, कृष्ण, बुद्ध, बलराम, परशुराम, कल्कि, नृसिंह, हिरण्याक्ष का अंत करने वाले शूकर रूप धारी प्रभु (केवल कच्छप तथा मत्स्य सार्वभौम हैं को छोड़कर) सभी के सभी उत्तर भारत में ही क्यों अवतरित हुए, अयोध्या, मथुरा, कशी –यहीं क्यों | बाबाविश्वनाथ तथा विंध्यांचल में माँ जगदम्बा क्यों हैं ? कैलाश कहाँ है ? बार बार उत्तर भारत पर ही क्यों कृपा हुई ? जहाँ कही गन्दगी होगी, वहीँ तो सफाईकर्मी जायेगा | जहाँ कहीं पाप का घड़ा भरेगा, वहीँ प्रभु का अवतरण होगा | इसी लिए लोगो ने उसी आपातकाल को – परिवार नियोजन को- वृक्षारोपण को दक्षिण भारत में सहारा – क्या बढ़िया समय से रेल चल रही है – तथा उन्होंने युवा हृदय सम्राट के कार्यों का अनुमोदन करते हुए 90%सीटों पर जिताया | उत्तर भारत में संकीर्ण सोच के कारण व्यापक राष्ट्रसाधना, समाजसाधना पर लोगो का ध्यान नहीं गया – वे कुछ अप्रिय घटनाओं को ध्यान में रखकर निर्णय लिए |
सारे लोग ठहाका मार कर हंस दिए | एक विद्वान ने इसे अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकर कहा तो दूसरे विद्वान ने इसे दक्षिण भारतीयों के प्रति व्यंग्य-वचन  की संज्ञा दी | पूरी वार्ता के बीच पिताजी भी मुस्कराते रहे जिससे इस संभावना को बल मिला कि यह व्यंग्य-वचन है तथा निहितार्थ कुछ भी रहा हो, इसके शब्दार्थ पर मैं काफी देर तक चिन्तनरत रहा कि ऐसा क्यों है ?
न जाने क्यों लग रहा है | - इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है | मोदी जी तथा योगी जी बीवी-बच्चों तथा परिवार के समस्या से मुक्त होकर अहर्निश (Day and night ) देश, समाज, राष्ट्र तथा धर्म की साधना में लीन हैं तथा क्षुद्र सांसारिक जीवन उनकी व्यापक साधना को समझने का समुचित प्रयास न करके उनका ध्यान क्षुद्र सामाजिक तथा सांसारिक तथा लैकिक समस्याओं में अपनी चीखपुकार से भटकाकर उनकी राष्ट्र साधना में व्यवधान डाल रहे हैं | आखिर हर व्यक्ति की, परिवार की, देश की, राष्ट्र की, समाज की अपनी प्राथमिकताएँ होती है | चुनाव के दौरान कुछ लौकिक विषयों की चर्चा क्या कर दी, अज्ञानी जीव उसी को मुख्य अजेंडा मान बैठे तथा रात दिन फेसबुक से लेकर सड़क पर उसी की याद दिला रहे है | अमित शाह जी की सत्यनिष्ठा  एवं स्पष्टवादिता को पूरे राष्ट्र को प्रणाम करना चाहिए कि कितने सहस से उन्होंने सार्वजानिक रूप से स्वीकार किया कि ‘यह तो जुमला था |’ 56 || सीने वाला महापुरुष भी इतनी स्पष्ट घोषणा नहीं कर पाया किन्तु 65 || सीने वाले अमित शाह ने मोदी के भी साहस को मात देते हुए सत्य को स्वयं उजागर किया कि सांसारिक बातें – लैकिक प्रसंग – ये सब भाजपा के लिए जुमले हैं | असली अजेंडा तो वह है जिसकी साधना में संघ परिवार मोहिता के बाड़े में नागपुर में डा. हेडगवार द्वारा स्थापना के समय से लेकर परम पूजनीय गोलवलकर जी से होते हुए भी मोहन भगवत जी के समय तक अद्यावधि रत है | किन्तु अमित शाह जी की इतनी स्पष्ट स्वीकारोक्ति के बावजूद भी लोग बार-बार सांसारिक किंवा लौकिक समस्याओं को लेकर तपस्या भंग कर रहे हैं | जनता का ध्यान विचलित  न हो तथा दुबारा विपक्ष के जुमलों में न आ जाये, इसके लिए जनता को चूरन-चटनी भी चटाया जैसे (1)
कितने साहस से नोट बंदी चलायी | क्या यह 56 || के सीने का चमत्कार नहीं है जितने लोगों ने अपने अच्छे आचरण से, सदभाव से पूंजीपतियों, माफियाओं तथा अधिकारियों एवं नेताओं का विश्वास अर्जित कर लिया था, उनके खातों में बिना लाल झंडा उठाये, बिना हंसिया हथौड़े पकडे, बिना हल्ला बोले – समस्त काले धन वालों ने रुपया डाल दिया | घर में जो कैश था वह हाथ से दे दिया था | उसे दस लोगों के खातों से गुजरते हुए अपने खाते में मंगा लिया – 10% कमीशन मुख्य पात्र को, 1% कमीशन 10 बीच के खातेदारों को देकर 80% काला धन सफ़ेद धन हो गया | टैक्स भी नहीं देना पड़ा | इससे अधिक तो टैक्स लगता | “सर्वे भवन्तु सुखिनः” – यह भाजपा का मूलमंत्र रहा है – यही भारतीय संस्कृति है | कौन दुखी हुआ काले धन वाले को 30% टैक्स की जगह 20% कमीशन देना पड़ा तथा सारा कालापन घुल गया – इससे बढ़िया लांड्री क्या हो सकती है ? गरीब आदमी खुश है कि 1 करोड़ का कालाधन साफ़ करने के एवज में उसे 20 लाख मिल गए | कितना साफ कर लें – उसकी क्षमता | आखिर काले धन में से 20 लाख से कम ही तो देने का तो वादा था | जितने लोग समृद्ध लोगो को – ‘तराजू’ को 4 जूते मारने में विश्वास नहीं रखते थे, जो साम्यवादियों तथा समाजवादियों की तरह लाल झंडा न उठाकर ‘भगवाधारियों’ की तरह सबका साथ – सबका विकास चाहते थे – उनके चेहरे हरे हो गए | जो निठल्ले थे – किसी से तालमेल नहीं रखते थे – पूंजीपतियों को भारतीय संस्कृति की भाषा में सेठ जी न मानकर आर्थिक अपराधी मानते थे – केवल उनके हत्थे कुछ नहीं चढ़ा |
“सुधा वृष्टि भई दुइ दल मांही |
 जिए भालु कपि निसिचर नाहीं ||”
इसी प्रकार नोटबंदी के समुद्र-मंथन से 20 लाख रुपये का अमृत टपका, उसका परमानंद भाजपाइयों को मिला – सपा, बसपा, लालू आदि को नहीं | लालू, अखिलेश तथा बंगाल में साम्यवादियों के कुसंग से जिन कांग्रेसियों की बुद्धि भ्रष्ट नहीं हुई थी, वे काग्रेसी कार्यकर्ता भी नोटबंदी में मस्त हो गए क्योंकि उन पर भी पूंजीपतियों का विश्वास है | सपा, बसपा, राजद तथा कम्युनिस्टों के संपर्क में जो पूंजीपति थे भी, उनका इन दलों के कार्यकर्ताओं पर विश्वास नहीं था कि वे पा जाने के बाद 80% वापस करेंगे | इन्हीं दलों के नेताओं के पास 500 के नोट भी बदले नहीं जा सके तथा उछल-उछल कर मोदी को गाली देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा | नितीश कुमार जी तक नोटबंदी से इतना प्रभावित हुए कि चाराचोरों की संगत उन्हें अशोभनीय लगने लगी तथा सीधे वे हीराचोरी की डगर खोजने लगे | नितीश की ईमानदारी कितनी अधिक है कि जब तक नोटबंदी नहीं हुई थी तब तक वे लालू को ईमानदारी की प्रतिमूर्ति मानते थे – गले मिलते थे किन्तु जैसे ही नोटबंदी हुई, मोदी जी की कृपा से उनके ज्ञानचक्षु खुल गए तथा उन्हें ध्यान आया कि “क्या अनर्थ हो गया – मैं तो चाराचोर का साथी हूँ |” इससे अच्छा तो गोधरा का हीरो था – मुंडमाल धारण करने वाले शिव की पूजा करना हमारी भारतीय संस्कृति है | लालू तो माखनचोर भी नहीं है – खुद चारा खाकर गुजारा कर लेता है तथा बेटा मिट्टी चाटकर | ऐसे व्यक्ति की संगत से छवि धूमिल होगी |
इस जनता को भी क्या कहें | कोई भी सरकार कितना भी प्रिंट मीडिया तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया को मैनेज कर ले किन्तु सोशल मीडिया पर लाखों – करोड़ों भक्तों के उतारने के बावजूद भी जनवाणी को दबाया नहीं जा सकता | यद्यपि इसे भी कुचलने या दबाने के नित नूतन हथकण्डे हर राज्य सरकार  तथा केंद्र सरकार आजमा रही है किन्तु ये फसबुकिये तो सदाबहार (जिसे बोलचाल में बेहया कहते हैं) की तरह जितना ही  काटों, उतना ही हरे होते जाते है | ख़रीदा भी नहीं जा सकता है- गिनती से परे हैं |
फेसबुकियों तथा ओछी मानसिकता के विपक्षियों से पूछिए कि तुम लोग छोटे-मोटे सांसारिक कामों में क्यों मोदी जी तथा योगी जी जैसी दिव्य आत्माओं को उलझना चाह रहे हो | कितने बड़े मुद्दे में व्यस्त हैं तथा कितनी छोटी उम्मीदें लोग उनसे पाल रहे हैं – मोदी जी को लीजिये | 56 || का सीना फुलाए चीन के मोर्चे पर डटे है | आप की रेलवे दुर्घटना के बारे में सोंचें या देश के बारे में डोकलम पर त्रिशूल लगवा रहे – एटामिक वार की तैयारी कर रहें हैं | चीन को मौन संदेस दे रहे हैं – “शेरवानी में गुलाब की कली लगाकर मैं माउन्टबेटन के यहाँ हाजिरी लगाने वाला नहीं हूँ |” ‘वह साल दूसरा था, यह साल दुसरा है |’ द्वितीय विश्वयुद्ध का इतिहास पढ़ लो | हिटलर के पास एक भी सैनिक, एक भी हथियार तथा एक भी कारतूस नहीं बढा था, किन्तु सत्ता में बैठते ही हिटलर ने घोषणा कर दी कि वह Treaty  OF Versailles को नही मानेगा तथा प्रथम विश्वयुद्ध के मुआवजे की भरपाई नहीं करेगा | इसके लिए वह समस्त विश्व शक्तियों से एक-साथ युद्ध करने को तैयार है | ठीक वैसे ही जैसे भारतीय सेना ढाई मोर्चों –चीन, पाकिस्तान तथा आंतरिक अशान्ति से एक साथ निपटने को तैयार है |फ़्रांस, इंग्लैण्ड तथा रूस हिल गए | रूस ने भागकर जर्मनी से संधि कर ली | फ़्रांस को लगा कि इंग्लैण्ड तो समुद्र से घिरा है तथा उसका जो भी झटका होगा वह फ़्रांस को झेलना पड़ेगा तथा जर्मनी के सैनिक बाज जैसे उछलकर कमर हिलाकर नाचने वाले फ्रांसीसी सैनिकों को रगड़ देंगे | इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री Chamberlain ने संसद में कहा – “If Nazism fails in germany, what will follow –stark communism, would you Britishers like it” पक्ष और विपक्ष को जैसे सांप सूंघ गया | “हिटलर हाथी की तरह बढ़ता गया – दुश्मन कुत्ते की तरह भौंक भी नहीं पाए – चुप हो गए |”  भक्त समझायेंगे की मोदी लाख बुरा हो पर 56 ||  का सीना तो है, दुश्मनों की आँख में आँख डालकर बात तो करता है – ‘सबकी ममता ताग बटोरी’ की शैली में भई-बहन, माता, पत्नी – सबके प्रति कर्तव्यों को ताक पर रखकर एक TYPICAL संघी की भांति राष्ट्रसाधना में लगा है | गोधरा का वीर – क्या लेना देना उसे रेल की दुर्घटनाओं से | कब नहीं मरते लोग – गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है –
“जातस्य हि ध्रुवं मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्यच |”
अर्थात (जो पैदा हुआ, वह मरेगा तथा जो मरा वह पैदा होगा |) मौत की चिंता मुसलमान या ईसाई करें, जिन्हें मरने के बाद कब्र में जाना है, हिन्दू की मृत्यु तो मात्रा कायापरिवर्तन है – उसे पुनर्जन्म लेना है – किस बात की चिंता है – आत्मा की शांति के लिए शांतिपाठ करा दो | सांसारिक कार्यों हेतु परिवार को कुछ आर्थिक मुआवजा दे दो – परम्परा के पालन में कुछ अधिकारीयों की बलि चढाओ – ओउम् शांतिः शांतिः | ज्यादा परेशान मत करो मोदी को |
( 2 ) योगी से लोग हिसाब मांगने लगते हैं आक्सीजन के आभाव में बच्चो की मौत का, इन्सेफ्लाईटिस ज्वर का | उनसे पूछिये कितना शानदार उत्तर दिया था स्वाथ्य मंत्री ने कि “अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं –हर साल मरते रहे हैं |”इतने सहज कार्य के लिए लोग सड़क पर उतरने लगे | कहा गया है ‘स्वस्य एवं अविनयस्य फलमनुभूयतेऽनेन’
अर्थात अपने अभिनय का फल जीव भोगता है | मुसलमानों की भी यही मान्यता है –
मौत का जब दिन मुकर्रर है,
रात भर नींद फिर क्यों नहीं आती |
यह सभी धर्मो की सर्वसम्मत मान्यता है कि मृत्यु का क्षण निश्चित है – उसे कोई घटा-बढ़ा नहीं सकता | यदि ये बच्चे सम्पन्न परिवारों के होते तो सरकारी अस्पताल में क्यों भरती होते ? क्या कोई धनी परिवार का बच्चा सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढता है ? क्या कोई संपन्न परिवार का बच्चा सरकारी अस्पताल में भर्ती होता है ? प्राइमरी के अध्यापक को जनगणना करनी है, पशुगणना करानी है, वोटर लिस्ट बनवानी है, वोट डलवाना है, पल्स पोलियो कार्यक्रम चलवाना है, वृक्षारोपण करवाना है, निरक्षरता उन्मूलन करना है, मिडडेमील बच्चो को खिलाना है, मान सम्मान से जिन्दा रहने के लिए प्रधान तथा BDC की चाटुकारिता करनी है आदि-आदि | केवल एक काम करने का समय मास्टर के पास नहीं है और वह है विद्यार्थियों को पढाना | ऊपर से तुर्रा यह है की मात्र 5000 रुपये प्रतिमाह की दक्षिणा पर पिकनिक के लिए कभी कभी देर-सबेर विद्यालय आने की अधिकारीयों द्वारा दी गयी छूट | यही स्थिति सरकारी डाक्टरों और कर्मचारियों की है | सुबह से शाम तक कमीशनखोरी तथा दरबार बाजी का चक्कर | ‘खग मृग बसहिं अरोग बन हरि अनाथ कै नाथ |’ इन दुर्भाग्यशाली लोगों में कुछ जिनकी मौत नहीं आई है, वे तो जीवित बचेंगें ही और जिनकी मौत आ ही गयी है, उन्हें बचा कौन सकता है ? मार्क्स के प्रभाव में लोहिया तथा अम्बेडकर ने मृत्यु के चक्र भाग्यचक्र को दोषी न मानकर डाक्टर, इंजीनियर, मुख्यमंत्री आदि पर उत्तरदायित्व निर्धारित करने / कराने की गंदी परम्परा का श्रीगणेश कर दिया |
योगी जी क्या-क्या देंखे ? कितने दिव्य मुद्दों पर उनकी दृष्टि केन्द्रित है ? जन्माष्टमी पर कब-कब किसने कहाँ-कहाँ कार्यक्रम बंद कर दिए थे ? काँवडिये, जो शिव भक्ति में लीन है, उन्हें D.J. पर नाचने का मौका तथा सभी जगहों पर से होकर गुजरने का मौका मिला या नहीं ? राम मंदिर निर्माण कैसे होगा तथा कब होगा ? इन पर भी तो कोई लेखा-जोखा मांगने वाला हो | साथ ही मोदी साहब ने एक नए भगवन को पा लिया है – डा. अम्बेडकर के रूप में – बोधिसत्व हैं साक्षात् भगवान बुद्ध के अवतार हैं | इसीलिए स्वच्छता का इतना सघन अभियान मोदी साहब ने छेड़ रखा है | प्राचीन काल से ही स्वच्छता भारत की एक गंभीर समस्या रही है | इसी स्वच्छता को सुनिश्चित करने के लिये रघुनाथ ने शम्बूक-वध किया था | ब्राह्मण की झाड़ी की सफाई न होने पर रघुनाथ ने तपस्या कर रहे शम्बूक को मृत्युदण्ड दिया था | मोदी जी अच्छी तरह जान रहे हैं कि  जनसंघ का जमाना नहीं है – यह भाजपा का युग का है | इस घोर कलियुग में राममंदिर के नाम पर पूर्ण बहुमत नहीं आया,किन्तु डा.अम्बेडकर की साधना जैसे ही मोदी ने प्रारंभ की, पूर्ण बहुमत आ गया | डा. अम्बेडकर के अनुयायी थोड़ी मात्रा में आ गए तथा जो सवर्ण बड़ी मात्रा में पहले से मौजूद थे, दूसरे जीवंत विकल्प के आभाव में मोदी का बंधुआ मजदूर बनने को विवश हो गए | आरक्षण, बैकलाग, तथा अनुसूचित जाति (अत्याचार निवारण अधिनियम) 2016 एवं प्रोन्नति में आरक्षण पर मोदी के ललकारते हुए दृष्टिकोण को भली भांति जानते हुए भी सवर्ण मोदी का पिछलग्गू इसलिए बना हुआ है कि  “When rape in inevitable why not relax and enjoy” अर्थात यदि बलात्कार अवश्यम्भावी ही है और उससे बच निकलने का कोई विकल्प नहीं है, तो एकमात्र रास्ता है कि शरीर को शिथिल करके बलात्कार में भी आनंद की रसानुभूति की जाए | आज का सवर्ण यही कर रहा है | सवर्ण का मनोबल इतना गिरा हुआ है की वह इतने में ही गद्गद है कि उस पर मायावती की 4 चप्पलें तथा अखिलेश और लालू की 40 लाठियां नहीं बरस रही हैं  | आज वह शम्बूक की संतानों से उलझने की जगह शरणागत होकर सफाईकर्मी की नौकरी का न केवल फार्म भर रहे हैं बल्कि सफाई कर्मी की नियुक्ति का पद पाने की दशा में लाखो रुपये खर्च करने को भी तैयार हैं | आज भी कभी-कभार औपचारिकता  के लिए भले झाड़ू पकड़ लिया हो किन्तु किसी कलराज मिश्र, अरुण जेटली, केसरी नाथ त्रिपाठी जैसे व्यक्ति को झाड़ू पकड़कर गर्वपूर्वक फोटो खिचातें नहीं देखा गया, भले ही गर्व से तनी हुई मुद्रा में योगी जी, राजनाथ सिंह आदि झाड़ू पकडे हो | आज भी केसरीनाथ के भक्त उनका नाम गर्व से लेते हैं कि जिस प्रकार उन्होंने बसपा को तोड़कर 67 में 3 से भाग देकर 19 का उत्तर निकाला तथा उनकी इस कारगुजारी पर समस्त न्यायवादियों तथा न्यायमूर्तियों तक ने दातों तले ऊँगली दबा ली | यह था शम्बूकवध भाग 2 | मायावती के पास 67 विधायक थे | पार्टी के विभाजन के लिए के लिए 23-24 विधायक चाहिए थे | जनबसपा के पास 19 विधायक थे तथा केसरीनाथ त्रिपाठी ने उसे विभाजन मान लिया | केसरीनाथ जी का कहना था कि उनके सामने 24 विधायक आये, 24-19 = 5 कौन थे, उनका शपथ पत्र तो छोडिये, कहीं सादे कागज पर हस्ताक्षर नहीं थे | आज तक याद नहीं आ पाया कि उनके नाम क्या थे | इसे कहते हैं ‘मेधा’ | यही मेधा आज सफाई – कर्मी की नौकरी ढूढ़ रही है तथा इसके बावजूद वे अटल जी का जयकारा कर रहे हैं तथा मोदी जी की पूजा कर रहे हैं, जो इसे इस स्थिति में पहुँचाने के लिए जिम्मेदार हैं | मोदी ने उसे स्वच्छता अभियान से जोड़कर रघुनाथ के रास्ते पर चल रहें संघ तथा भाजपा – परिवार को बुद्ध के रास्ते पर मोड़ दिया | उन्होंने इंग्लैण्ड में इसकी घोषणा भी की कि “INDIA IS LAND OF GANDHI AND BUDDHA” और अब इस सूची में बोधिसत्व डा. अम्बेडकर का नाम और बढ़ गया | राम, कृष्ण, परशुराम, हेडगवार, साबरकर,गोलवलकर इस सूची से नदारद हैं |
संघ के राममंदिर के एजेंड, कांवड़ियों के एजेन्डे तथा साथ ही मोदी के स्वच्छता के अजेंडे से समय न मिलने के बावजूद योगी ने गोरखपुर मेडिकल कालेज दुर्घटना में कोई शिथिलता नहीं बर्ती | तत्काल एक मुसलमान खोज लिया गया, जिसके प्राइवेट प्रेक्टिस करने से इतनी क्रूर हृदयविदारक घटना घटी | यदि वास्तव में वह सरकारी आक्सीजन का प्राइवेट इस्तेमाल करता था, तो इतने दिन बीत जाने पर भी उस पर मुकदमा क्यों नहीं कायिल हुआ तथा वह गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ ? क्या पुलिस और प्रशासन के अधिकारी आज भी आजम खां के प्रभाव में हैं ? आक्सीजन का सप्लायर कौन है – पिछली सरकार तथा वर्तमान सरकार में उसके किससे रिश्ते है ? क्या वह आक्सीजन सप्लाई करने के लिए सुपात्र है ? तथा उसका TENDER हुआ भी था ? यदि हाँ तो कैसे और किसके द्वारा और क्यों उसका पेमेंट रुका ? किसने रोका ? क्या कारण था ? ये सारे प्रश्न प्रष्ठभूमि में चले गए तथा सामने केवल एक प्रश्न रह गया कि क्या मुसलमान डाक्टर आजम खान का मित्र था या रिश्तेदार ? कितने प्रयास से योगी जी तथा भक्तों ने जनरोष की दुर्गा की लपलपाती हुई जीभ को संघ के पारंपरिक एजेंडे के अनुरूप मुसलमान डाक्टर की ओर मोड़ा हगा – इसकी चतुर्दिक प्रसंग नहीं हो रही है – खेद है – हिंदुत्व खतरे में है | बच्चे तो जितने मरेंगे, उससे अधिक पैदा हो जायेंगे, किन्तु यदि हिंदुत्व खतरे में पड़ा और वह भी योगी जी के कार्यकाल  में – तो भविष्य में इसका उद्धार कौन करेगा – यह समझ से परे है | साक्षात् काल्कि को अवतरित होना पड़ेगा | कल्कि भी कैसे म्लेच्छों का सर्वनाश करेंगें – उनका नाम लेकर दूकान चलाने वाले भी कांग्रेसके टिकट पर लड़ रहे हैं |
फिर लोग कहते हैं कि शांति व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं हैं | शांति व्यवस्था एक अस्पष्ट (VAGUE) शब्द है | दम भर में  कर्फ्यू लग जाता था | दंगा होता था | आज बंद है | उपराष्ट्रपति रह चुके अंसारी साहब तक घुटन महसूस रहे हैं | आजम खां तक इंतजार कर रहे हैं कि कब उन्हें विधानसभा में विस्फोटक रखने में अन्दर करके रासुका लगादी जाये | कहावत है – ‘बछड़ा खूटे के बल पर उछलता है,’ तथा इतना ही नहीं ‘बच्चा माँ की गोद में उछलता है, डायन की गोद में नहीं |’ भक्तों के जोर-जोर से प्रचार के बावजूद भी फसेबुकिये शांति – व्यवस्था का जिक्र कर ही देते हैं |
फिर आइये अपराधों पर | पशुओं की तस्करी समाप्त हुई या नहीं ? जब सरकार ने चाहा, तो दरोगा सीने पर गोली खाकर भी गौ-तस्करों से निपट रहा है | जब सरकार के पास फुरसत होती, तो अन्य अपराधियों से भी मुक्ति मिल जाएगी | आखिर कैराना का आतंक समाप्त हुआ या नहीं | जब मायावती ने चाहा, ददुआ नहीं रहा | जब कल्याण सिंह ने चाहा, तो अपने ही 9 मंत्रियों के सरक्षण के बावजूद, जिनको वह स्वयं नहीं बर्खास्त कर पा रहे थे, श्री प्रकाश शुक्ल को धरती छोडनी पड़ी | एक इंसपेक्टर तथा बाद में सी.ओ. सर्वदेव कुंवर के चलते गोरखपुर के दर्जनों दिग्गज एवं उच्च आभामंडल वाले अपराधी Quit India करके नेपाल चले जाते थे तथा भारत – धरा पर तब वापस आते थे जब उन्हें प्रमाणित जानकारी मिल जाती थी कि सर्वदेव कुंवर न केवल स्थानांतरित और कार्यमुक्त हो गए हैं, बल्कि गोरखपुर छोड़ दिए हैं | बाद में इनमें से कई लोग लाल बत्ती वाली गाड़ियों शोभा बढ़ाये | विश्वनाथ प्रताप सिंह के चाह लेने के बाद छविराम, पोथी, महावीरा तथा अनार सिंह इतिहास हो गये | इसी क्रम में योगी जी के चाहते ही कैराना शांत हो गया | यू.पी. में लव जेहाद एक दुर्लभ घटना हो गयी है | जिस दिन सीतापुर या गोरखपुर के अपराध पर निगाह पड़ेगी, उस दिन वहां भी शांति आ जाएगी | सागर को सुखा देने की क्षमता के बावजूद भी प्रभु तीन दिन तक प्रार्थना करते रहें – रास्ता देने के लिए | इसी प्रकार योगी जी अपराधियों के साथ लीला कर रहे हैं | जिस दिन निगाहें तिरछी होंगी, वे भी शरणागत होंगे | जैसे मोदी तथा चीन डोकलम में लीला कर रहे थे – दोनों एटम बम क्यों नहीं छोड़ रहे थे | यही लीला भी अपराधियों के साथ हो रही है |
सर्वे करके देख लीजिये | गिरफ्तारी करने से अपराध नहीं रुकते | अखिलेश के समय में प्रतिमास जितने मुसलमान तथा यादव जेल भेजे गए उसके 10% भी आज जेल में नहीं जा रहे | क्या यादवों और मुसलमानों को आज सरक्षण मिल रहा है ? क्यों नहीं जेल भेजे जा रहे है ? क्योंकि उन्होंने अपराध करना छोड़ दिया है | यादवों या मुसलमान के खिलाफ कोई सुनियोजित अभियान भी नहीं चलाया गया | फिर भी उन्होंने अपराध त्याग दिया | जब किसी शिवपाल यादव जैसे तेजस्वी यादव को मंत्रिमंडल में शपथ दिला दी जाएगी, तब फिर भी यादव अपराधी बिना किसी के कहे सक्रिय हो जायेंगे | ‘राम तेरी गंगा मैली हो गयी पापियों के पाप धोते-धोते’| जब रायबरेली में हत्यारों के पक्ष में सार्वजानिक वक्तव्य जारी करने वाले कैबिनेट में रहेंगे तो सामूहिक हत्याएं होती रहेंगी | बाहर से आयातित लोगो ने भाजपा का एक पृथक दल (Party with a difference) का स्वरुप नष्ट कर दिया | अखिलेश के समय में बलात्कार क्यों नहीं रुके | जब अखिलेश के व्यक्तिगत संरक्षक पिताश्री तथा पार्टी के संरक्षक का यह बयान आयेगा कि ‘ बच्चों से गलती हो जाती है- फिसल जाते हैं’| तथा जब अखिलेश स्वयं किसी महिला पत्रिकार के बलात्कार में वृद्धि संबंधी प्रश्न पूछने पर प्रतिप्रश्न ( जबावी सवाल ) पूछेंगे कि “आप तो सुरक्षित हैं न ? ईश्वर धन्यवाद दीजिये” तो बलात्कार बढेगा ही बढेगा – कौन रोक पायेगा ? police help line, महिला हेल्प  लाइन तथा Dial  100 क्या करेंगे | जब गायत्री प्रसाद प्रजापति के संबंध में संरक्षक महोदय की यह सोच होगी कि गायत्री प्रजापति जैसे निर्दोष बुजुर्गों को पुलिस ने नाजायज गिरफ्तार किया है तथा जेल में उन्हें नाहक परेशान किया जा रहा है तो बलात्कार कैसे करेंगे अखिलेश के कार्यकाल में फोन पर अंकित महिलाओं के छेड़छाड़ से संबंधित शिकायतों के बारे में एक निहायत  असंवैधानिक, अवैधानिक तथ बेहूदी परम्परा विकसित हो गयी – पता नहीं किसके लिखित या मौखिक आदेश से - तथा वह प्रथा आज भी विद्यमान है, जिसके रहते हुए प्रयास दस गुने कर दिये जाएँ तो भी बलात्कार बढ़ते ही रहेंगे | यह प्रथा है – बातचीत से समाधान की (Conciliation  की ) | पहले पति-पत्नी के विवाद में वैधानिक कार्यवाही के पहले वार्ता की प्रथा थी किन्तु यह वार्ता भी मुकदमा कायम होने के बाद होती थी | अब छेड़छाड़, बदतमीजी, आदि के मामले में पुलिस मुकदमा नहीं कायम करती, बल्कि जो शिकायतें प्राप्त होती हैं, उन पर दोनों पक्षों को बुलाती है तथा छेड़ने वालों और लड़की वालों के बीच उस तरह की वार्ता कराती है जैसे पहले पहले पति-पत्नी के बीच विवाद होने पर कराया करती थी | जिस मामले में पैसा पुलिस पा जाती है, उस मामले में छेडछाड का मुकदमा कायम नहीं होता तथा माफ़ी मगवाकर केस समाप्त कर दिया जाता है तथा जहाँ छेड़ने वाला पैसा नहीं दे पाता है | वहां उस पर मुकदमा कायम करके जेल भेज दिया जाता है | 1989 से पहले वीर बहादुर सिंह तथा नारायण दत्त तिवारी के समय में लड़की छेड़ने वालों पर गुण्डाऐक्ट की कार्यवाही होती थी | योगी जी केवल एक आंकड़ा मंगाकर देख लें कि क्या अखिलेश जी के मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद से क्या प्रति जिला गुण्डा ऐक्ट का एक मामला भी लड़की छेड़ने वालों के विरुद्ध दर्ज हो पाया है ? आज भी कुछ नहीं हो पाया है | गाड़ियाँ दे देने से लड़कियां नहीं बचती हैं | इसके लिए रघुवंश की (Will Power) इच्छाशक्ति चाहिए - 
यस्मिन् महीं शासति वाणिनीनां
निद्रां विहारार्द्धपथे गतानाम् |
वातोऽपि नास्रंसयदंशुकानि
को लंबयेदाहरणाय हस्तम् || (कालिदास)
(रघुवंश के शासन में यदि नर्तकियां मदमत्त होकर अस्तव्यस्त वस्त्रों में सड़क पर सो जाती थी, तो हवा की हिम्मत नहीं थी कि उनका आँचल उडा के उनके अंगो में झांक सके – फिर सामान्य मनुष्य का क्या साहस कि उनको हाथ सके |)
मात्र दृढ संकल्प चाहिए | आखिर योगी जी का घनघोर आलोचक भो नहीं कह सकता कि वे यादवों तथा मुसलमानों को  संरक्षण दे रहे हैं किन्तु अखिलेश जी के कार्यकाल में जितनी यादव तथा मुसलमान जेल में थे, या फरार थे, उसके 10% भी आज नहीं है – उनका हृदय परिवर्तन हो गया | पुलिस चेतक घोडा है –
जो तनिक हवा से बाग़ हिली
लेकर सवार उड़ जाता था |
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड जाता था ||
प्राथमिकता के क्रम में आते ही अन्य अपराध भी समाप्त हो जायेंगे |

इतने Positive दृष्टिकोण से समीक्षा न करके जो चाहते हैं कि भाजपा अपने चिर अजेंडे को भूल जायें, उनकी सोच कितनी सही है ?      

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