मैं समर्पण भी करूँ
तो क्या ?
मैं विसर्जन भी करूँ
तो क्या ?
पास मेरे कुछ नहीं
अपना
आत्म – चिंतन मैं
करूँ तो क्या ?
था जिसे समझा कभी
अपना,
लग रहा मध्यह्न का
सपना,
नयन मेरे बरस
जायेंगे
यदि पड़ा तुमको कभी
तपना |
तुम मुझे समझो न
उन्मादी,
मैं अभावों का सदा
आदी,
बात कह दी, मन हुआ
हलका
तुम मुझे समझो न
फरियादी |
प्यार मेरा तुम,
तुम्हीं में है,
एक घेरा तुम,
तुम्हीं में है,
विश्व भर में क्यों
फिरूं व्याकुल
एक फेरा तुम,
तुम्हीं में है |
भूल जाना वह, न जो भाए,
याद रखना मन जिसे
चाहे,
मैं इसे स्वीकृति
समझ लूँगा
यदि तुम्हारा कंठ भर
आये |
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