Thursday, 7 September 2017

मैं इसे स्वीकृति समझ लूंगा यदि तुम्हारा कंठ भर आये |



मैं समर्पण भी करूँ तो क्या ?
मैं विसर्जन भी करूँ तो क्या ?
पास मेरे कुछ नहीं अपना
आत्म – चिंतन मैं करूँ तो क्या ?

था जिसे समझा कभी अपना,
लग रहा मध्यह्न का सपना,
नयन मेरे बरस जायेंगे
यदि पड़ा तुमको कभी तपना |

तुम मुझे समझो न उन्मादी,
मैं अभावों का सदा आदी,
बात कह दी, मन हुआ हलका
तुम मुझे समझो न फरियादी |

प्यार मेरा तुम, तुम्हीं में है,
एक घेरा तुम, तुम्हीं में है,
विश्व भर में क्यों फिरूं व्याकुल
एक फेरा तुम, तुम्हीं में है |

भूल जाना वह, न जो भाए,
याद रखना मन जिसे चाहे,
मैं इसे स्वीकृति समझ लूँगा

यदि तुम्हारा कंठ भर आये |

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