Monday, 2 May 2016

भाग - 2
अनुसूचित जाति एवं जन जाति अत्याचार निवारण संशोधन अधिनियम 2015
की समीक्षा
निहितार्थ एवं संभावित दुष्परिणाम
(2) यूँ तो बिना किसी साक्ष्य के किसी भी आरोप को प्रमाणित मान लेना अन्याय की पराकाष्ठा है फिर भी यदि यह केवल उस मामले में लागू हो जिसमे पीड़ित व्यक्ति आरोपित व्यक्ति से कमजोर हो तो भी वह अत्याचार किसी सीमा तक सहन किया जा सकता है किन्तु यदि पीड़ित व्यक्ति आरोपित व्यक्ति से कई गुना ताकतवर हो तथा उसको भी इस प्रावधान का लाभ दिया जाए कि आरोपित व्यक्ति चाहे कितना भी कमजोर क्यों न हो फिर भी शिकायत कर्ता के अनुसूचित जाति से सम्बद्ध होने की स्थिति में बिना साक्ष्य के आरोप प्रमाणित मान लिए जायंगे तो यह किसी भी स्थिति में न्याय पूर्ण नहीं कहा जा सकता | कल्पना कीजिये कि कोई पुलिस का DG रैंक का अधिकारी यह आरोप लगता है कि एक सिपाही या लिपिक ने उसको गाली देदी या थप्पड़ मार दिया तो क्या उसे अनुसूचित जाति का होने के आधार पर इस प्रावधान का लाभ मिलना चाहिए | यह कोई कोरी कल्पना नहीं है | कांग्रेस की एक मंत्री रह चुकी अनुसूचित जाति की महिला ने एक गंभीर आरोप लगाया कि अमुक मंदिर में अमुक तारीख को उनकी जाति पूँछी गई तथा उनके दर्शन में अवरोध उत्पन्न किया गया | मंत्री स्तर की महिला के साथ escort तथा अन्य सुरक्षा प्रबंध रहा होगा | क्या इसकी कल्पना भी की जा सकती है की शासन के अंग अनुसूचित जाति के मंत्री का जातिगत आधार पर उत्पीडन हो और वह साक्ष्य प्रस्तुत करने में इस कारण असमर्थ है कि अनुसूचित जाति से सम्बद्ध है | क्या ये एक प्रतिशत भी संभव लगता है कि किसी माननीय मंत्री का जातिगत आधार पर उत्पीडन हो तथा थाने में कोई FIR तक न लिखी जाए | फिर भी सम्मानित लोगों के बीच में आंसू बहा देने पर अधिकांश लोग उन्ही के साथ सम्बेदना प्रदर्शित करने लगे | कमजोर व्यक्ति को इस नियम के आधार पर सहारा दिया जाता तो भी बात किसी सीमा तक समझ में आ सकती थी किन्तु इस नियम का प्रयोग शक्तिशाली लोग अपने से कमजोर को सताने के लिए कर रहे हैं | उल्लेखनीय है कि स्वयं माननीया मंत्री जी ने आगंतुक रजिस्टर में टिप्पणी लिख रखी थी कि मंदिर में उनके साथ बड़ा अच्छा व्यव्हार किया गया | फिर भी यदि माननीया मंत्री ने जिद पकड़ कर FIR लिखा दी होती तो तुष्टीकारण में संलग्न समस्त राजनैतिक दल ये मांग कर रहे होते कि पुजारिओं को गिरफ्तार कर लो क्योंकि -
      (क) आपराधिक मामला कभी काल - बाधित (Time - Barred) नहीं होता तथा कितना भी समय बीत जाये, पिछले समय का आपराधिक मुकदमा लिखा जा सकता है |
      (ख) आपराधिक कानून में यह presumption ला दिया गया है कि अनुसूचित जाति का व्यक्ति कभी झूठ नहीं बोल सकता तथा उसके मुह से निकले असत्य वचन को भी सत्य मान कर कार्यवाही की जाय | अनुसूचित जाति का व्यक्ति कितना भी महान क्यों न हो, वह इस स्थिति में नहीं माना जाता कि वह कि उससे उसके द्वरा लगाए गए आरोपों के साक्ष्य मांगे जा सके |
(3) शम्बूक वध के बारे में कहा जाता है कि बिना किसी ट्रायल, के बिना किसी साक्ष्य के बिना सुनवाई का मौका दिए तथा बिना किसी जिरह के शम्बूक का वध कर दिया गया | डाक्टर राम मनोहर लोहिया शम्बूक वध से इतने द्रवित थे कि मरते दम तक वशिष्ठ को गलियां बकते रहे तथा चुनौती भरे लहजे में राम को ललकारते रहे कि उन्हें राम से सीता के आंसुओं का तथा शम्बूक के खून का बदला लेना है | किन्तु जब समस्त अगडी और पिछड़ी जातियों के लोगों को कानून में संशोधन कर के शम्बूक बना दिया गया तो न तो किसी ने ललकारा और न ही किसी ने आँसू बहाये | कारण यह था कि वशिष्ठ और राम के वंशजो ने अपना 90% मत जिस पार्टी को दिया था वही उन्हें शम्बूक बना रही थी |
(4) धरा 3(EB) में लिख गया है कि "social boycott" means a refusal to permit a person to render to other person or recieve from him any customary service or to abstain from social relations that one would maintain with other person or to isolate him from others. अर्थात सामाजिक बहिष्कार का अर्थ है कि किसी को कोई परम्परागत सेवा देना या उसे प्राप्त करना यदि बंद कर दिया जाय या अन्यथा किसी को समाज से अलग - थलग कर देना | कल्पना कीजिये किसी पुरोहित से यदि कोई दलित कोई अनुष्ठान कराने को कहता है तो यदि वो पुरोहित मना करे तो भी अपराध है कि वह सामाजिक बहिष्कार कर रहा है तथा यदि वह अनुष्ठान करा दे तो भी अपराध है क्योंकि धारा चार (1) (a) के अनुसार किसी गैर अनुसूचित जाति के व्यक्ति के द्वारा निम्न कार्य कारित करना अपराध की श्रेणी में आता है -
(4) In section 3 of the principal act,-
(i) for sub section (1), the following sub - section shall be substituted, namely:-
'(1) Whoever, not being a number of a Scheduled Caste or a Scheduled Tribe-
      (a) puts any inedible or obnoxious subustance into the mouth of a member of a Scheduled Cast or Scheduled Tribe or forces such member to drink or eat such inedible or abnoxious subustance.'
और तमाम अनुष्ठानों में पंचगव्य का सेवन आवश्यक होता है | एसी स्थिति में कानून की अस्पष्टता को दूर किया जाना आवश्यक है

(5) बहिष्कार और अपमान के क्या मानक हैं यह विवेचक के विवेक पर छोड़ दिया गया है | मोदी जी को यह स्पष्ट बताना होगा कि क्या कोई पिता किसी अन्तर्जातीय विवाह की स्थिति में कन्यादान से इनकार करने का अधिकार रखता या नहीं रखता है | प्रजातन्त्र में यदि कोई वयस्क कन्या अपनी इच्छा से अंतर्जातीय विवाह करने का निर्णय लेती है तो खाप पंचायतों की तरह लड़का लड़की को मार डालने या पीटने का अधिकार किसी को प्राप्त नहीं है | किन्तु ऐसी शादियों में भाग न लेने के माता - पिता के अधिकार को चुनौती नहीं दी जा सकती | यदि किसी वयस्क लड़की को अपनी इच्छा से शादी करनी है तो वह माता पिता को उस शादी में भाग लेने के लिए या आशीर्वाद देने के लिए बाध्य नहीं कर सकती | इसी तरह किसी वयस्क लड़की को इस बात का पूर्ण अधिकार है कि वह कहाँ विवाह करे | किन्तु व्यावहारिक धरातल पर पुलिस वोट बैंक के तुष्टीकरण के लिए इस कानून की ऐसी व्याख्या कर रही है कि नौकरिओं के आरक्षण की तरह बेटियों के कन्यादान में भी आरक्षण का क़ानून बन गया हो | बरेली में एक मामले में एक डाक्टर लड़की ने तथा उसके पिता ने एक डाक्टर लड़के के प्रस्ताव को यह कह कर अस्वीकृत कर दिया कि वे अपनी जाति के बाहर विवाह नहीं करेंगे | इस पर उस डाक्टर लड़के को यह सोच कर जातिगत अपमान बोध हुआ कि यदि वह अनुसूचित जाति का न होता तो उसका विवाह का प्रस्ताव अस्वीकृत न होता | कर्ण को भी इसी तरह की ग्लानि हुई थी जब किसी द्रोपदी ने सूतपुत्र होने के नाते उसे स्वयम्बर में भाग नहीं लेने दिया था | किन्तु यदि किसी को यह अधिकार है कि उसे जातिगत आधार पर अपमानित न किया जाय तो किसी कन्या तथा उसके पिता को यह भी अधिकार प्राप्त है कि वे अपनी जाति के बाहर विवाह न करने का निर्णय ले सके तथा किसी अन्य जाति के व्यक्ति के प्रस्ताव को अस्वीकृत कर सकें | यदि लड़की वाले प्रस्ताव रखने वाले के दरवाजे पर जा कर मारपीट करे या गाली गलौज करे तो भी एक बार कोई इसकी आलोचना कर सकता है किन्तु प्रेमी तथा उसके घर वाले लड़की के घर पर जा कर मानसिक दबाव बनायें तथा शादी के लिए मना करने पर जातिगत उत्पीड़न का आरोप लगायें तथा मात्र सवर्ण कुल में जन्म लेने की गलती का प्रायश्चित करने के लिए लड़की तथा उसके घर वाले अभियुक्त बना दिए जायं तथा इधर उधर मारे - मारे फिरें यह कहाँ का न्याय है | बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का व्यान छपा कि तमाम सवर्णों की बेटियां उनकी गर्लफ्रेंड रही हैं तथा उसी दिन शाध्वी कही जाने वाली एक वरिष्ठ महिला नेता ने यह प्रमाणपत्र जारी किया कि मांझी दलितों तथा पिछड़ों के गौरव हैं | नारीत्व का सम्मान होना चाहिए किसी भी जाति के महिला को गर्लफ्रेंड बनाना किसी अन्य जाति के लिए प्रजातंत्र में गौरव की बात नहीं होनी चाहिए बल्कि इसे एक सामान्य तथ्य के रूप में लिया जाना चहिये | हमीरपुर में आयोजित एक जन सभा में एक वरिष्ठ नेता एलान कर चुके हैं कि 'अब रोटियों के रिजर्वेशन से काम नहीं चलेगा, अब बेटियों में रिजर्बेशन की आवश्यकता है' इस प्रकार की स्थितियों पर कैसे नियंत्रण पाया जाये - इसके लिए सुविचारित चिंतन अपेक्षित है | क्रमशः .....

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