भाग- 2
परशुराम जी का ब्राह्मण - क्षत्रिय समाज के नाम खुला ख़त
ब्राह्मण क्षत्रिय एकता का राम - परशुराम फार्मूला
द्रोणाचार्य - द्रौपदी ब्राह्मण क्षत्रिय एकता के मानक
शमीक फार्मूला
जनमेजय का नाग - यज्ञ
परशुराम जी का ब्राह्मण - क्षत्रिय समाज के नाम खुला ख़त
ब्राह्मण क्षत्रिय एकता का राम - परशुराम फार्मूला
द्रोणाचार्य - द्रौपदी ब्राह्मण क्षत्रिय एकता के मानक
शमीक फार्मूला
जनमेजय का नाग - यज्ञ
परशुराम जी बोले
जमदग्नि मेरे पिता हैं। उनकी साधना करो।
तब परशुराम प्रकट होंगें। आज जिन हाथों में फर्शा उठाने की शक्ति प्रतीत होती है,
जो आज हमें माला पहनाने
के लिए आमंत्रित किए जाते हैं, जो हमारी स्मृति में बुलाई गई गोष्ठियों में आयोजकों द्वारा
आहूत होते है, वे कौन हैं जरा उन चेहरों को पहचानों। वे वे चेहरे हैं,
जो द्रोणाचार्य द्वारा एक
अंगूठा की दक्षिणा लेने के एवज में लाखों/करोडों अंगूठों की दक्षिणा ले चुके हैं
आरक्षण के नाम पर तथा अब प्राइवेट सेक्टर में रिजर्वेशन का आह्वान कर रहे हैं।
हमारा जयकारा करके लोग उनका जयकारा करते हैं, जो हमारे दरवाजे से हमारी
गाय खोलकर ले जाना चाह रहे हैं। परशुराम अकेले असहाय हैं। जब कोई जमर्दिग्न गला
कटाता है, तब मॉं रेणुका 21 बार छाती पीटती है तथा 21 राउण्ड फर्शे का आपरेशन
चलता है।
मैं क्षत्रिय कुल द्रोही
नही हॅूं। मैंने क्षत्रिय कन्या का दूध
पिया है। मेरे मामा विश्वामित्र क्षत्रिय थे। सहस्त्रबाहु जिसका मैंने वध किया,
वह मेरा मौसा था। मैंने
कभी दशरथ या जनक के विरुद्ध सैन्य अभियान नहीं चलाया। क्षत्रिय से मेरा कोई संघर्ष
नहीं। क्षत्रिय से संघर्ष करने वाला ब्राहमण ‘बाभन’ कहलाता है तथा ब्राहमण से
संघर्ष करने वाले क्षत्रिय को ‘ठाकुर‘ कहते हैं। ‘बाभन‘ और ‘ठाकुर‘ में संघर्ष होता है-ब्राहमण तथा क्षत्रिय में कोई संघर्ष
हो ही नहीं सकता है। ‘ठकुराइन‘ स्वभाव की शर्मिष्ठा/गुर कन्या देवयानी को भिखारिन कहती है।
इसके उत्तर में ‘बभनई‘ दिखातें हुए देवयानी कहती है कि देवताओं ने धरती ब्राहमणों
को दी है तथा ब्राहमणों ने उसे बटाई पर क्षत्रियों को दे दी। जैसे कोई दरवाजे पर
कुत्ता पाल लेता है, वैसे अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए क्षत्रियों को पाल
लिया गया। यह वार्तालाप ‘बभनई‘ तथा ‘ठकुरैती‘ के हैं। ब्राहमण
क्षत्रिय में संघर्ष का कोई बिंदु नही। ठाकुर स्वभाव के लक्ष्मण कहते हैं-
कबहुं न मिले सुभट रन गाढे़,
द्विज देवता घरहिं के बाढे़।
क्षत्रिय स्वभाव के राम घोषणा करते हैं-
विप्र वंस कै असि प्रभुताई,
अभय रहहिं जो तुम्हहिं डेराई।
ठाकुर जब किसी ब्राहमण हो दान देता है, तो उसमें अहंकार आता है
कि मैंने दान किया तथा वह दान भिक्षा में बदल जाता है। क्षत्रिय जब दान देता है तब
कृतज्ञ होता है कि ब्राहमण ने उसका दान लेने की कृपा की तथा उसके एवज में दक्षिणा
देता है।
ब्राहमण को जब क्षत्रिय
भोजन कराता है धन्य महसूस करता है कि ब्राहमण ने उसका भोजन ग्रहण करने की कृपा की
तथा इसके प्रतिकर में वह भोजन के बाद दक्षिणा अलग से देता है। ब्राहमण भी भोजन तथा दान पाने के बाद उसे ‘अन्नदाता‘ कहता है, उसको अपमानित नही करता।
‘ठाकुर‘ को ‘बाभन‘ निहुर आर्शीवाद देता है,
जैसे कलराज मिश्र जी
राजनाथ सिंह को देते हैं। प्रश्न उठता है कि यह ‘निहुर-आर्शीवाद‘ क्या है? अवध (फैजाबाद, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, अम्बेडकर नगर, अमेठी, गोण्डा, वाराबंकी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर) के ठाकुर को
सामने आते देख वहॉं का ‘बाभन‘ चीखने लगता है - ‘महाराज की जय हो, कल्याण हो‘। बाभन इस बात की प्रतीक्षा नहीं करता कि ठाकुर प्रणाम
करे-वह आर्शीवाद की बौछार पहले ही झोंक देता है।
ठाकुर भी प्रसन्न हो जाता है-वह भीख देने की मुद्रा में दान देता है तथा
आर्शीवाद पाने के बाद अकड़कर बिना झुके प्रणाम करता है।
ब्राहमण भीख नहीं
लेता-ब्राहमण दक्षिणा लेता है। भिक्षा ब्राहमण का धन है। किसी के प्रणाम अर्पित करने के बाद ब्राहमण
आर्शीवाद देता है-पहले से ही जयकारा लगाना चालू नहीं करता। बाभन पहले से ही
आर्शीवाद देना प्रारम्भ करता है।
ब्राहमण और क्षत्रिय एक
ही सिक्के के दो पहलू हैं। ब्राहमण थ्योरी
है, क्षत्रिय प्रैक्टिकल
क्रमशः...
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