भाग- 3
परशुराम जी का ब्राह्मण - क्षत्रिय समाज के नाम खुला ख़त
ब्राह्मण क्षत्रिय एकता का राम - परशुराम फार्मूला
द्रोणाचार्य - द्रौपदी ब्राह्मण क्षत्रिय एकता के मानक
शमीक फार्मूला
जनमेजय का नाग - यज्ञ
क्षत्रिय और ब्राह्मण में संघर्ष संभव ही नहीं है क्या रावण ब्राह्मण रह गया था ? क्या सहस्त्रबाहु क्षत्रिय रह गया था | क्षत्रिय वह है जो यथा शक्ति ब्राह्मण को दान दे , कंजूसी में या वित्त के अभाव में यदि वह दान न दे सके , तो कम से कम उसकी संपत्ति न छीने , जब सहस्त्रबाहु महर्षि की गाय छीनने पर आमादा हो गया , तो वह क्षत्रिय कहाँ रह गया ? क्षत्रिय तो दिलीप थे जिन्होंने वशिष्ठ की गाय की रक्षा के लिए अपने प्राणों को दाव पर लगा दिया था | दिलीप को समझाने की कोशिश हुई -
भूतानुकम्पा तव चेदियं गौ रेका भवेत् स्वस्तिमति त्वदंते जीव - पुनः शश्वदुपप्लवेभ्य: प्रजा: प्रजानाथ पितेव पासी |
किन्तु दिलीप ने गाय के निमिच प्राण देने को वरीयता देता था | इसीलिए मनुवादी पार्टी ने गौ तथा ब्राह्मण को अपने प्राणों से भी अधिक वरीयता देने वाले दिलीप की स्मृति में ' दिलीपसेना ' का गठन किया है | रावण ब्राह्मण कहाँ रह गया जब सीता का अपहरण कर ले गया | ब्राह्मण तो नि:शुल्क भोजन तथा नियोग तक नहीं करता है | निमंत्रित होने के बाद ब्राह्मण कहीं भोजन करता है तथा इसके लिए भी भोजन दक्षिणा लेता है | जो भीष्म काशिराज की लड़कियों का अपहरण कर सकते थे , वे क्यों नहीं निषादकन्या का अपहरण कर सके ? राज्याभिषेक के समय राजा तीन बार चिल्लाकर कहता था - ' अदंडयोअस्मि, अदंडयोअस्मि, अदंडयोअस्मि अर्थात मै राजा होने जा रहा हूँ , अब मुझे कोई दण्डित नहीं कर सकता , कोई दण्डित नहीं कर सकता , कोई दण्डित नहीं कर सकता | ब्राह्मण तीन बार उस पर पलाश के डंडे से प्रहार करता था तथा घोषणा करता था - ' धर्मदण्डोअस्ति , धर्मदण्डोअस्ति , धर्मदण्डोअस्ति , अर्थात यह धर्म का डंडा है , धर्म का डंडा है , धर्म का डंडा है | तब जाकर राज्याभिषेक के निमित्त जल छिड़का जाता था | तुलसीदास ने लिखा है -
जासु राज प्रिय प्रजा दु:खारी
तिन्हहिं विलोकत पातक भारी |
जो खेतों में घास रोपते समय मजदूर लड़कियों के पीछे घोड़ा दौडाते तथा छेड़खानी करते राजपुत्रों को दिखाया जाता है , मनुवादी पार्टी के अनुसार यह क्षत्रिय समाज की छवि को धूमिल करने का कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित लोगों का षड्यंत्र है | क्षत्रिय रक्षा करता है , यह दृश्य यूरोप के सामंतों का हो सकता है |
अपहरण केवल समकक्ष कन्या का हो सकता था - यह उस जमाने की प्रतियोगिता थी जिसमे राजकुमार अपनी वीरता का प्रदर्शन करते थे | किन्तु गरीबों पर यह अत्याचार नहीं होता था | अफगानिस्तान के राजा तथा काशी के राजा की भांति यह खतरा सभी को नहीं था | पतनोन्मुख मध्ययुगीन वाणी है यह -
' जेहि की बिटिया सुन्दर देखी
तेहि पर जाई धरी तलवार |
या
' दूबर क्षत्री धै कै बाँधब
बरु टुटहे घर करब विवाह |
' दूबर क्षत्रिय को बांधना क्षत्रियों की परंपरा नहीं है , ' ठकुरैती ' है | किन्तु इस ठकुरैती में भी गरीब प्रजा पर अत्याचार की कोई गुंजाइश नहीं है | अत्याचार ठाकुर भी नहीं करता - केवल वह क्षत्रिय की तुलना में हठी , दुराग्रही तथा विवेकहीन होता है | क्षत्रिय ' ठकुरसोहती ' नहीं सुनाता - वह अनुशासित करने वाला वशिष्ठ रखता है , चंदबरदाई नहीं | वेश्याओं के घुंघरुओं में जागीरें नीलाम हो गईं | क्षत्रिय से जो लोग ठाकुर हो गए थे , उन्होंने भी कभी किसी से जोर-जबर्दस्ती नहीं की | जब ठाकुरों तक ने कभी अत्याचार नहीं किया , तो क्षत्रिय कैसे अत्याचार कर सकता है ? ठाकुर गिरोह , जो डकैती डालते थे , उनमे तक इतनी नैतिकता थी कि -
1. किसी लड़की का तिलक चढाने जा रहे लोगों को कभी नहीं लूटा - उनकी यह मान्यता थी कि यह कन्याधन है |
2. डकैती डालते समय लड़कियों का जेवर छोड़ देते थे तथा केवल बहुओं का जेवर लूटते थे |
बिगड़ा - बहका ठाकुर भी डकैत हो जाने के बाद भी कभी अत्याचार नहीं करता था , तो फिर इस बात का सवाल ही कैसे उठता है कि कोई क्षत्रिय अत्याचार करने की सोच भी सकता है |
सहस्त्रबाहु भी जब ठकुरैती में विवेकहीन हो गया था , तो उस दशा में भी उसने महर्षि से कहा कि एक गाय के बदले हजार गायें ले लो किन्तु न मानने पर उसने महर्षि की हत्या कर दी | यही उसका दुराग्रह था | ठाकुर को परिमार्जित करके क्षत्रिय बनाना ही ब्राह्मण का दायित्व है | इस दायित्व को निभाने के लिए जमदाग्नि उसके आगे झुके नहीं तथा दुराग्रह में आकर क्षत्रिय से ठाकुर बन चुका | सहस्त्रबाहु हमलावर हो गया | ठाकुर और क्षत्रिय एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | ठाकुर + विवेक = क्षत्रिय , क्षत्रिय - विवेक = ठाकुर |
इसी प्रकार ,
ब्राह्मण - विवेक = बाभन तथा बाभन + विवेक = ब्राह्मण | ब्राह्मण की हत्या के बाद ब्राह्मणी ( जो क्षत्रिय कुलोत्पन्न थी ) आवेश में आ गई | जब ब्राह्मण की गाय असुरक्षित हो गई , तो सामान्य जनता की क्या दशा रही होगी | आगे क्या हुआ , दुनिया ने देखा |
यही हाल रावण का था | रावण ने जिस समय सीता का हरन किया , वह ब्राह्मणत्व से च्युत हो गया | रावण का वध करने वाले राम को ब्राह्मणों ने भगवान् का अवतार स्वीकार किया तथा परशुराम को राम ने लक्ष्मण की ठकुरैती को दबाकर भगवान् के अवतार के रूप में प्रतिस्थापित किया | क्रमशः .........
परशुराम जी का ब्राह्मण - क्षत्रिय समाज के नाम खुला ख़त
ब्राह्मण क्षत्रिय एकता का राम - परशुराम फार्मूला
द्रोणाचार्य - द्रौपदी ब्राह्मण क्षत्रिय एकता के मानक
शमीक फार्मूला
जनमेजय का नाग - यज्ञ
क्षत्रिय और ब्राह्मण में संघर्ष संभव ही नहीं है क्या रावण ब्राह्मण रह गया था ? क्या सहस्त्रबाहु क्षत्रिय रह गया था | क्षत्रिय वह है जो यथा शक्ति ब्राह्मण को दान दे , कंजूसी में या वित्त के अभाव में यदि वह दान न दे सके , तो कम से कम उसकी संपत्ति न छीने , जब सहस्त्रबाहु महर्षि की गाय छीनने पर आमादा हो गया , तो वह क्षत्रिय कहाँ रह गया ? क्षत्रिय तो दिलीप थे जिन्होंने वशिष्ठ की गाय की रक्षा के लिए अपने प्राणों को दाव पर लगा दिया था | दिलीप को समझाने की कोशिश हुई -
भूतानुकम्पा तव चेदियं गौ रेका भवेत् स्वस्तिमति त्वदंते जीव - पुनः शश्वदुपप्लवेभ्य: प्रजा: प्रजानाथ पितेव पासी |
किन्तु दिलीप ने गाय के निमिच प्राण देने को वरीयता देता था | इसीलिए मनुवादी पार्टी ने गौ तथा ब्राह्मण को अपने प्राणों से भी अधिक वरीयता देने वाले दिलीप की स्मृति में ' दिलीपसेना ' का गठन किया है | रावण ब्राह्मण कहाँ रह गया जब सीता का अपहरण कर ले गया | ब्राह्मण तो नि:शुल्क भोजन तथा नियोग तक नहीं करता है | निमंत्रित होने के बाद ब्राह्मण कहीं भोजन करता है तथा इसके लिए भी भोजन दक्षिणा लेता है | जो भीष्म काशिराज की लड़कियों का अपहरण कर सकते थे , वे क्यों नहीं निषादकन्या का अपहरण कर सके ? राज्याभिषेक के समय राजा तीन बार चिल्लाकर कहता था - ' अदंडयोअस्मि, अदंडयोअस्मि, अदंडयोअस्मि अर्थात मै राजा होने जा रहा हूँ , अब मुझे कोई दण्डित नहीं कर सकता , कोई दण्डित नहीं कर सकता , कोई दण्डित नहीं कर सकता | ब्राह्मण तीन बार उस पर पलाश के डंडे से प्रहार करता था तथा घोषणा करता था - ' धर्मदण्डोअस्ति , धर्मदण्डोअस्ति , धर्मदण्डोअस्ति , अर्थात यह धर्म का डंडा है , धर्म का डंडा है , धर्म का डंडा है | तब जाकर राज्याभिषेक के निमित्त जल छिड़का जाता था | तुलसीदास ने लिखा है -
जासु राज प्रिय प्रजा दु:खारी
तिन्हहिं विलोकत पातक भारी |
जो खेतों में घास रोपते समय मजदूर लड़कियों के पीछे घोड़ा दौडाते तथा छेड़खानी करते राजपुत्रों को दिखाया जाता है , मनुवादी पार्टी के अनुसार यह क्षत्रिय समाज की छवि को धूमिल करने का कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित लोगों का षड्यंत्र है | क्षत्रिय रक्षा करता है , यह दृश्य यूरोप के सामंतों का हो सकता है |
अपहरण केवल समकक्ष कन्या का हो सकता था - यह उस जमाने की प्रतियोगिता थी जिसमे राजकुमार अपनी वीरता का प्रदर्शन करते थे | किन्तु गरीबों पर यह अत्याचार नहीं होता था | अफगानिस्तान के राजा तथा काशी के राजा की भांति यह खतरा सभी को नहीं था | पतनोन्मुख मध्ययुगीन वाणी है यह -
' जेहि की बिटिया सुन्दर देखी
तेहि पर जाई धरी तलवार |
या
' दूबर क्षत्री धै कै बाँधब
बरु टुटहे घर करब विवाह |
' दूबर क्षत्रिय को बांधना क्षत्रियों की परंपरा नहीं है , ' ठकुरैती ' है | किन्तु इस ठकुरैती में भी गरीब प्रजा पर अत्याचार की कोई गुंजाइश नहीं है | अत्याचार ठाकुर भी नहीं करता - केवल वह क्षत्रिय की तुलना में हठी , दुराग्रही तथा विवेकहीन होता है | क्षत्रिय ' ठकुरसोहती ' नहीं सुनाता - वह अनुशासित करने वाला वशिष्ठ रखता है , चंदबरदाई नहीं | वेश्याओं के घुंघरुओं में जागीरें नीलाम हो गईं | क्षत्रिय से जो लोग ठाकुर हो गए थे , उन्होंने भी कभी किसी से जोर-जबर्दस्ती नहीं की | जब ठाकुरों तक ने कभी अत्याचार नहीं किया , तो क्षत्रिय कैसे अत्याचार कर सकता है ? ठाकुर गिरोह , जो डकैती डालते थे , उनमे तक इतनी नैतिकता थी कि -
1. किसी लड़की का तिलक चढाने जा रहे लोगों को कभी नहीं लूटा - उनकी यह मान्यता थी कि यह कन्याधन है |
2. डकैती डालते समय लड़कियों का जेवर छोड़ देते थे तथा केवल बहुओं का जेवर लूटते थे |
बिगड़ा - बहका ठाकुर भी डकैत हो जाने के बाद भी कभी अत्याचार नहीं करता था , तो फिर इस बात का सवाल ही कैसे उठता है कि कोई क्षत्रिय अत्याचार करने की सोच भी सकता है |
सहस्त्रबाहु भी जब ठकुरैती में विवेकहीन हो गया था , तो उस दशा में भी उसने महर्षि से कहा कि एक गाय के बदले हजार गायें ले लो किन्तु न मानने पर उसने महर्षि की हत्या कर दी | यही उसका दुराग्रह था | ठाकुर को परिमार्जित करके क्षत्रिय बनाना ही ब्राह्मण का दायित्व है | इस दायित्व को निभाने के लिए जमदाग्नि उसके आगे झुके नहीं तथा दुराग्रह में आकर क्षत्रिय से ठाकुर बन चुका | सहस्त्रबाहु हमलावर हो गया | ठाकुर और क्षत्रिय एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | ठाकुर + विवेक = क्षत्रिय , क्षत्रिय - विवेक = ठाकुर |
इसी प्रकार ,
ब्राह्मण - विवेक = बाभन तथा बाभन + विवेक = ब्राह्मण | ब्राह्मण की हत्या के बाद ब्राह्मणी ( जो क्षत्रिय कुलोत्पन्न थी ) आवेश में आ गई | जब ब्राह्मण की गाय असुरक्षित हो गई , तो सामान्य जनता की क्या दशा रही होगी | आगे क्या हुआ , दुनिया ने देखा |
यही हाल रावण का था | रावण ने जिस समय सीता का हरन किया , वह ब्राह्मणत्व से च्युत हो गया | रावण का वध करने वाले राम को ब्राह्मणों ने भगवान् का अवतार स्वीकार किया तथा परशुराम को राम ने लक्ष्मण की ठकुरैती को दबाकर भगवान् के अवतार के रूप में प्रतिस्थापित किया | क्रमशः .........
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