भाजपा की आरक्षण निति पर एक विहंगम दृष्टि (भाग-3)
आइये हम समझते है कि backlog की
समस्या क्या है तथा इस पर काशीराम और मायावती ने दलितों को क्या समझाया और उनको
कांग्रेस से कैसे अलग कर दिया I इसी क्रम में हम इसपर भी चर्चा करेंगे कि जैसे-
जैसे मायावती के चरण बढ़ते गए वैसे-वैसे कांग्रेस सूखती चली गयी I हम इसपर भी चर्चा
करेंगे कि किस प्रकार भाजपा ने सवर्णों का पिछडो का वोट लेकर उन्ही का जूता उन्ही
के सिर पर मरने लगी तथा सवर्णों और पिछडो का सर्वनाश कर दिया I इसे हम त्याग नही
कह सकते क्योकि त्याग तो दधीचि ने किया था जिन्होंने जनहित के लिए अपनी अस्थियो का
दान कर दिया था I दधीचि ने कभी कोई धरना प्रदर्शन नही किया , अनशन नही किया, कही
ज्ञापन नही दिया और ना ही किसी अदालत में कोई मुकदमा दाखिल किया I यदि सवर्ण तथा
पिछड़े सुविचारित ढंग से अपने बच्चो के भविष्य का बलिदान दलितों के हित में कर दिए
होते तो हम उन्हें दधीचि की तरह पूज्य
मानते किन्तु एक ओर तो सवर्ण और पिछड़े प्रोन्नति में समर्थन देने वालो को वोट देते
रहे, तथा दूसरी ओर इसके विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमा भी लड़ते रहे तथा सड़क पर
धरना प्रदर्शन भी करते रहे I सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्णय था कि भर्ती के समय
एक बार आरक्षण को औचित्यपूर्ण भले ही मान लिया जाये किन्तु प्रोन्नति में आरक्षण
सर्वथा प्राकृतिक न्याय के विरूद्ध है तथा किसी भी आधार पर उसे तर्कसंगत नही कहा
जा सकता है I जब दो व्यक्ति एक साथ J.E. या अध्यापक या क्लर्क भर्ती हुए तो
इंजीनियर या प्रधानाध्यापक या हेड क्लर्क बनने के लिए किस बात का आरक्षण होना
चाहिए I किस बात का पिछड़ापन शेष रह गया I सामान वेतन मिलने लगा, एक जैसी कॉलोनी
में रहने लगे- किस कोने से पिछड़े रह गए I
किन्तु अटल बिहारी बाजपेई जैसे महापुरुष सुप्रीम कोर्ट की बात को सुनने को
तैयार नही हुए I संविधान को ही बदल दिया गया तथा मा.सुप्रीम कोर्ट के फैसले को
निरर्थक कर दिया गया I यदि अगड़े तथा पिछड़े प्रसन्नभाव से भाजपा की BRAIN WASHING
से संतुष्ट होकर इस निर्णय को स्वीकार कर लिए होते तो मै उन्हें दधीचि की तरह
पूज्य मानता तथा यह समझता कि देशहित राष्ट्रहित, समाजहित तथा अनुसूचित जातियों के
हित में अपनी, अपने बच्चो की तथा अपने पोते पोतियों की अस्थियो का उन्होंने दान कर
दिया तथा सचमुच के दानवीर है I किन्तु इस संविधान संशोधन के बाद आरक्षण विरोधियो
ने सड़क से लेकर न्यायलय तक लम्बा संघर्ष किया, तथा पुनः विजय प्राप्त की I इसके
वावजूद सवर्ण तथा पिछड़े आरक्षण के विरोध में संघर्ष भी करते रहे तथा थोक के भाव
हर-हर मोदी का नारा लगा कर मोदी को वोट भी
दिए I कोई भी विचारशील आदमी इसे त्याग की श्रेणी में नही रख सकता तथा इसे
अविवेकपूर्ण आत्महत्या की श्रेणी में गिनना पड़ेगा,
उ0प्र0 के विभिन्न सरकारी विभागों व
निगमों में प्रथम नियुक्ति के समय अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग
के लिए क्रमशः 21%, 2% व 27% आरक्षण का प्रावधान है I बाद में 70 दशक में (73 एव 74) में अनुसूचित जाति/
अनुसूचित जनजाति के लिए पदोन्नति में भी आरक्षण प्रदान कर दिया गया जिसके फलस्वरूप
अनुसूचित जाति व जनजाति के कार्मिक अन्य कार्मिको की तुलना में काफी पहले पदोन्नति
पाने लगे I उदाहरण के तौर पर एक साथ
नियुक्त हुए सहायक अभियंताओ में अनुसूचित जाति/जनजाति के अभियंता 07 वर्ष में
अधिशासी अभियंता, कुल 13 वर्ष में अधीक्षण अभियंता, कुल 17 वर्ष में मुख्य
अभियन्ता स्तर -2 और कुल 18 वर्ष की सेवा में मुख्य अभियंता स्तर -1 बन गए है ,
जबकि नियुक्ति की मेरिट में उनसे कही उपर
सामान्य व पिछड़े वर्ग के सहायक अभियंता २२ व 25 वर्ष में अधिशासी अभियंता बन पा
रहे है और अधिकांश अभियंता एक पदोन्नति पाकर अथवा बिना प्रोन्नति के ही
सेवानिवृत्त हो रहे है I
पदोन्नति में आरक्षण के
फलस्वरूप अनुसूचित जाति व जनजाति के कार्मिक काफी जल्दी पदोन्नति पा रहे है किन्तु
परिणामी ज्येष्ठता लागू करने के पूर्व की सेवा नियमावली में स्पष्ट उल्लेख था
--- “पोषक संवर्ग में ज्येष्ठ कोई व्यक्ति
भले ही उसकी पदोन्नति पोषक संवर्ग में उससे कनिष्ठ व्यक्ति के पश्चात् की गयी हो,
उसे संवर्ग में, जिसमे उसकी पदोन्नति की जाये, अपनी वही ज्येष्ठता पुनः प्राप्त कर
लेगा जो पोषक संवर्ग में थी” I
इस प्रावधान के चलते हुए कुछ कार्मिक
उच्च पदों तक जाने का अवसर पा जाते थे, यद्दपि कि अधिकांश कार्मिक एक से अधिक
पदोन्नति नही पा रहे थे I प्रदान करना है
उ0 प्र0 सरकार द्वारा जारी अधिसूचना स. 13/2/ 91 – T.C. –1 / 2007 दिनांक
14.09.2007 द्वारा कार्मिको की ज्येष्ठता सेवा नियमावली 1991 में प्रतिगामी परिवर्तन किया गया और विनियम 8
के पश्चात् नया विनियम 8 –क बड़ा दिया गया जिसके माध्यम से अनुसूचित जाति व जनजाति
के कार्मिको को पदोन्नति में आरक्षण के साथ- साथ परिणामी ज्येष्ठता प्रदान करने का
अधिकार भी दे दिया गया और यह व्यस्था 17 जून 1995 से लागू कर दी गयी I
मूल नियमावली में विनियम 8- क जोड़कर यह वयस्था की गयी कि ज्येष्ठता नियमावली
1991 के नियम 6, 7, व 8 में किसी बात के होते हुए भी अनुसूचितजाति / जनजाति का
कार्मिक आरक्षण / रोस्टर के नियम के आधार पर , अपनी पदोन्नति पर परिणामिक
ज्येष्ठता का भी हकदार होगा I
तात्पर्य यहं कि विभिन्न सेवा संवर्गो की ज्येष्ठता सुचियो में तदानुसार संशोधन किया जाये और यदि अनुसूचित जाति /
जनजाति के आरक्षण के आधार पर पदोन्नति प्राप्त सेवको को दिनांक 17.06.1995 के
उपरांत सामान्य व पिछड़ा वर्ग के सेवको की पदोन्नति के परिणाम स्वरूप उनको मूल
ज्येष्ठता क्रम पर रख दिया गया हो, तो उसे पदोन्नति की तारीख के क्रमानुसार पुनः निर्धारित
कर दिया जाये I
परिणामी ज्येष्ठता के परिणामस्वरूप अनुसूचित जाति / जनजाति के सेवको को उनके
सन्निकट कनिष्ट कार्मिको की प्रोन्नति की तिथि से, आरक्षित रिक्तियों के सापेक्ष
दी जाएगी किन्तु आरक्षित रिक्तिया उपलब्ध न होने पर अनारक्षित पदों पर उनकी
प्रोन्नति पर विचार किया जायेगा I
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