आरक्षण
पर गाँधी कैसे झुके इस पर एक दृष्टि ----
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“पूना पैक्ट” – भारत में “आरक्षण” के नाम पर “अत्याचार” का आरम्भ ॥
॥ जब “गांधीजी” ने हिंदुत्व के पक्ष में अनशन किया ॥
॥ जब “गांधीजी” ने हिंदुत्व के पक्ष में अनशन किया ॥
“आरक्षण” के नाम पर हमारे देश में जो “अत्याचारपूर्ण” प्रथा चलाई जा रही हैं ; इसका आरम्भ स्वतन्त्रता के बहुत
पहले ही हो गया था । सनातन धर्म में फूट डालने हेतु अंग्रेजों द्वारा रचित
सुनियोजित षड्यंत्र का नाम हैं “आरक्षण” । आइये देखते “भारत” में इसका आरम्भ कैसे हुआ ?
दूसरी
गोलमेज बैठक (7 सितम्बर, 1931 से 9 दिसम्बर, 1931) में “डॉ आंबेडकर” ने भारतवर्ष में दलितों की
दुर्दशा की बात करते हुए दलितों के लिए “पृथक
निर्वाचन”
की मांग रखी । 12 नवम्बर, 1931 को “गांधीजी” ने इस मांग का विरोध करते हुए कहा
की इससे “हिन्दू समाज” विभाजित हो जाएगा । सर्वसम्मति से
निर्णय नहीं होने पर , निर्णय
ब्रिटिश प्रधानमन्त्री पर छोड़ दिया गया ।
17 अगस्त, 1932 को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री “रैमज़ै मक्डोनल्ड” (Sir Ramsay
McDolald) ने “डॉ आंबेडकर” की मांगे मानते हुए “कम्युनल अवार्ड”(Communal Award) घोषित किया । जब “गांधीजी” को इसकी सूचना मिली तो उन्होंने 20 सितम्बर, 1932 को पूना की यरवदा जेल में इसके
विरुद्ध आमरण अनशन की घोषणा कर दी । “गांधीजी” और “डॉ आंबेडकर” दोनों झुकने को तैयार नहीं थे ।
अगर ऐसा “कम्युनल अवार्ड” लागू हो जाता तो “सनातन धर्म” के लिए बहुत बड़ा संकट उपस्थित हो
जाता ।
23 सितम्बर
को “गांधीजी” का स्वास्थ्य गिरने लगा । देश के
बड़े-बड़े नेताओं की बैठके होने लगी । हिन्दू समाज की ओर से “मदनमोहन मालवीय” , “चक्रवर्ती राजगोपालाचारी” , “तेजबहादुर सप्रू” , “एम आर जयकर” , “अमृतलाल ठक्कर” , “घनश्यामदास बिडला” आदि और दलित पक्ष की ओर से “डॉ आंबेडकर” , “श्रीनिवासन” , “एम सी राजा” आदि । अंतत: 24 सितम्बर, 1932 को सबने एकमत से निर्णित समझौते
पर हस्ताक्षर कर दिए जो “पूना
पैक्ट” के नाम से जाना जाता हैं ।
इस
समझौते (“पूना पैक्ट”) के अंतर्गत “डॉ आंबेडकर” को पृथक निर्वाचन की मांग को वापस
लेना था और “गांधीजी” को दलितों को केन्द्रीय और
राज्यों की विधानसभाओं एवं स्थानीय संस्थाओं में दलितों की जनसंख्या के अनुसार
प्रतिनिधित्व देने एवं सरकारी नौकरियों में भी प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था
कराने का वादा करना था । साथ-ही-साथ “शैक्षिक
संस्थाओं”
(Schools , Collages , Universities) में दलितों को विशेष सुविधाएँ देने की बात भी इसमें सम्मिलित थी । 24 सितम्बर, 1932 को “गांधीजी” , “डॉ आंबेडकर” एवं उनके समर्थकों ने इस समझौते
पर हस्ताक्षर कर दिए ।
“गांधीजी” ने विवशता में इस समझौते पर
हस्ताक्षर किये थे क्योंकी अन्य कोई मार्ग उपलब्ध नहीं था ।
और
24 सितम्बर, 1932 से भारत में अन्याय की एक नई
परम्परा का आरम्भ हुआ जिसे आज सभी “आरक्षण” के नाम से जानते हैं । आज “आरक्षण” भारत में चुनाव का प्रमुख मुद्दा
हैं और कोई भी पार्टी इसे खोना नहीं चाहती हैं ।
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