Thursday, 30 June 2016

आरक्षण पर गाँधी कैसे झुके इस पर एक दृष्टि ----
पूना पैक्ट” – भारत में आरक्षणके नाम पर अत्याचारका आरम्भ ॥
॥ जब गांधीजीने हिंदुत्व के पक्ष में अनशन किया ॥
आरक्षणके नाम पर हमारे देश में जो अत्याचारपूर्णप्रथा चलाई जा रही हैं ; इसका आरम्भ स्वतन्त्रता के बहुत पहले ही हो गया था । सनातन धर्म में फूट डालने हेतु अंग्रेजों द्वारा रचित सुनियोजित षड्यंत्र का नाम हैं आरक्षण। आइये देखते भारतमें इसका आरम्भ कैसे हुआ ?
दूसरी गोलमेज बैठक (7 सितम्बर, 1931 से 9 दिसम्बर, 1931) में डॉ आंबेडकरने भारतवर्ष में दलितों की दुर्दशा की बात करते हुए दलितों के लिए पृथक निर्वाचनकी मांग रखी । 12 नवम्बर, 1931 को गांधीजीने इस मांग का विरोध करते हुए कहा की इससे हिन्दू समाजविभाजित हो जाएगा । सर्वसम्मति से निर्णय नहीं होने पर , निर्णय ब्रिटिश प्रधानमन्त्री पर छोड़ दिया गया ।
17 अगस्त, 1932 को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रैमज़ै मक्डोनल्ड” (Sir Ramsay McDolald) ने डॉ आंबेडकरकी मांगे मानते हुए कम्युनल अवार्ड”(Communal Award) घोषित किया । जब गांधीजीको इसकी सूचना मिली तो उन्होंने 20 सितम्बर, 1932 को पूना की यरवदा जेल में इसके विरुद्ध आमरण अनशन की घोषणा कर दी । गांधीजीऔर डॉ आंबेडकरदोनों झुकने को तैयार नहीं थे । अगर ऐसा कम्युनल अवार्डलागू हो जाता तो सनातन धर्मके लिए बहुत बड़ा संकट उपस्थित हो जाता ।
23 सितम्बर को गांधीजीका स्वास्थ्य गिरने लगा । देश के बड़े-बड़े नेताओं की बैठके होने लगी । हिन्दू समाज की ओर से मदनमोहन मालवीय” , “चक्रवर्ती राजगोपालाचारी” , “तेजबहादुर सप्रू” , “एम आर जयकर” , “अमृतलाल ठक्कर” , “घनश्यामदास बिडलाआदि और दलित पक्ष की ओर से डॉ आंबेडकर” , “श्रीनिवासन” , “एम सी राजाआदि । अंतत: 24 सितम्बर, 1932 को सबने एकमत से निर्णित समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए जो पूना पैक्टके नाम से जाना जाता हैं ।
इस समझौते (पूना पैक्ट”) के अंतर्गत डॉ आंबेडकरको पृथक निर्वाचन की मांग को वापस लेना था और गांधीजीको दलितों को केन्द्रीय और राज्यों की विधानसभाओं एवं स्थानीय संस्थाओं में दलितों की जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व देने एवं सरकारी नौकरियों में भी प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था कराने का वादा करना था । साथ-ही-साथ शैक्षिक संस्थाओं” (Schools , Collages , Universities) में दलितों को विशेष सुविधाएँ देने की बात भी इसमें सम्मिलित थी । 24 सितम्बर, 1932 को गांधीजी” , “डॉ आंबेडकरएवं उनके समर्थकों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए ।
गांधीजीने विवशता में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे क्योंकी अन्य कोई मार्ग उपलब्ध नहीं था ।
और 24 सितम्बर, 1932 से भारत में अन्याय की एक नई परम्परा का आरम्भ हुआ जिसे आज सभी आरक्षणके नाम से जानते हैं । आज आरक्षणभारत में चुनाव का प्रमुख मुद्दा हैं और कोई भी पार्टी इसे खोना नहीं चाहती हैं ।


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