भाग- 4
परशुराम जी का ब्राह्मण - क्षत्रिय समाज के नाम खुला ख़त
ब्राह्मण क्षत्रिय एकता का राम - परशुराम फार्मूला
द्रोणाचार्य - द्रौपदी ब्राह्मण क्षत्रिय एकता के मानक
शमीक फार्मूला
जनमेजय का नाग - यज्ञ
वशिष्ठ , द्रोणाचार्य , पराशर , शंतनु , द्रौपदी तथा शमीक ने ब्राह्मण - क्षत्रिय एकता के मानक निर्धारित किया हैं | वशिष्ठ के 100 पुत्रों को विश्वामित्र ने मार डाला किन्तु वशिष्ठ ने द्वेषभाव को तिलांजलि देकर विश्वामित्र में सुधार आने के बाद उन्हें ब्रह्मऋषि घोषित किया | यही द्रोणाचार्य की कहानी है | द्रोणाचार्य द्रुपद कि ठकुरैती में बुरी तरह अपमानित हुए | द्रोणाचार्य द्रुपद के गुरु के बेटे थे | आर्थिक आपातकाल में जब बेटा दूध के लिए रोने लगा , तो ब्राह्मण से बाभन बन चुके द्रोणाचार्य ने ' द्रुपद ' को ' मित्र ' कहकर संबोधित किया तथा गाय की याचना की किन्तु ठकुरैती के दुराग्रह में मदमस्त द्रुपद ने न केवल गाय देने से मना किया बल्कि ' मित्र ' कहने को ' अपमान ' माना तथा उस ' बाभन ' को ' भिखारी ' कहकर संबोधित किया तथा अपमानपूर्वक उन्हें नौकरों के जरिये भगा दिया | सुदामा ने कृष्ण से कुछ नहीं माँगा - कृष्ण ने परीक्षा के लिए कुछ दिया भी नहीं | टी.ए , डी.ए भी नहीं दिया | हाथ झुलाते हुए आये थे सुदामा हाथ झुलाते हुए चले गए | घर पहुँचने पर बीवी-बच्चों , पड़ोसियों तथा अपने और बगलगीरों के मकानों तक की ओवरहालिंग दिखी | अपमानित द्रोणाचार्य ने जब अर्जुन से गुरुदक्षिणा में माँगा कि जैसे कुत्ते के गले में पट्टा डालकर घसीटा जाता है , वैसे ही द्रुपद को घसीटते हुए लाओ , तथा अर्जुन ने गुरुदक्षिणा में यही प्रतिकर दिया , तो द्रोणाचार्य ने ' बभनई ' छोड़कर तुरंत ब्राह्मणत्व के कुछ अंश को जागृत किया तथा द्रुपद को कैद में नहीं रखा तथा आजाद कर दिया और राज्य का कुछ हिस्सा अधिग्रहित कर शेष राज्य उन्हें यह कहते हुए वापस कर दिया कि ' अब तो मै मित्र कहने लायक हो गया ' | इतनी कटुता के बावजूद महाभारत के समर में दुर्योधन को द्रोण ने स्पष्ट बता दिया कि मै युद्ध में अपने पाँचों शिष्यों को गिरफ्तार करने की कोशिश तो करूँगा , सेना का वध करूँगा , किन्तु पाँचों पांडवों में से किसी का वध नहीं करूँगा क्योंकि वे मेरे शिष्य रहे हैं तथा शिष्य पुत्रतुल्य होता है | इसका ज्वलंत उदाहरण तब देखने को मिला जब अश्वत्थामा नामक हाथी को मार करके भीम ने चीख - चीख कर घोषणा की कि मैंने अश्वत्थामा का वध कर दिया है | पुत्रमोह से ग्रस्त होने के बावजूद भी द्रोण ने घोषणा किया कि ' भीम ! तुम्हारी जगह दुनिया का कोई व्यक्ति ऐसी घोषणा करके जीवित नहीं रह सकता था किन्तु भीम तुम मेरे शिष्य हो मै तुम्हारा वध नहीं कर सकता , भले ही तुमने मेरे पुत्र का वध कर दिया हो | शिष्य पुत्र के समान होता है | वैसे तुम्हारे जैसे व्यक्तित्व की बात पर मुझे पूर्ण विश्वास नहीं है | यदि युधिष्ठिर यह बात कह दे तो विश्वास कर सकता हूँ | युधिष्ठिर ने किस प्रकार ' अश्वत्थामा मृतो नरो वा कुंजरो ' कहकर द्रोणाचार्य को विश्वास दिला दिया तथा वे समाधिस्थ हो गए और समाधि में किस प्रकार उनका गला काट लिया - यह कहानी सर्वविदित है , लेकिन इन त्रासदी भरे क्षणों में भी द्रोणाचार्य ने भीम की हत्या का कोई सफल या असफल प्रयास नहीं किया |
द्रौपदी ज्वलंत ठकुराइन थी - क्रोध का साक्षात स्वरुप अग्निकन्या थी \ किन्तु जब उसके पाँचों पुत्रों का एक साथ वध अश्वत्थामा ने कर दिया तथा वह गिरफ्तार कर द्रौपदी जैसी ठकुरानी तत्काल क्षत्राणी बन गई तथा पाँच पुत्रों की हत्या के दर्द को बर्दाश्त कर उसने इन उद्गारों को अभिव्यक्ति दी - ' जिस तरह मै अपने पुत्रों कि मृत्यु पर रो रही हूँ , मै नहीं चाहती कि गुरुपत्नी भी उसी प्रकार रुदन करें |' द्रोणाचार्य तथा द्रौपदी इसके मानक हैं कि कैसे बाभन को बभनई छोड़कर ब्राह्मण बनता है तथा क्षत्रिय को ठकुरैती छोड़कर क्षत्रिय के रूप में अपने को ढालना है | एक दूसरे की गलतियों को भुलाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है |
यही निर्देश शमीक मुनि तथा परीक्षित का है | सत्ता के नशे में ठकुरैती के नशे में क्षत्रियमर्यादा को भूलकर महाराज परीक्षित ने ब्राह्मण की मर्यादा का उल्लंघन कर शमीक मुनि के गले में मरा सांप पहना दिया | बेटे भृंगी कि बभनई जग गई तथा उसने शाप दिया कि अपनी सुरक्षा के जितने भी उपाय कर लो , तक्षक नाग तुम्हे डस लेगा | यह एक तरह से राजसत्ता के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध का एलान था | जब पिता को ज्ञात हुआ , तो उन्होंने बेटे को डाटा तथा कहा कि यदि क्षत्रिय पथभ्रष्ट हो जाए , अपमानित भी करे तो भी अभिशप्त मत करो - आगे पीछे पुनः प्रणाम करेगा किन्तु यदि वह सत्ताच्युत हो गया , तो बागी शक्तियां उतना भी सम्मान नहीं देगी | महराज परीक्षित भी जब ठण्डे दिल से सोचे तो उन्होंने पश्चाताप किया तथा शाप को अंगीकृत करते ब्राह्मणों पर हमलावर न होकर के श्रीमदभागवत सुनी तथा ब्राह्मणों की पूजा की तथा दक्षिणा दी | यही यही ब्राह्मण - क्षत्रिय एकता का मानक है |
कारण स्पष्ट है | ब्राह्मण तथा क्षत्रिय के पास एक होने का कोई विकल्प नहीं है क्योंकि हजारों साल से इन्होने सत्ता के नशे का सेवन किया है | दस - बीस साल तक शराब या स्मैक का सेवन कर लेने वाले जल्दी नाशा नहीं छोड़ पाते है | ब्राह्मण तथा क्षत्रिय ने सृष्टि के आदि से एक दूसरे को सत्ता का नशा पिलाया | क्षत्रिय को ' बाबू साहब ' तथा ब्राह्मण को ' बाबा जी ' के नाम से समाज संबोधित करता है | मगर क्षत्रिय को याद रखना होगा कि वह ' बाबू साहब ' तभी तक रहेगा जब तक ब्राह्मण ' बाबा जी ' है | इसी प्रकार ब्राह्मण को ध्यान में रखना होगा कि ' बाबाजी ' बने रहने के लिए क्षत्रिय को ' बाबू साहब ' बनाए रखना होगा | जर्मनी तथा इंग्लैण्ड जब टकराते हैं तो विश्व से साम्राज्यवाद समाप्त हो जाता है | इलाहाबाद में जब दो शक्तिकेंद्र टकराए तो एक को सपा के दरबार में तथा दूसरे को बसपा के दरबार में शरणागत होना पड़ा | उसी प्रकार गोरखपुर में दो महाशक्तियों का परिणाम समाज के सामने इस रूप में आया कि दोनों टीमें मायावती के दरबार में शरणागत मुद्रा में दिखाई दी | यदि ब्राह्मण बभनई से तथा क्षत्रिय ठकुरैती से बाज नहीं आया तथा ब्राह्मण - क्षत्रिय संबंध सौहाद्रपूर्ण नहीं हो पाये तो वही होगा जो हो रहा है | कलराज ' बाभन बछिया ' की तरह दुम दबाये बैठे हैं - कहीं एक बयान तक नहीं आ रहा - टी.वी या अखबार में चेहरा दिखना दुर्लभ है - वहीँ वह राजनाथ सिंह , जिनका नाम लेकर लोग ईमानदारी की कसमें खाते थे , जिनके नाम पर आज तक एक झूठा कलंक तक नहीं लगा , उन्हें रुआंसा होकर बुझे हुए चेहरे से टी.वी पर सफाई देनी पड़ती है कि उन्होंने या उनके परिवार ने घूस नहीं लिया | गृहमंत्रालय तक के अधिकारियों की सूचना उन्हें समाचारपत्रों से मिलती है - यह मेरा आरोप नहीं है , स्वयं उनके मुखकमल से ये पीड़ा भरे वचन निकल चुके हैं | हरियाणा में क्षत्रियों के बारे में एक टिप्पणी कर देने पर जनरल वी.के.सिंह पर राजनाथ सिंह समेत समस्त पार्टी चढ़ लेती है तथा अनुपम खेर जैसे जनाधारविहीन तक एक ओर तो भाजपा सरकार से पद्मपुरस्कार लेते हैं तथा दूसरी ओर अपनी राजनीतिक तथा सामाजिक औकात को भूलकर साध्वी , सुब्रमन्यम स्वामी तथा योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध प्रभावी कार्यवाही की मांग करते हैं , जिंसमे गिरफ्तारी तक शामिल है | इसी ब्राह्मण - क्षत्रिय एकता के तंतु टूटने से यह स्थिति पैदा हो गई है कि अपने को दुर्गाभाक्त कहने वाली स्मृति ईरानी यह नहीं सुनिश्चित कर पाती कि मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में अपने को महिषासुर का वंशज घोषित कर जो लोग माँ दुर्गा को गन्दी - गन्दी गालियाँ देते हैं ( जिन्हें लिखने में निगाहें शर्मा जाती हैं तथा लेखनी कांपने लगती है ) उनके विरुद्ध उतनी ही तगड़ी कार्यवाही हो, जितनी तगड़ी कार्यवाही कमलेश तिवारी के विरुद्ध की गई थी | जो लोग Common Civil Code की बात करते हैं , वे मुझे दया तथा उपहास के पात्र लगते हैं | उसने पूछो कि Criminal Code तो Common है किन्तु कमलेश तिवारी के लिए कानून अलग है तथा माँ दुर्गा को गाली देने वाले लोगों के लिए अलग कानून एक होने के बावजूद एक ही देश के उनका कार्यान्वयन अलग है | कमलेश तिवारी की गंभीर धाराओं में गिरफ्तारी होती है तथा उन पर रासुका तक लगाईं है | वही माँ दुर्गा को गाली देने वालों के खिलाफ कड़ी कारवाही तो दूर , साधारण धाराओं में एक मामूली मुकदमा तक पंजीकृत नहीं होता है - फर्ज अदायगी के दिखावे के लिए विवेचना का ड्रामा तक नहीं होता है | इसी प्रकार मनुस्मृति जलाने पर कोई हलचल नहीं होती | राम मंदिर का नारा देने वाले राम के पूर्वज मनु के अपमान पर केस तक दर्ज नहीं कर देते हैं | अम्बेडकर साहित्य को मार्क्स के साहित्य को धर्मग्रन्थ का दर्जा दे दिया जाए , तो भी स्वीकार्य है लेकिन मनुस्मृति को जलाने दिया जाए तथा माँ दुर्गा को गाली दी जाए - यह हमें स्वीकार्य नहीं है | आज माँ दुर्गा तथा मनु का अम्बेडकर साहब तथा मार्क्स के स्तर का protocol भी शासन की निगाह में नहीं है , इस स्थिति से निपटने के लिए ' बभनई ' तथा ' ठकुरैती ' छोड़कर ब्राह्मण मर्यादा तथा क्षत्रिय मर्यादा को ध्यान में रखकर ब्राह्मण तथा क्षत्रिय को एक साझा रणनीति बनानी होगी नहीं तो न तो क्षत्रिय ' बाबू साहब ' रह पायेगा और न ही ब्राह्मण ' बाबा जी ' | दोनों को ' भाई साहब ' बन जाना पड़ेगा , यदि उदार लोग मिले तो वरना शरणागत होना पड़ेगा | ' मै सेवक समेत सुत नारी ' इन उद्गारों के साथ | क्रमशः ......
परशुराम जी का ब्राह्मण - क्षत्रिय समाज के नाम खुला ख़त
ब्राह्मण क्षत्रिय एकता का राम - परशुराम फार्मूला
द्रोणाचार्य - द्रौपदी ब्राह्मण क्षत्रिय एकता के मानक
शमीक फार्मूला
जनमेजय का नाग - यज्ञ
वशिष्ठ , द्रोणाचार्य , पराशर , शंतनु , द्रौपदी तथा शमीक ने ब्राह्मण - क्षत्रिय एकता के मानक निर्धारित किया हैं | वशिष्ठ के 100 पुत्रों को विश्वामित्र ने मार डाला किन्तु वशिष्ठ ने द्वेषभाव को तिलांजलि देकर विश्वामित्र में सुधार आने के बाद उन्हें ब्रह्मऋषि घोषित किया | यही द्रोणाचार्य की कहानी है | द्रोणाचार्य द्रुपद कि ठकुरैती में बुरी तरह अपमानित हुए | द्रोणाचार्य द्रुपद के गुरु के बेटे थे | आर्थिक आपातकाल में जब बेटा दूध के लिए रोने लगा , तो ब्राह्मण से बाभन बन चुके द्रोणाचार्य ने ' द्रुपद ' को ' मित्र ' कहकर संबोधित किया तथा गाय की याचना की किन्तु ठकुरैती के दुराग्रह में मदमस्त द्रुपद ने न केवल गाय देने से मना किया बल्कि ' मित्र ' कहने को ' अपमान ' माना तथा उस ' बाभन ' को ' भिखारी ' कहकर संबोधित किया तथा अपमानपूर्वक उन्हें नौकरों के जरिये भगा दिया | सुदामा ने कृष्ण से कुछ नहीं माँगा - कृष्ण ने परीक्षा के लिए कुछ दिया भी नहीं | टी.ए , डी.ए भी नहीं दिया | हाथ झुलाते हुए आये थे सुदामा हाथ झुलाते हुए चले गए | घर पहुँचने पर बीवी-बच्चों , पड़ोसियों तथा अपने और बगलगीरों के मकानों तक की ओवरहालिंग दिखी | अपमानित द्रोणाचार्य ने जब अर्जुन से गुरुदक्षिणा में माँगा कि जैसे कुत्ते के गले में पट्टा डालकर घसीटा जाता है , वैसे ही द्रुपद को घसीटते हुए लाओ , तथा अर्जुन ने गुरुदक्षिणा में यही प्रतिकर दिया , तो द्रोणाचार्य ने ' बभनई ' छोड़कर तुरंत ब्राह्मणत्व के कुछ अंश को जागृत किया तथा द्रुपद को कैद में नहीं रखा तथा आजाद कर दिया और राज्य का कुछ हिस्सा अधिग्रहित कर शेष राज्य उन्हें यह कहते हुए वापस कर दिया कि ' अब तो मै मित्र कहने लायक हो गया ' | इतनी कटुता के बावजूद महाभारत के समर में दुर्योधन को द्रोण ने स्पष्ट बता दिया कि मै युद्ध में अपने पाँचों शिष्यों को गिरफ्तार करने की कोशिश तो करूँगा , सेना का वध करूँगा , किन्तु पाँचों पांडवों में से किसी का वध नहीं करूँगा क्योंकि वे मेरे शिष्य रहे हैं तथा शिष्य पुत्रतुल्य होता है | इसका ज्वलंत उदाहरण तब देखने को मिला जब अश्वत्थामा नामक हाथी को मार करके भीम ने चीख - चीख कर घोषणा की कि मैंने अश्वत्थामा का वध कर दिया है | पुत्रमोह से ग्रस्त होने के बावजूद भी द्रोण ने घोषणा किया कि ' भीम ! तुम्हारी जगह दुनिया का कोई व्यक्ति ऐसी घोषणा करके जीवित नहीं रह सकता था किन्तु भीम तुम मेरे शिष्य हो मै तुम्हारा वध नहीं कर सकता , भले ही तुमने मेरे पुत्र का वध कर दिया हो | शिष्य पुत्र के समान होता है | वैसे तुम्हारे जैसे व्यक्तित्व की बात पर मुझे पूर्ण विश्वास नहीं है | यदि युधिष्ठिर यह बात कह दे तो विश्वास कर सकता हूँ | युधिष्ठिर ने किस प्रकार ' अश्वत्थामा मृतो नरो वा कुंजरो ' कहकर द्रोणाचार्य को विश्वास दिला दिया तथा वे समाधिस्थ हो गए और समाधि में किस प्रकार उनका गला काट लिया - यह कहानी सर्वविदित है , लेकिन इन त्रासदी भरे क्षणों में भी द्रोणाचार्य ने भीम की हत्या का कोई सफल या असफल प्रयास नहीं किया |
द्रौपदी ज्वलंत ठकुराइन थी - क्रोध का साक्षात स्वरुप अग्निकन्या थी \ किन्तु जब उसके पाँचों पुत्रों का एक साथ वध अश्वत्थामा ने कर दिया तथा वह गिरफ्तार कर द्रौपदी जैसी ठकुरानी तत्काल क्षत्राणी बन गई तथा पाँच पुत्रों की हत्या के दर्द को बर्दाश्त कर उसने इन उद्गारों को अभिव्यक्ति दी - ' जिस तरह मै अपने पुत्रों कि मृत्यु पर रो रही हूँ , मै नहीं चाहती कि गुरुपत्नी भी उसी प्रकार रुदन करें |' द्रोणाचार्य तथा द्रौपदी इसके मानक हैं कि कैसे बाभन को बभनई छोड़कर ब्राह्मण बनता है तथा क्षत्रिय को ठकुरैती छोड़कर क्षत्रिय के रूप में अपने को ढालना है | एक दूसरे की गलतियों को भुलाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है |
यही निर्देश शमीक मुनि तथा परीक्षित का है | सत्ता के नशे में ठकुरैती के नशे में क्षत्रियमर्यादा को भूलकर महाराज परीक्षित ने ब्राह्मण की मर्यादा का उल्लंघन कर शमीक मुनि के गले में मरा सांप पहना दिया | बेटे भृंगी कि बभनई जग गई तथा उसने शाप दिया कि अपनी सुरक्षा के जितने भी उपाय कर लो , तक्षक नाग तुम्हे डस लेगा | यह एक तरह से राजसत्ता के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध का एलान था | जब पिता को ज्ञात हुआ , तो उन्होंने बेटे को डाटा तथा कहा कि यदि क्षत्रिय पथभ्रष्ट हो जाए , अपमानित भी करे तो भी अभिशप्त मत करो - आगे पीछे पुनः प्रणाम करेगा किन्तु यदि वह सत्ताच्युत हो गया , तो बागी शक्तियां उतना भी सम्मान नहीं देगी | महराज परीक्षित भी जब ठण्डे दिल से सोचे तो उन्होंने पश्चाताप किया तथा शाप को अंगीकृत करते ब्राह्मणों पर हमलावर न होकर के श्रीमदभागवत सुनी तथा ब्राह्मणों की पूजा की तथा दक्षिणा दी | यही यही ब्राह्मण - क्षत्रिय एकता का मानक है |
कारण स्पष्ट है | ब्राह्मण तथा क्षत्रिय के पास एक होने का कोई विकल्प नहीं है क्योंकि हजारों साल से इन्होने सत्ता के नशे का सेवन किया है | दस - बीस साल तक शराब या स्मैक का सेवन कर लेने वाले जल्दी नाशा नहीं छोड़ पाते है | ब्राह्मण तथा क्षत्रिय ने सृष्टि के आदि से एक दूसरे को सत्ता का नशा पिलाया | क्षत्रिय को ' बाबू साहब ' तथा ब्राह्मण को ' बाबा जी ' के नाम से समाज संबोधित करता है | मगर क्षत्रिय को याद रखना होगा कि वह ' बाबू साहब ' तभी तक रहेगा जब तक ब्राह्मण ' बाबा जी ' है | इसी प्रकार ब्राह्मण को ध्यान में रखना होगा कि ' बाबाजी ' बने रहने के लिए क्षत्रिय को ' बाबू साहब ' बनाए रखना होगा | जर्मनी तथा इंग्लैण्ड जब टकराते हैं तो विश्व से साम्राज्यवाद समाप्त हो जाता है | इलाहाबाद में जब दो शक्तिकेंद्र टकराए तो एक को सपा के दरबार में तथा दूसरे को बसपा के दरबार में शरणागत होना पड़ा | उसी प्रकार गोरखपुर में दो महाशक्तियों का परिणाम समाज के सामने इस रूप में आया कि दोनों टीमें मायावती के दरबार में शरणागत मुद्रा में दिखाई दी | यदि ब्राह्मण बभनई से तथा क्षत्रिय ठकुरैती से बाज नहीं आया तथा ब्राह्मण - क्षत्रिय संबंध सौहाद्रपूर्ण नहीं हो पाये तो वही होगा जो हो रहा है | कलराज ' बाभन बछिया ' की तरह दुम दबाये बैठे हैं - कहीं एक बयान तक नहीं आ रहा - टी.वी या अखबार में चेहरा दिखना दुर्लभ है - वहीँ वह राजनाथ सिंह , जिनका नाम लेकर लोग ईमानदारी की कसमें खाते थे , जिनके नाम पर आज तक एक झूठा कलंक तक नहीं लगा , उन्हें रुआंसा होकर बुझे हुए चेहरे से टी.वी पर सफाई देनी पड़ती है कि उन्होंने या उनके परिवार ने घूस नहीं लिया | गृहमंत्रालय तक के अधिकारियों की सूचना उन्हें समाचारपत्रों से मिलती है - यह मेरा आरोप नहीं है , स्वयं उनके मुखकमल से ये पीड़ा भरे वचन निकल चुके हैं | हरियाणा में क्षत्रियों के बारे में एक टिप्पणी कर देने पर जनरल वी.के.सिंह पर राजनाथ सिंह समेत समस्त पार्टी चढ़ लेती है तथा अनुपम खेर जैसे जनाधारविहीन तक एक ओर तो भाजपा सरकार से पद्मपुरस्कार लेते हैं तथा दूसरी ओर अपनी राजनीतिक तथा सामाजिक औकात को भूलकर साध्वी , सुब्रमन्यम स्वामी तथा योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध प्रभावी कार्यवाही की मांग करते हैं , जिंसमे गिरफ्तारी तक शामिल है | इसी ब्राह्मण - क्षत्रिय एकता के तंतु टूटने से यह स्थिति पैदा हो गई है कि अपने को दुर्गाभाक्त कहने वाली स्मृति ईरानी यह नहीं सुनिश्चित कर पाती कि मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में अपने को महिषासुर का वंशज घोषित कर जो लोग माँ दुर्गा को गन्दी - गन्दी गालियाँ देते हैं ( जिन्हें लिखने में निगाहें शर्मा जाती हैं तथा लेखनी कांपने लगती है ) उनके विरुद्ध उतनी ही तगड़ी कार्यवाही हो, जितनी तगड़ी कार्यवाही कमलेश तिवारी के विरुद्ध की गई थी | जो लोग Common Civil Code की बात करते हैं , वे मुझे दया तथा उपहास के पात्र लगते हैं | उसने पूछो कि Criminal Code तो Common है किन्तु कमलेश तिवारी के लिए कानून अलग है तथा माँ दुर्गा को गाली देने वाले लोगों के लिए अलग कानून एक होने के बावजूद एक ही देश के उनका कार्यान्वयन अलग है | कमलेश तिवारी की गंभीर धाराओं में गिरफ्तारी होती है तथा उन पर रासुका तक लगाईं है | वही माँ दुर्गा को गाली देने वालों के खिलाफ कड़ी कारवाही तो दूर , साधारण धाराओं में एक मामूली मुकदमा तक पंजीकृत नहीं होता है - फर्ज अदायगी के दिखावे के लिए विवेचना का ड्रामा तक नहीं होता है | इसी प्रकार मनुस्मृति जलाने पर कोई हलचल नहीं होती | राम मंदिर का नारा देने वाले राम के पूर्वज मनु के अपमान पर केस तक दर्ज नहीं कर देते हैं | अम्बेडकर साहित्य को मार्क्स के साहित्य को धर्मग्रन्थ का दर्जा दे दिया जाए , तो भी स्वीकार्य है लेकिन मनुस्मृति को जलाने दिया जाए तथा माँ दुर्गा को गाली दी जाए - यह हमें स्वीकार्य नहीं है | आज माँ दुर्गा तथा मनु का अम्बेडकर साहब तथा मार्क्स के स्तर का protocol भी शासन की निगाह में नहीं है , इस स्थिति से निपटने के लिए ' बभनई ' तथा ' ठकुरैती ' छोड़कर ब्राह्मण मर्यादा तथा क्षत्रिय मर्यादा को ध्यान में रखकर ब्राह्मण तथा क्षत्रिय को एक साझा रणनीति बनानी होगी नहीं तो न तो क्षत्रिय ' बाबू साहब ' रह पायेगा और न ही ब्राह्मण ' बाबा जी ' | दोनों को ' भाई साहब ' बन जाना पड़ेगा , यदि उदार लोग मिले तो वरना शरणागत होना पड़ेगा | ' मै सेवक समेत सुत नारी ' इन उद्गारों के साथ | क्रमशः ......
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