निलंबित भाजपा नेता दयाशंकर
सिंह के नाम खुला ख़त – (भाग – 2)
4. क्या तिलक, तराजू,
कलम और तलवार के प्रतीक ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनिया तथा कायस्थ के पास मात्र चार
जूते खाने का अधिकार शेष रह गया है ? आदरणीया मायावती जी चार बार मुख्यमंत्री रह
चुकी है बहुत आदरणीय है किन्तु महात्मा गाँधी भी देश में कुछ सम्मान का स्थान रखते
है I महात्मा गाँधी का दुर्भाग्य मात्र इतना है कि जिस देश की आज़ादी
की लड़ाई उन्होंने लड़ी उस देश ने उन्हें पहले तो राष्ट्रपिता माना किन्तु अब उनकी
पहचान मात्र एक बनिए की रह गयी है जो कि तराजू उठाता है तथा जब किसी महान आदरणीय
व्यक्तित्व ने उन्हें “शैतान की औलाद” घोषित किया तो पूरे देश में एक पत्ता भी
नहीं खडका, एक मक्खी भी नहीं भिनभिनाई I भाजपा और संघ परिवार पर महात्मा गाँधी से
सम्बंधित तमाम आरोप, चाहे वे झूठे हो या सच्चे , कांग्रेस लगाती रहती है किन्तु कांग्रेस तक ने इन आरोपों
का संज्ञान नहीं लिया और किसी भी प्रकार की गिरफ़्तारी तो दूर, पुरे देश में एक भी
गाँधी भक्त ऐसा नहीं निकला जिसने किसी थाने में जाकर मुकदमे की तहरीर ही दे दी हो
I गाँधी की संतानों को किसी विधानसभा क्षेत्र या लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने पर
सफलता की कोई उम्मीद लगभग नहीं है क्योकि वे वर्तमान राजनीति के जातीय समीकरणों के
अंर्तगत फिट नहीं बैठते है I “शैतान की औलाद” कहने पर भूचाल आना तो दूर रहा एक
कम्पन भी नहीं हुआ I राज्यसरकार तथा केंद्र सरकार ने भी स्वत: संज्ञान लेकर कोई
कदम नहीं उठाया I राजघाट में जलने वाली गाँधी जी की अखंड ज्योति को एक समाज विशेष
के नवयुवको ने कैसे बुझाया, उसका वर्णन करते समय वाणी अवरुद्ध हो रही है तथा लेखनी
को शर्म आ रही है I मै पुन: दोहराना चाहता हूँ कि आपराधिक मुकदमा कभी काल बाधित (Time-barred) नहीं होता है I क्या मोदी सरकार महात्मा गाँधी
के सम्मान की रक्षा के लिए कुछ करेंगे अथवा उन्हें इतिहास के कूड़ेदान में फेक
देंगे ? लोहिया जी ने लिखा है कि गाँधी जी
की मृत्यु के बाद कांग्रेसी तीन खेमो में बंट गए – 1. सत्ताधीश कांग्रेसी जिस
श्रेणी में जवाहरलाल नेहरु और उनके चेले आते थे I
2. मठाधीश कांग्रेसी
जिस श्रेणी में विनोवा भावे तथा उनके चेले आते थे I
3. कुजात कांग्रेसी
जिनको सत्ताधीश तथा मठाधीश कांग्रेसियों ने बहिष्कृत कर रखा था जिस श्रेणी में
लोहिया जी स्वय को मानते थे I जयप्रकाश
नारायण के बारे में लोहिया जी को संदेह था कि वे मठाधीशो के अधिक नजदीक है या उन
लोगो के जो कांग्रेस से बहिष्कृत है I
इस प्रकार लोहिया जी भी अपने को गाँधीवादी
परम्परा से जोड़ते थे I प्रदेश में लोहिया जी के सपनो की सरकार चल रही है I समाज यह देखना है कि क्या “शैतान की औलाद” कहने
वालो के खिलाफ सपा सरकार कोई कार्यवाही प्रस्तावित करती है अथवा गाँधी को मात्र एक
वोट बैंक का अंश मानकर उन्हें सुरेन्द्र मोहन अग्रवाल की बराबरी में ला खड़ा करती
है I “सालिकराम की बटिया क्या छोटी क्या बड़ी ?”
समाज मोदी के सामने भी यह प्रश्न खड़ा कर
रहा है कि क्या मधु मिश्रा और दयाशंकर सिंह ही दंड के पात्र है अथवा अन्य समाज के
लोग भी जो अपनी जबान पर संयम नहीं रख पाए I यदि मोदी जी यही बात मान ले तो भी समाज
को कोई आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि यह मोदी जी की मनुवादी मानसिकता को सिद्ध करेगा जिसकी
मान्यता है कि - काव्यशास्त्रविनोदेन
कालो गच्छति धीमताम I
मूर्खानाम तु व्यसनेन निद्रया कलहेन वा II
अर्थात् विद्वानों
का समय काव्य और शास्त्र के विनोद से बीतता है तथा मूर्खो का समय व्यसन, निद्रा
तथा कलह में I यदि मोदी जी नस्लवाद में
विश्वास रखते हो तथा उनकी यह मान्यता हो कि वाणी के संयम की अपेक्षा केवल मधु
मिश्र तथा दयाशंकर सिंह से की जाती है तथा “हरामजादो” कहने वाली साध्वी से , परकटी
कहने वाले नेता से तथा गाँधी को “शैतान की औलाद” कहने वालो से इसकी अपेक्षा नहीं
की जाती तो उनका मुख से निकला यह वाक्य संविधान के विरुद्ध होगा किन्तु मधु मिश्रा
तथा दयाशंकर सिंह के परिजनों के आंसू पोछ देगा कि मोदी जी RACIAL SUPREMACY के सिधान्त
के चलते उनसे अधिक उत्कृष्ट आचरण की
अपेक्षा करते है I जब कल्याण सिंह जी अटल जी को भुलक्कड़ – पियक्कड़ तथा ना जाने किन
अन्य विशेषणों से युक्त घोषित करते थे तो उनको यही जवाब मिलता था कि कल्याण सिंह
की भाषा में अटल जी तथा उनके शिष्य जवाब नहीं दे सकते I मैथलीशरण गुप्त ने लिखा है
कि -
“इन्हें समाज नीच कहता है
पर है ये भी तो प्राणी I
इनके भी मन और भाव है
किन्तु नहीं वैसी वाणी II
मनुवादी पार्टी की
मान्यता है कि सभी मनुष्य सामान है तथा वाणी के असंयम पर सभी को सामान रूप से
दण्डित होना चाहिए I मनुवादी पार्टी किसी को नीच नहीं मानती तथा सभी से वाणी पर
समान संयम की अपेक्षा करती है I प्रश्न यह है कि मोदी सोनिया तथा अन्य सभी दल इस
विन्दु पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें कि क्या गाली देने में भी आरक्षण होगा ? क्या
पिछडो और दलितों द्वारा दी गयी गालियां क्षम्य होंगी तथा किसी ब्राह्मण, क्षत्रिय
वैश्य या कायस्थ द्वारा दी गयी गाली इस आधार पर दंडनीय होगी कि इन चारो जातियो
को हजारो साल से शिष्टाचार सिखाया गया है तथा इनके मुख से यदि कोई शब्द निकलता है
तो वह जबान का फिसलना नहीं माना जायेगा बल्कि सुविचारित वक्तव्य माना जायेगा जो
R.S.S. शैली के चिंतन और मंथन शिविरो के बाद निर्गत होता है ? क्रमशः
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