Thursday, 21 July 2016

निलंबित भाजपा नेता दयाशंकर सिंह के नाम खुला ख़त –

निलंबित भाजपा नेता दयाशंकर सिंह के नाम खुला ख़त –   सामान्यतया मेरी आदत व्यास शैली में विस्तार से लिखने की रही है किन्तु आज कुछ संक्षेप में लिखने का मन हो रहा है I इसके लिए मै अपनी कुछ पिछली पोस्टो का सन्दर्भ दे रहा हूँ जिनको पढ़े बगैर मेरी इस पोस्ट का मर्म पाठक को समझ में नहीं आएगा I  पहली पोस्ट है मधु मिश्र के नाम खुला ख़त और दूसरी पोस्ट है भगवान परशराम की ओर से ब्राह्मण और क्षत्रियो को खुला सन्देश I
    भगवान  परशुराम के सन्देश में बड़ा विस्तृत वर्णन किया गया है कि 1. ब्राह्मण और बाभन में क्या अंतर है I
2. तथा इसी क्रम में क्षत्रिय और ठाकुर में क्या अंतर है I
उस पोस्ट को एक बार दुबारा पढने के बाद यदि आप वर्तमान पोस्ट को पढेंगे तो इसकी आत्मा का सही बोध आपको हो सकेगा I लोहा और इस्पात मूलतः  एक ही है लेकिन विभिन्न प्रक्रियाओ से गुजरते हुए जब लोहे को इस्पात बना दिया जाता है तो  उसमे जंग नहीं लगती I ऋषियों के चरणों में बैठ कर जब कोई संस्कारित होता  है तब वह बाभन से ब्राह्मण बन कर तथा ठाकुर से क्षत्रिय बन कर बाहर निकलता है I
      मायावती जी को मै याद दिलाना चाहूँगा कि वे कांग्रेस को मनुवाद की A टीम तथा भाजपा को मनुवाद की B टीम घोषित करती रही है I असली मनुवादी पार्टी तो अब सामने आयी है I इसके पहले नकली मनुवाद था I मनुवादी पार्टी सभी जीवधारियो को सम्मान देती है I जिस कुत्ते से तुलना करने पर मायावती जी बी.के. सिंह पर बौखला उठती है मनुवादी पार्टी तो उस कुत्ते को भी पूज्य मानती है तथा एक श्रेष्ठ देवता की सवारी के रूप में सम्मानित करती है I शीतला देवी का वाहन होने के कारण गधा भी हमारे प्रणाम का अधिकारी है I सूअर पालने वालो की तो बात ही छोड़ दीजिये हम साक्षात् सूअर को भी प्रणाम करते है क्योकि सूअर भी विश्व के दस प्रमुख अवतारों में से एक है I मछली और कछुए को भी मनुवादियों ने अपना प्रणाम अर्पित किया है क्योकि हमारे आराध्य विष्णु मछली और कछुए के रूप में भी अवतरित हो चुके है I
        भगवत गीता में स्वयं भगवान् कृष्ण ने कहा है – “ईश्वरा सर्वभूतानाम हृद्देशे अर्जुन तिष्ठति”
अर्थात – समस्त जीवधारियो के ह्रदय में ईश्वर स्थित है I जब सम्पूर्ण विश्व में प्रजा को पशुओ की तरह समझा जाता था उस युग में पुरुष सूक्त में लिखा गया कि विराट पुरुष का ब्राह्मण मुख  है, क्षत्रिय बाह है, वैश्य जांघ है, तथा पैर है I  इसप्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा  शुद्र इनको एक ही विराट पुरुष के विभिन्न अंगो के रूप में निरुपित किया गया I आपस में उत्पत्ति स्थल एक होने के कारण इन्हें भाई- भाई की मान्यता दी गयी I मार्क्स लोहिया तथा अम्बेडकर के अनुयायी मनुवादी साम्यवाद की अवधारणा से कदाचित परिचित नही है I इसके बारे में कुछ लेख आगे चल कर लिखे जायेंगे I  स्वय  महात्मा गाँधी ने समय- समय पर पुरुष सूक्त की वर्णाश्रम व्यवस्था की परिकल्पना का समर्थन किया है I गुरूजी गोलवरकर वर्णाश्रम व्यवस्था के सदैव पोषक रहे है I उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि “धर्मं की सही और वास्तविक व्याख्या वह है जो अनंत श्रीविभूषित करपात्री जी महराज करते है I मै तो उस धर्म की रखवाली मात्र के लिए R.S.S. की शाखाओ को संचालित कर रहा हूँ I ” मनुवादी नेता व कार्यकर्ता कभी किसी को अपशब्द नहीं बोलता I वह मात्र नाक दबाकर तपस्या करता है तथा जो चाहता है वह हो जाता है I इसीलिए मनुवादी पार्टी के प्रारंभिक साहित्य में ही यह स्पष्ट कर दिया था कि मनुवादियों का ना तो सशस्त्र संघर्ष में विश्वास है और ना ही सत्याग्रह में I कभी मनोरंजन के लिए किसी को ज्ञापन भले ही दे दिया जाये किन्तु हम सिद्धान्तत: इसे  निरर्थक मानते है I  कारण  है कि – जंजीर टूटती नहीं आंसू की धार से
दुख द्वन्द दूर होते नहीं है पुकार से I
   गुरूजी गोलवरकर तथा उनके उत्तराधिकारियो ने इसी भट्टी में तपाकर अटलबिहारी बाजपेई तथा कलराज मिश्र जैसो को बाभन से ब्राह्मण बनाया था तथा राजनाथ सिंह जैसे लोगो को ठाकुर से बदल कर क्षत्रिय कह दिया था I जब से मोदी जी का युग आया है तब से R.S.S. बैकफुट पर आ गया है तथा सरसंघचालक भी आरक्षण सम्बन्धी अपने बयानों की व्याख्या मोदी तथा शिवराज सिंह के बयानों के आलोक में कर रहे है I इसी का कारण है कि भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा समाजवादी पार्टी जैसा हो गया है I
      यह कहना कि दयाशंकर सिंह ने गलत कहा – इस विषय में दो मत नहीं हो सकते है I किन्तु निम्नलिखित यक्ष प्रश्नों का उत्तर समाज मोदी साहब से मागेगा और उन्हें देना ही होगा – 1. क्या भारतीय संविधान में समानता का अधिकार है अथवा नहीं ?  क्या वाही काम कोई सवर्ण करे तो दंडनीय हो और वही काम किसी अन्य जाति का व्यक्ति करे तो कोई कार्यवाही ना हो – क्या यह संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप है ? यदि पूर्व में ऐसे मामलो में कार्यवाही हुई होती तो शायद दयाशंकर सिंह की हिम्मत ऐसा बयांन  देने की ना पड़ती I   कमलेश तिवारी ने जो बयांन  दिया तथा उनपर जो कार्यवाही हुई उसका कोई भी व्यक्ति समर्थन नहीं कर सकता I किन्तु जब माँ दुर्गा को उसी टक्कर की गलिया दी गयी बल्कि उससे भी बढ़कर दी गयी जैसी मायावती जी के लिए दी गयी थी तो उस समय नारी सम्मान की बात करने वाले दिग्गज राज नेता कहा थे ? भारतीय  कानून में देवी देवताओ को जीवित पुरुष का दर्जा दिया गया है तथा उनको भी मान सम्मान से युक्त जीवन का मौलिक अधिकार प्राप्त है I आपराधिक मामला कभी समय बाधित (Time-barred) नहीं होता I क्या मा दुर्गा मात्र इसलिए गाली खाए कि उनको गाली देने वाले एक ऐसे विशिष्ट वर्ग से आते है जोकि एक वोट बैंक बन चुका है तथा सभी उस वोट बैंक के तुष्टीकरण में लगे है I अपने को स्वत: घोषित दुर्गा भक्त बताने वाली स्मृति ईरानी को अभी तो आंशिक झटका लगा है I भगवाकरण के लिए कुख्याति की हद तक जाकर विवादास्पद बन चुकी स्मृति ईरानी को कोई मानव संसाधन मंत्रालय में कोई रोक नहीं सका I  देश की जनता दयाशंकर सिंह से पूछना चाहती है मायावती पर दहाड़ कर अपनी मर्दानगी दिखाने वाले वीर योद्धा की जुबान तब क्यों मुखरित नहीं हो पाई ?  समाज मायावती से इस प्रश्न  का जवाब चाहेगा कि यदि उन्हें कभी दिल्ली में प्रधानमंत्री या ग्रहमंत्री बनने का मौका मिला तो क्या वे ऐसे निर्णायक कदम उठाने का प्रयास करेंगी जिनको उठाने का साहस 56 इंच का सीना रखने वाले मोदी जी तथा उनके दाहिने हाथ राजनाथसिंह नहीं कर सके ? समाज नेता जी मुलायम सिंह जी से भी यह प्रश्न पूछ रहा है कि कमलेश तिवारी पर जिस स्तर की कार्यवाही हुई क्या उसी स्तर की कार्यवाही माँ दुर्गा को गाली देने वालो पर भी संभव हो सकेगी ? समाज इस प्रश्न का उत्तर सोनिया गाँधी से भी पूछ रहा है कि क्या महिलाओ की इज्जत का मूल्याकन उनकी जाति देखकर होगी ?
2. क्या यह देश राष्ट्र और समाज के लिए कलंक की बात नहीं है कि अपने सम्मान की रक्षा के लिए मायावती को स्वय मोर्चा संभलना पड़ा ? क्या भाजपा को स्वत: संज्ञान लेकर कार्यवाही नहीं करनी चाहिए थी ? इसी मज़बूरी के चलते मायावती को सारी  दुनिया चाहे “दौलत की बेटी” कहकर संबोधित करे किन्तु दलित उन्हें तब तक दलित की बेटी मानता रहेगा जब तक समाज के अन्य लोग केवल घडियाली आंसू बहायेंगे तथा कोई आगे बढकर कार्यवाही नहीं करेगा I
3. क्या मोदी जी यह बताएँगे कि एक राष्ट्रीय  स्तर की पत्रिका ने एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री तथा केन्द्रीय मंत्री को “सेक्सी संयासन” घोषित किया था तथा “मैंने प्यार किया” शीर्षक से एक लम्बा लेख उनके विरुद्ध छापा था I क्या पिछड़े वर्ग में पैदा महिला जो सन्यास ले चुकी है तथा जो साधना के बल पर काम वासना को जीतने के मार्ग पर अग्रसर है क्या उसके चरित्र हनन  पर कोई कार्यवाही नहीं होनी चाहिए ? राम का मंदिर बनवाने में संवैधानिक तथा विधिक अड़चने हो सकती है किन्तु राम मंदिर के संघर्ष का प्रतीक बन चुकी महिला के चरित्र की रक्षा के लिए साक्षात्  राम और कृष्ण को अवतरित होना पड़ेगा ?  राम मंदिर आन्दोलन से जुड़ा कोई कार्यकर्ता या नेता इसे कैसे भुला पा रहा है –
तेरी कृष्णा के केशो को दुशाशन दुष्ट ने केशव

भरी महफ़िल में खीचा है इसे तुम भूल मत जाना ...क्रमश:

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