Saturday, 13 August 2016

गऊ माता की चीत्कार ...कहा खो गया गोधरा का हीरो मोदी, खोजो उसको... (भाग 2 )

गऊ माता की चीत्कार ...कहा खो गया गोधरा का हीरो मोदी,  खोजो उसको...
जनवाणी ... FIR लिखा दो संघ कार्यालय   तथा विश्व हिन्दू परिषद के कार्यालय में I
प्रतिध्वनि ...  ये थाने अब टूट चुके है I
परम पूजनीय गुरूजी गोलवरकर के शब्दों में ...अब कैसे नमकीन करू ? नमक का ही स्वाद चला गया I
कौन कहता है गौरक्षको को कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है ?
    मोदी जी कहते है कि 80% गौरक्षक कानून हाथ में ले रहे है तथा वे आपराधिक गतिविधियों में लिप्त है I ये बयान निहायत ही गैर-जिम्मेदाराना है I मोदी जी अपने अटॉर्नी जनरल से पूछ ले कि कानून एक आम नागरिक से क्या अपेक्षा रखता है I यह बात किसी से छिपी नहीं है कि गायो  की तस्करी अफीम की तस्करी नहीं है कि उसे पकड़ने के लिए मुखबिरों के किसी तंत्र की आवश्यकता हो I जब गायो की गाड़िया गुजरती है तो आधे किलोमीटर दूर से मालूम हों जाता है कि गायो की तस्करी हो रही है I लगभग हर जिले से होकर ये गाड़िया गुजरती है तथा बिना स्थानीय पुलिस को विश्वास में लिए गायो की तस्करी नहीं हो सकती I जब श्री मोतीलाल वोरा  UP के गवर्नर थे तो उनके कार्यकाल में उनके निर्देशन में तत्समय DGP डॉ.गिरीश बिहारी के हस्ताक्षर से कुछ निर्देश निर्गत हुए थे जिन्हें यदि लागू करा दिया जाए तो किसी भी राज्य में गायो की तस्करी को जड़ से रोका जा सकता है I इनमे निर्देश थे कि -
1.   यदि किसी वरिष्ठ अधिकारी के निर्देशन में डाले गए छापे में कोई गायो की ट्रक पकड़ी जाती है तो उस इलाके के थानाध्यक्ष तथा क्षेत्राधिकारी पर अपराधियों को सहयोग देने तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का मुकदमा पंजीकृत करा कर गहराई से विवेचना कराई जाए I
2.   जिन-जिन रास्तो से वह ट्रक गुजरी है उन रास्तो के थानाध्यक्षो तथा   क्षेत्राधिकारियो की भी सहअभियुक्त बनाने के लिए गहराई से साक्ष्य संकलन किया जाए I
3.   उपरोक्त दोनों निर्देशों में साक्ष्य न प्राप्त होने की स्थिति में कम से कम सम्बंधित क्षेत्राधिकारियो तथा थानाध्यक्षो के सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र को अवरूध्द कर दिया जाए क्योकि गाय की तस्करी सार्वजानिक रूप से होती है तथा यह DEEMED है कि बिना पुलिस की मौन सहमति  के यह संभव नहीं हो सकता I  

        इन आदेशो का पालन किसी भी राज्य में नहीं हुआ I मोती लाल वोरा जी के हटने के बाद UP में भी यह आदेश ठन्डे बस्ते में डाल दिये गए I किसी भाजपा शासित राज्य तक ने गौरक्षा के नाम पर केवल लीपा पोती की जा रही है  I मै भाजपा शासित राज्य के किसी मुख्यमंत्री को चुनौती देता हूँ कि बिना किसी मुखबिरी के सैकड़ो गायो को काटने के लिए जाते हुए जिस दिन भाजपा का हाई कमान या आरएसएस का हाई कमान कह दे उस दिन पकड़ कर दिखा सकता हूँ I सारा प्रेस सारी  जनता सबको पता है कि भूमाफिया, खनन माफिया तथा पशुतस्कर माफिया पुलिस के संरक्षण में ही आपरेट करते है I शिकायतों को कौन सुनेगा ? सामान्य आदमी के विरुद्ध की गयी  शिकायतो तक को कोई सुनने वाला नहीं है I ऐसी हालत में कानून स्वयं इस बात की इजाजत देता है कि कोई भी नागरिक कानून को हाथ में ले सकता है I यहाँ मै दोहराना चाहूँगा की कानून हाथ में लिया जा सकता है किन्तु कानून की लक्ष्मण-रेखा का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है I भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया के अनुसार यदि किसी भी नागरिक के संज्ञान में कोई अपराध हो रहा है उसे रोकने के लिए उसको निकटतम पुलिस स्टेशन को सूचित करना चाहिए किन्तु पुलिस सहायता न मिल पाने की स्थिति में वह कानून को हाथ में लेते हुए अपने सहयोगियों की सहायता से अपराध को घटित होने से रोक सकता है I कल्पना कीजिये कि कोई आदमी चौराहे पर गाय काटने जा रहा है तो दर्शको के फ़ोन करने पर यदि थाने का फोन नहीं उठता है अथवा फोन उठने पर भी कोई कार्यवाही नहीं होती है तो दर्शको को यह कर्तव्य नहीं है कि पुलिस के आने तक गाय को कटने दे तथा मूक दर्शक बने रहे I दर्शको का अधिकार है कि जो गाय को काट रहा है उसको ऐसा करने से रोके तथा नजदीक के पुलिस स्टेशन के हवाले कर दे I यदि गाय पर हमला करने वाला रोकने वालो पर हमला करता है तो हमलावर जिस अनुपात में बल का प्रयोग करता है, आत्मरक्षा में उसी अनुपात में बल का प्रयोग किया जा सकता है I हा यह अवश्य है कि  किसी को पकड़ लेने के बाद किसी की पिटाई करना या उसकी हत्या करना अपराध है I किन्तु जब यह देखा जा रहा है कि  गायो के  तमाम तस्कर पुलिस अधिकारियो तक पर गाड़ी चड़ा दे रहे है तथा कई स्थानों पर फायरिंग भी कर रहे है तो जान का खतरा उत्पन्न होने पर किसी गौभक्त को आत्मरक्षा के लिए भारतीय दंड विधान की धारा 96 से लेकर 106 के अंर्तगत कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में किसी की जान तक लेने का भी अधिकार है I कानून बना ही इस लिए है कि उसे कोई भी नागरिक अपने हाथ में ले सकता है I हाँ कानून का अतिक्रमण करने का – कानून की लक्ष्मण रेखा को लांघने का अधिकार किसी को नहीं है I किसी अपराधी को कस्टडी में लेने के बाद मार-पीट करने, अमानवीय व्यवहार करने अथवा हत्या कर देने का अधिकार पुलिस के पास भी नहीं है I मोदी को अपील यह करनी चाहिए थी कि कोई भी गौरक्षक कसी भी स्थिति में कानून को तो अपने हाथ में ले किन्तु कानून की  लक्ष्मण रेखा का उलंघन न करे तथा कानून के दायरे में रहते हुए अपने गौरक्षा के संकल्प को पूरा करे I ऐसा न कर के 80% गौरक्षको अपराधी घोषित कर देना शुद्ध मानसिक दिवालियापन  है I क्रमशः 

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