Tuesday, 31 October 2017

मनुवादी पार्टी की शिक्षा व् रोजगार के charecter of students नीति | छात्रों का माँग पात्र



1 - single facelity universities को बढ़ावा दिया जाय जैसे medical universities, technical universities, agricultural universities etc | इसी तरह कला, संकाय, आदि के अलग विश्वविद्यालय खोले जाएँ तथा अपनी field में EMINENCE को वरीयता दी जाये |
2 – job guarantee को शिक्षा व्यवस्था में ensure किया जाए | अर्थात विश्वविद्यालयों में उतने ही लोग admissions पायें जितनों के job में adjust किये जाने की क्षमता हमारे system में develop हो चुकी है | आज लाखों लोग पढ़ कर बेरोजगार हैं | B.TECH , PHD की DEGREE वाले चपरासी के पद के लिए फ़ार्म भर रहें हैं | यह शिक्षा व्यवस्था का कोढ़ है | यह देश की श्रमशक्ति के साथ बर्बादी का षड्यंत्र है | इतना लम्बा समय शिक्षा प्राप्त करने में बर्बाद करने का क्या औचित्य है, जब उनके लायक पद नहीं है अथवा उनमे उसके लिए योग्यता न पैदा की जा सके |
3 – शिक्षा रोजगारपरक हो अर्थात ‘अर्थकरी च विद्या’ | जो विद्या अर्थकारी न हो उसे पृथक कर दी जाए तथा मात्र ACADEMIC INTEREST को PURSUE करने वाले उसे पढ़े जैसे ALREADY job में लगे लोग जो अपनी योग्यता बढ़ाना चाहते हों अथवा HOUSEWIVES जो WORKING LADIES नहीं बनना चाहती है तथा सिर्फ ACADEMIC PURSUIT के लिए पढ़ रही हैं अथवा ऐसे बच्चे जिनके GUARDIANS को यह चेतावनी निर्गत हो कि उनके बच्चे  को नौकरी नहीं मिलेगी तथा वह केवल ACADEMIC INTEREST के लिए पढ़ रहा है |
4 – प्रतियोगितात्मक परीक्षा के लिए AGE को DRASTICALLY LOWER DOWN कर दिया जाय तथा उन्हें आवश्यकतानुसार GRADUATION LEVEL COURSE प्रशिक्षण काल में पढाया जाय | जैसे NDA आदि में SELECTION होता है INTERMEDIATE के बाद वैसे ही सरकारी अस्पतालों, सरकारी नौकरियों में जितने DOCTORS AND ENGINEERS की जरुरत है, उतने लोग सरकारी INSTITUTIONS में भर्ती के लिए छांट लिए जांयें तथा उनके लिए सरकारी ENGINEERING AND MEDICAL universities में पढाई, पुस्तकों आदि की उचित व्यवस्था कराई जाए तथा यदि वे सरकारी नौकरी न करना चाहें तो या तो वे पढ़ाई का खर्च अपने पास से जमा करें अन्यथा उनकी DEGREE जब्त कर ली जाएँ तथा उस योग्यता के बूते पर PRIVATE PRACTICE अथवा PRIVATE job के लिए ENTITLED न रहें | इसी तरह चपरासी और CLERK से लेकर IAS/etc तक की भर्ती INTERMEDIATE के बाद कर ली जाए तथा FURTHER EDUCATION उनको TRAINING PERIOD  में दी जाए जैसे ARMY OFFFICERS को NDA के बाद दी जाती है NURSERY, PRIMARY से लेकर universities के TEACHERS की भर्ती कर ली जाए तथा उनके अलग – अलग TRG/INSTITUTIONS/UNIVERSITY में उनकी पढाई पूर्ण हो | university education उस विषय की उतने लोगों की दी जाये जितनो के job की जिस विषय की requirement है |
5 – Pub sector में जितने लोगों की आवश्यकता हो, उतने के लिए वह sector अपन INSTITUTE खोल ले अथवा SUITABLE CANDIDATES का अपने स्तर से चयन करें तथा उनके पढाई के खर्च का वहन करें |
6 – इस प्रक्रिया से आधी उमर तक पढने तथा उसके बाद बेरोजगारी का कुण्ठित जीवन जीने की घुटन से देश की जवानी को मुक्ति मिलेगी|
7 – छोटी नौकरियों के लिए HIGH SCHOOL तथा बड़ी नौकरियों में INTERMEDIATE के बाद SELECTION कर लिया जाय तथा job पाने के लिए आखिरी AGE LIMIT 18 साल कर दिया जाय | शेष लोगों के लिए क्या स्वरोजगार हो सकते हैं, इस पर सरकार POLICY बनावे, WHITE PAPER लाये तथा वे भी अपना दिमाग लगावें | 40 साल तक सरकारी नौकरी पाने की लालच में लाखों लडकें दिल्ली के मुखर्जीनगर से लेकर हर छोटे – बड़े शहर तथा यहाँ तक कि कस्बों में भी कोचिंग सेंटरों के शिकार हो रहे हैं तथा माँ – बाप की गाढ़ी कमाई का लाखों रुपया कोचिंग में, जगह – जगह फ़ार्म भरने में, परीक्षा देने में, टिकने - खाने में तथा किराए में बर्बाद करते है | उनकी पूँजी भी खर्च हो जाती है तथा अपना कारोबार चालू करने के लिए भी कुछ नहीं बचता है | माँ बाप खेत, मकान, जेवर बेंचकर या गिरवी रखकर दलालों के हाथ अपना सर्वस्व लुटा रहे हैं |
8 – हमारा कार्यक्रम ही आधुनिक वर्णाक्रम व्यवस्था है जिसमें किसी प्रकार की बेरोजगारी के लिए कोई SCOPE नहीं है |
9 – हाईस्कूल तक UNIVERSAL EDUCATION हो तथा FREE हो | बच्चो को भोजन, वस्त्र तथा किताबें सरकारी खर्चे पर PROVIDE की जाएँ |
10 – सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने के लिए आवश्यक है कि सरकारी कर्मचारी, अधिकारी तथा किसी भी पार्टी के नेता के लिए यह आवश्यक कर दिया जाए कि उसके बच्चे किसी सरकारी स्कूल में पढ़े | कानून बनने के बाद यदि किसी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी का बच्चा किसी गैर – सरकारी स्कूल में पढता पाया जाता है तो मात्र इसी आधार पर उसे तत्काल सेवामुक्त कर दिया जाए | इसी प्रकार यदि किसी प्राइवेट स्कूल में किसी नेता का बच्चा पढता पाया जाय तो उसे आजीवन प्रधान से लेकर एम. पी. तक किसी भी प्रकार का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य मान लिया जाय | चुनाव में पर्चा भरते ही उससे इस आशय का AFFIDAVIT  लिया जाए कि क़ानून बनने के बाद उसके बच्चे किसी गैर सरकारी  SCHOOL में नहीं पढ़े है तथा किसी भी STAGE में AFFIDAVIT के असत्य पाए जाने पर उसकी सदस्यता तथा भविष्य के लिए प्रत्याशी बनने की अर्हता तात्कालिक प्रभाव से समाप्त समझी जाए तथा बच्चों की DEGREE भी निरस्त कर दी जाए | इतने ही कड़े प्रावधान सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए किये जाएँ | मात्र इस एक संशोधन से बिना किसी extra – BUDGET, या SUPERVISION के सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में स्वतः सुधार आ जाएगा |
11 – TEACHING STAFF से कोई भी गैर TEACHING DUTY न ली जाय जैसे PULSE POLIO, आधार कार्ड, जनगणना, पशुगणना आदि | अपरिहार्य परिस्थिति में आम चुनाव वगैरह में 2 – 4 दिन की DUTY भले लग जाए और वह भी अन्य विकल्प न होने पर परन्तु शिक्षकों को हर विभाग की STAPNEY WHEEL न बनाया जाय |
12 – शिक्षक संस्थानों में RESERVETION सर्वथा समाप्त कर दिया जाय – चाहे वह ADMISSION के स्तर पर हो या TEACHERS या STAFF के RECRUITMENT के स्तर पर | सर्वाधिक योग्य विद्यार्थी तथा सर्वाधिक योग्य शिक्षक ही देश के भविष्य की रीढ़ की हड्डी हैं | जब संवेदनशील अवस्था में बच्चों से जाति प्रमाणपत्र मांगें जाते हैं तथा जाति पूँछी जाती है, तो देश में जातिवाद कैसे समाप्त होगा |
13 – नारी – शिक्षा को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाय तथा महिलाओं के विद्यालय जाते या लौटते समय छेड़खानी की घटनाओं को गंभीरता से नियंत्रित किया जाय |

14 – शिक्षा पूर्णतया स्टेट द्वारा FUNDED हो तथा निःशुल्क हो | 

Sunday, 8 October 2017

पावस में बादल प्यासा |


कल्पना बताओ तुमने,
यह काम - कला कब सीखी |
जिसके आगे लगती है,
वसुधा की सब निधि फीकी || 24 ||

मेरे आंगन में आओ,
मेरी बाँहों में लिपटो |
तुम मेरी हो, मेरी हो,
मेरी बाँहों में सिमटो || 25 ||
सिमटो, बिखरो, फैलो तुम,
प्रज्ञा के वातायन में  |
जैसे सुधियां बसती है,
प्रेयसि के अरुण नयन में || 26 ||

कवि तुम क्या सोच रहे हो,
कल्पना तुम्हारे द्वारे |
आएगी बढ़कर आगे,
अनुरागी हाथ पसारे || 27 ||

तुमको ही आगे बढ़कर,
अगवानी करना होना |
अंतस के मृदु भावों को,
कवि – वाणी करना होना || 28 ||

कल्पना अल्पना दोनों,
जीवन की दो बाहें हैं |
जीवन की दो साधें है,
जीवन की दो राहें हैं || 29 ||
क्रमशः ......


आरक्षण का समापन कैसे ?
अध्याय – 4
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विचारधारा के संघर्ष तथा जातिगत संघर्ष की बार बार चर्चा होती है किन्तु हकीकत है कि जातिगत संघर्ष आदमी का अपनी जाति से होता है | इसी प्रकार अंतिम संघर्ष अपनी विचारधारा से है | अडवाणी सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा कर भाजपा को रंगमंच में लाये तो पहले चरण में समन्वय के नाम पर तथा सर्वस्वीकार्यता की आड़ में पूर्ण बहुमत न होने से अटल जी गद्दीनशीन हो गए | दुबारा अडवाणी जी जब दूल्हा बनने को तैयार हुए, तो मोदी जी ने लत्ती मार दी | इतना पीछे पड़े कि पिंजड़े के तोते ने ऐसी चोट मारी कि राष्ट्रपति का पद भी ठिठक कर दूर जा गिरा तथा कोर्ट में चार्जशीट बोनस में | अगर सजा हो गयी तो रामलला को भी लगेगा कि जिन्ना का जयकारा करने का दण्ड मिला | मुलायम को मायावती या मोदी झटका नहीं दे पाए – अपने ही बेटे ने बुढ़ापे में उन्हें अपनी औकात बता दी | चचा शिवपाल का कद भतीजे ने नापा, किसी गैर ने नहीं | संजय के न रहने के बाद इंदिरा को चुनौती बहू मेनका से मिली तथा सास ने ही मेनका को घर से निकाला | सोनिया को उनके ही द्वारा नामित नरसिंहराव ने किनारे कर दिया तथा सीताराम केसरी को भगाने का काम सोनिया के चेलों ने किया, किसी भाजपाई ने नहीं | काशीराम को सद्गति तथा अघोषित वनवास देने का सच्चा या झूठा आरोप मायावती पर ही लगा | जातिगत आधार पर देखें तो हरिशंकर तिवारी को राजेश तिवारी ने हराया तथा इसका बदला राजेश तिवारी से हरिशंकर के बेटे ने लिया | कुशल तिवारी को शरद त्रिपाठी से हार मिली | रमाकांत यादव और मुलायम आपस में भिड़े तो शेर की तरह दहाड़ते हुए ब्रजभूषण सिंह का माथा दुसरे सिंह पंडित सिंह ने ही सहलाया | मैंने कभी गाय के पीछे भैंस को या भैंसा के पीछे सांड को भागते नहीं देखा | खेत, मकान, दूकान का बटवारा अपने पट्टीदार से होगा | दहेज़, तलाक, दहेज़हत्या का मुकदमा अपने रिश्तेदार से लड़ना है | प्रधान, बी.डी.सी., जिला पंचायत सदस्य, ब्लाक प्रमुख, अध्यक्ष जिला पंचायत का चुनाव अपने समाज के लोगो से होना है |
 आरक्षण होना चाहिए या नहीं होना चाहिए - इस पर एकता की आवश्यकता थी इसीलिए इस मुद्दे पर उस युग में दलितों या पिछड़ों में एकता बनी किन्तु जैसे ही दलितों को आरक्षण मिल गया, डा. अम्बेडकर साहब केवल श्रद्धा के पात्र रह गए | दलित ने पैर छुए डा. अम्बेडकर या मरणोपरांत उनके चित्र के किन्तु जगजीवनराम जैसे के माध्यम से कांग्रेस का वोटबैंक बन गया | यही हाल पिछड़ों का है | जब तक मण्डल कमीशन विवादास्पद था, सारे पिछड़े एक थे | लेकिन जैसे ही मण्डल कमीशन लागू हो गया, पिछड़ों की एकता हवा हो गयी | यादव मुख्यमंत्री बनते ही कुर्मी, लोध, गूजर, जाट आदि जातियों के जितने कद्दावर नेता थे, यादवों से उनका 36 का आंकड़ा हो गया | रामविलास पासवान, उदितराज आदि आदि दलित महापुरुष पहले से माया के बागी थे | दीनानाथभास्कर, रामसमुझपासी, जुगल किशोर, इन्द्रजीत सरोज कहाँ रह गए ? यदि जाटव ( गौतम ) को नौकरी मिलेगी तो किसी पासी, खटिक, धोबी की घटेगी |
यदि किसी यादव को नौकरी मिलती है, तो जाटव का नाम काटकर उसका नाम नहीं जोड़ा जा सकता – उसके लिए किसी कुर्मी, लोहार, बढई, लोध, गूजर, जाट का नाम काटना पड़ेगा – इतना ही नहीं यदि सैफई, इटावा, कन्नौज, मैनपुरी, एटा, फीरोजाबाद के यादव थोक के भाव में नौकरी पाएंगे तो अन्य जिलों में यादवों की स्थिति दीन  सुदामा की हो जाएगी |  इसी प्रकार यदि मायावती के राज्य में जाटव चमकेंगें, तो किसी यादव के सितारे गर्दिश में नहीं होंगे बल्कि पासी, बाल्मीकि, धोबी आदि को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा | इतना ही नहीं, यदि मेरठ मण्डल तथा हरयाणा, पंजाब के जाटव ( गौतम ) चमकेंगें तो यू. पी. के गौतम प्रभाहीन हो जायेंगें |
जिन जातियों का वोट बैंक बन चूका था, उनमे तो दरारे पड रहीं है |  फिर ऐसे परिवेश में सवर्णों का वोट बैंक हवा हवाई कल्पना है – चाहे यह थोक सवर्ण वोट बैंक हो या फुटकर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या कायस्थ या भूमिहार वोट बैंक |

इसीलिए सवर्ण एकता, पिछड़ी एकता या दलित एकता विचारधारा के आधार पर संभव ही नहीं है | यदि यह संभव नहीं है, तो मनुवादी पार्टी इस वोट बैंक का निर्माण कैसे करेगी ? इसका उत्तर अगले अध्याय में .............

Friday, 6 October 2017

संविधानेतर सत्ता ( extra constitutional authority ) क्या है ? संविधानेतर सत्ता का निर्माण कैसे होता है ?



सविधानेतर सत्ता से तात्पर्य है
“बिना किसी उत्तरदायित्व के अधिकारों का उपभोग “| बिना पद ग्रहण किये अधिकारों का उपभोग | इसके दृष्टान्त हैं –
1 – प्राचीन काल में ब्राह्मणों द्वारा राजसत्ता पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण –
          देखने में ब्राह्मण राजसत्ता से दूर वन में कुटी में निवास करता था किन्तु राजा आश्रम में प्रवेश से पूर्व अपना मुकुट तथा अपने जूते उतार देता था तथा ॠषि के सामने साष्टांग दण्डवत प्रणाम ( पेट के बल जमीन पर ऐसा लेट जाना कि शरीर आठ जगह जमीन को स्पर्श करे | ( मुग़ल दरबार के फर्शी सलाम से भी कठिन था | एक ही स्वर था – ‘मैं सेवक समेत सुत नारी’|
  ‘मैं तुम्हारा अनुचर मुनिराया ||’
2 – चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य
3 – गाँधी और कांग्रेस पार्टी | पूर्ण बहुमत से सुभाष चन्द्र बोस के जीतने पर भी जब गांधी ने यह कह दिया कि “ पट्टामि सीता मैय्या की हार मेरी हार है”| तो सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस की अध्यक्षता से त्यागपत्र देना पड़ा |
4 – R.S.S. तथा जनसंघ / भाजपा /
5 – यहूदी लाबी तथा अमरीका आदि |
R.S.S. तथा गाँधी किसी एक दल की EXTRA – Constitutional Authority बन पाए | मनुवादी पार्टी हर दल की संविधानेतर सत्ता बनना चाहती है | चाहे कोई सत्ताधारी बने, हमारा चरणसेवक रहे |
रास्ता क्या है ? स्थानान्तरणीय वोट ( Transferable vote bank ) प्रजातंत्र का Atom Bomb है | सुनामी चुनाव में कभी कभी आती है | उत्तर प्रदेश में जबसे मैंने होश संभाला, इतनी बड़ी सुनामी देखी है, जिससे किसी पार्टी के अज्ञात चेहरे ( Unknown Faces ) भी जीत कर आ गए -
1 – जब देश आजाद हुआ
2 – जब इंदिरा जी ने बांग्लादेश विजय किया
3 – जब आपात काल के बाद जनता पार्टी सत्ता में आई
4 – जब इंदिरा जी की हत्या हुई
5 – जब मोदी प्रधानमंत्री तथा
6 – जब योगी मुख्यमंत्री बने |
निन्मलिखित अवसरों पर हवा बही जिसे सुनामी तो छोडिये, आंधी या तूफान कहना भी शायद गलत होगा |
1 – जब आपातकाल के बाद जनता पार्टी के असफल प्रदर्शन के बाद इंदिरा जी सत्ता में आई |
2 – जब बोफोर्स के मुद्दे पर वी.पी. सिंह ने जनता को विश्वास में लिया |
3 – जब बाबरी मस्जिद / विवादित ढांचा गिरा |
4 – जब मायावती तथा
5 – अखिलेश यादव की पूर्ण बहुमत की सरकार आई |
सुनामी के 6 मौकों पर Transferable Vote bank जब तक बहुत व्यापक स्तर पर न होता, तब तक कोई खासा प्रभाव न होता तथा परिणाम भी लगभग निरर्थक होता लेकिन व्यापक बहुमत पाने वाला प्रत्याशी अंतिम क्षण तक प्रायः संशय में रहता है कि जीतेगा या हारेगा | वह तनाव में रहता है | जिसकी जीत सुनिश्चित होती है तथा सुनामी के बाद सर्वथा सुनिश्चित होती है, तथा जिसे कोई भी संशय नहीं होता उसके सामने जीत सुनिश्चित होने के बावजूद भी एक अजीब लाग – डॉट ( competition )  होता है जैसे – अपनी सीट पर मोदी ज्यादा वोट से जीते या General v.k.singh या योगी आदित्यनाथ | सुनामी के बावजूद भी लक्ष्मीकांत बाजपेयी जैसे महापुरुष विधायिकी हार जाते हैं तथा 2 दर्जन विधायक marginal votes से जीतते है | सांसद के चुनाव में भी बस्ती तथा गाजीपुर जैसी सीटों में Transferable Vote bank हल्का सा भी होता तो कहर बरपा कर दिए होता तथा भाजपा के पूर्ण बहुमत को रोकने में सफल होता |
इसी को अमेरिकी साहित्य में Pressure Group के नाम से राजनीतिज्ञ जानते है | Pressure Group जितना प्रभावी होता है, उतना बड़ा से बड़ा दल नहीं हो सकता | यह अलग बात है कि अधिकांश दल भी Pressure Group की तरह काम कर रहे हैं तथा अपनी औकात से कुछ बढ़कर ही सत्ता में भागीदारी पाकर संतुष्ट हो जाते हैं | उन्हें संविधानेतर सत्ता के स्वाद का ज्ञान ही नहीं है | मनुवाद इसके मर्म को अच्छी तरह समझते हैं, जिसके माहात्म्य का ज्ञान न होने से बाकी दल सत्ता में भागीदारी की ललक रखते हैं |
संविधानेतर सत्ता चलाने वाले कभी धरना प्रदर्शन नहीं करते | उनका आदेश चलता है | शक्ति अर्जित करने के लिए तपस्या पूरी नहीं होती है, तब तक उसके शरीर पर दीमक लग जाए उसे परवाह नहीं | तपस्या पूरी होने पर सुकन्या के हाथों च्यवनप्रकाश खाकर ठीक हो जायेगा | पूरी की पूरी राजकीय सेना का मलमूत्र अवरुद्ध करने की शक्ति आ जाएगी | जब ॠषि की झाडी साफ़ नहीं हुई तथा ॠषिपुत्र को सांप ने काट लिया, तो कोई ॠषि शाम्बूक से लड़ने झगड़ने तथा उससे बेगार कराने नहीं गया | कोई गाली गलौज नहीं | कोई बहस नहीं | केवल एक लाइन की घोषणा – राम का राज्य धर्मराज्य नहीं रहा | पिता के रहते पुत्र की मृत्यु हो जाए – ऐसा धर्मराज्य में कैसे हो सकता है ? वर्णाश्रम व्यवस्था खतरे में -  ब्राह्मण की मर्यादा खतरे में | ( जैसे समाजवादी पार्टी / कांग्रेस के राज्य में हर क्षण इस्लाम खतरे में रहता है | ) राम, जो केवट को गले लगाते थे, जो शबरी के जूठे बेर खाते थे, जो एक धोबी तक के तुष्टीकरण के लिए माँ सीता को वाल्मीकि आश्रम भेज दिए थे – उन्हें भी गोद्विजहितकारी तथा मर्यादापुरुषोत्तम बने रहने के लिए उस समय लागू संविधान के प्रावधानों के अनुरूप शम्बूक समस्या का निस्तारण करना पड़ा | सत्ता को विचलित करने का नशा बड़ा विलक्षण होता है | प्रजातंत्र में यह केवल transferable vote bank कर सकता है | यह कैसे बनाया जाए ?

विचारधारा इसका मूल है | मगर इसके आधार पर transferable vote bank  नहीं बन सकता | यहीं अम्बेडकर साहब fail हो गए तथा मायावती ने बाजी मार ली | अम्बेडकर साहब खुद दलितों का वोट गांधी के मुकाबले प. मदन मोहन मालवीय या अनन्तश्री करपात्री जी महाराज या परम पूजनीय गोलवलकर जी को नहीं दिला सकते थे | किन्तु मायावती जी स्टेट गेस्ट हाउस काण्ड के मुल्जिमो को भी  vote transfer कर सकती हैं | [ transferable vote bank क्यों अम्बेडकर नहीं बना पाए तथा क्यों मायावती बना लें गई ? उत्तर है ] अगले अध्याय में ..........

पावस में बादल प्यासा

उपकरण नहीं हैं कोई,
अनुराग नहीं ऐसा है |
जो कभी नहीं स्वीकारे,
कोई कब तुम जैसा है || 12 ||

तुम पर न्यौछावर होता,
वसुधा का सारा वैभव |
न्यौछावर हो सकता है,
मुग्धा परियों का शैशव || 13 ||

कल्पने,प्राप्ति – पथ स्वामिनि,
बस सहज तुम्हारी इच्छा |
कुछ भी न जगत में जिसकी,
तुम करती कभी प्रतीक्षा || 14 ||

यति स्वयं तुम्हारी गति है,
रति स्वयं तुम्हारी चेरी |
सोचने और पाने में,
लगती न एक क्षण देरी || 15 ||

मेरी आशा को केवल,
तुम ही स्वर दे पाती हो |
वातायन स्वागत करता,
जिस द्वारे तुम आती हो || 16 ||

है बिना तुम्हारे रीता,
यह भरा – भरा सा दिन है |
तुम पास नहीं यदि मेरे,
तो लगता प्रात मलिन है || 17 ||


क्रमशः ....

Thursday, 28 September 2017

पावस में बादल प्यासा


जब दो प्यासे आते हैं,
लेकर दो मधु – घट प्यासे |
तो केवल भरते हैं वे,
अर्पण से या कविता से || 6 ||

मैंने तुमको देखा था,
कल पतझर की बाहों में |
तुम आज आ गयी कैसे,
इन बासन्ती चाहों में || 7 ||

नभ – पथ की चिर संगिनि तुम,
प्रतिबन्ध न तुमने माना |
तुम तो अलक्ष्य छविशीला,
पहचाना जिसने जाना || 8 ||

स्वीकार न तुमको बंधन,
स्वीकार न तुमको छाया |
आवरण न तुमने डाला,
उन्मुक्त तुम्हारी माया || 9 ||

कोई भी शक्ति नहीं है,
अवरुद्ध तुम्हें कर पाए |
दिन में भी तुमको दिखते,
निशि के सपने मनभाये || 10 ||

आमोद तुम्हारा स्वर है,
उल्लास तुम्हारी भाषा |
तुम जहाँ कहीं रहती हो,
रहता न एक भी प्यासा || 11 ||


क्रमशः .........

Monday, 18 September 2017

नहीं आज का यह जीवन है, जनम जनम का खेल |



इधर समर्थन सुमन, उधर कुछ शूलों की बौछार |
बिदा समय में मिल पायेगा क्या रीता – उपहार ||

प्रोत्साहित करते है मुझको ये अनुजी संकल्प,
आशाएं अनुजा – सी कहतीं खोज न और विकल्प,
आस्था की जननी ने मुझको दिया सात्विकी नेह,
अग्रज बन कर धैर्य कह रहा बढ़ तू निस्संदेह,
एक अग्रजा कल्पलता – सी देती है आशीष,
जनक विवेक आत्मचिन्तन में बैठे हैं नत शीश,

करता स्वयं अनिश्चय ही है निश्चय का श्रृंगार |
बिदा समय में मिल पायेगा क्या रीता – उपहार ||

कितने दिन से सतत चल रहा मन का अंतर्द्वंद्व,
कैसे हम स्वच्छंद हमारी गति न अगर स्वच्छंद,
सौ अनुकूल निरर्थक हैं क्या, एक अगर प्रतिकूल,
कैसे उपवन को बेचेगा एक अपंगी शूल,
रोक न पाता है प्रकाश को कभी तिमिर का तीर,
प्रतिद्वंद्वी ईर्ष्या ने लांघी कब जय की प्राचीर,

नहीं एक बदली ने रोका है क्षितिजी विस्तार |
बिदा समय में मिल पायेगा क्या रीता – उपहार ||

मन का नियम प्रणति आगत की, राही से व्यामोह,
जितना मीठा मिलन, सनेही उतना प्रात – बिछोह,
जाने वाले के आने की रहती ही है आश,
शायद फिर आकंठ तृप्ति से भर जाए भुजपाश,
कहीं सत्य छिपकर रहता हैं, अलस कल्पना लोक,
जिसके अधरों पर कंपन हैं, अन्तर में आलोक,

पूछ रहे है अधर – द्वार पर नत आकुल उद्गार |
बिदा समय में मिल पायेगा क्या रीता – उपहार ||

नहीं आज का यह जीवन है, जनम जनम का खेल,
बनी आकुला आत्मा दूरी, पर निसर्ग है मेल,
संबोधन कोई भी समझो यहाँ मात्र दो नाम,
एक तुम्हारी प्रीति पुनीता, एक तुम्हारा धाम,
चंचल मन को उद्वेगों की नाव ले गयी पार,
मैं निहारता रहा प्रियतम खड़ी हुई मंझधार,

तृष्णा नीर, विसर्जन नौका, नाविक पारावार |

बिदा समय में मिल पायेगा क्या रीता – उपहार ||

Saturday, 16 September 2017

असली बाबा बनाम नकली / ढोंगी बाबा


आजकल इलेक्ट्रानिक / प्रिंट / सोशल मीडिया पर एक होड़ सी मची है नकली / ढोंगी / फर्जी / स्वयंभू बाबाओं के खिलाफ अभियान की जैसे सारी बुराइयों की जड़ ये नंबर 2 के बाबा ही हों तथा नंबर 1 वाले बाबाओं को बुराई स्पर्श भी न किये हो | इसी तरह एक अजब सी बहस छिड़ी है ब्राह्मण बाबा बनाम गैर – ब्राह्मण बाबाओं की | यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जिस क्षेत्र में पैदा हुआ – गोरखपुर जोन में, वहां हर ब्राह्मण को बाबा कहा जाता हो, चाहे वह गृहस्थ हो या सन्यासी – वह पदेन बाबा है – तथा अन्य जातियों के लोग जो गेरुआ धारण कर सन्यासी / विरक्त करने की घोषणा कर लेते हैं या मंदिर में दाढ़ी बगैरह बढाकर काफी समय बिताते हैं – उन्हें भी बाबा कहा जाता है | जैसे कोई क्षत्रिय, चाहे कितना भी गरीब हो, उसे बाबू साहब (father) कहा जाता है, वैसे ही शिष्टाचार में पूरी ब्राह्मण जाति को बाबा (grandfather) कहा जता है | इसी तरह बनिये को सेठ (श्रेष्ठ = great man ) कहा जाता है, चाहे वह निर्धन ही क्यों न हो | इसे हम वर्णाश्रम व्यवस्था का ध्वंसावशेष कह सकते हैं | इसी तरह पंक्ति पावन ब्राह्मणों में बच्चों तक को ‘बाबा’ से सम्बोधित किया जाता है – ‘पंतिहा बाबा’|
2 – ‘जाती न पूछौ साधु की’ हमारी चिर मान्यता रही है | किन्तु राम रहीम बाबा, बाबा आशाराम बापू, बाबा रामवृक्ष आदि के करतबें को देखकर बाबाओं की जाति को भी लेकर ताने मारे जा रहें हैं | इसी क्रम में जब बाबा रामदेव ने राहुल के दलितों के घर भोज के बारे में पवित्र विचार व्यक्त किये थे (ISI certificate की तरह न केवल मोदी तथा अमित शाह बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की फैक्ट्री द्वारा पूर्ण मान्यता प्राप्त बाबा ठहरे – सच्चे बाबा सद्गुणों के प्रतीक )कि राहुल दलितों के यहाँ भोजन करने नहीं जाते बल्कि हनीमून मनाने जाते हैं, तो संतों ने इस पर प्राइवेट चर्चा में मुस्कराकर गोस्वामी तुलसीदास को उद्धृत किया था कि ‘सियाराम मय सब जग जानी’ अर्थात जैसे तुलसीदास को सारे संसार में सीता और राम के दर्शन होते थे, उसी प्रकार बाबा रामदेव को हजारों की भीड़ में दलित कन्या की मौजूदगी में राहुल के किये गए भोजन में भी हनीमून की बू आ रही है अर्थात वे पूर्ण ‘हनीमूनमय’ हो गये हैं | इसके विपरीत मायावती अपनी विशिष्ट शैली में इतने पवित्र उद्गार – सच्चे बाबा के संत वचन की टिप्पणी में बोली कि “ बाबा रामदेव यादव हैं यादव – शुद्ध अहीर | उनसे इससे अच्छी टिप्पणी की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए |” मायावती स्वाभाव से लाचार होकर हर टापिक को मनुवाद अथवा जाति विशेष के ढांचे में ही ढालकर अपनी टिप्पणी पेश करती हैं | राहुल गांधी ढोंग करते हैं, दलितों के शुभचिंतक नहीं है, उनकी गरीबी का मजाक उड़ाते हैं – आदि आदि बातें उनके विरोधी आलोचना में कहते तो शोभा देती किन्तु राहुल के दुश्मन भी स्वीकार करेंगे कि कांग्रेस के कितने भी पतन का काल क्यों न हो जहाँ कभी राहुल जाते है, सुरक्षा कर्मियों तथा पदाधिकारियों की संख्या ही हजारों में है, जो छाया की तरह उनके साथ चलते हैं, जब तक कि वे बिना प्रोग्राम दिए गुपचुप अवकाश मनाने के अभियान में देश विदेश में न हो | अवकाश के समय वे क्या करते हैं – मैंने कभी झाँकने की कोशिश नहीं की और न ही इस विषय पर कोई टिप्पणी करना चाहता हूँ किन्तु कोई भी समझदार (SENSIBLE) व्यक्ति मायावती के जातिगत बयान से भले सहमत न हो, किन्तु इतना तो मानना पड़ेगा की राहुल वहां हनीमून नहीं मना रहें होंगे फिर भी सनातनी हिन्दुओं ने बाबा की निंदा नहीं की बल्कि सादर प्रणाम किया क्योंकि वे सनातन संस्कृति की मर्यादा के अनुरूप राहुल की MORAL POLICING कर रहें हैं – बच्चे को सिखा रहें हैं – कोई दुर्भावना नहीं हैं क्योंकि वे कभी सोनिया के बारे में प्रलाप नहीं किये – वह अक्षम्य स्थिति होती |
बाबा रामदेव यादव होने के बाद भी पूज्य इसीलिए हैं कि वे राहुल की MORAL POLICING करते हुए भी कभी सोनिया या प्रियंका पर कोई भी आरोप लगाने की हिमाकत नहीं किये | भारतीय संस्कृति का आदर्श है – “न स्वैरी स्वैरिणी कुतः”
( यदि पुरुष अवारा न हो, तो औरत अवारा कैसे होगी |) शास्त्रों के अनुसार नारियां मासिक धर्म स्वीकार नहीं कर रहीं थी | ब्रह्मा जी के बहुत समझाने पर उन्होंने मासिक धर्म तब स्वीकार किया, जब ब्रह्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि रजोस्राव के बाद उनके सारे पाप धुल जायेंगे | अतः वही नारी व्यभिचार के लिए दण्डित की जा सकती है, जो रजोनिवृत्ति (MENOPAUSE) के बाद व्यभिचार करे | विवाह पूर्व यदि वह कोई पुत्र पैदा कर चुकी हो, तो वह भावी पति का कानीन पुत्र माना जायेगा तथा विवाहोपरांत किसी अन्य के वीर्य से यदि वह संतानोत्पत्ति करती है तो पति की सहमति की दशा में वह नियोगज पुत्र होगा तथा पति की अज्ञानता में अनुमति न होने पर क्षेत्रज पुत्र कह - लायेगा | पाण्डवों से रुष्ट होने के बाद भी कर्ण को पूर्ण विश्वास था कि यदि पाण्डवों को असलियत पता चल जाये, तो युधिष्ठिर अपना मुकुट कर्ण के सिर पर रखकर बड़े भाई की मान्यता देंगे तथा शेष पाण्डव उनका आदेश मानेंगे और वह ( कर्ण ) ॠण उतारने के लिए अपना मुकुट दुर्योधन के सिर पर रख देगा |
देवराज इंद्र के प्रसंग किसको नहीं पता है | उनमे भी सबसे विकट रहा है – अहल्या का – गुरुपत्नी जैसी घोर अगम्या के साथ सहवास मेरे कहने का मतलब यह नहीं कि इन दृष्टान्तों के आधार पर ये असली बाबा – दण्ड के पात्र नहीं हैं |
बड़े से बड़े बाबाओं की तपस्या भंग समझी जाती है ( जैसे विश्वामित्र की मेनका प्रसंग के बाद ) तथा यह एक प्रकार से उनकी सम्पूर्ण संपत्ति की जब्ती तथा बर्खास्तगी का आदेश था | इंद्र को अहल्या प्रसंग में शरीर में सौ भग (vaginal hole) धारण करना पडा, जो हरदम कामवासना से युक्त होकर उन सभी जगहों पर तीव्र यौन – खुजली पैदा करते थे तथा इंद्र को अथाह कष्ट भोगना पड़ता था | बड़े अनुनय विनय के बाद वे शत भग के स्थान आँखों का रूप लेकर मात्र एक चिन्ह का रूप ले लिए जैसे किसी के देह में सौ जगह tattooing ( गोदना ) गोदवा दिया जाये कि यह व्यभिचारी है – क्या यह मामूली दण्ड है ? बार-बार चारित्रिक पतन की प्रवृत्ति इसीलिए पनपी कि गांधी द्वारा ब्रह्मचर्य की परीक्षा की अवधारणा को सामाजिक स्वीकार्यता मिल गयी तथा इन्ही गांधीवादी लोगों ने निजता के अधिकार की अवधारणा को जन्म दिया | समाज में निजता का अधिकार तथा मानहानि (Defamation ) का कानून समाप्त होना चाहिए – तभी moral policing हो पायेगी | समाज में किस बात की निजता ? गुफा में बैठिये – सार्वजानिक जीवन में निजता कैसी ? एक धोबी को आराध्य माँ सीता के खिलाफ मानहानि का दण्ड नहीं सहना पडा | गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है –
“निज निज मुखन कहीं निज होनी
वाल्मीकि, नारद, घट जोनी |
स्वयं अपने मुख से सारी कमजोरियां कहने की परम्परा हमारी रहीं है – कोई निजता नहीं | किसलिए सुरक्षा आवरण चाहिए ? जैसे सत्यनिष्ठा अवरुद्धकरने के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं है - परिस्थितियां पर्याप्त हैं, उसी प्रकर चरित्रहींन घोषित करने के लिए प्रमाण अपेक्षित नहीं था | मानक था कि ‘ बिना आग के धुँआ नहीं उठता’ ( यत्र यत्र धूमस्तत्र तत्र वह्नि: | )
एक अपराधी एक हत्या कर देता है किन्तु गोडसे जब 98 पेज का कोर्ट में बयान देता है कि “गांधीवध” क्यों’ तो वह एक विचार धारा को जन्म देता है तथा मोदी के लाख लगाम लगाने के बावजूद कोई बाबा साक्षी महाराज उसके मुरीद हो सकते हैं तथा भरी संसद में उसके स्तोत्र गा सकते हैं | मृत्यु के क्षण तक गोडसे को कोई पश्चात्ताप नहीं हुआ तथा वह अपने स्टैंड पर कायम रहा कि मेरे ( गोडसे के) तथा गांधी के बारे में भारत का भावी इतिहासकार यह फैसला करेगा कि गांधी देश की हत्या किये या मैंने गांधी की | यदि गांधी ने देश की हत्या की, तो मैंने गांधी की हत्या नहीं की, वरन रावण-वध तथा कंस-वध की तरह उनका वध किया |” मैं राहुल या दिग्विजय सिंह की तरह बिना साक्ष्य के यह बयान नहीं निर्गत कर सकता कि गोडसे संघ से प्रेरित था किन्तु संघ भी इस बात को नकार नहीं सकता कि गोडसे अंगुलिमाल नहीं था, बल्कि अपनी समझ में पुण्यमित्र शुंग था | बुद्ध अंगुलिमाल का हृदय – परिवर्तन कर ले गए, किन्तु यदि वे पुष्यमित्र शुंग के सामने पड़े होते तो वे पुष्यमित्र का हृदयपरिवर्तन वैसे ही न कर पाते जैसे गांधी गोडसे का न कर पाये | पुष्यमित्र शुंग गौतम बुद्ध के आभामंडल से आक्रान्त न होता क्योंकि वह महर्षि पतंजलि के प्रति प्रतिबद्ध (indoctrinated) था | भले ही गोडसे एक घंटे भी R.S.S. की शाखा में न गया हो, किन्तु जब ‘पाञ्चजन्य’ का शंख उसके कानों में गूंजता था –
बहुत दिन जग कालनेमि को
यती तपस्वी कह न सकेगा |
बहुत दिनों मारीच निशाचर
कंचन का मृग रह न सकेगा ||
कितना बड़ा पाप का गढ़ हो,
यह समझो कि ढह न सकेगा |”
तो कवि का भाव कुछ भी रहा हो, वह अनुप्राणित स्थिति में कालनेमि = गांधी तथा मारीच = नेहरु समझता था तथा जब वह ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ गाता था, तो उसका सेना 56’’ से भी आगे बढ़कर 65’’ हो जाता था | गोडसे R.S.S. का अर्जुन भले न रहा हो, पर एकलव्य तो था ही | ISIS से ओवैसी का कोई लेना देना नहीं है – वे सार्वजानिक रूप से कई बार उसकी निंदा कर चुके हैं – किन्तु यदि ISIS भारत पर हमला करके हैदराबाद को कब्ज़ा कर ले, तो ओवैसी साहब की मीटिंग अटेंड करने वाले तमाम कार्यकर्ता उसका जयकारा लगा रहे होंगे | कोई रिश्ता न होते हुए भी जितना रिश्ता ओवैसी का ISIS से है, उससे कम रिश्ता R.S.S. का गोडसे से नहीं हैं | यदि गोडसे के नाम पर कोई पार्टी बने तथा उसकी सरकार कांग्रेस के मुकाबले 30 सीट कम होने से न बन पा रही हो, तो यदि भाजपा के पास कुल 60 सीट हों तो मोदी जैसे गांधी तथा बुद्ध के शिष्यों को नकारकर 45 सांसद बाबा साक्षी जी महाराज के नेतृत्व में दलबदल कर गोडसे की पार्टी में शामिल हो जायेंगे – R.S.S. अगर खिलाफत करने की हिमाकत उस स्थिति में करेगा तो अगले दिन से R.S.S. की शाखा में जाकर भगवाध्वज को सलामी देने देने के लिए आडवाणी जैसे मात्र दस – पांच कार्यकर्ता बचेंगें | अंग्रेजों को हराकर मात्र आसाम को सुभाष चन्द्र बोस अपने कब्जे में कर पाए होते, तो आसाम के ५०% से अधिक कांग्रेसी आजाद हिन्द फ़ौज की वर्दी में होते तथा शेष भारत से भी लोग आसाम में आजाद हिन्द फ़ौज में भर्ती के लिए भाग रहे होते | अगर चंदशेखर आजाद या भगतसिंह दिल्ली पर कब्ज़ा करने के कगार पर होते तो ५० % से अधिक कांग्रेसी या तो बम बना रहे होते अथवा पिस्टल में गोली भरना तथा ट्रिगर दबाना सीख रहे होते और और सत्याग्रह भूल चुके होते | यही बात बाबाओं की हैं | बाबा तो बाबा – चाहे वह असली हो या नकली – चाहे वह ब्राह्मण हो या गैर ब्राह्मण | चाहे वह किसी जीवन दर्शन का हो | आदि शंकराचार्य को कोई नकली बाबा की हिमाकत नहीं कर सकता | सौन्दर्य लहरी के आनद लहरी वाले भाग में स्थित १३ वें श्लोक को कोई पढ ले – मैं न तो उस श्लोक को उदधृत करूँगा और न ही उसका अर्थ लिखूंगा | हाथ कांप रहा है | जिस बाबा की सर्वाधिक आलोचना हो रही हो, उसकी सौ गुना भयंकर घोषणा आदिशंकराचार्य ने कर रखी है | जो सुख आशाराम या राम रहीम को न मिला हो उससे हजार गुना आनंद हर शिष्य को दिलाने की घोषणा | ‘द्वारं किमेकं नरकस्य नारी |’ क्या किसी नास्तिक या नकली बाबा का वचन है ? राधे माँ के बारे में अनर्गल प्रलाप करके जिनको संतुष्टि होती हो, तथा गाते-फिरते हों कि क्या कोई देवी ऐसा कर सकती है , वे हर दुर्गासप्तशती के ग्रन्थ से जुड़े हुए ‘मूर्तिरहस्यम’ को पढने का कष्ट करें – व्यर्थ का गाल बजाना भूल जायेंगे | मैं उन अंशो को उद्धृत करने की घृष्टता नहीं कर सकता और न ही अर्थ लिखने का | कुछ तो ऐसा दिखा होगा कि राधे माँ को सक्षम लोगों ने पद दिया – भले ही मीडिया ट्रायल के चलते जनरोष की दुर्गा के भय से वह पद राधे माँ से छीन लिया गया | गीता में भगवान् श्री कृष्ण द्वारा साधु की परिभाषा पढ़े –
अपि चेत् सुदुराचारो
भजते मामन्यभाक् |
साधुरेव स मन्तव्यः
सम्याव्यसितो हि सः ||
( यदि कोई अत्यंत दुराचार से युक्त हो किन्तु अनन्य भाव से मुझे भज रहा हो, तो उसे साधु ही माना जाना चाहिए तथा वह सम्यक् रूप से व्यवसित है | वही असली बाबा है |)
स्वयं भगवान विष्णु ने किन परिस्थितियों में तथा क्यों माँ तुलसी को पूजनीय बना दिया था, किन परिस्थितियों में भगवान विष्णु पर भृगु ने लात चलाई थी तथा बिल्वृक्ष की उत्पत्ति का स्रोत क्या है तथा किन कारणों से वह शिव को सर्वाधिक प्रिय हैं तथा किन परिस्थितियों में ब्रह्मा के मंदिर सबसे कम तथा लगभग न के बराबर हैं – इस पर अपने दीक्षागुरु से एकांत में पूछिए तो पता चलेगा अन्यथा गुमराह कर दिए जायेंगे | सत्य जानने पर आप सहमत होंगे कि नकली बाबाओं को गालीदेना उपाय नहीं है – सारे जनसाधारण को तथा समस्त असली तथा नकली बाबाओं को MORAL POLICING के दायरे में लाना ही एकमात्र विकल्प है – ब्रह्मचर्य की परीक्षा के लिए समाज में कोई स्थान नहीं है |
इसी क्रम को बाबा तुलसीदास ने आगे बढाया है –
पूजिअ विप्र सील गुण हीना |
सूद न गुण गन ग्यान प्रवीना ||
कागभुशुंङि रामचरितमानस के सम्मानित पात्र हैं – कोई प्रदूषित व्यक्तित्व नहीं – असली बाबा हैं | स्वयं गरुण ने उनसे धर्मोपदेश लिया है – क्या शिक्षा दी गई उनके द्वारा गरुण को –
भ्राता पिता पुत्र उरगारी |
पुरुष मनोहर निरखत नारी |
योगी भर्तृहरि तो नकली बाबा नहीं हैं | समस्त योगी उनका नाम सम्मान से लेते है | उन्होंने सम्पूर्ण असली बाबाओं की ओर से आत्मसमर्पण की अर्जी डाल रखी है – केवल असली बाबाओं की नजीर पर आत्मसमर्पण किया है –
‘विश्वामित्रपराशरप्रभृतयो वाताम्बुपर्णाशना
स्तेऽपि स्त्रीमुखपंकजं सुललितं दृष्ट्वैव मोहं गताः |
शाल्ययन्नं दधिमांसमोदनयुतं भुन्जन्ति ये मानवा –
स्तोषामिन्द्रियनिग्रहो यदि भवेद्विन्ध्य: प्लवेत् सागरे ||
( अर्थात हवा और पानी तथा पत्तों को खाकर जीवन यापन करने वाले विश्वामित्र और पराशर आदि आदि थे – सर्वथा असली बाबा – एक / भी मिलावट नहीं | गायत्री मंत्र का आविर्भाव करने वाले महापुरुष, तपस्या के बल से इंद्र को चुनौती देकर त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने वाले तथा वह स्वर्ग भले न पहुँच पाया हो किन्तु इंद्र भी उसे जमीन पर वापस नहीं कर पाए | पराशर जी वरिष्ठ के पौत्र तथा व्यास के पिता | किन्तु वे भी स्त्री के सुललित मुखमंडल को देख लेने मात्र से मोह को प्राप्त हो गये | जो लोग रोटी, चावल, दही, मांस, घी आदि का सेवन करें – वे बाबा , ( चाहे कितने भी असली हों – यदि इन्द्रियनिग्रह का दावा करे तो यह उतना ही सफ़ेद झूठ है, जितना यह कथन कि विंध्यांचल समुद्र पर तैर रहा है |)
फिर भी कोई संदेह तो मथुरा में कृष्णजन्मभूमि मंदिर में श्रीमद्भगवत का जो श्लोक सबसे ऊपर लिखा है, उस पर ध्यान दें –
“मात्रा स्वस्त्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् |
बलवानिन्द्रियाग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ||
( माँ, बहन तथा बेटी के भी साथ एकांत में नहीं बैठना चाहिए क्योंकि इन्द्रियाँ इतनी बलवती हैं कि परम विद्वान को भी खींच ले जाती हैं | ) आज एंटी – रोमियो स्क्वाड की आलोचना में कहते हैं कि वे निकट संबंधियों या सह कर्मियों या निजी मित्रों के साथ बैठे जोड़ो के मार्ग में भी व्यवधान उपस्थित करे रहे हैं तथा योगी जी को सफाई देनी पड़ती है क्योंकि योगी जी बाबा दिग्विजयनाथ की तरह स्वतंत्र नहीं हैं – ‘परम स्वतंत्र न सिर पर काहू |’ वे मोदी जी के राजनैतिक शिष्य हो गए हैं तथा मोदी जी गांधी जी के शिष्य हो गए है | वरना योगी जी बचाव की मुद्रा में न आते तथा ललकार बोलते कि मैं गांधी जी का चेला नहीं हूँ राम और वशिष्ठ का हूँ | ब्रह्मचर्य की परीक्षा को प्रोत्साहन गांधी ने दिया है रघुवंश ने नहीं – वशिष्ठ और व्यास ने नहीं |मनु ने नहीं | ब्रह्मचर्य की परीक्षा ही सारी गंदगी की जड है | अगर गांधी ने ब्रह्मचर्य की परीक्षा को मान्यता न दी होती, तो एक भी नकली बाबा नहीं होता | इस तरह का जीवन – यापन करने वाले लोगों को लोग गिरी निगाह से देखते तथा वे इतने मजबूत बन ही न पाते | उनका सामाजिक बहिष्कार होता | भारतीय संस्कृति में ब्रह्मचर्य की परीक्षा अनुमन्थ नहीं है | बिना लड़े ही आत्मसमर्पण कर दिया महान से महान असली बाबाओं ने | कामदेव से केवल बाबा भूतभावन ही निपट सकते हैं | और वह भी तब जब वे कामदेव का भस्मावशेष करने की शक्ति रखते हैं | शेष सभी जीवधारी, चाहे वे कितने भी पवित्र क्यों न हो, कामदेव को ताल नहीं ठोक सकते | यह नैतिक अवरोध ( MORAL POLICING ) नहीं है- एकतथ्य है | किसी शिष्या के साथ एकांत में बैठकर उसको धर्मोपदेश देने वाला या योग सिखाने वाला महात्मा भी दुष्कर्मी है ऐसी सनातन संस्कृति है | योगी जी यदि राम और वशिष्ठ के शिष्य रह गए होते तथा गांधी और बुद्ध के शिष्य मोदी के शिष्य न बन गए होते (शिष्यांनुशिष्य) तो आज वे ललकारते कि MORAL POLICING को स्थायी स्वरुप देने के लिए कानून बनायेंगे तथा moral policing न केवल जारी रहेगी, बल्कि और घनी हो जायेगी | बिना moral policing के बलात्कार से रक्षा नहीं हो सकती – AMERICA में भारत से कई गुना बलात्कार होते हैं जबकि पुलिस कर्मी भारत से कई गुना अधिक है| NO 100, NO 1090 , गाड़ियों की FLEET, FORCE की संख्या बलात्कार से रक्षा नहीं कर सकते – केवल moral policing से इसकी रक्षा हो सकती है |
शास्त्रों में श्रुति तथा स्मृतियों में असली बाबाओं में भी जो बहुत ऊंची श्रेणी ‘यति’कही गई है, उनको भी इंद्रियों के आगे लाचार घोषित किया गया है – ‘इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्त्यपि यतेर्मन: |’
( इन्द्रियां अति शक्तिशाली हैं – तथा यति के भी मन का हरण कर लेती है ) – असली बाबा बनने वालों की औकात ही क्या है ?
जयशंकर प्रसाद ने कामायनी’ में मनु की आक्रामकता का वर्णन इन शब्दों में किया है –
“आलिंगन फिर भय का क्रन्दन वसुधा जैसे कांप उठी’ |
वह अतिचारी, दुर्बलनारी परित्राण पथ नाप उठी ||”
कामायनी’ में वासनातृप्ति को स्वर्ग मानने को मनु की उल्टी मति का घोतक माना गया है –
मनु, तुम श्रद्धा को गए भूल,
उस पूर्ण आत्मविश्वासमयी को,
उडा दिया था समझ तूल |
तुमने तो समझा असत विश्व,
जीवन धागे में रहा झूल |’
जो क्षण बीते सुख साधन में,
उनको ही वास्तव लिया मान |
वासना तृप्ति ही स्वर्ग बनी,
यह उल्टी मति का व्यर्थ ज्ञान |
जब गूंजी यह वाणी तीखी,
कंपित करती अम्बर अकूल
मनु को जैसे चुभ गया शूल |
असली बाबाओं की दयनीयता का चित्रण देखें कि वे किस प्रकार रूपमती के आगे असहाय हो जाते हैं – राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है –
योगीश्वर तज योग,
तपस्वी निज निदाधमय तप को
रूपमती को देख मुग्ध
इस भांति दौड़ पड़ते हैं |
मानों जो मधुशिखा ध्यान में
अचल नहीं होती थी |
ठहर गयी हो वही सामने
कान्त कामिनी बनकर |”(दिनकर – उर्वशी)
उपरोक्त चर्चा का निचोड़ इन शब्दों में पेश कर रहा हूँ –
‘काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को कलुष बताने वाले,
अपने कर उर्वशी मेनका, की पदरज धोयेंगे |
रूप सजाने की स्पर्द्धा में मर्कट बन सकते हैं,
स्वल्प चूक पर महाशाप, क्रोधाग्नि उगल सकते हैं
ताप मदान्ध इन्द्रासन पाने की लिप्सा में अनुदिन,
पूजनीय के कंधो पर पालकी चढ़ा सकते है |”
यह तो सात्विक बाबाओं की चर्चा थी – जो ‘वाताम्बुपर्णाशना:’ अथवा शाकाहारी थे | जो वामवर्गी बाबा थे – ( आज के वामपंथी नाराज न हो ) उनका चित्रण यहाँ मैं जान बुझकर नहीं कर रहा हूँ | वीमत्स रस का संचार हो जाएगा |
उपरोक्त विश्लेषण का एकमात्र उददेश्य यह है कि असली बाबाओं ने कभी नकली बाबाओं की निंदा नहीं की – उन्हें गाली नहीं दिया | उन्होंने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि असली बाबा भी कामवासना के उतने ही चपेटे में हैं, जितने नकली / ढोंगी बाबा | आदि शंकराचार्य ने अपना निर्णय सुनाया है –
धनु: पौष्पं मौर्वी मधुकरमयी पञ्चविशिखाः
वसन्तः सामन्तो मलयमरूदायोधनरथ:
तथाप्येकः सर्वं हिमगिरिसुते कामपि कृपाम
अपांगात्ते लब्ध्वा जगदिदमनंगो विजयते ||
( फूलों का कोमल धनुष और
प्रत्यंचा है भ्रमरावलि |
मीनाक्षी का चंचल कटाक्ष है
बाण चन्द्रकिरणावलि ||
फिर भी माँ भगवती की अंशमात्र कृपा प्राप्त कर तीनो लोकों को अनंग जीत लेता है |
जब असली बाबा नारद को यह अभिमान हो गया कि उन्होंने कामदेव को जीत लिया तथा उन्होंने यह कहानी भगवान् शिव को सुनायी तो भगवान शिव ने उनको कड़े निर्देश निर्गत किये कि यह कथा विष्णु को मत सुना देना | जब नारद जी यह निर्देश नहीं मानें तो सबको मालूम है कि किस प्रकार उनका चेहरा बदर जैसा हो गया | आज टी.वी. चैनल पर तथा फेसबुक पर या प्रिंट मीडिया के साक्षात्कारों जो असली बाबा किसी नकली बाबा के कामपाश में आबद्ध होने का उपहास उडा रहे हैं वे सावधान रहे है कि कामविजय पर गर्व न करें अन्यथा नारद जैसी परिस्थितियां आ सकती है | कल उनका चेहरा भी बन्दर जैसा हो सकता है
| शिव जी ने ऐसा परामर्श क्यों दिया ? उत्तर स्वयं आदि शंकराचार्य ने दिया है –
हरिस्त्वामाराध्य प्रणतजनसौभाग्यजननीं
पुरा नारी भूत्वा स्मररिपुमपि क्षोभमनयत् |
(अर्थात हे भगवती ! तुम्हारी आराधना करके भगवान विष्णु ने नारी रूप धारण कर कामदेव रिपु भगवान शिव में भी क्षोभ उत्पन्न कर दिय )
किस प्रकार भगवान् शिव ने जब भगवान् विष्णु ने मोहिनी रूप को देखने का हठ किया, तो भगवान् विष्णु के बार-बार मना करने पर भी न मानने पर भी जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप के दर्शन दिया तो भगदड़ में जब मोहिनी की साड़ी सरक गयी तथा वह अनावृत हो गयी तो किस प्रकार शिव जी का धैर्य स्खलित होने से पवन देवता के सौजन्य से माँ अंजनी ने केसरीनन्दन हनुमान को जन्म दिया – यह कथा सबको विदित है | हर – हर महादेव – पवनसुत हनुमान की जय | इसके अलावा भी भगवान शिव ने एक बार पूर्व में भी माँ पार्वती को सुश्रूषा की अनुमति दे दी थी, बिना इस बात की परवाह किये कि तपस्या में बाधा आ खड़ी होगी -
प्रत्यर्थिभूतामपि तां समाधे:
सुश्रूषमाणां गिरिशोऽनुमेने |
विकारहेतौ सति विक्रियन्ते
येषां न चेतांसि त एव धीराः |
तर्क यह दिया कि विकार हेतु के उपस्थित होने पर भी जिनका चित्त विकृत न हो, वही असली धीर है – असली बाबा है | किन्तु जब कामदेव ने वसन्त के साथ पदार्पण किया तथा उमा ने प्रणाम किया तथा नीले बालों में शोभित कर्णिकार गिर पड़ा –
उमाऽपि नीलालकमध्यशोभि
विस्रंसयंती नवकर्णिकारम् |
चकार कर्ण च्युतपल्लवेन
मूर्ध्ना प्रणामं वृषभध्वजाय ||
तो माँ के इस सान्निध्य को जगत्पिता सह न सके | उनका धैर्य किंचित् परिलुप्त सा हुआ तथा बिम्बा के फल के समान माँ के अधरोष्ठों पर जगत्पिता की आंखे टिक गयी –
हरस्तु किन्चित्परिलुप्तधैर्य –
श्चन्द्रोदयारम्भ इवाम्बुराशौ |
उमामुखे बिम्बफलाधरोष्ठे
व्यापारयामास विलोचनानि ||
और परिणामस्वरूप काम का दहन करना पड़ा –
क्रोधं प्रभो संहर संहरेति
यावद्गिरः खे मरुतां चरन्ति |
तावत् स वह्निर्भवनेत्रजन्मा
भस्मावशेषं मदनं चकार ||
जितने बाबा या उनके भक्त स्वयं असली घोषित करते हुए नकली / ढोंगी का मजाक उड़ा रहे हैं - वे रेड अलर्ट हो जाएँ | कभी भी वे झूठे केस में फंसायें जा सकते हैं या सच्चे केश में फंस सकते हैं | बाबा रामदेव राष्ट्रीय पूँजी हैं – योग की प्रतिष्ठा | मायावती उन्हें भले जन्म से यादव मानें किन्तु मनुवादी पार्टी उन्हें कर्म से ब्राह्मण मानती हैं तथा विशेष रूप से सचेत रहे – शिष्याओं से दूरी बनाकर रखें | कभी भी धैर्य वास्तव में विचलित हो सकता है तथा यदि न भी विचलित हो तो कभी भी कांग्रेसी कोई बखेड़ा खड़ा कर सकते है तथा फेसबुक पर बार-बार दी रही धमकियों / भविष्यवाणियों को साकार कर सकते हैं तथा उस परिस्थिति में सलवार सूट पहनकर भागने से भी काम नहीं चलेगा क्योंकि न्यायालय तथा मीडिया ट्रायल दोनों ही बार- बार नपुंसकता तक के बचाव – साक्ष्य को नकार चुके हैं | योग शक्ति के बल पर बाबा रामदेव का पुरुषार्थ मृत्यु पर्यन्त सुरक्षित है | यदि कोई कहे कि अब तक रामदेव बाबा नहीं पिघले, तो इसका उत्तर विश्वामित्र की तपस्या वाला अध्याय देगा | विश्वामित्र महान साधक थे – कामवासना को इस सीमा तक जीत लिया था कि रम्भा नामक अप्सरा को उन्होंने पत्थर बना दिया था तथा उर्वशी में साहस नहीं हो रहा था कि इंद्र के आदेश के बावजूद विश्वामित्र के सामने पड़े | किन्तु मेनका के सामने वही विश्वामित्र नहीं टिक पाए तथा सारी साधना एक झोंके में बह गयी | क्यों? क्योंकि मेनका असली बाबा विश्वामित्र को सचमुच में प्यार करती थी | अप्सराएँ भले ही सामान्यतया प्रेम में विश्वास न रखती हो तथा दिनकर के शब्दों में प्रेम करने वालियों को ताने देती हों –
अब अप्सरियाँ भी पूजेंगी, प्रेमदेवता जी को
और स्वर्ग की विमा करेगी, नमस्कार धरती को
पहनेंगी कंचुकी क्षीर से, क्षण क्षण गीली गीली |
नेह लगाएंगी मनुष्य से, देह करेंगी ढीली ||
मेनका जैसी कुछ तो ऐसी होती ही हैं, जिन्हें विश्वामित्र जैसे वयोवद्ध लोग भी आकर्षक लगते है – नौजवान क्षत्रिय तथा वृद्ध ब्राह्मण – प्रायः अप्सराओं को अधिक आकर्षक लगते हैं | इसका चित्रण कर रहा हूँ – गौर करें –
सुनती हूँ उस देवलोक में,
कितनी अप्सरियाँ हैं | जिन्हें वृद्ध ॠषि मुनि तपसी भी आकर्षक लगते है|
कभी किसी के श्वेत श्मश्रु पर,
मोहित हो जाती हैं, |
दशन हीन मुख पर भी जिनके,
प्यार मचल उठतें हैं |
नौजवान क्षत्रिय में इतना आकर्षण होता है ऐसा गबरू जवान होता है कि उसे यौन शोषण की आवश्यकता ही नहीं पड़ती - इसका चित्रण दिनकर ने उर्वशी के मुंह से निकले हुए उद्गारो द्वारा किया है – ‘अयस्कान्त ले खींच अयस को जैसे निज बाँहों में’
अर्थात जिस प्रकार कोई चुम्बक लोहे को अपनी ओर खींच लेता है, वैसे ही उर्वशी खिंची हुई पुरुरवा के पास चली गयी | उस मिलन से भी उसकी आत्मा संतुष्ट नहीं होती क्योंकि महादेवी जी के शब्दों में वह जानती है कि गुलाब की कली उपलब्ध होने पर वह कमल के विकसित फूल को भूल जायगा –
“अब फूल गुलाब में पंकज की
अलि, कैसे तुम सुधि आती नहीं ? ( महादेवी वर्मा )
वह राजा की अन्य रानियों के बारें में जानते हुए भी आश्वस्त रहती है कि महारानी कुलपोषण ( संतानोत्पत्ति ) के लिए है तथा पति में नित्य नूतन मादकता भरने के लिए नहीं तथा बंधन को नद , नाले तथा सोते मानते हैं किन्तु महानद तो स्वभाव से ही प्रचण्ड होते हैं |
अरी एक रानी भी है,
राजा को तो क्या भय है |
एक घाट से किस राजा का,
रहता बंधा प्रणय है |
नया बोध श्रीमंत प्रेम का,
करते ही रहते है |
नित्य नयी सुन्दरता ओं पर,
मरते ही रहते है |
सहधर्मिणी गेह में आती,
कुलपोषण करने को |
पति में नहीं नित्य नूतन
मादकता को भरने को ||
बंधन को मानते वही,
जो नाद – नाले सोते हैं |
किन्तु महानद तो स्वभाव से,
ही प्रचण्ड होते हैं |
इसी कारण उर्वशी संतुष्ट नहीं है कि वह स्वयं चुम्बक की तरह महाराज की ओर खिंच कर चली आई | क्षत्राणी की क्या इच्छा होती है – इसका उत्तर दिनकर की लेखनी से उर्वशी ने दिया है – “खिंची हुई जो नहीं, चढ़ी विक्रम तरंग पर आती” अर्थात वह क्षत्राणी धन्य है जो किसी क्षत्रिय के रूप या पौरूष पर आकृष्ट होकर स्वयं उसके अंक में नहीं बैठी बल्कि उस महिला का उस क्षत्रिय ने अपहरण कर लिया या उठा लिया तथा उसके विक्रम के तरंग पर चढ़ कर आई | इसी को आल्हा तथा ऊदल के बारे में आल्हाखण्ड में कहा गया है –
‘जाकी बिटिया सुंदर देखी
तेहि पर जाई धरे तलवार”
अर्थात आल्हा और ऊदल ने जिसकी बेटी की सुन्दर देखा उसकी गर्दन पर तलवार रख दिया |
यह आल्हा जब किसी ‘बाबूसाहब’ या ‘कुँवर साहब’ की चौपाल में कोई अल्हैत ललकार कर गाता है तथा ढोलक पर थाप पड़ती है, तो जितने भी ‘बाबूसाहबान’ (father) होते है उनमे से 90 % अपनी मूँछो को ऐंठने लगते हैं | भीष्म जैसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी तक बनारस की राजकुमारियों को उठा लाये तथा गंधार की राजकुमारी को आँखों पर पट्टी बांधकर धृतराष्ट्र के साथ रहना पड़ा | यही कारण है कि किसी ‘बाबू साहब’ को मैंने आज तक यौनशोषण के आरोप में फंसते तथा न्यायालय से दण्डित होते नहीं देता – भले ही अपवादस्वरूप इक्का दुक्का हो गया हो | CBI किसी राज कुमार, संजय सिंह के चरित्र को कुछ दिनों के लिए चार्जशीट लगाकर भले ही कलंकित कर दे, किन्तु नयायालय से वे तपे – तपाये सोने की तरह पवित्र तथा निष्पाप बन कर निकले – जनता जनार्दन की अदालत में भी स्वयं तथा महारानी द्वितीय अमिता सिंह निर्दोष प्रमाणित किया तथा जनता जनार्दन ने उन्हें सिर पर उठा लिया |
जनता की निगाहों में गिरावट तब दिखी जब अमिता सिंह ने राज मर्यादा का उल्लंघन किया | भले ही पट्टमहिषी ( पटरानी ) का पद ले लिए होती किन्तु ‘ज्येष्ठा महिषी’ (बडी रानी) का अधिकार गरिमा सिंह के लिए सुरक्षित रखना चाहिए था | गरिमा सिंह के सामने बैठकर परम्परागत रूप से अमिता सिंह को चरणस्पर्श करना चाहिए था तथा गरिमा सिंह के बेटे को राजकुमार ( कुंवर साहब ) का दर्जा प्रदान करना चाहिए था | उन्होंने भारत का ही इतिहास नहीं पढ़ा था वरना उन्हें मालूम होता कि कुंवरसाहबान सौतेली माँ को सगी माता से भी अधिक प्रणाम करते हैं |
इसी प्रकार मैंने बाबा अमरमणि त्रिपाठी ( गोरखपुर मण्डल का हर ब्राह्मण बाबा है) तथा बांदा के नरैनी के पूर्व विधायक को छोड़कर किसी अन्य बाबा को दण्ड भोगते नहीं देखा | कोई होगा तो अपवाद है | शंकराचार्य के व्यक्तित्व को भले जयललिता के समय में कुछ लोगो ने कुछ समय के लिए कलंकित कर दिया हो किन्तु अन्तःत वे न्यायालय से राजकुमार संजय सिंह की तरह तपे – तपाये सोने की तरह पवित्र होकर निकले – सर्वथा निष्पाप, निष्क लंक | इसके तीन कारण हैं –
1- पहला कि ब्राह्मण किसी महिला को, जिसका उसने गर्भाधान किया हो, कभी गर्भपात कराकर सड़क पर असहाय छोड़ देने की गलती नहीं करता | यदि कोई पराशर किन्ही कमजोर क्षणों में किसी मत्स्यकन्या के पेट से किसी वेदव्यास को जन्म देता है, तो वह उसे ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों की पूज्या माँ सत्यवती बना देता है | मत्स्यकन्या सत्यवती ‘योजनदुर्गन्धा’ से ‘योजनसुगंधा’ वैसे ही हो जाती है जैसे भाजपा में शामिल होते ही गंदे से गंदे चरित्र का व्यक्तित्व,जिसके नाम से भाजपा के प्रचारतंत्र को घिन आती हो, मर्यादा की प्रतिमूर्ति हो जाता है | उसकी यशोगाथा इतनी फ़ैल जाती है कि दिल्ली के चक्रवर्ती सम्राट शन्तनु उसे प्राप्त करने के लिए न केवल अपने जवान बेटे भीष्म को नैष्ठिक ब्रह्मचारी बनाकर उसकी जवानी को भी कुर्बान कर देते हैं , बल्कि विचित्रवीर्य की माँ, घृतराष्ट्र पान्डु तथा विदुर की दादी तथा कौरवों एवं पाण्डवों की परदादी बनकर उभरती है | किस बात की शिकायत उसे रहेगी कि यौनशोषण की चर्चा भी हो ? इसी लिए कहा गया है कि ब्राह्मण यौन शोषण नहीं करता बल्कि यौन पोषण करता है |
2- ब्राह्मण कभी भी अपनी इच्छा लादता नहीं है | यही यौनशोषण से उसे विरत करता है | असली बाबा की पहचान है बिना दक्षिणा के वह वीर्यदान नहीं करता | उसके एक एक बूँद स्राव का अपना सम्मान और महत्व है | दो सेवाएं किसी की कर दीजिये तो वह धन्यवाद ( thank you ) कहेगा, चाहे कितना ही कृतघ्न क्यों न हो – 1 उसे स्वादिष्ट भोजन करा दीजीये तथा 2 कोई उसको किसी नारी की आपूर्ति कर दे | किन्तु ब्राह्मण यहाँ भी विवेक नहीं खोता – श्रद्धा परखता है, स्नेह परखता है | वह गली - गली कन्याओं की खोज में घूमता नहीं है | वह तपस्या में लीन हो जाता है | उसकी तपस्या को भंग करने के लिए इंद्र को अप्सराएँ भेजना पड़ता है | आसानी से अप्सराएँ उसे विमोहित नहीं कर पाती | इंद्र ने जब रम्मा को विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए भेजा, तो विश्वामित्र ने रम्भा को पत्थर का बना दिया – वह पथरा गई | इस बार उर्वशी को जाने का आदेश हुआ, तो उर्वशी में साहस नहीं हुआ | किन्तु मेनका ॠषि को सच्चे हृदय से स्नेह करती थी ( इंद्र के कहने पर भी 164 के बयान में झूठे आरोप न लगाती ) | इस कारण जब तीव्र वायु ने उसके चीर को हवा में उडा दिया तो ॠषि की तपस्या भंग हो पायी | च्यवन की पत्नी सुकन्या ने इस तपोबल का वर्णन करते हुए ब्राह्मण तथा क्षत्रिय के यौन – जीवन का तुलनात्मक विवेचन किया है –
धन्य पुरुष, जो वर्ष वर्ष,
निष्काम उपोषित रह कर|
अपनी क्षुधा तीव्र,
जठरानल दीपित कर लेते है ||
सतत भोगरत नर क्या जाने
तीक्ष्ण स्वाद भोगो का |
उसे जानता वह जिसने,
कुछ दिन उपवास किया हो | (दिनकर)
और ॠषि की आँखों से उस षोडशी सुकन्या को देखकर क्या उद्गार टपके थे, इसे सोचते हुए सुकन्या संस्मरणों में खो जाती है –
‘वरण करोगी मुझे,
तुम्हारे लिए जरा को तजकर | –
शुभे तपस्या के बल से मैं,
यौवन ग्रहण करूँगा ||”
यहाँ भी ध्यान देने की बात है कि ब्राह्मण इस सहमति के साक्ष्य के रूप में भोजन दक्षिणा तथा नियोग दक्षिणा लेता है | जब नियोग के उपलक्ष्य में दक्षिणा मिल रही है, निमंत्रित किया जा रहा है तो फिर यौन – शोषण कहाँ से आएगा ? बिना दक्षिणा पाए न तो ब्राह्मण किसी के दरवाजे पर जूठन गिरता है और न ही बिना दक्षिणा पाए वह नियोग करता है |
3 इसके अलावा तीसरा महत्वपूर्ण घटक है – ब्राह्मण नियोग के जनकल्याणकारी कार्यक्रम में कभी भी जाति के, आर्थिक स्थिति के, सौन्दर्य के किसी मानक को बिना ध्यान में रखे हुए एक तरफ से सभी पर कृपा करता है तथा परिणामस्वरूप किसी प्रकार की ईर्ष्या या कटुता का संचार नहीं होता था | हस्तिनापुर की महारानी हों या घर की नौकरानी – व्यास के लिए दोनो बराबर है| नियोग अपने सुख के लिए नहीं किया जाता, बल्कि जनकल्याण के लिए किया जाता है | अगर महारानियों से घृतराष्ट्र तथा पान्डु उत्पन्न होते हैं तो नौकरानी के पेट से विदुर जैसे महान ज्ञानी पैदा होते हैं जो धर्मराज के रूप समझे जाते है | नकली बाबा किसी एक को महत्व देकर दूसरे को दुत्कारते हैं तो वे आरोपों के दायरे में आ जाते हैं |
यहाँ यह भी बताना चाहूँगा कि इन नकली कहे जाने वाले बाबाओं को भी सद्गति मिलेगी | रावण, कुम्भकर्ण, कंस आदि जितने भी लोग राक्षस / अत्याचारी समझे जाते है, उन सब का राम या कृष्ण ने वध नहीं किया – उन सबका उद्धार किया | इसी प्रकार आसाराम या रामरहीम जैसे जितने बाबा कहे जाने वाले जेलयात्री बने – यदि वे दोषी हों तो भी तथा निर्दोषी हों तो भी – भगवान उनके निर्दोष होने की स्थिति में पूर्व जन्म के पापों को तथा दोषी होने की स्थिति इस जन्म के पापों को – धो रहा है | उन्हें योगियों को भी दुर्लभ परम गति मिलेगी |
गीता में भगवान् कृष्ण ने कहा है –
यद्यदविभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव च |
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ||
( जो कुछ भी इस विश्व में विभूतिमत श्रीमत् अथवा उर्जित दिखे, उसमें मेरे तेज का अंश है | )
आखिर ये बाबा चाहे असली थे या नकली – क्यों पूज्य हुए ? प्रभुकृपा से – और वही कृपा उनको इस जन्म या पूर्व जन्म के पापों से मुक्त कर रही है – सनातनी धर्मावालम्बियों को इसी रूप में इस घटनाक्रम का विवेचन करना चाहिए |
आज साक्षी जी के विचारों की घोर आलोचना हो रही है | भाजपा तक उनसे दूरी बना रही है | किन्तु क्या कोई निष्पक्ष विचारक यह बतायेगा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय से सजा प्राप्त करने तथा रास्ट्रपति स्तर से क्षमायाचना निरस्त होने के बावजूद आतकंवादी जिन बुद्धिजीवियों की निगाह में दोषी नहीं हुए तथा उनकी निर्दोषता को प्रमाणित करने के लिए अग्रिम तर्क रात को न्यायालय खुलवाकर दिए गए , उन बुद्धिजीवियों को बिना न्यायालय का निर्णय आये ही आशाराम बापू को बलात्कारी तथा राम – रहीम को मात्र सत्र – न्यायाधीश से दण्ड घोषित होते ही 100 % दोषी घोषित करते हुए क्या शर्म नहीं आनी चाहिए ? क्या जिस तरह के ट्वीट किये गये हैं तथा फेसबुक पर जिस शब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है, उचित है ? क्या यह कहावत चरितार्थ नहीं हो रही है कि ‘गरीब की जोरू सबकी भाभी ?’ क्या धर्म निरपेक्षता का अर्थ यही है कि हिंदुत्व के प्रतीकों को गाली बकी जाए ? कांग्रेस को यह ध्यान में रखना होगा कि कांग्रेस तब लगातार सत्ता में रह पायी जब नाथूराम गोडसे तक के बारे में जवाहर लाल नेहरु ने इतने आदरसूचक शब्दों का प्रयोग किया, जितना साक्षी जी ने संसद में नहीं कहा था, जिस पर कांग्रेसी बौखला गए तथा मोदी भी बचाव की मुद्रा में आ गये ( DEFENSIVE ) | जवाहर लाल नेहरु ने गोंडसे को ‘CIA या KGB का एजेंट’ या ‘किराए का हत्यारा’ नहीं कहा बल्कि कहा कि ‘It is tragic that he was killed by one of our misguided com patriots’
Compatriot का अर्थ – ‘जो मेरे ही टक्कर का देशभक्त है’ लकिन जो misguided है | यह एक निष्पक्ष मूल्यांकन है | आज कांग्रेस कम्युनिष्टों की चेली बन गयी है | कम्युनिष्ट खुद भी डूबेंगे तथा कांग्रेस को भी ले डूबेंगे | आज नाथूराम गोंडसे से लेकर बलात्कार में फंस कोई बाबा मिल जाए या गाय – कांग्रेस की आवाज बुलंद होने लगती है | वह एक राष्ट्रीय पार्टी है | तथा यदि उसे जिन्दा रहना है तो राहुल को कम्युनिष्टों की शब्दावली से परहेज करके जवाहरलाल नेहरु की शब्दावली पर लौटना होगा | जेल में बंद बाबाओं में इस शैली में गाली न दी जाए कि ऐसे लगे कि भगवा को गाली दी जा रही है | भगवा तिरंगे का अंग हैं और शीर्ष पर है | भगवा का अपमान तिरंगे का अपमान है | JNU को लाल झंडे से बचाना होगा | तिरंगे में भगवा के साथ और भी रंग बने रहे – यह धर्म निरपेक्षता है | किन्तु भगवे का निरादर – यह उचित नहीं है |