Wednesday, 31 May 2017

मुख्यमंत्री के नाम खुला खत, मथुरा कांड का खुलासा l DGP के नाम खुला खत क्यों नहीं?

मुख्यमंत्री के नाम खुला खत
मथुरा कांड का खुलासा
DGP के नाम खुला खत क्यों नहीं?
अंतर्मन में कुछ प्रश्न उठ रहे हैं किंतु जबान पर नहीं आ रहे हैं क्योंकि सुलखान सिंहIPS DGP की कुर्सी पर आसीन हैं। ठीक वैसे ही जैसे इक्ष्वाकुवंश पर तथा राम पर अटूट विश्वास के कारण पहले चरण में पृथ्वी माता ने सीताजी को अपने हृदय में नहीं समेटा था।
मथुरा कांड का खुलासा पढ़ा मन शंका करने की हिम्मत नहीं कर रहा क्योंकि सुलखान सिंह प्रदेश के DGP हैं तथा प्रकाश सिंह, वी.के. सिंह तथा शैलजा कांत मिश्र सी परंपरा की वह उपज हैं, उनके व्यक्तित्व, कृतित्व और निष्पक्षता पर कोई केजरीवाल या दिग्विजय सिंह की प्रवृत्ति का ही व्यक्ति उंगली उठा सकता है- यह मेरे बस की बात नहीं है।
फिर मैं महेश चंद द्विवेदी IPS का UnderTraining रहा हूं जो सही खुलासे के लिए संघर्षरत रहे योद्धाओं में अग्रणी रहे हैं तथा Murder में नामजद अपराधी जितनी बडी संख्या में उनके जिले, Range तथा Zone में निर्दोष घोषित किए गए हैं, उतनी बड़ी संख्या में किसी अन्य IPS Officer के Supervisiory Jurisdiction में नहीं।
जैसे B.S.Bedi साहब के Posting की खबर सुनते ही वही दरोगा सुनिश्चित कर लेता था कि अपराध के आंकड़े आधे हो जाएं- कानपुर में मैं ASP था तो वहां बेदी साहब के नेतृत्व में फ़ीलखाना जैसे इंस्पेक्टर रैंक के थाने में IPC Crime शून्य हो गया था तथा इंस्पेक्टर को डांट पड़ी थी कि बुखार/शुगर/ब्लड प्रेशर कम होना चाहिए किंतु 0 नहीं और तब जाकर आंकड़े पिछले साल के आधे पर रुके थे।इसी प्रकार बाकी officers false nominations को encourage नहीं करते थे किंतु कुछ तो ऐसा था ही किU. P. Cadre के एक दर्जन illustrious officers के jurisdiction में भी उतने नामजद लोगों को clean chit नहीं मिली होगी जितनी अकेले M.C. Dwivedi के कार्यकाल में।
इन संस्कारों में पले होने के कारण false implication तथा unearthing of the case गले के नीचे नहीं उतरता। हम मथुरा Case को फर्जी खुलासा कहने की हिमाकत नहीं कर रहे।
मां सीता तथा मां धरती का एक प्रसंग अंतर्मन में उभरता है। जब सीताजी ने दोबारा अग्नि परीक्षा का प्रस्ताव आने पर (वास्तव में लंका की अग्नि परीक्षा के बाद लव-कुश का शौर्य प्रदर्शन भी एक अग्निपरीक्षा ही थी)- इसे तीसरी अग्नि परीक्षा का प्रस्ताव कह सकते हैं। मां सीता Utterly Depressed हो गयीं तथा उन्होंने मां धरती से निवेदन किया कि "मां तुम फट जाओ तथा अपनी छाती में हमें समेट लो। यही मेरी अग्निपरीक्षा होगी।" यह सुनकर मां धरती स्तब्ध रह गयी। उन्होंने विचार किया 
 "इक्ष्वाकुवंशप्रभवःकथं त्वाम् त्यजेद कस्मात् पतिरार्यवृत्तः।"

अर्थात तुम्हारा पति साधारण व्यक्तित्व का स्वामी नहीं है। राम इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए हैं साथ ही वे आर्यवृत हैं अर्थात आचरण से आर्य हैं। वे तुम्हें अकस्मात बिना गलती के परित्यक्ता कैसे बना सकते हैं? इस संशय में सीता की मां पृथ्वी पड़ गई तथा बिना पूरी छानबीन के सीता को अपने उदर में प्रवेश नहीं दिया। जिस प्रकार मां पृथ्वी को यकीन नहीं हो पा रहा था कि राम ने बिना गलती के परित्याग किया होगा, उसी तरह चाहे कितने ठोस कारण कोई प्रस्तुत करे मेरा अंतर्मन यह स्वीकृत नहीं कर सकता कि सर्व श्री प्रकाश सिंह, शैलजाकांत मिश्र तथा वी. के. सिंह से दीक्षा प्राप्त सुलखान सिंह जो स्वयं में आर्यवृत्त(outstanding character and integrity beyond doubt) का निष्कलंक जीवन आजीवन बिता चुके हैं, उन्हें कोई प्रलोभन देकर या अल्टीमेटम देकर या डरा-धमकाकर गलत खुलासा किसी संवेदनशील केस में कैसे करा सकता है?
फिर भी.....
फिर भी,कुछ प्रश्न मन में उठ रहे हैं, जिन्हें मैं मुख्यमंत्री के नाम खुले खत में लिख रहा हूं- DGP के नाम खुला खत इसलिए नहीं लिख रहा हूं क्योंकि सुलखान सिंह मुझे व्यक्तिगत जीवन में बहुत सम्मान देते हैं इतना अधिक कि मुझे डर लगने लगता है कि उस सीमा तक सम्मान पाने को deserve भी करता हूं या नहीं। मैं सोचता हूं कि कहीं कोई मेरा सुझाव उन्हें मतिभ्रम न दे दे। मैं ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ किंतु मैं ब्राम्हण को जाति न मानकर एक पदवी मानता हूं जिसको JUSTIFY करने के लिए ब्राह्मण कुलोत्पन्न को भी घोर तपस्या करनी पड़ती है तथा क्षत्रिय कुल में उत्पन्न विश्वामित्र एवं अन्य कुलों में उत्पन्न वाल्मीकि, नारद, अगस्त्य, व्याध,जाबाल आदि भी घनघोर तपस्या की सीढ़ियों को चढ़कर ब्राह्मणत्व को अर्जित कर लेते हैं। कभी-कभी अभिजात्यकुलोत्पन्न का बोध आ जाता है तो कभी-कभी प्रतिभा का अहं घेर लेता है जिसे प्रयासपूर्वक तुरंत दूर भगाता हूं। पूर्वाग्रह को भगाए बिना तथा निष्पक्षता का पक्षधर हुए बिना ब्राह्मणत्व को छू पाना संभव नहीं है।
योगी जी से निवेदन इसलिए कर रहा हूं क्योंकि वे मुझसे काफी बड़े हैं। भारत के राष्ट्रपति तक पीठाधीश्वरों के चरणों में स्थान लेते रहे हैं। वे अपने विवेक से तथा समुचित विचार विमर्श से इसके बारे में जितने अंशों को उपयुक्त समझे उतने के बारे में पुलिस विभाग को यथोचित निर्देश जारी कर सकते हैं-
(1)पहला भाग है पुलिस की भूमिका। योगी जी महाराज ने इस केस में पुलिस की भूमिका की चर्चा की जिससे स्पष्ट बोलने का बल मुझे मिल रहा है। अगर गहराई तक विवेचना की जाए, तो ऐसा कोई सुनियोजित अपराध शायद ही अपवादस्वरूप निकले जिसमें पुलिस की भूमिका न हो। यदि ऐसा ना होता तो बड़े से बड़े लोगों तक पहुंच रखने वाले अपराधी भी अपनी choice का police staff अपने थाने में क्या चाहते हैं?
शिवपाल का जब जलवा था, उस समय भी जब तक मनमाफिक Inspector या Staff सैफई में नहीं आ जाता था तब तक किसी रंगबाज चेले का सीना 56 इंच का नहीं हो पाता था। यह सच है कि खूटे के बल पर बछड़ा उछलता है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि बच्चा मां की गोद में उछलता है डायन की गोद में नहीं। बृजलाल के जमाने में केवल एक Inspectorरुचि के विपरीत सैफई में पोस्ट हो गया था तथा दबंगई का क्या परिणाम निकला था - इसे सारा जमाना जानता है- मैं पुनरावृत्ति करके कलम को गंदा करना नहीं चाहता। पूरा जमाना जानता है कि Inspector Cantt तथा CO Cantt के रूप में सर्वदेव कुँवर की पोस्टिंग होते ही पूर्वांचल के सारे स्वनामधन्य माफिया "Quit India" कर देते थे तथा नेपाल की सीमा से भारत में तब प्रवेश करते थे जब उस Inspector की रवानगी हो जाती थी। योगी जी अपराध नियंत्रण में पूर्ण सफल हो जाएंगे यदि वह इस बात की समीक्षा करना न भूलें कि किसी भी जघन्य अपराध में पुलिस की क्या भूमिका है?
जो कह रहे हैं कि पुलिस की कोई भूमिका नहीं है उनकसे केवल निम्न प्रश्नों के उत्तर मंगाकर पुनर्विचार करने को कहा जाए-

(1) जब अपराधी पूर्व में इनामिया था, तो उसे पकड़ने के लिए किस-किस Inspector, S.I. ने दबिश दी तथा परिणाम क्या रहा है- पुष्टि के लिए GD की Entries भी अटैच की जाएं।
(2) क्या ये दबिशें वास्तविक थी या कागजी? मौके पर कोई निष्पक्ष officer जांच कर बताएं कि क्या दबिशें पड़ी भी थी या मात्र कागजी खानापूर्ति थी?
(3) जो अपराधी Police की organised Team पर फायरिंग करते रहे, वे पिछली दबिशों पर तमंचे का हवाईFire तक क्यों नहीं किये?
(4)Mathura में Police की क्या भूमिका रामबृक्ष यादव प्रकरण में थी- क्या भूमिका Refinery की चोरी में हरदम रहती है-
High Profile Sex Rackets में क्या भूमिका होती है कि किसी SSP के Touch करने का साहस करते ही वह blast हो जाता है तथा काफी कर्मचारी उसके transfer को celebrate करते हैं- इसका पता जनता जनार्दन दे देगी Intelligence Department कुछ छुपाना भी चाहे तो हिन्दू युवा वाहिनी के चलते नहीं छुपा सकता है।

(5) क्या इन अपराधियों की History sheet खुली थी?

(6) क्या इनके नाम Active list पर लाए गए थे?

(7) क्या यह पीछे के मुकदमों में जमानत पर छूटे थे? क्या जमानतदारों की तस्दीक की गई कि वह असली हैं या फर्जी? जबकि यह तस्दीक जमानत होने के बाद Routineमें होनी चाहिए।

(8) क्या अपराध में लिप्त रहने के बावजूद इनकी पिछली जमानतों को निरस्त करने के लिए कोई प्रार्थना पत्र भी दिया गया? यदि हां, तो कब और किसकी अदालत में?
क्या अब यह अदालतों की जिम्मेदारी रहेगी कि वह पुलिस को जगाए कि अतीक अहमद की जमानत को निरस्त करायें?
केवल मुख्यमंत्री यह statement मंगा लें कि उनके सत्ता में आने के पहले 12 महीनों में कितनी बार पुलिस ने Bail Cancellation के लिए Move किया है तथा सत्ता में आने के बाद कितनी बार किया है तो कोई Major Difference शायद ही मिले तथा यह आंकड़े ही यह प्रमाणित कर देंगे कि अपराधों में पुलिस की क्या भूमिका है तथा किस प्रकार पुलिस अपराधियों को संरक्षण देने से बाज नहीं आ रही है?
(9)किसी Case में जो अपराधी प्रकाश में आए उनमें- क्या पुलिस ने कभी जमानत आदेश के विरुद्ध Appeal दायर किया? क्या गायत्री प्रजापति जैसे बहुचर्चित Case में पुलिस का गला जब राजनीतिक नेतृत्व दबाएगा तभी Bail के खिलाफ Appeal होगी? मुख्यमंत्री जी एक आंकड़ा मंगा लें कि सत्ता में आने से पहले 12 माह में कितनी Appealsहुई तथा उनके शपथ ग्रहण के बाद कितनी हुई- कोई खास अंतर नहीं मिलेगा। नेताओं तथा अधिकारियों के कड़े बयानों पर कारखास तथा दागी कर्मचारी मुस्कुरा कर कहते हैं
 "कुत्ते भूंकते रहते हैं 
हाथी अपनी चाल चलता है"
कारखास तथा दागी कर्मचारी स्वयं को हाथी तथा कड़ाई करने वाले अधिकारियों और नेताओं को कुत्ता समझते हैं। जो कार्यवाही गायत्री प्रजापति मामले में हुई- वह अन्य मामलों में क्यों नहीं पुलिस करती?
1989 के पहले हर जमानत के बादAPO/PO/SPO तथा ADGC/DGC एक Acquittal report बनाते थे तथा हर महीने DM तथा SP की Joint Meeting में यह मामला Discuss होता था कि Bail का कौन सा मामला Appeal के योग्य है या नहीं तथा Prosecution Department इस विषय में एक स्वतः स्पष्ट आख्या उपलब्ध करता था जिसमें appeal करने योग्य Judgement है या नहीं इसके कारण समेत Draft बनता था तथा चर्चा होती थी। Judiciary से कोई बात Discussकरने लायक होती थी तो Communication Gap ना हो इसके लिए SSP, DM तथा DJ की एक मासिक बैठक होती थी। जब कोई भोजन ना करे तो Food Supplement से कब तक काम चलेगा?
1989 के बाद किसी DM ने अपवादस्वरूप अपने इस कर्तव्य का पालन किया होगा। यही कारण है कि पुलिस वाले भी पहले जैसा सम्मान नहीं देते तथा पब्लिक भी जगह-जगह SDM, ADM तथा DM से हाथापाई कर देती है। पूरे उत्तर प्रदेश में अघोषित रूप से SSP तथा DM द्वारा Acquittal Report का न बनवाना तथा Appeal केवल Media Trial होने पर करना-क्या यह अपराधियों को दिया गया अघोषित संरक्षण नहीं है?
क्या यह अपराधियों के आगे घुटना टेकने के समतुल्य नहीं है?

(10) यह असंभव है कि अपराधी Mobile Phone न use करते हों। जेल में बंद अपराधी तक करते हैं, बाहर वाले क्यों नहीं करेंगे? केवल Case Diary मंगाकर देख ली जाए कि कितने cases में यह प्रश्न पूछने तक का कष्ट किया गया था कि "महाशय आपके फोन का नंबर क्या था?" तथा कितने मामलों में call details को analyse किया गया है। अपराधियों की Call Details क्यों नहीं मंगाई जाती तथा उन्हें विवेचना का Part क्यों नहीं बनाया जाता ? उत्तर है-
ख़त जो आया है वहां से,
बंद रहने दो उसे।
उसमें पोशीदा हमारी,
जिंदगी का राज है।
इन Call Details मैं तमाम जनप्रतिनिधियों (भूतपूर्व एवं वर्तमान), पुलिस कर्मचारियों एवं अधिकारियों (वर्तमान एवं पूर्व में नियुक्त) के नाम मिलेंगे। क्या यह विवेचना का विषय नहीं है कि Odd Hours में तथा बार-बार तथा लंबे समय किस बिंदु पर विचार विमर्श होता था। Call Details के आधार पर Case भले कोई खोला गया हो किंतु 1% मामलों में भी Contacts को Identify नहीं किया गया है। क्या यह पुलिस द्वारा अपराध जगत को दिया हुआ खुला संरक्षण नहीं है?
(11) कुछ समय फरार रहने पर अपराधी पकड़ा जाता है। क्या 1% अपराधियों से भी पूछा गया कि "महाशय आप ने फरारी कहां काटी है?" Call Details से फरारी के समय से Location के आधार पर सैकड़ों लोगों का नाम Interrogation में सामने आएगा जिन्होंने शरण दी है। पत्नी तथा Advocate के अलावा किसी के पास जाने का अभियुक्त को अधिकार नहीं है। Notice देकर जहां जहां  location Call Details में आई है उनके बारे में बयान लेकर उन्हें Further Interrogation में क्यों नहीं पूछताछ की जाती है कि आपको Harbouring में क्यों न chargesheet किया जाए?
(12) हथियार कहां से आए? 
स्रोत क्या है?
हथियारों और कारतूसों की गंगोत्री कहां है?
पुलिस और PAC तक के कारतूस जांच में गायब मिले हैं तथा काफी लोग Chargesheeted हुए हैं। क्या एक भी IPS ऑफिसर की जिम्मेदारी तय की गई कि तुम्हारी Battalion या जिले में कारतूस अपराधियों तक कैसे पहुंचे? IPS अधिकारी Casual तथा Annual Inspection करते हैं। 
कारतूस गायब होते रहे- राजा को खबर तक नहीं?"
क्या बड़े बंगलों में रहने तथा पगड़ी और किराया वसूलने तक का ही काम बड़े अफसरों का रह गया है? यदि नहीं तो केवल तृतीय श्रेणी कर्मचारियों को छोड़कर एक भी Class2 अफसर या IPS को कारतूस घोटाले में Jail क्यों नहीं भेजा गया? 
क्या DIG और IG inspection नहीं करते?
क्या उनकी Supervisory Responsibility नहीं? 
यदि Scams में Central Government के Secretary न केवल chargesheeted बल्कि convicted भी हो सकते हैं तो कारतूस घोटाले में IPS बेदाग कैसे? इसको IAS Officer क्यों नहीं उठाता है? इसका उत्तर अगले Paragraph में।
(13) यदी कारतूस वाले प्रकरण को छेड़ा जाएगा तो SDM, ADM तथा DM को भी जेल की हवा खानी पड़ सकती है- इस नाते इसमें IPS को नहीं खींचते। थानों को check करने की जिम्मेदारी Executive Magistrate की भी होती है।
Head of Criminal Administration सुनने में बड़ा अच्छा लगता है लेकिन इसकी जिम्मेदारी भी तो निभानी पड़ेगी।
मीठा मीठा गप्प गप्प
कड़वा कड़वा थू थू
यह जवाब Executive Magistrate को भी देना पड़ेगा कि उन्होंने Inspection में क्या पाया? इसके अलावाArms Shops को Check करने की जिम्मेदारी भी CO+SDM की है तथा यह सुनिश्चित करना SSP+DM तथा DIG+ Commissioner का दायित्व है । आखिर Monthly meetings क्या चाय नाश्ता करने तथा गपशप करने के लिए हैं?
मैं मुख्यमंत्री जी से निवेदन करुंगा कि वे अलग-अलग शहरों में At Random 5 Arms Shop पर खड़े हो जाएं तथा बाहर के अफसरों की टीम से तत्काल (मैं तत्काल लिख रहा हूं क्योंकि 24 घंटे का भी समय मिला तो रिकॉर्ड ठीक हो जाएगा) simultaneous team भेजकर Check कर लिया जाए कि जिन लोगों को कारतूस तथा हथियार बेचे गए हैं-
-क्या वे लोग इस धरती पर हैं भी या नहीं?
- कभी उस नाम के लोग पैदा भी हुए या नहीं?
-उनके लाइसेंस फर्जी हैं या असली?
तो पाया जाएगा कि हथियार तथा कारतूस ऐसे लोगों को बेचे गए हैं जो non existent हैं अथवा हैं तो उनके license पर ये कारतूस चढ़े नहीं मिलेंगे-उनको दिए ही नहीं गए हैं। यही कारतूस आतंकवादियों तथा नक्सलियों को बेचे जाते हैं। जिन जिलों के DM तथा SP सर्वाधिक ईमानदार माने जाते हों -उनके शस्त्रागारों के हथियार तथा कारतूसों की बिक्री का Simultaneous Verification (ध्यान रहेsimultaneous) करा लिया जाए तो यही स्थिति बिल्कुल true copy attested मिलेगी। लोग कहते हैं कि अमुक अफसर या नेता बहुत इमानदार है- हम उसकी ईमानदारी को लेकर ओढ़ेंगे कि बिछाएंगे- यदि उसके जिले के कारतूस अपराधियों तक बेरोकटोक पहुंचते रहेंगे। इस बिंदु परstanding orders हैं पर इनका फर्जीवाड़े में पालन हो रहा है। यह सरकारी शस्त्रागारों तथा private arms shop का कारतूस घोटाला किसी चारा घोटाला या coal scam से अधिक खतरनाक है।
हाथ कंगन को आरसी क्या? पढ़े लिखे को फारसी क्या?
जो IAS/IPSअपने को इमानदार समझते हों वे अपने जिले की arms shop का simultaneous verification करा कर देख लें यदि वह पैसा पा रहे हों तो भगवान उनका भला करे तथा यदि मात्र मस्ती में इतना बड़ा अनाचार खुल्लम-खुल्ला हो रहा हो - तो कहीं ना कहीं उनकी आत्मा कर्तव्य की उपेक्षा के लिए अवश्य धिक्कारेगी। Simultaneous Verification से मेरा अभिप्राय है कि जिस दुकान का Verification हो रहा हो उसी दुकान में बैठकर SDM +CO मोबाइल फोन से जिले के, मंडल के, प्रांत के, प्रदेश के SO को फोन करें कि आपके जिले के अमुक लाइसेंसी के नाम कारतूस बिके दिखाए गए हैं जरा तत्काल उसके लाइसेंस को कब्जे में लो तथा देखो कि ये कारतूस चढ़े हैं या नहीं और यदि चढ़े हैं तो क्या Licensee के पास हैं या नहीं तथा उनका हिसाब क्या है?
केवल एक मामले की गहराई से विवेचना कर ली जाए तो फरारी में समय काटने के समय कहां कहाँ location थी कारतूस आदि की प्रश्नोत्तरी आदि से एक मामले में सैकड़ों सफेदपोश लोग जेल जाएंगे।
यदि उपरोक्त बिंदुओं को लेकर गहराई से कार्यवाही नहीं होती है तो नेता का दामन इतना गंदा हो चुका है कि उसकी आड़ में प्रशासन का 10 गुना गंदा दामन छिपा रहेगा। जिन बिंदुओं को मैंने उठाया है उन पर 99% मामलों में जांच ही नहीं होती है- किस नेता ने रोका है?
मात्र Inspector पर सख्ती करने से कुछ नहीं होने वाला, जब तक Supervisory Responsibility fix करके IPS तथा PPS Cadre को accountable नहीं बनाया जाता। Counter से कुछ भला नहीं होने वाला- सख्ती counter productive होगी-अगर अपराध की गंगोत्री पर चोट नहीं होती है।
V.P.Singh के युग से अधिक encounter संभव नहीं है। किंतु VP Singh के भाई माननीय HighCourt के Justice की हत्या हुई तथा अराजकता के माहौल में V.P.Singh को इस्तीफा देकर भागना पड़ा। योगी जी अगर इन Points पर दृढ़ता दिखा दें तो अपराध रूपी रावण की नाभि का अमृत सूख जाएगा।

Sunday, 28 May 2017

सहारनपुर एक समीक्षात्मक अध्ययन-प्रशासनिक तथा राजनैतिक समाधान

गौरक्षकों को कहा जा रहा है कि कानून हाथ में न लें। किंतु राणाप्रताप की शोभायात्रा यदि गलत भी निकाली जा रही थी तो इसकी शिकायत प्रशासन से की जानी चाहिए थी तथा दलितों को कानून हाथ में लेने का अधिकार क्या था?
इसकी चर्चा करने को कोई तैयार नहीं है।
पुनः आखिर किस संविधान की धारा में लिखा गया है कि कोई नया काम नहीं किया जाएगा?
मैं जब युवा था तो कहीं भी दुर्गा पूजा इस पैमाने पर नहीं होती थी जैसे अब होती है। गणपति बप्पा का प्रचलन तो अभी चला है "छठ-पूजा" बिहार से फैल रही है। परशुराम जी के उत्सव न के बराबर होते थे। हर जिले में-हर कस्बे में हजारों चीजें नई हुई हैं जो पहले नहीं होती थी। क्या इस बात की जांच नहीं होनी चाहिए कि राणाप्रताप की शोभायात्रा में ऐसी क्या बुराई थी कि इसकी अनुमति नहीं मिली?
किसी लेखपाल ने या SDM ने या बीट के सिपाही या SO/CO ने अपने कारणों से पत्रावली को उलझा दिया होगा तथा अनुमति नहीं मिली होगी।
क्या मुख्यमंत्री एक श्वेत पत्र प्रकाशित करेंगे कि अनुमति क्यों नहीं दी गई?
अनुमति न मिलने का एकमात्र कारण है- कलियुग जो राजा के मुकुट में बैठ गया है- जो गुमराह कर रहा है कि सारी बुराइयां योगी जी की युवा वाहिनी में और उनके क्षत्रिय समाज में ही है।
योगी जी को ध्यान में रखना होगा कि चेलों के बूते ही वह योगी जी हैं वरना शत्रुघ्न सिन्हा या वरुण गांधी होते। दूसरे पक्ष की गलतियों को छुपाकर केवल चेलों की गलतियों को सामने लाया जा रहा है।
चलिए अगर अनुमति नहीं मिली तो प्रारंभ में ही Starting Point पर इसे क्यों नहीं रोका गया?
मैंने पूर्ण जांच तो नहीं की है किंतु SDM की भूमिका की भी गहराई से जांच होनी चाहिए कि अनुमति देने अथवा Refuse करने से लेकर शांति व्यवस्था बिगड़ने तक में उनकी क्या भूमिका थी?
प्रारंभ में ही रोक लिया गया होता तो क्षत्रियों तथा दलितों में संघर्ष की नौबत न आती।
फिर जुलूस पर दलितों को सीधी कार्यवाही किन परिस्थितियों में करनी पड़ी?
इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
क्या Post Mortem Report सही है?
अखबारों में जो पढ़ने को मिला- वह समझ से परे है क्योंकि अखबार में मृत्यु का कारण जो बताया गया है वह उचित नहीं लगता-इसकी भी समीक्षा होनी चाहिए।
क्या कार्यवाही भीम सेना की ही थी?
यदि हां तो इसका प्रेरणास्त्रोत कौन था?
क्या घटना आकस्मिक थी या सुनियोजित?
इन सारे प्रश्नों का उत्तर ढूंढना होगा।
अब आता हूं पुलिस असफलता पर-Inspector को सजा देने से क्या होगा?
असली मगरमच्छों तक जाना होगा। Indian Express का May8 की खबर का सन्दर्भ लें। कुल 111 सिपाही आवंटित थे, जिनमें से मात्र 22 पोस्टेड थे।
इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
यह कहना कि Force की Shortage है-IAS/IPS का भौड़ा मजाक है।
केवल इसी बिंदु पर एक Class लेकर यदि मुख्यमंत्री जी Responsibility का निर्धारण करा लें, तो काफी Picture Clear हो जायेगी।
इसका Post Mortem प्रस्तुत किया जा रहा है
1.मान लिया जाए कि Fighting Force की Shortage है पर State level पर यह Shortage कितने % है?
पूरे प्रदेश में कितने % सिपाही कम हैं?-यह कमी मुश्किल से 20% से कम ही होगी।
जितनी भी हो- उससे अधिक कमी सहारनपुर में क्यों है?
उत्तर है- IG कार्मिक के दफ्तर में जो कारखास बैठे हैं, वे कमाऊ थानों/ चौकियों पर या ज़िलों में आवश्यकता से अधिक Staff भेज देते हैं।
जिस जिले में बवाल होता है, Law&Order Problem होती है, जहां जाने के लिए कोई सिपाही/दरोगा पैसा नहीं देता, वहां Vacancies पड़ी रहती हैं। यदि प्रदेश में जितने % Vacancies हैं, उससे अधिक % Vacancies यदि सहारनपुर में हैं( बावजूद इसके की सहारनपुर एक संवेदनशील जिला है)तो IG स्थापना तथा उनके अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों का निलंबन क्यों नहीं होना चाहिए?- इसका उत्तर जनता शासन से मांग रही है।
इसी तरह बुंदेलखंड में कोई Random Checking कर ले- Vacancies मिलेंगी। बुंदेलखंड की दस्यु समस्या की जड़ यही हैं।
रोजमर्रा की जिंदगी में रोटी न मिले तो Vitamin B-complex कब तक मोर्चा संभालेगा?
2. अब आइए Meerut Zone में कितने % रिक्तियां हैं? यदि मेरठ जोन में 80% रिक्तियां नहीं है तो संबंधित थानों में 80% रिक्तियां कैसे?-यह देखना क्या IG Zone Meerut का दायित्व नहीं है?
जिस कर्मचारी को Meerut Zone मिलता है वह पैसा खर्च कर Meerut Range पकड़ता है तथा Saharanpur Range निराश्रित अनाथ कर्मचारी जाते हैं।
111 सिपाहियों के Against(साक्षेप) यदि BADGAON में केवल 22 सिपाही तैनात हैं, तो ऐसी स्थिति क्या कभी साहिबाबाद थाने में रही अथवा कानपुर के कलेक्टरगंज या चकेरी में, लखनऊ के नाका में या चंदौली की जलालपुर चौकी में मुगलसराय तथा सय्यद रजा में कभी 80% कमी रही है?
यदि नहीं, तो यदि Offices की बेईमानी कारण नहीं है तो BADGAON थाने में ही क्यों?
Supervisiory Officers क्या केवल पगड़ी और किराया वसूलने के लिए हैं?
क्या SSP/Add.SP मनमाना Transfer/Posting निरंकुश भाव से न करें- इसका Supervision उनका दायित्व नहीं है?
Meerut Zone में जितने% रिक्ति है उससे अधिक %रिक्ति Saharanpur Range में न हो- यह IG Zone Meerut तथा उनके Staff की सीधी Responsibility(Direct)है तथा SSP Disproportionate नियुक्ति न करने पाएं- यह उनकी Supervisiory Responsability है। यह असंभव है कि IG Meerut के यहां 80% रिक्ति हो। यदि हां, तो उन्हें लिखित तथा मौखिक रुप से गंभीरता से इसे DG के समक्ष उठाना चाहिए था।
3.फिर क्या DIG Saharanpur के यहां 80% रिक्ति थी?
यदि नहीं तो BADGAON में 80% रिक्ति कैसे हुई? इसकी जिम्मेदारी IG Meerut वाले पैरा में बताये गए pattern पर DIG Saharanpur तथा उनके स्टाफ की भी होनी चाहिए।
4.क्या सहारनपुर में 80% रिक्तियां हैं? यदि नहीं तो SSP Saharanpur तथा Add.SP से जवाब लेकर प्रदेश की जनता को बताना होगा कि BADGAONमें क्यों है?
क्या जनता के जीवन से खिलवाड़ करके Transfer/Posting का उद्योग चलाया जाएगा तथा सिपाही/दरोगा जहां चाहेंगे वहां मर्जी से Posting लेंगे?
5. एक-एक सिपाही का सहारनपुर में Duty-Chart मंगा लिया जाए कि उसने क्या Duty की है? पुलिस में कारखास प्रथा इतनी जटिल हो गई है कि बिना इसके प्रभावी समापन के कानून व्यवस्था का सुधरना असंभव है।
87 में केवल 17 सिपाही, 17 में से केवल एक Head Constable तथा 7 में से 3 SI नियुक्त थे तथा बाकी पद खाली थे। SO के अनुसार 13 duty करते हैं। बाकी 22-13=9 कार्यालय का कार्य करते हैं।
यह कार्यालय क्या है?
13 के कार्य के कार्यालय के लिए 9 लोग?
इनमें से अधिकांश कारखास हैं जो सुबह से शाम तक केवल वसूली अभियान में लगे रहते हैं। स्वयं SO के बयान के अनुसार 22 में से केवल 13 Field की Duty में हैं। कारखास तथा दागी सिपाहियों में अंतर है। दागी सिपाहियों से बहुत DG लड़े किंतु कारखास से केवल J.N. Chaturvedi सफलतापूर्वक तथा श्री राम अरुण असफलतापूर्वक पंजा मिलाने की कोशिश किए। कारखास क्या है इसे जानना हो तो श्रीराम अरुण DGP के जमाने की Transfer पत्रावली खोल ली जाए।
उन्होंने पूर्वांचल के कारखास लोगों का सुदूर स्थानांतरण करने का साहस दिखाया किंतु अधिकांश पुनः अपनी जगहों पर आदेश निरस्त करवाकर लौट गए। अभी भी उस List के 70% लोग सेवा में वर्तमान है। यदि वह List केवल खोज ली जाए तो एक Starting Point मिल जाएगा। DG Office के कारखासों का बड़ा कड़ा दमन J.N.Chaturvedi ने किया था।
दागी सिपाही वे होते हैं जो SO की मर्जी के खिलाफ अपराधियों के Touch में रहते हैं तथा कारखास वे हैं जो SO द्वारा अपराध जगत को Deal करने के लिए नामित राजदूत हैं। कारखास को कोई छोड़ नहीं पाता क्योंकि विपक्षी दलों के लोगों से पैसा लेकर वे उनके उलझे कार्य कराते हैं। भाजपा के शासन में ये सपा, बसपा तथा कांग्रेस के संकटमोचक रहेंगे तथा जब तक सपा-बसपा का शासन था तब तक ये भाजपा के सेवादार थे। कारखासों को सब की जरूरत है तथा सभी को कारखासों की। वे सर्वप्रिय हैं, सर्वदलीय सहमति है कि वे अपरिहार्य हैं। कानून व्यवस्था के लिए कारखास सबसे बड़े खतरे हैं। कितने सचिवालय के कर्मचारियों के घरों पर, कितने रसूखदार Retired IAS/IPS के दरवाजों पर ये कारखास Duty बजाते हैं जबकि कागज में वहां कोई पद Sanctioned नहीं है। हर कार्यालय में Jawahar Bhawan से लेकर Indira Bhawan etc. तक यह जिलों से attached है जहां allocation नहीं है। इनकी तनख्वाह कहीं और से निकलती है तथा Attendance कहीं और होती है-- ऐसे हजारों कारखास हैं।
जैसे कभी जमीदारी प्रथा टूटी, जैसे नोटबंदी हुई-वैसे ही यदि कारखास प्रथा टूट जाए तो अपराधियों का आधा मनोबल टूट जाएगा तथा पुलिस का मनोबल दूना हो जाएगा। कार खास Staff इतना सशक्त है कि अपने Boss के Boss के Boss की Transfer/Posting में दखल देता है। केवल कारखास सिपाहियों के Assets की जांच करा ली जाए तो IPS Officers की इनके आगे कोई आर्थिक हैसियत नहीं है। हालात यहां तक बिगड़ गए हैं कि ये चंदा कर अपनी Choice का Inspector तथा CO तो पोस्ट कराते ही हैं SSP तथा DIG भी अपनी मर्जी का बैठाने के लिए Lobbying तथा चंदा करने लगे हैं। यदि कारखास प्रथा समाप्त नहीं हुई तो 10 वर्षों के बाद हो सकता है IG वगैरह की स्थिति मीर जाफर तथा मीर कासिम की हो जाए तथा यह कारखास East India Company की हैसियत में आ जाएं।
#आखिर_सहारनपुर_समस्या_का_राजनीतिक_समाधान_क्या_है?
क्यों ऐसी घटनाएं हो रही हैं?
उत्तर है-भाजपा की तुष्टिकरण की नीति।
मेरा सुझाव है कि सब के साथ समानता का व्यवहार किया जाए तथा तुष्टिकरण किसी का न हो- चाहे जाति के आधार पर या धर्म के आधार पर।
सहारनपुर कांड की नींव तभी पड़ गई थी जब उत्तर प्रदेश सरकार ने परशुराम तथा महाराणा प्रताप के जन्मदिन का अवकाश रद्द कर दिया तथा बुद्ध और डॉ.अंबेडकर के जन्म दिन के अवकाश को बहाल रखा- गांधीजी भी यथावत अवकाश दाता बने रह गए। यह तुष्टीकरण की पराकाष्ठा थी। मैं सरकार की किसी नीति का न तो समर्थन कर रहा हूं और ना ही विरोध- मात्र विश्लेषण प्रस्तुत कर रहा हूं। यह किसी भी निर्वाचित सरकार का विशेषाधिकार है कि वह अवकाश दे या न दे। किंतु सरकार को यह अधिकार नहीं है कि भेदभाव बरते। सरकार यदि ईद का अवकाश निरस्त कर दे तथा होली या दिवाली का अवकाश बरकरार रखे तो स्पष्ट संकेत जाएगा कि मुसलमान दोयम दर्जे का नागरिक हो गया है तथा भारत एक हिंदू राष्ट्र बन गया है-चाहे यह घोषणा हो या न हो। इसके विपरीत यदि दशहरा,दिवाली का अवकाश निरस्त हो जाए तथा ईद,बकरीद का बरकरार रहे तो संदेश साफ होगा कि भारत अब दारुल-हरब से दारुल-इस्लाम में बदल चुका है चाहे निजामे-मुस्तफा की घोषणा की जाए या नहीं।
इसी क्रम में भारत में परशुराम तथा बुद्ध दोनों को भगवान का अवतार माना गया है। बुद्ध का अवकाश कायम रखते हुए परशुराम के अवकाश को निरस्त करना इस बात का सूचक है कि भारत एक बौद्ध देश हो गया तथा सनातनधर्मी ब्राह्मण अब दोयम दर्जे का नागरिक हो गया। ब्राह्मण बुद्धिजीवी था, उसने समय की नजाकत को समझा।
मोदी जी ने लंदन में पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि भारत गांधी और बुद्ध का देश है। यह राम, कृष्ण, परशुराम, सुभाष, सावरकर तथा गोलवलकर के व्यक्तित्व और कृतित्व को पृष्ठभूमि में डालने वाला बयान था। पुनः देखा गया कि न केवल आरक्षण बल्कि असीमित आरक्षण, बैकलाग, प्रमोशन में आरक्षण तथा सिविल राइटस् एक्ट की जगह संशोधित अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम2016 को समर्थन देने वाले तथा इसको पारित कराने के लिए हाथ उठाने वाले दिग्गज ब्राह्मण, जिनके हाथ में फरसा उठाने की ताकत है, परशुराम जन्मोत्सव में मंच पर विराजते हैं, तो मनुवादी पार्टी ने स्पष्ट निर्णय लिया कि उसका कोई पदाधिकारी ऐसी किसी भी परशुराम यात्रा में सम्मिलित नहीं होगा जिसमें मोदी,सोनिया, मायावती, सपा आदि के हीरो आमंत्रित हों। परशुराम जी से क्षमायाचना कर ली गई कि जब तक हमारे हाथों में फरसा उठाने की शक्ति नहीं, तब तक हम आपके पिता श्री जमदग्नि के पदचिन्हों पर चलेंगे।
जो समाज जमदग्नि नहीं पैदा कर सकता, उसमें परशुराम का आविर्भाव नहीं हो सकता।जब जमदग्नि का गला कटता है तब किसी परशुराम का फरसा उठता है। यही विवेक क्षत्रियों में न आ सका, वह नहीं समझ सके कि योगी जी महंत दिग्विजयनाथ के मठ में उत्तराधिकारी हैं किंतु राजनीति में वह भाजपा में विलीन हो चुके हैं। राजा भैया की तरह उन्होंने सीमित क्षेत्र में भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व बरकरार नहीं रखा है बल्कि मोदी के सामंत हैं- उन मोदी के जो भारत को गांधी और बुद्ध का देश घोषित करने के बाद अंबेडकर साधना में लीन होकर अंबेडकरमय हो गए हैं तथा Promotion में Reservation का वार तत्काल होने जा रहा है तथा इसकी घोषणा भी हो चुकी है और Backlog तथा Private Sector में Reservation आने वाले हैं। मनुवादी पार्टी ने अपने क्षत्रियों को समझाने की कोशिश की कि बिना "हनुमान लला" की साधना के राम नहीं मिलते तथा बिन "राधे राधे" जपे कृष्ण सुलभ नहीं होते।
इसी क्रम में राणाप्रताप बनने से पहले झाला बनने की तैयारी करें
राणा बनने की चाह नहीं,
मुझमें इतनी है शक्ति कहां?
मां तेरी पावन पूजा में,
झाला सा शीस चढ़ा पाएं।
क्षत्रिय समाज को हम नहीं समझा सके कि अंबेडकर तथा गांधी के आगे राणा प्रताप को तथा बुद्ध के आगे परशुराम को महत्वहीन बताने वालों के साथ महाराणा प्रताप की शोभायात्रा नहीं निकल सकती। अब मोदी राज में परशुराम को बुद्ध की तथा राणा प्रताप को गांधी तथा अंबेडकर की दया पर रहना होगा। वोट आरक्षणसमर्थकों को दिया जाए तथा यात्रा निकाली जाए- परशुराम या राणा प्रताप की-यह Combination नहीं चलने वाला।
वक्त ने करवट बदली जिसका अंदेशा था,वही हुआ। हंसने और गाल फुलाने की एक साथ कोशिश हुई, परिणाम सामने है-यह घटना मायावती के समय में नहीं संभव थी- यह घटना अगर केशव मौर्य मुख्यमंत्री होते तो भी न होती। क्षत्रियों ने योगी का तथा पुराने संघ का चेहरा देखा था जहां "वन-वन स्वतंत्रता दीप लिए फिरने वाले बलवान" की पूजा होती थी। हल्दीघाटी लिखने वाले श्याम नारायण पांडे सम्मानित होते थे-क्षत्रियों की समझ में नहीं आ पाया कि अब भाजपा का वातावरण अंबेडकरमय है तथा राणा प्रताप की शोभायात्रा निकालना भी अपराध है। "हल्दीघाटी" तथा "जौहर" पूरे भारत के पाठ्यक्रम से बहिष्कृत है-आज गुरु जी गोलवलकर सरसंघचालक होते तो भी यह घटना नहीं घटती क्योंकि तब भीम सेना को पता होता कि राणा प्रताप की शोभायात्रा नहीं रुकेगी। क्षत्रियों को यह कल्पना नहीं थी कि संघ राणा प्रताप की यात्रा, गोरक्षा तथा हिंदू युवा वाहिनी के नाम पर योगी की Class लेगा। क्षत्रिय नहीं समझ पाया कि जब मात्र चार बच्चे पैदा करने के साध्वी के आह्वान पर RSS बुदबुदाने लगता है कि औरत बच्चा पैदा करने की Factory नहीं है।
ब्राह्मणों ने इस Writing on the wall को पढ़ा तथा परशुराम को सादर प्रणाम करते हुए परशुराम के नाम पर आयोजनों से दूरी बनाते हुए जमदग्नि के पथ पर चलने का निर्णय लिया। प्रशासन भी दुविधाग्रस्त था वह न तो शोभा यात्रा की अनुमति दे पाया और ना ही उसे Effectively रोक पाया।
मात्र योगी सरकार एक लाइन का निर्णय ले ले कि राणा प्रताप तथा परशुराम जयंती का अवकाश बना रहेगा अन्यथा बुद्ध,अंबेडकर गांधी,नेहरु के भी अवकाश समाप्त होंगे तो ऐसी घटनाएं घटित नहीं होंगी। यदि स्पष्ट शब्दों में यह संदेश सुना दिया जाएगा कि अब बुद्ध और गांधी तथा अंबेडकर का ही मान-सम्मान रहेगा तो भी दुविधा का माहौल नहीं रहेगा- रिमझिम बरसात में कच्चे मकान ज्यादा गिरते हैं। शासन तथा प्रशासन जब अनिर्णय के शिकार होते हैं तब शांति व्यवस्था की समस्याएं सिर उठाती हैं। मायावती के शासन में यह समस्याएं नहीं उठी क्योंकि सबको पता था कि ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों के लिए मायावती के Store में क्या है।

Friday, 12 May 2017

#ये_बाण_किसके_हैं_मायावती_के_अथवा_आनंद_के? #नसीमुद्दीन_मुनाफिक_हैं_मुसलमानों_को_उनसे_कोई_सहानुभूति_नहीं।

#ये_बाण_किसके_हैं_मायावती_के_अथवा_आनंद_के?

#नसीमुद्दीन_मुनाफिक_हैं_मुसलमानों_को_उनसे_कोई_सहानुभूति_नहीं

अगर मायावती का वही स्वरुप है जो नसीमुद्दीन, स्वामी प्रसाद मौर्या, जुगुल किशोर और आर के चौधरी बताते हैं तो यदि मायावती गिरोह की मलिका थीं तो ये चारों इनके शार्प शूटर।
लोगों को लग रहा है कि मायावती बिखर रही हैं किन्तु ऐसे विचार वाले लोग यह भूल जाते हैं कि पैर में फीलपॉव हो जाने से न तो पैर की ताकत बढ़ती है और न ही गले में घेंघा हो जाने से आवाज सुरीली हो जाती है।
यह ऑपरेशन आनंद का पहला अध्याय है और कई बार मायावती यह मन बना चुकी थी कि नसीमुद्दीन को kick करना है किन्तु मायावती के पैर पकड़ कर नसीमुद्दीन वगैरह उनके गुस्से को ठंडा कर लेते थे।
बसपा की शैली प्रारम्भ से ही मनुवादी रही है। जिस प्रकार प्राचीन काल में राजाओं के दरबार में केवल एक सिंहासन होता था तथा ऋषियों के आश्रम में केवल महर्षि का आसान होता था तथा शेष सभी लोग जमीन पर बैठ कर स्वयं को धन्य समझते थे उसी प्रकार कांशीराम और मायावती के अलावा किसी के नसीब में कुर्सी पर बैठना नहीं लिखा था।
सतीश मिश्रा और शशांक शेखर के युग में यह परम्परा कुछ कमजोर पड़ी किन्तु जिस प्रकार चरण पकड़वाना ब्राह्मण की तथा चापलूसी करवाना क्षत्रिय की कमजोरी रही है उसी प्रकार यह दोनों ही विशेषतायें बसपा में रहते हुए भी मायावती को मनुवादी संस्कारों से ओत प्रोत बनाये रखी।
काशीराम में अहंकार भले रहा हो किन्तु चरण पकड़वाना और चापलूसी सुनना काशीराम की कमजोरी नहीं थी।
इन कमजोरियों के चलते जैसे शरीर में कफ़ भर जाता है वैसे ही बसपा में तमाम अवांछनीय तत्व भर उठे जिनके वजह से बसपा को जो भी लाभ हुआ हो, उससे सौ गुना नुकसान हुआ।
जब कभी मायावती अपनी आँखें तरेरती थीं तब तब यह लोग चरणों में लेटकर अभयदान ले लेते थे। कुछ लोगों को आसानी से गुमराह किया जा सकता है तथा दो टके के बिना किसी जनाधार के नेता इस प्रकृति के प्रयास किया करते हैं।
राजीव गांधी से लेकर राहुल गांधी तक के युग में दिग्विजय सिंह जैसे तमाम नेता इंदिरा गांधी के जमे जमाए साम्राज्य को दीमक की तरह चाट गए।
इसी तरह रामगोपाल यादव जैसे महान जन नेता मुलायम सिंह जैसे धरती पुत्रों के लगाए हुए मधुमक्खी के छत्ते की सारी शहद चाट जाते हैं। मायावती देखने में कितनी ही कठोर क्यों न रही हों किंतु उनके कार्यकाल में चापलूसों की पौ बारह रही तथा वे निर्णायक कदम नहीं उठा पाईं। अखिलेश यादव तथा राजीव गांधी की भांति मायावती भी जितना बदनाम हुईं उसका 10 प्रतिशत भी न कमा सकीं। यदि राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव तथा मायावती जैसी महान हस्तियों को रुपया लेने की ही तमीज होती तो यादव सिंह जैसे अधिकारी कहाँ से पैदा होते जिनके पास अथाह संपदा होती। तमाम तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों के यहां छापों में कुबेर की संपदा मिली है IAS अफसरों के पास तो अकूत सम्पत्ति भरी पड़ी है कि योगीजी के बार बार निर्देश देने के बावजूद वे यह सूची नहीं बना पा रहे हैं। आज भी केवल उत्तर प्रदेश कैडर के अफसरों की सूची देख ली जाए कि कौन कौन से अधिकारियों के नाम Deputation में क्लियर हुए हैं तो इनमें से तमाम ऐसे अधिकारी चुने गए हैं जिनके विरुद्ध न केवल CBI द्वारा भ्रष्टाचार की जांचे की जा रही हैं बल्कि ऐसे तमाम अधिकारी हैं जिनके विरुद्ध आरोप प्रमाणित होने के बाद CBI ने अभियोजन की स्वीकृति मांग रखी है। जिनके विरुद्ध CBI द्वारा अभियोजन की स्वीकृति मांगी गई है ऐसे IAS अफसरों का चयन केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए कैसे किया गया - वह भी मोदी सरकार तथा योगी सरकार द्वारा- यह शोध का विषय है। ये महापुरुष हर सरकार के चहेते रहे हैं। यदि मुलायम सिंह यादव तथा इंदिरा गांधी कभी कोई गलत काम भी करते तो इन महान अधिकारियों को कुछ चूरन चटनी चाटने को मिल गई होती तथा बीच के पार्टी नेता भी पापी पेट को शांत करने के लिए कुछ पा जाते किंतु अधिकांश भाग दिहाड़ी मजदूर चाट जाएं और मालिक को चूरन चटनी मिले- ऐसा इंदिरा गांधी और मुलायम सिंह के जमाने में संभव नहीं था। इंदिरा गांधी और मुलायम सिंह यादव ईमानदार थे या बेईमान इसकी कोई व्याख्या मैं यहां नही कर रहा हूँ मैं केवल इतना कहना चाह रहा हूँ कि मोटा माल कोई और खाये तथा बोफोर्स की हड्डी राजीव के गले में अटके ऐसा इंदिरा जी के जमाने में कोई सोच नही सकता था। जिस विश्वनाथ प्रताप सिंह की घिघ्घी इंदिरा गांधी के चेलों चमचों के आगे बंध जाती थी वे राजीव गांधी के जमाने मे शेर की तरह दहाड़ने लगे। राहुल गांधी के जमाने में अहमद पटेल जैसे लोग मालिक बने बैठे रहे तथा सोनिया उनके हाथों की कठपुतली बन गई। मायावती तथा अखिलेश- बुआ तथा बबुआ के जमाने में IAS अफसर तथा सामंत मंत्री 90% मलाई चाट गए तथा मात्र कुछ चूरन चटनी मुख्य मालिक को मिली और बदले में मिला बदनामी का टोकरा। बीच के मंत्रियों ने भी मोटी रकम कमाई। मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि अखिलेश यादव तथा मायावती गरीबी रेखा के नीचे गुजारा कर रहे हैं लेकिन मैं मात्र इतना कहना चाहता हूं कि इनके सामंत और नौकर इनसे कहीं मजबूत हैं। इसी के बूते पर हवा में राजनीति करने वाले चिदंबरम जैसे नेता तक यह विचार व्यक्त करने की औकात रखने लगे हैं कि राहुल गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने लायक हैं या नहीं। कांग्रेस में प्रियंका गांधी और बसपा में आनंद-ये अच्छे या बुरे इसकी विवेचना मैं इस प्रसंग में नहीं कर रहा हूँ लेकिन इतना ध्रुव सत्य है कि कुकर्म नसीमुद्दीन करें और बदनामी आनंद झेलें- इतना बरगला सकने की औकात अब किसी नसीमुद्दीन में नहीं है। यह ठीक वैसे ही है जैसे सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में राहुल को पप्पू के नाम से बदनाम करा देने वाले कांग्रेस के महारथियों की औकात प्रियंका के बारे में एक बयान जारी करने की नहीं रह जायेगी। अगर कभी प्रियंका राजनैतिक रंगमंच पर आई तो दर्जनों कांग्रेसी महारथी ठोकर खाकर औंधे मुंह जमीन पर गिरे मिलेंगे। यह बसपा की राजनीति में आनंद युग का पहला अध्याय है तथा बहुत जल्द ही बसपा में कुछ और भी निर्णायक कदम उठाए जाएंगे। नसीमुद्दीन की वजह से बसपा को बहुत नुकसान उठाना पड़ा।नसीमुद्दीन ने किसी दमदार मुसलमान को बसपा में ससम्मान नहीं रहने दिया ताकि मायावती के सामने कोई दूसरा मुसलमान उनका विकल्प बन कर न उभर सके। इसी तरह सतीश मिश्रा ने किसी जनाधार वाले ब्राह्मण को बसपा में फटकने नहीं दिया।
Writing on the walls को पढ़ने से ऐसा लगता है कि आनंद युग का दूसरा झटका सतीश मिश्रा को मिलने की संभावना है तथा वे यह याद कर करके अपना सिर धुन रहे होंगे कि उन्होंने अपने समाज की कितनी सेवाएं की।

नसीमुद्दीन से मुस्लिम समाज को रंच मात्र भी सहानुभूति नहीं है। नसीमुद्दीन ने मुसलमानों को भड़काने के लिए लिखा है कि मायावती ने मुस्लिम उलेमाओं को कुत्ता तथा अन्य अपशब्द कहे। नसीमुद्दीन से कोई पूछे कि जब मायावती ने मुस्लिम उलेमाओं की तौहीन की तो उसी समय नसीमुद्दीन ने कम से कम पार्टी से इस्तीफा क्यों नहीं दे दिया तथा मुस्लिम उलेमाओं के लिए की गई गाली गलौज पर सम्प्रदायिकता फैलाने का मुकदमा क्यों नहीं कायम कराया?
आज भी वे मुस्लिम उलेमाओं के अपमान के लिए मुकदमा क्यों नहीं दर्ज करा रहे हैं?

हकीकत यह है कि रोटी के टुकड़े के लिए लड़ने वाले जीवधारी किसी भी उलेमा के अपमानित होने पर विचलित नहीं हो सकते और तब तक नहीं बोलेंगे जब तक न्यूटन के सेब की तरह अपमान की आफत उनके सिर पर न गिर पड़े। बात इस्लाम की करेंगे पर वास्तविक अर्थों में नसीमुद्दीन का इस्लाम से अथवा उलेमा से कोई मतलब नहीं है। वास्तविक अर्थों में वे मुनाफिक हैं जो देखने में मुसलमान लगते हैं लेकिन इस्लाम से उनका कोई लेना देना नहीं।

नौ सौ चुहिया खा के बिल्ली हज करने चली

ऐसे मुनाफिकों को उलेमा घास नहीं डालेंगे।

नसीमुद्दीन के हटाये जाने से मुस्लिमों में बसपा की पैठ और मजबूत होगी।

Monday, 8 May 2017

केजरीवाल के ऊपर लगाए गए आरोप 100%झूठे हैं। यदि केजरीवाल पर लगाए गए आरोप सही भी हों तो कम से कम कपिल मिश्रा की गवाही झूठी है।

केजरीवाल के ऊपर लगाए गए आरोप 100%झूठे हैं।
यदि केजरीवाल पर लगाए गए आरोप सही भी हों तो कम से कम कपिल मिश्रा की गवाही झूठी है।
भाजपा तथा कांग्रेस द्वारा केजरीवाल के इस्तीफे की मांग राजनैतिक नीचता है यद्यपि इस नीचता की शुरुवात केजरीवाल ने ही की थी तथा सुबह से लेकर शाम तक प्रधानमंत्री तथा शीला दीक्षित के विरुद्ध प्रलाप करने का उनको दिया हुआ ईश्वरीय दंड है।
21 साल की आयु में मैं IPS में भर्ती हुआ तथा मेरा अधिकांश सेवाकाल या तो जिले में बिता अथवा किसी विशिष्ट जांच एजेंसी में। बड़ी संवेदनशील जांचों को संचालित करने का अवसर प्राप्त हुआ किंतु कपिल मिश्रा के लगाए हुए आरोप मुझे सफेद झूठ लगते हैं तथा यदि वे आरोप सत्य पाए जाएं तो यदि मैं किसी जांच एजेंसी का DG होता तो मैं कपिल मिश्रा का उपयोग एक गवाह के रूप में नही बल्कि एक वायदा माफ गवाह के रूप में करता। एक गन्दा से गन्दा नेता या अधिकारी भी किसी ऐसे आदमी की जानकारी या मौजूदगी में नगद पैसा नहीं ले सकता जोकि बीच में दलाली न कर रहा हो अथवा सहभागी न रहा हो।
एक सिपाही तक जब किसी से पैसा लेता है तो वह पूरा प्रयास करता है कि दूसरे सिपाही न जानने पाएं वरना चर्चा होने पर विभाग के अन्य लोग अपना हिस्सा मांगेंगे।
भ्रष्टतम अधिकारी और नेता तक केवल उस व्यक्ति के समक्ष पैसा लेते देखे गए हैं जो किसी न किसी रूप में डील में पार्टनर हों। या तो कपिल मिश्रा सरासर झूठ बोल रहे हैं अन्यथा यह देन लेन तभी संभव है जब इस मामले में अथवा किसी अन्य मामले में कपिल मिश्रा केजरीवाल की दलाली करते रहे हों। वैसे न तो मुझे कपिल मिश्रा के चरित्र पर शक है और न ही केजरीवाल के। केजरीवाल को मैं इतना दोषी मानता हूं कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने चरित्र हनन की जिस घिनौनी राजनीति की नींव डाली केजरीवाल ने न केवल छत डाली बल्कि उसपर गुम्बद भी बना दिया। रात दिन प्रधानमंत्री मोदी तथा शीला दीक्षित को कोसने और उनपर झूठे आरोप लगाने के सिवा केजरीवाल ने कुछ खास नहीं कर दिखाया। विश्वनाथ प्रताप सिंह किसी जमाने में इसी प्रकार दावा करते थे कि बोफोर्स घोटाले के सारे सबूत उनके Pocket में हैं तथा राजीव ने विदेश में LOTUS के नाम से एक खाता खोल रखा है तथा इस खाते में अवैध धन जमा है। इस खाते का एकाउंट नंबर भी वे बांटते फिरते थे। राजीव भ्रष्ट थे अथवा नहीं मैं इस मुद्दे पर यहां चर्चा नही कर रहा हूं। किंतु यदि वे भ्रष्टतम भी होते तो भी LOTUS के नाम से खाता क्यों खोलते जो उनके राजीव नाम का अंग्रेजी अनुवाद था।
वे LILY अथवा ROSE या Wood रख सकते थे। इसी प्रकार केजरीवाल ने गैरजिम्मेदाराना ढंग से शीला दीक्षित तथा मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लगा दी। संभवतः कपिल मिश्रा द्वारा लगाए गए आरोप उन पापों के एवज में Divine Justice हों। ईश्वर न मरा है, न रिटायर हुआ है,न इस्तीफा दिया है और न ही उनके विरुद्ध कोई अविश्वास का प्रस्ताव पास हुआ है। ईश्वर केजरीवाल जैसे राजनैतिक शुचिता का ध्यान न रखने वाले लोगों के लिए कोई न कोई कपिल मिश्रा पैदा कर देता है। प्रशान्त भूषण ने अपने स्वभाव के विपरीत तथा योगेंद्र यादव ने अपने स्वभाव के अनुरूप जो मर्यादित टिप्पणी दी है तथा लगाए हुए आरोपों की गंभीरता से जांच करने की मैं मांग तो करता हूँ किंतु जब तक आरोप प्रमाणित नहीं होते हैं, तब तक मैं इन आरोपों को संज्ञान में लिए जाने लायक नहीं मानता।

Friday, 5 May 2017

80% भारतीयों को Backdoor से भारतीय नागरिकता से आज वंचित कर दिया गया

#माननीय_उच्चतम_न्यायालय_ने_निर्णय_दिया_था_कि जब दो लोग एक साथ, एक ही दिन, एक ही ग्रेड में, एक ही पद पर भर्ती हुए तथा साथ-साथ नौकरी की है तो उनमें से #किसी_को_भी_पिछड़ेपन_का_आधार_बनाकर_अपने_से_वरिष्ठों_को_लांघने_देना_असंवैधानिक_है
फिर भी इस निर्णय को ना मानकर इसके विरोध का रास्ता अपनाया गया तथा शिवसेना और समाजवादी पार्टी को छोड़कर समस्त राजनैतिक दलों ने इस निर्णय को पलटवाने के लिए हामी भरी तथा जैसे द्रौपदी के चीरहरण के समय भीष्म, द्रोणाचार्य तथा कृपाचार्य रोकना तो दूर उठकर कमरे के बाहर तक नहीं जा पाए, उसी प्रकार #जब_सवर्णों_पिछड़ों_तथा_अल्पसंख्यकों_की_जीविका_का_चीर_हरण_हो_रहा_था उस समय अधिकांश राजनैतिक दलों के सभी महारथी सामूहिक रुप से तालियां बजा रहे थे।
अब पुनः उस #माननीय_उच्चतम_न्यायालय_के_आदेश_को_निष्प्रभावी_बनाने_के_लिए_#संविधान_संशोधन_करने_का_निर्णय_लिया_गया_है तथा माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के तहत जो लोग प्रोन्नति पा गए थे उन्हें Revert करके अपने जूनियर अधिकारियों के अधीनस्थ काम करने के लिए विवश करने का निर्णय मोदी सरकार ने लिया है।
हर समझदार व्यक्ति यह सोचे कि क्या सवर्ण, पिछड़े तथा अल्पसंख्यक के घर में उत्पन्न होना कोई अभिशाप है कि माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के परिपेक्ष्य में प्राप्त राहत भी छीन ली जाए।
एक सप्ताह के मंथन के बाद अपनी रुचि और विवेक के अनुसार सभी सुधिजन यह निर्णय लें कि क्या करना समीचीन होगा?
मैंने पूर्व के लेखों में स्पष्ट भविष्यवाणी की थी कि उत्तर प्रदेश का विधान सभा चुनाव जीतने के बाद मोदीजी यह कदम उठाएंगे। चिंतन तथा आपसी विचार विमर्श के बाद अगली रणनीति की घोषणा की जाएगी।

मुख्य सचिव श्री राहुल भटनागर के नाम खुला ख़त

अगर भाजपा के मुख्य सचिव श्री राहुल भटनागर यह साफ़ कह सकते हैं कि पेट्रोल पम्पों की जांच के दौरान तेल की चोरी पकड़े जाने के बाद भी FIR या गिरफ़्तारी न की जाए तो अतीक अहमद, फूलन देवी, मित्रसेन यादव, अन्ना शुक्ला, विजय मिश्र तथा पंडित सिंह आदि-आदि पर कार्यवाही करने से रोकने की हिम्मत किसी दूसरे सरकार का मुख्य सचिव दिखाए- इसकी आशा कैसे की जा सकती है?
सभी को अपने अपने वोट बैंक की चिंता है।
कोई भी जांच FIR के बाद ही संभव है अन्यथा वह अवैधानिक है। अपने वोट बैंक से सभी को डरना पड़ता है।

Thursday, 4 May 2017

"गोधरा के मोदी" की गुमशुदगी की FIR लिखाओ कमिश्नर पुलिस दिल्ली तथा डी.जी. गुजरात के यहां

1.गोधरा के मोदी की गुमशुदगी की FIR लिखाओ कमिश्नर पुलिस दिल्ली तथा डी.जी. गुजरात के यहां।
2.जवानों का सिर तो उसी दिन कट गया जिस दिन पर्रिकर को रक्षामंत्री के पद से पदच्युत कर गोवा का मुख्यमंत्री बनाया गया।
3 जब राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री के पद को सिरे से खारिज कर दिए, तो फिर किस मजबूरी में पर्रिकर गोवा गए?
4 जवानों का सिर तभी कट गया जब जिस राजनाथ सिंह के नाम पर लोग ईमानदारी की कसमें खाते थे, जो नकल अध्यादेश तथा मिर्जापुर में नक्सलियों के उन्मूलन के हीरो थे, उन्हें TV पर आकर अपनी तथा अपने परिवार की ईमानदारी की सफाई देनी पड़ी।
5 वीरों! आज के युद्ध में प्रत्यावर्तन नहीं।
जिसे लौटना हो, लौट जाओ।
- समुद्रगुप्त।
6 चंद्रगुप्त (विक्रमादित्य) उठो! पहचानो रामगुप्त को- तभी बच पायेगी ध्रुवस्वामिनी।
7 भीमसेन! (जनरल वी.के. सिंह) कहां हो?
युधिष्ठिर के सत्य वचन का लिहाज छोड़कर दुर्योधन की जांघ तोड़ने तथा दुःशासन की छाती का खून पीने का ऐलान करो।
8 सवा लाख से एक लड़ाऊं
तब गुरू गोविंद सिंह नाम धराऊँ।
9 सौ बार सिज्दा करते थे अफगान औ पठान
ताक देता था नलवा कहीं जो तेवर भी बदल के।
10 कभी विदेशी मुगलों के था,
शासन में कुल हिंदुस्तान।
जिनके अन्यायों जुल्मों से,
काँप उठी भारत संतान।
निकल पड़े सिख जाट मराठा,
राजपूत तब सिंह समान।
मिटा दिया था क्षण भर में तब,
बहुत बड़ा वह पाकिस्तान।
इसकी क्या बिसात जब उसका,
मिलता नामों निशान नहीं।
अखंड हिंदुस्तान कभी,
रह सकता पाकिस्तान नहीं।
जिस समय बढ़ेंगे नौजवान,
गुजर औ जाट अहिरों के।
जिस समय बढ़ेंगे दल डोंगरे,
गोरखे मराठा वीरों के।
जिस समय जगेंगे फिर जौहर,
सिख राजपूत शमसीरों के।
जिस समय घिरेंगे फिर बादल,
भीलों के भाले तीरों के।
सन्मुख आकर टिक न सकेंगे,
अरब तुर्क ईरान कहीं।
अखंड हिन्दुस्तान कभी,
रह सकता पाकिस्तान नहीं।
भारतीय विदेशनीति के नियंताओं को यह ध्यान में रखना होगा कि जब पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण हो गया तथा उत्तरी वियतनाम और दक्षिणी वियतनाम एक राजनैतिक इकाई हो गए तो पाकिस्तान और भारत भले एक न हो पाये हों तथा भविष्य में भी एक न हो पाएं लेकिन भारत की दृष्टि में पाकिस्तान का वही अस्तित्व होना चाहिए जो चीन की निगाह में फार्मूसा(Taiwan) का है। यद्यपि अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए चीन ताइवान पर आक्रमण करके उसका बलपूर्वक एकीकरण नहीं कर रहा है फिर भी वह ताइवान को एक पृथक देश के रूप में मान्यता नहीं देता है तथा जब ट्रम्प जैसे शक्तिशाली व्यक्ति तक मात्र ताइवान के राष्ट्राध्यक्ष का फोन रिसीव कर लेते हैं तो चीन का राष्ट्रपति आँखे तरेरता है तथा ट्रम्प को भी अपनी सफाई पेश करनी पड़ती है तथा कोरिया मसले पर चीन का नैतिक समर्थन प्राप्त करने के लिए चीन के आगे घुटने टेक कर रिरियाना पड़ता है।अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए अमेरिका चीन तथा रूस के आपसी तनाव के मद्देनजर कोई महाशक्ति भारत से आंखें नहीं मिला सकती क्योंकि भारत अभी Superpower भले न हो किंतु Superpowers से Balance of power को Disturb करने की क्षमता तो रखता ही है।
11 जवानों के सिर उसी दिन कट गए जब कारगिल के युद्ध में लाल बहादुर शास्त्री तथा इंदिरा गांधी की तरह International Border Cross करना तो दूर, कश्मीर में LOC तक Cross करने की अनुमति सेना को भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेई से नहीं मिली।
12 जवानों के सिर तो उसी दिन कट गए जिस दिन बिना निमंत्रण के भारतीय प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के दरबार में हाजिर हुए- कम से कम मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान से दूरी बनाए रखी
"उपानहमुखभंगो वा दूरतो वा विसर्जनम्"
अर्थात दुष्ट कांटे की तरह होता है या तो उससे दूरी बनाए रखो अन्यथा जूते से मुख कुचल दो।
13 जवानों का सिर तो उसी दिन कट गया जिस दिन सुषमा स्वराज हरी साड़ी हरा ब्लाउज पहन कर पाकिस्तान में तुष्टीकरण(Appeasement) की पराकाष्ठा पार कर दी तथा तिरंगे का अपमान सहन किया।
14 जवानों का सिर तब तक कटता रहेगा जब तक भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी भारत को गांधी तथा बुद्ध का देश घोषित करते रहेंगे। पाकिस्तान समेत समूचे दुनिया को बताना होगा कि भारत को जितना गर्व गांधी और बुद्ध पर है, उस से कम गर्व सावरकर, हेडगवार गोलवलकर, पुष्यमित्र शुंग, पतंजलि, राम, कृष्ण तथा परशुराम पर नहीं है।
15 निसिचरहीन करौ मही
भुज उठाई प्रण कीन।
-तुलसीदास
यह एक प्रकार से Genocide का खुला ऐलान है। मानवाधिकार केवल मानवों के लिए है।
16 मोदी के नाम कृष्ण का खुला खत पढ़ें जो उन्होंने अर्जुन से कहा है
क्लैव्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप।।
अर्थात है अर्जुन तुम नपुंसक मत बनो। यह तुमको शोभा नहीं देता। हृदय की तुच्छ दुर्बलता को छोड़कर युद्ध करने के लिए खड़े हो जाओ।"
आधुनिक प्रसंग में अर्जुन =मोदी तथा कृष्ण=भागवत।
17 गोलवलकर हम शर्मिंदा हैं। राजनीति में Sodomyके समर्थक जिंदा हैं।
क्या 377 को Unconstitutional घोषित करवाने के लिए जनसामान्य को Sodomy तथा Homosexuality का अधिकार दिलवाने के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय का विरोध करने वाले रक्षा मंत्री पद पर बने रहने के योग्य हैं?
18 पर्रिकर को रक्षा मंत्री के पद पर कब तक वापस लाया जाएगा?
19 श्यामा प्रसाद मुखर्जी हम शर्मिंदा हैं Article370 संविधान में जिंदा है।
20गांधी की रक्षा करने को गांधी से भागो - दिनकर।
1962 के युद्ध के बाद जब जवाहर लाल नेहरू की खिसियाहट भरी आवाज देश ने सुना कि-"We were living in an artificial world of our own creations."
अर्थात अब तक हम अपनी ही बनाई हुई एक कृत्रिम दुनिया मे निवास कर रहे थे तो तत्काल गांधीवाद के मुखर प्रशंसक राष्ट्रकवि दिनकर की आंखें खुली तथा वे चीख पड़े कि-
गांधी की रक्षा करने को गांधी से भागो। "
अर्थात यदि गांधी के नाम की रक्षा करना चाहते हो तो गांधीवाद का परित्याग कर दो।
21 परशुराम की प्रतीक्षा, हल्दीघाटी, जौहर को Textbooks में Prescribe किया जाए।
22 गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
23 जवानों के सिर तब तक कटते रहेंगे जब तक JNU में सेना पर बलात्कार का आरोप लगाने वालों, मानवाधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाने वालों, कश्मीर की आजादी की बात करने वालों तथा उनके साथ जुलूस में चलने वालों तथा उनके समर्थक राजनेताओं पर Day-to-day सुनवाई कर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा नहीं चलाया जाएगा। क्या इसके लिए Pakistan से सहमति चाहिए? क्या UNO बाधक है?
24 जवानों के सिर तब तक कटते रहेंगे जब तक मां दुर्गा को, भारत मां को गाली देने वालों तथा मनुस्मृति जलाने वालों के साथ वही कार्यवाही नहीं होगी जो कमलेश तिवारी के साथ हुई थी। एक देश में दो Design के कानून नहीं चल सकते।
25 जवानों के सिर तब तक कटते रहेंगे जब तक समस्त पत्थरबाजी करने वालों तथा आतंकवादियों को बचने में सहयोग करने वालों के विरुद्ध 120-B का आरोप पत्र नहीं भेजा जाता तथा उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाने का कानून नहीं बनता।
Summary Trial की व्यवस्था हो जिससे त्वरित नयाय हो।
26 सेना की सर्जिकल स्ट्राइक का मजाक उड़ाने वाले राजनेताओं पर प्रभावी कार्यवाही तो दूर कोई Token कार्यवाही तक क्यों नहीं की गई?
उनका संसद से Expulsion क्यों नहीं हुआ? मोदी से देश जवाब चाहता है।
27 जवानों को थप्पड़ मारने वाले लोगों की पहचान कब तक होगी?
क्या थप्पड़ खाकर भी जवान आत्मरक्षा का प्रयोग न कर सकें- इसके लिए पाकिस्तान दोषी है?
28 P.D.P. की महबूबा मुफ्ती सरकार को कब तक बर्खास्त कर वहां किसी के.पी.एस. गिल अथवा वी.के.सिंह जैसे व्यक्ति को राज्यपाल बनाया जाएगा?
29 पत्थर फेंकने वालों की Counselling हो रही है तथा बिना मारे पीटे मात्र जीप में बांध देने पर जवानों पर कार्यवाही हो रही है- जब तक यह शिष्टाचार किया जाएगा तब तक जवानों के सिर कटते रहेंगे।
30 "नेहरु जी के दोनों भाई"
"शेख अब्दुल्ला चाऊ एन लाई।" का नारा देने वाली भाजपा पीडीपी को बहन बनाकर रोहिंग्या शरणार्थियों को जम्मू में प्रवेश देकर अगले 10 वर्षों में जम्मू से स्थानीय लोगों के बहिर्गमन (Exodus) की नींव डाल रही है। क्या इसके लिए Pakistan जिम्मेदार है?
31 पत्थरबाजों के पक्ष में बयान देने वाले फारुख अब्दुल्ला को कब तक मुकदमा कायम कर गिरफ्तार किया जाएगा?
यदि राजनैतिक शिष्टाचार निभाया गया तथा जैसे पहले भाजपा उनसे हाथ मिला चुकी है उसी प्रकार भविष्य में भी उनसे हाथ मिलाने के Options खुले रखे गए तो जवानों के सिर कटते रहेंगे।
32 पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वालों तथा पाकिस्तान का झंडा फहराने वालों को राष्ट्रदोह में कब तक बंद किया जाएगा?
NSA(रासुका) किसके लिए बनी है?
33 क्या गोवा में कांग्रेस की सरकार को रोकना राष्ट्रीय सुरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है जो पर्रिकर को रक्षा मंत्री पुनः नहीं बनाया जा सकता?
34 कमजोर करों से साथी
सरसंधान नहीं होता।
इन मधु अभ्यासी अधरों से
विषपान नहीं होता।
जो धारा के संग बहते हैं
वे शव है कहलाते।
जो लहर चीर कर चलते हैं
नर पुंगव बन जाते।
35 अब्दुल्ला परिवार तथा महबूबा मुफ्ती-
एक तुलनात्मक अध्ययन
कांटे तो केवल कांटे हैं,
वह सहज नुकीले होते हैं।
कुछ फूल मगर कांटो से भी,
ज्यादा जहरीले होते हैं।
कांटा=अब्दुल्ला
फूल=महबूबा
36 J&K की भाजपा के नाम खुला संदेश-
जिस तट पर प्यास बुझाने से, अपमान प्यास का होता हो।
उस तट पर प्यास बुझाने से ,
प्यासा मर जाना अच्छा है।
37 मत डरो Atomic War से
कब तक ब्लैकमेल होते रहोगे?
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से
प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभा समुज्वला
स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो
दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ है
बढ़े चलो बढ़े चलो
-जयशंकर प्रसाद
38 .कब तक पाकिस्तान को MOST FAVOURED NATION का Treatment मिलता रहेगा?
यदि राणा प्रताप घास की रोटी खा सकते थे तो क्या मोदीजी बिना पाकिस्तानी प्याज के बनी हुई सब्जी नहीं खा सकते? क्या इसके लिए UNO से अनुमति लेनी है?
गाल को फुलाये रह कर हंसा नहीं जा सकता। Antony का कहना है कि उनके कार्यकाल में केवल एक बार सिर कटा था और मोदीजी तथा उनकी पार्टी ने हंगामा मचा दिया था जबकि मोदीजी के तीन वर्ष के कार्यकाल में तीन बार सिर कट चुके और वे अभी भी मन की बात कर रहे हैं।
"पाकिस्तान की इस बर्बरतापूर्ण हरकत के बावजूद उसके साथ MOST FAVOURED NATION का दर्जा बरकरार रखना जवानों के कटे हुए सिर का अपमान है और शर्मनाक है।
जब शास्त्री जी ताशकंद में वार्ता के लिए जा रहे थे उस समय पांचजन्य दहाड़ रहा था -
"तुम्हें शपथ है विधवाओं के
पुछें हुए सिंदूर की।
तुम्हे शपथ है घायल माँ की
औ घायल अखनूर की।
आज क्या सरसंघचालक यह बताने का कष्ट करेंगे कि राष्ट्र धर्म के ओजस्वी कवि वचनेश त्रिपाठी जैसे कवि तथा ORGANISER के Malkani जैसे तेजस्वी संपादक भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के राज्याभिषेक के बाद से कहाँ गायब हो गए हैं? उन्हें पुनः ढूंढ लाने की कृपा सरसंघचालक कब तक करेंगे और भारत माँ के कर्ज से ऋणमुक्त हो जाएंगे? सन 70 के दशक की पाञ्चजन्य की दहाड़ मुझे आज भी याद है-
"सत्रह बार क्षमा कर दे
है दिल्ली में चौहान नहीं"
अर्थात अब दिल्ली में पृथ्वीराज चौहान नही रह गए हैं जो सत्रह बार गोरी को क्षमा कर दें। किंतु अशोक सिंघल जी ने मोदीजी की प्रसंशा में कहा की 800 साल बाद पृथ्वीराज चौहान के बाद पुनः कोई हिन्दू शासक दिल्ली की गद्दी पर बैठा है।प्रभु से प्रार्थना है कि पृथ्वीराज चौहान की वीरता तो उन्हें प्राप्त हो किंतु क्षमाशीलता नहीं क्योंकि सत्रह बार की कौन कहे सत्ताईस बार वे गोरी के उत्तराधिकारी को क्षमा कर चुके हैं।सरसंघचालक से भी अनुरोध है कि वह अपने नैतिक बल का प्रयोग करे मोदीजी के 56 इंच के सीने को और चौड़ा कर दें लेकिन क्षमाशीलता और मन की बात पर लगाम लगाएं ताकि देश की स्वाधीनता को और मोदी की आंखों को राष्ट्रहित में सुरक्षित रखा जा सके-
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो।
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित विनीत सरल हो।।
39 परशुराम की प्रतीक्षा-दिनकर से साभार।
छिड़ गया युद्ध तो यह ऋषि बम गोले दागेगा।

Monday, 1 May 2017

अमन मणि त्रिपाठी के योगी जी महाराज के साथ मंच साझा करने की समीक्षा.....प्रचंड बहुमत के बावजूद अमन मणि को साथ लेने के पीछे क्या मजबूरी है? इस प्रश्न का समीक्षात्मक उत्तर।

अमन मणि त्रिपाठी के योगी जी महाराज के साथ मंच साझा करने की समीक्षा
प्रचंड बहुमत के बावजूद अमन मणि को साथ लेने के पीछे क्या मजबूरी है? इस प्रश्न का समीक्षात्मक उत्तर।
अखिलेश यादव से खुला सवाल..
क्या गायत्री प्रजापति के क्षेत्र में चुनाव प्रचार करना और अमन मणि त्रिपाठी और विजय मिश्रा का टिकट काटना समाजवाद के लिए अनिवार्य शर्त है?
हाथी Brand ब्राह्मणों द्वारा Facebook और जनसमाज में योगीजी की ब्राह्मण विरोधी छवि की घोषणा करने वालों के मुँह पर ताला लग गया।
"हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है।"
कौन सा तीर मार लिया अखिलेश ने टिकट काटकर?
मुलायम की सजी सजाई दुकान को वैसे ही तोड़ दिया जैसे Mr. Clean बनने के चक्कर मे राजीव गांधी ने इंदिरा जी की तीन-चौथाई बहुमत की दुकान को तोड़ डाला था तथा राहुल ने साफ-पाक दिखने के चक्कर में सोनिया की बची-खुची दुकान को खाक कर पप्पू बन गया।
#किस पार्टी ने मंच साझा नहीं किया अमन मणि के पिता से- क्या वे अपने बेटे से कमजोर थे?
#शंकर के गले मे पहुंच कर विषधर सांप भी पूजनीय हो जाते हैं।
यह लेख एक Social Media के एक पत्रकार का एक राजनैतिक विश्लेषण है।
#बुद्धिजीवी बताएं क्यों केशव मौर्य के साथ मंच साझा करने पर वे उंगली नही उठाते हैं तथा अमन मणि के मंच साझा करते ही बेहोशी छाने लगती है?
#क्या सभी जातियां प्रचंड रहें और ब्राह्मण दीन सुदामा का वंशज बनकर बाभन बछिया बना रहे?
#चाणक्य ने तो विष कन्याओं तक के साथ मंच साझा किया था।
#Politics is the last refuge of the scoundrel..
यह लेख मेरा अथवा मुझसे जुड़े लोगों का व्यक्तिगत विचार नहीं है। यह लेख बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी पूर्वाग्रह के पूर्ण निष्पक्ष भाव से किया हुआ तथ्यों पर आधारित एक विश्लेषण है तथा कोई इससे सहमत हो या असहमत हो- यह एक राजनीतिक हकीकत है।
अमन मणि त्रिपाठी के योगी जी के साथ मंच साझा करने को लेकर सोशल मीडिया में तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हंगामा मचा हुआ है। आलोचना करने वाले यह भूल जाते हैं कि उन्होंने खुद क्या किया। कौन सी पार्टी ऐसी है जिसने अमन मणि त्रिपाठी के पिता के साथ मंच साझा नहीं किया? किस के मुंह में दांत है कि वह इस बिंदु पर योगी जी से सवाल पूछ ले।
दो पंक्तियां पढ़ लें-
कौन यहां जो फंसा नहीं है,
कभी पाप-कारा में?
किसके वसन नहीं भीगे हैं,
वैतरणी धारा में?
अपने कार्य क्षेत्र में अमन मणि त्रिपाठी के पिता ने जिन बुलंदियों को छुआ, अभी तक अमन मणि उसके दूर-दूर तक पास नहीं है।
कहां से यात्रा चालू किया अमर मणि त्रिपाठी ने?
कमुनिस्ट रहे, निर्दल रहे, कांग्रेस की शोभा बढ़ाए, कांग्रेस की टिकट पर भी माननीय रहे तथा कांग्रेस को छोड़कर बसपा तथा भाजपा की सरकारों में लालबत्ती लेकर माननीय रहे। कल्याण सिंह जैसे संत-पुरुष ने उन्हें मंत्री बनाया। रामप्रकाश गुप्ता तथा राजनाथ सिंह के सरकारों में यह उज्जवल परंपरा बरकरार रखी गई। जो बहन मायावती एलान करती थी कि-
'चढ़ गुंडों की छाती पर बटन दबाओ हाथी पर।'
उन मायावती ने अमर मणि त्रिपाठी को पूर्ण आशीर्वाद दिया तथा जहां तक मुझे याद है आज तक पुलिस के इतिहास में केवल एक DG रैंक के अधिकारी सस्पेंड हुए हैं-महेंद्र लालका तथा कागज में उन पर आरोप जो भी लगा हो- मैंने चार्ज शीट नहीं पढ़ी है लेकिन महेंद्र लालका IPS का नाम चर्चा में उस समय आया जब उनके हस्ताक्षर से अमर मणि त्रिपाठी के विरुद्ध CBCID की प्रारंभिक जांच आख्या का जाना अखबारों की सुर्खियों में आया तथा उसके बाद वह शासन के कोपभाजन बन गए थे। उस समय बड़ी मजबूरी में अमर मणि त्रिपाठी के मामले की जांच को CBI को सौंपना पड़ा था। कल्याण सिंह से अमर मणि त्रिपाठी का तालमेल इतना अच्छा था कि जब जगदंबिका पाल के नेतृत्व में अधिकांश मंत्रियों ने क्षणिक बगावत कल्याण सिंह के साथ कर दी थी तथा जगदंबिका पाल के मंत्रिमंडल में नरेश अग्रवाल और हरिशंकर तिवारी तक मंत्री बन गए थे उस समय भी अपनी लाल बत्ती को दावँ पर लगा कर अमर मणि त्रिपाठी कल्याण सिंह के साथ चट्टान की तरह खड़े थे। यह दर्शाता है कि कल्याण सिंह और अमर मणि में कितना गहरा तालमेल रहा होगा। जहां तक मुलायम सिंह यादव का प्रश्न है- मायावती की गोद से छूट कर जैसे ही अमर मणि गिरे, वैसे ही मुलायम सिंह ने अमर मणि को अपनी बाहों में थाम लिया। शिवपाल जी ने उनको कितना सम्मान दिया- यह सब को पता है। इस बार भी मुलायम सिंह ने तथा शिवपाल ने उन्हें टिकट दे रखा था।
अमन मणि प्रकरण में सबसे गंभीर आलोचना सपा तथा कांग्रेस की ओर से आई है। सपा का कहना है कि उसने अमर मणि के परिवार का टिकट काट दिया था तथा अपनी सीटों के कम होने की चिंता नहीं की थी। शुद्ध दार्शनिक अंदाज में रामगोपाल यादव तथा अखिलेश यादव कहते हैं कि उन्होंने विजय मिश्रा तथा अमन मणि के टिकट काट दिए तथा अपने भविष्य की चिंता नहीं की। मैं अखिलेश यादव से पूछना चाहूंगा कि गायत्री प्रजापति के क्षेत्र में जाकर प्रचार करना तथा अमन मणि तथा विजय मिश्रा का टिकट काटना किस उच्च कोटि की नैतिकता का द्योतक है? क्या बछिया ब्राहमण ही सपा में रहने के अधिकारी हैं?
जिसमें थोड़ा सा भी तेज दिखाई दिया है उस मनोज पाण्डेय तक को कभी मंत्रिमंडल से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया गया तो कभी दया करके भिक्षा पात्र में एक टिकट डाल दिया गया। क्या समाजवादी पार्टी में केवल ऐसे ही ब्राह्मण रहने के हकदार हैं जिनके पास सींग तक ना हो? अगर सभी जातियों के लिए एक जैसा मानक बनाया जाता तो कोई बात नहीं थी। किंतु अपराधियों से अखिलेश को कितनी एलर्जी है- इस जमाने ने तब देखा जब गायत्री प्रजापति के खिलाफ मुकदमा तब कायम हो पाया जब सुप्रीम कोर्ट ने सबको अपनी औकात बता दी। गायत्री प्रजापति को दुलारना तथा अमन मणि और विजय मिश्र को दुत्कारना- यह किसी राजनैतिक सुचिता का द्योतक नहीं है बल्कि एक जातिगत पूर्वाग्रह है। इसी जातिगत पूर्वाग्रह के चलते कभी राजा भैया का मंत्रीमंडल बदलकर उनका कद छोटा करने की कोशिश की गई तो कभी बिना आरोपों के प्रमाणित हुए ही राजा भैया को मंत्रिमंडल से बाहर करके उनके खिलाफ CBIजांच चालू कर दी गई जिसमे वे सर्वथा निर्दोष पाए गए। इन्हीं कर्मों से अखिलेश ने अपने बाप और चाचा की मेहनत से सजाई गई दुकान को उसी तरह उजाड़ डाला जिस तरह राजीव गांधी ने इंदिरा गांधी की तैयार की गई तीन-चौथाई बहुमत की सरकार को Mr. Clean बनने के चक्कर में बर्बाद कर दिया था।
कांग्रेस की जो बची-खुची रियासत थी उसको किसी तरह से सोनिया गांधी ने सहेजा तथा बैसाखी के बल पर ही सही अपने द्वारा नामित किसी व्यक्ति को 10 साल तक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर रखा। किस प्रकार से शरद पवार,संगमा, जितिन प्रसाद के पंजों को उन्होंने सफलता पूर्वक मरोड़ा तथा किस प्रकार सीताराम केसरी तथा नरसिंहा राव जैसे लोगों के जबड़े में लगाम लगाई- इसको जमाने ने देखा तथा अटल बिहारी वाजपेई जैसे प्रतिभाशाली प्रधानमंत्री को अपदस्थ करके पुनः सत्ता को कब्जा करना मामूली बात नहीं थी। किंतु साफ-सुथरा दिखने के चक्कर में किस प्रकार राहुल ने लालू की मदद के लिए बनाए जा रहे अध्यादेश की प्रति को सार्वजनिक रूप से फाड़ दिया तथा ऐसी ही तमाम हरकतों से कांग्रेस को मित्रविहीन कर दिया तथा राहुल गांधी के कर्मों से कांग्रेस की स्थिति इतनी दयनीय हो गई कि लोग उन्हें पप्पू कहने लगे। राहुल गांधी भूल गए कि राजनीति में एहसान किए जाते हैं और एहसान चुकाए जाते हैं ना की सत्याग्रह किया जाता है। लालू वह महापुरुष थे जिन्होंने ललकार कर कहा था कि सोनिया गांधी इस भारत माता की बहू है तथा उन्हें विदेशी कहना भारत माता का अपमान होगा। अगर राहुल ने सुशासन बाबू नीतीश कुमार को नेता ना घोषित कर के लालू को बिहार का भावी मुख्यमंत्री घोषित कर दिया होता तो जितनी सीटें कांग्रेस को साझा मोर्चा में लड़ने को मिली उस से कम से कम दो ढाई गुणा सीटें मिलती क्योंकि नितीश कुमार उस हालत में मोर्चे में न शामिल होते और या तो रामविलास पासवान की तरह पूर्णतया भाजपा के सामंत हो गए होते अथवा स्वतंत्र रुप से लड़ कर अपना अस्तित्व समाप्त कर लिए होते। किंतु Real Politik को भूलकर राहुल सिद्धांतों की राजनीति करने लगे और परिणाम सब के सामने है।
यही दशा अखिलेश यादव की हुई। अटल जी Feel Good और India Shining का नारा देते देते साफ हो गए तथा इसी ढर्रे पर अखिलेश भी विकास की गंगा में डूब गए। अखिलेश ने सोचा था कि "काम बोलता है" तथा" जो दिखता है वह बिकता है।" अखिलेश भूल गए कि उत्तर प्रदेश में एक बहुत बड़ी आबादी ब्राह्मणों की है जो जनता में वह सामग्री बेचती आई है जिसे किसी ने देखा ही नहीं। जनता का मनोविज्ञान ऐसा बना दिया गया है कि वह भगवान की प्राप्ति के मार्ग पर चल पड़ता है तथा गंगा और जमुना को पार करने के लिए जितना किराया देता है उससे अधिक उतआई वह वैतरणी पार करने के लिए देता है। इस सच्चाई को मोदी ने समझा तथा वे जुमलेबाजी करते-करते महान हो गए।
भारत में सपने बिकते हैं तथा जो बढ़िया सपना दिखा लेता है, वही राज करता है।
इंदिरा जी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया तथा 15 लाख तो दूर रहा 15 पैसे का भी आश्वासन नहीं दिया- यहां तक कि भर पेट भोजन तक का भरोसा नहीं दिया और उन्हें मोदीजी से भी ज्यादा दो-तिहाई बहुमत मिला तथा लोग चिल्लाने लगे-
"आधी रोटी खाएंगे इंदिरा गांधी लाएंगे"
आज आलोचना करने वाले आगा-पीछा नहीं सोचते हैं। हर पार्टी में बाहुबलीयों की एक अच्छी खासी तादाद है। जो लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि योगी जी ने अमन मणि के साथ मंच साझा किया, वह आज तक नहीं पूछे कि योगी जी केशव मौर्या के साथ मंच कैसे साझा कर रहे हैं। नैतिकता का मानक एकतरफा नहीं हो सकता और वह जाति,धर्म तथा क्षेत्र के आधार पर विभेदकारी नहीं होना चाहिए। इसी का रोना एक बार विनय कटियार भी रोए थे जब वे पार्टी में बाबू सिंह कुशवाहा को शामिल किए थे। बाद में पार्टी हाईकमान के आग्रह पर बाबू सिंह कुशवाहा की सदस्यता निरस्त कर दी गई थी तथा विनय कटियार को यह एहसास हुआ था कि उनकी बात को महत्व इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि उनकी चमड़ी काली थी तथा पिछड़े वर्ग का होने के नाते उनको यह अपमान झेलना पड़ा। केशव मौर्य के संरक्षक अशोक सिंघल थे तथा उनकी सेवा करने के कारण उनके समस्त पाप धुल गए तथा वे तपे-तपाये सोने के समान पवित्र हो गए। भगवान शंकर के गले में तमाम सांप लिपटे रहते हैं तथा विषधर होने के बावजूद पूजनीय होते हैं। मैं केशव मौर्या के खिलाफ कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं कर रहा तथा मेरे कहने का आशय मात्र इतना है कि अशोक सिंघल जी की चरण सेवा से केशव मौर्या न केवल पूजनीय हो गए बल्कि उनके आपराधिक इतिहास की कहीं चर्चा नहीं होती है। गोरखनाथ मंदिर का भी अपना एक दिव्य इतिहास रहा है। महंत जी के शरणागत होते-होते ओम प्रकाश पासवान के सारे पाप धुल गए तथा वे रत्नाकर ना रहकर वाल्मीकि बन बैठे। पुनः जैसे कोई सामान फ्रिज से निकाला जाए तो बाहर सड़ने लगता है, उसी प्रकार गोरखनाथ Temple के बाहर जाते-जाते भाजपा की निगाह में ओमप्रकाश पासवान का आपराधिक स्वरुप सामने आने लगा। हर पार्टी को अपना अपराधी अपराधी नहीं लगता है तथा वह अंगुलीमाल नजर आता है। यही हर पार्टी की लीला है।
TV चैनलों पर बार-बार यह सवाल पूछा जा रहा है कि तीन-चौथाई बहुमत के होने के बावजूद अमन मणि त्रिपाठी को क्यों साथ लिया जा रहा है?
उत्तर है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में तथा विशेष रुप से पूर्वांचल में अन्य दलों के मुकाबले भाजपा में ब्राह्मण समाज के बाहुबलियों की एक Crisis आ गई है। लिहाजा जब किसी पंडित जी पर एक मामूली झटका भी लगा तो अच्छी खासी आलोचना Facebook पर होने लगी कि योगी जी जातिवाद कर रहे हैं। स्थानीय जनता में भी दबी जवान से इन चर्चाओं को हवा दी गई। अन्य समाज के बाहुबली अन्य दलों की भांति भाजपा में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं लेकिन केशव मौर्या के मुकाबले किसी दिनेश शर्मा को खड़ा करना पड़ता है। हरिशंकर तिवारी जी के बच्चों के बसपा में चले जाने के बाद विशेष रुप से गोरखपुर मंडल में एक ऐसा Vacuum पैदा हो गया है जिसका एहसास भाजपाइयों को तब हुआ जब हाते को छूते ही योगी जी पर आरोपों की बौछार हो गई। ब्राह्मणद्रोही के रूप में उनके खिलाफ हवा फैलाने की कोशिश की गई। बृज भूषण सिंह तथा रमाकांत यादव जैसे बलवान लोग भाजपा को सुशोभित कर रहे हैं तथा केशव मौर्या जैसे लोग भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं तो ऐसी स्थिति में करवरिया परिवार के जेल में रहने के कारण किसी भी ब्राह्मण पर कार्रवाई करने पर एक गलत संदेश जाता तथा इस कमी को पूरा करने के लिए अमन मणि त्रिपाठी एक उपयुक्त पात्र के रूप में दिखाई दिए। अगर वह भाजपा में रहे होते तो हाते वाले कांड के बाद सोशल मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जितनी हलचल हुई, उतनी नहीं होती। जनता को यह एहसास होता कि योगी जी किसी जाति के खिलाफ नहीं है बल्कि किसी व्यक्ति के खिलाफ हैं और अमन मणि भी सत्संग पाकर ओम प्रकाश पासवान, रमाकांत यादव, बृजभूषण सिंह तथा केशव मौर्या की भांति सत्प्रकृति के बनने लगते। सत्संगति की महिमा शास्त्रों में जगह-जगह पर गाई गयी है।
कौन कितना बड़ा अपराधी है तथा कौन नहीं है इसके बारे में उसके आपराधिक इतिहास के आधार पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। कई ऐसे मामले देखे गए हैं जिसमें हत्या के आरोप में मुकदमा झेल रहे लोगों को जेल से इसलिए छूटना पड़ा है कि जिस आदमी के मारे जाने का आरोप था वही आदमी कचहरी में फिर खड़ा दिखाई देता है। न्यायालय में लंबित मामले तथा न्यायालय से निर्णीत मामले के बारे में मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता लेकिन ऐसे सैकड़ों मुकदमे हैं जिनमें उच्च न्यायालय के निर्णयों को उच्चतम न्यायालय के द्वारा पलट दिया गया है। उच्चतम न्यायालय के निर्णय में भी कई ऐसे मामले हैं जिनमें उसी साक्ष्य के आधार पर बेंच के एक माननीय न्यायमूर्ति ने किसी को दोषी माना है तो दूसरे लोगों ने कभी सहमति व्यक्त की है तो कभी उसी साक्ष्य के आधार पर निर्दोष माना है। अपने कलेजे पर हाथ रखकर पूछे तो कोई जनप्रतिनिधि बता दे कि उनके इलाके में जो हत्याएं हुई है उनमें अधिकांश में जो लोग जेल गए हैं उनके बारे में उनकी Impresssion क्या है। अनौपचारिक रूप से पता कर लें कि क्या वे वास्तव में मौजूद थे? कोई TV CHANNEL या खोजी पत्रकार जन साधारण में यह Survey कर ले कि क्या मुल्जिम सही फंसे हैं?
मैंने अपने पूरे सेवाकाल में श्री महेश चंद्र द्विवेदी को छोड़कर किसी को प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर Pursue करते नहीं देखा कि कोई भी नामजद अथवा प्रकाश में आया अभियुक्त हो तो उसके बचाव के विस्तृत बयान को Case Diary में दर्ज किया जाए तथा बचाव पक्ष के समस्त साक्ष्यों का संकलन करके एक सुविचारित तथा समन्वित निष्कर्ष निकाला जाए कि कौन दोषी है तथा कौन निर्दोष। 90% IPS अफसर इस सिद्धान्त के पोषक पाए गए हैं कि किसी एक आदमी का नाम निकालने से पूरे मुकदमे पर बुरा असर पड़ेगा, केस कमजोर होगा और फलस्वरूप बाकी मुल्जिम भी रिहा हो जाएंगे। अधिकांश मामलों में हत्याऐं सुपारी देकर पेशेवर हत्यारों द्वारा कराई जाती हैं किंतु सारे अभियुक्तों के नामजद होने के कारण यह Scope ही नहीं बचता कि कोई पेशेवर हत्यारा Workout किया जा सके। कोई भी खोजी पत्रकार निर्णीत मामलों में अनौपचारिक जांच करके देखे तो पाएगा कि 90% मामलों में मुल्जिम गलत फंसाये गए है।इसके अलावा इससे भी बड़ा Scandal है फर्जी गवाहों का। जो लोग वास्तव में हत्या होते देखते हैं उसमें से 95% इतनी दहशत में आ जाते हैं कि वे किसी भी क़ीमत पर चाहे कोई उनकी जान ही ले ले लेकिन वे यह स्वीकार नहीं कर सकते कि उन्होंने हत्या को घटित होते देखा है। गवाही में वादी द्वारा थानाध्यक्ष से वार्ता करके ऐसे मजबूत कलेजे के पारिवारिक साथियों के नाम FIR में लिखाये जाते हैं जोकि मौका तो छोड़िए दूर-दूर तक भी मृतक के पास नहीं होते। गौर से देखें तो प्रायः यह मिलेगा कि Victim को अस्पताल पहुंचाने में या थाने पहुंचाने में अथवा तत्काल 100 नंबर पर या थाने पर फोन करने में देर क्यों होती है?
यदि कोई पारिवारिक सदस्य या मित्र वास्तव में साथ होता तो अगर वह मृतक की रक्षा के लिए संघर्ष न भी कर पाता तो कम से कम 100 नंबर अथवा थाने पर तत्काल फोन तो कर ही देता। कोई भी खोजी पत्रकार यदि 100 हत्याओं में इस बिंदु की जांच करे कि घटना के कितने देर बाद पुलिस को सूचना दी गयी है तो आंखे खुली की खुली रह जाएंगी तथा यह पाया जाएगा कि अज्ञात राहगीरों द्वारा सूचना दी गयी है और काफी देर बाद घरवाले पहुंचे हैं तथा जब पूरा परिवार बुला लिया जाता है तो पूर्ण विचार विमर्श करके यह निर्णय लिया जाता है कि किस-किस का नाम अभियुक्तों की सूची में डाला जाए तथा किन लोगों का नाम साक्षियों(गवाह) की सूची में डाला जाए। अभियुक्तों में ऐसे लोगो का नाम लिखा जाता है जिनसे शत्रुता होती है तथा गवाहों में उन लोगों का नाम लिखा जाता है जो परिवार के होते हैं अथवा पारिवारिक मित्र होते हैं और भरसक इतने होशियार होते हैं कि जिरह के दौरान उन्हें अभियुक्तों के वकील उखाड़ न सकें तथा वे कलेजे के इतने मजबूत हों तथा दिमाग के इतने तेज हों कि वे आखिर तक डटे रह सकें। ऐसी स्थिति में किसी भी आपराधिक इतिहास वाले आदमी को अथवा Under Trial को अथवा Convict तक को कोई यह दावे के साथ नहीं कह सकता कि यह तो अभियुक्त होगा ही होगा। माननीय न्यायालय तो अपने सामने उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर Examination-In-Chief , Cross Examination तथा बहस के आधार पर साक्ष्य का समग्र मूल्यांकन कर के निर्णय सुनाता है किंतु सम्पूर्ण सत्य तो कुछ और ही होता है जो कभी न्यायालय के सामने कभी पेश ही नही किया जाता। यह मैं कोई Fiction के रूप में अनर्गल प्रलाप नहीं कर रहा हूं बल्कि 40 वर्ष की सेवा में जो अपनी आँखों से देखा और सुना है, जो गपशप में मित्रों से सुना तथा विभिन्न प्रदेश स्तरीय तथा राष्ट्रीय बैठकों में विचार-विमर्श के दौरान सुना है उसका यथार्थ चित्रण दे रहा हूं। जिसे विश्वास ना हो वह इन बिंदुओं पर स्वयं Survey कर अपने निष्कर्ष निकाल ले।
सत्य वही नहीं है जो आंखों से दिखाई दे रहा है तथा कानों से सुनाई दे रहा है। इनसे भी हटकर तमाम परिस्थितियां ऐसी होती हैं जिनकी यथार्थ के निर्धारण में अपनी उपयोगिता होती है।
अमर मणि त्रिपाठी के मामले में समाचार पत्रों में यह खबर प्रकाशित हुई थी कि संबंधित थाने में एक दरोगा ने थाने की GD में यह Entry की थी कि कवियत्री जी के निवास स्थल पर संदिग्ध परिस्थितियों में मंत्री जी का आना-जाना है तथा किसी दुर्घटना की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। समाचार पत्र में यह भी था कि मंत्री जी ने अपने रसुख से उस दरोगा का गैर-जनपद स्थानांतरण करवा दिया था तथा उस दरोगा ने पुनः अपना स्थानांतरण रुकवा कर अपनी नियुक्ति उसी थाने में करवा ली थी।यह खबर सत्य है या असत्य- में कुछ नही कह सकता लेकिन यदि सत्य हो तो यह जांच का विषय होना चाहिये था कि क्या बिना अमर मणि के किसी बराबरी के अथवा उनसे बड़े कद के नेता अथवा अधिकारी के निर्देश अथवा संरक्षण के क्या कोई दरोगा कोई प्रतिकूल तथ्य थाने की GD में लिखने की हिम्मत कर सकता है?
यद्यपि इसकी संभावना कम है लेकिन तर्क के लिए 1% मान भी लिया जाए कि कोई मनबढ़ दरोगा रंगबाजी में अपने पर आकर ऐसा कर भी डाले तो बिना किसी राजनैतिक अथवा प्रशासनिक संरक्षण के क्या वह अपना स्थानांतरण निरस्त करवा कर उसी थाने पर फिर वापस आ पाता?
इस रसूख का व्यक्तित्व कौन था तथा इसके पीछे उसका क्या निहित उद्देश्य था?
इसको उद्द्घाटित करने के लिये न्यायपालिका के माध्यम से दबाव बनाने का कोई प्रयास अमर मणि द्वारा संभवतः नही किया गया क्योंकि इसके अलावा यह चिंता उनके मन में थी कि प्याज की परतों की तरह मुकदमे की अधिक परतें उधेड़े जाने पर कहीं वह फस न जाएं। इसके अलावा समाचार पत्रों के अनुसार एक SIM भी अभियुक्तों के पास से मिला था जिसकी गहराई से जांच नहीं हुई कि यह सिम किसका था और वह अभियुक्तों के पास कैसे आया? इसके अलावा अभियुक्तों के Call Detail के आधार पर यह पता करने की कोशिश नहीं हुई कि उनके किस-किस से संबंध थे ? जितना समय अमर मणि त्रिपाठी ने अपने बचाव में साक्ष्य बनाने में लगाया उतना समय यदि साक्ष्यों के विश्लेषण में लगाया होता तो स्थिति कुछ और हो सकती थी। सामान्यतया यदि किसी की जानकारी में कोई हत्या हो रही हो तो मनोविज्ञान यह कहता है कि कहीं ना कहीं का दौरा दिखा कर वह व्यक्ति उस दिन उस शहर में नहीं रह पाएगा जिस शहर में वह हत्याकांड हो रहा है। अमरमणि त्रिपाठी कहीं का भ्रमण दिखाकर लखनऊ से हट सकते थे किंतु जब कवियित्री जी की हत्या की खबर फैली तो उस समय वह अपने निवास में विराजमान थे। राष्ट्रपति का क्षमादान तक अस्वीकृत हो जाने के बावजूद और न्यायालय में समस्त उपचार खत्म होने के बावजूद एक आतंकवाद के आरोपी के लिए अगर प्रशांत भूषण माननीय उच्चतम न्यायालय को रात में खुलवा सकते हैं तो जब तक जीवन है तब तक संपूर्ण न्याय के लिए किसी भी आरोपी के पास अतिरिक्त साक्ष्य के साथ माननीय उच्चतम न्यायालय में बारंबार जाने का अधिकार है किंतु अमरमणि त्रिपाठी इस अधिकार का प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि मुझे लगता है कि वह निराश, हताश तथा उदास हो गए हैं और परिणाम स्वरूप अवसादग्रस्त।
अमनमणि त्रिपाठी पर जो आरोप लगे हैं उन पर मैं कोई टिप्पणी इसलिए नहीं कर रहा क्योंकि निर्णीत मामले पर टिप्पणी की जा सकती है किंतु जो मामला न्यायालय में लंबित है उस पर कोई टिप्पणी करना न्यायालय की अवमानना है तथा कोई भी टिप्पणी न्यायालय के सामने ही की जा सकती है। किंतु यह एक सर्वमान्य सिद्धांत है कि जब तक कोई व्यक्ति दोष सिद्ध ना हो जाए तब तक वह मात्र न्यायालय में मुकदमा लंबित होने के कारण अपराधी नहीं कहा जा सकता है।
अटल विहारी वाजपेई जी दर्जनों बार जयललिता से शाल ग्रहण कर चुके हैं तथा कई बार मंच भी साझा कर चुके हैं जबकि जयललिता भ्रष्टाचार के आरोपों से युक्त थीं। जिन आरोपों में जिला जज ने जयललिता और उनके सहयोगियों को सजा दी उसी मुकदमे में उच्च न्यायालय ने उन्हें निर्दोष घोषित करते हुए निर्णय सुना दिया तथा पुनः उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट के निर्णय से असहमति व्यक्त करते हुए पुनर्विचार किया। लालू से भी अन्ना के नाम का जयकारा लगाने वाले केजरीवाल गले मिले तथा मंच साझा करना तो एक बहुत छोटी चीज थी।
राजनीति में कोई अछूत नहीं होता है आवश्यकता पर किसी भी चीज का सहारा लेना पड़ता है। चाणक्य ने नंद वंश के उन्मूलन के लिए न केवल चंद्रगुप्त का उपयोग किया बल्कि विषकन्याओं का भी उपयोग किया। Europe में माना जाता है कि "#Politics_is_the_last_refuge_of_the_scoundrel" तथा भारतीयों की मान्यता है कि
"#वेश्यांगनेव्_नृप_नीतिरनेकरूपा"
अर्थात राजा की नीति को किसी सिद्धांत से बंधा नहीं होना चाहिए बल्कि वेश्या की तरह समय-समय पर राजा की नीति भी आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित होनी चाहिए। राजनीति में केवल एक ही सिद्धांत चलता है कि हमारा कोई सिद्धांत नहीं।
योगी जी के मंच साझा करने से ब्राह्मणों को दिग्भ्रमित करने वाली तमाम अफवाहें एक साथ चर्चा के बाहर हो गईं तथा एक नई चर्चा प्रारंभ हो गई। इसMission की बिना कुछ कहे बिना किसी को शामिल किए यह स्वयं में यह एक उपलब्धि है तथा योगी जी के राजनैतिक कौशल का Master Stroke।