Sunday, 28 May 2017

सहारनपुर एक समीक्षात्मक अध्ययन-प्रशासनिक तथा राजनैतिक समाधान

गौरक्षकों को कहा जा रहा है कि कानून हाथ में न लें। किंतु राणाप्रताप की शोभायात्रा यदि गलत भी निकाली जा रही थी तो इसकी शिकायत प्रशासन से की जानी चाहिए थी तथा दलितों को कानून हाथ में लेने का अधिकार क्या था?
इसकी चर्चा करने को कोई तैयार नहीं है।
पुनः आखिर किस संविधान की धारा में लिखा गया है कि कोई नया काम नहीं किया जाएगा?
मैं जब युवा था तो कहीं भी दुर्गा पूजा इस पैमाने पर नहीं होती थी जैसे अब होती है। गणपति बप्पा का प्रचलन तो अभी चला है "छठ-पूजा" बिहार से फैल रही है। परशुराम जी के उत्सव न के बराबर होते थे। हर जिले में-हर कस्बे में हजारों चीजें नई हुई हैं जो पहले नहीं होती थी। क्या इस बात की जांच नहीं होनी चाहिए कि राणाप्रताप की शोभायात्रा में ऐसी क्या बुराई थी कि इसकी अनुमति नहीं मिली?
किसी लेखपाल ने या SDM ने या बीट के सिपाही या SO/CO ने अपने कारणों से पत्रावली को उलझा दिया होगा तथा अनुमति नहीं मिली होगी।
क्या मुख्यमंत्री एक श्वेत पत्र प्रकाशित करेंगे कि अनुमति क्यों नहीं दी गई?
अनुमति न मिलने का एकमात्र कारण है- कलियुग जो राजा के मुकुट में बैठ गया है- जो गुमराह कर रहा है कि सारी बुराइयां योगी जी की युवा वाहिनी में और उनके क्षत्रिय समाज में ही है।
योगी जी को ध्यान में रखना होगा कि चेलों के बूते ही वह योगी जी हैं वरना शत्रुघ्न सिन्हा या वरुण गांधी होते। दूसरे पक्ष की गलतियों को छुपाकर केवल चेलों की गलतियों को सामने लाया जा रहा है।
चलिए अगर अनुमति नहीं मिली तो प्रारंभ में ही Starting Point पर इसे क्यों नहीं रोका गया?
मैंने पूर्ण जांच तो नहीं की है किंतु SDM की भूमिका की भी गहराई से जांच होनी चाहिए कि अनुमति देने अथवा Refuse करने से लेकर शांति व्यवस्था बिगड़ने तक में उनकी क्या भूमिका थी?
प्रारंभ में ही रोक लिया गया होता तो क्षत्रियों तथा दलितों में संघर्ष की नौबत न आती।
फिर जुलूस पर दलितों को सीधी कार्यवाही किन परिस्थितियों में करनी पड़ी?
इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
क्या Post Mortem Report सही है?
अखबारों में जो पढ़ने को मिला- वह समझ से परे है क्योंकि अखबार में मृत्यु का कारण जो बताया गया है वह उचित नहीं लगता-इसकी भी समीक्षा होनी चाहिए।
क्या कार्यवाही भीम सेना की ही थी?
यदि हां तो इसका प्रेरणास्त्रोत कौन था?
क्या घटना आकस्मिक थी या सुनियोजित?
इन सारे प्रश्नों का उत्तर ढूंढना होगा।
अब आता हूं पुलिस असफलता पर-Inspector को सजा देने से क्या होगा?
असली मगरमच्छों तक जाना होगा। Indian Express का May8 की खबर का सन्दर्भ लें। कुल 111 सिपाही आवंटित थे, जिनमें से मात्र 22 पोस्टेड थे।
इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
यह कहना कि Force की Shortage है-IAS/IPS का भौड़ा मजाक है।
केवल इसी बिंदु पर एक Class लेकर यदि मुख्यमंत्री जी Responsibility का निर्धारण करा लें, तो काफी Picture Clear हो जायेगी।
इसका Post Mortem प्रस्तुत किया जा रहा है
1.मान लिया जाए कि Fighting Force की Shortage है पर State level पर यह Shortage कितने % है?
पूरे प्रदेश में कितने % सिपाही कम हैं?-यह कमी मुश्किल से 20% से कम ही होगी।
जितनी भी हो- उससे अधिक कमी सहारनपुर में क्यों है?
उत्तर है- IG कार्मिक के दफ्तर में जो कारखास बैठे हैं, वे कमाऊ थानों/ चौकियों पर या ज़िलों में आवश्यकता से अधिक Staff भेज देते हैं।
जिस जिले में बवाल होता है, Law&Order Problem होती है, जहां जाने के लिए कोई सिपाही/दरोगा पैसा नहीं देता, वहां Vacancies पड़ी रहती हैं। यदि प्रदेश में जितने % Vacancies हैं, उससे अधिक % Vacancies यदि सहारनपुर में हैं( बावजूद इसके की सहारनपुर एक संवेदनशील जिला है)तो IG स्थापना तथा उनके अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों का निलंबन क्यों नहीं होना चाहिए?- इसका उत्तर जनता शासन से मांग रही है।
इसी तरह बुंदेलखंड में कोई Random Checking कर ले- Vacancies मिलेंगी। बुंदेलखंड की दस्यु समस्या की जड़ यही हैं।
रोजमर्रा की जिंदगी में रोटी न मिले तो Vitamin B-complex कब तक मोर्चा संभालेगा?
2. अब आइए Meerut Zone में कितने % रिक्तियां हैं? यदि मेरठ जोन में 80% रिक्तियां नहीं है तो संबंधित थानों में 80% रिक्तियां कैसे?-यह देखना क्या IG Zone Meerut का दायित्व नहीं है?
जिस कर्मचारी को Meerut Zone मिलता है वह पैसा खर्च कर Meerut Range पकड़ता है तथा Saharanpur Range निराश्रित अनाथ कर्मचारी जाते हैं।
111 सिपाहियों के Against(साक्षेप) यदि BADGAON में केवल 22 सिपाही तैनात हैं, तो ऐसी स्थिति क्या कभी साहिबाबाद थाने में रही अथवा कानपुर के कलेक्टरगंज या चकेरी में, लखनऊ के नाका में या चंदौली की जलालपुर चौकी में मुगलसराय तथा सय्यद रजा में कभी 80% कमी रही है?
यदि नहीं, तो यदि Offices की बेईमानी कारण नहीं है तो BADGAON थाने में ही क्यों?
Supervisiory Officers क्या केवल पगड़ी और किराया वसूलने के लिए हैं?
क्या SSP/Add.SP मनमाना Transfer/Posting निरंकुश भाव से न करें- इसका Supervision उनका दायित्व नहीं है?
Meerut Zone में जितने% रिक्ति है उससे अधिक %रिक्ति Saharanpur Range में न हो- यह IG Zone Meerut तथा उनके Staff की सीधी Responsibility(Direct)है तथा SSP Disproportionate नियुक्ति न करने पाएं- यह उनकी Supervisiory Responsability है। यह असंभव है कि IG Meerut के यहां 80% रिक्ति हो। यदि हां, तो उन्हें लिखित तथा मौखिक रुप से गंभीरता से इसे DG के समक्ष उठाना चाहिए था।
3.फिर क्या DIG Saharanpur के यहां 80% रिक्ति थी?
यदि नहीं तो BADGAON में 80% रिक्ति कैसे हुई? इसकी जिम्मेदारी IG Meerut वाले पैरा में बताये गए pattern पर DIG Saharanpur तथा उनके स्टाफ की भी होनी चाहिए।
4.क्या सहारनपुर में 80% रिक्तियां हैं? यदि नहीं तो SSP Saharanpur तथा Add.SP से जवाब लेकर प्रदेश की जनता को बताना होगा कि BADGAONमें क्यों है?
क्या जनता के जीवन से खिलवाड़ करके Transfer/Posting का उद्योग चलाया जाएगा तथा सिपाही/दरोगा जहां चाहेंगे वहां मर्जी से Posting लेंगे?
5. एक-एक सिपाही का सहारनपुर में Duty-Chart मंगा लिया जाए कि उसने क्या Duty की है? पुलिस में कारखास प्रथा इतनी जटिल हो गई है कि बिना इसके प्रभावी समापन के कानून व्यवस्था का सुधरना असंभव है।
87 में केवल 17 सिपाही, 17 में से केवल एक Head Constable तथा 7 में से 3 SI नियुक्त थे तथा बाकी पद खाली थे। SO के अनुसार 13 duty करते हैं। बाकी 22-13=9 कार्यालय का कार्य करते हैं।
यह कार्यालय क्या है?
13 के कार्य के कार्यालय के लिए 9 लोग?
इनमें से अधिकांश कारखास हैं जो सुबह से शाम तक केवल वसूली अभियान में लगे रहते हैं। स्वयं SO के बयान के अनुसार 22 में से केवल 13 Field की Duty में हैं। कारखास तथा दागी सिपाहियों में अंतर है। दागी सिपाहियों से बहुत DG लड़े किंतु कारखास से केवल J.N. Chaturvedi सफलतापूर्वक तथा श्री राम अरुण असफलतापूर्वक पंजा मिलाने की कोशिश किए। कारखास क्या है इसे जानना हो तो श्रीराम अरुण DGP के जमाने की Transfer पत्रावली खोल ली जाए।
उन्होंने पूर्वांचल के कारखास लोगों का सुदूर स्थानांतरण करने का साहस दिखाया किंतु अधिकांश पुनः अपनी जगहों पर आदेश निरस्त करवाकर लौट गए। अभी भी उस List के 70% लोग सेवा में वर्तमान है। यदि वह List केवल खोज ली जाए तो एक Starting Point मिल जाएगा। DG Office के कारखासों का बड़ा कड़ा दमन J.N.Chaturvedi ने किया था।
दागी सिपाही वे होते हैं जो SO की मर्जी के खिलाफ अपराधियों के Touch में रहते हैं तथा कारखास वे हैं जो SO द्वारा अपराध जगत को Deal करने के लिए नामित राजदूत हैं। कारखास को कोई छोड़ नहीं पाता क्योंकि विपक्षी दलों के लोगों से पैसा लेकर वे उनके उलझे कार्य कराते हैं। भाजपा के शासन में ये सपा, बसपा तथा कांग्रेस के संकटमोचक रहेंगे तथा जब तक सपा-बसपा का शासन था तब तक ये भाजपा के सेवादार थे। कारखासों को सब की जरूरत है तथा सभी को कारखासों की। वे सर्वप्रिय हैं, सर्वदलीय सहमति है कि वे अपरिहार्य हैं। कानून व्यवस्था के लिए कारखास सबसे बड़े खतरे हैं। कितने सचिवालय के कर्मचारियों के घरों पर, कितने रसूखदार Retired IAS/IPS के दरवाजों पर ये कारखास Duty बजाते हैं जबकि कागज में वहां कोई पद Sanctioned नहीं है। हर कार्यालय में Jawahar Bhawan से लेकर Indira Bhawan etc. तक यह जिलों से attached है जहां allocation नहीं है। इनकी तनख्वाह कहीं और से निकलती है तथा Attendance कहीं और होती है-- ऐसे हजारों कारखास हैं।
जैसे कभी जमीदारी प्रथा टूटी, जैसे नोटबंदी हुई-वैसे ही यदि कारखास प्रथा टूट जाए तो अपराधियों का आधा मनोबल टूट जाएगा तथा पुलिस का मनोबल दूना हो जाएगा। कार खास Staff इतना सशक्त है कि अपने Boss के Boss के Boss की Transfer/Posting में दखल देता है। केवल कारखास सिपाहियों के Assets की जांच करा ली जाए तो IPS Officers की इनके आगे कोई आर्थिक हैसियत नहीं है। हालात यहां तक बिगड़ गए हैं कि ये चंदा कर अपनी Choice का Inspector तथा CO तो पोस्ट कराते ही हैं SSP तथा DIG भी अपनी मर्जी का बैठाने के लिए Lobbying तथा चंदा करने लगे हैं। यदि कारखास प्रथा समाप्त नहीं हुई तो 10 वर्षों के बाद हो सकता है IG वगैरह की स्थिति मीर जाफर तथा मीर कासिम की हो जाए तथा यह कारखास East India Company की हैसियत में आ जाएं।
#आखिर_सहारनपुर_समस्या_का_राजनीतिक_समाधान_क्या_है?
क्यों ऐसी घटनाएं हो रही हैं?
उत्तर है-भाजपा की तुष्टिकरण की नीति।
मेरा सुझाव है कि सब के साथ समानता का व्यवहार किया जाए तथा तुष्टिकरण किसी का न हो- चाहे जाति के आधार पर या धर्म के आधार पर।
सहारनपुर कांड की नींव तभी पड़ गई थी जब उत्तर प्रदेश सरकार ने परशुराम तथा महाराणा प्रताप के जन्मदिन का अवकाश रद्द कर दिया तथा बुद्ध और डॉ.अंबेडकर के जन्म दिन के अवकाश को बहाल रखा- गांधीजी भी यथावत अवकाश दाता बने रह गए। यह तुष्टीकरण की पराकाष्ठा थी। मैं सरकार की किसी नीति का न तो समर्थन कर रहा हूं और ना ही विरोध- मात्र विश्लेषण प्रस्तुत कर रहा हूं। यह किसी भी निर्वाचित सरकार का विशेषाधिकार है कि वह अवकाश दे या न दे। किंतु सरकार को यह अधिकार नहीं है कि भेदभाव बरते। सरकार यदि ईद का अवकाश निरस्त कर दे तथा होली या दिवाली का अवकाश बरकरार रखे तो स्पष्ट संकेत जाएगा कि मुसलमान दोयम दर्जे का नागरिक हो गया है तथा भारत एक हिंदू राष्ट्र बन गया है-चाहे यह घोषणा हो या न हो। इसके विपरीत यदि दशहरा,दिवाली का अवकाश निरस्त हो जाए तथा ईद,बकरीद का बरकरार रहे तो संदेश साफ होगा कि भारत अब दारुल-हरब से दारुल-इस्लाम में बदल चुका है चाहे निजामे-मुस्तफा की घोषणा की जाए या नहीं।
इसी क्रम में भारत में परशुराम तथा बुद्ध दोनों को भगवान का अवतार माना गया है। बुद्ध का अवकाश कायम रखते हुए परशुराम के अवकाश को निरस्त करना इस बात का सूचक है कि भारत एक बौद्ध देश हो गया तथा सनातनधर्मी ब्राह्मण अब दोयम दर्जे का नागरिक हो गया। ब्राह्मण बुद्धिजीवी था, उसने समय की नजाकत को समझा।
मोदी जी ने लंदन में पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि भारत गांधी और बुद्ध का देश है। यह राम, कृष्ण, परशुराम, सुभाष, सावरकर तथा गोलवलकर के व्यक्तित्व और कृतित्व को पृष्ठभूमि में डालने वाला बयान था। पुनः देखा गया कि न केवल आरक्षण बल्कि असीमित आरक्षण, बैकलाग, प्रमोशन में आरक्षण तथा सिविल राइटस् एक्ट की जगह संशोधित अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम2016 को समर्थन देने वाले तथा इसको पारित कराने के लिए हाथ उठाने वाले दिग्गज ब्राह्मण, जिनके हाथ में फरसा उठाने की ताकत है, परशुराम जन्मोत्सव में मंच पर विराजते हैं, तो मनुवादी पार्टी ने स्पष्ट निर्णय लिया कि उसका कोई पदाधिकारी ऐसी किसी भी परशुराम यात्रा में सम्मिलित नहीं होगा जिसमें मोदी,सोनिया, मायावती, सपा आदि के हीरो आमंत्रित हों। परशुराम जी से क्षमायाचना कर ली गई कि जब तक हमारे हाथों में फरसा उठाने की शक्ति नहीं, तब तक हम आपके पिता श्री जमदग्नि के पदचिन्हों पर चलेंगे।
जो समाज जमदग्नि नहीं पैदा कर सकता, उसमें परशुराम का आविर्भाव नहीं हो सकता।जब जमदग्नि का गला कटता है तब किसी परशुराम का फरसा उठता है। यही विवेक क्षत्रियों में न आ सका, वह नहीं समझ सके कि योगी जी महंत दिग्विजयनाथ के मठ में उत्तराधिकारी हैं किंतु राजनीति में वह भाजपा में विलीन हो चुके हैं। राजा भैया की तरह उन्होंने सीमित क्षेत्र में भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व बरकरार नहीं रखा है बल्कि मोदी के सामंत हैं- उन मोदी के जो भारत को गांधी और बुद्ध का देश घोषित करने के बाद अंबेडकर साधना में लीन होकर अंबेडकरमय हो गए हैं तथा Promotion में Reservation का वार तत्काल होने जा रहा है तथा इसकी घोषणा भी हो चुकी है और Backlog तथा Private Sector में Reservation आने वाले हैं। मनुवादी पार्टी ने अपने क्षत्रियों को समझाने की कोशिश की कि बिना "हनुमान लला" की साधना के राम नहीं मिलते तथा बिन "राधे राधे" जपे कृष्ण सुलभ नहीं होते।
इसी क्रम में राणाप्रताप बनने से पहले झाला बनने की तैयारी करें
राणा बनने की चाह नहीं,
मुझमें इतनी है शक्ति कहां?
मां तेरी पावन पूजा में,
झाला सा शीस चढ़ा पाएं।
क्षत्रिय समाज को हम नहीं समझा सके कि अंबेडकर तथा गांधी के आगे राणा प्रताप को तथा बुद्ध के आगे परशुराम को महत्वहीन बताने वालों के साथ महाराणा प्रताप की शोभायात्रा नहीं निकल सकती। अब मोदी राज में परशुराम को बुद्ध की तथा राणा प्रताप को गांधी तथा अंबेडकर की दया पर रहना होगा। वोट आरक्षणसमर्थकों को दिया जाए तथा यात्रा निकाली जाए- परशुराम या राणा प्रताप की-यह Combination नहीं चलने वाला।
वक्त ने करवट बदली जिसका अंदेशा था,वही हुआ। हंसने और गाल फुलाने की एक साथ कोशिश हुई, परिणाम सामने है-यह घटना मायावती के समय में नहीं संभव थी- यह घटना अगर केशव मौर्य मुख्यमंत्री होते तो भी न होती। क्षत्रियों ने योगी का तथा पुराने संघ का चेहरा देखा था जहां "वन-वन स्वतंत्रता दीप लिए फिरने वाले बलवान" की पूजा होती थी। हल्दीघाटी लिखने वाले श्याम नारायण पांडे सम्मानित होते थे-क्षत्रियों की समझ में नहीं आ पाया कि अब भाजपा का वातावरण अंबेडकरमय है तथा राणा प्रताप की शोभायात्रा निकालना भी अपराध है। "हल्दीघाटी" तथा "जौहर" पूरे भारत के पाठ्यक्रम से बहिष्कृत है-आज गुरु जी गोलवलकर सरसंघचालक होते तो भी यह घटना नहीं घटती क्योंकि तब भीम सेना को पता होता कि राणा प्रताप की शोभायात्रा नहीं रुकेगी। क्षत्रियों को यह कल्पना नहीं थी कि संघ राणा प्रताप की यात्रा, गोरक्षा तथा हिंदू युवा वाहिनी के नाम पर योगी की Class लेगा। क्षत्रिय नहीं समझ पाया कि जब मात्र चार बच्चे पैदा करने के साध्वी के आह्वान पर RSS बुदबुदाने लगता है कि औरत बच्चा पैदा करने की Factory नहीं है।
ब्राह्मणों ने इस Writing on the wall को पढ़ा तथा परशुराम को सादर प्रणाम करते हुए परशुराम के नाम पर आयोजनों से दूरी बनाते हुए जमदग्नि के पथ पर चलने का निर्णय लिया। प्रशासन भी दुविधाग्रस्त था वह न तो शोभा यात्रा की अनुमति दे पाया और ना ही उसे Effectively रोक पाया।
मात्र योगी सरकार एक लाइन का निर्णय ले ले कि राणा प्रताप तथा परशुराम जयंती का अवकाश बना रहेगा अन्यथा बुद्ध,अंबेडकर गांधी,नेहरु के भी अवकाश समाप्त होंगे तो ऐसी घटनाएं घटित नहीं होंगी। यदि स्पष्ट शब्दों में यह संदेश सुना दिया जाएगा कि अब बुद्ध और गांधी तथा अंबेडकर का ही मान-सम्मान रहेगा तो भी दुविधा का माहौल नहीं रहेगा- रिमझिम बरसात में कच्चे मकान ज्यादा गिरते हैं। शासन तथा प्रशासन जब अनिर्णय के शिकार होते हैं तब शांति व्यवस्था की समस्याएं सिर उठाती हैं। मायावती के शासन में यह समस्याएं नहीं उठी क्योंकि सबको पता था कि ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों के लिए मायावती के Store में क्या है।

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