जनसंघ/भाजपा ही लोहिया, जयप्रकाश,मुलायम सिंह, लालू, मायावती तथा अन्ना जैसों की संजीवनी है।
नरेश की चौतरफा निंदा हो रही है। राम के स्वरूप का निर्धारण करते हुए गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-
जाकी रही भावना जैसी।
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।
तुलसीदास के इस मानक पर नरेश अग्रवाल पूरी तरह खरे उतरते हैं।
जैसे वे स्वयं हैं, जैसी उनकी भावना है-उसी रुप में राम ने उनको दर्शन दिए। प्रभु की मूर्ति उसी रुप में दिखी।
मंथरा को,कैकेई को,भरत को, लक्ष्मण को, वशिष्ठ को, विश्वामित्र को, सीता को, जनता को, अहिल्या को, सुबाहु-ताड़का को,रावण को, विभीषण को, सुग्रीव को, बालि को, हनुमान को राम अलग-अलग रूपों में दिखे- यद्यपि वे एक ही व्यक्तित्व थे। इसी प्रकार नरेश ने अपनी औकात बता दी- राम उन्हें उसी तरह धरातल पर ला देंगे जैसे उनके संरक्षक मुलायम सिंह यादव को ला दिया है। मुलायम सिंह यादव ने कितनी शान से अयोध्या में परिंदे के पर न मारने की चेतावनी दी थी-कितना नाज था उन्हें मुसलमानों पर- आजम खान समेत एक मुसलमान विधायक भी उन्हें साथ देने को नहीं मिला। तड़पते हुए पुनः राम का नाम लेने वाली भाजपा के शरणागत हुए- वह भी चुपके चुपके। प्रायश्चित की मुद्रा में नहीं- अयोध्या गोलीकांड का औचित्य बखानते हुए। स्वयं तो डूबेंगे ही, शिवपाल को भी ले डूबेंगे- अपर्णा को भी। न सीधे भाजपा में शामिल होने दे रहे हैं और न ही भाजपा की खिलाफत कर पा रहे हैं। न घर के, न घाट के।
हर घाट का पानी नरेश पी चुके हैं- शीघ्र ही वे भाजपा की गोद में होने की जुगाड़ में होंगे।
RSS को पहचानना सबके वश की बात नहीं- कम से कम राहुल तथा दिग्विजय सिंह जैसों की तो कतई नहीं। RSS जिसको ऊपर उठाने लगे, समझ लो कि उसका विनाश आ गया। ऊपर उठाने के बाद जब वह जमीन पर पटकती है,तो घायल जीव कराहने लायक भी नहीं बचता- सीधे राजनीति के गटर में बह जाता है। जयप्रकाश नारायण तथा अन्ना जैसों को जीरो से हीरो बनाना और पुनः हीरो से जीरो बना देना- "पुनर्मूषको भव" (फिर से चूहे बन जाओ)- RSS के लिए मात्र एक लीला है- मनोरंजन का साधन।
नरेश समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य हैं। उनके आदिगुरु लोहिया जी ने घोषणा की थी कि उन्हें राम से सीता के आंसुओं का तथा शंबूक के खून का बदला लेना है। नेहरू को लोहिया आधुनिक वशिष्ठ घोषित करते हुए अपमानजनक बातें वशिष्ठ के लिए करते थे। जनेश्वर मिश्र जैसे "मिनी लोहिया" "जनेऊ तोड़ो अभियान" में जनेऊ का कितना सम्मान रखते थे- दुनिया जानती है।
मंच पर चढ़कर जनेऊ तोड़ा जाता था तथा पैरों तले रौंद दिया जाता था। मुलायम सिंह यादव के जमाने में राम एवं राम भक्तों को पत्ता न खड़कने की चुनौती दी गई, तथा इसी चुनौती ने बाबरी मस्जिद को इस हालत में पहुंचा दिया।
नरेश अग्रवाल लोहिया तथा सपा की विचारधारा के प्रतिनिधि हैं। उनका यह कार्य स्वाभाविक है। गलती तो उन लोगों की है जो 'कालनेमि' हैं, एवं रामभक्त बने बैठे हैं, किंतु नरेश अग्रवाल जैसों को संसद की सदस्यता से च्युत नहीं करते हैं। जो सजा कमलेश तिवारी को उनके उद्गारों के लिए मिली, वह सजा नरेश अग्रवाल को क्यों नहीं मिल सकती?
शायद भाजपा के नक्शे में हो कि कभी भविष्य में नरेश अग्रवाल को भाजपा में शामिल करना पड़े, इसलिए भाजपा निर्णायक कार्यवाही करने में हिचक रही है।
जैसे वे स्वयं हैं, जैसी उनकी भावना है-उसी रुप में राम ने उनको दर्शन दिए। प्रभु की मूर्ति उसी रुप में दिखी।
मंथरा को,कैकेई को,भरत को, लक्ष्मण को, वशिष्ठ को, विश्वामित्र को, सीता को, जनता को, अहिल्या को, सुबाहु-ताड़का को,रावण को, विभीषण को, सुग्रीव को, बालि को, हनुमान को राम अलग-अलग रूपों में दिखे- यद्यपि वे एक ही व्यक्तित्व थे। इसी प्रकार नरेश ने अपनी औकात बता दी- राम उन्हें उसी तरह धरातल पर ला देंगे जैसे उनके संरक्षक मुलायम सिंह यादव को ला दिया है। मुलायम सिंह यादव ने कितनी शान से अयोध्या में परिंदे के पर न मारने की चेतावनी दी थी-कितना नाज था उन्हें मुसलमानों पर- आजम खान समेत एक मुसलमान विधायक भी उन्हें साथ देने को नहीं मिला। तड़पते हुए पुनः राम का नाम लेने वाली भाजपा के शरणागत हुए- वह भी चुपके चुपके। प्रायश्चित की मुद्रा में नहीं- अयोध्या गोलीकांड का औचित्य बखानते हुए। स्वयं तो डूबेंगे ही, शिवपाल को भी ले डूबेंगे- अपर्णा को भी। न सीधे भाजपा में शामिल होने दे रहे हैं और न ही भाजपा की खिलाफत कर पा रहे हैं। न घर के, न घाट के।
हर घाट का पानी नरेश पी चुके हैं- शीघ्र ही वे भाजपा की गोद में होने की जुगाड़ में होंगे।
RSS को पहचानना सबके वश की बात नहीं- कम से कम राहुल तथा दिग्विजय सिंह जैसों की तो कतई नहीं। RSS जिसको ऊपर उठाने लगे, समझ लो कि उसका विनाश आ गया। ऊपर उठाने के बाद जब वह जमीन पर पटकती है,तो घायल जीव कराहने लायक भी नहीं बचता- सीधे राजनीति के गटर में बह जाता है। जयप्रकाश नारायण तथा अन्ना जैसों को जीरो से हीरो बनाना और पुनः हीरो से जीरो बना देना- "पुनर्मूषको भव" (फिर से चूहे बन जाओ)- RSS के लिए मात्र एक लीला है- मनोरंजन का साधन।
नरेश समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य हैं। उनके आदिगुरु लोहिया जी ने घोषणा की थी कि उन्हें राम से सीता के आंसुओं का तथा शंबूक के खून का बदला लेना है। नेहरू को लोहिया आधुनिक वशिष्ठ घोषित करते हुए अपमानजनक बातें वशिष्ठ के लिए करते थे। जनेश्वर मिश्र जैसे "मिनी लोहिया" "जनेऊ तोड़ो अभियान" में जनेऊ का कितना सम्मान रखते थे- दुनिया जानती है।
मंच पर चढ़कर जनेऊ तोड़ा जाता था तथा पैरों तले रौंद दिया जाता था। मुलायम सिंह यादव के जमाने में राम एवं राम भक्तों को पत्ता न खड़कने की चुनौती दी गई, तथा इसी चुनौती ने बाबरी मस्जिद को इस हालत में पहुंचा दिया।
नरेश अग्रवाल लोहिया तथा सपा की विचारधारा के प्रतिनिधि हैं। उनका यह कार्य स्वाभाविक है। गलती तो उन लोगों की है जो 'कालनेमि' हैं, एवं रामभक्त बने बैठे हैं, किंतु नरेश अग्रवाल जैसों को संसद की सदस्यता से च्युत नहीं करते हैं। जो सजा कमलेश तिवारी को उनके उद्गारों के लिए मिली, वह सजा नरेश अग्रवाल को क्यों नहीं मिल सकती?
शायद भाजपा के नक्शे में हो कि कभी भविष्य में नरेश अग्रवाल को भाजपा में शामिल करना पड़े, इसलिए भाजपा निर्णायक कार्यवाही करने में हिचक रही है।
