कुछ ब्राह्मण संगठनों ने आह्वान किया है कि वे रायबरेली हत्याकांड में सरकार द्वारा लिए गए फैसले से संतुष्ट हैं तथा इस पर राजनीति नहीं करेंगे और सरकार का इस मुद्दे पर साथ देंगे।
क्या न्याय की मांग करना राजनीति करना है?
ब्राह्मण ने देश, राष्ट्र तथा समाज के हित में सदैव अपने स्वार्थों का बलिदान किया किंतु स्वाभिमान से समझौता नहीं किया। ब्राह्मण ने रावण का साथ नहीं दिया, राम की पूजा की। मां सीता को चोंच मारने वाले इंद्र पुत्र जयंत की पूजा नहीं की- मां सीता की आराधना की।
इस युग में भी मनुवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की हैसियत से
ब्राह्मण ने देश, राष्ट्र तथा समाज के हित में सदैव अपने स्वार्थों का बलिदान किया किंतु स्वाभिमान से समझौता नहीं किया। ब्राह्मण ने रावण का साथ नहीं दिया, राम की पूजा की। मां सीता को चोंच मारने वाले इंद्र पुत्र जयंत की पूजा नहीं की- मां सीता की आराधना की।
इस युग में भी मनुवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की हैसियत से
1_मैंने विश्वनाथ प्रताप सिंह के कार्यकाल में भुट्टा चुराने वाले यादवों तक का fake encounter करने की नीति की आलोचना की है।
2_देवली हत्याकांड (जिसमें 24 हरिजन एक साथ मारे गए थे) के अभियुक्तों राधे और संतोष को उसी सम्मान के साथ जेल भेजे जाने की आलोचना की है जिस सम्मान के साथ रायबरेली हत्या कांड के अभियुक्तों को जेल भेजा गया है।
3_रिहाई मोर्चा के संयोजक के साथ Debate में K-News पर मैंने रिहाई फोरम की उस जायज मांग का समर्थन किया जिसमें मां एक अपराध में जेल काट रहे बच्चे को अपना बेटा बताकर DNA Test की मांग कर रही थी।
4_अन्याय, अत्याचार तथा अनाचार किसी के साथ हो, उसके खिलाफ आवाज उठाने में कभी जाति तथा धर्म की बाधाओं को नहीं आने दिया।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यदि सताया हुआ पक्ष ब्राह्मण हो तो हम केवल इसलिए बचाव की मुद्रा में आ जाएं कि लोग क्या कहेंगे?
किसने क्या सोचा या समझा
मुझको पता नहीं
मेरी मन गति कभी दूसरों
की अनुगता नहीं
मुझको कुछ अंदाज नहीं है खोने पाने का
मैंने महज बुने
कबिरा के ताने बाने हैं।
(सुव्रत त्रिपाठी)
मुझको पता नहीं
मेरी मन गति कभी दूसरों
की अनुगता नहीं
मुझको कुछ अंदाज नहीं है खोने पाने का
मैंने महज बुने
कबिरा के ताने बाने हैं।
(सुव्रत त्रिपाठी)
इस संबंध में प्रेरणा ली जा सकती है रमेश चंद्र IAS, कालिका प्रसाद IAS, फतेह बहादुर IAS, ओम प्रकाश IAS, चमनलाल प्रद्योत IPS, दारापुरी IPS, बृजलाल IPS, बंशीलाल IPS, रामेश्वर दयाल IPS, मल्कियत सिंह IPS, होशियार सिंह बलवारिया IPS, प्रकाश सिंह IPS, रतीराम IPS, सियारामशरण आदित्य IPS जो सदैव अपने समाज के कल्याण के लिए चिंतित रहे किंतु किसी अन्य समाज के सदस्य के प्रति उनके मन में घृणा के भाव नहीं थे। जिस जाति में किसी व्यक्ति ने जन्म लिया, उसमें सुधार लाने तथा उसके उत्थान एवं रक्षा के बारे में सोचना उसका दायित्व है- किंतु इतनी ही संवेदनशीलता हर समाज के बारे में होनी चाहिए।
मैं केवल रायबरेली के पंडितों के लिए ही कलम और वाणी नहीं चला रहा। मैंने स्वाति सिंह प्रकरण में पूर्ण समर्थन का आह्वान किया था क्योंकि दयाशंकर सिंह ने कुछ भी कहा हो, उसके लिए वे दंडित हुए किंतु नसीमुद्दीन के मंच से जो दयाशंकर की पत्नी और बेटी के पेश करने की बात आई, वह अक्षम्य थी। हम शर्मिंदा हैं कि स्वाति सिंह के मंत्री बन जाने के बाद भी नसीमुद्दीन की गिरफ्तारी नहीं हुई। इसके लिए हम भाजपा की निंदा करते हैं कि भाजपा जब तक विपक्ष में होती है, तब तक भाजपा पद्मिनी वाली भाजपा रहती है तथा सत्ता में आते ही वह जोधाबाई को आदर्श मानने लगती है। भाजपा को नसीमुद्दीन को जेल भेजकर यह संदेश देना चाहिए था कि स्वतंत्र भारत में किसी को अकबर की तरह मीना बाजार लगाने की इजाजत नहीं दी जा सकती, जहां बहुएं और बेटियां पेश की जाएं।
इसी क्रम में मेरी मांग है कि रायबरेली कांड को सभी जाति और धर्म के लोग गंभीरता से लें। जो लोग इसे उपेक्षित करेंगे वे सोच लें कि यही प्रवृत्ति मलियाना और हाशिमपुरा कांड कराती है।
इस कांड के बाद जिस तरह का बयान स्वामी प्रसाद मौर्य का आया, वह जले पर नमक छिड़कने वाला था तथा पुलिस द्वारा अभियुक्तों को थाने में तथा रास्ते में जो Red Carpet Welcome दिया गया, वह दिल को दहला देने वाला था। किस तरह से प्रशासन ने पूरी घटना को दुर्घटना का रूप देना चाहा- यह किसी से छिपा नहीं है। आरोप लगाया गया कि हत्या के शिकार लोग अपराधी प्रवृत्ति के हैं। भाजपा के ही एक अनुषांगिक संगठन के भलारा जी का बयान पढ़ने को मिला कि उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। यदि तर्क के लिए मान भी लिया जाए कि है, तो क्या किसी को नृशंस हत्या करने का अधिकार मिल गया?
यह बयान जंगलराज का आह्वान है। पकड़ लेने के बाद मार डालना तथा जला देना, अंग-भंग करना- क्या उचित है?
अखिलेश के राज्य में तो सिर्फ जंगलराज था भाजपा के राज्य में तो जंगल का कानून लागू करने की बात की जा रही है। Private enemities को free fight में बदलने से रोकना state का दायित्व है।
मृतकों की लाश पर मैं राजनीति करने पर विश्वास नहीं रखता। मृतक मेरी पार्टी के सदस्य नहीं थे- लेकिन वे मनुष्य थे तथा कोई ब्राह्मणवाद का आरोप न लगा दे इस डर से उनसे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।
कुछ ब्राह्मण सभाओं का आह्वान पढ़ने को मिला कि वे इस संबंध में होने वाले प्रदर्शनों का पूर्ण बहिष्कार करेंगे। स्वामी प्रसाद मौर्य तथा दिनेश शर्मा से वार्ता के बाद साक्षात आराध्य विष्णु को लात मारने वालों के वंशज कैसे लात खाने को तैयार हो गए- यह आश्चर्य का विषय है।
मैं तो समझता हूं कि निम्न परिस्थितियां लात खाने के तुल्य हैं, आपकी सोच क्या है?-
1 स्वामी प्रसाद मौर्य कि मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी तो दूर उन्होंने बिना शर्त क्षमायाचना तक नहीं की( unconditional apology tender नहीं की)।
2 क्षमा याचना तो दूर, अपने वचन वापस तक नहीं लिए, खंडन करने की औपचारिकता तक नहीं निभाई। Press द्वारा out of the context quote (उदधृत) किये जाने का बहाना तक नहीं ढूंढे।
3 परिस्थितियां चीख-चीखकर बोल रही हैं कि कम से कम 100-50 लोगों की इस घटना में संलिप्तता थी। किंतु केवल कुछ गिने चुने लोगों को प्रकाश में लाया गया है।
4_CBI जांच के बिना यह स्पष्ट नहीं हो सकता कि किस महापुरुष की प्रेरणा से पुलिस द्वारा अभियुक्तों को VIP Treatment दिया गया।
ये चारों परिस्थितियां लात खाने के बराबर हैं। लात खाकर भी लात न मारना दयनीयता की पराकाष्ठा है परंतु लात मारना तो दूर चीखना-चिचियाना भी बंद कर देना पतनोन्मुख मानसिकता का द्योतक है। TV Debates में,फेसबुक पर तथा अन्य माध्यमों से मैंने अपनी solidarity व्यक्त की।हमारे प्रदेश अध्यक्ष तथा सचिव परिजनों तक पहुंचे तथा स्वयं के Bedridden स्थिति में होने के कारण court तथा electronic media में जो कुछ संभव है- करने का प्रयास कर रहा हूं। अपनी-अपनी कार्य प्रणाली के अनुसार जो संगठन विधि सम्मत ढंग से जो करना चाहे, मेरा तथा मनुवादी पार्टी का उसे पूर्ण समर्थन है। बहिष्कार का तो प्रश्न ही नहीं उठता। हां, यह अवश्य है कि हमारा विश्वास किसी दिल्ली के जंतर-मंतर पर या लखनऊ के GPO पर विरोध प्रदर्शन में नहीं है। फिर भी यदि कोई कर रहा है, तो मैं उसका विरोध नहीं कर रहा। हमारी शैली है- गली-कूचे में, गांव गांव की चौपाल तक, हर घर के Drawing room तथा Bedroom तक किसी चर्चा को ले जाना। जिसे social media में viralकरना कहते हैं-
हम ज्ञान के गोलों से
औ तर्क की तोपों से
दुनिया से जहालत की
दीवार ढहा देंगे।
हमने हर समर्थक के निश्चित तिथि पर बाल छिलवाने का कार्यक्रम पूरे देश में रखा था, जिसे इस कारण से स्थगित किया जा रहा है कि मृतकों के परिवारीजन कुछ स्थानीय परिस्थितियों के कारण अभी सारे कार्यक्रम स्थगित किए हुए हैं। अगर हर ब्लाक में भी मात्र 100 व्यक्ति मुंडन करा लें तो महीने भर तक जो भी व्यक्ति घुटा सिर देखकर कारण पूछेगा, उसे पूर्ण उत्तर मिल जाएगा तथा घर-घर चर्चा हो जाएगी।
मैं समस्त सवर्ण बंधुओं से अनुरोध करता हूं कि वे यदि किसी ऐसी सामाजिक संस्था या जातिगत महासभा के सदस्य हों, जो जातिगत आरक्षण की समर्थक लोगों को सदस्यता या पद देती है या उनको अतिथि बनाती है अथवा चुनाव के समय आरक्षण समर्थकों को वोट देने की अपील करती है उन सभाओं से दूरी बनाएं।
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