Thursday, 28 September 2017

पावस में बादल प्यासा


जब दो प्यासे आते हैं,
लेकर दो मधु – घट प्यासे |
तो केवल भरते हैं वे,
अर्पण से या कविता से || 6 ||

मैंने तुमको देखा था,
कल पतझर की बाहों में |
तुम आज आ गयी कैसे,
इन बासन्ती चाहों में || 7 ||

नभ – पथ की चिर संगिनि तुम,
प्रतिबन्ध न तुमने माना |
तुम तो अलक्ष्य छविशीला,
पहचाना जिसने जाना || 8 ||

स्वीकार न तुमको बंधन,
स्वीकार न तुमको छाया |
आवरण न तुमने डाला,
उन्मुक्त तुम्हारी माया || 9 ||

कोई भी शक्ति नहीं है,
अवरुद्ध तुम्हें कर पाए |
दिन में भी तुमको दिखते,
निशि के सपने मनभाये || 10 ||

आमोद तुम्हारा स्वर है,
उल्लास तुम्हारी भाषा |
तुम जहाँ कहीं रहती हो,
रहता न एक भी प्यासा || 11 ||


क्रमशः .........

Monday, 18 September 2017

नहीं आज का यह जीवन है, जनम जनम का खेल |



इधर समर्थन सुमन, उधर कुछ शूलों की बौछार |
बिदा समय में मिल पायेगा क्या रीता – उपहार ||

प्रोत्साहित करते है मुझको ये अनुजी संकल्प,
आशाएं अनुजा – सी कहतीं खोज न और विकल्प,
आस्था की जननी ने मुझको दिया सात्विकी नेह,
अग्रज बन कर धैर्य कह रहा बढ़ तू निस्संदेह,
एक अग्रजा कल्पलता – सी देती है आशीष,
जनक विवेक आत्मचिन्तन में बैठे हैं नत शीश,

करता स्वयं अनिश्चय ही है निश्चय का श्रृंगार |
बिदा समय में मिल पायेगा क्या रीता – उपहार ||

कितने दिन से सतत चल रहा मन का अंतर्द्वंद्व,
कैसे हम स्वच्छंद हमारी गति न अगर स्वच्छंद,
सौ अनुकूल निरर्थक हैं क्या, एक अगर प्रतिकूल,
कैसे उपवन को बेचेगा एक अपंगी शूल,
रोक न पाता है प्रकाश को कभी तिमिर का तीर,
प्रतिद्वंद्वी ईर्ष्या ने लांघी कब जय की प्राचीर,

नहीं एक बदली ने रोका है क्षितिजी विस्तार |
बिदा समय में मिल पायेगा क्या रीता – उपहार ||

मन का नियम प्रणति आगत की, राही से व्यामोह,
जितना मीठा मिलन, सनेही उतना प्रात – बिछोह,
जाने वाले के आने की रहती ही है आश,
शायद फिर आकंठ तृप्ति से भर जाए भुजपाश,
कहीं सत्य छिपकर रहता हैं, अलस कल्पना लोक,
जिसके अधरों पर कंपन हैं, अन्तर में आलोक,

पूछ रहे है अधर – द्वार पर नत आकुल उद्गार |
बिदा समय में मिल पायेगा क्या रीता – उपहार ||

नहीं आज का यह जीवन है, जनम जनम का खेल,
बनी आकुला आत्मा दूरी, पर निसर्ग है मेल,
संबोधन कोई भी समझो यहाँ मात्र दो नाम,
एक तुम्हारी प्रीति पुनीता, एक तुम्हारा धाम,
चंचल मन को उद्वेगों की नाव ले गयी पार,
मैं निहारता रहा प्रियतम खड़ी हुई मंझधार,

तृष्णा नीर, विसर्जन नौका, नाविक पारावार |

बिदा समय में मिल पायेगा क्या रीता – उपहार ||

Saturday, 16 September 2017

असली बाबा बनाम नकली / ढोंगी बाबा


आजकल इलेक्ट्रानिक / प्रिंट / सोशल मीडिया पर एक होड़ सी मची है नकली / ढोंगी / फर्जी / स्वयंभू बाबाओं के खिलाफ अभियान की जैसे सारी बुराइयों की जड़ ये नंबर 2 के बाबा ही हों तथा नंबर 1 वाले बाबाओं को बुराई स्पर्श भी न किये हो | इसी तरह एक अजब सी बहस छिड़ी है ब्राह्मण बाबा बनाम गैर – ब्राह्मण बाबाओं की | यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जिस क्षेत्र में पैदा हुआ – गोरखपुर जोन में, वहां हर ब्राह्मण को बाबा कहा जाता हो, चाहे वह गृहस्थ हो या सन्यासी – वह पदेन बाबा है – तथा अन्य जातियों के लोग जो गेरुआ धारण कर सन्यासी / विरक्त करने की घोषणा कर लेते हैं या मंदिर में दाढ़ी बगैरह बढाकर काफी समय बिताते हैं – उन्हें भी बाबा कहा जाता है | जैसे कोई क्षत्रिय, चाहे कितना भी गरीब हो, उसे बाबू साहब (father) कहा जाता है, वैसे ही शिष्टाचार में पूरी ब्राह्मण जाति को बाबा (grandfather) कहा जता है | इसी तरह बनिये को सेठ (श्रेष्ठ = great man ) कहा जाता है, चाहे वह निर्धन ही क्यों न हो | इसे हम वर्णाश्रम व्यवस्था का ध्वंसावशेष कह सकते हैं | इसी तरह पंक्ति पावन ब्राह्मणों में बच्चों तक को ‘बाबा’ से सम्बोधित किया जाता है – ‘पंतिहा बाबा’|
2 – ‘जाती न पूछौ साधु की’ हमारी चिर मान्यता रही है | किन्तु राम रहीम बाबा, बाबा आशाराम बापू, बाबा रामवृक्ष आदि के करतबें को देखकर बाबाओं की जाति को भी लेकर ताने मारे जा रहें हैं | इसी क्रम में जब बाबा रामदेव ने राहुल के दलितों के घर भोज के बारे में पवित्र विचार व्यक्त किये थे (ISI certificate की तरह न केवल मोदी तथा अमित शाह बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की फैक्ट्री द्वारा पूर्ण मान्यता प्राप्त बाबा ठहरे – सच्चे बाबा सद्गुणों के प्रतीक )कि राहुल दलितों के यहाँ भोजन करने नहीं जाते बल्कि हनीमून मनाने जाते हैं, तो संतों ने इस पर प्राइवेट चर्चा में मुस्कराकर गोस्वामी तुलसीदास को उद्धृत किया था कि ‘सियाराम मय सब जग जानी’ अर्थात जैसे तुलसीदास को सारे संसार में सीता और राम के दर्शन होते थे, उसी प्रकार बाबा रामदेव को हजारों की भीड़ में दलित कन्या की मौजूदगी में राहुल के किये गए भोजन में भी हनीमून की बू आ रही है अर्थात वे पूर्ण ‘हनीमूनमय’ हो गये हैं | इसके विपरीत मायावती अपनी विशिष्ट शैली में इतने पवित्र उद्गार – सच्चे बाबा के संत वचन की टिप्पणी में बोली कि “ बाबा रामदेव यादव हैं यादव – शुद्ध अहीर | उनसे इससे अच्छी टिप्पणी की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए |” मायावती स्वाभाव से लाचार होकर हर टापिक को मनुवाद अथवा जाति विशेष के ढांचे में ही ढालकर अपनी टिप्पणी पेश करती हैं | राहुल गांधी ढोंग करते हैं, दलितों के शुभचिंतक नहीं है, उनकी गरीबी का मजाक उड़ाते हैं – आदि आदि बातें उनके विरोधी आलोचना में कहते तो शोभा देती किन्तु राहुल के दुश्मन भी स्वीकार करेंगे कि कांग्रेस के कितने भी पतन का काल क्यों न हो जहाँ कभी राहुल जाते है, सुरक्षा कर्मियों तथा पदाधिकारियों की संख्या ही हजारों में है, जो छाया की तरह उनके साथ चलते हैं, जब तक कि वे बिना प्रोग्राम दिए गुपचुप अवकाश मनाने के अभियान में देश विदेश में न हो | अवकाश के समय वे क्या करते हैं – मैंने कभी झाँकने की कोशिश नहीं की और न ही इस विषय पर कोई टिप्पणी करना चाहता हूँ किन्तु कोई भी समझदार (SENSIBLE) व्यक्ति मायावती के जातिगत बयान से भले सहमत न हो, किन्तु इतना तो मानना पड़ेगा की राहुल वहां हनीमून नहीं मना रहें होंगे फिर भी सनातनी हिन्दुओं ने बाबा की निंदा नहीं की बल्कि सादर प्रणाम किया क्योंकि वे सनातन संस्कृति की मर्यादा के अनुरूप राहुल की MORAL POLICING कर रहें हैं – बच्चे को सिखा रहें हैं – कोई दुर्भावना नहीं हैं क्योंकि वे कभी सोनिया के बारे में प्रलाप नहीं किये – वह अक्षम्य स्थिति होती |
बाबा रामदेव यादव होने के बाद भी पूज्य इसीलिए हैं कि वे राहुल की MORAL POLICING करते हुए भी कभी सोनिया या प्रियंका पर कोई भी आरोप लगाने की हिमाकत नहीं किये | भारतीय संस्कृति का आदर्श है – “न स्वैरी स्वैरिणी कुतः”
( यदि पुरुष अवारा न हो, तो औरत अवारा कैसे होगी |) शास्त्रों के अनुसार नारियां मासिक धर्म स्वीकार नहीं कर रहीं थी | ब्रह्मा जी के बहुत समझाने पर उन्होंने मासिक धर्म तब स्वीकार किया, जब ब्रह्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि रजोस्राव के बाद उनके सारे पाप धुल जायेंगे | अतः वही नारी व्यभिचार के लिए दण्डित की जा सकती है, जो रजोनिवृत्ति (MENOPAUSE) के बाद व्यभिचार करे | विवाह पूर्व यदि वह कोई पुत्र पैदा कर चुकी हो, तो वह भावी पति का कानीन पुत्र माना जायेगा तथा विवाहोपरांत किसी अन्य के वीर्य से यदि वह संतानोत्पत्ति करती है तो पति की सहमति की दशा में वह नियोगज पुत्र होगा तथा पति की अज्ञानता में अनुमति न होने पर क्षेत्रज पुत्र कह - लायेगा | पाण्डवों से रुष्ट होने के बाद भी कर्ण को पूर्ण विश्वास था कि यदि पाण्डवों को असलियत पता चल जाये, तो युधिष्ठिर अपना मुकुट कर्ण के सिर पर रखकर बड़े भाई की मान्यता देंगे तथा शेष पाण्डव उनका आदेश मानेंगे और वह ( कर्ण ) ॠण उतारने के लिए अपना मुकुट दुर्योधन के सिर पर रख देगा |
देवराज इंद्र के प्रसंग किसको नहीं पता है | उनमे भी सबसे विकट रहा है – अहल्या का – गुरुपत्नी जैसी घोर अगम्या के साथ सहवास मेरे कहने का मतलब यह नहीं कि इन दृष्टान्तों के आधार पर ये असली बाबा – दण्ड के पात्र नहीं हैं |
बड़े से बड़े बाबाओं की तपस्या भंग समझी जाती है ( जैसे विश्वामित्र की मेनका प्रसंग के बाद ) तथा यह एक प्रकार से उनकी सम्पूर्ण संपत्ति की जब्ती तथा बर्खास्तगी का आदेश था | इंद्र को अहल्या प्रसंग में शरीर में सौ भग (vaginal hole) धारण करना पडा, जो हरदम कामवासना से युक्त होकर उन सभी जगहों पर तीव्र यौन – खुजली पैदा करते थे तथा इंद्र को अथाह कष्ट भोगना पड़ता था | बड़े अनुनय विनय के बाद वे शत भग के स्थान आँखों का रूप लेकर मात्र एक चिन्ह का रूप ले लिए जैसे किसी के देह में सौ जगह tattooing ( गोदना ) गोदवा दिया जाये कि यह व्यभिचारी है – क्या यह मामूली दण्ड है ? बार-बार चारित्रिक पतन की प्रवृत्ति इसीलिए पनपी कि गांधी द्वारा ब्रह्मचर्य की परीक्षा की अवधारणा को सामाजिक स्वीकार्यता मिल गयी तथा इन्ही गांधीवादी लोगों ने निजता के अधिकार की अवधारणा को जन्म दिया | समाज में निजता का अधिकार तथा मानहानि (Defamation ) का कानून समाप्त होना चाहिए – तभी moral policing हो पायेगी | समाज में किस बात की निजता ? गुफा में बैठिये – सार्वजानिक जीवन में निजता कैसी ? एक धोबी को आराध्य माँ सीता के खिलाफ मानहानि का दण्ड नहीं सहना पडा | गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है –
“निज निज मुखन कहीं निज होनी
वाल्मीकि, नारद, घट जोनी |
स्वयं अपने मुख से सारी कमजोरियां कहने की परम्परा हमारी रहीं है – कोई निजता नहीं | किसलिए सुरक्षा आवरण चाहिए ? जैसे सत्यनिष्ठा अवरुद्धकरने के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं है - परिस्थितियां पर्याप्त हैं, उसी प्रकर चरित्रहींन घोषित करने के लिए प्रमाण अपेक्षित नहीं था | मानक था कि ‘ बिना आग के धुँआ नहीं उठता’ ( यत्र यत्र धूमस्तत्र तत्र वह्नि: | )
एक अपराधी एक हत्या कर देता है किन्तु गोडसे जब 98 पेज का कोर्ट में बयान देता है कि “गांधीवध” क्यों’ तो वह एक विचार धारा को जन्म देता है तथा मोदी के लाख लगाम लगाने के बावजूद कोई बाबा साक्षी महाराज उसके मुरीद हो सकते हैं तथा भरी संसद में उसके स्तोत्र गा सकते हैं | मृत्यु के क्षण तक गोडसे को कोई पश्चात्ताप नहीं हुआ तथा वह अपने स्टैंड पर कायम रहा कि मेरे ( गोडसे के) तथा गांधी के बारे में भारत का भावी इतिहासकार यह फैसला करेगा कि गांधी देश की हत्या किये या मैंने गांधी की | यदि गांधी ने देश की हत्या की, तो मैंने गांधी की हत्या नहीं की, वरन रावण-वध तथा कंस-वध की तरह उनका वध किया |” मैं राहुल या दिग्विजय सिंह की तरह बिना साक्ष्य के यह बयान नहीं निर्गत कर सकता कि गोडसे संघ से प्रेरित था किन्तु संघ भी इस बात को नकार नहीं सकता कि गोडसे अंगुलिमाल नहीं था, बल्कि अपनी समझ में पुण्यमित्र शुंग था | बुद्ध अंगुलिमाल का हृदय – परिवर्तन कर ले गए, किन्तु यदि वे पुष्यमित्र शुंग के सामने पड़े होते तो वे पुष्यमित्र का हृदयपरिवर्तन वैसे ही न कर पाते जैसे गांधी गोडसे का न कर पाये | पुष्यमित्र शुंग गौतम बुद्ध के आभामंडल से आक्रान्त न होता क्योंकि वह महर्षि पतंजलि के प्रति प्रतिबद्ध (indoctrinated) था | भले ही गोडसे एक घंटे भी R.S.S. की शाखा में न गया हो, किन्तु जब ‘पाञ्चजन्य’ का शंख उसके कानों में गूंजता था –
बहुत दिन जग कालनेमि को
यती तपस्वी कह न सकेगा |
बहुत दिनों मारीच निशाचर
कंचन का मृग रह न सकेगा ||
कितना बड़ा पाप का गढ़ हो,
यह समझो कि ढह न सकेगा |”
तो कवि का भाव कुछ भी रहा हो, वह अनुप्राणित स्थिति में कालनेमि = गांधी तथा मारीच = नेहरु समझता था तथा जब वह ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ गाता था, तो उसका सेना 56’’ से भी आगे बढ़कर 65’’ हो जाता था | गोडसे R.S.S. का अर्जुन भले न रहा हो, पर एकलव्य तो था ही | ISIS से ओवैसी का कोई लेना देना नहीं है – वे सार्वजानिक रूप से कई बार उसकी निंदा कर चुके हैं – किन्तु यदि ISIS भारत पर हमला करके हैदराबाद को कब्ज़ा कर ले, तो ओवैसी साहब की मीटिंग अटेंड करने वाले तमाम कार्यकर्ता उसका जयकारा लगा रहे होंगे | कोई रिश्ता न होते हुए भी जितना रिश्ता ओवैसी का ISIS से है, उससे कम रिश्ता R.S.S. का गोडसे से नहीं हैं | यदि गोडसे के नाम पर कोई पार्टी बने तथा उसकी सरकार कांग्रेस के मुकाबले 30 सीट कम होने से न बन पा रही हो, तो यदि भाजपा के पास कुल 60 सीट हों तो मोदी जैसे गांधी तथा बुद्ध के शिष्यों को नकारकर 45 सांसद बाबा साक्षी जी महाराज के नेतृत्व में दलबदल कर गोडसे की पार्टी में शामिल हो जायेंगे – R.S.S. अगर खिलाफत करने की हिमाकत उस स्थिति में करेगा तो अगले दिन से R.S.S. की शाखा में जाकर भगवाध्वज को सलामी देने देने के लिए आडवाणी जैसे मात्र दस – पांच कार्यकर्ता बचेंगें | अंग्रेजों को हराकर मात्र आसाम को सुभाष चन्द्र बोस अपने कब्जे में कर पाए होते, तो आसाम के ५०% से अधिक कांग्रेसी आजाद हिन्द फ़ौज की वर्दी में होते तथा शेष भारत से भी लोग आसाम में आजाद हिन्द फ़ौज में भर्ती के लिए भाग रहे होते | अगर चंदशेखर आजाद या भगतसिंह दिल्ली पर कब्ज़ा करने के कगार पर होते तो ५० % से अधिक कांग्रेसी या तो बम बना रहे होते अथवा पिस्टल में गोली भरना तथा ट्रिगर दबाना सीख रहे होते और और सत्याग्रह भूल चुके होते | यही बात बाबाओं की हैं | बाबा तो बाबा – चाहे वह असली हो या नकली – चाहे वह ब्राह्मण हो या गैर ब्राह्मण | चाहे वह किसी जीवन दर्शन का हो | आदि शंकराचार्य को कोई नकली बाबा की हिमाकत नहीं कर सकता | सौन्दर्य लहरी के आनद लहरी वाले भाग में स्थित १३ वें श्लोक को कोई पढ ले – मैं न तो उस श्लोक को उदधृत करूँगा और न ही उसका अर्थ लिखूंगा | हाथ कांप रहा है | जिस बाबा की सर्वाधिक आलोचना हो रही हो, उसकी सौ गुना भयंकर घोषणा आदिशंकराचार्य ने कर रखी है | जो सुख आशाराम या राम रहीम को न मिला हो उससे हजार गुना आनंद हर शिष्य को दिलाने की घोषणा | ‘द्वारं किमेकं नरकस्य नारी |’ क्या किसी नास्तिक या नकली बाबा का वचन है ? राधे माँ के बारे में अनर्गल प्रलाप करके जिनको संतुष्टि होती हो, तथा गाते-फिरते हों कि क्या कोई देवी ऐसा कर सकती है , वे हर दुर्गासप्तशती के ग्रन्थ से जुड़े हुए ‘मूर्तिरहस्यम’ को पढने का कष्ट करें – व्यर्थ का गाल बजाना भूल जायेंगे | मैं उन अंशो को उद्धृत करने की घृष्टता नहीं कर सकता और न ही अर्थ लिखने का | कुछ तो ऐसा दिखा होगा कि राधे माँ को सक्षम लोगों ने पद दिया – भले ही मीडिया ट्रायल के चलते जनरोष की दुर्गा के भय से वह पद राधे माँ से छीन लिया गया | गीता में भगवान् श्री कृष्ण द्वारा साधु की परिभाषा पढ़े –
अपि चेत् सुदुराचारो
भजते मामन्यभाक् |
साधुरेव स मन्तव्यः
सम्याव्यसितो हि सः ||
( यदि कोई अत्यंत दुराचार से युक्त हो किन्तु अनन्य भाव से मुझे भज रहा हो, तो उसे साधु ही माना जाना चाहिए तथा वह सम्यक् रूप से व्यवसित है | वही असली बाबा है |)
स्वयं भगवान विष्णु ने किन परिस्थितियों में तथा क्यों माँ तुलसी को पूजनीय बना दिया था, किन परिस्थितियों में भगवान विष्णु पर भृगु ने लात चलाई थी तथा बिल्वृक्ष की उत्पत्ति का स्रोत क्या है तथा किन कारणों से वह शिव को सर्वाधिक प्रिय हैं तथा किन परिस्थितियों में ब्रह्मा के मंदिर सबसे कम तथा लगभग न के बराबर हैं – इस पर अपने दीक्षागुरु से एकांत में पूछिए तो पता चलेगा अन्यथा गुमराह कर दिए जायेंगे | सत्य जानने पर आप सहमत होंगे कि नकली बाबाओं को गालीदेना उपाय नहीं है – सारे जनसाधारण को तथा समस्त असली तथा नकली बाबाओं को MORAL POLICING के दायरे में लाना ही एकमात्र विकल्प है – ब्रह्मचर्य की परीक्षा के लिए समाज में कोई स्थान नहीं है |
इसी क्रम को बाबा तुलसीदास ने आगे बढाया है –
पूजिअ विप्र सील गुण हीना |
सूद न गुण गन ग्यान प्रवीना ||
कागभुशुंङि रामचरितमानस के सम्मानित पात्र हैं – कोई प्रदूषित व्यक्तित्व नहीं – असली बाबा हैं | स्वयं गरुण ने उनसे धर्मोपदेश लिया है – क्या शिक्षा दी गई उनके द्वारा गरुण को –
भ्राता पिता पुत्र उरगारी |
पुरुष मनोहर निरखत नारी |
योगी भर्तृहरि तो नकली बाबा नहीं हैं | समस्त योगी उनका नाम सम्मान से लेते है | उन्होंने सम्पूर्ण असली बाबाओं की ओर से आत्मसमर्पण की अर्जी डाल रखी है – केवल असली बाबाओं की नजीर पर आत्मसमर्पण किया है –
‘विश्वामित्रपराशरप्रभृतयो वाताम्बुपर्णाशना
स्तेऽपि स्त्रीमुखपंकजं सुललितं दृष्ट्वैव मोहं गताः |
शाल्ययन्नं दधिमांसमोदनयुतं भुन्जन्ति ये मानवा –
स्तोषामिन्द्रियनिग्रहो यदि भवेद्विन्ध्य: प्लवेत् सागरे ||
( अर्थात हवा और पानी तथा पत्तों को खाकर जीवन यापन करने वाले विश्वामित्र और पराशर आदि आदि थे – सर्वथा असली बाबा – एक / भी मिलावट नहीं | गायत्री मंत्र का आविर्भाव करने वाले महापुरुष, तपस्या के बल से इंद्र को चुनौती देकर त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने वाले तथा वह स्वर्ग भले न पहुँच पाया हो किन्तु इंद्र भी उसे जमीन पर वापस नहीं कर पाए | पराशर जी वरिष्ठ के पौत्र तथा व्यास के पिता | किन्तु वे भी स्त्री के सुललित मुखमंडल को देख लेने मात्र से मोह को प्राप्त हो गये | जो लोग रोटी, चावल, दही, मांस, घी आदि का सेवन करें – वे बाबा , ( चाहे कितने भी असली हों – यदि इन्द्रियनिग्रह का दावा करे तो यह उतना ही सफ़ेद झूठ है, जितना यह कथन कि विंध्यांचल समुद्र पर तैर रहा है |)
फिर भी कोई संदेह तो मथुरा में कृष्णजन्मभूमि मंदिर में श्रीमद्भगवत का जो श्लोक सबसे ऊपर लिखा है, उस पर ध्यान दें –
“मात्रा स्वस्त्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् |
बलवानिन्द्रियाग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ||
( माँ, बहन तथा बेटी के भी साथ एकांत में नहीं बैठना चाहिए क्योंकि इन्द्रियाँ इतनी बलवती हैं कि परम विद्वान को भी खींच ले जाती हैं | ) आज एंटी – रोमियो स्क्वाड की आलोचना में कहते हैं कि वे निकट संबंधियों या सह कर्मियों या निजी मित्रों के साथ बैठे जोड़ो के मार्ग में भी व्यवधान उपस्थित करे रहे हैं तथा योगी जी को सफाई देनी पड़ती है क्योंकि योगी जी बाबा दिग्विजयनाथ की तरह स्वतंत्र नहीं हैं – ‘परम स्वतंत्र न सिर पर काहू |’ वे मोदी जी के राजनैतिक शिष्य हो गए हैं तथा मोदी जी गांधी जी के शिष्य हो गए है | वरना योगी जी बचाव की मुद्रा में न आते तथा ललकार बोलते कि मैं गांधी जी का चेला नहीं हूँ राम और वशिष्ठ का हूँ | ब्रह्मचर्य की परीक्षा को प्रोत्साहन गांधी ने दिया है रघुवंश ने नहीं – वशिष्ठ और व्यास ने नहीं |मनु ने नहीं | ब्रह्मचर्य की परीक्षा ही सारी गंदगी की जड है | अगर गांधी ने ब्रह्मचर्य की परीक्षा को मान्यता न दी होती, तो एक भी नकली बाबा नहीं होता | इस तरह का जीवन – यापन करने वाले लोगों को लोग गिरी निगाह से देखते तथा वे इतने मजबूत बन ही न पाते | उनका सामाजिक बहिष्कार होता | भारतीय संस्कृति में ब्रह्मचर्य की परीक्षा अनुमन्थ नहीं है | बिना लड़े ही आत्मसमर्पण कर दिया महान से महान असली बाबाओं ने | कामदेव से केवल बाबा भूतभावन ही निपट सकते हैं | और वह भी तब जब वे कामदेव का भस्मावशेष करने की शक्ति रखते हैं | शेष सभी जीवधारी, चाहे वे कितने भी पवित्र क्यों न हो, कामदेव को ताल नहीं ठोक सकते | यह नैतिक अवरोध ( MORAL POLICING ) नहीं है- एकतथ्य है | किसी शिष्या के साथ एकांत में बैठकर उसको धर्मोपदेश देने वाला या योग सिखाने वाला महात्मा भी दुष्कर्मी है ऐसी सनातन संस्कृति है | योगी जी यदि राम और वशिष्ठ के शिष्य रह गए होते तथा गांधी और बुद्ध के शिष्य मोदी के शिष्य न बन गए होते (शिष्यांनुशिष्य) तो आज वे ललकारते कि MORAL POLICING को स्थायी स्वरुप देने के लिए कानून बनायेंगे तथा moral policing न केवल जारी रहेगी, बल्कि और घनी हो जायेगी | बिना moral policing के बलात्कार से रक्षा नहीं हो सकती – AMERICA में भारत से कई गुना बलात्कार होते हैं जबकि पुलिस कर्मी भारत से कई गुना अधिक है| NO 100, NO 1090 , गाड़ियों की FLEET, FORCE की संख्या बलात्कार से रक्षा नहीं कर सकते – केवल moral policing से इसकी रक्षा हो सकती है |
शास्त्रों में श्रुति तथा स्मृतियों में असली बाबाओं में भी जो बहुत ऊंची श्रेणी ‘यति’कही गई है, उनको भी इंद्रियों के आगे लाचार घोषित किया गया है – ‘इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्त्यपि यतेर्मन: |’
( इन्द्रियां अति शक्तिशाली हैं – तथा यति के भी मन का हरण कर लेती है ) – असली बाबा बनने वालों की औकात ही क्या है ?
जयशंकर प्रसाद ने कामायनी’ में मनु की आक्रामकता का वर्णन इन शब्दों में किया है –
“आलिंगन फिर भय का क्रन्दन वसुधा जैसे कांप उठी’ |
वह अतिचारी, दुर्बलनारी परित्राण पथ नाप उठी ||”
कामायनी’ में वासनातृप्ति को स्वर्ग मानने को मनु की उल्टी मति का घोतक माना गया है –
मनु, तुम श्रद्धा को गए भूल,
उस पूर्ण आत्मविश्वासमयी को,
उडा दिया था समझ तूल |
तुमने तो समझा असत विश्व,
जीवन धागे में रहा झूल |’
जो क्षण बीते सुख साधन में,
उनको ही वास्तव लिया मान |
वासना तृप्ति ही स्वर्ग बनी,
यह उल्टी मति का व्यर्थ ज्ञान |
जब गूंजी यह वाणी तीखी,
कंपित करती अम्बर अकूल
मनु को जैसे चुभ गया शूल |
असली बाबाओं की दयनीयता का चित्रण देखें कि वे किस प्रकार रूपमती के आगे असहाय हो जाते हैं – राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है –
योगीश्वर तज योग,
तपस्वी निज निदाधमय तप को
रूपमती को देख मुग्ध
इस भांति दौड़ पड़ते हैं |
मानों जो मधुशिखा ध्यान में
अचल नहीं होती थी |
ठहर गयी हो वही सामने
कान्त कामिनी बनकर |”(दिनकर – उर्वशी)
उपरोक्त चर्चा का निचोड़ इन शब्दों में पेश कर रहा हूँ –
‘काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को कलुष बताने वाले,
अपने कर उर्वशी मेनका, की पदरज धोयेंगे |
रूप सजाने की स्पर्द्धा में मर्कट बन सकते हैं,
स्वल्प चूक पर महाशाप, क्रोधाग्नि उगल सकते हैं
ताप मदान्ध इन्द्रासन पाने की लिप्सा में अनुदिन,
पूजनीय के कंधो पर पालकी चढ़ा सकते है |”
यह तो सात्विक बाबाओं की चर्चा थी – जो ‘वाताम्बुपर्णाशना:’ अथवा शाकाहारी थे | जो वामवर्गी बाबा थे – ( आज के वामपंथी नाराज न हो ) उनका चित्रण यहाँ मैं जान बुझकर नहीं कर रहा हूँ | वीमत्स रस का संचार हो जाएगा |
उपरोक्त विश्लेषण का एकमात्र उददेश्य यह है कि असली बाबाओं ने कभी नकली बाबाओं की निंदा नहीं की – उन्हें गाली नहीं दिया | उन्होंने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि असली बाबा भी कामवासना के उतने ही चपेटे में हैं, जितने नकली / ढोंगी बाबा | आदि शंकराचार्य ने अपना निर्णय सुनाया है –
धनु: पौष्पं मौर्वी मधुकरमयी पञ्चविशिखाः
वसन्तः सामन्तो मलयमरूदायोधनरथ:
तथाप्येकः सर्वं हिमगिरिसुते कामपि कृपाम
अपांगात्ते लब्ध्वा जगदिदमनंगो विजयते ||
( फूलों का कोमल धनुष और
प्रत्यंचा है भ्रमरावलि |
मीनाक्षी का चंचल कटाक्ष है
बाण चन्द्रकिरणावलि ||
फिर भी माँ भगवती की अंशमात्र कृपा प्राप्त कर तीनो लोकों को अनंग जीत लेता है |
जब असली बाबा नारद को यह अभिमान हो गया कि उन्होंने कामदेव को जीत लिया तथा उन्होंने यह कहानी भगवान् शिव को सुनायी तो भगवान शिव ने उनको कड़े निर्देश निर्गत किये कि यह कथा विष्णु को मत सुना देना | जब नारद जी यह निर्देश नहीं मानें तो सबको मालूम है कि किस प्रकार उनका चेहरा बदर जैसा हो गया | आज टी.वी. चैनल पर तथा फेसबुक पर या प्रिंट मीडिया के साक्षात्कारों जो असली बाबा किसी नकली बाबा के कामपाश में आबद्ध होने का उपहास उडा रहे हैं वे सावधान रहे है कि कामविजय पर गर्व न करें अन्यथा नारद जैसी परिस्थितियां आ सकती है | कल उनका चेहरा भी बन्दर जैसा हो सकता है
| शिव जी ने ऐसा परामर्श क्यों दिया ? उत्तर स्वयं आदि शंकराचार्य ने दिया है –
हरिस्त्वामाराध्य प्रणतजनसौभाग्यजननीं
पुरा नारी भूत्वा स्मररिपुमपि क्षोभमनयत् |
(अर्थात हे भगवती ! तुम्हारी आराधना करके भगवान विष्णु ने नारी रूप धारण कर कामदेव रिपु भगवान शिव में भी क्षोभ उत्पन्न कर दिय )
किस प्रकार भगवान् शिव ने जब भगवान् विष्णु ने मोहिनी रूप को देखने का हठ किया, तो भगवान् विष्णु के बार-बार मना करने पर भी न मानने पर भी जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप के दर्शन दिया तो भगदड़ में जब मोहिनी की साड़ी सरक गयी तथा वह अनावृत हो गयी तो किस प्रकार शिव जी का धैर्य स्खलित होने से पवन देवता के सौजन्य से माँ अंजनी ने केसरीनन्दन हनुमान को जन्म दिया – यह कथा सबको विदित है | हर – हर महादेव – पवनसुत हनुमान की जय | इसके अलावा भी भगवान शिव ने एक बार पूर्व में भी माँ पार्वती को सुश्रूषा की अनुमति दे दी थी, बिना इस बात की परवाह किये कि तपस्या में बाधा आ खड़ी होगी -
प्रत्यर्थिभूतामपि तां समाधे:
सुश्रूषमाणां गिरिशोऽनुमेने |
विकारहेतौ सति विक्रियन्ते
येषां न चेतांसि त एव धीराः |
तर्क यह दिया कि विकार हेतु के उपस्थित होने पर भी जिनका चित्त विकृत न हो, वही असली धीर है – असली बाबा है | किन्तु जब कामदेव ने वसन्त के साथ पदार्पण किया तथा उमा ने प्रणाम किया तथा नीले बालों में शोभित कर्णिकार गिर पड़ा –
उमाऽपि नीलालकमध्यशोभि
विस्रंसयंती नवकर्णिकारम् |
चकार कर्ण च्युतपल्लवेन
मूर्ध्ना प्रणामं वृषभध्वजाय ||
तो माँ के इस सान्निध्य को जगत्पिता सह न सके | उनका धैर्य किंचित् परिलुप्त सा हुआ तथा बिम्बा के फल के समान माँ के अधरोष्ठों पर जगत्पिता की आंखे टिक गयी –
हरस्तु किन्चित्परिलुप्तधैर्य –
श्चन्द्रोदयारम्भ इवाम्बुराशौ |
उमामुखे बिम्बफलाधरोष्ठे
व्यापारयामास विलोचनानि ||
और परिणामस्वरूप काम का दहन करना पड़ा –
क्रोधं प्रभो संहर संहरेति
यावद्गिरः खे मरुतां चरन्ति |
तावत् स वह्निर्भवनेत्रजन्मा
भस्मावशेषं मदनं चकार ||
जितने बाबा या उनके भक्त स्वयं असली घोषित करते हुए नकली / ढोंगी का मजाक उड़ा रहे हैं - वे रेड अलर्ट हो जाएँ | कभी भी वे झूठे केस में फंसायें जा सकते हैं या सच्चे केश में फंस सकते हैं | बाबा रामदेव राष्ट्रीय पूँजी हैं – योग की प्रतिष्ठा | मायावती उन्हें भले जन्म से यादव मानें किन्तु मनुवादी पार्टी उन्हें कर्म से ब्राह्मण मानती हैं तथा विशेष रूप से सचेत रहे – शिष्याओं से दूरी बनाकर रखें | कभी भी धैर्य वास्तव में विचलित हो सकता है तथा यदि न भी विचलित हो तो कभी भी कांग्रेसी कोई बखेड़ा खड़ा कर सकते है तथा फेसबुक पर बार-बार दी रही धमकियों / भविष्यवाणियों को साकार कर सकते हैं तथा उस परिस्थिति में सलवार सूट पहनकर भागने से भी काम नहीं चलेगा क्योंकि न्यायालय तथा मीडिया ट्रायल दोनों ही बार- बार नपुंसकता तक के बचाव – साक्ष्य को नकार चुके हैं | योग शक्ति के बल पर बाबा रामदेव का पुरुषार्थ मृत्यु पर्यन्त सुरक्षित है | यदि कोई कहे कि अब तक रामदेव बाबा नहीं पिघले, तो इसका उत्तर विश्वामित्र की तपस्या वाला अध्याय देगा | विश्वामित्र महान साधक थे – कामवासना को इस सीमा तक जीत लिया था कि रम्भा नामक अप्सरा को उन्होंने पत्थर बना दिया था तथा उर्वशी में साहस नहीं हो रहा था कि इंद्र के आदेश के बावजूद विश्वामित्र के सामने पड़े | किन्तु मेनका के सामने वही विश्वामित्र नहीं टिक पाए तथा सारी साधना एक झोंके में बह गयी | क्यों? क्योंकि मेनका असली बाबा विश्वामित्र को सचमुच में प्यार करती थी | अप्सराएँ भले ही सामान्यतया प्रेम में विश्वास न रखती हो तथा दिनकर के शब्दों में प्रेम करने वालियों को ताने देती हों –
अब अप्सरियाँ भी पूजेंगी, प्रेमदेवता जी को
और स्वर्ग की विमा करेगी, नमस्कार धरती को
पहनेंगी कंचुकी क्षीर से, क्षण क्षण गीली गीली |
नेह लगाएंगी मनुष्य से, देह करेंगी ढीली ||
मेनका जैसी कुछ तो ऐसी होती ही हैं, जिन्हें विश्वामित्र जैसे वयोवद्ध लोग भी आकर्षक लगते है – नौजवान क्षत्रिय तथा वृद्ध ब्राह्मण – प्रायः अप्सराओं को अधिक आकर्षक लगते हैं | इसका चित्रण कर रहा हूँ – गौर करें –
सुनती हूँ उस देवलोक में,
कितनी अप्सरियाँ हैं | जिन्हें वृद्ध ॠषि मुनि तपसी भी आकर्षक लगते है|
कभी किसी के श्वेत श्मश्रु पर,
मोहित हो जाती हैं, |
दशन हीन मुख पर भी जिनके,
प्यार मचल उठतें हैं |
नौजवान क्षत्रिय में इतना आकर्षण होता है ऐसा गबरू जवान होता है कि उसे यौन शोषण की आवश्यकता ही नहीं पड़ती - इसका चित्रण दिनकर ने उर्वशी के मुंह से निकले हुए उद्गारो द्वारा किया है – ‘अयस्कान्त ले खींच अयस को जैसे निज बाँहों में’
अर्थात जिस प्रकार कोई चुम्बक लोहे को अपनी ओर खींच लेता है, वैसे ही उर्वशी खिंची हुई पुरुरवा के पास चली गयी | उस मिलन से भी उसकी आत्मा संतुष्ट नहीं होती क्योंकि महादेवी जी के शब्दों में वह जानती है कि गुलाब की कली उपलब्ध होने पर वह कमल के विकसित फूल को भूल जायगा –
“अब फूल गुलाब में पंकज की
अलि, कैसे तुम सुधि आती नहीं ? ( महादेवी वर्मा )
वह राजा की अन्य रानियों के बारें में जानते हुए भी आश्वस्त रहती है कि महारानी कुलपोषण ( संतानोत्पत्ति ) के लिए है तथा पति में नित्य नूतन मादकता भरने के लिए नहीं तथा बंधन को नद , नाले तथा सोते मानते हैं किन्तु महानद तो स्वभाव से ही प्रचण्ड होते हैं |
अरी एक रानी भी है,
राजा को तो क्या भय है |
एक घाट से किस राजा का,
रहता बंधा प्रणय है |
नया बोध श्रीमंत प्रेम का,
करते ही रहते है |
नित्य नयी सुन्दरता ओं पर,
मरते ही रहते है |
सहधर्मिणी गेह में आती,
कुलपोषण करने को |
पति में नहीं नित्य नूतन
मादकता को भरने को ||
बंधन को मानते वही,
जो नाद – नाले सोते हैं |
किन्तु महानद तो स्वभाव से,
ही प्रचण्ड होते हैं |
इसी कारण उर्वशी संतुष्ट नहीं है कि वह स्वयं चुम्बक की तरह महाराज की ओर खिंच कर चली आई | क्षत्राणी की क्या इच्छा होती है – इसका उत्तर दिनकर की लेखनी से उर्वशी ने दिया है – “खिंची हुई जो नहीं, चढ़ी विक्रम तरंग पर आती” अर्थात वह क्षत्राणी धन्य है जो किसी क्षत्रिय के रूप या पौरूष पर आकृष्ट होकर स्वयं उसके अंक में नहीं बैठी बल्कि उस महिला का उस क्षत्रिय ने अपहरण कर लिया या उठा लिया तथा उसके विक्रम के तरंग पर चढ़ कर आई | इसी को आल्हा तथा ऊदल के बारे में आल्हाखण्ड में कहा गया है –
‘जाकी बिटिया सुंदर देखी
तेहि पर जाई धरे तलवार”
अर्थात आल्हा और ऊदल ने जिसकी बेटी की सुन्दर देखा उसकी गर्दन पर तलवार रख दिया |
यह आल्हा जब किसी ‘बाबूसाहब’ या ‘कुँवर साहब’ की चौपाल में कोई अल्हैत ललकार कर गाता है तथा ढोलक पर थाप पड़ती है, तो जितने भी ‘बाबूसाहबान’ (father) होते है उनमे से 90 % अपनी मूँछो को ऐंठने लगते हैं | भीष्म जैसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी तक बनारस की राजकुमारियों को उठा लाये तथा गंधार की राजकुमारी को आँखों पर पट्टी बांधकर धृतराष्ट्र के साथ रहना पड़ा | यही कारण है कि किसी ‘बाबू साहब’ को मैंने आज तक यौनशोषण के आरोप में फंसते तथा न्यायालय से दण्डित होते नहीं देता – भले ही अपवादस्वरूप इक्का दुक्का हो गया हो | CBI किसी राज कुमार, संजय सिंह के चरित्र को कुछ दिनों के लिए चार्जशीट लगाकर भले ही कलंकित कर दे, किन्तु नयायालय से वे तपे – तपाये सोने की तरह पवित्र तथा निष्पाप बन कर निकले – जनता जनार्दन की अदालत में भी स्वयं तथा महारानी द्वितीय अमिता सिंह निर्दोष प्रमाणित किया तथा जनता जनार्दन ने उन्हें सिर पर उठा लिया |
जनता की निगाहों में गिरावट तब दिखी जब अमिता सिंह ने राज मर्यादा का उल्लंघन किया | भले ही पट्टमहिषी ( पटरानी ) का पद ले लिए होती किन्तु ‘ज्येष्ठा महिषी’ (बडी रानी) का अधिकार गरिमा सिंह के लिए सुरक्षित रखना चाहिए था | गरिमा सिंह के सामने बैठकर परम्परागत रूप से अमिता सिंह को चरणस्पर्श करना चाहिए था तथा गरिमा सिंह के बेटे को राजकुमार ( कुंवर साहब ) का दर्जा प्रदान करना चाहिए था | उन्होंने भारत का ही इतिहास नहीं पढ़ा था वरना उन्हें मालूम होता कि कुंवरसाहबान सौतेली माँ को सगी माता से भी अधिक प्रणाम करते हैं |
इसी प्रकार मैंने बाबा अमरमणि त्रिपाठी ( गोरखपुर मण्डल का हर ब्राह्मण बाबा है) तथा बांदा के नरैनी के पूर्व विधायक को छोड़कर किसी अन्य बाबा को दण्ड भोगते नहीं देखा | कोई होगा तो अपवाद है | शंकराचार्य के व्यक्तित्व को भले जयललिता के समय में कुछ लोगो ने कुछ समय के लिए कलंकित कर दिया हो किन्तु अन्तःत वे न्यायालय से राजकुमार संजय सिंह की तरह तपे – तपाये सोने की तरह पवित्र होकर निकले – सर्वथा निष्पाप, निष्क लंक | इसके तीन कारण हैं –
1- पहला कि ब्राह्मण किसी महिला को, जिसका उसने गर्भाधान किया हो, कभी गर्भपात कराकर सड़क पर असहाय छोड़ देने की गलती नहीं करता | यदि कोई पराशर किन्ही कमजोर क्षणों में किसी मत्स्यकन्या के पेट से किसी वेदव्यास को जन्म देता है, तो वह उसे ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों की पूज्या माँ सत्यवती बना देता है | मत्स्यकन्या सत्यवती ‘योजनदुर्गन्धा’ से ‘योजनसुगंधा’ वैसे ही हो जाती है जैसे भाजपा में शामिल होते ही गंदे से गंदे चरित्र का व्यक्तित्व,जिसके नाम से भाजपा के प्रचारतंत्र को घिन आती हो, मर्यादा की प्रतिमूर्ति हो जाता है | उसकी यशोगाथा इतनी फ़ैल जाती है कि दिल्ली के चक्रवर्ती सम्राट शन्तनु उसे प्राप्त करने के लिए न केवल अपने जवान बेटे भीष्म को नैष्ठिक ब्रह्मचारी बनाकर उसकी जवानी को भी कुर्बान कर देते हैं , बल्कि विचित्रवीर्य की माँ, घृतराष्ट्र पान्डु तथा विदुर की दादी तथा कौरवों एवं पाण्डवों की परदादी बनकर उभरती है | किस बात की शिकायत उसे रहेगी कि यौनशोषण की चर्चा भी हो ? इसी लिए कहा गया है कि ब्राह्मण यौन शोषण नहीं करता बल्कि यौन पोषण करता है |
2- ब्राह्मण कभी भी अपनी इच्छा लादता नहीं है | यही यौनशोषण से उसे विरत करता है | असली बाबा की पहचान है बिना दक्षिणा के वह वीर्यदान नहीं करता | उसके एक एक बूँद स्राव का अपना सम्मान और महत्व है | दो सेवाएं किसी की कर दीजिये तो वह धन्यवाद ( thank you ) कहेगा, चाहे कितना ही कृतघ्न क्यों न हो – 1 उसे स्वादिष्ट भोजन करा दीजीये तथा 2 कोई उसको किसी नारी की आपूर्ति कर दे | किन्तु ब्राह्मण यहाँ भी विवेक नहीं खोता – श्रद्धा परखता है, स्नेह परखता है | वह गली - गली कन्याओं की खोज में घूमता नहीं है | वह तपस्या में लीन हो जाता है | उसकी तपस्या को भंग करने के लिए इंद्र को अप्सराएँ भेजना पड़ता है | आसानी से अप्सराएँ उसे विमोहित नहीं कर पाती | इंद्र ने जब रम्मा को विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए भेजा, तो विश्वामित्र ने रम्भा को पत्थर का बना दिया – वह पथरा गई | इस बार उर्वशी को जाने का आदेश हुआ, तो उर्वशी में साहस नहीं हुआ | किन्तु मेनका ॠषि को सच्चे हृदय से स्नेह करती थी ( इंद्र के कहने पर भी 164 के बयान में झूठे आरोप न लगाती ) | इस कारण जब तीव्र वायु ने उसके चीर को हवा में उडा दिया तो ॠषि की तपस्या भंग हो पायी | च्यवन की पत्नी सुकन्या ने इस तपोबल का वर्णन करते हुए ब्राह्मण तथा क्षत्रिय के यौन – जीवन का तुलनात्मक विवेचन किया है –
धन्य पुरुष, जो वर्ष वर्ष,
निष्काम उपोषित रह कर|
अपनी क्षुधा तीव्र,
जठरानल दीपित कर लेते है ||
सतत भोगरत नर क्या जाने
तीक्ष्ण स्वाद भोगो का |
उसे जानता वह जिसने,
कुछ दिन उपवास किया हो | (दिनकर)
और ॠषि की आँखों से उस षोडशी सुकन्या को देखकर क्या उद्गार टपके थे, इसे सोचते हुए सुकन्या संस्मरणों में खो जाती है –
‘वरण करोगी मुझे,
तुम्हारे लिए जरा को तजकर | –
शुभे तपस्या के बल से मैं,
यौवन ग्रहण करूँगा ||”
यहाँ भी ध्यान देने की बात है कि ब्राह्मण इस सहमति के साक्ष्य के रूप में भोजन दक्षिणा तथा नियोग दक्षिणा लेता है | जब नियोग के उपलक्ष्य में दक्षिणा मिल रही है, निमंत्रित किया जा रहा है तो फिर यौन – शोषण कहाँ से आएगा ? बिना दक्षिणा पाए न तो ब्राह्मण किसी के दरवाजे पर जूठन गिरता है और न ही बिना दक्षिणा पाए वह नियोग करता है |
3 इसके अलावा तीसरा महत्वपूर्ण घटक है – ब्राह्मण नियोग के जनकल्याणकारी कार्यक्रम में कभी भी जाति के, आर्थिक स्थिति के, सौन्दर्य के किसी मानक को बिना ध्यान में रखे हुए एक तरफ से सभी पर कृपा करता है तथा परिणामस्वरूप किसी प्रकार की ईर्ष्या या कटुता का संचार नहीं होता था | हस्तिनापुर की महारानी हों या घर की नौकरानी – व्यास के लिए दोनो बराबर है| नियोग अपने सुख के लिए नहीं किया जाता, बल्कि जनकल्याण के लिए किया जाता है | अगर महारानियों से घृतराष्ट्र तथा पान्डु उत्पन्न होते हैं तो नौकरानी के पेट से विदुर जैसे महान ज्ञानी पैदा होते हैं जो धर्मराज के रूप समझे जाते है | नकली बाबा किसी एक को महत्व देकर दूसरे को दुत्कारते हैं तो वे आरोपों के दायरे में आ जाते हैं |
यहाँ यह भी बताना चाहूँगा कि इन नकली कहे जाने वाले बाबाओं को भी सद्गति मिलेगी | रावण, कुम्भकर्ण, कंस आदि जितने भी लोग राक्षस / अत्याचारी समझे जाते है, उन सब का राम या कृष्ण ने वध नहीं किया – उन सबका उद्धार किया | इसी प्रकार आसाराम या रामरहीम जैसे जितने बाबा कहे जाने वाले जेलयात्री बने – यदि वे दोषी हों तो भी तथा निर्दोषी हों तो भी – भगवान उनके निर्दोष होने की स्थिति में पूर्व जन्म के पापों को तथा दोषी होने की स्थिति इस जन्म के पापों को – धो रहा है | उन्हें योगियों को भी दुर्लभ परम गति मिलेगी |
गीता में भगवान् कृष्ण ने कहा है –
यद्यदविभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव च |
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ||
( जो कुछ भी इस विश्व में विभूतिमत श्रीमत् अथवा उर्जित दिखे, उसमें मेरे तेज का अंश है | )
आखिर ये बाबा चाहे असली थे या नकली – क्यों पूज्य हुए ? प्रभुकृपा से – और वही कृपा उनको इस जन्म या पूर्व जन्म के पापों से मुक्त कर रही है – सनातनी धर्मावालम्बियों को इसी रूप में इस घटनाक्रम का विवेचन करना चाहिए |
आज साक्षी जी के विचारों की घोर आलोचना हो रही है | भाजपा तक उनसे दूरी बना रही है | किन्तु क्या कोई निष्पक्ष विचारक यह बतायेगा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय से सजा प्राप्त करने तथा रास्ट्रपति स्तर से क्षमायाचना निरस्त होने के बावजूद आतकंवादी जिन बुद्धिजीवियों की निगाह में दोषी नहीं हुए तथा उनकी निर्दोषता को प्रमाणित करने के लिए अग्रिम तर्क रात को न्यायालय खुलवाकर दिए गए , उन बुद्धिजीवियों को बिना न्यायालय का निर्णय आये ही आशाराम बापू को बलात्कारी तथा राम – रहीम को मात्र सत्र – न्यायाधीश से दण्ड घोषित होते ही 100 % दोषी घोषित करते हुए क्या शर्म नहीं आनी चाहिए ? क्या जिस तरह के ट्वीट किये गये हैं तथा फेसबुक पर जिस शब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है, उचित है ? क्या यह कहावत चरितार्थ नहीं हो रही है कि ‘गरीब की जोरू सबकी भाभी ?’ क्या धर्म निरपेक्षता का अर्थ यही है कि हिंदुत्व के प्रतीकों को गाली बकी जाए ? कांग्रेस को यह ध्यान में रखना होगा कि कांग्रेस तब लगातार सत्ता में रह पायी जब नाथूराम गोडसे तक के बारे में जवाहर लाल नेहरु ने इतने आदरसूचक शब्दों का प्रयोग किया, जितना साक्षी जी ने संसद में नहीं कहा था, जिस पर कांग्रेसी बौखला गए तथा मोदी भी बचाव की मुद्रा में आ गये ( DEFENSIVE ) | जवाहर लाल नेहरु ने गोंडसे को ‘CIA या KGB का एजेंट’ या ‘किराए का हत्यारा’ नहीं कहा बल्कि कहा कि ‘It is tragic that he was killed by one of our misguided com patriots’
Compatriot का अर्थ – ‘जो मेरे ही टक्कर का देशभक्त है’ लकिन जो misguided है | यह एक निष्पक्ष मूल्यांकन है | आज कांग्रेस कम्युनिष्टों की चेली बन गयी है | कम्युनिष्ट खुद भी डूबेंगे तथा कांग्रेस को भी ले डूबेंगे | आज नाथूराम गोंडसे से लेकर बलात्कार में फंस कोई बाबा मिल जाए या गाय – कांग्रेस की आवाज बुलंद होने लगती है | वह एक राष्ट्रीय पार्टी है | तथा यदि उसे जिन्दा रहना है तो राहुल को कम्युनिष्टों की शब्दावली से परहेज करके जवाहरलाल नेहरु की शब्दावली पर लौटना होगा | जेल में बंद बाबाओं में इस शैली में गाली न दी जाए कि ऐसे लगे कि भगवा को गाली दी जा रही है | भगवा तिरंगे का अंग हैं और शीर्ष पर है | भगवा का अपमान तिरंगे का अपमान है | JNU को लाल झंडे से बचाना होगा | तिरंगे में भगवा के साथ और भी रंग बने रहे – यह धर्म निरपेक्षता है | किन्तु भगवे का निरादर – यह उचित नहीं है |

Tuesday, 12 September 2017

सोच रहा मैं कैसे तुमको मन का चित्र उतार भेज दूँ |



वाणी का श्रृंगार छिन गया
और दृष्टि का प्यार छिन गया |
भावो के कल्पना जगत का
वह स्वप्निल उपहार छिन गया ||

प्राण – पपीहा अब भी प्यासा
मिलनाशा की रटन लगाये |
पिया –पिया की टेर सुनाये
नित्य वसंती विरह मनाये ||

हँसते हुए फूल भाते हैं
सब बढ़ उनको दुलराते हैं |
मन की गहन वेदना को पर
कितने लोग समझ पाते हैं ||

तुमने लिखा मिलन गीतों का
मैं तुमको मनुहार भेज दूँ |
सोच रहा मैं कैसे तुमको
मन का चित्र उतार भेज दूँ ||


Thursday, 7 September 2017

हरयाना ( राम-रहीम ) ` चिंतन के कुछ बिंदु |


1- हरयाणा सरकार ने अपने कर्तव्यों एवं संवैधानिक दायित्वों का नाममात्र निर्वहण नहीं किया | अतः इसे तत्काल बर्खास्त न करके प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री राजधर्म का पालन नहीं कर रहें हैं |
2- जैसे उत्तरा सो गयी तथा अभिमन्यु चक्रव्यूह का अंतिम द्वार भेदना न सीख पाया,वैसे आडवाणी जीने गोधरा प्रकरण के बाद अटल जी को सुला दिया तथा वे मोदी को राजधर्म में दीक्षित न कर पायें |
3- कई वर्षों से राम-रहीम के बारे में कांग्रेस की तथा लोकदल की सरकारें क्या वारंट का तामीला कर पाई ? भाजपा की आलोचना करने का उन्हें कोई नैतिक अधिकार नहीं हैं |
4- 1984 में सिखों का कत्लेआम न रोकपाने वालों के मुह से कानून – व्यवस्था की चर्चा शोभा नहीं देती है |
5- जिस पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष के पिता के संतवचन हैं कि नौजवान तो बहक ही जाते हैं, तथा लडको से तो गलतियाँ होती ही रहती है, उस पार्टी प्रवक्ता को बलात्कार की परिचर्चा में भाग लेना शोभा नहीं देता |
6- जिस पार्टी ने अपने शासन काल में हाईकोर्ट में हल्लाबोल किया तथा माननीय हाईकोर्ट की प्रतिष्ठा तथा सुरक्षा संकटग्रस्त हुई, उसके मुह से कानून के शासन की बात सुनकर मुह का स्वाद बिगड़ जाता है
7- जिस पार्टी के शासन में गायत्री प्रजापति पर कार्यवाही माननीय सुप्रीम कोर्ट के हस्तछेप के बाद हो पाई, उस पार्टी के प्रवक्ता को नारी सम्मान की चर्चा नहीं करनी चाहिए |
8- जिस पार्टी के राष्ट्रीय संरक्षक का मानना हो कि बच्चे तो बच्चे, बुड्ढे भी बहक जाते हैं तथा गायत्री प्रजापति जैसे निर्दोष बुड्ढों का जेल में उत्पीडन हो रहा है, उसे नारी सम्मान की चर्चा से परहेज करना चाहिए |
9- क्या जामा-मस्जिद से संबधित वारंटों का तामीला पिछले वर्षों में हुआ तथा क्या आज भी हो पा रहा है ? क्या कानून का शासन केवल राम-रहीम, रामपाल, तथा आशाराम के लिए है ? “गरीब की जोरू” सबकी भाभी ?
10- कश्मीर में पेलेट गन तक का इस्तेमाल पर मानवाधिकारों की बात करने वालों की जवान क्यों बंद है ? एक बलात्कार के न केवल अरोपी, बल्कि दोष सिद्ध अभियुक्त के समर्थन में सड़क पर उतरना शर्म नाक है तथा दोषियों को कड़ा से कड़ा दंड मिलना चाहिए | उन्हें जेल भेज दो या संपत्ति जब्त कर लो – मुझे कोई ऐतराज नहीं है | किन्तु यही मानक कश्मीर में सेना या सी.आर.पी.ऍफ़.पुलिस पर पत्थर चलाने वाले या तथा आतंकवादियों हमलावरों को भगाने में सहायता करने वालों पर नहीं अपनाने चाहिए ? यह सवाल मैं मानवाधिकार का ठेका लेने वाला छद्म धर्मनिरपेक्ष तत्वों से करना चाहता हूँ | इसी तरह मैं भाजपा तथा मोदी भक्तों से पूछना चाहता हूँ कि यदि कश्मीर में बोनेट पर बांधकर पत्थरबाज को घुमाया जा सकता है तो बाबा को v.i.p. treatment क्यों घुमाने को ( minor aberration ) (क्षुद्र विचलन) मानलिया जाये तो बाबा के साथ सैकड़ों गाडियों का काफिला क्यों ? क्यों नहीं उन्हें पुलिस वैन में ले जाया जा सका ? जेल में उन्हें v.i.p. सुविधाएँ क्यों दी गयी ? बाबा को क्यों Z+ security दी गयी ? यही सवाल हुर्रियात के आतंकवाद समर्थकों को भी सुरक्षा प्रदान करने वालों के सामने खड़ा होगा ? कब वह समय आयेगा जब भारत में बिना जाति धर्म के तथा भक्तों की परवाह किये बिना उन्हें मात्र अपराधी माना जायेगा |
11- बार-बार ढोंगी बाबाओं की बात कह दी जाती है प्रश्न है असली बाबाओं के क्या हाल हैं ? स्वामी रामदेव जी के हाल देखीये | राहुल गांधी के दलितों के घर जाकर खाना खाने पर रामदेव जी के पावन उद्गार थे कि राहुल वहां हनीमून मनाने जाते थे | कोई भी विवेकशील व्यक्ति राहुल के किसी गरीब दलित के घर पर भोजन पर जाने के दृश्य की कल्पना करे | - राहुल का कितना भी पतन का काल हो, सुरक्षा व्यवस्था तथा साथ में चलने वालों की संख्या मिलकर एक हजार से ऊपर तो न्यूनतम होती ही होती है | एक हजार आदमियों के सामने क्या खुल्लमखुल्ला हनीमून मनाना संभव है ? कुत्ते-कुतिया भले ही हनीमून मना लेते हों किन्तु शहर के “की क्लब” [ जहाँ चाभियों की अदलाबदली के साथ पत्नी सम्परिवर्तन wife-swapping हो जाता है तथा वर्जित प्यार के नशीलेपन का – एहसास कर पापी आत्माएं एक ‘kick’ (उछाल) का अनुभव करती है को छोड़ दें तो एक गरीब लडकी या महिला चाहे कितनी भी चरित्रहीन क्यूँ न हो, अपने पति या परिवार के सामने हनीमून नहीं मना सकती | गरीब औरत भी ‘नाइट क्लब’ में नहीं जाती है, गोआ या कोअलम के बीचों में अर्द्धनग्न मुद्रा में या ( 80% नग्न मुद्रा में ) सूर्यस्नान (sunbath) नहीं लेती हैं – अपने ताप से सड़कों पर मजदूरी करते समय वक्सा या खेतों में काम करते वक्त सूर्यदेवता पसीने से नहला देते हैं | यदि वह कभी किन्ही कमजोर क्षणों में चरित्रभ्रष्ट भी होती है तो कम से कम अरहर के खेत या गन्ने के खेत में भीडभाड से दूर एक गोपनीय माहौल की उसे तलाश होती है – यही लताकुंजों का माहात्म्य है | पूरे विश्व में योग का डंका बजाकर भारत का नाम ऊंचा करने के बावजूद भी – भारतीय संस्कृति का स्वयंभू पुरोधा (brand ambassder) की प्रतिष्ठा के बावजूद भी क्या चिंतन के धरातल पर रामदेव बाबा को किसी राम – रहीम से अलग पाते है | मायावती तक इस बयान पर इतना विचलित हुई की उन्होंने उनके DNA पर रिसर्च कर डाला तथा यह सार्वजानिक घोषणा कर डाली कि वे किस जाति में उत्पन्न हुए हैं | मैं मायावती से सहमत नहीं हूँ – हर जाति में अच्छे बुरे लोग हो सकते हैं किन्तु ऐसी घृणित सोच रखना क्या किसी बाबा को शोभा देता है ? यही मानसिकता किन्हीं कमजोर क्षणों में बलात्कार को जन्म देती है तुलसीदास ने लिखा है – ‘सियाराम मय सब जग जानी’ | इसी तरह किसी दलित के घर भोजन ग्रहण करने में यदि हनीमून दिखनें लगे तो इस मनोरोग की चिकित्सा करनी चाहिए | इसी मनोरोग की चिकित्सा के लिए मनुवादी पार्टी मनुस्मृति में बताई गयी वर्णाश्रम व्यवस्था की स्थापना करने का घोषित लक्ष्य लेकर चल रही है हमारे देश में प्राचीन संस्कृति मठों की नहीं रही है | आर्यों में या सनातनी मान्यता में मठ-व्यवस्था नहीं थी | वहां आश्रम थे, पर्ण – कुटी थी | हट्टे-कट्टे मुस्तंडे साधू नहीं थे | वशिष्ठ के साथ अरुन्धती थी | देवताओं की भी पत्नियाँ थी | भगवान शिव तो अर्धनारीश्वर थे ही | बिना पत्नी के कोई यज्ञ नहीं कर सकता | भगवान राम तक को सीता की स्वर्ण प्रतिमा बनानी पड़ी | ५० वर्ष तो गृहास्थ आश्रम था | सिर मुंडाकर सन्यासी नहीं बनते थे लोग | ५० से ७५ वर्ष तक भी वानप्रस्थ में पति-पत्नी साथ रहते हुए संन्यास की तैयारी करते थे तथा ६५ वर्ष के बाद संन्यास लेने की छूट थी | इसके अपवाद मात्र कुछ गिने-चुने नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे | जवान लोगो के सन्यासी बनने की तथा मठों में रहने की परंपरा जैनियों तथा तथा बौद्धों ने प्रारंभ की – जहाँ ब्रह्मचर्य को लादा गया | सनातन धर्म में ब्रह्मचर्य जीवन में एक सजह प्रवाह के रूप में था, जिसे दाम्पत्य जीवन में कामुकता से मुक्त होकर संतानोत्पति के उद्देश्य से शारीरिक संबंध स्थापित कर साकार किया जाता था | महात्मा गांधी भी पति पत्नी के बीच गर्भनिरोधकों का प्रयोग कर बनाये गए यौन संबंध को घृणित तथा त्याज्य समझते थे | इस मठ संस्कृति को समन्वय के रूप में साकार करने के लिए आदि शंकराचार्य जी ने सनातन संस्कृति का अंग बनाया | ईसाइयों में भी यह मठ व्यवस्था (monastory) है, जिसको father तथा Num संचालित करते हैं मुसलमानों में भी फ़क़ीर तथा पेश-इमाम परिवार वाले हैं तथा मठ – संस्कृति नहीं है | आधुनिक युग में संघ-परिवार में यह मठ-संस्कृति पुष्पित-पल्लवित हो रही है, जहाँ पूर्णकालिक कार्यकर्ता, जो संघकार्य को करने में समर्पित हो, को तैयार करने की होड़ में साधुओं सध्वियों की भांति संघ को जीवन समर्पित कर तथा पारिवारिक जीवन से विभुख होकर पूर्णकालिक होने को प्रोत्साहित किया जा रहा है | सनातन वैदिक संस्कृति में तीन ॠण माने गए है 1-गुरु ॠण 2-पितृॠण तथा 3-देवॠण | बिना संतानोत्पत्ति के तथा उनके समुचित पालनपोषण की व्यवस्था किये संन्यास लेना सामान्यतया हमारी परंपरा नहीं हैं पितृॠण से मुक्ति कैसे होगी ? ‘पुं’ नामक नरक से रक्षा कैसे होगी ? पितरों का पिण्डोदक कैसे होगा पिण्डोदक न मिलने पर पितरों का पतन कैसे रुकेगा –
“पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदक क्रियाः |”
जो संत नैष्ठिक ब्रह्मचारी हो, उन्हें मेरा प्रणाम | मेरा अनुरोध है कि बिना समुचित परीक्षण के मठों में मात्र शिष्यों की संख्या बढ़ाने के लिए युवाओं को दीक्षा न दी जाए तथा उन्हें वर्णाश्रम व्यवस्था के कर्तव्यों का पालन करने का निर्देश सुस्थापित गुरुजन दें | “मैं कुंवारा हूँ, लेकिन ब्रह्मचारी नहीं’ जैसे उद्गार व्यक्त करने वालों को पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनाकर स्वस्थ परम्परा नहीं है |”
12- सरकारी मशीनरी लाचार थी | मैं मानने को तैयार नहीं | याद कीजिये एक निहायती कमजोर प्रधानमंत्री माने जाते थे मनमोहन सिंह,जिनकी कमजोरी के बारे में भाजपाइयों ने तमाम दन्तकथाएँ गढ़ रखी थी | एक दूसरे बाबा रामदेव ने उनके कार्यकाल में लाखों की भीड़ इकट्ठा की | किन्तु तत्समय प्रधानमंत्री के संकेतमात्र पर जब पुलिस ने तेवर दिखाए तो बाबा रामदेव सलवार सूट में भागते नजर आये – कहीं दूर-दूर तक नहीं दिखे | ‘राजा लालास्य कारणम् |’ राजा काल का कारण होता है | राजा ईश्वर का रूप होता है | माननीय उच्च न्यायालय ने सत्य ही लिखा हैं कि पूरा प्रकरण संदिग्ध हैं|
यह लापरवाही मात्र नहीं है – आपराधिक लापरवाही (CRIMINAL NEGLIGENCE) है | कड़े शब्दों के साथ धारा 144 लागू क्यों नहीं हुई ? अखिलेश यादव के कार्यकाल में जब विश्व हिन्दू परिषद् ने जमावड़ा इकट्ठा करना चाहा था तो क्यों नहीं कर पाई ? क्यों मुलायम सिंह के समय में भीड़ इकट्ठा हो गयी तथा अयोध्या में गोली चलानी पड़ी ? मुलायम ने प्रभावी ढंग से रास्ते में नहीं रोका | वे चाहते थे कि भीड़ अयोध्या पहुंचे तथा मुसलमान आतंकित हो और गोली चलवाकर उन पर एहसान लादा जा सके | वरना लगभग 5-6 दिनों से सड़क पर पैदल, सवारी से साफ सफ टी.वी. पर दृश्य आ रहे थे कि भीड़ जा रही है तथा रास्ते में पुलिस वाले उन्हें रोक नहीं रहे हैं बल्कि “जय श्री राम”के नारे भीड़ के साथ लगा रहे है | पूरी दुनिया ने ये दृश्य दूरदर्शन पर देखे | पर्यवेक्षण की शिथिलता में एक भी पुलिस अधिकारी निलंबित नहीं हुआ तथा रास्ते के थानाध्यक्ष निलम्बित तो दूर लाइन हाजिर तक नहीं हुए | जब लालू ने रोकना चाहा तो आडवाणी का हुजूम काम नहीं आया | मुलायम के समय में परिन्दे पर तो मार ही ले गए | यदि भीड़ अयोध्या में इकट्ठा न होती, तो गोली क्यों चलती तथा मुसलमान मुलायम का दीर्घकाल तक मुरीद कैसे बना रहता ? अखिलेश के समय में परिंदे सचमुच पर नहीं मार पाए क्योंकि राजा की मंशा साफ थी | मायावती के समय में क्यों नहीं शांतिव्यवस्था बिगड़ पाती थी क्योंकि मायावती नितीश कुमार की तरह फर्जी चन्दन नहीं थी कि विष व्यापने लगे तो नागदेवता से दूर भागकर गोधरा के हीरो की गोद में बैठना पड़े | मायावती गुण्डों को शरणागत रखने के बाद भी उनकी छाती पर चढ़ी रहती थी – दबाए रखती थी तथा ‘चढ़ गुण्डों की छाती पर’ ‘के नारे को साकार करती थी | अन्य कमियों के कारण 0 सीट पर भले चली गयी किन्तु मायावती के रूप में मैंने एकमात्र मुख्यमंत्री अब तक देखा, जिसके समय में IAS अधिकारी अपने को ‘नौकर’समझते थे तथा दबक कर रहते थे | बाकी सभी मुख्यमंत्रियों के सर पर चढ़कर मैंने IAS को नाचते देखा है | क्यों नहीं कोई बाबा या शाही इमाम शांतिव्यवस्था के मुद्दे पर मायावती के शासन को मखौल में बदल पाया – इसका विश्लेषण किये बिना हरयाणा के घटनाक्रम का सच्चा मूल्यांकन नहीं हो सकता | जो कुछ हरयाणा में हुआ – वह आपराधिक लापरवाही (criminal negligence) का मामला है, जिसके लिए इन्सपेक्टर से लेकर डी.जी.पी. तथा प्रमुख सचिव गृह से लेकर मुख्यमंत्री को समेटते हुए एक अपराधिक मुकदमा पंजीकृत किया जाना चाहिए तथा साक्ष्य को संकलित करके तथा समुचित मूल्यांकन करके आवश्यकतानुसार गिरफ्तारी की जानी चाहिए | तभी ऐसी घटनाएं रुक सकती है | मैं इस तर्क को मानने को तैयार नहीं हूँ कि डी.जी.पी. या कोई अन्य अधिकारी लाचार होता है | तथा सत्ता के सामने झुकना पड़ता है | यदि ऐसा होता तो हर मुख्यमंत्री IAS तथा IPS को ताश के पत्तों की तरह क्यों फेंटता ? जब कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद गिरानी थी तो अपनी मानसिकता के अधिकारी लाये तथा जब मुलायम सिंह को बचानी थी तो अपने चेहरे लाए | एक पद पर बैठने की कई-कई लोग उर्हता पूरी करते हैं | संवेदनशील पदों पर वही IAS/IPS पहुँच पाते हैं जो अपने राजनीतिक आका के साथ गिरोह के एक सदस्य के रूप में काम करने की हामी भरते हैं तथा बाकी वनवास झेलते हैं | जब नेता आपराधिक कार्य करे या कराएँ, तो ऐसे अधिकारी सहानभूति के पात्र नहीं हैं कि वे विवश थे | ‘मीठा मीठा गप्प गप्प, कडवा कडवा थू थू’ नहीं चलेगा | जब ईमानदारी का हवाला देकर न्यायपालिका के निर्णयों पर कोई उनसे दोषी IAS/IPS से सहानुभूति प्रदर्शित करता है,तो उसका व्यक्तित्व मुझे बाबा राम रहीम के भक्तों से कम विद्रूप नहीं लगता | भीड़ को इकठ्ठा होने देना तथा उसके बाद गोली चलवाना – मुझे जनरलडायर की याद दिलाता है | मायावती तथा अखिलेश ने पिछले दस सालों में कभी भीड़ इकट्ठी नहीं होने दी | यही काम मुलायम भी चाहते तो कर सकते थे | यही बात कल्याण सिंह पर भी लागू होती है | हरयाणा सरकार की नीयत साफ होती तो बाबा राम रहीम सलवार – सूट पहनकर भागते नजर आते | केंद्र सरकार की नीयत साफ़ होती तो हरयाणा सरकार को अपनी नीयत साफ़ रखनी पड़ती वरना बर्बास्तगी की तलवार उनके सर पर लटक रही होती | मैं बाबा रामदेव पर चलाये गए दमन – चक्र की प्रशंसा नहीं कर रहा हूँ | वह बलात्कारी नहीं थे, भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रजातांत्रिक संघर्ष कर रहे थे | किन्तु जिन मनमोहन सिंह को भाजपा कमजोर प्रधानमत्री करती थी, उनके तेवर बदल देने से शेर की तरह दहाड़ने वाले बाबा रामदेव रामदेव सलवार सूट पहनकर भागते नजर आये | ऐसे में राम रहीम के भक्तों ने तांडव किया, उसके पीछे सत्ता की मौन सहमति स्पष्टतया परिलक्षित होती है |
जयप्रकाश नारायण का नाम लेने पर इलाहाबाद में हुजूम उमड़ता था | किन्तु जब जयप्रकाश नायारण गिरफ्तार हुए, तो पत्ता नहीं खडका | यह हनक होती है सत्ता की |

गोरखपुर की मेडिकल कालेज त्रासदी / बाढ़ त्रासदी / रेल दुर्घटना / बढ़ते अपराधों के पीड़ितों के नाम खुला ख़त –


धैर्य धारण करें ! आपको स्वर्ग मिलेगा अन्यथा वर्तमान जन्म में जिस कुल में जन्म हुआ था, उससे उत्तम कुल में जन्म मिलेगा बशर्ते योगी जी / मोदी जी राष्ट्र साधना / प्रभुसाधना के लिए महान यज्ञ में लगें हैं उससे चीख पुकार करके उनका ध्यान न भटकायें | स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है –
“शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽपिजयते|”
अर्थात यदि कोई योग्यभ्रष्ट होता है तो वह पवित्र तथा श्रीमंत घरों में जन्म पाता है | यदि कोई व्यक्ति गरीब है, पतनोन्मुख है तो यह आर्थिक व्यवस्था में पूंजीपतियों द्वारा उसके साथ किया हुआ छल नहीं हैं, जैसा कि साम्यवादियों तथा समाजवादियों की सोच है यह पतन की स्थिति उसके पूर्व जन्म के पापों और पुण्यों की बैलेंसशीट का परिणाम है | आखिर जो रेल से चलता है, वह छोटी दूरी के लिए लग्जरी कार तथा बड़ी दूरी के लिए हेलीकाप्टर या हवाईजहाज का प्रयोग क्यों नहीं करेगा ? फ्रांस के राजा ने कितनी अच्छी राय दी थी कि यदि अनाज की कमी है, भूख की समस्या है तो लोग बन (bun) खाकर-पावरोटी-मक्खन खाकर कुछ दिन गुजारा क्यों नहीं कर सकता | जवाहर लाल  नेहरू ने भी कहा था कि अनाज की कमी की समस्या से निपटने के लिए लोग केला खाने की आदत डालें | इससे बढ़िया परामर्श क्या हो सकता है – आपात स्थिति में केले में काफी तत्व होते हैं – मूर्ख जनता न समझे तो राष्ट्र का नायक क्या करेगा | इसी क्रम में संजय गांधी ने कभी इस धरती पर लोगों से पेड़ बोने की (लगाने की नहीं) सार्वजानिक अपील थी | किंतु लोग इतने कृतघ्न निकले कि पेड़ बोने की जगह उन्होंने पूरे उत्तर भारत में 1977 में संजय गाँधी को 0 सीट पर ला दिया | पारिवारिक विचार विमर्श में मैंने अपने पिताश्री से प्रश्न किया (तब मैं विद्यार्थी था) कि वही आपातकाल पूरे भारतवर्ष में लागू था | दक्षिण भारत की ८०%-९०% सीटों पर संजय की पार्टी जीती पर वे अपनी सीट तक उत्तर भारत में हार गए | इसका रहस्य क्या है ? पिता जी का उत्तर था कि तुमको गीता पढाना बेकार रहा – रामचरितमानस को भी तुम नहीं समझ सके | क्या पढ़ा गीता में –
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ||
(जब-जब धर्म की ग्लानि होती है तथा अधर्म का उत्थान होता है तब-तब भगवन अवतरित होते हैं |)
बाबा तुलसीदास ने ‘नानापुराण निगमागम सम्मत’  वचन कहा है –
‘जब-जब होहिं धरम कै हानी |
बाढहिं असुर महा अभिमानी |
तब तब राम मनुज तन धरहीं |’
आखिर राम, कृष्ण, बुद्ध, बलराम, परशुराम, कल्कि, नृसिंह, हिरण्याक्ष का अंत करने वाले शूकर रूप धारी प्रभु (केवल कच्छप तथा मत्स्य सार्वभौम हैं को छोड़कर) सभी के सभी उत्तर भारत में ही क्यों अवतरित हुए, अयोध्या, मथुरा, कशी –यहीं क्यों | बाबाविश्वनाथ तथा विंध्यांचल में माँ जगदम्बा क्यों हैं ? कैलाश कहाँ है ? बार बार उत्तर भारत पर ही क्यों कृपा हुई ? जहाँ कही गन्दगी होगी, वहीँ तो सफाईकर्मी जायेगा | जहाँ कहीं पाप का घड़ा भरेगा, वहीँ प्रभु का अवतरण होगा | इसी लिए लोगो ने उसी आपातकाल को – परिवार नियोजन को- वृक्षारोपण को दक्षिण भारत में सहारा – क्या बढ़िया समय से रेल चल रही है – तथा उन्होंने युवा हृदय सम्राट के कार्यों का अनुमोदन करते हुए 90%सीटों पर जिताया | उत्तर भारत में संकीर्ण सोच के कारण व्यापक राष्ट्रसाधना, समाजसाधना पर लोगो का ध्यान नहीं गया – वे कुछ अप्रिय घटनाओं को ध्यान में रखकर निर्णय लिए |
सारे लोग ठहाका मार कर हंस दिए | एक विद्वान ने इसे अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकर कहा तो दूसरे विद्वान ने इसे दक्षिण भारतीयों के प्रति व्यंग्य-वचन  की संज्ञा दी | पूरी वार्ता के बीच पिताजी भी मुस्कराते रहे जिससे इस संभावना को बल मिला कि यह व्यंग्य-वचन है तथा निहितार्थ कुछ भी रहा हो, इसके शब्दार्थ पर मैं काफी देर तक चिन्तनरत रहा कि ऐसा क्यों है ?
न जाने क्यों लग रहा है | - इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है | मोदी जी तथा योगी जी बीवी-बच्चों तथा परिवार के समस्या से मुक्त होकर अहर्निश (Day and night ) देश, समाज, राष्ट्र तथा धर्म की साधना में लीन हैं तथा क्षुद्र सांसारिक जीवन उनकी व्यापक साधना को समझने का समुचित प्रयास न करके उनका ध्यान क्षुद्र सामाजिक तथा सांसारिक तथा लैकिक समस्याओं में अपनी चीखपुकार से भटकाकर उनकी राष्ट्र साधना में व्यवधान डाल रहे हैं | आखिर हर व्यक्ति की, परिवार की, देश की, राष्ट्र की, समाज की अपनी प्राथमिकताएँ होती है | चुनाव के दौरान कुछ लौकिक विषयों की चर्चा क्या कर दी, अज्ञानी जीव उसी को मुख्य अजेंडा मान बैठे तथा रात दिन फेसबुक से लेकर सड़क पर उसी की याद दिला रहे है | अमित शाह जी की सत्यनिष्ठा  एवं स्पष्टवादिता को पूरे राष्ट्र को प्रणाम करना चाहिए कि कितने सहस से उन्होंने सार्वजानिक रूप से स्वीकार किया कि ‘यह तो जुमला था |’ 56 || सीने वाला महापुरुष भी इतनी स्पष्ट घोषणा नहीं कर पाया किन्तु 65 || सीने वाले अमित शाह ने मोदी के भी साहस को मात देते हुए सत्य को स्वयं उजागर किया कि सांसारिक बातें – लैकिक प्रसंग – ये सब भाजपा के लिए जुमले हैं | असली अजेंडा तो वह है जिसकी साधना में संघ परिवार मोहिता के बाड़े में नागपुर में डा. हेडगवार द्वारा स्थापना के समय से लेकर परम पूजनीय गोलवलकर जी से होते हुए भी मोहन भगवत जी के समय तक अद्यावधि रत है | किन्तु अमित शाह जी की इतनी स्पष्ट स्वीकारोक्ति के बावजूद भी लोग बार-बार सांसारिक किंवा लौकिक समस्याओं को लेकर तपस्या भंग कर रहे हैं | जनता का ध्यान विचलित  न हो तथा दुबारा विपक्ष के जुमलों में न आ जाये, इसके लिए जनता को चूरन-चटनी भी चटाया जैसे (1)
कितने साहस से नोट बंदी चलायी | क्या यह 56 || के सीने का चमत्कार नहीं है जितने लोगों ने अपने अच्छे आचरण से, सदभाव से पूंजीपतियों, माफियाओं तथा अधिकारियों एवं नेताओं का विश्वास अर्जित कर लिया था, उनके खातों में बिना लाल झंडा उठाये, बिना हंसिया हथौड़े पकडे, बिना हल्ला बोले – समस्त काले धन वालों ने रुपया डाल दिया | घर में जो कैश था वह हाथ से दे दिया था | उसे दस लोगों के खातों से गुजरते हुए अपने खाते में मंगा लिया – 10% कमीशन मुख्य पात्र को, 1% कमीशन 10 बीच के खातेदारों को देकर 80% काला धन सफ़ेद धन हो गया | टैक्स भी नहीं देना पड़ा | इससे अधिक तो टैक्स लगता | “सर्वे भवन्तु सुखिनः” – यह भाजपा का मूलमंत्र रहा है – यही भारतीय संस्कृति है | कौन दुखी हुआ काले धन वाले को 30% टैक्स की जगह 20% कमीशन देना पड़ा तथा सारा कालापन घुल गया – इससे बढ़िया लांड्री क्या हो सकती है ? गरीब आदमी खुश है कि 1 करोड़ का कालाधन साफ़ करने के एवज में उसे 20 लाख मिल गए | कितना साफ कर लें – उसकी क्षमता | आखिर काले धन में से 20 लाख से कम ही तो देने का तो वादा था | जितने लोग समृद्ध लोगो को – ‘तराजू’ को 4 जूते मारने में विश्वास नहीं रखते थे, जो साम्यवादियों तथा समाजवादियों की तरह लाल झंडा न उठाकर ‘भगवाधारियों’ की तरह सबका साथ – सबका विकास चाहते थे – उनके चेहरे हरे हो गए | जो निठल्ले थे – किसी से तालमेल नहीं रखते थे – पूंजीपतियों को भारतीय संस्कृति की भाषा में सेठ जी न मानकर आर्थिक अपराधी मानते थे – केवल उनके हत्थे कुछ नहीं चढ़ा |
“सुधा वृष्टि भई दुइ दल मांही |
 जिए भालु कपि निसिचर नाहीं ||”
इसी प्रकार नोटबंदी के समुद्र-मंथन से 20 लाख रुपये का अमृत टपका, उसका परमानंद भाजपाइयों को मिला – सपा, बसपा, लालू आदि को नहीं | लालू, अखिलेश तथा बंगाल में साम्यवादियों के कुसंग से जिन कांग्रेसियों की बुद्धि भ्रष्ट नहीं हुई थी, वे काग्रेसी कार्यकर्ता भी नोटबंदी में मस्त हो गए क्योंकि उन पर भी पूंजीपतियों का विश्वास है | सपा, बसपा, राजद तथा कम्युनिस्टों के संपर्क में जो पूंजीपति थे भी, उनका इन दलों के कार्यकर्ताओं पर विश्वास नहीं था कि वे पा जाने के बाद 80% वापस करेंगे | इन्हीं दलों के नेताओं के पास 500 के नोट भी बदले नहीं जा सके तथा उछल-उछल कर मोदी को गाली देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा | नितीश कुमार जी तक नोटबंदी से इतना प्रभावित हुए कि चाराचोरों की संगत उन्हें अशोभनीय लगने लगी तथा सीधे वे हीराचोरी की डगर खोजने लगे | नितीश की ईमानदारी कितनी अधिक है कि जब तक नोटबंदी नहीं हुई थी तब तक वे लालू को ईमानदारी की प्रतिमूर्ति मानते थे – गले मिलते थे किन्तु जैसे ही नोटबंदी हुई, मोदी जी की कृपा से उनके ज्ञानचक्षु खुल गए तथा उन्हें ध्यान आया कि “क्या अनर्थ हो गया – मैं तो चाराचोर का साथी हूँ |” इससे अच्छा तो गोधरा का हीरो था – मुंडमाल धारण करने वाले शिव की पूजा करना हमारी भारतीय संस्कृति है | लालू तो माखनचोर भी नहीं है – खुद चारा खाकर गुजारा कर लेता है तथा बेटा मिट्टी चाटकर | ऐसे व्यक्ति की संगत से छवि धूमिल होगी |
इस जनता को भी क्या कहें | कोई भी सरकार कितना भी प्रिंट मीडिया तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया को मैनेज कर ले किन्तु सोशल मीडिया पर लाखों – करोड़ों भक्तों के उतारने के बावजूद भी जनवाणी को दबाया नहीं जा सकता | यद्यपि इसे भी कुचलने या दबाने के नित नूतन हथकण्डे हर राज्य सरकार  तथा केंद्र सरकार आजमा रही है किन्तु ये फसबुकिये तो सदाबहार (जिसे बोलचाल में बेहया कहते हैं) की तरह जितना ही  काटों, उतना ही हरे होते जाते है | ख़रीदा भी नहीं जा सकता है- गिनती से परे हैं |
फेसबुकियों तथा ओछी मानसिकता के विपक्षियों से पूछिए कि तुम लोग छोटे-मोटे सांसारिक कामों में क्यों मोदी जी तथा योगी जी जैसी दिव्य आत्माओं को उलझना चाह रहे हो | कितने बड़े मुद्दे में व्यस्त हैं तथा कितनी छोटी उम्मीदें लोग उनसे पाल रहे हैं – मोदी जी को लीजिये | 56 || का सीना फुलाए चीन के मोर्चे पर डटे है | आप की रेलवे दुर्घटना के बारे में सोंचें या देश के बारे में डोकलम पर त्रिशूल लगवा रहे – एटामिक वार की तैयारी कर रहें हैं | चीन को मौन संदेस दे रहे हैं – “शेरवानी में गुलाब की कली लगाकर मैं माउन्टबेटन के यहाँ हाजिरी लगाने वाला नहीं हूँ |” ‘वह साल दूसरा था, यह साल दुसरा है |’ द्वितीय विश्वयुद्ध का इतिहास पढ़ लो | हिटलर के पास एक भी सैनिक, एक भी हथियार तथा एक भी कारतूस नहीं बढा था, किन्तु सत्ता में बैठते ही हिटलर ने घोषणा कर दी कि वह Treaty  OF Versailles को नही मानेगा तथा प्रथम विश्वयुद्ध के मुआवजे की भरपाई नहीं करेगा | इसके लिए वह समस्त विश्व शक्तियों से एक-साथ युद्ध करने को तैयार है | ठीक वैसे ही जैसे भारतीय सेना ढाई मोर्चों –चीन, पाकिस्तान तथा आंतरिक अशान्ति से एक साथ निपटने को तैयार है |फ़्रांस, इंग्लैण्ड तथा रूस हिल गए | रूस ने भागकर जर्मनी से संधि कर ली | फ़्रांस को लगा कि इंग्लैण्ड तो समुद्र से घिरा है तथा उसका जो भी झटका होगा वह फ़्रांस को झेलना पड़ेगा तथा जर्मनी के सैनिक बाज जैसे उछलकर कमर हिलाकर नाचने वाले फ्रांसीसी सैनिकों को रगड़ देंगे | इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री Chamberlain ने संसद में कहा – “If Nazism fails in germany, what will follow –stark communism, would you Britishers like it” पक्ष और विपक्ष को जैसे सांप सूंघ गया | “हिटलर हाथी की तरह बढ़ता गया – दुश्मन कुत्ते की तरह भौंक भी नहीं पाए – चुप हो गए |”  भक्त समझायेंगे की मोदी लाख बुरा हो पर 56 ||  का सीना तो है, दुश्मनों की आँख में आँख डालकर बात तो करता है – ‘सबकी ममता ताग बटोरी’ की शैली में भई-बहन, माता, पत्नी – सबके प्रति कर्तव्यों को ताक पर रखकर एक TYPICAL संघी की भांति राष्ट्रसाधना में लगा है | गोधरा का वीर – क्या लेना देना उसे रेल की दुर्घटनाओं से | कब नहीं मरते लोग – गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है –
“जातस्य हि ध्रुवं मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्यच |”
अर्थात (जो पैदा हुआ, वह मरेगा तथा जो मरा वह पैदा होगा |) मौत की चिंता मुसलमान या ईसाई करें, जिन्हें मरने के बाद कब्र में जाना है, हिन्दू की मृत्यु तो मात्रा कायापरिवर्तन है – उसे पुनर्जन्म लेना है – किस बात की चिंता है – आत्मा की शांति के लिए शांतिपाठ करा दो | सांसारिक कार्यों हेतु परिवार को कुछ आर्थिक मुआवजा दे दो – परम्परा के पालन में कुछ अधिकारीयों की बलि चढाओ – ओउम् शांतिः शांतिः | ज्यादा परेशान मत करो मोदी को |
( 2 ) योगी से लोग हिसाब मांगने लगते हैं आक्सीजन के आभाव में बच्चो की मौत का, इन्सेफ्लाईटिस ज्वर का | उनसे पूछिये कितना शानदार उत्तर दिया था स्वाथ्य मंत्री ने कि “अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं –हर साल मरते रहे हैं |”इतने सहज कार्य के लिए लोग सड़क पर उतरने लगे | कहा गया है ‘स्वस्य एवं अविनयस्य फलमनुभूयतेऽनेन’
अर्थात अपने अभिनय का फल जीव भोगता है | मुसलमानों की भी यही मान्यता है –
मौत का जब दिन मुकर्रर है,
रात भर नींद फिर क्यों नहीं आती |
यह सभी धर्मो की सर्वसम्मत मान्यता है कि मृत्यु का क्षण निश्चित है – उसे कोई घटा-बढ़ा नहीं सकता | यदि ये बच्चे सम्पन्न परिवारों के होते तो सरकारी अस्पताल में क्यों भरती होते ? क्या कोई धनी परिवार का बच्चा सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढता है ? क्या कोई संपन्न परिवार का बच्चा सरकारी अस्पताल में भर्ती होता है ? प्राइमरी के अध्यापक को जनगणना करनी है, पशुगणना करानी है, वोटर लिस्ट बनवानी है, वोट डलवाना है, पल्स पोलियो कार्यक्रम चलवाना है, वृक्षारोपण करवाना है, निरक्षरता उन्मूलन करना है, मिडडेमील बच्चो को खिलाना है, मान सम्मान से जिन्दा रहने के लिए प्रधान तथा BDC की चाटुकारिता करनी है आदि-आदि | केवल एक काम करने का समय मास्टर के पास नहीं है और वह है विद्यार्थियों को पढाना | ऊपर से तुर्रा यह है की मात्र 5000 रुपये प्रतिमाह की दक्षिणा पर पिकनिक के लिए कभी कभी देर-सबेर विद्यालय आने की अधिकारीयों द्वारा दी गयी छूट | यही स्थिति सरकारी डाक्टरों और कर्मचारियों की है | सुबह से शाम तक कमीशनखोरी तथा दरबार बाजी का चक्कर | ‘खग मृग बसहिं अरोग बन हरि अनाथ कै नाथ |’ इन दुर्भाग्यशाली लोगों में कुछ जिनकी मौत नहीं आई है, वे तो जीवित बचेंगें ही और जिनकी मौत आ ही गयी है, उन्हें बचा कौन सकता है ? मार्क्स के प्रभाव में लोहिया तथा अम्बेडकर ने मृत्यु के चक्र भाग्यचक्र को दोषी न मानकर डाक्टर, इंजीनियर, मुख्यमंत्री आदि पर उत्तरदायित्व निर्धारित करने / कराने की गंदी परम्परा का श्रीगणेश कर दिया |
योगी जी क्या-क्या देंखे ? कितने दिव्य मुद्दों पर उनकी दृष्टि केन्द्रित है ? जन्माष्टमी पर कब-कब किसने कहाँ-कहाँ कार्यक्रम बंद कर दिए थे ? काँवडिये, जो शिव भक्ति में लीन है, उन्हें D.J. पर नाचने का मौका तथा सभी जगहों पर से होकर गुजरने का मौका मिला या नहीं ? राम मंदिर निर्माण कैसे होगा तथा कब होगा ? इन पर भी तो कोई लेखा-जोखा मांगने वाला हो | साथ ही मोदी साहब ने एक नए भगवन को पा लिया है – डा. अम्बेडकर के रूप में – बोधिसत्व हैं साक्षात् भगवान बुद्ध के अवतार हैं | इसीलिए स्वच्छता का इतना सघन अभियान मोदी साहब ने छेड़ रखा है | प्राचीन काल से ही स्वच्छता भारत की एक गंभीर समस्या रही है | इसी स्वच्छता को सुनिश्चित करने के लिये रघुनाथ ने शम्बूक-वध किया था | ब्राह्मण की झाड़ी की सफाई न होने पर रघुनाथ ने तपस्या कर रहे शम्बूक को मृत्युदण्ड दिया था | मोदी जी अच्छी तरह जान रहे हैं कि  जनसंघ का जमाना नहीं है – यह भाजपा का युग का है | इस घोर कलियुग में राममंदिर के नाम पर पूर्ण बहुमत नहीं आया,किन्तु डा.अम्बेडकर की साधना जैसे ही मोदी ने प्रारंभ की, पूर्ण बहुमत आ गया | डा. अम्बेडकर के अनुयायी थोड़ी मात्रा में आ गए तथा जो सवर्ण बड़ी मात्रा में पहले से मौजूद थे, दूसरे जीवंत विकल्प के आभाव में मोदी का बंधुआ मजदूर बनने को विवश हो गए | आरक्षण, बैकलाग, तथा अनुसूचित जाति (अत्याचार निवारण अधिनियम) 2016 एवं प्रोन्नति में आरक्षण पर मोदी के ललकारते हुए दृष्टिकोण को भली भांति जानते हुए भी सवर्ण मोदी का पिछलग्गू इसलिए बना हुआ है कि  “When rape in inevitable why not relax and enjoy” अर्थात यदि बलात्कार अवश्यम्भावी ही है और उससे बच निकलने का कोई विकल्प नहीं है, तो एकमात्र रास्ता है कि शरीर को शिथिल करके बलात्कार में भी आनंद की रसानुभूति की जाए | आज का सवर्ण यही कर रहा है | सवर्ण का मनोबल इतना गिरा हुआ है की वह इतने में ही गद्गद है कि उस पर मायावती की 4 चप्पलें तथा अखिलेश और लालू की 40 लाठियां नहीं बरस रही हैं  | आज वह शम्बूक की संतानों से उलझने की जगह शरणागत होकर सफाईकर्मी की नौकरी का न केवल फार्म भर रहे हैं बल्कि सफाई कर्मी की नियुक्ति का पद पाने की दशा में लाखो रुपये खर्च करने को भी तैयार हैं | आज भी कभी-कभार औपचारिकता  के लिए भले झाड़ू पकड़ लिया हो किन्तु किसी कलराज मिश्र, अरुण जेटली, केसरी नाथ त्रिपाठी जैसे व्यक्ति को झाड़ू पकड़कर गर्वपूर्वक फोटो खिचातें नहीं देखा गया, भले ही गर्व से तनी हुई मुद्रा में योगी जी, राजनाथ सिंह आदि झाड़ू पकडे हो | आज भी केसरीनाथ के भक्त उनका नाम गर्व से लेते हैं कि जिस प्रकार उन्होंने बसपा को तोड़कर 67 में 3 से भाग देकर 19 का उत्तर निकाला तथा उनकी इस कारगुजारी पर समस्त न्यायवादियों तथा न्यायमूर्तियों तक ने दातों तले ऊँगली दबा ली | यह था शम्बूकवध भाग 2 | मायावती के पास 67 विधायक थे | पार्टी के विभाजन के लिए के लिए 23-24 विधायक चाहिए थे | जनबसपा के पास 19 विधायक थे तथा केसरीनाथ त्रिपाठी ने उसे विभाजन मान लिया | केसरीनाथ जी का कहना था कि उनके सामने 24 विधायक आये, 24-19 = 5 कौन थे, उनका शपथ पत्र तो छोडिये, कहीं सादे कागज पर हस्ताक्षर नहीं थे | आज तक याद नहीं आ पाया कि उनके नाम क्या थे | इसे कहते हैं ‘मेधा’ | यही मेधा आज सफाई – कर्मी की नौकरी ढूढ़ रही है तथा इसके बावजूद वे अटल जी का जयकारा कर रहे हैं तथा मोदी जी की पूजा कर रहे हैं, जो इसे इस स्थिति में पहुँचाने के लिए जिम्मेदार हैं | मोदी ने उसे स्वच्छता अभियान से जोड़कर रघुनाथ के रास्ते पर चल रहें संघ तथा भाजपा – परिवार को बुद्ध के रास्ते पर मोड़ दिया | उन्होंने इंग्लैण्ड में इसकी घोषणा भी की कि “INDIA IS LAND OF GANDHI AND BUDDHA” और अब इस सूची में बोधिसत्व डा. अम्बेडकर का नाम और बढ़ गया | राम, कृष्ण, परशुराम, हेडगवार, साबरकर,गोलवलकर इस सूची से नदारद हैं |
संघ के राममंदिर के एजेंड, कांवड़ियों के एजेन्डे तथा साथ ही मोदी के स्वच्छता के अजेंडे से समय न मिलने के बावजूद योगी ने गोरखपुर मेडिकल कालेज दुर्घटना में कोई शिथिलता नहीं बर्ती | तत्काल एक मुसलमान खोज लिया गया, जिसके प्राइवेट प्रेक्टिस करने से इतनी क्रूर हृदयविदारक घटना घटी | यदि वास्तव में वह सरकारी आक्सीजन का प्राइवेट इस्तेमाल करता था, तो इतने दिन बीत जाने पर भी उस पर मुकदमा क्यों नहीं कायिल हुआ तथा वह गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ ? क्या पुलिस और प्रशासन के अधिकारी आज भी आजम खां के प्रभाव में हैं ? आक्सीजन का सप्लायर कौन है – पिछली सरकार तथा वर्तमान सरकार में उसके किससे रिश्ते है ? क्या वह आक्सीजन सप्लाई करने के लिए सुपात्र है ? तथा उसका TENDER हुआ भी था ? यदि हाँ तो कैसे और किसके द्वारा और क्यों उसका पेमेंट रुका ? किसने रोका ? क्या कारण था ? ये सारे प्रश्न प्रष्ठभूमि में चले गए तथा सामने केवल एक प्रश्न रह गया कि क्या मुसलमान डाक्टर आजम खान का मित्र था या रिश्तेदार ? कितने प्रयास से योगी जी तथा भक्तों ने जनरोष की दुर्गा की लपलपाती हुई जीभ को संघ के पारंपरिक एजेंडे के अनुरूप मुसलमान डाक्टर की ओर मोड़ा हगा – इसकी चतुर्दिक प्रसंग नहीं हो रही है – खेद है – हिंदुत्व खतरे में है | बच्चे तो जितने मरेंगे, उससे अधिक पैदा हो जायेंगे, किन्तु यदि हिंदुत्व खतरे में पड़ा और वह भी योगी जी के कार्यकाल  में – तो भविष्य में इसका उद्धार कौन करेगा – यह समझ से परे है | साक्षात् काल्कि को अवतरित होना पड़ेगा | कल्कि भी कैसे म्लेच्छों का सर्वनाश करेंगें – उनका नाम लेकर दूकान चलाने वाले भी कांग्रेसके टिकट पर लड़ रहे हैं |
फिर लोग कहते हैं कि शांति व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं हैं | शांति व्यवस्था एक अस्पष्ट (VAGUE) शब्द है | दम भर में  कर्फ्यू लग जाता था | दंगा होता था | आज बंद है | उपराष्ट्रपति रह चुके अंसारी साहब तक घुटन महसूस रहे हैं | आजम खां तक इंतजार कर रहे हैं कि कब उन्हें विधानसभा में विस्फोटक रखने में अन्दर करके रासुका लगादी जाये | कहावत है – ‘बछड़ा खूटे के बल पर उछलता है,’ तथा इतना ही नहीं ‘बच्चा माँ की गोद में उछलता है, डायन की गोद में नहीं |’ भक्तों के जोर-जोर से प्रचार के बावजूद भी फसेबुकिये शांति – व्यवस्था का जिक्र कर ही देते हैं |
फिर आइये अपराधों पर | पशुओं की तस्करी समाप्त हुई या नहीं ? जब सरकार ने चाहा, तो दरोगा सीने पर गोली खाकर भी गौ-तस्करों से निपट रहा है | जब सरकार के पास फुरसत होती, तो अन्य अपराधियों से भी मुक्ति मिल जाएगी | आखिर कैराना का आतंक समाप्त हुआ या नहीं | जब मायावती ने चाहा, ददुआ नहीं रहा | जब कल्याण सिंह ने चाहा, तो अपने ही 9 मंत्रियों के सरक्षण के बावजूद, जिनको वह स्वयं नहीं बर्खास्त कर पा रहे थे, श्री प्रकाश शुक्ल को धरती छोडनी पड़ी | एक इंसपेक्टर तथा बाद में सी.ओ. सर्वदेव कुंवर के चलते गोरखपुर के दर्जनों दिग्गज एवं उच्च आभामंडल वाले अपराधी Quit India करके नेपाल चले जाते थे तथा भारत – धरा पर तब वापस आते थे जब उन्हें प्रमाणित जानकारी मिल जाती थी कि सर्वदेव कुंवर न केवल स्थानांतरित और कार्यमुक्त हो गए हैं, बल्कि गोरखपुर छोड़ दिए हैं | बाद में इनमें से कई लोग लाल बत्ती वाली गाड़ियों शोभा बढ़ाये | विश्वनाथ प्रताप सिंह के चाह लेने के बाद छविराम, पोथी, महावीरा तथा अनार सिंह इतिहास हो गये | इसी क्रम में योगी जी के चाहते ही कैराना शांत हो गया | यू.पी. में लव जेहाद एक दुर्लभ घटना हो गयी है | जिस दिन सीतापुर या गोरखपुर के अपराध पर निगाह पड़ेगी, उस दिन वहां भी शांति आ जाएगी | सागर को सुखा देने की क्षमता के बावजूद भी प्रभु तीन दिन तक प्रार्थना करते रहें – रास्ता देने के लिए | इसी प्रकार योगी जी अपराधियों के साथ लीला कर रहे हैं | जिस दिन निगाहें तिरछी होंगी, वे भी शरणागत होंगे | जैसे मोदी तथा चीन डोकलम में लीला कर रहे थे – दोनों एटम बम क्यों नहीं छोड़ रहे थे | यही लीला भी अपराधियों के साथ हो रही है |
सर्वे करके देख लीजिये | गिरफ्तारी करने से अपराध नहीं रुकते | अखिलेश के समय में प्रतिमास जितने मुसलमान तथा यादव जेल भेजे गए उसके 10% भी आज जेल में नहीं जा रहे | क्या यादवों और मुसलमानों को आज सरक्षण मिल रहा है ? क्यों नहीं जेल भेजे जा रहे है ? क्योंकि उन्होंने अपराध करना छोड़ दिया है | यादवों या मुसलमान के खिलाफ कोई सुनियोजित अभियान भी नहीं चलाया गया | फिर भी उन्होंने अपराध त्याग दिया | जब किसी शिवपाल यादव जैसे तेजस्वी यादव को मंत्रिमंडल में शपथ दिला दी जाएगी, तब फिर भी यादव अपराधी बिना किसी के कहे सक्रिय हो जायेंगे | ‘राम तेरी गंगा मैली हो गयी पापियों के पाप धोते-धोते’| जब रायबरेली में हत्यारों के पक्ष में सार्वजानिक वक्तव्य जारी करने वाले कैबिनेट में रहेंगे तो सामूहिक हत्याएं होती रहेंगी | बाहर से आयातित लोगो ने भाजपा का एक पृथक दल (Party with a difference) का स्वरुप नष्ट कर दिया | अखिलेश के समय में बलात्कार क्यों नहीं रुके | जब अखिलेश के व्यक्तिगत संरक्षक पिताश्री तथा पार्टी के संरक्षक का यह बयान आयेगा कि ‘ बच्चों से गलती हो जाती है- फिसल जाते हैं’| तथा जब अखिलेश स्वयं किसी महिला पत्रिकार के बलात्कार में वृद्धि संबंधी प्रश्न पूछने पर प्रतिप्रश्न ( जबावी सवाल ) पूछेंगे कि “आप तो सुरक्षित हैं न ? ईश्वर धन्यवाद दीजिये” तो बलात्कार बढेगा ही बढेगा – कौन रोक पायेगा ? police help line, महिला हेल्प  लाइन तथा Dial  100 क्या करेंगे | जब गायत्री प्रसाद प्रजापति के संबंध में संरक्षक महोदय की यह सोच होगी कि गायत्री प्रजापति जैसे निर्दोष बुजुर्गों को पुलिस ने नाजायज गिरफ्तार किया है तथा जेल में उन्हें नाहक परेशान किया जा रहा है तो बलात्कार कैसे करेंगे अखिलेश के कार्यकाल में फोन पर अंकित महिलाओं के छेड़छाड़ से संबंधित शिकायतों के बारे में एक निहायत  असंवैधानिक, अवैधानिक तथ बेहूदी परम्परा विकसित हो गयी – पता नहीं किसके लिखित या मौखिक आदेश से - तथा वह प्रथा आज भी विद्यमान है, जिसके रहते हुए प्रयास दस गुने कर दिये जाएँ तो भी बलात्कार बढ़ते ही रहेंगे | यह प्रथा है – बातचीत से समाधान की (Conciliation  की ) | पहले पति-पत्नी के विवाद में वैधानिक कार्यवाही के पहले वार्ता की प्रथा थी किन्तु यह वार्ता भी मुकदमा कायम होने के बाद होती थी | अब छेड़छाड़, बदतमीजी, आदि के मामले में पुलिस मुकदमा नहीं कायम करती, बल्कि जो शिकायतें प्राप्त होती हैं, उन पर दोनों पक्षों को बुलाती है तथा छेड़ने वालों और लड़की वालों के बीच उस तरह की वार्ता कराती है जैसे पहले पहले पति-पत्नी के बीच विवाद होने पर कराया करती थी | जिस मामले में पैसा पुलिस पा जाती है, उस मामले में छेडछाड का मुकदमा कायम नहीं होता तथा माफ़ी मगवाकर केस समाप्त कर दिया जाता है तथा जहाँ छेड़ने वाला पैसा नहीं दे पाता है | वहां उस पर मुकदमा कायम करके जेल भेज दिया जाता है | 1989 से पहले वीर बहादुर सिंह तथा नारायण दत्त तिवारी के समय में लड़की छेड़ने वालों पर गुण्डाऐक्ट की कार्यवाही होती थी | योगी जी केवल एक आंकड़ा मंगाकर देख लें कि क्या अखिलेश जी के मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद से क्या प्रति जिला गुण्डा ऐक्ट का एक मामला भी लड़की छेड़ने वालों के विरुद्ध दर्ज हो पाया है ? आज भी कुछ नहीं हो पाया है | गाड़ियाँ दे देने से लड़कियां नहीं बचती हैं | इसके लिए रघुवंश की (Will Power) इच्छाशक्ति चाहिए - 
यस्मिन् महीं शासति वाणिनीनां
निद्रां विहारार्द्धपथे गतानाम् |
वातोऽपि नास्रंसयदंशुकानि
को लंबयेदाहरणाय हस्तम् || (कालिदास)
(रघुवंश के शासन में यदि नर्तकियां मदमत्त होकर अस्तव्यस्त वस्त्रों में सड़क पर सो जाती थी, तो हवा की हिम्मत नहीं थी कि उनका आँचल उडा के उनके अंगो में झांक सके – फिर सामान्य मनुष्य का क्या साहस कि उनको हाथ सके |)
मात्र दृढ संकल्प चाहिए | आखिर योगी जी का घनघोर आलोचक भो नहीं कह सकता कि वे यादवों तथा मुसलमानों को  संरक्षण दे रहे हैं किन्तु अखिलेश जी के कार्यकाल में जितनी यादव तथा मुसलमान जेल में थे, या फरार थे, उसके 10% भी आज नहीं है – उनका हृदय परिवर्तन हो गया | पुलिस चेतक घोडा है –
जो तनिक हवा से बाग़ हिली
लेकर सवार उड़ जाता था |
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड जाता था ||
प्राथमिकता के क्रम में आते ही अन्य अपराध भी समाप्त हो जायेंगे |

इतने Positive दृष्टिकोण से समीक्षा न करके जो चाहते हैं कि भाजपा अपने चिर अजेंडे को भूल जायें, उनकी सोच कितनी सही है ?