मनुवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की हैसियत से मैंने एक लेख श्रृंखला चालू की थी- "एतद्देश प्रसूतस्य।"
ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ।अतः ब्राह्मणसुलभ वाचालता हमें विरासत में मिली है,हमारे DNA में है। इस श्रृंखला में मनुस्मृति के इस निर्देश की याद मैंने विभिन्न पार्टियों के राजकुमारों- राहुल,अखिलेश,तेजस्वी आदि को दिलाई थी-
एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः।
स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवा:।।
अर्थात इस देश में उत्पन्न अग्रजन्मा के संसर्ग में आकर अपने अपने चरित्र(role/assignment) की शिक्षा ग्रहण करें।
इसमें राहुल को बार-बार समझाया गया कि दिल्ली के राजा को योग्य सामंत नहीं, बल्कि नीच प्रकृति, पापी मन वाले तथा गंदे सामंत पालने चाहिए, जो भरसक 'मजबूर' हों तथा 'मजबूत' तो कतई न हों। इसी तरह सामंतों को भरसक मजबूर सम्राट पाने का प्रयास करना चाहिए, जिसकी लाचारगी तथा बेचारेपन के भाव को देखकर दुनिया हंसे। योग्य सम्राट सामंतों का तथा योग्य सामंत सम्राटों का पतन करते हैं। किंतु राहुल ने सुनकर अनसुना कर दिया। पहली गलती तो तब की जब मनमोहन सिंह को एक तरह से अपमानित करते हुए लालू की रक्षा के लिए बनाए जा रहे Act को फाड़ कर फेंक दिया। राजनीति नैतिकता के सिद्धांतों पर नहीं चलती है।
एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः।
स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवा:।।
अर्थात इस देश में उत्पन्न अग्रजन्मा के संसर्ग में आकर अपने अपने चरित्र(role/assignment) की शिक्षा ग्रहण करें।
इसमें राहुल को बार-बार समझाया गया कि दिल्ली के राजा को योग्य सामंत नहीं, बल्कि नीच प्रकृति, पापी मन वाले तथा गंदे सामंत पालने चाहिए, जो भरसक 'मजबूर' हों तथा 'मजबूत' तो कतई न हों। इसी तरह सामंतों को भरसक मजबूर सम्राट पाने का प्रयास करना चाहिए, जिसकी लाचारगी तथा बेचारेपन के भाव को देखकर दुनिया हंसे। योग्य सम्राट सामंतों का तथा योग्य सामंत सम्राटों का पतन करते हैं। किंतु राहुल ने सुनकर अनसुना कर दिया। पहली गलती तो तब की जब मनमोहन सिंह को एक तरह से अपमानित करते हुए लालू की रक्षा के लिए बनाए जा रहे Act को फाड़ कर फेंक दिया। राजनीति नैतिकता के सिद्धांतों पर नहीं चलती है।
जेहिं अघ हनेउ व्याध इव बाली।
पुनि सुकण्ठ सोई कीन्ह कुचाली।।
सोइ करतूत विभीषण केरी।
सपनेहुँ तेहि श्रीराम न हेरी।।
-तुलसीदास
पुनि सुकण्ठ सोई कीन्ह कुचाली।।
सोइ करतूत विभीषण केरी।
सपनेहुँ तेहि श्रीराम न हेरी।।
-तुलसीदास
जिस पाप के लिए राम ने बालि को व्याध की तरह मारा, वही कुकर्म सुग्रीव ने किया तथा वही करतूत विभीषण ने, किंतु सुग्रीव तथा विभीषण के कुकर्मों पर राम ने स्वप्न में भी दृष्टि नहीं डाली।
अगर सुग्रीव तथा विभीषण ही मार डाले जाएंगे, तो रावण-वध कैसे होगा?
अगर सुग्रीव तथा विभीषण ही मार डाले जाएंगे, तो रावण-वध कैसे होगा?
लालू गांधी परिवार का सुग्रीव और भक्त- पापी लेकिन भक्त।
राहुल भूल गए जब उनकी पार्टी के संगमा, पवार तथा तारिक अनवर आदि भी सोनिया को विदेशी कहकर हुलकार(hoot) रहे थे, उस समय लालू ने अशोक की दादी तथा चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी कार्नेलिया से तुलना करते हुए उन्हें भारत की बहू घोषित किया तथा सीना तान कर खड़ा हो गया।क्यों? इसलिए कि चारों ओर से घिरी सोनिया(cornered) जब कभी सत्ता में आएंगी, तो उनके पापों को धोएंगी।
राहुल भूल गए जब उनकी पार्टी के संगमा, पवार तथा तारिक अनवर आदि भी सोनिया को विदेशी कहकर हुलकार(hoot) रहे थे, उस समय लालू ने अशोक की दादी तथा चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी कार्नेलिया से तुलना करते हुए उन्हें भारत की बहू घोषित किया तथा सीना तान कर खड़ा हो गया।क्यों? इसलिए कि चारों ओर से घिरी सोनिया(cornered) जब कभी सत्ता में आएंगी, तो उनके पापों को धोएंगी।
होते न मुल्जिम न होते तुम हाकिम,
औ सूनी ही होती अदालत तुम्हारी।
औ सूनी ही होती अदालत तुम्हारी।
राजनीति में Reciprocal policy चलती है। नेहरू ने सैद्धांतिक राजनीति की, किंतु कृष्णा मेनन जैसे चेले चमचों को भी पाला-पोसा। इंदिरा जी ने तो सांपों को गले में लपेटकर राजनीति में दो-तिहाई बहुमत अर्जित किया। राजीव ने राजनीति में Mr. Clean बनने की कोशिश की तो C.B.I.द्वारा Chargesheeted होने का गौरव प्राप्त किया।
"किस्सा कुर्सी का" की जांच में CBI के अधिकारियों के बच्चे भले Accident का शिकार हो गए हों किंतु chargesheet नहीं लग पाई। सत्ता राजीव के हाथों में थी-Right to information तथा Computer में character roll की feeding कराकर राजीव ने subservient, pliable तथा servile officers की जगह computer से छांटकर अच्छे Service records वालों को महत्वपूर्ण जगहों पर बिठाना शुरू किया। Committed bureaucracy का अता-पता नहीं रहा। अपनी और चेलों की गतिविधियां पहले जैसी रहीं तथा Mr. Clean बनने के चक्कर में गोपनीयता का पर्दा उठा दिया- सबकुछ नंगा हो गया। यही वी.पी. सिंह इंदिरा जी के जमाने में एक कोने में दुबके रहते थे किंतु राजीव के जमाने में बोफोर्स के उद्घाटक बने। इंदिरा युग में यदि वी.पी. सिंह हलचल करते तो इंदिरा जी तत्काल CBI को जांच का आदेश देती तथा कोई Commited D.G. C.B.I. वी.पी. सिंह को ही जेल भेज देता तथा कोई माननीय A.N. Ray सरीखा महान व्यक्तित्व गुण-दोष पर समुचित विचार करने के बाद उन्हें convict भी कर देता तथा unwept, unhonoured and unsung वे जेल की सीखचों में ही विराजते। राजीव नमाजी तो हो न सके किंतु मस्जिद बना ली। मंदिर का निर्माण तो कर डाला, पर पूजन-अर्चन में मन न लगा। Committed bureaucracy तार-तार हो गई किंतु पारदर्शी व्यवस्था/प्रणाली (transparent system) का कार्यान्वयन न हो सका, इस पाखंड का घड़ा बोफ़ोर्स के रूप में फूटा।
राहुल के लिए "एतद्देशप्रसुतस्य" coaching में मैंने स्पष्ट संदेश दिया था कि
"किस्सा कुर्सी का" की जांच में CBI के अधिकारियों के बच्चे भले Accident का शिकार हो गए हों किंतु chargesheet नहीं लग पाई। सत्ता राजीव के हाथों में थी-Right to information तथा Computer में character roll की feeding कराकर राजीव ने subservient, pliable तथा servile officers की जगह computer से छांटकर अच्छे Service records वालों को महत्वपूर्ण जगहों पर बिठाना शुरू किया। Committed bureaucracy का अता-पता नहीं रहा। अपनी और चेलों की गतिविधियां पहले जैसी रहीं तथा Mr. Clean बनने के चक्कर में गोपनीयता का पर्दा उठा दिया- सबकुछ नंगा हो गया। यही वी.पी. सिंह इंदिरा जी के जमाने में एक कोने में दुबके रहते थे किंतु राजीव के जमाने में बोफोर्स के उद्घाटक बने। इंदिरा युग में यदि वी.पी. सिंह हलचल करते तो इंदिरा जी तत्काल CBI को जांच का आदेश देती तथा कोई Commited D.G. C.B.I. वी.पी. सिंह को ही जेल भेज देता तथा कोई माननीय A.N. Ray सरीखा महान व्यक्तित्व गुण-दोष पर समुचित विचार करने के बाद उन्हें convict भी कर देता तथा unwept, unhonoured and unsung वे जेल की सीखचों में ही विराजते। राजीव नमाजी तो हो न सके किंतु मस्जिद बना ली। मंदिर का निर्माण तो कर डाला, पर पूजन-अर्चन में मन न लगा। Committed bureaucracy तार-तार हो गई किंतु पारदर्शी व्यवस्था/प्रणाली (transparent system) का कार्यान्वयन न हो सका, इस पाखंड का घड़ा बोफ़ोर्स के रूप में फूटा।
राहुल के लिए "एतद्देशप्रसुतस्य" coaching में मैंने स्पष्ट संदेश दिया था कि
1 सबसे पहले अपने सामंतों पर लगाम लगाओ तथा उनके साथ 'KITA' Approach (kick in the anus) का प्रयोग करो। यह असंसदीय शब्द नहीं है बल्कि IAS की मसूरी Academy में Guest Lecturers ने Management की विधा के रुप में इसकी व्याख्या की थी। IAS, IPS , IAS Allied etc की सारी गंदगी की यही रक्षा करता है क्योंकि system के भीतर से गंदगी की तुलना में भी 1%आवाज मुखर नहीं होती है। कोई वरिष्ठ अधिकारी अपने अधीनस्थ के बारे में केवल इतना ही लिख दे कि "He is a good officer" तो वह पूर्ण रुप से बर्बाद हो जाएगा तथा "He is a very good officer" लिखने पर आंशिक रूप से। कितने ही objective parameters बना लिए जाएं किन्तु आखिरकार Annual Confidential Remarks का मूल्यांकन होता तो subjective ही है।
Outstanding=5 marks
Very good=3 marks
Good=2 marks
Satisfactory=1 mark
इस मानक पर Very good वाला ध्वस्त हो जाता है तथा Good वाला तो जड़ से बर्बाद हो जाता है। इसी कारण से वरिष्ठ अधिकारियों के अनाचार एवं दबाव को सहने को कनिष्ठ अधिकारी मजबूर हो जाते हैं।
इसी प्रकार जिन पार्टियों में हाईकमान सारे पुचकार तथा दुलार के बावजूद समय-समय पर KITA Approach लगाता रहता है, उन पार्टियों में अनुशासन बना रहता है वरना शरीफों का मुंह कुत्ता चाटता है। ऐसे ही सड़क छाप लोग जिनकी औकात अपनी सीट जीतने की नहीं वे राहुल को रास्ता चलना सिखा रहे हैं। वे बयान दे रहे हैं कि राहुल को राजनीति करनी नहीं आती।
काश अगर प्रियंका उत्तराधिकारी हुई होती तो इंदिरा गांधी का DNA उसमें देखकर सामंत कांप रहे होते। मुंह से झाग निकलती, आवाज नहीं आती। जोर से चीखते-
Outstanding=5 marks
Very good=3 marks
Good=2 marks
Satisfactory=1 mark
इस मानक पर Very good वाला ध्वस्त हो जाता है तथा Good वाला तो जड़ से बर्बाद हो जाता है। इसी कारण से वरिष्ठ अधिकारियों के अनाचार एवं दबाव को सहने को कनिष्ठ अधिकारी मजबूर हो जाते हैं।
इसी प्रकार जिन पार्टियों में हाईकमान सारे पुचकार तथा दुलार के बावजूद समय-समय पर KITA Approach लगाता रहता है, उन पार्टियों में अनुशासन बना रहता है वरना शरीफों का मुंह कुत्ता चाटता है। ऐसे ही सड़क छाप लोग जिनकी औकात अपनी सीट जीतने की नहीं वे राहुल को रास्ता चलना सिखा रहे हैं। वे बयान दे रहे हैं कि राहुल को राजनीति करनी नहीं आती।
काश अगर प्रियंका उत्तराधिकारी हुई होती तो इंदिरा गांधी का DNA उसमें देखकर सामंत कांप रहे होते। मुंह से झाग निकलती, आवाज नहीं आती। जोर से चीखते-
जो तू कह दे है वही सत्य,
जो तू कह दे है वही न्याय।
जिससे तेरा मतभेद हुआ,
वह राजनीति में अंतराय।।
जो तू कह दे है वही न्याय।
जिससे तेरा मतभेद हुआ,
वह राजनीति में अंतराय।।
2 एहसानफरामोशी राजनीति में आगे बढ़ने में बाधक है। मुलायम सिंह इसलिए राजनीति में टिक गए कि वह एहसानों को ढोते थे। और यही न करने से अखिलेश राजनीति में उखड़ गए।
अगर आप इतने पवित्रात्मा हैं तो किसी गंदे आदमी का साथ मत कीजिए और यदि कीजिए तो निभाने का सामर्थ्य रखिए। अखंड प्रताप सिंह तथा नीरा यादव जैसों को भी संकट के समय मुलायम ने नहीं छोड़ा। जब आप लालू यादव को पार्टनर बना ही रहे हैं तो तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने में क्या आपत्ति?
"नीचे तेजस्वी ऊपर राहुल" के नारे के साथ यदि राहुल बिहार के चुनाव में उतरे होते, तो जितनी सीटें कांग्रेस के लिए छूटी थीं, उसकी दूनी से अधिक सीटें कांग्रेस के लिए छूट जातीं। बहुत ही अधिक जूनियर पार्टनर बनकर चुनाव लड़ने से कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा बिहार में छिन्न-भिन्न हो गया। यदि कांग्रेस ने नीतीश कुमार पर भाजपा की संगत का आरोप लगाकर लालू का दामन थाम लिया होता तो नितीश का सर्वनाश हो गया होता। लालू सोनिया माता को बहूरानी बनाकर आरती उतार रहा होता तथा तेजस्वी चीख रहे होते कि अखिल भारतीय स्तर पर राहुल के अलावा उन्हें किसी का नाम स्वीकार्य नहीं है।
अगर आप इतने पवित्रात्मा हैं तो किसी गंदे आदमी का साथ मत कीजिए और यदि कीजिए तो निभाने का सामर्थ्य रखिए। अखंड प्रताप सिंह तथा नीरा यादव जैसों को भी संकट के समय मुलायम ने नहीं छोड़ा। जब आप लालू यादव को पार्टनर बना ही रहे हैं तो तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने में क्या आपत्ति?
"नीचे तेजस्वी ऊपर राहुल" के नारे के साथ यदि राहुल बिहार के चुनाव में उतरे होते, तो जितनी सीटें कांग्रेस के लिए छूटी थीं, उसकी दूनी से अधिक सीटें कांग्रेस के लिए छूट जातीं। बहुत ही अधिक जूनियर पार्टनर बनकर चुनाव लड़ने से कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा बिहार में छिन्न-भिन्न हो गया। यदि कांग्रेस ने नीतीश कुमार पर भाजपा की संगत का आरोप लगाकर लालू का दामन थाम लिया होता तो नितीश का सर्वनाश हो गया होता। लालू सोनिया माता को बहूरानी बनाकर आरती उतार रहा होता तथा तेजस्वी चीख रहे होते कि अखिल भारतीय स्तर पर राहुल के अलावा उन्हें किसी का नाम स्वीकार्य नहीं है।
3 राहुल को यह मौलिक ज्ञान नहीं है कि राजनीति में zero ही hero बनता है। राहुल यू.पी. तथा बिहार में भले जीरो हों किंतु जिस नेता के बगल में बैठ जाएं उसकी औकात दस गुनी कर सकते हैं। इसको राहुल का विरोधी भी मानेगा कि केंद्रीय राजनीति में कांग्रेस भाजपा विरोधी मोर्चे में सबसे बड़ा दल है। कल्पना कीजिए कि राहुल यदि नीतीश का बहिष्कार कर दिए होते तो नीतीश या तो अकेले लड़ते अन्यथा उनको भाजपा के साथ मिलकर लड़ना पड़ता। भाजपा का साथ पकड़ने पर नीतीश मांझी या पासवान बन जाते तथा यदि सरकार बन भी जाती तो वे केंद्र में मंत्री होते तथा प्रदेश की राजनीति में अप्रासंगिक हो जाते। अकेले लड़ने पर मुसलमान उन्हें चिमटे से न छूता।लिहाजा Two party system बन जाता तथा लालू को झक मारकर इंदिरा जयललिता फार्मूला स्वीकार करना पड़ता जिसमें तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में इंदिरा जी एक तिहाई सीटें लड़ती थी (दो तिहाई जयललिता) तथा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दो तिहाई सीटें (एक तिहाई जयललिता)। बिहार में कांग्रेस का सम्मानजनक उदय हो जाता।
इसी प्रकार यू.पी. में यदि कांग्रेस दृढ़तापूर्वक सपा तथा बसपा में से किसी एक का बहिष्कार कर देती तथा घोषणा कर देती कि केंद्र में सरकार बने या ना बने वह उस पार्टी को न समर्थन देगी और न लेगी। जिस permutation तथा combination में वह बहिष्कृत पार्टी शामिल की जाएगी उसे भी वह समर्थन न देगी और न लेगी तो मुसलमान के सामने उस बहिष्कृत पार्टी का बहिष्कार करने के अलावा कोई विकल्प न बचता। बिना कांग्रेस के किसी गैर भाजपा विकल्प की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इतने दिन के शिवराज शासन के बाद भी कांग्रेस की मध्यप्रदेश में वह दुर्दशा नहीं है जो उत्तर प्रदेश में है। सपा तथा बसपा में से एक के समापन के बाद इंदिरा जयललिता फार्मूला दूसरी को स्वीकार करना पड़ता।
इसी प्रकार यू.पी. में यदि कांग्रेस दृढ़तापूर्वक सपा तथा बसपा में से किसी एक का बहिष्कार कर देती तथा घोषणा कर देती कि केंद्र में सरकार बने या ना बने वह उस पार्टी को न समर्थन देगी और न लेगी। जिस permutation तथा combination में वह बहिष्कृत पार्टी शामिल की जाएगी उसे भी वह समर्थन न देगी और न लेगी तो मुसलमान के सामने उस बहिष्कृत पार्टी का बहिष्कार करने के अलावा कोई विकल्प न बचता। बिना कांग्रेस के किसी गैर भाजपा विकल्प की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इतने दिन के शिवराज शासन के बाद भी कांग्रेस की मध्यप्रदेश में वह दुर्दशा नहीं है जो उत्तर प्रदेश में है। सपा तथा बसपा में से एक के समापन के बाद इंदिरा जयललिता फार्मूला दूसरी को स्वीकार करना पड़ता।
4 राहुल को किसी आदमी की औकात नहीं पता। इंदिरा के दरबार में धवन या राव को जो हैसियत हासिल थी वह अर्जित करने में किसी को राहुल के दरबार में सफलता नहीं मिली। हर यादव अखिलेश यादव नहीं हो सकता। हर दलितकन्या मायावती नहीं हो सकती। राहुल गांधी सब धान को 22पसेरी तौलते हैं। वह नहीं जानते कि IAS में, IPS में, शरीफों में, गुंडों में, पूंजीपतियों में, पान की दुकान पर लफंगई करने वालों में, किसकी क्या हैसियत है और वह कितने दूर तक उनके साथ चल सकता है। जनाधारविहीन पानी के बुलबुले उनको घेरे रहते हैं। जिसका कुछ भी वजूद है, वह किसी के लिए प्राण दे सकता है किंतु अवसरवादी चेलों चमचों की तरह पेट के बल रेंग नहीं सकता। राजनीति में कंप्यूटर से खेल खेलने वाले पप्पू नहीं तो और क्या हैं?
मनमोहन सिंह ने Central Deputation की ऐसी व्यवस्था बना दी कि मेरे बैच के15 में से 2-3अधिकारियों का ही empanelment हो पाया। शैलजा कांत मिश्र जैसे जीवन भर Outstanding remark पाने वाले अधिकारी तक का empanelment नहीं हुआ। यही हाल हर बैच का था। यही हाल IAS का था। जब हर बैच के90% अधिकारियों को मालूम हो गया कि उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर मनमोहन सिंह लेंगे नहीं तथा राज्य में उनकी सरकार नहीं है तो कोई IAS/IPS किसी भी कांग्रेस नेता को भाव क्यों दे?
लिहाजा कांग्रेसी नेता इस लायक नहीं बचे कि जनता के बीच जाएं। जनता के बीच जाने पर जनता अपने काम बताती। 1 Central School के teacherतक का transfer कपिल सिब्बल किसी कांग्रेसी के कहने पर नहीं करते थे। चिदंबरम से किसी CRPF, BSF etc के एक सिपाही तक का transfer कराने की औकात किसी की नहीं थी। अधिकारी वे लिए गए थे जो नेताओं की सिफारिश पर नहीं आए, बल्कि Computerसे ACR देखकर चुने गए थे। ACR उनके अधिक अच्छे थे जोBJP/BSP/SP के नजदीकी थे क्योंकि1989 के बाद कभी कांग्रेस सरकार में थी नहीं। कांग्रेसी नेताओं से दिल्ली की नौकरशाही न पैसा लेती थी, न काम करती थी। विपक्षी नेता उन अफसरों के माध्यम से जनता का काम करा लेते थे, जिनके हाथ से वे पैसा माध्यम/बिचौलिया बन कर ले चुके थे/दिला चुके थे। जब छत्तीसगढ़ के CRPF के सिपाही का transfer या Assam से Central School के teacher का transfer दिल्ली में कांग्रेसी राज होने के बावजूद SP/BSP/BJP के नेता कराते थे तो मनहूस सूरत लिए हुए किसी कांग्रेसी नेता को किसी गांव में अपने दरवाजे पर कौन बैठने देता?
राहुल को बार-बार यह शिकायत होती थी कि कांग्रेसी AC तथा PEPSI की राजनीति करते हैं तथा जनसाधारण के बीच नहीं जाते। किंतु पप्पू को यह नहीं पता था कि कांग्रेसी नेता जनता को मुंह दिखाने लायक नहीं रह गए थे क्योंकि वे Result deliver करने में अक्षम थे।
साइकिल का एक चक्का चलता है तो दूसरे को चलना पड़ता है। जब हिरण्याक्ष टट्टी के महल में बैठ गया तो उससे निपटने के लिए विष्णु को सूअर बनना पड़ा (शूकर अवतार)।
अनिल यादव के समानांतर कोई अनिल शुक्ला, अनिल मौर्या या अनिल राम की राहुल के हाथों केंद्रीय लोक सेवा आयोग में नियुक्ति न हो सकी तथा राहुल का वोट बैंक अनाथ हो गया। उत्तर प्रदेश में जितने सिपाही/दरोगा भर्ती होते हैं उससे अधिक केंद्र में, किंतु हाईकमान की लिस्ट का जो जयकारा मुलायम सिंह के राज्य में होता था वह मनमोहन सिंह के राज्य में नहीं। वेश्या से गाली गलौज कोई पतिव्रता नहीं कर पाएगी। Foul game खेलने वालों के आगे fair game खेलने वाले वैसे ही नहीं टिक पाते जैसे शकुनि के आगे युधिष्ठिर नहीं टिक पाए थे।
लोहिया तथा नेहरू ताल ठोंक सकते थे- अंबेडकर और नेहरू जोर-आजमाइश कर सकते थे। दोनों पीतांबरधारी थे। किंतु Mr.Clean बनने की कोशिश वाले राजीव दो-तिहाई बहुमत की पूंजी वरासत में पाने के बावजूद मुलायम, माया, लालू, पासवान के आगे नहीं टिक पाए तो साझे की दुकान की Managership करने वाले पप्पू और उनकी मां सोनिया के मुनीम मनमोहन सिंह की क्या बिसात जो सामने ताल ठोंक सकें।
"Poison kills poison."
Committed bureaucracy तथा Committed oligarchy पैदा करने की प्रियंका की कोशिशों को नाकाम होना ही था। कांग्रेस में जिसने वफादारी की, वह भुगत गया। संजय सिंह और अमिता सिंह ने जितनी बार दलबदल किया, उन्हें उतने ही सम्मान से वापिस लिया गया। हेमवती नंदन बहुगुणा, उनकी बेटी तथा परिवार को कांग्रेस छोड़ने का इनाम कांग्रेस में बारम्बार मिला। प्रमोद तिवारी, कमलापति त्रिपाठी का परिवार, सत्यदेव त्रिपाठी जैसे लोग पार्टी न छोड़ने की सजा भुगतते रहे। अनुग्रह नारायण सिंह तथा अरुण कुमार सिंह "मुन्ना" का सम्मान होते कभी नहीं दिखा। इतने घनघोर पप्पू का भगवान ही मालिक है।
आज भी बिहार में अगर राहुल गांधी नीतीश कुमार से सांप्रदायिक तत्वों को समर्थन देने का आरोप लगाकर अपना समर्थन वापस ले लें तो सरकार गिरे या न गिरे ऐसा माहौल तो बन ही जाएगा कि लालू और तेजस्वी को समर्थन वापस लेना पड़ेगा अन्यथा मुसलमानों के दरबार में वे हाजिर होने लायक नहीं बचेंगे। नीतीश कुमार को उस हालत में या तो विधानसभा भंग करनी पड़ेगी अथवा भाजपा का दामन थाम कर सरकार चलानी पड़ेगी।राजनीति में किसी को समझाने से किसी के समझ में नहीं आता।
जब सिर पर नंगी तलवार लटकती है तब राजा चौकन्ना रहता है। आज अगर राहुल की जगह प्रियंका होती तो मीरा कुमार की जगह कोविंद को समर्थन देने की हिमाकत नीतीश तभी करते जब वे मानसिक रूप से अपने को राम विलास पासवान बनाने को तैयार हो जाते। लेकिन नीतीश तनावमुक्त हैं क्योंकि नीतीश जानते हैं कि कांग्रेस में एक पप्पू बैठा है जो इंदिरा जी की तरह उचित समय पर उचित निर्णय नहीं ले पाएगा तथा चौतरफा घिरे लालू अकेले कोई बड़ा कदम तत्काल नहीं उठा सकते। राजकुमारों को अगला पाठ फिर कभी।
मनमोहन सिंह ने Central Deputation की ऐसी व्यवस्था बना दी कि मेरे बैच के15 में से 2-3अधिकारियों का ही empanelment हो पाया। शैलजा कांत मिश्र जैसे जीवन भर Outstanding remark पाने वाले अधिकारी तक का empanelment नहीं हुआ। यही हाल हर बैच का था। यही हाल IAS का था। जब हर बैच के90% अधिकारियों को मालूम हो गया कि उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर मनमोहन सिंह लेंगे नहीं तथा राज्य में उनकी सरकार नहीं है तो कोई IAS/IPS किसी भी कांग्रेस नेता को भाव क्यों दे?
लिहाजा कांग्रेसी नेता इस लायक नहीं बचे कि जनता के बीच जाएं। जनता के बीच जाने पर जनता अपने काम बताती। 1 Central School के teacherतक का transfer कपिल सिब्बल किसी कांग्रेसी के कहने पर नहीं करते थे। चिदंबरम से किसी CRPF, BSF etc के एक सिपाही तक का transfer कराने की औकात किसी की नहीं थी। अधिकारी वे लिए गए थे जो नेताओं की सिफारिश पर नहीं आए, बल्कि Computerसे ACR देखकर चुने गए थे। ACR उनके अधिक अच्छे थे जोBJP/BSP/SP के नजदीकी थे क्योंकि1989 के बाद कभी कांग्रेस सरकार में थी नहीं। कांग्रेसी नेताओं से दिल्ली की नौकरशाही न पैसा लेती थी, न काम करती थी। विपक्षी नेता उन अफसरों के माध्यम से जनता का काम करा लेते थे, जिनके हाथ से वे पैसा माध्यम/बिचौलिया बन कर ले चुके थे/दिला चुके थे। जब छत्तीसगढ़ के CRPF के सिपाही का transfer या Assam से Central School के teacher का transfer दिल्ली में कांग्रेसी राज होने के बावजूद SP/BSP/BJP के नेता कराते थे तो मनहूस सूरत लिए हुए किसी कांग्रेसी नेता को किसी गांव में अपने दरवाजे पर कौन बैठने देता?
राहुल को बार-बार यह शिकायत होती थी कि कांग्रेसी AC तथा PEPSI की राजनीति करते हैं तथा जनसाधारण के बीच नहीं जाते। किंतु पप्पू को यह नहीं पता था कि कांग्रेसी नेता जनता को मुंह दिखाने लायक नहीं रह गए थे क्योंकि वे Result deliver करने में अक्षम थे।
साइकिल का एक चक्का चलता है तो दूसरे को चलना पड़ता है। जब हिरण्याक्ष टट्टी के महल में बैठ गया तो उससे निपटने के लिए विष्णु को सूअर बनना पड़ा (शूकर अवतार)।
अनिल यादव के समानांतर कोई अनिल शुक्ला, अनिल मौर्या या अनिल राम की राहुल के हाथों केंद्रीय लोक सेवा आयोग में नियुक्ति न हो सकी तथा राहुल का वोट बैंक अनाथ हो गया। उत्तर प्रदेश में जितने सिपाही/दरोगा भर्ती होते हैं उससे अधिक केंद्र में, किंतु हाईकमान की लिस्ट का जो जयकारा मुलायम सिंह के राज्य में होता था वह मनमोहन सिंह के राज्य में नहीं। वेश्या से गाली गलौज कोई पतिव्रता नहीं कर पाएगी। Foul game खेलने वालों के आगे fair game खेलने वाले वैसे ही नहीं टिक पाते जैसे शकुनि के आगे युधिष्ठिर नहीं टिक पाए थे।
लोहिया तथा नेहरू ताल ठोंक सकते थे- अंबेडकर और नेहरू जोर-आजमाइश कर सकते थे। दोनों पीतांबरधारी थे। किंतु Mr.Clean बनने की कोशिश वाले राजीव दो-तिहाई बहुमत की पूंजी वरासत में पाने के बावजूद मुलायम, माया, लालू, पासवान के आगे नहीं टिक पाए तो साझे की दुकान की Managership करने वाले पप्पू और उनकी मां सोनिया के मुनीम मनमोहन सिंह की क्या बिसात जो सामने ताल ठोंक सकें।
"Poison kills poison."
Committed bureaucracy तथा Committed oligarchy पैदा करने की प्रियंका की कोशिशों को नाकाम होना ही था। कांग्रेस में जिसने वफादारी की, वह भुगत गया। संजय सिंह और अमिता सिंह ने जितनी बार दलबदल किया, उन्हें उतने ही सम्मान से वापिस लिया गया। हेमवती नंदन बहुगुणा, उनकी बेटी तथा परिवार को कांग्रेस छोड़ने का इनाम कांग्रेस में बारम्बार मिला। प्रमोद तिवारी, कमलापति त्रिपाठी का परिवार, सत्यदेव त्रिपाठी जैसे लोग पार्टी न छोड़ने की सजा भुगतते रहे। अनुग्रह नारायण सिंह तथा अरुण कुमार सिंह "मुन्ना" का सम्मान होते कभी नहीं दिखा। इतने घनघोर पप्पू का भगवान ही मालिक है।
आज भी बिहार में अगर राहुल गांधी नीतीश कुमार से सांप्रदायिक तत्वों को समर्थन देने का आरोप लगाकर अपना समर्थन वापस ले लें तो सरकार गिरे या न गिरे ऐसा माहौल तो बन ही जाएगा कि लालू और तेजस्वी को समर्थन वापस लेना पड़ेगा अन्यथा मुसलमानों के दरबार में वे हाजिर होने लायक नहीं बचेंगे। नीतीश कुमार को उस हालत में या तो विधानसभा भंग करनी पड़ेगी अथवा भाजपा का दामन थाम कर सरकार चलानी पड़ेगी।राजनीति में किसी को समझाने से किसी के समझ में नहीं आता।
जब सिर पर नंगी तलवार लटकती है तब राजा चौकन्ना रहता है। आज अगर राहुल की जगह प्रियंका होती तो मीरा कुमार की जगह कोविंद को समर्थन देने की हिमाकत नीतीश तभी करते जब वे मानसिक रूप से अपने को राम विलास पासवान बनाने को तैयार हो जाते। लेकिन नीतीश तनावमुक्त हैं क्योंकि नीतीश जानते हैं कि कांग्रेस में एक पप्पू बैठा है जो इंदिरा जी की तरह उचित समय पर उचित निर्णय नहीं ले पाएगा तथा चौतरफा घिरे लालू अकेले कोई बड़ा कदम तत्काल नहीं उठा सकते। राजकुमारों को अगला पाठ फिर कभी।
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