Tuesday, 20 June 2017

दलित नेता के रूप में भावी राष्ट्रपति का Projection क्यों? कोई राष्ट्रीय या पार्टी का नेता क्यों नहीं रहा? सभी किसी जाति के नेता क्यों रह गए हैं?

मैं किसी दलित को राष्ट्रपति बनाने या इस आधार पर उसे रोकने का पक्षधर नहीं हूं। मेरा कहना मात्र इतना है कि कभी भी गांधी बनिया नेता या सरदार पटेल कुर्मी नेता के रूप में नहीं Project किए गए। आज क्या हो रहा है देश को?
कायस्थों के स्कूल का नामकरण सुभाष चंद्र बोस के नाम पर हो रहा है जिन्हें पूरा देश "नेताजी" कह कर संबोधित करता है। राणा प्रताप जिन्हें देश का बच्चा-बच्चा सच्चे देशभक्त के रूप में पूजता है, मात्र एक क्षत्रिय के रूप में अवशिष्ट है, जिनकी मूर्ति स्थापना को लेकर सहारनपुर के दलित बवाल कर रहे हैं। और तो और कभी भी साक्षी जी महाराज, उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार आदि की गणना पिछड़े नेता के रुप में नहीं हुई, बल्कि ये सदा धर्म योद्धाओं में अग्रणी माने गए मगर आज कोविद जी का नाम राष्ट्रपति के रूप में सामने आया तो उनका अभिनंदन तथा विरोध दोनों इस आधार पर हो रहा है कि वे दलित हैं। वे स्वयं संघ परिवार के एक प्रमुख स्तंभ रहे हैं। यह उनके व्यक्तित्व का अपमान है कि वे मात्र एक दलित बनकर रह गए- विनय कटियार तथा उमा भारती जैसे धर्म योद्धा के रूप में भी उनका चित्र नहीं उभर पाया। केशव मौर्य अशोक सिंघल के अंतरंग शिष्य थे। सोचना होगा कि क्या कमी रह गई कि वे कल्याण सिंह की तरह भाजपा के नेता/हिंदुत्व के नेता तक नहीं बन पाए तथा पिछड़े नेता के रुप में उनकी शिनाख्त हो पाई।
मायावती ने तो सारी हदें पार कर दी। मनुवाद की वे असली स्टार प्रचारिका हैं। उन्होंने न केवल कोविद साहब के दलित होने के तथ्य को उजागर किया, बल्कि उनकी उपजाति "कोरी" तक की व्याख्या कर डाली तथा यह भी बता दिया कि उनकी आबादी बहुत कम है।
हमें खुशी होगी यदि कोविद जी जैसे लोगों को जातिगत नेता के रूप में प्रचारित करने की जगह भारत देश के नेता के रुप में वरना कम-से-कम पार्टी/संघ/हिंदुओं के नेता के रूप में प्रचारित किया जाए।

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