यदि स्वामी प्रसाद मौर्य को बर्खास्त नहीं किया गया तो जहां से खड़े होंगे या जिसके प्रचार में चले जाएंगे उसके विरुद्ध negative voting की जाएगी।
वाहन पलटने से
(1)रोहित शुक्ल, (2)अनूप मिश्र, (3)अंकुश उर्फ भास्कर मिश्र,(4)नरेंद्र शुक्ला उर्फ बच्चा निवासी देवारा PS संग्रामगढ़ जिला प्रतापगढ़ तथा
वाहन पलटने से
(1)रोहित शुक्ल, (2)अनूप मिश्र, (3)अंकुश उर्फ भास्कर मिश्र,(4)नरेंद्र शुक्ला उर्फ बच्चा निवासी देवारा PS संग्रामगढ़ जिला प्रतापगढ़ तथा
(5)बृजेश शुक्ला निवासी सातों जिला कौशांबी वाहन में फंस गए। यह लोग वाहन से निकल कर भागने में असमर्थ हो गए क्योंकि लाठी-डंडों से लैस गांव वाले तब तक वहां पहुंच गए और इन को पीटना तथा ईटों से कूंचना प्रारंभ कर दिया। इसी बीच कुछ लोगों ने पेट्रोल डालकर गाड़ी फूंक दी। लोग आग में जिंदा झोंक दिए गए।
इतने दारुण दृश्य पर भी स्वामी प्रसाद मौर्य को तरस नहीं आया तथा वे मृतकों का आपराधिक इतिहास कुरेदने में लग गए। "श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने आरोप लगाया कि बाहरी लोगों ने आकर गांव का माहौल खराब करने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा कि प्रधान पर हमला करने वालों को भीड़ ने जमकर पीटा, जिस कारण ही मौतें हुईं। उन्होंने आरोप लगाया कि मारे गए लोग अपराधी प्रवृत्ति के थे, जिनके बारे में छानबीन कराई जा रही है।"(दैनिक_जागरण)
इतनी नृशंस मानसिकता स्तब्धकारी है। पिछड़ी एकता के नाम पर यादवों के उत्थान की बात करें स्वामी प्रसाद मौर्य- यहां तक तो गनीमत है। किंतु पांच-पांच ब्राह्मणों की नृशंस हत्या के बाद भी हत्याओं के पक्ष में माहौल बनाने वाले को भाजपा किस शान से पचा रही है। अब यह रहस्य समझ में आ रहा है कि किस दबाव में पुलिस हत्यारों के पक्ष में बयान दे रही थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के पहले पुलिस इसे हत्या का केस मानने से इनकार कर रही थी तथा इसे मात्र एक दुर्घटना घोषित कर रही थी।
ब्राह्मण! तुम लावारिस हो गए हो।
तुम्हारी लाश पर कोई रोने वाला नहीं- उल्टे तुम्हारी कमजोरियां कोसी जा रही हैं। अगर स्वामी प्रसाद मौर्य जी के कथनानुसार ये अपराधी भी हों तो पुलिस से इनका काउंटर करवा दिए होते अथवा यादवों से मुठभेड़ में ही ये मारे गए होते। किंतु cold blood murder में यह माहौल बनाना कि पांच-पांच लोगों के सामूहिक हत्याकांड को पुलिस के आला अफसर दुर्घटना बताने पर तुले रहे जब तक मीडिया ट्रायल चालू नहीं हुआ तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस अफसरों की घिनौनी साजिश को बेनकाब नहीं कर दिया।
ब्राह्मण! तुम लावारिस हो।
तुमने जिसे वोट दिया वह तुम्हें युधिष्ठिर की तरह जुए में हार गया इसलिए चीर हरण हो रहा है। लावारिस हालत में ब्राह्मण मारे गए, उनका तथा उनके रिश्तेदारों का 90% से अधिक वोट भाजपा को मिला, जिसका मंत्री हत्यारों का प्रवक्ता बनकर मरणोपरांत उनका आपराधिक इतिहास कुरेद रहा है।
गौरी-गणेश के बारे में विवादास्पद बयान देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य को वोट देकर जो पाप गौरी-गणेश के प्रति किया है, उसी का स्वाभाविक परिणाम है- हत्या के शिकारों के प्रति मौर्य की संवेदनशून्यता।
यदि ब्राह्मण समाज ने अपने आराध्य गौरी-गणेश के प्रति अपमानजनक बयान के प्रत्युत्तर में negative voting करके स्वामी प्रसाद मौर्य को वोट न देकर उनके nearest rival (चाहे वह सौ गुना ब्राह्मण द्रोही क्यों न होता),अपना vote transfer कर दिया होता, तो स्वामी प्रसाद मौर्य को दुबारा टिकट देने का दुस्साहस कोई दल न करता।
यदि ब्राह्मण आज भी यह कड़ा फैसला ले लें कि यदि स्वामी प्रसाद मौर्य को ऐसा संवेदनशून्य बयान देने के उपलक्ष्य में भाजपा मंत्रिमंडल से बर्खास्त नहीं कर देती है तथा पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित नहीं करती है तो जिस सीट से स्वामी प्रसाद मौर्य खड़े होंगे अथवा जिस MLA या MP की सभा में वह मंच पर बैठे होंगे या भाषण देंगे- उस प्रत्याशी को हराने के लिए negative voting करके उनके nearest rival को अपना vote transferकर देगा- उस दिन के बाद सारी पार्टियां स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे लोगों के लिए अपने दरवाजे बंद कर लेंगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस ब्राह्मणद्रोह को बसपा नहीं पचा पाई, उसे भाजपा गले का हार बनाए हुए है।
हम ब्राह्मण समाज से अपील करते हैं कि वे जिस किसी भी ब्राह्मण सभा के सदस्य हैं, उस पर दबाव बनाएं कि उक्त आशय का प्रस्ताव पारित करें। यदि कोई ब्राह्मण सभा ऐसा करने से avoid करती है, तो ब्राह्मण समाज के लोग उसकी प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दें तथा उसके बुलाए गए सम्मेलनों में भागीदारी न करें।
ब्राम्हण! तुम्हारे सारे रास्ते बंद हो चुके हैं।कहां जाओगे?
"पूर्व मंत्री व सपा विधायक मनोज पांडे ने आरोप लगाया कि "सत्ता में बैठे कुछ लोग अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। पुलिस दबाव में काम कर रही है और घटना को गलत तरीके से प्रचारित किया जा रहा है।" प्रमुख सचिव (गृह) और अन्य शीर्ष अधिकारियों से मिलने की बात कही।
क्या होगा इस विधवा विलाप से?
जब आप मंत्री थे, तब आपकी सरकार में क्या आपका मान-सम्मान सुरक्षित था?
जब चाहा, अखिलेश ने अनाथालय में भेज दिया। फिर दया आई, निकाल लिया। आज आप की सरकार होती, तो क्या आप बोल पाते?
आपके राज्य में MBBS की छात्रा से जब बरेली में एक दलित बालक ने विवाह के लिए प्रस्ताव रखा, तो उसने कहा कि इसका फैसला उसके पिता लेंगे। जब वह लड़की के पिता से मिलने आया तो उन्होंने कहा कि वह अपनी लड़की किसी गैर ब्राह्मण के हाथों नहीं सौंपेंगे। उस दलित लड़के ने आत्महत्या कर ली और आपकी सरकार ने उस ब्राह्मण लड़की तथा उसके पूरे परिवार को अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम तथा 306 का अभियुक्त बना दिया।
किसी दलित की हमबिस्तर बनने से इंकार करना भी आप की सरकार में जुर्म था। पूरी FIR में कहीं भी Honour killing के pattern पर honour insult का भी आरोप नहीं है। यदि सारे आरोप सत्य भी मान लिए जाएं तो कहीं पर भी यह आरोप नहीं था कि लड़की वाले कभी लड़के वाले के दरवाजे पर अपमानित करने या taunt करने गए। अपने दरवाजे पर बैठकर अपनी लड़की के भावी जीवन-साथी पर निर्णय लेने का अधिकार सपा के राज्य में नहीं रह गया था। अनायास आपकी पार्टी इस दुर्गति को नहीं प्राप्त हुई।
आप जरा अन्य ब्राह्मणों की तुलना में मुखर रहे जिससे लोग कहते हैं कि मनोज पाण्डेय फल तो नहीं दे पाते थे, किंतु छाया देने की कोशिश अवश्य करते थे।
आप की पार्टी में सम्मान था जनेश्वर मिश्र का, जो ब्राम्हण कुल के इतने बड़े गौरव थे कि डा लोहिया के मंच पर "जाति तोड़ो जनेऊ तोड़ो" आंदोलन में भाग लेकर जनेऊ तोड़कर कुचल देते थे। शंबूक के हक की लड़ाई का दावा करने वाले लोहिया सदा वशिष्ठ को गालियां देते नहीं थकते थे तथा गर्व से कहते थे "हमें सीता के आंसुओं तथा शंबूक के खून का बदला लेना है।"
यह तो दलित की बेटी का तेजप्रताप था कि आप की पार्टी स्टेट गेस्ट हाउस कांड के प्रायश्चित के रूप में आपको पहचानने लगी तथा परशुराम जयंती मनाने और हाथों में फरसा भांजने की छूट आपको मिली। इसके बावजूद आप तथा पवन पाण्डेय जैसे लोग कभी झटके खाए तो कभी शरण पाए- ब्रह्माशंकर त्रिपाठी जैसे लोग रोज सशंकित रहते थे कि कब हाशिए पर चले जाएंगे तथा अशोक वाजपेई जैसे प्रखर ज्ञानी को राजनीति के गटर में बहने के लिए निर्ममता पूर्वक छोड़ दिया गया।
मुसलमानों को छोड़कर सपा में कोई वर्ग ऐसा नहीं है जो यादवों से आंख में आंख मिलाकर बात कर सके। कन्नौज में यादवों तथा मुसलमानों में लड़ाई हुई तथा यादवों को न्यायोचित सहायता भी नहीं मिल पाई तब जाकर यादवों को पहली बार एहसास हुआ कि MY(माई) समीकरण चल रहा है तथा उत्तर प्रदेश सरकार उनकी खानदानी रियासत नहीं है बल्कि सत्ता यादवों के हाथ में होने के कारण मुसलमानों की वह स्थिति है जो स्थिति ब्राह्मणों की रघुवंशियों के राज्य में होती थी।
मायावती के राज्य से भी बदतर स्थिति सपा में रही। मायावती क्रोध में आने पर "तिलक तराजू कलम तलवार" को चार जूते मारती किंतु किसी यादव की यह औकात न होती कि वह किसी पंडित को चार लाठी मारे।
ब्राह्मण को इतना संतोष होता की वह दोयम दर्जे का नागरिक है- वह दलितों का गुलाम भले हो लेकिन बाकी कोई उसे दबाने की स्थिति में नहीं है। भाजपा में अराजकता तथा सपा में दुरूपेक्षा के कारण ब्राह्मण दोयम दर्जे का भी नागरिक नहीं रह गया। क्षत्रियों तक का सहारनपुर में क्या हुआ, सबको पता है। संघ परिवार की अलग विवशता है- रायबरेली प्रतापगढ़ तथा सहारनपुर के पिछड़े तथा दलित यदि मुसलमान हो गए तो क्या होगा?
मंगलवार को कांग्रेस विधायक आराधना मिश्रा मोना ने मारे गए लोगों के परिजनों से मिल संवेदना व्यक्त की। उन्होंने आरोप लगाया कि पूरी घटना में पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही। इसलिए घटना को तोड़ मरोड़कर भ्रामक स्थिति पैदा करने की कोशिश की लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सच्चाई सामने आ गई। उन्होंने घटना की न्यायिक जांच कराने की मांग करते हुए दोषियों पर सख्त कार्यवाही करने की बात कही। उन्होंने कहा कि इस बारे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर कार्यवाही की मांग की जाएगी।"( दैनिक_जागरण)
धन्य हो मोना कम-से-कम कांग्रेस में आपको ब्राह्मणों की वर्तमान दयनीय स्थिति का ज्ञान है। आपको ज्ञान है कि कांग्रेस में पप्पू बैठा है, जो एक-दो दलित के मारे जाने पर भी गांव में पहुंचकर तथा परिजनों से लिपटकर फूट-फूट कर रो रहा होता किंतु पांच-पांच ब्राह्मणों की नृशंस हत्या के बाद भी घटनास्थल पर जाना तो दूर, उसकी एक tweet तक twitter पर नहीं दिखी। अब कांग्रेस में वफादारी का कोई मूल्य नहीं रहा- इतने साल तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सड़ी लाश को सहेजने वाले अपने पिता की विरासत संभालने के बावजूद आपको नेता विधायक दल तक नहीं बनाया गया। इंदिरा गांधी नहीं रहीं। अब राहुल के पास किसी ब्राह्मण के दरवाजे पर जाने का समय नहीं है। किसी शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित कर तथा बाद में अखिलेश से साझीदारी कर उन्हें कूड़ेदान में डाल देने से ब्राह्मणों के प्रति फर्ज अदायगी का नाटक पूरा हो गया। इसलिए अपने हद में रहने की ब्राह्मण परंपरा का आपने निर्वाह किया तथा किसी आंदोलन आदि की धमकी नहीं दी। पिता से कह कर एक CBI जांच के लिए writ भी करवा दें तो समाज आपका आभारी होगा।
रही बात मनुवादी पार्टी की तो हमारा सिद्धांत है कि हम
1 न तो सड़क पर संघर्ष करते हैं
2न हम सशस्त्र संघर्ष करते हैं और
3न ही हिंसक संघर्ष
4इतना ही नहीं हम कोई ज्ञापन तक किसी अधिकारी या नेता को नहीं भेजते।
आवश्यकता पर हम समय-समय पर मनुवादी आदेश/ अल्टीमेटम संबंधित पक्ष को निर्गत करते हैं तथा आगे की स्थिति स्वत: स्पष्ट है-
रही बात मनुवादी पार्टी की तो हमारा सिद्धांत है कि हम
1 न तो सड़क पर संघर्ष करते हैं
2न हम सशस्त्र संघर्ष करते हैं और
3न ही हिंसक संघर्ष
4इतना ही नहीं हम कोई ज्ञापन तक किसी अधिकारी या नेता को नहीं भेजते।
आवश्यकता पर हम समय-समय पर मनुवादी आदेश/ अल्टीमेटम संबंधित पक्ष को निर्गत करते हैं तथा आगे की स्थिति स्वत: स्पष्ट है-
"विप्ररोष पावक सों जरई"
हम जातिगत विद्वेष नहीं चाहते, हम न्याय चाहते हैं।
"गौरी-गणेश" का मजाक उड़ाने वालों के बीच से स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे लोग आए हैं तथा इन पर यदि कड़ी लगाम नहीं लगाई गई तो भाजपा तथा संघ परिवार का बनाया हुआ सामाजिक सामंजस्य का ताना-बाना नष्ट हो जाएगा। हमारा कहना है कि इस प्रकरण की जांच मौके पर जाकर श्री केशव मौर्य उपमुख्यमंत्री ही कर लें- First hand information. हम कभी नहीं कहते कि कोई गैर पिछड़ा जांच करे। मेरा कहना है कि ऐसा कोई पिछड़ा ही देख ले जो पूर्वाग्रहग्रस्त न हो तथा संघ के संस्कारों में पाला गया हो- कम-से-कम वह अपना तथा अपनी पार्टी का भला चाहेगा। केशव मौर्य जी विश्व हिंदू परिषद के संस्कारों में पले हैं- एक मृतक उनकी कर्मभूमि कौशांबी का है। वे स्वयं बताएं कि यदि मृतकों का आपराधिक इतिहास रहा भी हो, तो क्या सामूहिक नृशंस हत्याकांड औचित्यपूर्ण है?
क्या स्वामी प्रसाद मौर्य का यह बयान पर्याप्त नहीं होता कि "सभी पहलुओं की जांच करके प्रशासन निष्पक्ष कार्यवाही करेगा इस आशय के निर्देश निर्गत कर दिए गए हैं।" क्या स्वामी प्रसाद मौर्य जी मृतकों पर भी गुण्डा एक्ट/ Gangster Act लगवाना चाहते हैं?
Criminal justice की सुस्थापित मान्यता है कि आपराधिक दायित्व मृत्यु के साथ समाप्त हो जाते हैं। मगर हमारे देश में मरे हुए राजीव गांधी पर भी chargesheet प्रेषित की जा चुकी है, जो स्वयं में उपहासास्पद है। Civil liability तो death के बाद भी persist करती है, किंतु criminal liability कैसे devolve करायेंगें- इस पर प्रकाश डालें।
हमें विश्वास है कि यदि केशव मौर्य मौके पर चले जाएं तो वह अन्याय नहीं कराएंगे। यदि वह ऐसा नहीं करते हैं तो मनुवादी पार्टी उनके उपचुनाव में दरवाजे-दरवाजे उन पांचो मृतकों के परिजनों को जन जागरण के लिए भेजेगी जो अपने मृतक परिजनों के लिए अपने आत्मीय शुभचिंतकों से न्याय मांगेंगे। हम किसी DM को ज्ञापन नहीं देते- अन्याय जिस राजा के द्वारा होता है उसको चुनाव में उसकी औकात बता देते हैं। अभी भी मौका है। संघ परिवार भूल जाए कि मुसलमान होना केवल पिछड़ों या दलितों को आता है। अभी जो DSP कश्मीर में मारे गये हैं उनके नाम के आगे पंडित लगा है। उत्पीड़न की लक्ष्मण रेखा न लांघे कोई।
क्या स्वामी प्रसाद मौर्य का यह बयान पर्याप्त नहीं होता कि "सभी पहलुओं की जांच करके प्रशासन निष्पक्ष कार्यवाही करेगा इस आशय के निर्देश निर्गत कर दिए गए हैं।" क्या स्वामी प्रसाद मौर्य जी मृतकों पर भी गुण्डा एक्ट/ Gangster Act लगवाना चाहते हैं?
Criminal justice की सुस्थापित मान्यता है कि आपराधिक दायित्व मृत्यु के साथ समाप्त हो जाते हैं। मगर हमारे देश में मरे हुए राजीव गांधी पर भी chargesheet प्रेषित की जा चुकी है, जो स्वयं में उपहासास्पद है। Civil liability तो death के बाद भी persist करती है, किंतु criminal liability कैसे devolve करायेंगें- इस पर प्रकाश डालें।
हमें विश्वास है कि यदि केशव मौर्य मौके पर चले जाएं तो वह अन्याय नहीं कराएंगे। यदि वह ऐसा नहीं करते हैं तो मनुवादी पार्टी उनके उपचुनाव में दरवाजे-दरवाजे उन पांचो मृतकों के परिजनों को जन जागरण के लिए भेजेगी जो अपने मृतक परिजनों के लिए अपने आत्मीय शुभचिंतकों से न्याय मांगेंगे। हम किसी DM को ज्ञापन नहीं देते- अन्याय जिस राजा के द्वारा होता है उसको चुनाव में उसकी औकात बता देते हैं। अभी भी मौका है। संघ परिवार भूल जाए कि मुसलमान होना केवल पिछड़ों या दलितों को आता है। अभी जो DSP कश्मीर में मारे गये हैं उनके नाम के आगे पंडित लगा है। उत्पीड़न की लक्ष्मण रेखा न लांघे कोई।
संघ परिवार यह सुनिश्चित करें कि विधवाओ के घाव पर किसी को मरहम लगाने का समय न हो, तो कम से कम नमक न छिड़के।
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