Thursday, 30 June 2016

आरक्षण पर गाँधी कैसे झुके इस पर एक दृष्टि ----
पूना पैक्ट” – भारत में आरक्षणके नाम पर अत्याचारका आरम्भ ॥
॥ जब गांधीजीने हिंदुत्व के पक्ष में अनशन किया ॥
आरक्षणके नाम पर हमारे देश में जो अत्याचारपूर्णप्रथा चलाई जा रही हैं ; इसका आरम्भ स्वतन्त्रता के बहुत पहले ही हो गया था । सनातन धर्म में फूट डालने हेतु अंग्रेजों द्वारा रचित सुनियोजित षड्यंत्र का नाम हैं आरक्षण। आइये देखते भारतमें इसका आरम्भ कैसे हुआ ?
दूसरी गोलमेज बैठक (7 सितम्बर, 1931 से 9 दिसम्बर, 1931) में डॉ आंबेडकरने भारतवर्ष में दलितों की दुर्दशा की बात करते हुए दलितों के लिए पृथक निर्वाचनकी मांग रखी । 12 नवम्बर, 1931 को गांधीजीने इस मांग का विरोध करते हुए कहा की इससे हिन्दू समाजविभाजित हो जाएगा । सर्वसम्मति से निर्णय नहीं होने पर , निर्णय ब्रिटिश प्रधानमन्त्री पर छोड़ दिया गया ।
17 अगस्त, 1932 को ब्रिटिश प्रधानमन्त्री रैमज़ै मक्डोनल्ड” (Sir Ramsay McDolald) ने डॉ आंबेडकरकी मांगे मानते हुए कम्युनल अवार्ड”(Communal Award) घोषित किया । जब गांधीजीको इसकी सूचना मिली तो उन्होंने 20 सितम्बर, 1932 को पूना की यरवदा जेल में इसके विरुद्ध आमरण अनशन की घोषणा कर दी । गांधीजीऔर डॉ आंबेडकरदोनों झुकने को तैयार नहीं थे । अगर ऐसा कम्युनल अवार्डलागू हो जाता तो सनातन धर्मके लिए बहुत बड़ा संकट उपस्थित हो जाता ।
23 सितम्बर को गांधीजीका स्वास्थ्य गिरने लगा । देश के बड़े-बड़े नेताओं की बैठके होने लगी । हिन्दू समाज की ओर से मदनमोहन मालवीय” , “चक्रवर्ती राजगोपालाचारी” , “तेजबहादुर सप्रू” , “एम आर जयकर” , “अमृतलाल ठक्कर” , “घनश्यामदास बिडलाआदि और दलित पक्ष की ओर से डॉ आंबेडकर” , “श्रीनिवासन” , “एम सी राजाआदि । अंतत: 24 सितम्बर, 1932 को सबने एकमत से निर्णित समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए जो पूना पैक्टके नाम से जाना जाता हैं ।
इस समझौते (पूना पैक्ट”) के अंतर्गत डॉ आंबेडकरको पृथक निर्वाचन की मांग को वापस लेना था और गांधीजीको दलितों को केन्द्रीय और राज्यों की विधानसभाओं एवं स्थानीय संस्थाओं में दलितों की जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व देने एवं सरकारी नौकरियों में भी प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था कराने का वादा करना था । साथ-ही-साथ शैक्षिक संस्थाओं” (Schools , Collages , Universities) में दलितों को विशेष सुविधाएँ देने की बात भी इसमें सम्मिलित थी । 24 सितम्बर, 1932 को गांधीजी” , “डॉ आंबेडकरएवं उनके समर्थकों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए ।
गांधीजीने विवशता में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे क्योंकी अन्य कोई मार्ग उपलब्ध नहीं था ।
और 24 सितम्बर, 1932 से भारत में अन्याय की एक नई परम्परा का आरम्भ हुआ जिसे आज सभी आरक्षणके नाम से जानते हैं । आज आरक्षणभारत में चुनाव का प्रमुख मुद्दा हैं और कोई भी पार्टी इसे खोना नहीं चाहती हैं ।


Saturday, 25 June 2016

भाजपा की आरक्षण निति पर एक विहंगम दृष्टि (भाग-4) मनुवादी पार्टी का 77% बनाम 23% का संघर्ष तथा डॉ राम मनोहर लोहिया के 85% बनाम 15% के संघर्ष का तुलनात्मक विवेचन (भाग-1) ----

भाजपा की आरक्षण निति पर एक विहंगम दृष्टि (भाग-4)
मनुवादी पार्टी का 77% बनाम 23% का संघर्ष तथा डॉ राम मनोहर लोहिया के 85% बनाम 15% के संघर्ष का तुलनात्मक विवेचन (भाग-1)   ----

परिणामी ज्येष्ठता प्रदान करने का मतलब है परोक्ष रूप से उच्च पदों पर अनुसूचित जाति/जनजाति के सेवको का शत- प्रतिशत आरक्षण I
नियुक्ति के समय मेरिट में उपर  होते हुए भी सामान्य व अन्य पिछड़े वर्ग के कार्मिको का भविष्य अन्धकारमय क्योंकि उन्हें सामान्यतया बिना किसी पदोन्नति के सेवानिवृत्त होना पड़ेगा I
माननीय उच्च न्यायलय इलाहबाद की लखनऊ खण्डपीठ द्वारा 04 जनवरी 2011 को दिए गए फैसले में सेवा नियमावली अधिनियम 1994 के सेक्शन 3(7) एवं ऊ०प्र० सरकारी सेवक ज्येष्ठता नियमावली (तीसरा संशोधन) 2007 के विनियम 8-क को INVALID (अवैध), ULTRAVIRES (अधिकारातीत) एवं UNCONSTITUTIONAL (असंवैधानिक) करार दिया गया है और इसी के साथ इस सम्बन्ध में राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश निरस्त कर दिया गया है I
माननीय न्यायाधीशों द्वारा दिए गए फैसले में साफ़ कहा गया है कि पदोन्नतियो में आरक्षण में प्रदान करने के विषयक 1994 के अधिनियम के सेक्शन 3(7) एवं तदोपरान्त परिणामी ज्येष्ठता प्रदान करने विषयक विनियम 8-क, 2007 के लागू करने से सरकार ने बराबरी के सिद्धान्त (equality clause) का उल्लंघन किया है और यह संशोधन संविधान सम्मत नही है अत: इन नियमो के तहत 8-क लागू कर सरकारी विभागों व निगमों में जारी की गयी समस्त ज्येष्ठता सूचिया पूरी तरह निरस्त कर दी गयी है I
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 27 अप्रैल २०१२ को सुनाये गए एतिहासिक फैसले में लिखा  -  “ In the ultimate analysis, we conclude and hold that section 3(7) of the 1994 Act and Rule 8A of the 2007 Rules are ultra vires as they run counter to the dictum in M.Nagraj (supra)”
        माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने वाले अधिनियम 1994 के सेक्शन 3(7) और परिणामी ज्येष्ठता प्रदान करने के 2007 के नियमो के नियम 8-क को अवैधानिक घोषित कर दिया गया I इतना ही नही माननीय सर्वोच्च न्यालायल ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि –
     “Any promotion  that has been given on the dictum of Indra  Sawhney (supra) and without  the aid or assistance of the Section 3(7) & Rule 8A shall remain undisturbed”
    उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मा. सर्वोच्च न्यायालय के 27 अप्रैल २०१२ के फैसले को पूर्णतया लागू करने के निर्णय का पालन करते हुए प्रदेश के सभी सरकारी विभागों व निगमों में तत्काल पदोन्नतिया प्रारंभ की   जाये I
     विगत पांच वर्षो में ऐसे कर्मचारियों व अधिकारियो को जिन्हें रिक्तियों के बावजूद पदोन्नत किये बिना सेवानिवृत्त कर दिया गया है, उन्हें न्याय प्रदान करते हुए पद रिक्त होने की तिथि से नोशनल पदोन्नति प्रदान कर समस्त सेवा एवं सेवा नैवृतिक लाभ प्रदान किये जाये I

   अगले लेख में हम इस 77% बनाम 23% संघर्ष की तुलना डॉ राम मनोहर लोहिया के उस संघर्ष से करेंगे जिसमे 85% बनाम 15% संघर्ष का उल्लेख था I प्रोन्नति में आरक्षण के माध्यम से 23% जनसंख्या का तुष्टीकरण करने के लिए मा. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटा जा रहा है I  मा. सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार घोषणा की है कि प्रोन्नति में आरक्षण संविधान के विरूद्ध है तथा प्राकृतिक न्याय का हनन करता है I फिर भी मोदी सरकार इस आदेश को पलटने के लिए हर तरह के हथखंडे इस्तेमाल कर रही है I अखिलेश सरकार ने कई विभागों में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लागू किया तथा ना जाने किस बहकावे में आकर शिक्षा विभाग जैसे कुछ विभागों में उस को लागू नही कर रही है I इस कदम से ना घर के ना घाट के वाली कहावत चरितार्थ हो रही है ऐसा क्यों हो रहा है ? भाजपा, कांग्रेस तथा सपा को किस  प्रकार रस्ते पर लाया जा सकता है इसकी चर्चा अगले अंक में ....क्रमश:

Wednesday, 22 June 2016

गत बीते मंगलवार को कुई बाज़ार, खजनी, सिकरीगंज जिला गोरखपुर में मनुवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सुव्रत त्रिपाठी.....

गत बीते मंगलवार को कुई बाज़ार, खजनी,  सिकरीगंज जिला गोरखपुर में मनुवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सुव्रत त्रिपाठी, प्रदेश अध्यक्ष श्री S.P.पाण्डेय, जोनल संपर्क प्रमुख श्री बंटी दुबे, जोनल अध्यक्ष मनीष मिश्र व पार्टी के सम्मानित कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में विधान परिषद स्नातक चुनाव क्षेत्र - गोरखपुर फैजाबाद के संदर्भ में सामूहिक चर्चा सम्पन्न हुई I 













Monday, 20 June 2016

भाजपा की आरक्षण निति पर एक विहंगम दृष्टि (भाग-3)

भाजपा की आरक्षण निति पर एक विहंगम दृष्टि (भाग-3)
आइये हम समझते  है कि backlog की समस्या क्या है तथा इस पर काशीराम और मायावती ने दलितों को क्या समझाया और उनको कांग्रेस से कैसे अलग कर दिया I इसी क्रम में हम इसपर भी चर्चा करेंगे कि जैसे- जैसे मायावती के चरण बढ़ते गए वैसे-वैसे कांग्रेस सूखती चली गयी I हम इसपर भी चर्चा करेंगे कि किस प्रकार भाजपा ने सवर्णों का पिछडो का वोट लेकर उन्ही का जूता उन्ही के सिर पर मरने लगी तथा सवर्णों और पिछडो का सर्वनाश कर दिया I इसे हम त्याग नही कह सकते क्योकि त्याग तो दधीचि ने किया था जिन्होंने जनहित के लिए अपनी अस्थियो का दान कर दिया था I दधीचि ने कभी कोई धरना प्रदर्शन नही किया , अनशन नही किया, कही ज्ञापन नही दिया और ना ही किसी अदालत में कोई मुकदमा दाखिल किया I यदि सवर्ण तथा पिछड़े सुविचारित ढंग से अपने बच्चो के भविष्य का बलिदान दलितों के हित में कर दिए होते  तो हम उन्हें दधीचि की तरह पूज्य मानते किन्तु एक ओर तो सवर्ण और पिछड़े प्रोन्नति में समर्थन देने वालो को वोट देते रहे, तथा दूसरी ओर इसके विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमा भी लड़ते रहे तथा सड़क पर धरना प्रदर्शन भी करते रहे I सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्णय था कि भर्ती के समय एक बार आरक्षण को औचित्यपूर्ण भले ही मान लिया जाये किन्तु प्रोन्नति में आरक्षण सर्वथा प्राकृतिक न्याय के विरूद्ध है तथा किसी भी आधार पर उसे तर्कसंगत नही कहा जा सकता है I जब दो व्यक्ति एक साथ J.E. या अध्यापक या क्लर्क भर्ती हुए तो इंजीनियर या प्रधानाध्यापक या हेड क्लर्क बनने के लिए किस बात का आरक्षण होना चाहिए I किस बात का पिछड़ापन शेष रह गया I सामान वेतन मिलने लगा, एक जैसी कॉलोनी में रहने लगे- किस कोने से पिछड़े रह गए I  किन्तु अटल बिहारी बाजपेई जैसे महापुरुष सुप्रीम कोर्ट की बात को सुनने को तैयार नही हुए I संविधान को ही बदल दिया गया तथा मा.सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरर्थक कर दिया गया I यदि अगड़े तथा पिछड़े प्रसन्नभाव से भाजपा की BRAIN WASHING से संतुष्ट होकर इस निर्णय को स्वीकार कर लिए होते तो मै उन्हें दधीचि की तरह पूज्य मानता तथा यह समझता कि देशहित राष्ट्रहित, समाजहित तथा अनुसूचित जातियों के हित में अपनी, अपने बच्चो की तथा अपने पोते पोतियों की अस्थियो का उन्होंने दान कर दिया तथा सचमुच के दानवीर है I किन्तु इस संविधान संशोधन के बाद आरक्षण विरोधियो ने सड़क से लेकर न्यायलय तक लम्बा संघर्ष किया, तथा पुनः विजय प्राप्त की I इसके वावजूद सवर्ण तथा पिछड़े आरक्षण के विरोध में संघर्ष भी करते रहे तथा थोक के भाव हर-हर मोदी का नारा लगा कर  मोदी को वोट भी दिए I कोई भी विचारशील आदमी इसे त्याग की श्रेणी में नही रख सकता तथा इसे अविवेकपूर्ण आत्महत्या की श्रेणी में गिनना पड़ेगा,
उ0प्र0 के विभिन्न सरकारी विभागों व  निगमों में प्रथम नियुक्ति के समय अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए क्रमशः 21%, 2% व 27% आरक्षण का प्रावधान है I  बाद में 70 दशक में (73 एव 74) में अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के लिए पदोन्नति में भी आरक्षण प्रदान कर दिया गया जिसके फलस्वरूप अनुसूचित जाति व जनजाति के कार्मिक अन्य कार्मिको की तुलना में काफी पहले पदोन्नति पाने लगे I  उदाहरण के तौर पर एक साथ नियुक्त हुए सहायक अभियंताओ में अनुसूचित जाति/जनजाति के अभियंता 07 वर्ष में अधिशासी अभियंता, कुल 13 वर्ष में अधीक्षण अभियंता, कुल 17 वर्ष में मुख्य अभियन्ता स्तर -2 और कुल 18 वर्ष की सेवा में मुख्य अभियंता स्तर -1 बन गए है , जबकि नियुक्ति की  मेरिट में उनसे कही उपर सामान्य व पिछड़े वर्ग के सहायक अभियंता २२ व 25 वर्ष में अधिशासी अभियंता बन पा रहे है और अधिकांश अभियंता एक पदोन्नति पाकर अथवा बिना प्रोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो रहे है I
       पदोन्नति में आरक्षण के फलस्वरूप अनुसूचित जाति व जनजाति के कार्मिक काफी जल्दी पदोन्नति पा रहे है किन्तु परिणामी ज्येष्ठता लागू करने के पूर्व की सेवा नियमावली में स्पष्ट उल्लेख था ---  “पोषक संवर्ग में ज्येष्ठ कोई व्यक्ति भले ही उसकी पदोन्नति पोषक संवर्ग में उससे कनिष्ठ व्यक्ति के पश्चात् की गयी हो, उसे संवर्ग में, जिसमे उसकी पदोन्नति की जाये, अपनी वही ज्येष्ठता पुनः प्राप्त कर लेगा जो पोषक संवर्ग में थी” I
   इस प्रावधान के चलते हुए कुछ कार्मिक उच्च पदों तक जाने का अवसर पा जाते थे, यद्दपि कि अधिकांश कार्मिक एक से अधिक पदोन्नति नही पा रहे थे I  प्रदान करना है
उ0 प्र0 सरकार द्वारा जारी अधिसूचना स. 13/2/ 91 – T.C. –1 / 2007 दिनांक 14.09.2007 द्वारा कार्मिको की ज्येष्ठता सेवा नियमावली 1991  में प्रतिगामी परिवर्तन किया गया और विनियम 8 के पश्चात् नया विनियम 8 –क बड़ा दिया गया जिसके माध्यम से अनुसूचित जाति व जनजाति के कार्मिको को पदोन्नति में आरक्षण के साथ- साथ परिणामी ज्येष्ठता प्रदान करने का अधिकार भी दे दिया गया और यह व्यस्था 17 जून 1995 से लागू कर दी गयी I
मूल नियमावली में विनियम 8- क जोड़कर यह वयस्था की गयी कि ज्येष्ठता नियमावली 1991 के नियम 6, 7, व 8 में किसी बात के होते हुए भी अनुसूचितजाति / जनजाति का कार्मिक आरक्षण / रोस्टर के नियम के आधार पर , अपनी पदोन्नति पर परिणामिक ज्येष्ठता का भी हकदार  होगा I
तात्पर्य यहं कि विभिन्न सेवा संवर्गो की ज्येष्ठता सुचियो में तदानुसार  संशोधन किया जाये और यदि अनुसूचित जाति / जनजाति के आरक्षण के आधार पर पदोन्नति प्राप्त सेवको को दिनांक 17.06.1995 के उपरांत सामान्य व पिछड़ा वर्ग के सेवको की पदोन्नति के परिणाम स्वरूप उनको मूल ज्येष्ठता क्रम पर रख दिया गया हो, तो उसे पदोन्नति की तारीख के क्रमानुसार पुनः निर्धारित  कर दिया जाये I


परिणामी ज्येष्ठता के परिणामस्वरूप अनुसूचित जाति / जनजाति के सेवको को उनके सन्निकट कनिष्ट कार्मिको की प्रोन्नति की तिथि से, आरक्षित रिक्तियों के सापेक्ष दी जाएगी किन्तु आरक्षित रिक्तिया उपलब्ध न होने पर अनारक्षित पदों पर उनकी प्रोन्नति पर विचार किया जायेगा I 

Saturday, 18 June 2016

भाजपा की आरक्षण निति पर एक विहंगम दृष्टि  (भाग-2)
संविधान 77वा संशोधन अधिनियम 1995 के उद्देश्य हेतु तथा उसकी वास्तविक शब्दावली के लिए पढ़े –--
THE CONSTITUTION (SEVENTY-SEVENTH AMENDMENT) ACT, 1995
Statement of Objects and Reasons appended to the Constitution
       (Eighty-sixth Amendment) Bill, 1995 which was enacted as
        THE CONSTITUTION (Seventy-seventh Amendment) Act, 1995
                   STATEMENT OF OBJECTS AND REASONS
The  Scheduled Castes and the Scheduled Tribes have been enjoying  the
facility of reservation in promotion since 1955.  The Supreme Court in
its  judgment  dated 16th November, 1992 in the case of Indra  Sawhney
and  Others  vs.   Union of India and Others, however,  observed   that
reservation  of  appointments  or  posts under article  16(4)   of  the
Constitution  is confined to initial appointment and cannot extent  to
reservation  in  the matter of promotion.  This ruling of the  Supreme
Court  will adversely affect the interests of the Scheduled Castes and
the  Scheduled  Tribes.   Since the representation  of  the   Scheduled
Castes  and  the Scheduled Tribes in services in the States  have  not
reached  the required level, it is necessary to continue the  existing
dispensation  of providing reservation in promotion in the case of the
Scheduled  Castes and the Scheduled Tribes.  In view of the commitment
of  the Government to protect the interest of the Scheduled Castes and
the  Scheduled  Tribes,  the Government have decided to  continue   the
existing  policy of reservation in promotion for the Scheduled  Castes
and the Scheduled Tribes.  To carry out this, it is necessary to amend
article  16 of the Constitution by inserting a new clause (4A) in  the
said article to provide for reservation in promotion for the Scheduled
Castes and the Scheduled Tribes.
2.  The Bill seeks to achieve the aforesaid object.
NEW DELHI;                                       SITARAM KESRI.
The 31st May, 1995.
THE CONSTITUTION (SEVENTY-SEVENTH AMENDMENT)
                              ACT, 1995
                                                [17th June, 1995.]
An Act further to amend the Constitution of India.
BE it enacted by Parliament in the Forty-sixth Year of the Republic of
India as follows:-
1.    Short   title.-This   Act   may  be  called  the   Constitution
(Seventy-seventh Amendment) Act, 1995.
2.   Amendment of article 16.-In article 16 of the Constitution, after
clause (4), the following clause shall be inserted, namely:-
"(4A)  Nothing in this article shall prevent the State from making any
provision  for  reservation  in matters of promotion to any  class   or
classes  of  posts  in the services under the State in favour  of   the
Scheduled Castes and the Scheduled Tribes which, in the opinion of the
State,  are  not  adequately  represented in the  services   under  the
State.".
      यहा यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 1955 से प्रोन्नति में आरक्षण की सुविधा का उपयोग अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग 1955 से कर रहे थे I  मा. उच्चतम न्यायलय ने Indra  Sawhne  and  Others  vs.   Union of India and Others, मामले में 16 NOV 1992 को यह निर्णय सुनाया कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत पदों या नियुक्तियो के प्रावधान मात्र मूल नियुक्ति (initial appointment)  तक सीमित है और इनका आयाम प्रोन्नति के प्रकरण में विस्तृत नही किया जा सकता I  हर प्रकरण में भाजपा तथा कांग्रेस ने न्यायलय के निर्णय की दुहाई देते है किन्तु आरक्षण के मामले में बार-बार भाजपा तथा कांग्रेस ने मिलकर मा. उच्चतम न्यायालय के फैसले को नही लागू होने दिया तथा अगड़ो तथा पिछडो को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए अधिकारों को छीन कर उन्हें  अनुसुचित / जनजाति के झोले में डाल दिया I हम प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया तथा विभिन्न गोष्टियो व सेमिनारो एक स्वस्थ बहस का आह्वान करते है कि अगड़े तथा पिछड़े भारत के नागरिक है अथवा नही I जिस व्यक्ति को भारत का उच्चतम न्यायालय भी न्याय ना दे सके तथा मा. उच्चतम न्यायालय के द्वारा दिए गए फैसले को संविधान बदल कर निरस्त दिया जाये तथा पुनः मा. उच्चतम न्यायलय द्वारा संविधान संसोधन को दुर्भावनापूर्ण मानते हुए निरस्त कर देने पर दुबारा मा. उच्चतम न्यायालय के निर्णय को निरस्त करने की दिशा में कदम उठाये जाये --- वह व्यक्ति किस आधार पर अपने को भारत का नागरिक समझे I  

      जमीन के किसी टुकड़े पर पैदा होने से राष्ट्रीयता का निर्धारण  नही  होता है I अगर पैदाइश ही राष्ट्रीयता का निर्धारण करती तो लालकृष्ण आडवानी आज पाकिस्तानी होते I जब उन्हें लगा कि पाकिस्तान में उनकी मर्यादा जीविका तथा धार्मिक स्वतंत्रता सुरक्षित नही है तो वे पाकिस्तान छोड़ कर भारत में आ गए I  आज हम किसी फ़िल्मी खान से सुनते है कि उसकी किरन को भारत में डर लगता है तथा वह भारत छोड़ने का विचार बना रही है  तो सोशल मीडिया पर भूचाल आ जाता है तथा चतुर्दिक निंदा होने लगती है किन्तु यह कडवा सच है कि आज आरक्षण के चलते जिन लोगो को अमेरिका तथा यूरोप में अन्तराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए, नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुए वे लोग तक  भारत में इस लायक नही समझे नही गए कि विश्वविद्यालय तो छोडिये किसी डिग्री कालेज तक में भी  पढ़ाने की नौकरी नही मिली तथा वे भारत छोड़ने (QUIT INDIA) करने को मजबूर हो गए I मेरे सगे साले तथा उसकी पत्नी ने भारत में तृतीय श्रेणी की भी नौकरी पाने का प्रयास किया तथा असफल होने पर उन्होंने भारत छोड़ने (QUIT INDIA) का निर्णय लिया तथा आज दोनों अमेरिका में वरिष्ठ सेवा में है I आज हमारे परिवार के सैकड़ो नौजवान आरक्षण की मार के चलते भारत छोड़ने (QUIT INDIA) करने को मजबूर हो रहे है तथा मा- बाप के बीमार पड़ने पर देखना तो दूर मरने के बाद उनके दाह संस्कार तक में समय से शामिल नही हो पा रहे है I क्या यही दिन देखने के लिए हमने अंग्रेजो को (QUIT INDIA) करने का नारा दिया था I  अम्बेडकर साहब ने संविधान में व्यवस्था की थी कि 1950+10=1960 के बाद आरक्षण 0% हो जाना चाहिए, किन्तु नेहरु से लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह, अटल तथा मोदी सभी ने संविधान को तुष्टीकरण के चलते तोडा मरोड़ा तथा लाखो लोगो को QUIT INDIA करने पर मजबूर कर दिया, तथा यदि यह क्रम जारी रहा तो फ़िल्मी खान साहब का तो मन बदल गया किन्तु करोडो लोगो को QUIT INDIA करके अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का निर्णय लेना पड़ेगा जिस प्रतिभा को आरक्षण के बूट के नीचे कुचल देने का दुखद निर्णय मोदी साहब ले चुके है I जिस पार्टी पर तिलक, तराजू, कलम व तलवार को चार जूते मारने का आरोप था वे इस का खंडन कर चुके है किन्तु जो हमारे ही वोटो के बल पर जीत रहे है वे मोदी शिवराज सिंह, राजनाथ सिंह और गहलौत  हमारे ही पैर से हमारे ही वोट बैंक के जूते निकालकर हमारे ही सिर पर आरक्षण के रूप में लगाने की बार-बार  घोषणा करके हमे उपहास का पात्र बन रहे है I  क्रमश:

Sunday, 12 June 2016

पदोन्नति में आरक्षण पर भाजपा के पूर्व अध्यक्ष व वर्तमान ग्रहमंत्री भारत सरकार के  निर्णय की समीक्षा  

भाजपा की आरक्षण निति पर एक विहंगम दृष्टि  ----


स पर फेसबुक पर सूरज ठाकुर की पोस्ट

श्री राजनाथ सिंह जो एनडीए सरकार मे गृह मंत्री है वे यह कहते है कि मुलायम सिहं की नालाकियो की वजह से प्रमोशन मे आरक्षण खत्म हो गया और हमारी सरकार अगर उत्तर प्रदेश 
मे बनी तो हम इसे लागू करने के लिए प्रयासरत होगें !
यानि की हरिजन क्षत्रिय को आदेश देगा क्या ये उचित होगा एक अयोगय नौजवान ये करे वो भी आरक्षण के आधार पर 
क्या राजनाथ सिहं जी के लेख को सुनकर / पढकर 
क्षत्रिय समाज राजनाथ सिहं पर यह दबाव बनाये या तो 
वह इसका खंडन करे और अगर वह खंडन नही करते 
तो क्या वे क्षत्रिय समाज के राणा प्रताप है या वी.पी सिहं 
है 
क्षत्रिय सभाएँ / संगठन / नौजवान जो नौकरी कर रहै है या करने जाऐगें उन्हे चपरासी की नौकरी मिलेगी जिन हरिजन लोगो ने २० साल तक मजदूरी की उन्हे आरक्षण के आधार पर उँचे पद पर रखा जाएगा जिन्हे अपने ह्सताक्षर भी करने नही करते वह देश की कमान संभालेंगे प्रमोशन मे आरक्षण की मांग करने वाले जब सुप्रीम कोट्र का फैसला ही नही मानेंगे और आरक्षण के मुद्दे पर sc चार - २ बार फैसला सुनाया हो 
इससे अटल जी उलट चुके है ओर मोदी जी भी और राजनाथ जी से उसकी घोषणा करवायी जा रही है तो क्या अटल जी / वी.पी सिहं ब्रहंाण व क्षत्रिय समाज के गौरव है 
या कंलक है इस बयान को देने वाले २०साल के क्षत्रिय नौजवान बिना किसी गलती के बिना किसी विभागीय जांच बिना किसी आरोप के एक तरह से अनपढ़ घोषित कर दिया जाऐ उस कानून की प्रशंसा करने वाले क्षत्रिय समाज के कंलक है या गौरव बढाने वाले इसका फैसला क्षत्रिय समाज क्षत्रिय सभाऐ व नौजवान करे जो इससे सहमत हो कि यह सही है या गलत ये भविष्य के लिए सही है या दलितो के लिए या राजनित के लिए ये तो एक श्रवण समाज के लिए गला घोट़ने जैसा है आप इस पोस्ट पर टि्प्पणी करे अथवा इसे शेयर किजिए यह मेरी आपसे विनती है प्लीज आगे बढाए
I (सूरज ठाकुर )
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इंद्रा सहानी  मामले में आरक्षण की व्यवस्था अवैध करार दिए जाने के  बाद 77 वा संविधान संशोधन किया गया और परिणामी ज्येष्ठता  प्रदान करने उद्देश्य से 85वा संविधान संशोधन  किया गया I 1995 में जो 77 वा संशोधन किया गया वह नीचे प्रस्तुत है
THE CONSTITUTION (SEVENTY-SEVENTH AMENDMENT) ACT, 1995
Statement of Objects and Reasons appended to the Constitution
       (Eighty-sixth Amendment) Bill, 1995 which was enacted as
        THE CONSTITUTION (Seventy-seventh Amendment) Act, 1995
                   STATEMENT OF OBJECTS AND REASONS
The  Scheduled Castes and the Scheduled Tribes have been enjoying  the
facility of reservation in promotion since 1955.  The Supreme Court in
its  judgment  dated 16th November, 1992 in the case of Indra  Sawhney
and  Others  vs.   Union of India and Others, however,  observed   that
reservation  of  appointments  or  posts under article  16(4)   of  the
Constitution  is confined to initial appointment and cannot extent  to
reservation  in  the matter of promotion.  This ruling of the  Supreme
Court  will adversely affect the interests of the Scheduled Castes and
the  Scheduled  Tribes.   Since the representation  of  the   Scheduled
Castes  and  the Scheduled Tribes in services in the States  have  not
reached  the required level, it is necessary to continue the  existing
dispensation  of providing reservation in promotion in the case of the
Scheduled  Castes and the Scheduled Tribes.  In view of the commitment
of  the Government to protect the interest of the Scheduled Castes and
the  Scheduled  Tribes,  the Government have decided to  continue   the
existing  policy of reservation in promotion for the Scheduled  Castes
and the Scheduled Tribes.  To carry out this, it is necessary to amend
article  16 of the Constitution by inserting a new clause (4A) in  the
said article to provide for reservation in promotion for the Scheduled
Castes and the Scheduled Tribes.
2.  The Bill seeks to achieve the aforesaid object.
NEW DELHI;                                       SITARAM KESRI.
The 31st May, 1995.
THE CONSTITUTION (SEVENTY-SEVENTH AMENDMENT)
                              ACT, 1995
                                                [17th June, 1995.]
An Act further to amend the Constitution of India.
BE it enacted by Parliament in the Forty-sixth Year of the Republic of
India as follows:-
1.    Short   title.-This   Act   may  be  called  the   Constitution
(Seventy-seventh Amendment) Act, 1995.
2.   Amendment of article 16.-In article 16 of the Constitution, after
clause (4), the following clause shall be inserted, namely:-
"(4A)  Nothing in this article shall prevent the State from making any
provision  for  reservation  in matters of promotion to any  class   or
classes  of  posts  in the services under the State in favour  of   the
Scheduled Castes and the Scheduled Tribes which, in the opinion of the
State,  are  not  adequately  represented in the  services   under  the
State.".
    यह  एक प्रकार से सवर्णों की नागरिकता को समाप्त करने के तुल्य था I कोई  सवर्ण  किस बात का भारत का नागरिक है अगर न्यायपालिका का दिया हुआ न्याय उसे उपलब्ध ना हो  सके I  किसी  भी स्वतंत्र देश में एक नागरिक का अधिकार है कि  जब उसके अधिकारों का हनन हो तो वह न्यायलय की शरण ले सके तथा न्यायलय से अनुकूल निर्णय पाने के बाद अपने अधिकारों की रक्षा कर सके I किन्तु सर्वोच्च न्यायलय का निर्णय पाने के बाद भी सवर्ण न्याय ना पा सका तथा संविधान को बदल करके मा. सर्वोच्च न्यायलय के फैसले को निष्प्रभावी कर दिया गया I प्रश्न है कि राम जन्म भूमि के मुद्दे पर सभी दल  मानते है कि न्यायलय के फैसले का सम्मान किया जायेगा किन्तु आरक्षण के मुद्दे पर बार बार सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के वावजूद कोई राष्ट्रीय दल इसे मानने को तैयार नही है I  सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि संविधान में संशोधन में करने वाले लोग हमारे वोटो के बल पर जीतते थे तथा आज भी जीत रहे है I हमने कभी पढ़ा था और सुना था कि दधीचि ने वृत्रासुर के वध के लिए अपनी हड्डियों का दान कर दिया था I किन्तु आज तो आरक्षण विरोधी बच्चो के माता-पिता आरक्षण समर्थको को वोट देकर उनके कैरियर का, उनके भविष्य का, उनके रक्त और मांस का , उनकी अस्थियो का दान उन लोगो को कर रहे है जो उनके बच्चो के हित में दिए गए मा. ऊच्चतम न्यायलय के फैसलों को भी लागू नही होने दे रहे है I  आज फेसबुक पर एक पोस्ट पढने को मिली ---
बसपा के एक बड़े नेता ने ब्राह्मणों की तुलना इस गंदे जानवर से की......
मायावती की पार्टी बसपा के एक नेता ने मर्यादा को ताक पर रखते हुए ब्राहमणों को लेकर एक विवादित पोस्ट को सोशल मीडिया पर अपलोड किया है. देवरिया के बीएसपी नेता ने फेसबुक पर एक कमेन्ट को पोस्ट किया है जिसमे उसने ब्राह्मणों को सूअरों का झुंड बताया है. इस शर्मनाक टिप्पणी को जिलें के सलेमपुर विधानसभा क्षेत्र के बसपा अध्यक्ष संजय भारती ने फेसबुुक पर लिखा है. जिसके बाद से पूरी यूपी की सियासत गर्मा गई है.  
बता दें कि भारती में अपने हाथ से एक पोस्ट लिखकर उसे फेसबुक पर पोस्ट किया. जिसमे उन्होंने लिखा था कि ब्राहमण शब्द का मतलब होता है सूअरों का झुंड. बसपा नेता ने संधि-विच्छेद करते हुए यह लिखा था कि ब्राहमण का अर्थ- ब्राह+मण = सुुअरों का झुंड’. उनके अनुसार ब्राह का अर्थ होता है सुअर जबकि मण का अर्थ होता है झुंड.
इसके अलावा उनके पोस्ट में यह भी लिखा हुआ था कि क्योंकि विष्णु ने एक बार ब्राह का रूप यानी सुअर धारण किया था इसी कारण उनको इसका अवतार माना जाता है’. भारती की यह पोस्ट हांलाकि सोशल मीडिया में वायरल हो चूकी है. साथ ही इस आपत्तिजनक पोस्ट के बाद पुरे सियासी खेमे में बबाल मंचा हुआ है. लेकिन बसपा के बड़े नेताओं कहना है की उन्हें इस पोस्ट की कोई जानकारी नहीं हैं. 
     इस पर कुछ नेताओ तथा कार्यकर्ताओं ने जिलाधिकारी को  ज्ञापन देने की अनुमति मांगी तो मैंने उन्हें स्पष्ट मना कर दिया कि मनुवादी पार्टी का ना तो हिंसक संघर्ष में विश्वास है और ना ही अहिंसक आन्दोलन में I हम जन जागरण में विश्वास रखते है I यदि कोई समाज अपने हितो की हत्या करने वालो का, सुप्रीम कोर्ट से पाए हुए न्याय को छीनने वालो का जयकरा लगाता है तो समाज को यह आत्म चिंतन करने की जरुरत है कि इस से बेहतर उसे समाज और क्या देगा  इसका सही इलाज हरदोई के सूरज ठाकुर ने सुझाया है तथा नीचे  अमर उजाला की कुछ कटिंग तथा सूरज ठाकुर की पोस्ट सलंग्न की गयी है I इसका इलाज यही है कि गहलौत और राजनाथ सिंह के बयान पर गाव-गाव में परिचर्चा की जाये कि क्या सुप्रीम कोर्ट के दिए हुए न्याय को छीनने वाले अटलबिहारी बाजपेई और मोदी को प्रसन्न करने के लिए अनर्गल बयानबाजी करने वाले राजनाथ सिंह अपने समाज का समर्थन पाने का हकदार है या नही I  यदि भाजपा ने स्टेट गेस्ट हाउस के बाद  
वेंटिलेटर पर जा चुकी बसपा को सत्ता का आक्सिजन ना दिया होता तो क्या बसपा इस स्थिति में आ पाती कि ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा यादव समाज के तमाम दिग्गज बाहुबली महारथी “पितु समेत लै लै निज नामा I
करन लगे सब दंड प्रनामा II”  
की  मुद्रा में “मै सेवक समेत सुत नारी”
के उद्घोष  के साथ तन मन  धन के साथ चरणों  में समप्रित हो जाते I
यदि बसपा हाई कमान को यह ज्ञान होता कि इस प्रकार के अपमान जनक पोस्ट डालने की प्रतिक्रिया ब्राह्मण समाज जाटों  की तरह सड़क पर उतर कर नही करेगा बल्कि वोट डालने के दिन जितने ब्राह्मण टिकट पाए होंगे  कम से कम उनको तक्षक नाग की तरह डस लेगा तथा उतनी सीटे पार्टी इस तरह की पोस्टो से हार जाएगी तो इस तरह की पोस्ट डालने वाला चाहे संस्थापक सदस्य ही क्यों ना होता वह जुगुल किशोर जैसे महापुरुषों की सत्संगति करने के लिए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से तत्काल निलंबित कर दिया गया होता I इसी प्रकार यदि आरक्षण विरोधी यदि दृढ़ संकल्प ले ले कि मोदी गहलौत और राजनाथ के बयानों के प्रतिशोध में प्रथम चरण में भाजपा मुक्त उत्तर प्रदेश तथा दूसरे  चरण में  2019 में भाजपा मुक्त भारत लाकर रहेंगे तो तत्काल सारी बयानबाजी पर लगाम लग जाएगी ----
      रुख से पर्दा हटा दे ऐ साकी जरा
     रंग महफ़िल अभी ये बदल जायेगा I
    जो कि बेहोश है होश में आएगा

     जो कि  गिरता  है वो भी संभल जायेगा    ...क्रमश: