Monday, 21 August 2017

यमराज से साक्षात्कार


आप है दया के धाम आप रहते अकाम,
आप त्रयलोचन हैं आप त्रिपुरारी हैं |
भक्त मण्डली को सदा देते पल में हैं त्राण,
आप सर्व शक्तिमान भव भय हारी हैं |
आप मुंडमाली और सिद्ध हैं कपाली आप,
आप शिव शंकर हैं शीश गंगधारी हैं |
चन्दचूड आप हैं त्रिशूलपाणि भोले नाथ,
भूधर सुतारमण, भूधर बिहारी हैं | | 98 | |

आर्त टेर सुन भयभीत यमराज जी की,
हो गये प्रसन्न भोले नाथ त्रिपुरारी हैं |
मात्र एक इंगित पे शूल हुआ वापस है,
दिव्य करुणा के सिन्धु भव भय हारी हैं |
शांत अग्नि हो गयी लगी जो यमलोक में थी,
भय मुक्त हुए यमलोक के बिहारी हैं |
गाने लगे लोग प्रार्थना है शिव शंकर की,
भक्ति रस डूबे सभी भव के पुजारी हैं | | 99 | |

क़ल पाश से है हुआ मुक्त, भक्त शंकर का,
चारों ओर होने लगा बम बम का निनाद |
सर्व शक्तिमान महादेव त्रिपुरारी एक,
मानता त्रिलोक सत्य इसमें नहीं विवाद |
आठों याम नाम सुपुनीत शिव का अनूप,
सुख दुख में जो सदा लोग करते हैं याद |
भयमुक्त रहते सदैव भव सागर में,
निश्चित उन्हीं को मिलता है मुक्ति का प्रसाद | | 100 | |   
       (समाप्त)

    (हर  हर  महादेव) 

यमराज से साक्षात्कार

देखा यमराज ने महेश का अनन्त कोप,
नष्ट हो गया समस्त दम्भ गढ़ भारी है |
धैर्य खो गया समस्त तन मन कांप गया,
क्रूर उर अन्तर भी मान गया हारी है |
यमलोक हो गया प्रचण्ड ताप से विकल,
सम्पत्ति अपार नष्ट होने लगी सारी है |
इधर-उधर भागने लगे समस्त दूत,
होने लगी लोक छोड़ने की ही तैयारी है | | 93 | |

देखा यमराज ने सकल यमलोक आज,
शूल के प्रचण्ड ताप से है अकुला रहा |
चारों ओर चीत्कार हा हा कर ही मचा है,
राज पाट सारा अग्नि की चपेट आ रहा |
चित्रगुप्त जी की बही ओर लपकी है ज्वाल,
जन्म-मृत्यु का समस्त लेखा-जोखा जा रहा |
घूम-घूम चारों ओर अस्त्र वह्नि-शायक सा,
सारे यमलोक मध्य अग्नि बरसा रहा | | 94 | |

छोड़ सब आस हाथ जोड़ यमराज बोले,
भोले, शिव, शंकर, उमेश, हर, त्राहिमाम |
आपकी न समता कोई भी कर सकता है,
साधना में लीन रहते हैं रहते अकाम |
ब्रह्मा, विष्णु के ही अधरों पे बसता है सदा,
चंद्रचूड, गंगाधर मात्र आप का ही नाम |
आप हैं कृपालु भक्त टेर सुनते तुरंत,
करुणा के सागर हैं आप हैं वरों के धाम | | 95 | |

आप के ही इंगित पे चलते हैं सूर्य चन्द्र,
और सचराचर में छवि आप की ललाम |
आप के ही शीश से निकल गंगधार मंजु,
करती पुनीत है सदैव वसुधा का धाम |
कालकूट पीकर बचाय त्रयलोक नाथ,
रक्षक सभी के आप, आप दिखते अकाम |
वरुण, सुरेश, गुरु, शुक्र, शनि, रवि आदि,

जपते हैं आठों याम मात्र आप का ही नाम | | 96 | | 

यमराज से साक्षात्कार

देखा यमराज ने सकल यमदूत आये,
त्राहिमाम, त्राहिमाम, त्राहिमाम करते |
गिरते हैं उठते हैं फिर गिरते हैं कभी,
करुण कराह बार-बार आह भरते |
पाश की न सुधि आस जीवन की भी न रही,
शोणित फुहारें तन आनन से झरते |
अंग-अंग शिथिल हुए हैं हुए ढीले मन,
इधर-उधर आये निज पद धरते | | 89 | |

देखा यमराज ने त्रिशूल शिव शंकर का,
बार-बार गणों पे प्रहार करता हुआ |
करता घमण्ड-गढ़ चूर एक पल ही में,
साहस अपार, उर धैर्य हरता हुआ |
विद्युत सा चमक रहा है बार-बार और,
सबके हृदय मध्य भय भरता हुआ |
लोचनों से अवलोक सकता उसे न कोई,
चारों ओर ऐसा दिव्य तेज धरता हुआ | | 90 | |

देखा यमराज ने त्रिशूल का अनन्त रूप,
अन्तर का सारा दम्भ जाने कहाँ खो गया |
नष्ट हुई अहं की भावना समस्त और,
मन में है मानो भय का ही बीज बो गया |
शून्य हो गया समस्त बुद्धि का विवेक तथा,
जगी उर भीरुता व साहस है सो गया |
समझ न पाये किस भांति करें रक्षा निज,
वीरता गम्भीरता का सारा ओज धो गया | | 91 | |

देखा यमराज ने त्रिशूल का प्रबल कोप,
कोटि चंचलाये एक साथ दीप्त होती थी |
छुटते असंख्य थे अंगार के समूह और,
चिनगारियां अनेक अग्नि बीज बोती थीं |
बार-बार द्युतिमान होती थी दिशायें मानों,
अग्नि किरणें समस्त यमलोक धोती थीं |
देख के चकित सारा यम दरबार हुआ,

नारियां सकल धैर्य खोती हुई रोती थी | | 92 | |

यमराज से साक्षात्कार





रक्षा करने को टेरते हैं मिलता न कोई,
संकटों में प्राण आते और तिरते हैं कभी |
बादलों में छिपने का यत्न करते हैं कभी,
द्वार पर मृत्यु के ये आके फिरते हैं कभी | | 88 | |


यमराज से साक्षात्कार