अर्चना कैसे करूं
मैं अर्चना कैसे करूं |
जो रहा बांधे सदा,
बंधन खुला वह चार क्षण को,
किन्तु तब ही एक
आंधी ने किया कम्पित चरण को,
शिथिल तन मन से बताओ
साधना कैसे करूं |
हाथ में यदि हो नहीं
सुकुमार सपनो का नगीना,
यदि नियति ने ही
सुकोमल भावना का सूत्र छीना,
भावना खोकर बताओ
कामना कैसे करूं |
देवि चरणों पर चढ़े
ये फूल बासी हो चुके हैं,
समय से निर्भीक
चरणों के तले वे खो चुके हैं,
खो चुका सब कुछ भला
फिर याचना कैसे करूं |
गिर चुके हैं फूल,
पंखुड़ियां पड़ी बाहें पसारे,
है बृहद किसका ह्रदय
जो अर्च्य प्रतिमा को संवारे,
वन्दनीय न सामने है
वंदना कैसे करूं |
हार बन सकते न, उनका
धूल ही अब कर वरण ले,
और झुक कर इष्ट
मंदिर देहरी के छू चरण ले,
जो असंभव है उसे
संभावना कैसे करूं,
अर्चना कैसे करूं मै
अर्चना कैसे करूं |
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