#यमराज_से_साक्षात्कार
#काल_पाश_से_है_हुआ_मुक्त_भक्त_शंकर_का
#भाग_13
रति में निरत स्वेदश्लथ हैं प्रियायें उठी,
भयभीत प्रीतम के भुज बंधनों से छूट |
रति श्रम बुंद झरते हैं चन्द्र आनन से,
पल में ही कोई गया सुखद क्षणों को लूट |
अधरों की लालिमा चिबुक तक फैली दिखी,
मुख-चन्द्र-सुधा लट-पन्न्गी रही हैं घूँट |
कंचन-कलश के समान है उरोज छवि,
वक्ष नख रेख की भी सुषमा रही है फूट | | 49 | |
प्रीतम के बाद उठी सेज से प्रियायें सभी,
सुमनों की सेज त्याग नीबी हैं संभालती |
स्वेद श्लथ कनक कलेवर छठा अनूप,
आनन पे बिखरी अलक राशि टालतीं |
भयभीत कम्पित ह्रदय तन कांपतें है
इधर-उधर पद-कंज छाप डालतीं |
बार-बार चीख से दसन दीप्ति ऐसी लगी,
कोटि चपलायें एक पल ही में ढालतीं | | 50 | |
नारी-नर, बाल, वृद्ध देखने सभी हैं लगे,
करता ये कौन घोर गर्जना कराल है |
जाता व्योम पंथ से धरा की ओर कौन-वह,
फूल दम्भ में ये दैत्य दल विकराल हैं |
श्याम वर्ण श्याम पट में विशाल देह वाले,
क्रोध के स्वरूप युग्म भृकुटि अराल है |
लाल-लाल लोचन भयंकर शरीर और
काले जलधर के समान केश जाल हैं | | 51 | |
देखा यमराज के ये भेजे हुए यमदूत,
अति विकराल रूप अपना दिखाते हैं |
असुरों सा वेश धरे फूले दम्भ में हैं और,
बार-बार गर्जन से दिल दहलाते हैं |
श्याम वर्ण भूधर समान दिखते हैं सभी,
लाल-लाल लोचनों से रोष बरसाते हैं |
लगता किसी के आज प्राण हरने के लिए,
तीव्रतर वेग से धरा की ओर जाते हैं | | 52 | |
#_क्रमशः
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