Tuesday, 8 August 2017

यमराज से साक्षात्कार काल पाश से है हुआ मुक्त भक्त शंकर का भाग13

#यमराज_से_साक्षात्कार

#काल_पाश_से_है_हुआ_मुक्त_भक्त_शंकर_का

#भाग_13

रति में निरत स्वेदश्लथ हैं प्रियायें उठी,

भयभीत प्रीतम के भुज बंधनों से छूट |

रति श्रम बुंद झरते हैं चन्द्र आनन से,

पल में ही कोई गया सुखद क्षणों को लूट |

अधरों की लालिमा चिबुक तक फैली दिखी,

मुख-चन्द्र-सुधा लट-पन्न्गी रही हैं घूँट |

कंचन-कलश के समान है उरोज छवि,

वक्ष नख रेख की भी सुषमा रही है फूट | | 49 | |

प्रीतम के बाद उठी सेज से प्रियायें सभी,

सुमनों की सेज त्याग नीबी हैं संभालती |

स्वेद श्लथ कनक कलेवर छठा अनूप,

आनन पे बिखरी अलक राशि टालतीं |

भयभीत कम्पित ह्रदय तन कांपतें है

इधर-उधर पद-कंज छाप डालतीं |

बार-बार चीख से दसन दीप्ति ऐसी लगी,

कोटि चपलायें एक पल ही में ढालतीं | | 50 | |


नारी-नर, बाल, वृद्ध देखने सभी हैं लगे,

करता ये कौन घोर गर्जना कराल है |

जाता व्योम पंथ से धरा की ओर कौन-वह,

फूल दम्भ में ये दैत्य दल विकराल हैं |

श्याम वर्ण श्याम पट में विशाल देह वाले,

क्रोध के स्वरूप युग्म भृकुटि अराल है |

लाल-लाल लोचन भयंकर शरीर और

काले जलधर के समान केश जाल हैं | | 51 | |


देखा यमराज के ये भेजे हुए यमदूत,

अति विकराल रूप अपना दिखाते हैं |

असुरों सा वेश धरे फूले दम्भ में हैं और,

बार-बार गर्जन से दिल दहलाते हैं |

श्याम वर्ण भूधर समान दिखते हैं सभी,

लाल-लाल लोचनों से रोष बरसाते हैं |

लगता किसी के आज प्राण हरने के लिए,

तीव्रतर वेग से धरा की ओर जाते हैं | | 52 | |



#_क्रमशः

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