देख यह दृश्य आया क्रोध शिव शंकर के,
लोचनों में रोष-लालिमा की छटा भायी है |
फडकी भुजाएं हिला सकल कलेवर भी,
भस्म झड़ने से मानों धूम धुन्ध छायी है |
वक्ष मुण्डमाल के हैं मुण्ड टकराने लगे,
भाल नेत्र की पलकों में भी गति आयी है |
कंठ पड़े पन्नग हैं फन को उठाने लगे,
अक्ष मालिका भी बार-बार बल खायी है | | 77 | |
बिखरी जटायें गंग भाल चन्द्र को पकड़,
शिव शीश रुकने का यत्न करने लगी |
एक पल ही में जब बदल दिशा गयी तो,
शैलजा पे सुरसरि धार गिरने लगी |
देख यह दृश्य जह्नुजा है मुसकाने लगी,
उमा भी हैं अंतर में मोद भरने लगी |
भीग गये गोद बैठे बालक गजानन भी,
षड़ानन पर भी फुहार पड़ने लगी | | 78 | |
बज उठा डमरू डमक डम डम डम,
शूल से भी रश्मि अग्नि बाण छूटने लगे |
उछल-उछल नंदी क्रोध दिखलाने लगे,
कोप-ज्वालामुखी भी गणों में फूटने लगे |
शिव लोक के प्रकोप से है काँपने लगा तो,
नगपति से भी शिला खण्ड टूटने लगे |
दृश्य देख हुए अति भयभीत यमराज,
शंकर के भक्त गण सौख्य लूटने लगे | | 79 | |
हाथ को बढ़ाया शूल ओर शिव शंकर ने,
भक्त, देव गण अपलक देखने लगे |
देख के अपार क्रोध आज भूत भावन का,
कितने ही यमदूत यमपुर से भगे |
एक दूसरे से व्योम-तारे टकराने लगे,
छिपे हुए कोटि वह्नि शोले उसमें जगे |
कर जोड़ सकल गणों ने है प्रणाम किया,
दृश्य अवलोक यह सभी हैं रह ठगे | | 80 | |
#_क्रमशः
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