Wednesday, 9 August 2017

यमराज से साक्षात्कार काल पाश से है हुआ मुक्त भक्त शंकर का भाग 14


चले तीव्र वेग से धरा की ओर यमदूत,

आने लगी निकट थी पावन वसुन्धरा |

होने दृष्टिगोचर लगा है देश भारत भी,

भूमि पर करने लगा है मन को हरा |

श्याम वर्ण मेघ छतरी सी तानते हैं कभी,

कभी दिनराज ने प्रचण्ड ताप है भरा |

कभी रजनीश ने लुटा के चारू चन्द्रिका को,

सभी जड़ चेतन का परिताप है हरा | | 53 | |


दूर दिखने लगी वसुन्धरा परी सुरम्य,

चारों ओर दिव्य पारावार लहराता था |

अनुपम छठा भूधरों की मन मोहती थी,

सुखद समीरण झकोर बलखाता था |

भाति-भाति रंग के प्रसून हँसते थे और,

मधुप समूह भी रसीले गीत गाता था |

द्रुम-दल झूमता था पवन निदेश पाके,

बार-बार एक दूसरे से टकराता था | | 54 | |


सुमन न बूटेदार साड़ी पहने थी धरा,

नदियाँ न मोतियों के हार तन भाते थे |

शैल के शिखर नही उन्नत उरोज मंजु,

सर-सरसिज नहीं चरण सुहाते थे |

मधुप समूह घूमते थे नहीं चारों ओर,

श्याम घन के समान केश लहराते थे |

कुंद कलियाँ न श्वेत आभा छिटकी थी मानो,

दशन समूह रूप अपना दिखाते थे | | 55 | |


आगे बढ़े ज्यों ही यमदूत धरती की ओर,

दृष्टिगत होती गयी भारत वसुन्धरा |

सारे महिमंडल में रूप इसका अनूप,

जगत प्रसिद्ध यही शस्य श्यामला धरा |

शीश पर रजत किरीट शैल राज का है,

पहनाया प्रकृति ने परिधान है हरा |

श्वेत मोतियों की माल डाली जह्नुजा ने रम्य,

भानुजा की नील मालिका से वक्ष है भरा | | 56 | |

#_क्रमशः

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