Sunday, 13 August 2017

यमराज से साक्षात्कार

#यमराज_से_साक्षात्कार

#काल_पाश_से_है_हुआ_मुक्त_भक्त_शंकर_का

#भाग_17


तेज युक्त शंकर के भक्त को विलोक कर,

यमदूत साहस न रंच जुटा पाते थे |

बार-बार कर में संभालते थे मृत्यु पाश,

डालने का यत्न करते थे रुक जाते थे |

बार-बार आता याद स्वामी का निदेश किन्तु,

कर्म, करने में बार-बार सकुचाते थे |

कर्महीन बन के खड़े थे इस हेतु सभी,

लज्जित भी होते बार-बार पछताते थे | | 65 | |



साहस बटोर यमदूतों ने हैं फेंके पाश,

देख सुरसरि ऊर्मि व्यूह कांपने लगे |

अवलोक घोर कष्ट शंकर के भक्त पर,

क्रोध से हैं शिव गण दन्त चाँपने लगे |

अपलक देखने लगे हैं देव किन्नर भी,

उमापति की अपार शक्ति भाँपने लगे |

घेर चारों ओर से समस्त यम सेवक हैं,

त्रिपुरारी किंकर का तन छापने लगे | | 66 | |



आँख खोल देखा जब शंकर के सेवक ने,

सकल स्वतन यमपाश जकड़ा हुआ |

लाल-लाल नेत्र किये यमदूत का समूह,

चारों ओर घेरे हुए खड़ा अकड़ा हुआ |

सब ओर डाली दृष्टि राह सूझती न रंच,

प्राणों पर आज घोर संकट पड़ा हुआ |

जीवन का अन्त अति निकट विलोका पाया,

मृत्यु के ही हाथों अपने को पकड़ा हुआ | | 67 | |



देख घोर संकट अनन्य शिव सेवक पे,

शान्त हुए वृक्ष सभी शोक भरने लगे |

दुखित हुए समस्त गिरिश्रृंग के समूह,

उनके विलोचनो से अश्रु झरने लगे |

भूल गये गान हैं सकल मधुकर और,

आँख मूंद कुमुद के वृन्द डरने लगे |

अवलोक करुणा से परिपूर्ण दृश्य यह,

सकल विहंग हाय-हाय करने लगे | | 68 | |



#_क्रमशः

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