#यमराज_से_साक्षात्कार
#काल_पाश_से_है_हुआ_मुक्त_भक्त_शंकर_का
#भाग_17
तेज युक्त शंकर के भक्त को विलोक कर,
यमदूत साहस न रंच जुटा पाते थे |
बार-बार कर में संभालते थे मृत्यु पाश,
डालने का यत्न करते थे रुक जाते थे |
बार-बार आता याद स्वामी का निदेश किन्तु,
कर्म, करने में बार-बार सकुचाते थे |
कर्महीन बन के खड़े थे इस हेतु सभी,
लज्जित भी होते बार-बार पछताते थे | | 65 | |
साहस बटोर यमदूतों ने हैं फेंके पाश,
देख सुरसरि ऊर्मि व्यूह कांपने लगे |
अवलोक घोर कष्ट शंकर के भक्त पर,
क्रोध से हैं शिव गण दन्त चाँपने लगे |
अपलक देखने लगे हैं देव किन्नर भी,
उमापति की अपार शक्ति भाँपने लगे |
घेर चारों ओर से समस्त यम सेवक हैं,
त्रिपुरारी किंकर का तन छापने लगे | | 66 | |
आँख खोल देखा जब शंकर के सेवक ने,
सकल स्वतन यमपाश जकड़ा हुआ |
लाल-लाल नेत्र किये यमदूत का समूह,
चारों ओर घेरे हुए खड़ा अकड़ा हुआ |
सब ओर डाली दृष्टि राह सूझती न रंच,
प्राणों पर आज घोर संकट पड़ा हुआ |
जीवन का अन्त अति निकट विलोका पाया,
मृत्यु के ही हाथों अपने को पकड़ा हुआ | | 67 | |
देख घोर संकट अनन्य शिव सेवक पे,
शान्त हुए वृक्ष सभी शोक भरने लगे |
दुखित हुए समस्त गिरिश्रृंग के समूह,
उनके विलोचनो से अश्रु झरने लगे |
भूल गये गान हैं सकल मधुकर और,
आँख मूंद कुमुद के वृन्द डरने लगे |
अवलोक करुणा से परिपूर्ण दृश्य यह,
सकल विहंग हाय-हाय करने लगे | | 68 | |
#_क्रमशः
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