Saturday, 5 August 2017

प्रश्न: कांग्रेस का आप को राजनीतिक भविष्य क्या प्रतीत होता है?

उत्तर प्रश्न है कि किसकी कांग्रेस का?
अभी यह तय होने दीजिए। कांग्रेस सोनिया का, कांग्रेस राहुल का, कांग्रेस प्रियंका का या गांधी-नेहरु परिवार के बाहर के किसी आदमी की कांग्रेस का। 

पहले यह तो तय हो कि कौन सी कांग्रेस किसकी कांग्रेस?
एक एक करके इनका विश्लेषण किया जा रहा है।
पहले कांग्रेस सोनिया की लीजिए। कांग्रेस की मालकिन यदि सोनिया बनी रहती हैं, तो कांग्रेस न मरेगी न मोटाएगी। सूखती जाएगी, अचानक हरी हो जाएगी, फिर सूखेगी। इसके उत्थान या पतन में सोनिया का कोई योगदान नहीं होगा। यह स्वतः स्फूर्त कारणों से घटेगी-बढ़ेगी। सोनिया यथास्थितिवादी हैं, वे कमजोर महिला हैं तथा जानती हैं कि वे कमजोर महिला हैं। सुकरात ने लिखा है कि "मैं दुनिया का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति हूं क्योंकि मुझे पता है कि मैं मूर्ख हूं बाकी को यह भी पता नहीं है।" सोनिया विश्व की सबसे शक्तिशाली महिला हैं क्योंकि उन्हें पता है कि वे कमजोर हैं, बाकी को इतना भी ज्ञान नहीं है। वे नरसिंह राव जैसे अधमरे आदमी को बटाईदार/ किराएदार बना कर देख चुकी हैं कि खेत/मकान खाली कराने में कितनी मशक्कत करनी पड़ी। नरसिंह राव अधमरे थे- टिकट नहीं पाए थे, चल नहीं पाते थे, बीमार थे। किंतु फिर भी अधमरे तो थे ही- राज्यों में तथा केंद्र में महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर रह चुके थे- जन्म से ब्राह्मण थे- जो समाज पूरे भारतवर्ष में बसा है। आजमगढ़ का यादव स्वयं को अमर सिंह से identify नहीं करता है मुलायम सिंह से करता है। बलिया का दलित चंद्रशेखर को अपना न मानकर अंबेडकर को अपना मानता है। इसी को डॉ राम मनोहर लोहिया ने लिखा है कि भारत में मार्क्स सिर के बल खड़ा था तथा उन्होंने(लोहिया ने) उसे पैर के बल खड़ा कर दिया, अर्थात लोहिया ने वर्ग संघर्ष को वर्ण संघर्ष (जातिगत संघर्ष) में बदल दिया। बनारस का दलित रिक्शाचालक अपने गांव के जनेऊधारी रिक्शाचालक को अपना न मानकर मायावती को अपनी बहन मानता है,जिनके घर में घुसने कि उसकी हैसियत नहीं है- जो राखी बांधती है लालजी टंडन को- जिनको कभी गुस्से में तो कभी दुलार में वह बातचीत में लालची टंडन के नाम से पुकारती है। गरीब दलित अच्छी तरह जानता है कि दलित की बेटी दौलत की बेटी हो चुकी है किंतु वर्ग संघर्ष अब वर्ण संघर्ष में बदल चुका है- गरीब और अमीर की लड़ाई जातिगत लड़ाई में बदल चुकी है। हिंदुस्तान की शायद यही नियति थी और अब भी है- यहां एक दीन सुदामा के पैर यदि द्वारिकाधीश धो दे तो ब्रह्मा के मुंह से निकले सारे भिक्षुक अपनी टूटी-फूटी झोपड़ी को न देखकर के हजारों पीढ़ी तक भीख मांगकर सुदामा की झोपड़ी को महल बनते देखकर अपनी इच्छाओं की तृप्ति कर लेते हैं कि कभी कोई द्वारिकाधीश उनके भी पैर धोएगा तथा बिना ईंट-सीमेंट का इंतजाम किए वे भी महलों में निवास करेंगे। यही स्थिति आज भी है। मायावती ने अपने जन्मदिन पर अपना जूठा लड्डू सतीश मिश्र को खिला क्या दिया कि सारे  दलित मानसिकता वाले ब्राह्मण मस्त हो गए कि एक दिन मायावती की जूठी पत्तल चाटने का सौभाग्य उसे भी मिलेगा तथा उसके भी दरवाजे पर आधा दर्जन लाल बत्ती वाली गाड़ियां होंगी। 
"इनको मारो जूते चार" के नारे को भुलाकर वह चिल्लाने लगा- "पत्थर धर लो छाती पर, बटन दबाओ हाथी पर",
"हाथी नहीं गणेश है,ब्रह्मा विष्णु महेश है",
"पंडित शंख बजाएगा हाथी बढ़ता जाएगा।" 
ब्राह्मण शुरू का बुद्धिजीवी रहा है- चरणामृत पिया है और पिलाया है। 
मायावती की जूठन को चाटने का सौभाग्य कभी तो मिलेगा ही,कभी तो अच्छे दिन आएंगे- यह सोचकर बसपाई ब्राह्मण मस्ती से जी रहे हैं। ये तो सोनिया कांग्रेस का विश्लेषण रहा।

आइए राहुल कांग्रेस पर। अगर राहुल को राजीव गांधी जितना प्रचंड बहुमत भी मिल जाए तो भी वो अपने बाप की तरह फ्लॉप हो जाएंगे- क्योंकि वे बाप की तरह भले आदमी हैं। मैं राजीव को भारतीय राजनीति का सर्वाधिक बेईमान आदमी नहीं मानता हूं- यह मेरी अंतरात्मा की आवाज है। उन्होंने अगर कमीशन बोफोर्स में लिया भी हो, तो न लेने की स्थिति में वह कमीशन भारत सरकार को न मिलता, इटली की कंपनी को मिलता। मान लीजिए कोई DM Rate Contract की फर्म से खरीदारी करता है- अगर वह ईमानदारी से खरीद रहा हो तो भी Bill उतने का ही बनेगा तथा बेईमानी करने पर भी उतने का ही बनेगा। DM बेईमान होगा तो पैसा उसकी पॉकेट में जाएगा तथा DM ईमानदार है तो पैसा व्यापारी की पॉकेट में जाएगा। दोनों हालत में पैसा सरकार की पॉकेट में नहीं जाएगा। Bill उतने का ही बनेगा जितने का Rate Contract है। कोई DM उससे कम कीमत का बिल नहीं बनवा सकता है। सरकारी पैसे की बचत नहीं हो सकती। राजीव ने पैसा खाया या नहीं मैं नहीं जानता किंतु यदि वे पूर्ण ईमानदार होते तो भी भारत सरकार का एक पैसा न बचता और वह पैसा इटली के व्यापारी को मिलता। यदि वे बेईमान रहे होंगे तो वह पैसा इटली के व्यापारी की जगह उनकी पॉकेट में आया होगा जो आखिरकार देश में लगा होगा- अगर चुनाव में भी लगाया गया होगा तो भी देशवासियों के ही काम आया होगा किंतु फिर भी बोफोर्स उनके नाम के साथ चिपक गया। 
इंदिरा के साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ? 
यही वी.पी. सिंह इंदिरा गांधी के जमाने में भीगी बिल्ली बने रहते थे। भोला पांडे की आंख में आंख डालकर यह कहने की हिम्मत वी.पी. सिंह की नहीं पड़ी कि डी.के. पांडा एक ईमानदार अधिकारी हैं-उन्हें बलिया से नहीं हटाऊंगा। वी.पी. सिंह पांडा जी को अपने चुनाव क्षेत्र ले गए जो इस बात का सूचक है कि उन्हें पांडा जी पर पूर्ण भरोसा था। 
सुरेंद्र पाल शर्मा जैसे निरीक्षक तक को अपने एक मुंहलगे मंत्री द्वारा बदतमीजी की सच्ची शिकायत होने पर भी हटाने की हिम्मत नहीं पड़ी क्योंकि वह धवन का आदमी था। धवन के आगे दुम हिलाने वाले राजीव के सामने दहाड़ने लगे क्योंकि राजीव GLASNOST और PERPESTROIKA के प्रतीक गोर्बाच्योव बन गए। 
अगर इंदिरा जी के समय में वी.पी. सिंह यह हिमाकत करते तो CBI में कोई खुर्राट डायरेक्टर बैठा होता जो दो-चार गवाहों के बयान दर्ज करके बोफोर्स घोटाले में या किसी अन्य घोटाले में वी.पी. सिंह को अभियुक्त बनाकर अंदर कर दिया होता। राजीव गांधी की Mr.Clean की छवि के नाते Character Roll देखकर अफसरों की Posting होने लगी- गंदी छवि के अधिकारियों से राजीव परहेज करने लगे। जो अपने लिए गंदगी नहीं करेगा वह प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा अन्य गंदे अधिकारियों के लिए क्यों करेगा?
राहुल गांधी सिद्धांतों की बात करते हैं- चाहे उनमें उनका विश्वास हो या न हो। 
"दुविधा में दोऊ गए माया मिली न राम।"
हिमांचल प्रदेश के मुख्यमंत्री का इस्तीफा लेने की औकात नहीं और चाहेंगे कि लालू अपने बेटे तेजस्वी का इस्तीफा ले लें। ऐसे लोगों के पास वफादार आदमी नहीं मिलते। वफादार आदमी इंदिरा जी को मिलते थे। वफादार आदमी प्रियंका जी को मिल सकते हैं। आदमी समर्पित उस को मिलते हैं जो ना केवल दावा करता है बल्कि वास्तव में100% Mr. Clean हो। अथवा गंदे आदमी को तब मिलते हैं जब वह दूसरे गंदे लोगों का साथ दे।

मुलायम सिंह_को जितने आदमी लाठी-गोली खाने को, जेल भरो आंदोलन को मिलते थे, उसका 10% ढूंढ पाना अखिलेश के लिए असंभव परिकल्पना है। मुलायम सिंह किसी बाबू सिंह कुशवाहा को ससम्मान पार्टी में लेते हैं तथा उसकी पत्नी को टिकट भी देते हैं और न केवल बलात्कार के प्रकरणों में "बहक जाने वाले" बच्चों के प्रति सार्वजनिक मंच से सहानुभूति जताते हैं बल्कि गायत्री प्रजापति जैसे निर्दोष बुड्ढों के उत्पीड़न को देखकर उद्वेलित हो जाते हैं।  अगर मुलायम किसी IAS के ऊपर हाथ रखते हैं तो माननीय सुप्रीम कोर्ट की परवाह न करके अखंड प्रताप सिंह तथा नीरा यादव को मुख्य सचिव बना देते हैं। मायावती इसीलिए 0 सीट पर पहुंचकर भी उबर जाएंगी क्योंकि "दलित हितों" के आगे नीति,नियम तथा नैतिकता का उनके शब्दकोश में कोई स्थान नहीं है। यदि मायावती ने "दलित हितों" में किसी अमरमणि त्रिपाठी को आशीर्वाद प्रदान किया तो DG CBCID की रैंक पर विराजमान महेंद्र सिंह लालका को निलंबन झेलना पड़ा।
राजीव तथा अखिलेश बने बनाए साम्राज्य को भी वरासत में पाने के बावजूद नहीं संभाल सके क्योंकि अधिकांश लोगों से साफ-सुथरा होने के बावजूद भी 100% Mr. Clean नहीं समझे जाते थे तथा ऐसे होने का दावा करने के कारण वैचारिक उभयतोपाश(dilemma)के शिकार हो जाते थे। कभी इन को गंदगी से घिन आती थी तो कभी गंदों को गले लगाते थे। राहुल भी ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी हैं। केजरीवाल तथा नीतीश कुमार भी इसी श्रेणी में आते हैं। ऐसे ही जीव विश्वनाथ प्रताप सिंह भी थे। 

नीतीश कुमार जैसे चन्दन को ये अच्छी तरह पता था कि वे भुजंगों को अपने गले में लपेट रहे हैं तथा कितने भी पाखंडपूर्ण बयान दें कि विष नहीं व्यापने पाएगा किंतु जहर तो फैलेगा ही। 
जब नीतीश तथा राहुल लालू से मिलकर चुनाव लड़े तो Real Politik के धरातल पर उन्हें मानसिक रूप से लालू की गंदगी को आत्मसात करने के लिए या तो तैयार हो जाना चाहिए था अन्यथा मंच ही नहीं साझा करना चाहिए था।
राबड़ी_देवी_एक_चरित्रवान_देहाती_पतिव्रता_महिला_हैं उनके बेटे तेजस्वी का DNA अपने बाप लालू से अलग होगा- इसकी परिकल्पना कैसे की जा सकती है। यह बात अलग है कि जेल में बंद हो जाने या सजा पाने की दशा में तेजस्वी की पत्नी उत्तराधिकारी बन सकती हैं तथा उसके भी घिर जाने पर कानूनी प्रक्रिया पूरी होने में जो समय लगता है उसको देखते हुए लालू का पोता वरासत संभालने के लायक हो जाएगा। 
 यदि राहुल की जगह प्रियंका होती तो प्रेसवार्ता बुलाकर चीख रही होती-" लालू की लोकप्रियता से घबराकर भाजपा राजनीतिक विद्वेष तथा प्रतिशोध के तहत पूर्वाग्रहपूर्ण कार्यवाही कर रही है।CBI तो वैसे भी माननीय सुप्रीमकोर्ट पिंजरे का तोता घोषित कर चुकी है तथा CBI रूपी 'पट्टू' अपने आका के इशारे पर 'राम-राम' बोलता है। हमें न्यायपालिका पर पूर्ण विश्वास है तथा तेजस्वी न्यायपालिका के चौखट पर तपे-तपाये सोने की तरह खरे होकर निकलेंगे। दबाओ,दुखी करो-कितना करोगे?
जितना परेशान करोगे उतना ही व्यक्तित्व निखरेगा। लालू को विधायिका,कार्यपालिका तथा न्यायपालिका सबने सताया।
क्या हुआ?- बिहार में मोदी तथा नीतीश से भी अधिक लोकप्रिय उन्हें जनता ने सिद्ध कर दिया। "जनता प्रजातंत्र में स्वामी ह  तथा संविधान तक का मुख्य स्रोत है, उसके निर्णय के आगे सभी को सिर झुकाना चाहिए।" इतना सुविचारित तथा परिपक्व विचार जब प्रियंका का लालू सुनते तो वे कृतज्ञता से पागल हो जाते तथा जब कभी वाड्रा पर कोई संकट आता तो बुढ़ापे में भी अपनी गठी हुई यादवी काया पर लाठी-डंडा खाने तथा ईंटा-पत्थर फेंकने को सड़क पर तैयार मिलते। राहुल को समझना चाहिए कि नैतिकतावादियों का योगदान ही क्या है?
#लंगोटी_बांधकर_नंगे_बदन_घूमने_वाले_गांधी_की_तपस्या_शेरवानी_में_गुलाब_का_फूल_लगाकर_विराजमान_जवाहरलाल नेहरू निगल गए। जब जय प्रकाश ने नैतिकता का मंदराचल लेकर जनमानस के समुद्र का मंथन किया तो लालू,मुलायम तथा देवीलाल जैसे चरित्रवान लोगों के हाथ में सत्ता गई तथा इसी प्रक्रिया को जब अन्ना हजारे ने दोहराया तो केजरीवाल तथा उनके राशन कार्ड बनाने वाले सहयोगी मिले। 
कारण क्या था?
यह विकराल लगने वाले व्यक्तित्व pigmy lieutenants जनाधारशून्य थे। जयप्रकाश नारायण तथा अन्ना उस शिखंडी की तरह थे जिनके पीछे अर्जुन रुपी RSS तीर चला रहा था। ये paper tigers थे। रामदेव बाबा भी इसी श्रेणी में आते हैं। जब इनके पीछे से उचित अवसर आने पर RSS अपना हाथ खींच लेगा तो इनकी आंखों के आगे अंधेरा छा जाएगा तथा 500 व्यक्तियों को भी संबोधित करने की इनकी औकात नहीं होगी। 
अन्ना हजारे में दम है तो किसी भाजपाई सरकार के खिलाफ एक आंदोलन चला कर देख लें- शीशे में अपना चेहरा देखने लायक नहीं पाएंगे तथा सारी औकात सामने आ जाएगी।
अब आती है चर्चा उस कांग्रेस की जिसमें नेहरु गांधी परिवार से  बाहर का कोई आदमी हाईकमान है। उसका भविष्य जानना हो तो बिरजिस कदर की कहानी सुन लीजिए। 1857 के संग्राम में लगभग 4 दर्जन राजपूत राजा इकट्ठा हुए तथा यह तय नहीं कर पाए कि वे किसके नेतृत्व में लड़ें। अंत में तय हुआ कि अवध के नवाब की किसी बेगम से कोई शहजादा मांगा जाए जिसके अधीन सब मिलकर संघर्ष करें। प्रमुख बेगमों ने सोचा कि जीतने पर अंग्रेज उनके बच्चों को मार डालेगा, अतः उन्होंने अपना बच्चा देने से मना कर दिया। बेगम हजरत महल ने अपने घोर नाबालिग बेटे को इस शर्त पर दिया कि उसे मुख्य बेगम की मान्यता देकर उसे राजमाता का दर्जा दिया जाए। ऐसा ही हुआ तथा नाबालिग बिरजिस कदर की कमांड में सारे बहादुर राजपूत लड़े। कांग्रेस में राहुल गांधी ऐसे ही बिरजिस कदर हैं।
शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित भले चीख चिल्ला लें कि राहुल को राजनीति करना नहीं आता किंतु वे यह भी जानते हैं कि उतने ही अस्तित्वहीन वे स्वयं हैं तथा उमाशंकर दीक्षित एवं शीला दीक्षित का वारिस होने के नाते सांसद हैं और उनका भविष्य राहुल के चरणों में है। जब तक मोतीलाल जवाहरलाल इंदिरा राजीव सोनिया राहुल की लाइन चल रही है तब तक ही कमलापति त्रिपाठी-लोकपति त्रिपाठी- राकेश पति त्रिपाठी-ललितेश पति त्रिपाठी की श्रृंखला कायम है। शरद पवार की बेटी वैसे ही रो धोकर राहुल के चरणों में बैठेगी जैसे संगमा की बेटी तथा जितेंद्र प्रसाद के बेटे बैठे हैं तथा भविष्य में रीता बहुगुणा जोशी तथा उनके भाई बैठेंगे। जैसे "उड़ि जहाज को पंछी, पुनि जहाज पे आवै।" अभी बहकने के लिए नरेश अग्रवाल के पास केवल एक जगह भाजपा और बची है तथा उसके बाद निर्वाण प्राप्ति हेतु उन्हें पुनः कांग्रेस में समाविष्ट होना है। कितने भी चूहे इकट्ठे हो जाए, वे बिल्ली के गले में घंटी नहीं बांध सकते। इसी प्रकार 
 भारतवर्ष के सारे कांग्रेसी भी मिलकर राहुल का विकल्प नहीं बन सकते
कुल मिलाकर कांग्रेस में आशा का एकमात्र केंद्र-बिंदु बची हैं- प्रियंका, बशर्ते उनको रंगमंच पर लाने में सोनिया अक्षम्य देरी न कर दें।
"हुजूर आते आते बहुत देर कर दी।"
वैसे ही माहौल अंदर-अंदर इतना पक चुका है कि सोनिया नहीं मानी तो

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