Saturday, 12 August 2017

यह कवि कैसे रह पायेगा

   
कैसे गीतों को सरगम दूँ, कैसे अपना दर्द दिखाऊँ |

प्रीति नहीं जब मिली तुम्हारी, गीत प्रेम के कैसे गाऊं ||

जीने में जब जीवन का सा, कोई भी आनंद नहीं है |

तुमने अब तक तो स्वीकारा, बंधन का अनुबंध नहीं है ||


हस-विलास कल्पनाओ पर, होता अब विश्वास नहीं है  |

लिखता अब भी गीत किन्तु, गाने में वह उल्लास नहीं है ||

अब मेरे गीतों में केवल, आंसू का श्रृंगार मिलेगा |

नहीं मुक्ति का धाम यहाँ पर, केवल कारागार मिलेगा ||


रहा नही उत्साह तनिक भी, जीवन लगता करुण कहानी |

सोच रहा हूँ तुम असमय में, आ जाती बन कर कल्याणी |

मिलनातुरा विरह की गति को, कैसे यह मन सह पायेगा |

तुम न रहोगी पास भला तो, यह कवि कैसे रह पायेगा ||


यह भविष्य वाणी है कवि की, पीड़ा भरे ह्रदय का स्वर है |

समय गये पर पछताओगी, लगता मुझको इसका डर है ||

सुस्मृतियाँ जब गंधहास बन, सुप्त मर्म को सहलायेंगी |

तब फिर कैसे बीती घडियां, फिर से वापस आ पायेंगी ||


तन हो अस्तमना पर मन को, अब तक कोई मिटा न पाया |

विनय यही तुम डाले रखना, उस पर मधुर-मोहिनी माया ||

आज वेदना रूप सजा कर, बुला रही है तुम्हे अनवरत |

मेरे मन-मंदिर में अपनी प्राण प्रतिष्ठा, करो चिरादृत ||


तुमसे मधुरिम स्नेह मिला जो आज बन गया वही समर्पण  |

गीतों का अपनत्व अनागत देने चला तुम्हें आमंत्रण ||

यह रातों की रटन, रटन की घुटन, घुटन की भी सीमाएं |

अंतर की अकुलाहट, आहट, व्यग्र, बटोही जिज्ञासाएं |


अश्रु तुम्हारे ही चरणों में, हास तुम्हारे आवरणों में |

अभिलाषा छण भर आजाओ,  मन में इन एकांत व्रणों में ||

लगता यह अविराम वेदना, क्षण भर को विश्राम मांगती |

घोल हृदय का दर्द प्रणति में, ऊषा मानो शाम मांगती || 


लगता मुझको इसी शाम में, होगा स्वप्ने ! मिलन तुम्हारा |

मै नभ-पथ का मौन बनूँगा, तुम बन जाओगी  ध्रुव तारा ||

मैं अपने इस ध्रुव तारा को, अपना ही पाथेय करूँगा |


जहाँ तुम्हारे चरण रुकेंगे, उसको अपना ध्येय करूँगा || 

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