कैसे गीतों को सरगम
दूँ, कैसे अपना दर्द दिखाऊँ |
प्रीति नहीं जब मिली
तुम्हारी, गीत प्रेम के कैसे गाऊं ||
जीने में जब जीवन का
सा, कोई भी आनंद नहीं है |
तुमने अब तक तो
स्वीकारा, बंधन का अनुबंध नहीं है ||
हस-विलास कल्पनाओ
पर, होता अब विश्वास नहीं है |
लिखता अब भी गीत किन्तु,
गाने में वह उल्लास नहीं है ||
अब मेरे गीतों में
केवल, आंसू का श्रृंगार मिलेगा |
नहीं मुक्ति का धाम
यहाँ पर, केवल कारागार मिलेगा ||
रहा नही उत्साह तनिक
भी, जीवन लगता करुण कहानी |
सोच रहा हूँ तुम
असमय में, आ जाती बन कर कल्याणी |
मिलनातुरा विरह की
गति को, कैसे यह मन सह पायेगा |
तुम न रहोगी पास भला
तो, यह कवि कैसे रह पायेगा ||
यह भविष्य वाणी है
कवि की, पीड़ा भरे ह्रदय का स्वर है |
समय गये पर पछताओगी,
लगता मुझको इसका डर है ||
सुस्मृतियाँ जब
गंधहास बन, सुप्त मर्म को सहलायेंगी |
तब फिर कैसे बीती
घडियां, फिर से वापस आ पायेंगी ||
तन हो अस्तमना पर मन
को, अब तक कोई मिटा न पाया |
विनय यही तुम डाले
रखना, उस पर मधुर-मोहिनी माया ||
आज वेदना रूप सजा
कर, बुला रही है तुम्हे अनवरत |
मेरे मन-मंदिर में
अपनी प्राण प्रतिष्ठा, करो चिरादृत ||
तुमसे मधुरिम स्नेह
मिला जो आज बन गया वही समर्पण |
गीतों का अपनत्व
अनागत देने चला तुम्हें आमंत्रण ||
यह रातों की रटन,
रटन की घुटन, घुटन की भी सीमाएं |
अंतर की अकुलाहट,
आहट, व्यग्र, बटोही जिज्ञासाएं |
अश्रु तुम्हारे ही
चरणों में, हास तुम्हारे आवरणों में |
अभिलाषा छण भर आजाओ,
मन में
इन एकांत व्रणों में ||
लगता यह अविराम
वेदना, क्षण भर को विश्राम मांगती |
घोल हृदय का दर्द
प्रणति में, ऊषा मानो शाम मांगती ||
लगता मुझको इसी शाम
में, होगा स्वप्ने ! मिलन तुम्हारा |
मै नभ-पथ का मौन
बनूँगा, तुम बन जाओगी ध्रुव तारा ||
मैं अपने इस ध्रुव
तारा को, अपना ही पाथेय करूँगा |
जहाँ तुम्हारे चरण
रुकेंगे, उसको अपना ध्येय करूँगा ||
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