देखा यमराज ने महेश
का अनन्त कोप,
नष्ट हो गया समस्त
दम्भ गढ़ भारी है |
धैर्य खो गया समस्त
तन मन कांप गया,
क्रूर उर अन्तर भी
मान गया हारी है |
यमलोक हो गया
प्रचण्ड ताप से विकल,
सम्पत्ति अपार नष्ट
होने लगी सारी है |
इधर-उधर भागने लगे समस्त
दूत,
होने लगी लोक छोड़ने
की ही तैयारी है | | 93 | |
देखा यमराज ने सकल
यमलोक आज,
शूल के प्रचण्ड ताप
से है अकुला रहा |
चारों ओर चीत्कार हा
हा कर ही मचा है,
राज पाट सारा अग्नि
की चपेट आ रहा |
चित्रगुप्त जी की
बही ओर लपकी है ज्वाल,
जन्म-मृत्यु का
समस्त लेखा-जोखा जा रहा |
घूम-घूम चारों ओर
अस्त्र वह्नि-शायक सा,
सारे यमलोक मध्य
अग्नि बरसा रहा | | 94 | |
छोड़ सब आस हाथ जोड़
यमराज बोले,
भोले, शिव, शंकर,
उमेश, हर, त्राहिमाम |
आपकी न समता कोई भी
कर सकता है,
साधना में लीन रहते
हैं रहते अकाम |
ब्रह्मा, विष्णु के
ही अधरों पे बसता है सदा,
चंद्रचूड, गंगाधर
मात्र आप का ही नाम |
आप हैं कृपालु भक्त
टेर सुनते तुरंत,
करुणा के सागर हैं
आप हैं वरों के धाम | | 95 | |
आप के ही इंगित पे
चलते हैं सूर्य चन्द्र,
और सचराचर में छवि
आप की ललाम |
आप के ही शीश से
निकल गंगधार मंजु,
करती पुनीत है सदैव
वसुधा का धाम |
कालकूट पीकर बचाय
त्रयलोक नाथ,
रक्षक सभी के आप, आप
दिखते अकाम |
वरुण, सुरेश, गुरु,
शुक्र, शनि, रवि आदि,
जपते हैं आठों याम
मात्र आप का ही नाम | | 96 | |
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