Monday, 21 August 2017

यमराज से साक्षात्कार

देखा यमराज ने महेश का अनन्त कोप,
नष्ट हो गया समस्त दम्भ गढ़ भारी है |
धैर्य खो गया समस्त तन मन कांप गया,
क्रूर उर अन्तर भी मान गया हारी है |
यमलोक हो गया प्रचण्ड ताप से विकल,
सम्पत्ति अपार नष्ट होने लगी सारी है |
इधर-उधर भागने लगे समस्त दूत,
होने लगी लोक छोड़ने की ही तैयारी है | | 93 | |

देखा यमराज ने सकल यमलोक आज,
शूल के प्रचण्ड ताप से है अकुला रहा |
चारों ओर चीत्कार हा हा कर ही मचा है,
राज पाट सारा अग्नि की चपेट आ रहा |
चित्रगुप्त जी की बही ओर लपकी है ज्वाल,
जन्म-मृत्यु का समस्त लेखा-जोखा जा रहा |
घूम-घूम चारों ओर अस्त्र वह्नि-शायक सा,
सारे यमलोक मध्य अग्नि बरसा रहा | | 94 | |

छोड़ सब आस हाथ जोड़ यमराज बोले,
भोले, शिव, शंकर, उमेश, हर, त्राहिमाम |
आपकी न समता कोई भी कर सकता है,
साधना में लीन रहते हैं रहते अकाम |
ब्रह्मा, विष्णु के ही अधरों पे बसता है सदा,
चंद्रचूड, गंगाधर मात्र आप का ही नाम |
आप हैं कृपालु भक्त टेर सुनते तुरंत,
करुणा के सागर हैं आप हैं वरों के धाम | | 95 | |

आप के ही इंगित पे चलते हैं सूर्य चन्द्र,
और सचराचर में छवि आप की ललाम |
आप के ही शीश से निकल गंगधार मंजु,
करती पुनीत है सदैव वसुधा का धाम |
कालकूट पीकर बचाय त्रयलोक नाथ,
रक्षक सभी के आप, आप दिखते अकाम |
वरुण, सुरेश, गुरु, शुक्र, शनि, रवि आदि,

जपते हैं आठों याम मात्र आप का ही नाम | | 96 | | 

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