Friday, 29 April 2016

अनुसूचित जाति एवं जन जाति अत्याचार निवारण संशोधन अधिनियम 2015
की समीक्षा
निहितार्थ एवं संभावित दुष्परिणाम
      मनुवादी पार्टी का वर्णाश्रम व्यस्था में विश्वास है किन्तु वर्णाश्रम व्यस्था जाति व्यवस्था नहीं है | अछूत शब्द भारतीय संस्कृति के विरूद्ध है तथा जो लोग वर्ण व्यवस्था को और जाति व्यवस्था को भ्रमवश पर्यायवाची मानते हैं उन्हें भी यह स्वीकार करना पड़ेगा कि सबसे अधिक आलोचना का शिकार पुरुष सूक्त भी यह मानता है कि जिस विराट पुरुष के मुह से ब्राह्मण निकला, बांह से क्षत्रिय निकला, जांघ से वैश्य निकला, उसी विराट पुरुष के पैर से शूद्र उत्पन्न हुआ | स्पष्ट है कि ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य तथा शूद्र का उदगम स्थान एक है तथा वे परस्पर भाई है | 'पद्भ्याम शूद्रो अजायत' की स्वाभाविक परिणति है कि शूद्र को 'अन्त्यज' अर्थात छोटा भाई माना गया है | महर्षि दयानन्द ने उद्घोषणा की है कि 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम' अर्थात आर्य समाज का घोषित लक्ष्य है कि सारे संसार को आर्य बनाना है | अतः इसे नस्ल भेद से हम नहीं जोड़ सकते | यदि कोई काला अफ्रीकन या भारतीय अंग्रेज बनाना चाहता तो अंग्रेज उसे इसाई भले बना लेते किन्तु अंग्रेज न बनाते | अगर आर्य कोई नस्ल होती तो वह किसी को आर्य न बनाती | आर्य का अभिप्राय संस्कार से है | इसीलिए शास्त्र बचन है कि 'संस्काराद द्विज उच्यते' अर्थात संस्कार के आधार पर किसी को द्विज कहा जाता है |
      फिर भी जो वर्ण व्यवस्था की आलोचना करते हैं उनसे निवेदन है कि वर्ण व्यवस्था तथा जाति वयवस्था में वही अंतर है जो अंतर RSS और गोडसे में है - जो अंतर मौलाना मदनी तथा ISIS में है | कहीं पर dividing line thin हो सक्ती है किन्तु यह visible है तथा इसे नकारा नहीं जा सकता है | इसी लिए महात्मा गाँधी से लेकर गुरूजी गोलवलकर तक सबने वर्ण व्यवस्था की सराहना की है | यह अलग बात है कि मायावती कांग्रेस तथा भाजपा को मनुवाद की A तथा B टीम मानती है तथा गाँधी को शैतान की औलाद घोषित करती हैं |
      कांग्रेस ने Civil Rights Act पारित कराया जोकि संविधान की भावना के अनुरूप था तथा अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए तथा इसके किसी भी रूप में पालन को दण्डनीय बनाने के लिए अभिप्रेत था | किन्तु वोट बैंक की राजनीति ने इसको अव्याहारिक रूप प्रदान किया तथा यह अपने उग्रतम रूप में 2015 में पारित हुआ जिससे सामाजिक ताने बाने के ध्वस्त होने की स्थिति आ सकती है | मै इस पर कोई value judgment नहीं दे रहा वल्कि कुछ यक्ष प्रश्न प्रस्तुत कर रहा हूँ जिन पर सभी बुद्धजीवियों को सोचने की आवश्यकता है |विशेष रूप से अनुसूचित जाति एवं जन जाति के लोगों को भी इस पर गंभीरता से सोचना होगा कि कहीं इसके प्रावधानों का अनुपालन उनको समाज की मुख्य धारा से अलग थलग तो नहीं कर देगा

(1) पहला प्रश्न यह है कि burden of proof को shift कर दिया गया है तथा presumption clause जोड़ दिया गया है अर्थात अनुसूचित जाति के व्यक्ति को अब साक्ष्य देने की आवश्यक्ता नहीं रहेगी कि उसके साथ कोई अपराध हुआ है | यह 'ब्रह्म्वाक्यम  जनार्दनं' का अंग्रेजी अनुवाद है जिसका अर्थ है कि ब्राह्मण के मुह से निकला हुआ वाक्य विष्णु के मुख से निकला हुआ वाक्य है तथा उसके लिए किसी साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है तथा वह स्वयं में प्रमाण है क्योंकि ब्राह्मण के मुह से कोई झूठी बात निकल ही नहीं सकती | इसी प्रकार इस presumption clause का अर्थ है कि अनुसूचित जाति/जन जाति के मुख से जो वाक्य निकल  जाये उसकी सत्यता की समीक्षा करने का अधिकार I.O. (विवेचक) को नहीं है क्यों कि उसे अनुसूचित जाति के व्यक्ति से कोई प्रमाण मांगने का अधिकार नहीं है | जिस व्यक्ति पर आरोप लगा है यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह अपने को निर्दोष सिद्ध करे | आधुनिक jurisprudence में इस प्रकार की अवधारणा के लिए कोई स्थान नहीं है | ऐसा प्रावधान केवल दहेज़ हत्या जैसे मामलों में है जिनके व्यापक दुरूपयोग के बारे में माननीय उच्चतम न्यायालय तक को कई बार टिप्पणी करनी पड़ी है | Roman Jurisprudence के अनुसार एक व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि वह दोषसिद्ध न हो जाय किन्तु इस अधिनियम में बिना आरोप की सत्यता को परखे तथा बिना किसी साक्ष्य के मात्र आरोप के अधार पर किसी को दोषी मान लिया जाता है | क्रमशः ....

Monday, 25 April 2016

जातिगत समीकरण
संख्या का अंकगणित
हम कैसे बहुमत बनायेंगे
प्रथम चरण - एकता के स्थान पर महाभारत
अर्जुन उवाच
कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोंण च मधुसूदन |
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन ||
भगवानुवाच
अशोच्यानन्वशोचास्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ||
प्रथम चरण - जमदग्नि ब्रिगेड
उरूजे इस्लाम होता है हर कर्बला के बाद
वोट बैंक बनाने का जिन्ना/मायावती फार्मूला
कैसे एकता बनाई जाती है इसका जवाब जानना है तो प्रकृति की गोद में जाइए | गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत कब खोजा गया ? जब सेव न्यूटन के सिर पर गिरा | सेव पहले भी गिरते थे, बाद में भी गिरे होंगे ? पर बैज्ञानिक न्यूटन ने जब प्रकृति की गोद में द्रष्टि डाली, तो गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत सामने था | आर्कमिडीज का सिद्धांत कैसे खोजा गया ? जब आर्कमिडीज नंगे पानी के टब में नहा रहा था तथा पानी को विस्थापित होते देखा - प्रयोगशालाओं की तुलना में नंगी आँखों से किया हुआ observation अधिक सार्थक सिद्ध होता है | नन्दवंश का विनाश कब हुआ ? जब चाणक्य की चोटी पकड़ कर घसीटी हुई | चाणक्य के पिता आचार्य चणक की निर्मम हत्या क्रूरतम तरीके से नन्दवंश के शासन में की गई | किन्तु जैसे देश, राष्ट्र, समाज की चिंता में निमग्न राष्ट्रवादी भाजपा के उत्थान की कामना कर रहे हैं, यह जानते हुए कि योजना बद्ध ढंग से आरक्षण के असीमित विस्तार तथा क्रियान्वयन से उनके सम्वैधानिक अधिकारों को माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को संसोधित करके भाजपा छीन लेती है - उसी प्रकार यह जानते हुए कि आचार्य चणक को क्रूरतम ढंग से मारा गया है, स्वयं उनके बेटे ने आज के RSS के स्वयंसेवक की मानसिकता का निर्वाह करते हुए नन्दवंश के सामने एक Project Report पेश की कि कैसे नन्दवंश के साम्राज्य का विस्तार और व्यापक हो - कैसे नन्दवंश के शासक को सक्षम चक्रवर्ती सम्राट् बना दिया जाये | चाणक्य को यह चिंता नहीं सता रही थी कि जिस प्रकार मेरे बाप की क्रूरतम ढंग से हत्या की गई वैसे ही चक्रवर्ती सम्राट् होने पर न जाने कितने निरीह बापों और बेटों की जघन्य हत्या होगी, न जाने कितनी मुराओं का शीलभंग होगा | आज जैसे राष्ट्रवादियों को यह चिंता नहीं सता रही कि माँ दुर्गा को गन्दी गली देने वालों के विरुद्ध एक मामूली धारा की FIR तक नहीं लिखी गई और कमलेश तिवारी के ऊपर जो धाराएँ लगाई गईं वह धाराएँ क्यों नहीं लगाई जा रही हैं - यह सवाल नहीं कोई पूछ रहा कि राम के आदि पूर्वज के सम्मान की प्रतीक मनुस्मृति जलाने पर साधारण धारा तक का मुकदमा पंजीकृत नहीं हुआ तो हम किस बात के भारतीय नागरिक हैं - हमारा मान - सम्मान और नागरिकता क्या सुरक्षित हैं ? हम तकनीकी तौर पर भारत के नागरिक भले ही हों लेकिन जब माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया न्याय तक सत्ता के मठाधीशों द्वारा छीन लिया जा रहा हो, तो हमारी नागरिकता के मायने क्या हैं ? नागरिक को माननीय मुंसिफ न्यायलय तक न्याय दिलाने में सक्षम हैं तथा जब तक superior court से stay प्राप्त न हो, तब तक वह आदेश लागू रहेगा राम जन्मभूमि के मुद्दे पर कहा जाता है कि न्यायलय का फैसला मानेंगे | किन्तु आरक्षण के मुद्दे पर माननीय उच्चतम न्यालय का बार - बार दिया हुआ फैसला अटल बिहारी बाजपेई सोनिया तथा मोदी मानने को तैयार नहीं | राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है -
स्वत्व कोई छीनता हो और तू
त्याग तप से काम ले यह पाप है
पुण्य है विच्छिन्न कर देना उसे
बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है |
किन्तु हमें इसकी भी जरूरत नहीं है | हम तो वह ब्रह्मास्त्र विकसित करने जा रहे हैं कि बिना किसी हिंसा और रक्तपात का सहारा लिए हमारे डमरू की ध्वनि पर संसार नाच रहा होगा | हम बीन बजाने जा रहे हैं तथा सारे सांप नाचना चालू करेंगे | यही हाल चाणक्य के जमाने का था | अटूट राष्ट्रप्रेम में चाणक्य अपने पिता के अपमान तथा हत्या तक को भूल गए जैसे आज मोदी साहब के इस आह्वान को सुनने के बाद भी केवल कुछ आरक्षण बिरोधी समझ पाये हैं कि मोदी के उत्तर प्रदेश में विजयी होने की स्थिति में आरक्षण विरोधियों के सर्वनाश करने की मोदी की हिमाकत और भी बढ़ जाएगी | SC/ST Act को तथा आरक्षण को और भी धारदार बना दिया जायेगा | इसी प्रकार राष्ट्रप्रेम में चाणक्य अपने पिता के अपमान तक को भुला कर राष्ट्रप्रेम के उन्माद में आज के मोदी भक्तों की तरह उस समय के परिवेश में नन्दवंश के भक्त बन गए तथा अपने व्यक्तिगत परिवेश से ऊपर उठकर  RSS के एक typikal कार्यकर्ता की तरह राष्ट्रहित में चिंतन करने लगे | तंद्रा तब टूटी जब नन्दवंश की गर्जना सुनाई दी - 'यह अपने पिता की हत्या के कारण कोई षड्यंत्र रच रहा होगा | चोटी पकड़ कर घसीटकर बाहर फेंक आओ |' जब अपनी चोटी पकड़कर घसीटने का अनुभव हुआ, तब नन्दवंश के विनाश का संकल्प हुआ तथा पूरा हुआ | इसका सार यह है कि पहले परिवेश बनता है तभी एकता होती है |
            यदि congress राज्य में Backlog न बना होता, तो मायावती दलितों को न समझा पातीं कि गाँधी शैतान की औलाद थे | पहले दलित गाँधी भक्त था तथा Congress को वोट देता था | जब गाँव - गाँव परिचर्चा करके मायावती ने समझा लिया कि मुलायम सिंह तथा भाजपा से सौ गुना खतरनाक Congress है, तो Scheduled Caste Congress से इस सीमा तक विमुख हो गए कि उदित राज जी ने Congress में न जाकर भाजपा में जाना पसंद किया | जो दलित Voter BSP से छिटका भी, वह Congress में न जाकर BJP में गिरा | पहले कम लोगों को समझ में आया, धीरे - धीरे सबकी समझ में आ गया | Congress ने आरक्षण का क़ानून बनाया, किन्तु उस समय के मठाधीश सवर्ण अधिकारीयों में से अधिकांश ने यह प्रमाण पत्र जारी कर दिया कि सुपात्र दलित नहीं मिला - इस लिए सामान्य वर्ग से भरती कर ली गई | जितने लोगों को आरक्षण कोटे में नौकरी मिलनी चाहिए थी, उन्हें नहीं मिली | जगजीवन राम तथा महाबीर प्रसाद जैसे लोग नेहरू तथा इंदिरा जी के दलितोद्धार पर तालियाँ बजाते रहे तथा प्रतिवाद नहीं किया | यदि यह दशा केवल Engg. तथा Medical जैसे क्षेत्रों में होती तो समझाया जा सकता था कि योग्य अभ्यर्थी नहीं रहे होंगे किन्तु यह backlog चपरासी तक की नौकरी में आ गया | Cirtificate जारी हुए कि निरक्षर दलित तक सरकारी नौकरी नहीं करना चाहता क्योंकि उस समय चपरासी की योग्यता निरक्षर थी | जगजीवन राम तथा महावीर प्रसाद माला पहने घूमते रहे - तथा backlog बढ़ता गया | कांग्रेसी दलितों को बरगलाते थे कि 'हम भले बुरे हों लेकिन यदि हम चले गए तो BSP नहीं आ रही - यह वोटकटवा है | सत्ता में मुलायम तथा जनसंघ भाजपा जैसे लोग आयेंगे |' मुलायम की लाठी तथा भाजपा के चन्दन के डर से दलित कांग्रेस से चिपका रहा जैसे भाजपा सवर्णों को भय दिखा रही है कि भाजपा चली गई, तो कोई विकल्प नहीं है | केशवदेव मौर्या मुख्यमंत्री नहीं हुए तो मायावती और मुलायम में से कोई मुख्यमंत्री होगा | सपा, बसपा या कांग्रेस आयेंगे - जो और भी बुरे हैं - मनुवादी नहीं आने जा रही है - यह तो वोटकटवा है | कुछ समय दलित डरकर कांग्रेसी बना रहा, किन्तु धीरे - धीरे दलित की समझ में आ गया कि Congress चली जाए, भले ही सपा/भाजपा आ जायें | जब यही Certificate जारी होना है कि निरक्षर दलित भी सरकारी नौकरी नहीं चाहता तो ऐसा संरक्षक हमें नहीं चाहिए | मायावती सत्ता में नहीं आई - सत्ता में मुलायम आये किन्तु जब दलित संगठित हुआ तो जो मुलायम दलित को डरावने लगते थे, उनका उसने चित्र समाचारपत्रों में तथा टी.वी. चैनलों पर छपा देखा कि लुंगी लपेटे मान्यवर कांशीराम जी बेड पर लेटे हैं तथा उनके सिरहाने की तरफ नहीं बल्कि पैर की तरफ नेता जी मुलायम सिंह बैठे हैं | दलित का आत्मविश्वास जाग गया | वह बसपा से और चिपक गया | सपा - बसपा का मिलन हुआ - स्टेट गेस्ट हॉउस काण्ड भी हुआ | मत घबड़ाए दमन चक्र से | स्टेट गेस्ट हॉउस काण्ड के बाद ही मायावती का विकराल रूप प्रकट हुआ जिसमे उसकी वाणी में ललकार थी -
चढ़ गुंडों की छाती पर
बटन दबेगी हांथी पर |
परशुराम के नाम पर कोई आनुषंगिक संगठन (frontal organisation) बनाने की कोशिश हमने नहीं की | क्यों ? परशुराम के प्रति श्रद्धा की कमी नहीं है बल्कि -
राणा बनने की चाह नहीं
मुझमे इतनी है शक्ति कहाँ
माँ तेरी पावन पूजा में
झाला सा शीश चढ़ा पायें |
'वन - वन स्वतंत्रता दीप लिए,
रने वाला बलवान कहाँ'
वाला राणा पैदा करने वाले को पहले झाला पैदा करना पड़ता है | परशुराम हवा में नहीं पैदा होते | आज हवा में परशुराम पैदा किये जा रहे हैं - इसीलिए फरसे में धार नहीं है | परशुराम जयंती में परशुराम को माला पहनाने के लिए आरक्षण समर्थकों को निमंत्रित किया जा रहा है | जो लोग आरक्षण के लिए हाथ उठा रहे हैं - उनसे परशुराम जी को माला पहनवाई जा रही है | उनका गरिमामंडन किया जा रहा है | कहाँ से रहेगी फरसे में धार जब परशुराम के नाम पर संगठन बनने वाले, 'जय परशुराम' के नाम पर नारा लगाने वाले अपनी मुंह बोली बहन जी के दरवार में 'मैं सेवक समेत सुत नारी' के उद्गारों के साथ पेट के बल रेंगकर साष्टांग दण्डवत् की मुद्रा में 'तन - मन - धन' के साथ शरणागत हो रहे हैं | जय परशुराम का नारा लगाने वाले backlog तथा promotion में reservation के लिए संविधान में संशोधन करने वाली BJP/कांग्रस/BSP/SP को वोट दे रहे हैं | क्या आरक्षण के समर्थकों को परशुराम जयंती के मंच पर बिठाने का कोई औचित्य है | इस विषय पर मेरे विस्तृत लेख 'मधु मिश्र के नाम खुला ख़त' को पढने का कष्ट करें | परशुराम पैदा करना बच्चों का खेल नहीं | परशुराम पैदा करने के लिए जमदग्नि की आवश्यकता होती है | जमदग्नि परशुराम का पिता है | जो समाज जमदग्नि नहीं पैदा कर सकता है, वह परशुराम नहीं पैदा कर सकता | जब किसी जमदग्नि का गला कटता है, तब किसी परशुराम का फरसा उठता है तथा माँ रेनुका के छाती पीटने पर प्रलय आ जाती है | अभी पहले चरण में 'जमदग्नि ब्रिगेड' के नाम से एक अनुषांगिक संगठन खोलने की आश्यकता परिलक्षित हो रही है जिसके लिए सुपात्र व्यक्तियों को विभिन्न स्तरों पर छांटा जा रहा है | बिना 'झाला' पैदा किये कोई समाज 'राणा' नहीं पैदा कर सकता | श्याम नारायण पाण्डे ने लिखा है -
जब एक - एक जन को देखा
जननी पद पर मिटने वाला
तब कड़क - कड़क कर बोल उठा
वह वीर उठा अपना भाला |
बिना जमदग्नि को पैदा किये परशुराम की कल्पना असंभव है |
      जिस दिन जमदग्नि के आह्वान के बाद परशुराम का आह्वान किया जायेगा, उस दिन शक्ति दिखाई देगी | पहले चरण में हमें अपना घर ठीक करना होगा | आरक्षण विरोधियों को तथा SC/ST Act में कानून जो और कड़े किये गए हैं उनसे निपटना होगा तथा उनको निपटाना होगा | सरकार के खिलाफ हिंसक या अहिंसक संघर्ष तक नहीं छेड़ना चाहिए | यहाँ तक कि एक ज्ञापन तक नहीं देना चाहिए | कौन पढता है इन ज्ञापनों को ? अहिंसक संघर्ष करेंगे लाठियों से तोड़ दिए जायेंगे - जेल में सड़ जायेंगे | हिंसक संघर्ष करेंगे तो कश्मीर के उग्रवादियों से बड़ा संघर्ष नहीं कर पाएंगे ? भिंडरावाले से बड़ा संगठन नहीं बना पाएंगे | कुछ नहीं मिलेगा | धरना देना है तो अपने माँ - बाप के, मामा - फूफा के, जीजा - मौसा के, साले - साढू के, साली - सलहज के दरवाजे पर दीजिये जो किसी आरक्षण समर्थक पार्टी के सदस्य हों, जों किसी आरक्षण समर्थक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते हों, जिनकी गाड़ी में किसी आरक्षण समर्थक पार्टी का झन्डा लगा हो, जो किसी आरक्षण समर्थक प्रत्याशी को वोट देते हों | भूख - हड़ताल उनके दरवाजे करो | या तो द्रौपदी का चीरहरण को एक तथ्य के रूप में स्वीकार करो तथा अर्जुन की तरह चीखो -
गुरूनहत्वा हि महानुभावान
श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके |
हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव
भुज्जीय भोगान रुधिरप्रदिग्धान |
(अपने गुरुजनों का बध न करके भीख मांगना बेहतर है | अर्थकामना से गुरुजनों की हत्या करके खून से सने भोगों का खाना अच्छा नहीं है |)
      जो लोग कहते हैं कि हम तो भाजपा के परम्परागत वोटर रहे हैं, वे अर्जुन की वाणी सुने. तथा तत्पश्चात कृष्ण का उत्तर सुनें | अर्जुन कहता है -
कथं भीष्महं संख्ये
द्रोणं च मधुसूदन |
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि
पूजार्हावरिसूदन |
(हम भीष्म तथा द्रोण पर वाण कैसे चलाये - वे तो हमारे पूजनीय रहे हैं |)
इस पर कृष्ण का उत्तर है -
अशोच्यानन्वशोचस्तवं
प्रज्ञावादांश्च भाषसे
गतासूनगतासूश्च
नानुशोचन्ति पंडिताः |'
कलैव्यम मा स्म गमः पार्थ
नैतत्वय्युपपद्यते |
छुद्रम हृदय दौर्बल्यं
त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप |
(जिनकी कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए, उनके बारे में मत सोंचो | ज्ञानोपदेश बंद करो | नपुंसक मत बनो | दिल को छोटा मत करो | ह्रदय की दुर्बलता को छोड़ कर उठ खड़े होओ |')
      एक शक्ति के रूप में बसपा का उदय इसी फार्मूले के तहत हुआ था | बसपा के लोगों के सामने भी यही तर्क रखे जाते थे कि कांग्रेस तो ख़त्म हो जाएगी किन्तु बसपा नहीं आएगी - आयेंगे मुलायम सिंह और भाजपा | यही यथार्थ में  हुआ भी | किन्तु बसपा इतनी मजबूत बन कर उभरी कि अखिलेश सरकार में उसके लोग प्राथमिकता पा रहे हैं - मोदी सरकार में उसके लोग प्राथमिकता पा रहे हैं | सोनिया - सरकार में उसके लोग प्राथमिकता पा रहे थे | आज हर पार्टी अम्बेडकरमय हो गई है | जो लोग अम्बेडकर की निंदा करते थे आज उनके भक्त हो गए हैं | आज मोदी साहब कह रहे हैं कि यदि स्वयं अम्बेडकर साहब जन्म लेलें तथा आरक्षण को समाप्त करने की मांग करें तो भी आरक्षण समाप्त नहीं होगा | 'Worshipping False Gods' नामक पुस्तक के लेखक जिन्होंने अम्बेडकर को पानी पी पी कर कोसा था उन अरुण शूरी को भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया किन्तु दलित्ब शक्ति का उत्थान देख कर भाजपा ने u turn लिया तथा अब कहीं भाजपा के मंच पर अरुण शौरी को आमंत्रित तक नहीं किया जाता | अखिलेश सरकार में IAS/IPS की posting list मंगा लीजिये तथा उसकी तुलना मुलायम सिंह तथा मायावती सरकार में महत्वपूर्ण पद पर बैठे लोगों से कीजिये तो जितनी मात्रा में आज मायावती सरकार के चहेते स्थापित हैं उतनी मात्रा में मुलायम सरकार के प्रिय लोगों को जगह नहीं मिली है | मायावती 5 साल सरकार चला चुकी | कई बार कुर्सी पर बैठ चुकी | आगे क्या होगा प्रभु जाने | किन्तु सर्वे रिपोर्ट वाले मायावती को रेस में आगे घोषित कर रहे हैं | चौराहों पर चाय की दुकानों पर बैठ जाइए - छुटभैय्ये चर्चा करते मिल जायेंगे - मायावती आ रही है |

      मायावती इस स्थिति पर कैसे पहुंची ? उन्होंने दलितों की एकता का प्रयास न करके दलितों का महाभारत किया | प्रारंभ में वे दलितों को नहीं समझा पाई कि कांग्रेस उनकी दुश्मन कैसे है | गाँधी जी  कितने प्रेम से 'हरिजन' कहते थे दलित तर्क करता था | किन्तु आज दलित की समझ में आ गया है कि 'हरिजन' एक असंसदीय शब्द है तथा इसका अविष्कार गांधी ने दलितों का मजाक उड़ाने के लिए तथा उन्हें अपमानित करने के लिए किया तथा वह मायावती के इस उद्गार से सहमत है कि 'गाँधी शैतान की औलाद थे |' यदि ऐसा न होता तो वह मायावती को वोट क्यों देता | मायावती ने दलितों को समझाया कि जो जगजीवन राम तथा महावीर प्रसाद इस आंकड़े पर ताली बजाते हैं कि कोई निरक्षर दलित भी सरकारी नौकरियों का इच्छुक नहीं है, वह कांगेसी दलित, गाँधीवादी  दलित तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन है | बसपा बहुत कम वोट पाई -1000 - 500 तथा कहीं उससे भी कम | कई जगहों पर पर्चा भरने के लिए प्रत्याशी भी नहीं मिले | पर थोड़े से दलितों की समझ में जब आ गया कि कांग्रेस उनकी दुश्मन है, तो कांग्रेस 89 में धराशाई हो गयी - भले ही बसपा न आई हो | दलितों को एक झटका लगा - मुलायम सिंह आ गए | पर कांग्रेस के धराशायी होते ही अवसरवादी तत्व भाग गए तथा विकल्प के रूप में उसकी गणना बंद हो गई तथा धीरे - धीरे और जर्जर होती चली गई | बिना कच्चे मकान को गिराए हुए उसी जमीन पर पक्का मकान नहीं बन सकता - चाहे हमें उस कच्चे मकान से कितना ही प्यार क्यों न हो | बिना भीष्म और द्रोणाचार्य को रास्ते से हटाये हुए हम दुर्योधन की जांघ नहीं तोड़ सकते तथा न ही हम दुःशासन की छाती का लहू पी सकते हैं | यही हाल आज हमारा है | मनुवादी पार्टी वोटकटवा नहीं है | यह आरक्षण विरोधियों का उस प्रकृति का संगठन है, जिस प्रकृति का संगठन दलितों में 89 में बसपा थी | 2017 में हम उस स्थिति से मजबूत स्थिति में होंगे जिस स्थिति में 1989 में बसपा थी | बसपा दिख नहीं रही थी, गपशप में थी, अधिकांश सीटों पर जमानत नहीं बचा पाई, पर कांग्रेस को गायब कर दिया | सारा दलित बसपा के साथ नहीं था | जितना दलित प्रारंभ में बसपा के साथ था, उतना या उससे अधिक आरक्षण विरोधी हमारे साथ है | अगर हम 5% आरक्षण विरोधियों का भी brainwash कर पाए कि 'आरक्षण मुक्त भारत' की पहली सीढ़ी है 'भाजपा मुक्त भारत/कांग्रेस मुक्त भारत/सपा/बसपा के सवर्णों से मुक्त भारत' तो भाजपा/कांग्रेस/सपा/बसपा के सवर्णों की वही स्थिति होगी जो 1989 में कांग्रेस की हुई | यह कल्पना नहीं है | यह हम बिहार में प्रदर्शित कर चुके हैं | हम इसे UP में प्रदर्शित कर लेंगे | विहार में जब अधिकांश सर्वे कांटे की टक्कर मान रहे थे तब हमने चुनाव परिणाम आने के पहले इसी फेसबुक पर घोषणा की थी कि भाजपा का बिहार में सफाया हो रहा है तथा हमारी भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई | बिहार में केवल मुख (तिलक) का निर्माण हो पाया था आज काफी हद तक बाहें (तलवार) बन चुकी है तथा 2017 के चुनाव के पहले हमारी बाहें मुख की तरह पूर्ण विकसित हो चुकी होंगी | हमारा प्रयास है कि तब तक जांघ (तराजू) का निर्माण भी पूर्ण हो जायेगा किन्तु हम बडबोलापन नहीं करना चाहते | केवल मुख/तिलक के बूते हम UP में बिहार को दुहरा लेंगे तथा जैसा संभावित है बाहों (तलवार) के विकसित होने की स्थिति में हम उससे भी वीभत्स स्थिति पैदा कर लेगे | जांघो/तराजू | का विकास कर लेने पर तो चुनाव परिणाम देखने की आवश्यकता ही नहीं होगी |यह शंका सही है कि हम सत्ता में नहीं आयेंगे तथा मनुवाद को ताल ठोकने वाले सत्ता में होंगे किन्तु यह वही स्थिति होगी जो 1989 में बसपा ने बना डाली थी | कांग्रेस का विकराल साम्राज्य ढहा पड़ा था | जिन अवसरवादी सवर्णों को भाजपा/कांग्रस/बसपा/सपा ने संसद/विधानसभा का टिकट दे रक्खा है वे थोक के भाव भाग रहे होंगे | बिहार में चुनाव का परिणाम आते ही श्री A. K. Singh श्री शत्रुघ्न सिन्हा तथा कीर्ति झा आजाद जैसे तमाम लोगों की वाणी में दम आगया | UP के पतन के बाद ये स्वर और मुखर होंगे तथा इसके बाद जब 2017(2) में मेयर तथा सभासद के चुनाव में जब शहरी छेत्र में भी भाजपा/कांग्रस/सपा/बसपा/ के सवर्ण निपट चुके होंगे उस समय नेता कहीं चले जायें आरक्षण विरोधियों का दो तिहाई हिस्सा मनुवादी पार्टी की ONLINE सदस्यता लेने के लिए किसी न किसी Cyber कैफे पर खड़ा होगा | कैसे जिन्ना ने मुस्लिम वोट बैंक को आजादी के पहले कब्ज़ा किया था तथा कैसे मुलायम और मायावती ने आजादी के बाद अपना वोट बैंक बनाया इसकी समीक्षा करते हुए हम अगले लेख में वर्णन करेंगे | 2019 के चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला होगा - सपा बसपा तथा मनुवादी पार्टी में | 2022 के चुनाव में हम कैसे अपने पैरों का भी विकास कर लेंगे तथा कैसे विराट पुरूष अपना पूर्ण स्वरुप ग्रहण कर लेगा तथा हम पूर्ण बहुमत बना लेंगे - बिना किसी धरना के बिना किसी प्रदर्शन के बिना किसी ज्ञापन के बिना किसी हिंसा के | हिंसा तथा आन्दोलन का त्याग करके गप शप की मनुवादी शैली को अपनाने के लिए गुजरात के पटेलों तथा हरियाणा के जाटों को ब्रेनवाश किया जा रहा है | अगले दो तीन लेखो में इस पर विस्तृत चर्चा होगी तथा अंतिम क़िस्त में हम इस पर चर्चा करेंगे कि कैसे हम समस्त पार्टियों को अपने विकराल रूप में समाहित कर लेंगे | क्रमशः...

Monday, 18 April 2016

भाग - 3
मनुवादी पार्टी वोटकटवा पार्टी नहीं है
मनुवादी पार्टी का मिशन 2017,
2017 (2), 2019, 2020 तथा 2022
कैसे मनुवादी पार्टी 2022 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयेगी
कौन नेता होगा, कौन कार्यकर्त्ता होगा,
इटावा का बलराम यादव फार्मूला
क्यों V.I.Ps पार्टी नहीं चला पाते हैं ?
'शैल मूल जिन्ह सरितन्हि नाहीं'
अब हम इस प्रश्न पर आते हैं कि क्यों मायावती और मुलायम नहीं सूखे तथा क्यों उनसे बड़ी हस्तियाँ सूख गईं ? उत्तर - 'शैल मूल जिन्ह सरितन्हि नाहीं' | मुलायम के पीछे लोहिया, आचार्य नारेंद्र्देव का जीवन दर्शन था, जो पूर्व में देश विदेश के कई socialist thinkers से अनुप्राणित था | मायावती के पास अम्बेडकर का जीवन - दर्शन था, जिनके पीछे बौद्ध दर्शन था | कोई मायावती तथा मुलायम की कमियां गिना सकता है, किन्तु इन distortions के बावजूद उनका जो जीवन - दर्शन था, वह उनके लिए डूबते को तिनके का सहारा था | जीवन - दर्शन किसी को 'विप्र' बनाता है तथा 'तप - बल बिप्र  सदा बरियारा' | तपस्या के बल पर विप्र बलवान होता है | राजनीति में तपस्या है - हार के बावजूद डटे रहना | हर मनुष्य तत्काल हल चाहता है | व्याई हुई भैंस को सभी पसंद करते हैं परन्तु पड़िया खरीद कर उसे भैस बनाना सबके बस की बात नहीं है | बछिया पालने वालों को प्रारम्भ में केवल पंच्चगव्य के लिए गौमूत्र के दर्शन भले ही हों - गौदुग्ध तो गाय के व्याने पर ही मिलेगा | यह तपस्या वही कर पाता है, जिसके पास जीवन - दर्शन होता है | साथ ही जीवन - दर्शन वाले व्यक्ति के पास जो Cadres होते हैं, उनके पास विकल्प सीमित होते हैं | भौकाली व्यक्ति पार्टी क्यों नही चला पाते ? शाखा के बाद साधारण परिवेश में किस तरह अटल जी/नाना जी देशमुख लोगों के दरवाजे पर जा कर सो जाया करते थे | जनसंघ की बैठकों में चना - चबैना चलता था, फाइव स्टार होटलों में नहीं होती थी | फाइव स्टार बैठकों में आयोजक स्तरीय व्यक्तियों को बुलाने की कोशिश करता है तथा उसको यह चिन्ता भी रहती है कि भीड़ exceed न करे | यदि 1000 लोगों की capacity का hall बुक है, तो 10000 लोगों को आने को नहीं कहा जा सकता | यदि 100 लोगों की capacity का hall है तो 500 लोगों को at random नहीं बुलाया जा सकता | फिर वहां पर यह भी होता है कि यदि ज्यादा लोग आ गये, तो कहाँ बैठेंगे ? उनको चाय, नाश्ता, भोजन कैसे मिलेगा ? इसके अलावा सीमित निमंत्रण में लोग एक दुसरे का परिचय जानते हैं - रिक्शे वाले, ठेले वाले, चाय बेचने वाले, मजदूर, भिखारी ट्यूशन पढ़ाने वाले, कथावाचक सम्मेलनों में बुलाये नहीं जाते |
तुम तो स्वागत कक्षों में
बन पाहुन आये थे
इसीलिए मन के मोहक
मेहमान न बन पाए |
हर समाज में गरीब लोग हैं | बड़े - बड़े दिग्गज जो पार्टी खोले, उनके सामने मीटिंग की परिचर्चा या कितने लोग आये - लक्ष्य नहीं था | कौन - कौन प्रतिष्ठित लोग इकठ्ठा हुए, एक get - together at - home प्रकृति का हो गया | फिर जब सीमित लोगों को invite किया जायेगा तो वे सीमित लोग अपने - अपने क्षेत्र के कुछ चर्चित व्यक्तित्व तो होते ही हैं | वे सोंचते हैं कि हमारे जाने से आयोजक का भाव बढ़ जायेगा - हमारी उपस्थिति को वह cash कर रहा है - पद स्वयं ले रहा है, स्वयं बोल रहा है तथा हमारे लिए मात्र एक डिनर या लंच या नाश्ते के एवज में स्वयं को गरिमामंडित कर रहा है तथा हमें बेवकूफ बना रहा है | और तो और हमें तो बोलने के लिए आमंत्रित तक नहीं किया जायेगा | हमारा परिचय तक एक वाक्य में कोई मंच पर नहीं देगा | परिचय तो छोड़िये, वक्ताओं के संबोधन में कहीं मेरा नाम तक नहीं होगा | 'भाइयों और बहनों' मात्र में मुझे निपटा दिया जायेगा | बिना किसी identity के हम दूसरे को VIP बनावें - हमें इतना भी अवसर न मिले कि हम किसी को माला पहना सकें तथा फोटो खिंचा सके (खुद माला पहनना तो दूर) - ऐसे functions में कौन जायेगा ? मैंने 99% लखनऊ, दिल्ली, बाम्बे, इलाहाबाद, बनारस में आयोजित functions में देखा है कि India स्तर की हस्तियों के सम्मान में आयोजित functions में - 100 लोग तक नहीं दिखे हैं | आमंत्रित अथिति पचास लोगों से कहेगा कि -
      'अमुक आयोजन में बुलाया गया है, मुझसे बड़े अनुरोधपूर्वक आयोजन में आने को कहा है |' किन्तु ऐन मौके पर वह गायब हो जायेगा कि बहुत धूप थी ठण्ड थी या पानी बरस रहा था - तबीयत ख़राब थी - बुढ़ापा आ गया है - घर में कोई बीमार पड़ गया - एक दुसरे function में चले जाना पड़ा जो अधिक महत्वपूर्ण था | यही महत्त्वपूर्ण लोग बाद में आलोचना करते हैं कि दो टेक का आयोजन था भूँकने के लिए पर्याप्त संख्या में कुत्ते तक नहीं मिले | जो लोग आते भी हैं, वे कवि सम्मेलन के कवियों का माहौल पैदा कर देते हैं | आप पूछेंगे कि कवियों का माहौल क्या है | कविसम्मेलन में किंवदन्ती है कि कवि की कविता को आखिर में पढ़वाओ तो चाहे घर में किसी के प्राण छूट रहे हों - वह हिलेगा नहीं | यदि कहो भी कि यदि कोई जल्दी हो, तो पहले पढवा दे, तो कविवर बड़े इतमिनान से उत्तर देंगे कि 'कोई जल्दी नहीं है | अपने हिसाब से आयोजित करें |' कवि जी को जल्दी इसलिए नहीं है कि जो जितना ही वरिष्ठ माना जाता है, परम्परा है कि उसकी कविता उतने ही बाद में पढवाई जाती है | उसे कोई जल्दी नहीं है | लेकिन एक बार किसी कवि का कविता - पाठ करवा दें, फिर उसके सामने 1000 समस्याएं आ जाएँगी | एक समस्या बताने पर यदि आयोजक ने बिनम्रतापूर्वक अनुरोध रूकने का कर दिया तथा जाने की अनुमति नहीं दी तो 10 मिनट वाद उससे गंभीर दूसरी तथा अगले 5 मिनट बाद निहायत गंभीर तीसरी समस्या आ जाएगी, जिसके बाद आयोजक में जरा भी लाज शर्म  बाक़ी होगी, तो अनुमति दे ही देगा | फिर भी यदि आयोजक नहीं पसीजे तो चौथी बार चुपके से वह बाथरूम जाने के बहाने उठेगा तथा ऐसा अद्रश्य होगा कि ढूंढें नहीं मिलेगा | कविता पढ़ लेने के बाद उसका मुह लटक जायेगा कि उसे पहले दौर में क्यों पढवा दिया गया - क्या लोग उसकी गिनती वरिष्ठों में नहीं कर रहे हैं ? इस अपमान बोध के बाद कवि होने के बावजूद भी उसे किसी भी रस की कविता में आनन्द की अनुभूति नहीं होगी | उसका चित्त उद्दिग्न होगा - वह जागकर रुआंसा होकर सो जायेगा तथा सामान्य होने में कुछ दिन लग जायेंगे | एक कहावत है कि एक कविसम्मेलन में जब अध्यक्षीय भाषण तथा कविता हो रही थी, तो केवल एक ही व्यक्ति कमरे में रह गया तथा बाकी जा चुके थे | अध्यक्ष महोदय धन्य हो गए | बोले 'तुम्ही सच्चे रसिक हो |' उसने उत्तर दिया है कि उसे धन्यवाद ज्ञापन करने के लिए छोड़ दिया गया है तथा माइक भी जमा कराना है तथा कमरे में चाभी बंद कर काउन्टर पर वापस करनी है | यही हाल VIP माहौल में साज धाज से की हुई राजनैतिक बैठकों की होती है | पूर्व में वर्णित कारणों से
(1) स्टैण्डर्ड आयोजनों में असीमित संख्या में लोगों से आने को नही कहा जा सकता क्योंकि कि hall की Capacity, नाश्ते तथा भोजन की capicity को देखते हुए किसी को बुलाना पड़ेगा |
(2) जो बुलाये गए तो उन्हें पहली कुढ़न होती है कि वे किसी पद पर नहीं हैं | खाम - खां में है |
      दूसरी कुढ़न यह होती है कि न पद सही, तो कम से कम उन्हें बोलने का मौका तक नहीं दिया गया | तीसरी कुढ़न यह कि उन्हें फूल माला पहनाने तक का दायित्व नहीं सौंपा गया | चौथी कुढ़न यह कि 'भाइयों और बहनों' के सामूहिक संबोधन के अलावा किसी वक्ता ने उनका नामोल्लेख तक नहीं किया |
(3) इतनी बाधाएं अगर पार भी कर गए, जो जिसे पहले बोलने का अवसर दे दिया गया, वह अपनी तौहीन समझता है | तथा बोलने की औपचारिकता पूरी करने के तुरन्त बाद से वह इस भवबंधन से मुक्ति के लिए प्रयासरत हो जाता है |
      मनुवादी पार्टी के सामने यह समस्या नहीं है | हमारे शैल मूल 'करपात्री जी महराज' है | मनुस्मृति युग से लेकर आज तक के सारे सन्त, मनीषी, धर्मग्रंथ हमारे शैल मूल हैं | विचारधारा थकने नहीं देती, निराश नहीं होने देती, हताश नहीं होने देती, पश्चाताप नहीं करने देती है | आखिर क्या कारण है कि अंगुलिमाल का ह्रदय - परिवर्तन बुद्ध ने कर दिया, किन्तु गोडसे का ह्रदय - परिवर्तन गांधी या नेहरू नहीं कर पाये | फांसी के समय तक उसने पश्चाताप नहीं किया | Court में 96 पेज का ब्यान दिया कि उसने गाँधी को क्यों मारा ? कारण स्पस्ट है कि गोडसे का मन - मस्तिस्क निम्न पंक्तियों से अनुप्राणित था, जिन्हें वह बार - बार गाता था -
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोअहम
महामंगले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पत्त्वेष कायो नमस्ते नमस्ते
यह प्रश्न बार - बार उठाया जाता है कि गोडसे का संबंध RSS से था या नहीं ? मैं दिग्विजय सिंह या राहुल गाँधी की तरह किसी विवाद को जन्म नहीं देना चाहता, किन्तु मेरा अपना अभिमत है कि यदि अटलजी या अडवाणी से संघ का उस प्रकृति का रिश्ता था जो अर्जुन का दद्रोणाचार्य से था, तो नाथूराम गोंडसे का भी संघ से कम - से - कम उतना रिश्ता तो था ही जितना एकलव्य का गुरु द्रोणाचार्य से था | गोंडसे संघ परिवार का एकलव्य था | मात्र पैसे के लिए कोई व्यक्ति ISIS के आत्मघाती दस्ते का सदस्य नही बनेगा | उसे यह विश्वास होता है कि मौलाना मदनी के पांचो वक्त नमाज पढने के बावजूद बहिश्त के दरवाजे को खोलना पड़ेगा किन्तु जब अस्लामा इकबाल के शब्दों में 'किसने अजाँ दी यूरोप की कलीसाओं में' पैटर्न वाले जब क़यामत के दिन अपना फैसला सुनने पहुंचेगे तो -
यह सोच फ़रिश्ते न रोकेंगे
दीवानों से झगडा कौन करे
अल्लाह न परदे में होगा
मस्तानों से पर्दा कौन करे |
अल्लाह से डरें मदनी और ओवैसी तथा हिन्दुस्तान के उलेमा | अलकायदा या ISIS का योद्धा अल्लामा इकबाल के शब्दों में अल्लाह से पूछ बैठेगा -
हमसे पहले भी
लेता था कोई नाम तेरा
कुव्व्ते - बाजुए मुस्लिम
ने किया काम तेरा
      इस्लाम प्यार से फैला या तलवार के जोर पर - इस पर मौलाना मदनी क्या कहते हैं, इससे उसका कोई मतलब नहीं | उसे फख्र है कि -
'जेरे खंजर भी ये
पैगाम सुनाया हमने |'
इसी तरह आदरणीय भागवत जी संघसाहित्य की क्या व्याख्या करते हैं वे जानें किन्तु गोडसे अपनी स्वयं की निगाहों में अपराधी नहीं था | उसका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं था | कोई लेन - देन का झगडा नहीं था |
      जिस दिन गोडसे फांसी के तख़्त पर चढ़ा होगा, उस दिन RSS के हर स्वयं सेवक की आँखे नम हो गई होंगी ठीक वैसे ही जैसे ISIS की ओवैसी साहब कितनी भी निंदा करें किन्तु एक सवाल का जवाब दे दें - जो कह दें - वही सही मान लूँगा - क्या France में पत्रकारों पर जानलेवा हमले के बाद जब दुनिया रो रही थी, तो उनके (ओवैसी) मन में यह ख्याल न आया होगा कि "ISIS ने भले ही गलत किया हो, किन्तु 'हुजूरे - दो - आलम' का कार्टून बनाने वाले काबिले - कत्ल तो थे ही |" यही ISIS की ताकत है, ये बात मौलाना मदनी तथा उस हर उलेमा के मन में आई होगी - जो ISIS की निंदा करता है | गोंडसे हिंदुत्व का ISIS है | जब कोई सच्चिदानन्द साक्षी गोडसे के बारे में कुछ बोलता है तो भाजपा के 90% सांसदों की सहानुभूति साक्षी के साथ होती है - साक्षी की class लेने वाले मोदी या अमितशाह के साथ नहीं | RSS के तो 99.9% स्वयंसेवक निःसंदेह इस मुद्दे पर साक्षी के साथ सहानुभूति रखते हैं |
      मनुवादी पार्टी का यही शैल - मूल है | मनुवादी पार्टी के कार्यकर्ता में तथा भाजपा के कार्यकर्ता या RSS के स्वयंसेवक में वही अंतर है जो परमपूजनीय गुरूजी गोलवलकर तथा अनन्त श्री विभूषित करपात्री जी महराज में था | संवैधानिक दायरे में रहकर मनुस्मृति के सिद्धान्तों को लागू करना हमारा घोषित उद्देश्य है | जब खुदीराम बोस फांसी के तख्ते पर चढ़ा था, तो उसके हाथ में गीता थी, रोटी का टुकड़ा नहीं था | हमारा एक mission है | हम थकेंगे नहीं, रुकेगें नहीं |
बुद्ध भी अंगुलीमाल का ह्रदय परिवर्तन कर ले गए, किन्तु उनका मुकाबला यदि महर्षि पतंजलि के शिष्य पुष्यमित्र शुंग से हुआ होता, तो उसका ह्रदय परिवर्तन न होता, भले ही नाथूराम गोडसे की तरह वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता | indoctrinated कार्यकर्ताओं की तोड़फोड़ संभव नहीं होती |
      इसलिए मनुवादी पार्टी चलती रहेगी | जिस तरह शुंगवंश से लेकर 1947 तक सारे दमनचक्रों को झेलने के बावजूद बौद्धों का पुनः उभार बोधिसत्व के अवतार डा. अम्बेडकर के रूप में हुआ, उसी प्रकार 1947 से 2016 = लगभग 70 वर्ष का झटका झेलने के बाद यह सोचना कि मनुवाद की कमर टूट चुकी होगी, मात्र प्रलाप है |
      इसके अलावा हमारी पार्टी में जो व्यक्ति कोई मीटिंग आयोजित करता है, वह उसका व्यय स्वयं उठाता है | पेड़ के नीचे या झोपड़ी में की हुई बैठकों में भी एक - से - एक दिग्गज लोग शामिल होते रहे हैं तथा जमीन पर बैठकर बैठकें हुई हैं - हो रही हैं | Five star hotel में बैठक यदि कोई आयोजित करे या guest house में तो वह जाने | पार्टी की ओर से बैठकों का आयोजन नहीं होता | इसीलिए Congress तक के सामने कभी - कभी funds की crisis आ जाती है, किन्तु हमारे सामने यह crisis नहीं आती | यदि आयोजक के पास पैसा नहीं है अथवा है लेकिन वह खर्च नहीं करना चाहता, तो लोग अपने खर्चे से दुकान पर खा पी लेंगे - हमारी बैठकों का नियमित क्रम कभी टूटता नहीं है | इसलिये indoctrinated लोगों की संस्था के लिए कार्यकर्ताओं की जीवन शक्ति चाहिए, funds नहीं |
      हमारी जड़ें शास्त्रों में हैं - इस विश्लेषण के बाद हम अगले अंक में दिखायेंगे कि कैसे vote bank को बनाया जाता है -

      आगे के अंगों में आएगा - वैसे हम majority vote bank बिना compromise/appeasement के बना लेंगे |

Friday, 15 April 2016

मनुवादी पार्टी ही क्यों ? -
मधु मिश्र के नाम खुला ख़त भाग - 2
जानि गरल जे संग्रह करहीं |
कहहु उमा ते कस नहिं मरहीं ||

'बीती ताहि बिसारि दे,
आगे की सुधि लेय'
जो बीत गई सो बीत गई | अब आगे क्या फैसला है ? अब आप को कोई दूसरी पार्टी नहीं लेगी और लेगी तो मीडिया ट्रायल होगा तथा अपनी फजीहत कराएगी | 'इस अंजुमन में आप को आना है बार - बार' | इतने कड़े बयान दे अब आप के लिए कहीं जगह नहीं बची है |
'जा पर विपदा पड़त है, सोई आवत एहि देश |' आप के पास मनुवादी पार्टी के अलावा कोई ठौर नहीं बचा है मगर हम भी आप को बिना शर्त नहीं ले पाएंगे | यदि आप यह वचन दे सकें -
      (1) कि आप दलितों को सवर्णों के पतन का जिम्मेदार नहीं मानेंगी | आप जैसे लोग सवर्णों के पतन के जिम्मेदार हैं और इसके लिए मानसिक प्रायश्चित करेंगी |
      (2) आगे यह सुनिश्चित करेंगी कि कोई भी पार्टी जो आरक्षण की समर्थक है, उसका प्रचार नहीं करेंगी |
      (3) आप इस बात पर मनन करेंगी तथा घोषणा करेंगी कि आपके और आपके परिवार के जूते पोछने की स्थिति में आने के लिए संविधान जिम्मेदार नहीं है, बल्कि संविधान के प्रावधानों और उनके अनुरूप माननीय उच्चतम नयायालय द्वारा पारित निर्णयों को निरस्त करने के लिए किये गए संशोधन जिम्मेदार हैं |
      (4) आप इस बात की घोषणा करेंगी कि सवर्णों की दुर्दशा के दोषी अम्बेडकर साहब नहीं हैं, बल्कि नेहरू, विश्वनाथ प्रताप सिंह, अटल तथा मोदी हैं |

      हम आपको विवश नहीं कर रहे हैं | केवल एक बात ध्यान रखना होगा कि blasphemy तथा किसी वर्ग विशेष से घ्रणा मनुवाद में नहीं है | गीता के उपदेश को आत्मसात कीजिए कि दुर्योधन की जांघ को तोड़ने तथा दुःशासन की छाती का लहू पीने के पहले भीष्म, द्रोण, तथा कर्ण को रास्ते से हटाना होगा | अभी तो कोई दुर्योधन तथा दुःशासन हमारी प्रतिष्ठा, गरिमा, मर्यादा तथा जीविका की द्रौपदी का चीरहरण करने की स्थिति में नहीं है, इसीलिए नाममात्र की हिंसा या उत्तेजना की आवश्यकता नहीं है | अभी जुआ चालू है, ख़त्म नहीं हुआ | अभी पासा फेंकने वाले युधिष्ठिर के हाथों को थाम लिया जाय Negative Voting करके (जैसा बिहार में हुआ) तो हमारी जीविका, प्रतिष्ठा, मर्यादा, गरिमा की द्रौपदी की लज्जा की रक्षा के लिए इतना ही प्रयाप्त है | यदि U.P. elections में आप जैसे लोग यह प्रतिज्ञा कर लें कि चाहे दलित, पिछड़ा या मुस्लिम भले जीत जाये, पर आरक्षण का समर्थन करने वाली पार्टी के टिकट पर कोई आरक्षण विरोधी मंचों पर माला पहनने वाला न जीतने पायें - ब्राह्मण सभाओं, क्षत्रिय सभाओं, वैश्यसम्मेलनों को संबोधित करने वाला कोई व्यक्तित्व यदि आरक्षण समर्थक पार्टी का प्रत्याशी है, तो उसे किसी भी कीमत पर हरा दिया जाय - तो कम से कम आरक्षण विरोधियों में एकता आ जायेगी - उन्हें कोई टिकट नहीं देगा | सवर्ण सभाओं तथा आरक्षण विरोध के मंचों पर माला पहनने वालों को तब वैसे ही मनुवादी पार्टी का प्रत्याशी बनने के लिए विवश होना पड़ेगा जैसे इटावा के बलराम यादव को मुलायम सिंह यादव के टिकट पर लड़ना पड़ा था | हमें आशा है हम 2019 तक इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे - काफी हद तक 2017 तक ही | ऐसा होने पर जिन दिग्गजों ने आप को पार्टी से निकाला है, उन सारे दिग्गजों को मनुवादी पार्टी आप के आगे नाक रगड़ने को मजबूर कर देगी | आरक्षण विरोधी अगर ठान लें कि कम से कम उनका कोई रिश्तेदार या परिचित या मित्र किसी आरक्षण समर्थक पार्टी के टिकट पर नहीं जीतेगा तो जिस तरह से सत्रुहन सिन्हा सांसद श्री सिंह जो पूर्व में गृह सचिव थे तथा श्री कीर्ति आजाद विहार में प्रलाप कर रहे हैं वैसा ही प्रलाप श्री कलराज मिश्र श्री राजनाथ सिंह तथा श्री महेश शर्मा करने लगेंगे | अगर आप सिराथू विधान सभा में जो कौशाम्बी जनपद में है केवल एक महीने घूम कर हर गाँव में केवल दो बूँद आँसू बहा दें तो केशव मौर्य जी जो प्रदेश अध्यक्ष हैं लड़ाई के बहार हो जायेंगे तथा दुबारा अगर सक्रिय राजनीति में उतरने की सोचे तो उन्हें वैसे ही कोई मौका नहीं देगा जैसे बड़े - बड़े दिग्गजों विनय कटियार ओमप्रकाश सिंह प्रेमलता कटियार आदि को UP में दुबारा सांसद का टिकट नहीं मिला तथा जिस प्रकार आदरणीय किरण वेदी को दिल्ली में दुबारा मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर कभी भाजपा चुनाव लड़ने की गलती नहीं करेगी |

Thursday, 14 April 2016

भाग - 2
मनुवादी पार्टी वोटकटवा पार्टी नहीं है
मनुवादी पार्टी का मिशन 2017,
2017 (2), 2019, 2020 तथा 2022
कैसे मनुवादी पार्टी 2022 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयेगी
कौन नेता होगा, कौन कार्यकर्त्ता होगा,
इटावा का बलराम यादव फार्मूला
क्यों V.I.Ps पार्टी नहीं चला पाते हैं ?
'शैल मूल जिन्ह सरितन्हि नाहीं'
      इसी तरह मायावती अपने fundamentals से चिपकी रहीं | चाहें कोई उन्हें दौलत की बेटी कहे या कोई और गंदा शब्द दे, किन्तु दलित जानता है कि यह मायावती ही हैं  जिसने 90% सवर्ण तथा पिछड़े दिग्गजों को चरणचुम्बन करने के लिए विवश कर दिया - उनके सारे पापों को उसे भूलना पड़ता है | मायावती ने समर्थन दिया नहीं, लिया | सरकार चली गई, पर समर्थन देने वालों के हांथो की कठपुतली नहीं बनी | उनके सारे पापों को भूलना दलित समाज की मजबूरी है | यदि मायावती के हजार वोट पाने के बाद भी पार्टी खड़ी हो गई और 0 सीट 2014 में पाने पर भी 2017 में चुनाव में वह race में आ गई तो 'शैल मूल' के कारण क्योंकि मायावती के शैल 'अम्बेडकर' थे तथा अम्बेडकर के शैल थे 'गौतम बुद्ध' | मायावती की पार्टी कभी नई नहीं थी | आज मायावती की पार्टी समाप्त हो जाय यदि दलितों का (1) दमन तथा (2) तुष्टीकरण समाप्त हो जाये | या तो रोहित सही था या गलत | यदि सही था तो जो उसके साथ अत्याचार के लिए उत्तरदायी थे, उन पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए थी | यदि रोहित गलत था, तो उसके सपोर्ट करने वालों पर कार्यवाही होनी चाहिए थी | आज तक सरकार यह तय नहीं कर पाई - कि वह सही था या गलत | उसके साथियों का expulsion क्यों वापस लिया गया, यदि वह गलत था | यदि सही था, तो दोषियों पर कार्यवाही क्यों नहीं हुई ? या तो यह दलितों का दमन है या तुष्टीकरण | दमन और तुष्टीकरण दोनों खतरनाक हैं | रोहित के अपराध (यदि कोई थे) तो उन्हें उजागर करना चाहिए था | किन्तु जब इस पर सर्वसम्मति है कि रोहित की माँ दलित थी तथा समाज का यह हाल सबको मालूम है कि दलित माँ के अन्तर्जातीय बच्चों को सामान्यतया पितृपक्ष के लोग उपेक्षित करते हैं, तो आखिर स्मृति ईरानी को यह मुद्दा बनाने की आवश्यकता क्या थी कि रोहित दलित नहीं था | फिर इस पर emphasize करने की क्या आवश्यकता थी कि रोहित मामले की जाँच में दलित अधिकारी सम्मिलित था | क्या दलित यदि कोई अपराध करेगा, तो उसकी विवेचना दलित s.o. ही करेगा ? दमन और तुष्टीकरण दोनों को यदि शासन छोड़ दे, तो मायावती की प्रासंगिकता स्वतः समाप्त हो जाएगी |
      इसी प्रकार समाजवादी पार्टी नेहरू के पिछड़ों पर ढाये गये अत्त्याचारों से पनपी | आजादी के पहले यह व्यवस्था थी कि सवर्ण प्रथम सोपान पर था, पिछड़ा दूसरे सोपान पर तथा अनुसूचित जाति/जनजाति का व्यक्ति तीसरे सोपान पर | आरक्षण 10 साल के लिए अम्बेडकर साहब ने लिखा था अर्थात - 1950 + 10 =1960 के बाद आरक्षण 0% हो जाना चाहिए था | किन्तु नेहरू की तुष्टीकरण की नीति के चलते आरक्षण की अवधि को संविधान का संशोधन कर बढ़ा दिया गया | परिणाम यह हुआ कि यदि | IAS/IPS पिछड़ी जाति का था तो 5 अनुसूचित वर्ग के | उस असंतोष को भुनाने के लिए लोहिया ने 82% की लड़ाई पर जोर दिया | किन्तु अनुसूचित जाति के लोगों ने लोहिया का साथ इस लिए नहीं दिया कि उन्हें पहले ही आरक्षण मिल रहा था तथा उन्हें यह प्रसन्नता थी कि वे कम से कम पिछड़ों से आगे निकल जायेंगे | इस कुण्ठा (frustration) ने समाजवाद को धार दी तथा चरण सिंह, रामनरेश यादव, कर्पूरी ठाकुर, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव आदि बिभूतियों का आविर्भाव हुआ | V.P. Singh ने देवी लाल के दांव को काटने के चक्कर में मण्डल कमीशन को कैसे लागू किया तथा कैसे वह कमण्डल वालों के छद्मयुद्ध के शिकार हुए, इसे विश्व जनता है | कांग्रेस के राज्य में VP Singh के युग में किस तरह थोक के भाव पिछड़ों के encounter हुए तथा किस तरह 23 दलितों की हत्या करने वालों को राजकीय अतिथि की तरह बिना 1 डंडा मारे जेल भेज दिए गए - इसे ज़माने ने देखा तथा जैसा कि राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है -
"जिस दिन रह जाता क्रोध मौन
वह समझो मेरी जन्म लगन"
      इसके बाद तुष्टीकरण का दौर चला | अटल जी के युग में सवर्णों पर जो जुल्म हुए, वह नेहरू युग से कई गुना भीषण थे | कांग्रेस ने तो केवल आरक्षण दिया था | अटल जी ने बैकलाग तथा प्रमोशन में रिजर्वेशन ला दिया जो कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को invalidate करने के लिए संविधान में संशोधन करके लाया गया | कांग्रेस सवर्ण रुपी पेड़ की डालियों को काट कर सवर्णों को हीन बना रही थी | किन्तु अटल जी ने सवर्ण रुपी बृक्ष का जड़ से सफाया कर दिया | यह अटल जी के हांथों संविधान की हत्या थी - इसका प्रमाण यह है स्वयं माननीय उच्चतम न्यायलय ने लम्बी लड़ाई के बाद इसे असंबैधानिक घोषित कर दिया | मोदी जी के सत्ता में आने के बाद बिहार में घोषणा की गई कि किसी भी स्थिति में कभी भी आरक्षण पर पुनर्विचार नहीं किया जायेगा | परिणाम सबके सामने था | 'blood is thickar than water' | असली पिछड़ों ने - मोदी, साहू, सुनार, तोमर आदि व्यापारिक जातिओं को पिछड़े वर्ग का अंग मानने से इनकार कर दिया तथा जागरूक सवर्ण सिकुड़कर दबक गए - वोट डालने नहीं गए और गए भी तो दिया नहीं | यदि किसी महिला से उसका पति वैश्यावृत्ति कराके शराब पिए, तो समझदार महिला के पास यदि चरित्रवान जीवन बिताने का विकल्प है, तो उसे आजमाना चाहिए, वरना स्वतंत्र वैश्यावृत्ति करके उस कमाई से कम से कम आराम का जीवन बिताना चाहिए | यू. पी. के सवर्ण यही निर्णय ले कर आजमा चुके थे तथा ब्राह्मण बसपा का तथा क्षत्रिय सपा का दामन थाम चुके थे तथा यू. पी. में भाजपा हाशिये पर जा चुकी थी | बिहार में भी जागरूक सवर्ण यू. पी. के सवर्णों के इस आजमाये रास्ते पर चल पड़ा तथा भाजपा का बिहार में सफाया हो गया |
      किन्तु अत्याचार के कदम रुके नहीं | प्राइवेट सेक्टर के रिजर्वेशन के बारे में रिपोर्ट तैयार करा ली गई तथा औपचारिकतायें पूरी की जा रही हैं | जैसे धीरे से एक दिन वी. पी. सिंह ने मण्डल कमीशन की रिपोर्ट को लागू कर दिया उसी तरह किसी भी दिन प्राइवेट सेक्टर में रिजर्वेशन की घोषणा हो सकती है | सहयोगी दल के पासवान को सामने करके तीर चलाये जा रहे हैं | इस वाण के लगने के बाद क्या होगा इसकी कल्पना करें -
      (1) आज भी सवर्णों के अधिकांश एम.बी.ए., बी.टेक., एल.एल.बी., एम.ए., पी.एच.डी. आदि तक सरकारी नौकरियों का विज्ञापन आने पर चपरासी तक की नौकरी के लिए बड़ी संख्या में आवेदन करते हैं क्योंकि अधिकांश प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों का वेतन भी सरकारी चपरासी से कम है | फिर भी पति पत्नी दोनों मिलकर पेट - पर्दा चलाने भर को वेतन पा जाते हैं तथा गुजारा कर लेते हैं | अब यह प्राइवेट नौकरी भी छीन कर सीधे भीख मांगने की स्टेज पर पहुंचा देने का षड्यंत्र हो रहा है | क्या पता, भीख में भी रिजर्वेशन हो जाये |
      (2) अनुसूचित जाति या पिछड़ी जाति की फीस माफ हो - इस पर कोई आपत्ति नहीं कर सक्ता किन्तु उनकी फीस माफी का दण्ड सवर्णों के बच्चों को झेलना पड़े तथा सवर्णों के बच्चों की फीस IIT आदि में एकतरफा बढ़ा कर उनकी पढाई को रोकने का षड्यंत्र हो रहा है | बैंक से इतनी मात्र में लोन भी नहीं मिलता | सभी टैक्सपेयर्स पर अनुसूचित जाति या पिछड़ी जाति की पढाई का बोझ सरकार डाल देती तो गनीमत थी किन्तु उसका बोझ केवल प्रतिभाशाली बच्चों पर डालना एकलव्य की तरह उनका अंगूठा काटने के बराबर का अत्याचार है |
      (3) साड़ी की दुकान, चाय की दुकान तथा कारखाना खोलना, स्कूल कालेज खोलना भी प्राइवेट सेक्टर में आता है | मोदी जी कह रहे हैं हम ऐसी स्थिति लायेंगे कि अनुसूचित जाति के तथा पिछड़े जैसे लोग नौकरी देने वाले बनें तथा मांगने वाले नहीं | क्या यह बिभिन्न preferential policies के जरिये उद्द्योग तथा व्यापार जगत की जमींदारी तोड़ने की कवायद तो नहीं है |
      ठाकुरों की जमींदारी चली गई | ब्राह्मणों व कायस्तों को आरक्षण की चोट से कोमा में पहुंचा दिया गया | 'तिलक तराजू कलम तलवार | इनको मारो जूते चार ||' इसमें से तलवार के स्वागत की पूर्ण व्यवस्था जवाहरलाल नेहरू ने कर दी थी जमींदारी तोड़ कर तथा इंदिरा जी ने राजा की title छीन कर तथा privy purse जब्त कर इस क्रम को आगे बढाया था | तलवार भी तिलक तराजू और कलम के धंधे में घुसने को विवश हो गई थी | अब लगता है तराजू के दमन की बारी आगे है | हर दस साल पर आरक्षण बढ़ा कर डाक्टर अम्बेडकर द्वारा 10 वर्ष के आरक्षण की न्याय पूर्ण व्यवस्था का उल्लंघन हर प्रधानमंत्री ने संविधान बदल कर किया | आगे चल कर VP Singh ने मण्डल कमीशन  लागू कर दिया | चार ही नहीं बल्कि सैकड़ों जूते लगा दिए | बची खुची कसर अटल जी ने बैकलाग तथा प्रमोशन में रिजर्वेशन लागू करने के लिए संबिधान की निर्मम हत्या कर के पूरी कर ली | जब माननीय उच्चतम नयायालय किसी संसोधन को अवैध तथा असंवैधानिक घोषित करता है तो यह संविधान की हत्या के बराबर है | यह सवर्णों के वर्चस्व का समापन था | जिस दिन मोदी जी का सपना पूरा होगा तथा उस दिन सवर्णों की संप्रभुता के शव का दाह संस्कार हो चुका होगा |
      इतिहास साक्षी है कि मनुवाद के भीतर उत्पन्न हुई विकृतियों से बौद्ध जीवन दर्शन का अविर्भाव हुआ | Karl Marx ने लिखा है कि thesis, antithesis तथा synthesis का क्रम चलता रहता है तथा यही synthesis आगे चल कर thesis का रूप ले लेती है | Dialectical Materialism का सार तत्त्व है कि किसी भी चीज के विनाश के बीज उसी में छिपे होते हैं | बौद्ध शासन की विकृतियों ने पतंजलि के जीवन दर्शन को जन्म दिया तथा भारत की पहली सैनिक क्रांति हुई जिसमें सम्राट बृहद्रथ की हत्या कर के शुंग वंश के शासन की स्थापना हुई | मनु स्मृति का पुनर्लेखन हुआ तथा उसके प्रावधान और कड़े कर दिए गए | शंकराचार्य ने जो समन्वय का दर्शन प्रस्तुत किया वह एक तरह से common minimum program था जिसकी वजह से काफी समय तक देश में एक व्यवस्था चली | आजादी के बाद यही समन्वय काफी हद तक डाक्टर अम्बेडकर ने प्रस्तुत किया जिसमे आरक्षण तो दिया गया किन्तु मात्र 10 वर्षों के लिए किन्तु नेहरू अटल तथा मोदी लगातार संविधान का संसोधन कर इसे बढ़ाते रहे | अटल जी के समय में तो सवर्णों के हितों का सर्वनाश ही हो गया और बची खुची कसर पूरी करने का संकल्प बार बार लेते हुए मोदी साहब नहीं थकते |
      मनुवादी पार्टी के जन्मदाता यथार्थ के धरातल पर नेहरू अटल और मोदी के अत्याचार है | यदि ये अत्यचार समाप्त हो जायें तो मनुवादी पार्टी की भूमिका मात्र एक सामाजिक संस्था के रूप में रह जायेगी तथा इसके राजनैतिक आस्तित्व के कोई आवस्यकता ही नहीं बचेगी | इसी प्रकार पीछे के कई लेखों में स्पष्ट किया गया है कि किस प्रकार भाजपा कांग्रेस हो गई है तथा कांग्रेस Communist पार्टी बन गई है | जो सुधी जन विस्तार से पढना चाहे दुबारा लेखों को पढ़ सकते हैं | यदि भारत की सरकार यह सुनिश्चित कर ले कि
(1) सभी के साथ न्याय होगा तथा तुष्टीकरण तथा दमन किसी का नहीं होगा तथा डाक्टर अम्बेडकर ने जो सर्वसमाज के साथ न्याय किया था वह मूल संविधान लागू होगा तथा 1950 + 10 = 1960 के बाद आरक्षण 0% हो जायेगा
(2) Civil Rights Act के प्रावधान लागू रहेंगे तथा छुआछूत को अपराध माना जायेगा किन्तु Atrocities Act (जिसे बोलचाल की भाषा में हरिजन एक्ट भी कहते हैं) समाप्त हो जायेगा क्योंकि presumption clause नैसर्गिक न्याय के मूल सिद्धांतों के विपरीत है | presumption clause के अनुसार अनुसूचित जाति का व्यक्ति कुछ भी कह दे उसकी वाणी को सत्य मानते हुए विवेचना में आरोप प्रमाणित माना जायेगा चाहे वह सरासर झूठ ही क्यों न हो | सामान्यतः आरोप लगाने वाले का दायित्व बनता है कि वह प्रमाणित करे कि उसके द्वारा लगाये गए आरोप सत्य हैं किन्तु अनुसूचित जाति के मामले में यह burden of proof shift हो जाता है तथा अनुसूचित जाति के व्यक्ति का साक्ष्य प्रस्तुत करने का दायित्व समाप्त हो जाता है
(3) यदि भारत की सरकार यह सुनिश्चित कर ले कि सवर्णों को भारत का नागरिक समझा जायेगा तथा उन्हें संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार उपलब्ध होंगे तो मनुवादी पार्टी जैसी किसी पार्टी की आवश्यकता ही समाप्त हो जायेगी | जो IPC उत्तर प्रदेश में लागू है वही IPC दिल्ली में भी लागू है | दिल्ली में प्रमाणित तौर पर माँ दुर्गा को गन्दी गलियां दी गईं जिसके प्रत्यक्षदर्शी स्वयं भाजपा के माननीय सांसद श्री उदित राज जी हैं तथा जिन्होंने उन गालियों पर कोई प्रतिवाद नहीं किया | पूरी legal community में इस बात पर सर्व सम्मति है कि criminal case  कभी  time-barred नहीं होता तथा सभी के लिए equal है | श्री प्रशांत भूषण जैसे विद्द्वान अधिवक्ता महीनो यह बहस कर सकते हैं कि माँ दुर्गा को गाली देना Right to freedom of speech and expression की परिधि में आता है और आप के केजरीवाल तथा कांग्रेस के राहुल गाँधी उनके इन तर्कों पर तालियाँ बजा सकते हैं किन्तु क्या कोई विद्वान अधिवक्ता माननीय उच्चतम न्यायालय को यह समझा सकता है कि JNU के छात्रों के लिए अलग कानून रहेगा तथा कमलेश तिवारी के लिए अलग कानून रहेगा | मैं कमलेश तिवारी की तरफदारी नहीं कर रहा | मनुवादी पार्टी किसी भी प्रकार की blasphemy को गंभीर अपराध मानती है | जिस दिन भारत की कोई सरकार माँ दुर्गा को गाली देने वालों को तथा कमलेश तिवारी को एक ही स्तर का दण्ड देना प्रारम्भ कर देगी उस दिन सवर्णों को यह अहसास होगा कि उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक नहीं माना जा रहा है | इस एहसास के होते ही मनुवादी लेखकों को पाठक मिलने बंद हो जायेगे तथा मनुवादी पार्टी अप्रासंगिक हो जायगी | इसी प्रकार खुल्लम खुल्ला मनुस्मृति जलाई गई तथा एक FIR तक नहीं लिखी गई | जब तक यह स्थिति रहेगी तब तक मनुवादी पार्टी के सैलाव को कोई रोक नहीं सकता |
(4) जब तक भारत के टुकड़े होने का नारा देने वालों को समझाया बुझाया जायेगा तथा बंदेमातरम् और भारतमाता की जय कहने वालों को घेर कर पीटा जायेगा तथा उलटे उन्ही राष्ट्रभक्तों पर मुकदमे कायम किये जायेंगे तब तक मनुवादी पार्टी के प्रवाह को कोई रोक नहीं सकता | जैसे कांग्रेस संतुलन की भाषा को छोड़ कर कम्युनिष्ठों की भाषा की नक़ल कर रही है तथा इस कारण उसकी पूरी की पूरी राजनैतिक जमीन लावारिश हालत में परती पड़ गई है तथा उस जमीन को भाजपा कव्जा करती चली जा रही है और जो थोड़ी सी राजनैतिक जमीन communists के लिए थी उसमे मात्र एक साझेदार बन कर रह गई है उसी प्रकार भाजपा का कांग्रेसीकरण हो गया है तथा वह लगातार कांग्रेस की जमीन कब्ज़ा करती चली जा रही है किन्तु उसकी अपनी जमीन जो आदरणीय हेडगवार जी से लेकर परमपूजनीय गोलवलकर जी ने बनाई थी उसको लावारिश छोडती चली जा रही है | किस तरह श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने एक निशान तथा एक विधान के लिए अपना वलिदान दिया था, किस प्रकार जोशी जी तिरंगा ले कर चलने में गर्व का अनुभव करते थे उसको याद करने में भी भाजपा शर्मिंदा होने लगी है | हमें किसी प्रयास की जरूरत ही नहीं है | सीजर ने कहा है 'I came, I saw, I conquered' | यही बात मनुवादी पार्टी पर लागू होती है | तुलसीदास ने लिखा है 'बिन प्रयास भवसागर तरहीं' अर्थात हम लोग बिना किसी विशेष सघन प्रयास के राजनीति के भवसागर को पार करने जा रहे हैं |
(5) जिस जमीन को बड़ी मेहनत से RSS और उसके तमाम आनुषंगिक संगठनों ने, Organiser, पान्च्जन्न्य तथा राष्ट्र धर्म के विद्वान् संपादकों और लेखकों ने बड़ी मुश्किल से तैयार किया था वह जमीन परती पड़ी है | आज उसका कोई claimant नहीं है | कठिनाई यह है कि यदि भाजपा अपनी 500 एकड़ की जमीन पर अपना कब्ज़ा जमाये रखती है तो कांग्रेस की 5000 एकड़ की जमीन पर कब्ज़ा नहीं कर पायेगी | 5000 एकड़ की जमीन को कब्ज़ा करने में उसका मुकाबला उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक के क्षेत्रीय दल कर रहे हैं | लिहाजा अपनी बनाये शुचिता के सिद्धान्तों को ताक पर रख कर तथा party with a diffrence की अवधारणा को भुला कर उत्तर प्रदेश तथा कर्णाटक में प्रदेश अध्यक्षों का चयन कर रही है | बाकी पार्टियों की नजीर दे कर वह नैतिकता के पिजरे में बंद स्वयंसेवकों को समझा नहीं पा रही है | आज हर दलित यह पूछ रहा है कि जिन लोगों का पुनर्वास भाजपा में हो रहा है उनसे तो बंगारू लक्षमण लाख दर्जे साफ़ सुथरे थे | बंगारू लक्ष्मण तो एक ऐसे अपराध के लिए मृत्युदंड पा गए जो अपराध हुआ ही नहीं | जिस कार्य के लिए बंगारू लक्ष्मण पर पैसा लेने का आरोप लगा उस कार्य की न तो कोई फाइल बनी और न ही वह कार्य प्रस्तावित था | बंगारू ने सरकारी खजाने से एक पैसा न निकाला और न निकलवाया |न ही किसी प्राइवेट आदमी को एक पैसे का लाभ पहुँचाया |बंगारू लक्ष्मण के भ्रष्टाचार की तुलना नारद जी के मोह से की जा सकती है जिसमे नारद किसी महिला से अवैध रिश्ते नहीं बनाये किन्तु मात्र इतनी गलती की कि जब विष्णु ने उन्हें नारी का रूप धारण कर ट्रैप करना चाहा तो वे नारी के सौन्दर्य से आकर्षित हो गए | इसी प्रकार बंगारू लक्ष्मण पैसे को देख कर आकर्षित हो गए किन्तु उन्होंने किसी को न तो कोई अनुचित लाभ पहुँचाया और न ही एक पैसे के सरकारी धन का चूना लगाया | भगवन विष्णु तक ने प्रायश्चित्त कराकर नारद को क्षमादान दे दिया किन्तु भाजपा में केवल अति पिछड़ों को क्षमादान मिल रहा है तथा किसी सवर्ण और किसी दलित के लिए समानता के सिद्धांत का प्रयोग नहीं हो रहा है | मात्र जातिवाद के आधार पर यदि निर्णय लिए जाते रहेंगे तो बिना प्रयास किये ही 0 सीट पर पहुँच चुकी बसपा को सर्वे सबसे आगे बताएगा तथा 0 से स्टार्ट कर रही मनुवादी पार्टी को आसमान छूने से कोई रोक नहीं सकता | आवश्यकता आविष्कार की जननी है | आज कोई पार्टी दलितों और सवर्णों को न्याय दिलाना प्रारम्भ कर दे बसपा और मनुवादी पार्टी की प्रासंगिकता समाप्त हो जायेगी | इसी प्रकार यदि पिछड़ों के साथ अत्त्याचार नहीं होता तो मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी की तथा लालू या नीतीश की कोई आवश्यकता न होती | यही मार्क्स का भी सिद्धांत है | वर्तमान व्यवस्था की कमजोरियों से नई व्यवस्था का जन्म होता है | मनुवाद से उबरने के लिए हाथी आई तथा नेहरू अटल तथा मोदी द्वारा किये गए अत्त्याचारों से मनुवादी पार्टी का उद्भव हुआ और विकास होगा | बिना इन अत्याचारों के बंद हुए मनुवादी पार्टी को कोई रोक नही सकता | माननीय सुप्रीमकोर्ट के निर्देशों की अवज्ञा करके एकतरफा सवर्णों का दमन करने वाले ही हमारे लिए खाद पानी का काम कर रहे हैं | इसके लिय किसी भी सहयोग की आवश्यकता नहीं है | कहावत है कि एक लड़की ने अपनी माँ से कहा जब बच्चा पैदा हो तो मुझे जगा देना - कहीं बच्चा चारपाई से गिर न जाये | माँ ने कहा 'कि बेटी जब बच्चा पैदा होगा तो तुम चिल्ला चिल्ला कर सरे घर को जगा देगी' | आज मुझे किसी को संगठित नहीं करना पड़ रहा है | लोग खुद आकर नेतृत्व करने को कह रहे हैं | राजा और नेता की खुद में कोई औकात नही होती | चाणक्य के शब्दों में राजा की भूमिका मात्र एक ध्वज की होती है | जो समय की नवज पहचान लेता है वही जननायक बनता है

क्रमशः ....

Wednesday, 13 April 2016

मनुवादी पार्टी वोटकटवा पार्टी नहीं है
मनुवादी पार्टी का मिशन 2017,
2017 (2), 2019, 2020 तथा 2022
कैसे मनुवादी पार्टी 2022 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयेगी
कौन नेता होगा, कौन कार्यकर्त्ता होगा,
इटावा का बलराम यादव फार्मूला
क्यों V.I.Ps पार्टी नहीं चला पाते हैं ?
'शैल मूल जिन्ह सरितन्हि नाहीं'
कल टिप्पणी में एक भाई ने कहा कि बातें तो बड़ी अच्छी हैं किन्तु कांग्रेस, आप, सपा, बसपा आदि पार्टियाँ और अधिक बुरी हैं तथा फिलहाल भजपा का कोई विकल्प ही नहीं है | मनुवादी पार्टी की भूमिका एक वोटकटवा पार्टी से अधिक की नहीं हो सकती | एक भाई ने ऐसे ही लिखा कि उनहोंने इसका नाम ही नहीं सुना है |
      इन दोनों ही शंकाओं के समाधान के लिए यह लेख प्रस्तुत है | जो लोग कहते हैं कि मैंने यह पार्टी सुनी ही नहीं है, उनसे यह पूछता हूँ कि क्या आज के 70 साल पहले किसी ने नरेंद्र मोदी जी का नाम सुना था ? उत्तर - नहीं | आज से 200 वर्ष पूर्व किसी ने महात्मा गाँधी का नाम सुना था ? उत्तर - नहीं | क्या आज से 5000 साल पूर्व किसी ने भगवन बुद्ध का नाम सुना था - उत्तर नहीं | भावार्थ है कि कोई भी पार्टी जैसे - जैसे विस्तार लेगी, वैसे - वैसे आप उसका नाम सुनेंगे | बच्चा पहले पेट में आता है | माँ उसके बारे में जानती है - उसमे कुछ शारीरिक परिवर्तन आते हैं | धीरे - धीरे घर वाले, पड़ोसी जानते हैं | जब बच्चा पैदा होता है, पूरा समाज जानता है | बड़ा होने पर जैसा उसका परफार्मेंस होता है, पूरा ब्लाक, तहसील, एवं जिला जानता है, देश जानता है, विश्व जानता है | मनुस्मृति आदि ग्रन्थ हैं, 'मनुवादी' की चर्चा न जाने कितनी बार अम्बेडकर साहब, कांशीराम जी, मायावती जी, लोहिया जी कर चुके हैं | मायावती जी तो क्षण - क्षण पर करती रहती हैं | राहुल जी भी अब 'मनुवादी' शब्द को लेकर ललकारने लगे हैं | जैटली जी ने भी कन्हैया प्रकरण में कहा कि मनुवाद से आजादी चाहता तो और बात थी किन्तु यह तो भारत से आजादी की बात कर रहा है | अप्रत्यक्ष रूप से जेटली जी ने मनुवाद के विरूद्ध संघर्ष के लिए प्रेरित किया तथा मनु स्मृति को जला दिया गया | किसी ने मुझसे पूछा कि आप बिना संसाधनों के इन दिग्गजों के सामने कैसे प्रचार करेंगे तो मेरा उत्तर था कि मेरे पूर्वजों के पास न तो हल चलने का ज्ञान था, न ट्रैक्टर का | किन्तु उन्होंने प्रभु का साक्षात्कार कर रखा था | किसी ने गेहूं पैदा किया | हम पँजीरी खाए और खिलाये | दूध किसी ने पैदा किया हो, हम प्रभु के सहारे रहे - हम चरणामृत स्वयं पिए तथा दूसरों को पिलाया | हमारी पार्टी भी ऐसे ही भगवान् के सहारे चलती रहेगी | उसके स्टार प्रचारक अम्बेडकर, लोहिया, मायावती, मुलायम, राहुल, जेटली तथा मोदी जैसे लोग होंगे | हमें प्रचार करने की कोई आवश्कता ही नही है | सुगंध देर में फैलती है, बदबू तत्काल फैलती है |
      प्रश्न उठता है कि क्या मनुवाद के ये विश्लेषक सही व्याख्या करते हैं ? उत्तर है - इनकी व्याख्या एकांगी है, गलत नहीं | गाँधी ने एक जगह लिखा है - "Only the toad under the harrow knows where it pinches him" जाकी पैर न फटी बेवाई, सो का जानै पीर पराई | मनुवादी की व्याख्या जो मायावती करेंगी - वह यथार्थ के सबसे ज्यादा नजदीक होगी | उससे कम सत्यता मुलायम सिंह की व्याख्या में होगी | लोहिया तथा राहुल गाँधी की व्याख्या मात्र कपोल कल्पना पर आधारित होगी क्योंकि न तो इन्होंने अम्बेडकर साहब की तरह अध्ययन किया है और न ही इनके पास अनुभव है | जेटली की व्याख्या तो शुद्ध पाखण्ड पर आधारित होगी |
      इस्लाम वह भी है जो पकिस्तान से शरणार्थी बनकर आये हुए अडवाणी तथा उनके जैसे लोग जानते हैं | इस्लाम वह भी है जो अल्लामा इकबाल की बांगेदरा, शिकवा तथा जवाबी शिकवा में लिखा है | इस्लाम की शास्त्रीय व्याख्या वह है जो मौलाना मदनी करते हैं | इस्लाम की जमीनी शक्ल अलकायदा तथा ISIS हैं जो Europe को ultimatum दिए बैठे हैं कि या तो इस्लाम कबूल कर लो या फिर परिणाम भुगतने को तैयार रहो |
      इसी प्रकार मनुवाद की जमीनी शक्ल वह है जिसे मायावती जानती है, मुलायम थोडा बहुत जानते हैं, रोहित जैसे लोग अच्छी तरह पहचानते हैं कि किस प्रकार घड़ियाली आँसू कोई महापुरुष बहा ले किन्तु पूरा का पूरा भाजपा का पार्टी तंत्र (जिसे मायावती मनुवाद की B team कहती हैं) उसकी मृतात्मा को अपमानित करता है | इसके विपरीत मनुवाद की असली शक्ल वह जो अनन्तश्री बिभूषित करपात्री जी महराज बताते हैं, जिसका विवरण महर्षि दयानन्द करते हैं तथा जिसके बारे में गर्व पूर्वक स्वामी विवेकानन्द कहते हैं - "If Manu were return in India, he would not find himself in a foreign land." यह मनुवाद की असली शक्ल है | कपड़ा समय के साथ गन्दा होता है,फटता है | शरीर समय के साथ शिथिल होता है | समय के साथ मनुवाद में जो गन्दगी आई, उसको धो - पोंछकर सही रूप में प्रस्तुत करने का काम स्वामी दयानन्द, विवेकानंद, अनंतश्री स्वामी करपात्री जी महराज, गुरूजी गोलवलकर आदि - आदि ने किया | नेहरू, लोहिया, जनता पार्टी परिवार, जयप्रकाश, भाजपा ने चोर दरवाजे से समय के साथ समाहित होने वाली मनुवाद की हर गंदगी को enjoy किया तथा सामने पड़ने पर ताल ठोंक कर मनुवाद को गाली दी | इसी को 'राजनीतिक पाखण्ड' कहते हैं |
मनुवादी पार्टी सीना तान के ताल ठोंक के अपने को मनुस्मृति की उत्तराधिकारी मानती है | जैसे कपड़े को धोने और प्रेस करने की जरूरत पड़ती है, वैसे ही विचारधारा को भी परिमार्जन की आवश्यकता पड़ती है | Marx की विचार धारा में Lenin, Stalin, Khruschev, Bulganin तथा Gorbachyov ने रूस में, Mao, Deng आदि ने चीन में तथा Ho - Chi - minch ने Vietnam तथा Fidel Castro ने Cuba में आवश्यकतानुसार संशोधन - परिवर्धन किया | 'हमारा Chairman Mao' तथा 'भारत के टुकड़े होंगे' जैसे नारों में सहभागिता के कारण ही अनुकूल परिवेश मिलने के बावजूद Communists की दुकान नहीं चल पाई | यही सनातन धर्म है | यही 'नेति - नेति' है '| देश, काल तथा परिवेश के अनुसार समय - समय पर ऋषिमुनि व्याख्या कर नए आयाम प्रदान करते हैं | जैसे संविधान वही है, किन्तु संशोधन तथा माननीय सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के interpretations के आलोक में नित - नूतन समस्याओं से निपटने में सक्षम बना रहता है | उसी प्रकार की भूमिका स्म्रतियों के संबंध में ऋषियों की है | शास्त्रों की मूल अवधारणा को बदले बिना 'रिषीनां पुनाराद्यानां वाचमर्थोनुधावति' के आधार पर शास्त्रों की पुरातनता में चिर - नूतनता  को पिरोना ही ऋषियों की दिव्यता है |

'जाकी रही भावना जैसी |
प्रभु मूरति देखी तिन तैसी |'
हांथी को कुछ अंधों ने छुआ | जिसकी पकड़ में पैर आया, उसने खम्भे की तरह बताया | जिसने कान छुआ उसने सूप की तरह बताया | जिसने पूछ छुआ, उसने रस्सी की तरह बताया आदि आदि | किन्तु हांथी न तो खम्बे की तरह है न सूप की तरह है और न ही रस्सी की तरह है |यही स्थिति मनुवाद की है | उसके एक स्वरुप को मायावती तथा रोहित ने भोग होगा - किन्तु हम उस पर घडियालू आँसू बहाने की जगह स्वामी दयानंद जी, स्वामी विवेकानंद जी, अनंत श्री विभूषित करपात्री जी महराज, गुरूजी गोलवलकर आदि से प्राप्त मार्गदर्शन के आलोक में अपने द्वारा परोसे गए पदार्थों की गुणवत्ता में सुधार लाने में विश्वास रखते हैं | इस बिंदु पर मैं प्रत्यक्षदर्शी रहा हूँ  कि गुरूजी गोलवलकर तथा अनंतश्री करपात्री जी के बीच व्याप्त मतभेदों की खाईं को जब कुछ लोगों ने चौड़ा करने की कोशिश की, तो परम पूजनीय गोलवलकर जी ने इसका समाधान प्रस्तुत किया - 'धर्म एक तिजोरी में रखी हुई कीमती धरोहर है | केवल उस तिजोरी की रखवाली का दायित्व मेरा है | उस तिजोरी में क्या खजाना रखा है, इसका ज्ञान मुझे नहीं है | इसे अनंतश्री करपात्री जी महराज जानते हैं | वे सनातन धर्म की जो व्याख्या कर दें, वही सही है | वही धर्मादेश है |' और इसी के साथ उनहोंने शास्त्रार्थ के चैलेन्ज को ठुकरा दिया - 'अनंतश्री करपात्री आप्त पुरुष है | आप्त पुरुषों के वचन शास्त्रार्थ में उद्धृत होते हैं | आप्त पुरुषों से शास्त्रार्थ का विधान नहीं है |'
      यहाँ मै बहक नहीं रहा हूँ | विषयांतर नहीं कर रहा हूँ | समास शैली के विपरीत यह व्याख्या की व्यास शैली है |यह प्रकरण इसलिए उठाया गया कि हम वोटकटवा नहीं हैं, स्थाई रूप से चलेंगे तथा राजनीति में स्थाई भाव होंगे | इतिहास राजनीति की प्रयोगशाला है | मेरी वाल्यावस्था में अधिकांश जगहों में जनसंघ 1000 वोट प्रति विधानसभा से कम पाती थी ? क्या वह वोटकटवा थी ? कोई साधन नहीं था, अधिकांश लोग प्रत्याशी को जानते तक नहीं थे, कोई पर्चा भरने को तथा टिकट लेने को नहीं मिलता है| कौशाम्बी में एक प्रत्याशी थे, साईकिल से प्रचार करने निकले, कौशाम्बी के रहने वाले प्रदेश अध्यक्ष अपनी पिछली पीढ़ी से पूछें तो बता देंगे कि वे घूमते घूमते संदिग्ध परिस्थितियों (कुछ लोगों का कहना था दारू के नशे में) गिर पड़े | न उसके पहले दिखे, न उसके बाद में | फिर भी पाचजन्य तथा Organiserपढने वाले उनको वोट दिए बिना कैन्डीडेट की शक्ल देखे | क्या वो वोटकटवा थे ? आज के मोदी तथा कल के अटल के वे बीज थे | बरगद के पेड़ का बीज छोटा सा होता है |
      इसी तरह समाजवादी पार्टी का खाता नही खुलता था | कभी बरगद, तो कभी झोपड़ी के चुनाव - चिन्ह पर चुनाव लड़ती थी समाजवादी पार्टी | स्वयं डा. लोहिया तक के जीत के लाले पड़ जाते थे | किन्तु कोई लाख बुराई करे, समाजवादी पार्टी अपने दम पर पूर्ण बहुमत पाई | सफ़र रूका नहीं |
      बसपा को लीजिये | तमाम सीटों पर 1000 वोट भी नहीं मिलते थे | सैकड़ों में वोट मिलते थे - हजारों में नहीं | किन्तु हांथी पूरी विकरालता में मौजूद है | इसके विपरीत हिदुस्तान भर के दिग्गजों ने मिलकर - मोरारजी देसाई, कामराज, चह्वाण, चन्द्रभान गुप्त आदि आदि ने - कांग्रेस (O) बनाई | परखच्चे उड़ गए | विश्वनाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर प्रधानमंत्री थे -सुपर heavy weights थे | पार्टी चला नहीं पाए | कल्याण सिंह,उमाभारती, (नारायण दत्त तिवारी + अर्जुन सिंह + शीला दीक्षित + जगदम्बिका पाल etc) नहीं चला पाए | छुटभैयों ने सैकड़ों की संख्या में पार्टी पंजीकृत कराई लेकिन चला नहीं पाये |
      अब प्रश्न उठता है कि क्यों मुलायम सिंह तथा मायावती पार्टी चलाने में सफल रहे तथा कांग्रेस के 2 दर्जन दिग्गज,एन. डी. तिवारी तथा सह्योगी, संघपरिवार व BJP से जुड़े उमा - तथा कल्याण आदि हवा - हवाई साबित हुए | इसी में इस प्रश्न का उत्तर छिपा है कि कैसे मनुवादी पार्टी वोटकटवा नहीं तथा कैसे यह भारत की भावी राजनीति की धुरी बनने जा रही है |
      इन कारणों का खुलासा गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन शब्दों में किया है -
'शैल मूल जिन्ह सरितन्हि नाहीं'
      अर्थात जो नदियाँ पहाड़ से नहीं निकलती हैं, बल्कि बरसात के पानी की बजह से जिनमे बाढ़ आ जाती है वे बरसात के बाद सूख जाती हैं |
      V.P. singh तथा चंद्रशेखर ऐसे ही बरसाती पानी से उफनाती हुई नदियाँ थी | यही हाल कल्याण सिंह, उमा भारती, कांग्रेस के बागी दिग्गजों का था | कल्याण सिंह की तपस्या नष्ट हो गई - उनका अयोध्या के हीरो का स्वरुप ध्वस्त हो गया, जब उन्होंने अयोध्या में गोली चलवाने वाले मुलायम सिंह की शागिर्दी स्वीकार कर ली तथा अपने बेटे तथा पट्टशिष्या को लाल बत्ती दिलवा दी |
गलिव वजीफा ख्वार हो
दो शाह को दुआ
अब कह नही सकते
कि नौकर नहीं हूँ मैं |
मुलायम सिंह की सामन्ती ग्रहण करते ही कल्याण सिंह के व्यक्तित्व की  रौनक समाप्त हो गई |
राम मंदिर के इस पुरोधा की तुलना मानसिंह से करने में लेखनी थरथरा जाएगी - ऐसा कहना अन्याय होगा - किन्तु कल्याण सिंह की तुलना कम से कम शक्ति सिंह से तो करनी ही पड़ेगी | राणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह हल्दी घाटी की लड़ाई में भाई से नाराज होकर अकबर की ओर से लड़े किन्तु झाला को राणा समझ जब मुग़ल झाला पर टूट पड़े, तथा राणा मैदान छोड़ कर भाग रहे थे तथा कुछ मुग़ल घुड़सवार राणा का पीछा कर लिए तो शक्ति सिंह ने उन घुड़सवारों को मार गिराया तथा राणा की जान बचाई | कल्याण सिंह ऐसे ही शक्ति सिंह थे |
      केवल वही पार्टियाँ टिकीं जो विचारधारा पर आधारित थीं, चाहें उनसे कोई सहमत हो या असहमत तथा जो अपने आधार पर टिकी रहीं | एक बार बलराज मधोक, तत्समय राष्ट्रीय अध्यक्ष, जनसंघ से एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कहा कि हम जनसंघ को समाप्त कर देंगे तो बलराज मधोक का उत्तर था - 'जनसंघ को समाप्त करना आप के हाथ में नहीं है | जनसंघ को केवल मुसलमान समाप्त कर सकता है | यदि कश्मीरी पंडितों की बेटियों से बलात्कार के बाद उनकी जांघों पर 'पकिस्तान जिंदाबाद का गोदना गोदवाना कश्मीर के मुस्लिम नौजवान बंद कर दें, हमें राजनीति की दुकान बंद कर पान की दुकान खोलनी पड़ जायेगी '| साईकिल का एक चक्का चलता है, तो दूसरा अपने आप चलता है | अगर ओवैसी भारत माता की जय बोलने लगे, देवबन्द मौलाना मदनी की भाषा बोलने लगे तो भाजपा शिवसेना की आवश्यकता ही नहीं बचेगी | भाजपा के स्टार प्रचारक ओवैसी तथा पूर्व में शहाबुद्दीन जैसे लोग हैं - इन्हीं का भाषण सुनने के बाद लोगों को योगी आदित्यनाथ, स्वामी तथा साध्वी के उद्गार अच्छे लगते हैं | जब से योगी, स्वामी  तथा साध्वी के विरूद्ध अनुपम खेर ने जुवान खोला है, तब से आमिर खां की तरह से वे भी स्वाभिमानी हिन्दुओं की नजरों से गिर गए हैं |

क्रमशः...