मनुवादी पार्टी वोटकटवा पार्टी नहीं है
मनुवादी पार्टी का मिशन 2017,
2017 (2), 2019, 2020 तथा 2022
कैसे मनुवादी पार्टी 2022 में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयेगी
कौन नेता होगा, कौन कार्यकर्त्ता होगा,
इटावा का बलराम यादव फार्मूला
क्यों V.I.Ps पार्टी नहीं चला पाते हैं ?
'शैल मूल जिन्ह सरितन्हि नाहीं'
कल टिप्पणी में एक भाई ने कहा कि बातें तो बड़ी अच्छी हैं किन्तु कांग्रेस, आप,
सपा, बसपा आदि पार्टियाँ और अधिक बुरी हैं तथा फिलहाल भजपा का कोई विकल्प ही नहीं
है | मनुवादी पार्टी की भूमिका एक वोटकटवा पार्टी से अधिक की नहीं हो सकती | एक भाई
ने ऐसे ही लिखा कि उनहोंने इसका नाम ही नहीं सुना है |
इन दोनों ही शंकाओं के समाधान के
लिए यह लेख प्रस्तुत है | जो लोग कहते हैं कि मैंने यह पार्टी सुनी ही नहीं है,
उनसे यह पूछता हूँ कि क्या आज के 70 साल पहले किसी ने नरेंद्र मोदी जी का नाम सुना
था ? उत्तर - नहीं | आज से 200 वर्ष पूर्व किसी ने महात्मा गाँधी का नाम सुना था ?
उत्तर - नहीं | क्या आज से 5000 साल पूर्व किसी ने भगवन बुद्ध का नाम सुना था -
उत्तर नहीं | भावार्थ है कि कोई भी पार्टी जैसे - जैसे विस्तार लेगी, वैसे - वैसे
आप उसका नाम सुनेंगे | बच्चा पहले पेट में आता है | माँ उसके बारे में जानती है -
उसमे कुछ शारीरिक परिवर्तन आते हैं | धीरे - धीरे घर वाले, पड़ोसी जानते हैं | जब
बच्चा पैदा होता है, पूरा समाज जानता है | बड़ा होने पर जैसा उसका परफार्मेंस होता
है, पूरा ब्लाक, तहसील, एवं जिला जानता है, देश जानता है, विश्व जानता है |
मनुस्मृति आदि ग्रन्थ हैं, 'मनुवादी' की चर्चा न जाने कितनी बार अम्बेडकर साहब,
कांशीराम जी, मायावती जी, लोहिया जी कर चुके हैं | मायावती जी तो क्षण - क्षण पर
करती रहती हैं | राहुल जी भी अब 'मनुवादी' शब्द को लेकर ललकारने लगे हैं | जैटली
जी ने भी कन्हैया प्रकरण में कहा कि मनुवाद से आजादी चाहता तो और बात थी किन्तु यह
तो भारत से आजादी की बात कर रहा है | अप्रत्यक्ष रूप से जेटली जी ने मनुवाद के
विरूद्ध संघर्ष के लिए प्रेरित किया तथा मनु स्मृति को जला दिया गया | किसी ने
मुझसे पूछा कि आप बिना संसाधनों के इन दिग्गजों के सामने कैसे प्रचार करेंगे तो
मेरा उत्तर था कि मेरे पूर्वजों के पास न तो हल चलने का ज्ञान था, न ट्रैक्टर का |
किन्तु उन्होंने प्रभु का साक्षात्कार कर रखा था | किसी ने गेहूं पैदा किया | हम
पँजीरी खाए और खिलाये | दूध किसी ने पैदा किया हो, हम प्रभु के सहारे रहे - हम
चरणामृत स्वयं पिए तथा दूसरों को पिलाया | हमारी पार्टी भी ऐसे ही भगवान् के सहारे
चलती रहेगी | उसके स्टार प्रचारक अम्बेडकर, लोहिया, मायावती, मुलायम, राहुल, जेटली
तथा मोदी जैसे लोग होंगे | हमें प्रचार करने की कोई आवश्कता ही नही है | सुगंध देर
में फैलती है, बदबू तत्काल फैलती है |
प्रश्न उठता है कि क्या मनुवाद के
ये विश्लेषक सही व्याख्या करते हैं ? उत्तर है - इनकी व्याख्या एकांगी है, गलत
नहीं | गाँधी ने एक जगह लिखा है - "Only the toad under the harrow knows
where it pinches him" जाकी पैर न फटी बेवाई, सो का जानै पीर पराई | मनुवादी
की व्याख्या जो मायावती करेंगी - वह यथार्थ के सबसे ज्यादा नजदीक होगी | उससे कम
सत्यता मुलायम सिंह की व्याख्या में होगी | लोहिया तथा राहुल गाँधी की व्याख्या
मात्र कपोल कल्पना पर आधारित होगी क्योंकि न तो इन्होंने अम्बेडकर साहब की तरह
अध्ययन किया है और न ही इनके पास अनुभव है | जेटली की व्याख्या तो शुद्ध पाखण्ड पर
आधारित होगी |
इस्लाम वह भी है जो पकिस्तान से
शरणार्थी बनकर आये हुए अडवाणी तथा उनके जैसे लोग जानते हैं | इस्लाम वह भी है जो
अल्लामा इकबाल की बांगेदरा, शिकवा तथा जवाबी शिकवा में लिखा है | इस्लाम की
शास्त्रीय व्याख्या वह है जो मौलाना मदनी करते हैं | इस्लाम की जमीनी शक्ल अलकायदा
तथा ISIS हैं जो Europe को ultimatum दिए बैठे हैं कि या तो इस्लाम कबूल कर लो या
फिर परिणाम भुगतने को तैयार रहो |
इसी प्रकार मनुवाद की जमीनी शक्ल
वह है जिसे मायावती जानती है, मुलायम थोडा बहुत जानते हैं, रोहित जैसे लोग अच्छी
तरह पहचानते हैं कि किस प्रकार घड़ियाली आँसू कोई महापुरुष बहा ले किन्तु पूरा का
पूरा भाजपा का पार्टी तंत्र (जिसे मायावती मनुवाद की B team कहती हैं) उसकी मृतात्मा
को अपमानित करता है | इसके विपरीत मनुवाद की असली शक्ल वह जो अनन्तश्री बिभूषित
करपात्री जी महराज बताते हैं, जिसका विवरण महर्षि दयानन्द करते हैं तथा जिसके बारे
में गर्व पूर्वक स्वामी विवेकानन्द कहते हैं - "If Manu were return in
India, he would not find himself in a foreign land." यह मनुवाद की असली
शक्ल है | कपड़ा समय के साथ गन्दा होता है,फटता है | शरीर समय के साथ शिथिल होता है
| समय के साथ मनुवाद में जो गन्दगी आई, उसको धो - पोंछकर सही रूप में प्रस्तुत
करने का काम स्वामी दयानन्द, विवेकानंद, अनंतश्री स्वामी करपात्री जी महराज,
गुरूजी गोलवलकर आदि - आदि ने किया | नेहरू, लोहिया, जनता पार्टी परिवार, जयप्रकाश,
भाजपा ने चोर दरवाजे से समय के साथ समाहित होने वाली मनुवाद की हर गंदगी को enjoy
किया तथा सामने पड़ने पर ताल ठोंक कर मनुवाद को गाली दी | इसी को 'राजनीतिक पाखण्ड'
कहते हैं |
मनुवादी पार्टी सीना तान के ताल ठोंक के अपने को मनुस्मृति की उत्तराधिकारी
मानती है | जैसे कपड़े को धोने और प्रेस करने की जरूरत पड़ती है, वैसे ही विचारधारा
को भी परिमार्जन की आवश्यकता पड़ती है | Marx की विचार धारा में Lenin, Stalin, Khruschev,
Bulganin तथा Gorbachyov ने रूस में, Mao, Deng आदि ने चीन में तथा Ho - Chi -
minch ने Vietnam तथा Fidel Castro ने Cuba में आवश्यकतानुसार संशोधन - परिवर्धन
किया | 'हमारा Chairman Mao' तथा 'भारत के टुकड़े होंगे' जैसे नारों में सहभागिता
के कारण ही अनुकूल परिवेश मिलने के बावजूद Communists की दुकान नहीं चल पाई | यही
सनातन धर्म है | यही 'नेति - नेति' है '| देश, काल तथा परिवेश के अनुसार समय - समय
पर ऋषिमुनि व्याख्या कर नए आयाम प्रदान करते हैं | जैसे संविधान वही है, किन्तु संशोधन
तथा माननीय सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के interpretations के आलोक में नित -
नूतन समस्याओं से निपटने में सक्षम बना रहता है | उसी प्रकार की भूमिका स्म्रतियों
के संबंध में ऋषियों की है | शास्त्रों की मूल अवधारणा को बदले बिना 'रिषीनां पुनाराद्यानां
वाचमर्थोनुधावति' के आधार पर शास्त्रों की पुरातनता में चिर - नूतनता को पिरोना ही ऋषियों की दिव्यता है |
'जाकी रही भावना जैसी |
प्रभु मूरति देखी तिन तैसी |'
हांथी को कुछ अंधों ने छुआ | जिसकी पकड़ में पैर आया, उसने खम्भे की तरह बताया
| जिसने कान छुआ उसने सूप की तरह बताया | जिसने पूछ छुआ, उसने रस्सी की तरह बताया
आदि आदि | किन्तु हांथी न तो खम्बे की तरह है न सूप की तरह है और न ही रस्सी की
तरह है |यही स्थिति मनुवाद की है | उसके एक स्वरुप को मायावती तथा रोहित ने भोग
होगा - किन्तु हम उस पर घडियालू आँसू बहाने की जगह स्वामी दयानंद जी, स्वामी
विवेकानंद जी, अनंत श्री विभूषित करपात्री जी महराज, गुरूजी गोलवलकर आदि से
प्राप्त मार्गदर्शन के आलोक में अपने द्वारा परोसे गए पदार्थों की गुणवत्ता में सुधार
लाने में विश्वास रखते हैं | इस बिंदु पर मैं प्रत्यक्षदर्शी रहा हूँ कि गुरूजी गोलवलकर तथा अनंतश्री करपात्री जी के
बीच व्याप्त मतभेदों की खाईं को जब कुछ लोगों ने चौड़ा करने की कोशिश की, तो परम पूजनीय
गोलवलकर जी ने इसका समाधान प्रस्तुत किया - 'धर्म एक तिजोरी में रखी हुई कीमती
धरोहर है | केवल उस तिजोरी की रखवाली का दायित्व मेरा है | उस तिजोरी में क्या खजाना
रखा है, इसका ज्ञान मुझे नहीं है | इसे अनंतश्री करपात्री जी महराज जानते हैं | वे
सनातन धर्म की जो व्याख्या कर दें, वही सही है | वही धर्मादेश है |' और इसी के साथ
उनहोंने शास्त्रार्थ के चैलेन्ज को ठुकरा दिया - 'अनंतश्री करपात्री आप्त पुरुष है
| आप्त पुरुषों के वचन शास्त्रार्थ में उद्धृत होते हैं | आप्त पुरुषों से
शास्त्रार्थ का विधान नहीं है |'
यहाँ मै बहक नहीं रहा हूँ |
विषयांतर नहीं कर रहा हूँ | समास शैली के विपरीत यह व्याख्या की व्यास शैली है |यह
प्रकरण इसलिए उठाया गया कि हम वोटकटवा नहीं हैं, स्थाई रूप से चलेंगे तथा राजनीति
में स्थाई भाव होंगे | इतिहास राजनीति की प्रयोगशाला है | मेरी वाल्यावस्था में
अधिकांश जगहों में जनसंघ 1000 वोट प्रति विधानसभा से कम पाती थी ? क्या वह वोटकटवा
थी ? कोई साधन नहीं था, अधिकांश लोग प्रत्याशी को जानते तक नहीं थे, कोई पर्चा
भरने को तथा टिकट लेने को नहीं मिलता है| कौशाम्बी में एक प्रत्याशी थे, साईकिल से
प्रचार करने निकले, कौशाम्बी के रहने वाले प्रदेश अध्यक्ष अपनी पिछली पीढ़ी से
पूछें तो बता देंगे कि वे घूमते घूमते संदिग्ध परिस्थितियों (कुछ लोगों का कहना था
दारू के नशे में) गिर पड़े | न उसके पहले दिखे, न उसके बाद में | फिर भी पाचजन्य
तथा Organiserपढने वाले उनको वोट दिए बिना कैन्डीडेट की शक्ल देखे | क्या वो
वोटकटवा थे ? आज के मोदी तथा कल के अटल के वे बीज थे | बरगद के पेड़ का बीज छोटा सा
होता है |
इसी तरह समाजवादी पार्टी का खाता
नही खुलता था | कभी बरगद, तो कभी झोपड़ी के चुनाव - चिन्ह पर चुनाव लड़ती थी
समाजवादी पार्टी | स्वयं डा. लोहिया तक के जीत के लाले पड़ जाते थे | किन्तु कोई
लाख बुराई करे, समाजवादी पार्टी अपने दम पर पूर्ण बहुमत पाई | सफ़र रूका नहीं |
बसपा को लीजिये | तमाम सीटों पर 1000
वोट भी नहीं मिलते थे | सैकड़ों में वोट मिलते थे - हजारों में नहीं | किन्तु हांथी
पूरी विकरालता में मौजूद है | इसके विपरीत हिदुस्तान भर के दिग्गजों ने मिलकर -
मोरारजी देसाई, कामराज, चह्वाण, चन्द्रभान गुप्त आदि आदि ने - कांग्रेस (O) बनाई |
परखच्चे उड़ गए | विश्वनाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर प्रधानमंत्री थे -सुपर heavy
weights थे | पार्टी चला नहीं पाए | कल्याण सिंह,उमाभारती, (नारायण दत्त तिवारी +
अर्जुन सिंह + शीला दीक्षित + जगदम्बिका पाल etc) नहीं चला पाए | छुटभैयों ने
सैकड़ों की संख्या में पार्टी पंजीकृत कराई लेकिन चला नहीं पाये |
अब प्रश्न उठता है कि क्यों
मुलायम सिंह तथा मायावती पार्टी चलाने में सफल रहे तथा कांग्रेस के 2 दर्जन
दिग्गज,एन. डी. तिवारी तथा सह्योगी, संघपरिवार व BJP से जुड़े उमा - तथा कल्याण आदि
हवा - हवाई साबित हुए | इसी में इस प्रश्न का उत्तर छिपा है कि कैसे मनुवादी
पार्टी वोटकटवा नहीं तथा कैसे यह भारत की भावी राजनीति की धुरी बनने जा रही है |
इन कारणों का खुलासा गोस्वामी
तुलसीदास जी ने इन शब्दों में किया है -
'शैल मूल जिन्ह सरितन्हि नाहीं'
अर्थात जो नदियाँ पहाड़ से नहीं
निकलती हैं, बल्कि बरसात के पानी की बजह से जिनमे बाढ़ आ जाती है वे बरसात के बाद
सूख जाती हैं |
V.P. singh तथा चंद्रशेखर ऐसे ही
बरसाती पानी से उफनाती हुई नदियाँ थी | यही हाल कल्याण सिंह, उमा भारती, कांग्रेस
के बागी दिग्गजों का था | कल्याण सिंह की तपस्या नष्ट हो गई - उनका अयोध्या के
हीरो का स्वरुप ध्वस्त हो गया, जब उन्होंने अयोध्या में गोली चलवाने वाले मुलायम
सिंह की शागिर्दी स्वीकार कर ली तथा अपने बेटे तथा पट्टशिष्या को लाल बत्ती दिलवा
दी |
गलिव वजीफा ख्वार हो
दो शाह को दुआ
अब कह नही सकते
कि नौकर नहीं हूँ मैं |
मुलायम सिंह की सामन्ती ग्रहण करते ही कल्याण सिंह के व्यक्तित्व की रौनक समाप्त हो गई |
राम मंदिर के इस पुरोधा की तुलना मानसिंह से करने में लेखनी थरथरा जाएगी - ऐसा
कहना अन्याय होगा - किन्तु कल्याण सिंह की तुलना कम से कम शक्ति सिंह से तो करनी
ही पड़ेगी | राणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह हल्दी घाटी की लड़ाई में भाई से नाराज
होकर अकबर की ओर से लड़े किन्तु झाला को राणा समझ जब मुग़ल झाला पर टूट पड़े, तथा
राणा मैदान छोड़ कर भाग रहे थे तथा कुछ मुग़ल घुड़सवार राणा का पीछा कर लिए तो शक्ति
सिंह ने उन घुड़सवारों को मार गिराया तथा राणा की जान बचाई | कल्याण सिंह ऐसे ही शक्ति
सिंह थे |
केवल वही पार्टियाँ टिकीं जो
विचारधारा पर आधारित थीं, चाहें उनसे कोई सहमत हो या असहमत तथा जो अपने आधार पर
टिकी रहीं | एक बार बलराज मधोक, तत्समय राष्ट्रीय अध्यक्ष, जनसंघ से एक वरिष्ठ
कांग्रेसी नेता ने कहा कि हम जनसंघ को समाप्त कर देंगे तो बलराज मधोक का उत्तर था
- 'जनसंघ को समाप्त करना आप के हाथ में नहीं है | जनसंघ को केवल मुसलमान समाप्त कर
सकता है | यदि कश्मीरी पंडितों की बेटियों से बलात्कार के बाद उनकी जांघों पर 'पकिस्तान
जिंदाबाद का गोदना गोदवाना कश्मीर के मुस्लिम नौजवान बंद कर दें, हमें राजनीति की
दुकान बंद कर पान की दुकान खोलनी पड़ जायेगी '| साईकिल का एक चक्का चलता है, तो
दूसरा अपने आप चलता है | अगर ओवैसी भारत माता की जय बोलने लगे, देवबन्द मौलाना
मदनी की भाषा बोलने लगे तो भाजपा शिवसेना की आवश्यकता ही नहीं बचेगी | भाजपा के
स्टार प्रचारक ओवैसी तथा पूर्व में शहाबुद्दीन जैसे लोग हैं - इन्हीं का भाषण
सुनने के बाद लोगों को योगी आदित्यनाथ, स्वामी तथा साध्वी के उद्गार अच्छे लगते
हैं | जब से योगी, स्वामी तथा साध्वी के
विरूद्ध अनुपम खेर ने जुवान खोला है, तब से आमिर खां की तरह से वे भी स्वाभिमानी
हिन्दुओं की नजरों से गिर गए हैं |
क्रमशः...